Monday 21 April 2014

सुधाकर रेड्डी ने अरविंद केजरीवाल की भी तीखी आलोचना की



कांग्रेस-भाजपा बदनाम हो चुकी है: सुधाकर रेड्डी संवाद सूत्र, तेघड़ा : कांग्रेस और भाजपा बदनाम हो चुकी है। दोनों पार्टी कारपोरेट घरानों की एजेंट है। उक्त बातें भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने तेघड़ा गौशाला के सभागार में आयोजित भाकपा-जदयू की बैठक को संबोधित करते हुएकहीं। उन्होंने कहा कि विदेशी कंपनियां भारत में अपना पैर जमा चुकी है। आने वाले समय में 50 लाख छोटे दुकान बंद हो जाएंगे। उन्होंने मनमोहन सरकार पर जमकर हमला बोला। सुधाकर रेड्डी ने अरविंद केजरीवाल की भी तीखी आलोचना की। वहीं भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि वह कांग्रेस से अलग नहीं है। भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव ने नरेंद्र मोदी को हिटलर की संज्ञा दी। वहीं बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र से भाकपा उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद सिंह को जिताने की अपील की। बैठक को जदयू जिलाध्यक्ष प्रमोद कुमार शर्मा, भाकपा नेतारामनरेश पांडेय, यूएन मिश्र, जदयू के भोलाकांत झा आदि ने संबोधित किया।
हिंदुस्तान,लखनऊ,21 अप्रैल 2014 :



भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड सुधाकर रेड्डी एवं राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान ने भाजपा/कांग्रेस/आ आ पा-अरविंद केजरीवाल तीनों को भारत के संसदीय लोकतन्त्र के लिए घातक माना है और उनकी आलोचना की है। परंतु उत्तर प्रदेश भाकपा के राज्यसचिव द्वारा यह कहना कि आप ने हमारे स्पेस को छीन लिया है निराशाजनक एवं अपने राष्ट्रीय नेतृत्व के दृष्टिकोण से भिन्न है। वस्तुतः उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर समस्त वामपंथ को सम्मिलित रूप से चुनाव लड़ना चाहिए था। जबकि कई स्थानों पर वामपंथी आपस में ही टकरा रहे हैं। केजरीवाल और आ आ पा को कम्युनिस्टों का समर्थन देने का मतलब होगा फासिस्ट तानाशाही की स्थापना में साम्यवादी योगदान। अतः चुनाव व उसके बाद भी बेहद सतर्कता की आवश्यकता होगी।

Wednesday 16 April 2014

Gurudas writes to EC, accuses govt of defying orders on gas pricing


https://www.facebook.com/cpofindia/photos/a.335629103138331.91488.120263388008238/746394035395167/?type=1&theater

NEW DELHI: CPI MP Gurudas Dasgupta, who has been alleging that the petroleum ministry under M Veerappa Moily has been favouring Reliance Industries on gas pricing, on Monday wrote to the Election Commission that the government had not withdrawn the notification on price hike despite the panel's orders to defer it till the end of elections.
In his letter to CEC V S Sampath on Monday, Dasgupta blamed Moily for not acting on the EC order and said, "You would kindly recall that the Election Commission had directed the government to defer the price hike of natural gas from $4.2 to $8.4 per mmbtu, until the end of elections, through its order (24/3/2014), in view of the model code of conduct."
"Despite your orders, the petroleum ministry has not withdrawn the notification for the price hike, even though 20 days have passed since the orders were issued. It is also reliably learnt that Veerappa Moily (petroleum minister) has been deliberately delaying the withdrawal of the notification for increasing prices even though officials of the ministry had put up the file to him more than 15 days back, by sitting on the file and not taking any decision on the same," the Left leader said.
He warned that taking advantage of this, "Reliance is arm-twisting fertiliser companies to sign agreements with it based on the increased price of $8.4 per mmbtu from April 1". He said the government is "conveniently looking the other way, even as fertiliser companies are being brow-beaten to sign this patently illegal agreement".
Calling it a blatant violation of the EC orders and model code of conduct, Dasgupta requested the CEC to "call for the records of the petroleum ministry" and urged him "to direct the petroleum secretary to issue orders withdrawing the notification for hike in prices directly without waiting for the minister's approval to ensure compliance with the orders of the Election Commission".

Saturday 12 April 2014

लोकतांत्रिक व्यवस्था को संसद के अन्दर एवं बाहर दोनों जगह मजबूत करने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशियों को “हसिया बाली” वाले बटन को दबाकर विजयी बनायें---अरविंद राज स्वरूप

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिनिधि द्वारा दिनांक 14.04.2014 को प्रसारित किए जाने वाले भाषण का आलेख
मतदाता भाइयों एवं बहनों,
इस लोकसभा चुनाव के समय देश एक चौराहे पर खड़ा है। चुनावों के नतीजे यह तय करेंगे कि देश का धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र आगे जाएगा या पीछे खिसकेगा।
केन्द्र की सत्ता किसके हाथ में होगी उसको निर्धारित करने में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं का बड़ा योगदान होगा। इसलिए भाइयों एवं बहनों, मजदूरों एवं किसानों, नौजवानों एवं विद्यार्थियों, मध्यवर्गीय परिवारवासियों, धार्मिक अल्पसंख्यक एवं दलित, पिछड़े एवं अतिपिछड़े तथा सामान्य वर्ग के नागरिकों, आपसे अपील है कि आप सब लोग अपनी कमर कस लें। हम सब लोगों का भविष्य दांव पर है।
पिछले दो दशकों से केन्द्र में सत्तासीन होने वाली, एक के बाद दूसरी आने वाली सरकारों ने जिन नीतियों का पालन किया है वे धन्नासेठों के पक्ष में और जनता के हितों के सरासर विपरीत रही है। उत्तर प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही हुआ है।
विशेष रूप से कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (द्वितीय) की वर्ष 2009 में बनी सरकार तथा इसके पूर्व श्री अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन की सरकार द्वार नव उदारवादी आर्थिक नीतियां अपनायी गयी थी। बीजेपी का शाइनिंग इंडियाका नारा फेल हो गया। जनता अभी उसे भूली नहीं है। इन दलों ने कम्युनिस्टों के विरूद्ध आर्थिक सवालों पर सांठ-गांठ भी की है।
कांग्रेस की संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (द्वितीय) की सरकार ने पिछले पांच वर्षों में सारी सीमायें लांघ दी है। नव उदारवादी आर्थिक नीतियों पर निरन्तर चलने के कारण देश एक ऐसे संकट में पड़ गया है जो हर गुजरते दिन के साथ बढ़ता जाता है। देश की जनता भूख, सभी आवश्यक जिन्सों की आसमान छूती कीमतों, लगातार बढ़ती महंगाई और बढ़ती आर्थिक असमानता से बुरी तरह आहत है।
कांग्रेस सरकार द्वारा बनाई गई आर्थिक नीतियों के कारण राष्ट्रीय एवं प्राकृतिक संसाधनों को निर्लज्जता से लूटा गया है। शासकीय राजनीतिक नेताओं, शीर्षस्थ नौकरशाही तथा धन्नासेठों के इजारेदार घरानों के बीच इस लूट का बंदर बाट हुआ है, जिसके फलस्वरूप स्वतंत्र भारत में लाखों करोड़ों रुपये के अभूतपूर्व बड़े घपले घोटाले हुये हैं। अब यही लुटेरे वर्ग और धन्नासेठ इजारेदार घराने और इनके अधिकतर दृष्य और प्रिंट मीडिया एक ऐसी सरकार लाने की कोशिश कर रहे हैं जो इनकी और अधिक खिदमत और ताबेदारी कर सकें और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और इसके धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को ध्वस्त करने की राह आसान कर दें।
मतदाता भाइयों एवं बहनों!
उत्तर प्रदेश की सपा सरकार भी पिछले दो वर्षों से सिर्फ सरकारी खैरातें बांट रही है। उत्तर प्रदेश में रोजगार के अवसर सृजित नहीं किये गये हैं। किसानों और मजदूरों के हितों को बाजार के हवाले छोड़ दिया गया है। अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में भी यह पार्टी अक्षम रही है और हिन्दू साम्प्रदायिक शक्तियों को खुलकर खेलने का मौका सुलभ करवाया है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का संसद के अन्दर और बाहर जनता के लिए संघर्ष करने का एक शानदार रिकार्ड रहा है। आज की परिस्थितियों का तकाजा है कि देश की सम्प्रभुता, जनता की रोजी-रोटी, आवास, शिक्षा एवं जन स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा के लिये और धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था को संसद के अन्दर एवं बाहर दोनों जगह मजबूत करने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और अधिक मजबूत बने।

हमारी अपील है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशियों को हसिया बालीवाले बटन को दबाकर विजयी बनायें।

Tuesday 8 April 2014

We have to adopt Unique path---A.B.Bardhan


Monday 7 April 2014

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र


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CPI Uttar Pradesh State Council

Apr 5 (2 days ago)

देश चौराहे पर खड़ा है। नव उदारवादी नीतियों पर बेशर्मी के साथ चलते जाने के कारण देश एक ऐसे संकट में पड़ गया है जो हर गुजरते दिन के साथ बढ़ रहा है। देश की जनता भूख, सभी आवश्यक वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों, लगातार बढ़ती महंगाई और बढ़ती आर्थिक असमानता से त्रस्त है। पिछले दो दशकों के दौरान एक के बाद आने वाली दूसरी सरकार जिन नीतियों पर चलती रही हैं, वे कारपोरेटों के पक्ष में और जनता के हितों के सरासर विपरीत रही। इन नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था लगातार गिरती जा रही है। राष्ट्रीय एवं प्राकृतिक संसाधनों को बेशर्मी के साथ लूटा गया और शीर्षस्थ नौकरशाही की मिलीभगत से कारपोरेट घरानों और शासक राजनीतिक नेताओं के बीच इस लूट का बंटवारा हुआ, जिसके फलस्वरूप लाखों-करोड़ों रूपये के अभूतपूर्व बड़े घपले-घोटाले हुए। इस लूट और भ्रष्टाचार के पर्दाफाश के बावजूद शासक वर्ग आर्थिक विकास के उसी विनाशकारी रास्ते पर आगे बढ़ने पर आमादा है। अब यही लुटेरे, और कारपोरेट घराने देश में एक ऐसी सरकार लाने की कोशिश कर रहे हैं जो इनकी और अधिक खिदमत और ताबेदारी करे। इसके लिए वे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और इसके धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को तबाह करने को भी तैयार हैं।
देश की जनता 16वीं लोकसभा के लिए ऐसे समय में मतदान करने जा रही है जब देश धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र और आर्थिक सम्प्रभुता के गंभीर खतरे से दो-चार है।
दो दशक पहले देश गठबंधन सरकार के दौर में दाखिल हुआ और इन चुनावों के बाद भी एक अन्य गठबंधन सरकार ही बनने वाली है क्योंकि किसी भी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन को बहुमत मिलने वाला नहीं है। चुनाव बाद के परिदृश्य में जबर्दस्त राजनीतिक मंथन एवं गहमा-गहमी होगी जिसके फलस्वरूप राजनीतिक ताकतों की फिर से कतारबंदी होगी। चुनाव से पहले और चुनाव के बाद दोनों ही परिदृश्यों में मुख्य मुद्दा लाजिमी तौर पर यह होगा कि देश किस रास्ते पर आगे चले - नवउदारवाद के विनाशकारी रास्ते पर चलना जारी रखे या एक ऐसे कार्यक्रम आधारित विकल्प पर आगे बढ़े जो वर्तमान विनाशकारी रास्ते को पलटे और ऐसे विकास का सूत्रपात करे जिससे विकास के लाभ सभी को बराबर मिलें और जो देश में बहुलवाद और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की रक्षा करे और उसे और अधिक मजबूत करे।
कांग्रेस का चुनावी ग्राफ निश्चित तौर पर गिर रहा है क्योंकि संप्रग-2 सरकार स्वतंत्रता के बाद की सबसे अधिक भ्रष्ट और सबसे अधिक कुशासन की सरकार साबित हुई है। रोज-रोज सामने आने वाले बड़े-बड़े घपलों और घोटालों ने इसका हाल बिगाड़ दिया है। भ्रष्टाचार के कारण इसके लगभग आधा दर्जन मंत्रियों को सरकार से हटना पड़ा। एक मंत्री को तो 1.75 लाख करोड़ रूपये के घोटाले 2जी घोटाले में जेल भी जाना पड़ा। एक अन्य मंत्री को हटाना पड़ा क्योंकि उन्हें कोयला घोटाले के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में चल रही जांच रिपोर्ट में हस्तक्षेप करने का दोषी पाया गया जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय पर सीधे उंगली उठाई गई थी। कुछ मंत्रियों को अपने विभागों से इसलिए हटाया गया क्योंकि वे कारपोरेटों और अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी के इशारों पर चलने को तैयार नहीं थे।
अब यह और भी अधिक स्पष्ट हो गया है कि वित्त पूंजी और साम्राज्यवादी एजेंसियों का पक्ष लेने के कई मुद्दों पर शासक संप्रग-2 और मुख्य विपक्ष भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के बीच सीधी साठगांठ रही है। 15वीं लोकसभा में संसद के सभी सत्रों में न केवल कार्यवाहियों में रूकावटें एवं बाधाएं देखने में आयी बल्कि उसे इस बात का भी श्रेय जाता है कि उसमें पारित न हो सकने वाले बिलों की संख्या सबसे अधिक रही। उसमें अधिकतम कार्य दिवस बर्बाद हुए और साथ ही संसद के कार्य दिनों में भी भारी गिरावट आयी। वामपंथ ने जब भी उन बुनियादी, सामाजिक, आर्थिक समस्याओं को उठाना चाहा जिनसे जनता दो-चार है, दोनों पूंजीवादी राजनैतिक पार्टियों ने बुनियादी मुद्दों पर किसी सार्थक बहस को भितरघात करने के लिए परस्पर मिलीभगत कर ली। दूसरी तरफ, बैंकों एवं बीमा क्षेत्रों को निजी क्षेत्र, जिसमें बहुराष्ट्रीय निगम शामिल हैं, के हवाले करने के लिए कांग्रेस और भाजपा ने आपस में साठगांठ की।
अपने मुनाफों को अधिकतम बढ़ाने की कोशिश में कारपोरेट घरानों ने उसे अपने इशारों पर नचाने के लिए सरकार में जोड़तोड़ करना जारी रखा, जिसका नतीजा आर्थिक संकट के और अधिक गहराने के रूप में सामने आया। 2008 के बाद से लगभग सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें दोगुना हो गयी हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत उन देशों में शामिल है जहां पर बेरोजगारों की संख्या सबसे अधिक है। देश की काम करने योग्य आबादी के लगभग 4 प्रतिशत हिस्से के पास कोई रोजगार नहीं है।
कारखाना बंदी और रोजगारों के आउटसोर्सिंग एवं ठेकाकरण के परिणामस्वरूप पहले से रोजगार में लगे हजारों-हजार लोगों से भी उनका रोजगार छीन गया है। अनेक सरकारी विभागों में ‘‘नई भर्ती नहीं की जाये’’ का आदेश लागू है। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों को आउटसोर्सिंग के लिए मजबूर किया जा रहा है। रोजगार सृजन सरकार की प्राथमिकताओं में सबसे नीचे है। मजदूर वर्ग खतरे में है। ट्रेड यूनियन अधिकारों में लगातार कटौती की जा रही है। एक के बाद दूसरे क्षेत्रों को ट्रेड यूनियन अधिकारों से बाहर के क्षेत्र घोषित किया जा रहा है।
राष्ट्रीय एवं प्राकृतिक संसाधनों की लूट संप्रग-2 सरकार की एक अन्य खासियत है। उसने अपने हर बजट में बढ़ते वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की मुनाफा कमाने वाली इकाईयों के शेयरों को निजी क्षेत्र के हवाले करने की योजना बनाई। उसने जानबूझकर, सोझ समझकर प्राकृतिक संसाधनों को निजी क्षेत्र के हवाले करने की इजाजत दी। संप्रग-2 सरकार के सबसे बड़े घोटाले, जिसमें मुकेश अंबानी की कंपनी द्वारा निकाली गयी गैस के लिए दोगुनी कीमत देना शामिल है, मुनाफों को बढ़ाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों की लूट का सबसे बड़ा उदाहरण है।
नव उदारवाद की नीतियों पर चलने का एक अन्य नतीजा है बढ़ती आर्थिक असमानता। एक तरफ भारत में सबसे अधिक अरबपति हैं तो दूसरी तरफ गरीबी के रेखा से नीचे वालों की संख्या भी सबसे अधिक है। हमारे देश के 70 प्रतिशत से भी अधिक लोग 20 रूपये प्रति दिन भी खर्च करने में समर्थ नहीं हैं। इस सरकार को जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों में कटौती करने का भी श्रेय जाता है। आतंकवाद से लड़ने के नाम पर इसने अटल बिहारी बाजपेयी की पिछली भाजपा नीत राजग सरकार की उन नीतियों को जारी रखा है जिनमें ‘‘सभ्यता के टकराव’’ के उस अमरीकन सिद्धांत को अंगीकार कर लिया था जो मुस्लिम समुदाय को सभ्य जगत के लिए एक खतरे का नाम देता है। हजारों युवाओं को, अधिकांशतः शिक्षित युवाओं को गिरफ्तार किया गया और यहां तक कि एफआईआर दर्ज किये बिना जेल में रखा गया। जनता को उसके लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित करने के लिए टाडा, एस्मा एवं पोटा की तर्ज पर काले कानून पारित किये गये हैं।
विदेश नीति अमरीकी साम्राज्यवाद की खिदमतगार-ताबेदार बनती जा रही है। अमरीकी दबाव में आकर राष्ट्रीय हितों की बलि चढ़ाई जा रही है। रक्षा तैयारियों को मजबूत करने के नाम पर संकटग्रस्त अमरीकी अर्थव्यवस्था, विशेष तौर पर इसके सैन्य-औद्योगिक कॉम्पलेक्स को मदद करने के लिए अमरीका और इस्राइल से साजो-सामान खरीदा जा रहा है। यहां तक कि इस सरकार ने अमरीकी साम्राज्यवादियों के दबाव में आकर ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइप लाइन परियोजना को भी रद्द कर दिया। उसने हमारे राष्ट्रीय हितों को भी बलि चढ़ाकर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं राजनीतिक मंचों पर साम्राज्यवादियों के साथ साठगांठ की। विश्व व्यापार संगठन में अमरीकियों को खुश करने के लिए उसने ब्रिक्स देशों की सहमति के विरूद्ध काम किया। सीरिया और ईरान के परमाणु विकल्प जैसे नाजुक मुद्दों पर हमारी पोजीशन इस तरह के आत्मसमर्पण का एक स्पष्ट उदाहरण है।
कुल मिलाकर यह एक ऐसी सरकार साबित हुई है जो कारपोरेट पूंजी और अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी के हित साधती है।
परन्तु संप्रग-2 सरकार का अधिकतम दोहन करने के बाद कारपोरेट पूंजी और अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी अब एक ऐसी सरकार लाने की कोशिश कर रही हैं जो उनकी खिदमत और ताबेदारी इस सरकार से भी अधिक करे। इसके लिए उन्होंने भाजपा के नरेन्द्र मोदी को चुन लिया है जिनके दामन पर 2002 के खून के दाग हैं और जो अपनी अधिनायकवादी सोच के लिए जाने जाते हैं। गुजरात में अपने एक दशक के मुख्यमंत्री काल में उन्होंने तीन पूर्व भाजपा मुख्यमंत्रियों को ठिकाने लगा दिया और उनके साथ उस नेता को भी हटा दिया जो बाजपेयी सरकार में गुजरात से अकेला मंत्री था। कारपोरेट घरानों द्वारा संचालित संचार माध्यमों ने नव-फासीवादी रूझान के इस व्यक्ति को उछालने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
परन्तु विकास के गुजरात मॉडल की सच्चाई का हर गुजरते दिन के साथ पर्दाफाश हो रहा है। उनकी सरकार केवल बड़े पंूजीपतियों के लिये ही है। उनके लिए उसने किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया और यह बेदखली इस हद तक हुई है कि अब गुजरात उन शीर्ष राज्यों में से है जहां कृषि योग्य जमीन सबसे अधिक कम हुई है। किसानों की जमीन को तथाकथित औद्योगीकरण के लिए अधिग्रहण कर लिया गया और बिल्डर माफिया के हवाले कर दिया गया। यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जिन किसानों को कच्छ के सीमावर्ती इलाके में बसाया गया था उन्हें भी उस अदानी समूह के हितों की सेवा करने के लिए बेदखल किया जा रहा है जिसके पास उस जिले में पहले ही दो बन्दरगाह हैं। अदानी, टाटा, अम्बानी और एस्सार घरानों को ब्याज सब्सिडी दी गई है और खरबों रूपये 0.1 प्रतिशत की ब्याज दर पर दिये गये हैं जिनका वापस भुगतान 20 वर्ष या उससे भी बाद शुरू होगा। इसके फलस्वरूप गुजरात सरकार के खजाने में सामाजिक क्षेत्र के लिए कोई पैसा ही नहीं रह गया है। नरेन्द्र मोदी सरकार के एक दशक की खास निशानियां हैं बच्चों एवं महिलाओं का कुपोषण, शिक्षा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का पूरी तरह से व्यवसायीकरण और बढ़ती बेरोजगारी।
मुस्लिम अल्पसंख्यकों को ऐसी तंग एवं गंदी बस्तियों में जहां केवल वे ही रहते हैं, रहने को जबरन भेजने के काम ने भी मोदीत्व का पर्दाफाश कर दिया है। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद मोदी सरकार ने केन्द्र सरकार द्वारा वित्त पोषित अल्पसंख्यक-उन्मुखी सामाजिक-आर्थिक एवं शैक्षणिक स्कीमों पर अमल करने से इन्कार कर दिया है। मुसलमान दंगे से पहले जहां रहते थे अपने उन मकानों में वापस जाने में असमर्थ हैं और अहमदाबाद में जूहूपुरा जैसी ऐसी गंदी बस्तियों में रह रहे हैं जहां केवल मुसलमान ही रहते हैं।
कारपोरेटों की इससे भी अधिक खिदमत और ताबेदारी करने वाली सरकार बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताने-बाने पर भी हमले किये जा रहे हैं। मतदाताओं के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को आगे बढ़ाने के लिए हर किस्म की तरकीब और चालाकी का इस्तेमाल किया जा रहा है। मुजफ्फरनगर इस खेल का एक सुस्पष्ट उदाहरण है।
आजादी के बाद, वामपंथ, विशेषकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का संसद के अंदर और बाहर जनता के लिए संघर्ष करने का एक शानदार रिकार्ड रहा है। सदन में उसकी संख्या कुछ भी रही हो, जनता के पक्ष में नीतियां बनवाने में और संसद के बाहर संघर्षरत जनता की मांगों को बुलंद करने में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एक अग्रणी संसदीय ताकत के रूप में उभरी है। प्रोफेसर हीरेन मुखर्जी, भूपेश गुप्ता, इन्द्रजीत गुप्ता, गीता मुखर्जी एवं अन्य भाकपा नेताओं ने जनता के अधिकारों के लिए संघर्ष और मेहनतकश जनता के संसदीय एवं इतर संसदीय संघर्षों को जोड़ने में उदाहरण कायम किये हैं।
आज की परिस्थिति का तकाजा है कि देश की सम्प्रभुता, जनता की रोजी-रोटी, आवास, शिक्षा एवं जन स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा के लिए और धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था को संसद के अंदर एवं बाहर दोनों जगह मजबूत करने के लिए वामपंथ और अधिक जोरदार और लगातार एवं लम्बा संघर्ष चलाए। इसके लिए यह आवश्यक है कि 16वीं लोकसभा में वामपंथ का अपेक्षाकृत अधिक प्रतिनिधित्व हो। लोकसभा में एक मजबूत लेफ्ट ब्लॉक आये, यह समय का तकाजा है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी निम्न घोषणा पत्र पेश करती है जो वैकल्पिक सामाजिक-आर्थिक नीतियों का एक आधार बनेः

  • नवउदारीकरण को अपनाने के लिए उठाये गये कदमों की पूरी तरह समीक्षा और दुरूस्तगी के लिए समूचित कदम;
  • खुदरा व्यापार में एफडीआई नहीं। एफडीआई केवल उन्हीं क्षेत्रों में जहां यह उच्च टेक्नालोजी, रोजगार सृजन और परिसम्पत्ति निर्माण के लिए आवश्यक हो।
  • सार्वजनिक परिसम्पत्तियों की रक्षा, सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत करना और राज्य की भूमिका पर फिर से जोर, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों का निजीकरण बंद करो, गैस, पेट्रोल एवं खनिज आदि प्राकृतिक संसाधनों को आगे निजी क्षेत्र के हवाले न करना;
  • प्रभावी कराधान (टैक्सेशन) कदम और वैध एवं तर्क संगत टैक्सों की वसूली को सुनिश्चित करना, आयकर छूट की सीमा को बढ़ाना और जो लोग टैक्स दे सकते हैं उनके लिए टैक्स में क्रमिक वृद्धि।
  • खनिज, तेल, गैस जैसे तमाम प्राकृतिक संसाधनों का राज्य ही एकमात्र स्वामी रहे; 
  • पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप नहीं, क्योंकि यह निजी क्षेत्र द्वारा इसके फायदों को हड़पने को वैध बना रहा है और घाटे को संस्थागत रूप दे रहा है; 
  • आवास, शिक्षा आदि के लिए कम ब्याज पर आसान ऋण। जो ऋण पहले लिये गये हैं रेपो रेट का उनके ईएमआई पर असर नहीं पड़ना चाहिए; 
  • जिन कारपोरेट बैंक ऋणों को बैंकों ने गैर निष्पादित परिसम्पत्ति (एनपीए) करार कर दिया है उनकी वसूली के लिए कठोरतम कानूनी कदम; डिफाल्टरों की परिसम्पत्ति जब्त की जाये;
  • विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाया जाये। काले धन के ट्रांसफर को रोकने के तंत्र को मजबूत बनाओ;
  • विकास के रास्ते को इस तरह पुनः निरूपित करो कि वह न्यायसंगत वितरण और सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक विकास की दिशा मे ले जाये; 
  • सभी के लिए आवास, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा; महिला एवं बच्चों में कुपोषण को खत्म करने के लिए विशेष जोर;
  • मनरेगा स्कीम की तरह शहरों के बेरोजगारों के लिए काम का अधिकार सुनिश्चित करो;
  • बड़ी कम्पनियां के लिए ऑडिट के लिए कानून; और
  • कैग को एक संवैधानिक प्राधिकार बनाया जाये। 
  • लघु एवं मझोले उद्योग एवं कुटीर उद्योग
  • लघु एवं मझोले और कुटीर उद्योग, जो भूमंडलीय मंदी के कारण बर्बाद हो गये हैं, उनकी रक्षा;
  • इन क्षेत्रों को सब्सिडी युक्त ब्याज पर ऋणों का प्रावधान, खासकर उन उद्योगों को जो इनके उत्पादों के निर्यात पर निर्भर हैं;
  • इन क्षेत्रों द्वारा लिये गये ऋणों की वसूली पर स्थगन और इनके उत्पादों के लिए आरक्षण;
  • स्थानीय बाजार की जरूरतों को पूरा करने में मदद के लिए उन्हें सब्सिडी;
  • हैण्डीक्राफ्ट और कुटीर उद्योगों में फिर से जान फूंकने के लिए विशेष पैकेज क्योंकि ये उद्योग रोजगार के अधिकतम अवसर प्रदान करते हैं।

चुनाव सुधारों के संबंध में

  • वर्तमान व्यवस्था में जिस उम्मीदवार को पड़ने वाले वोटों में से सबसे अधिक वोट मिलते हैं उसको निर्वाचित माना जाता है, इससे जिन लोगों या पार्टियों को 50 प्रतिशत से कम मत मिल जाते हैं वह भी जीत जाता है। इससे धन बल और बाहुबल को बढ़ावा मिलता है। इस व्यवस्था को बदला जाना चाहिए;
  • आंशिक सूची व्यवस्था के साथ समानुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था को लागू किया जाये; और 
  • जो लोग सशस्त्र बलों एवं विदेशी मिशनों में काम कर रहे हैं वह मताधिकार का प्रयोग कर सकें इसके लिए तंत्र।

विशिष्ट क्षेत्रीय एवं राज्य स्तर मुद्दों के संबंध में

  • पिछड़े राज्यों को स्पेशल स्टेट्स;
  • जिन क्षेत्रों में कथित वाम उग्रवाद चल रहा है वहां वार्ता और उन क्षेत्रों के विकास के लिए स्पेशल पैकेज के क्रियान्वयन के जरिये शांति बहाली के लिए विशेष प्रयास;
  • अंतर-राज्य श्रम प्रव्रजन कानून 1979 (इंटर-स्टेट माइग्रेशन ऑफ लेबर एक्ट 1979) और शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्रव्रजन मजदूरों की रक्षा के लिए संबंधित कानूनों में संशोधन;
  • असम एवं अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में नृवंशीय (एथनीक) एवं साम्प्रदायिक भीतरघात को रोकने के लिए पैकेजों के जरिये विशेष प्रयास।
  • मणिपुर, कश्मीर एवं अन्य पूर्वाेत्तर क्षेत्रों से सशस्त्र बल विशेष शक्ति कानून (अफस्पा) को निरस्त किया जाये।

कृषि क्षेत्र 

  • सिंचाई, बीज और उर्वरकों जैसी सुविधाएं सभी किसानों को उचित एवं कुछ मामलों में सब्सिडीयुक्त मूल्य पर मिलें इसके लिए कृषि क्षेत्र में सरकारी निवेश में पर्याप्त वृद्धि;
  • कृषि एवं बुआई के लिए भूमि सुनिश्चित करने के लिए मूलगामी भूमि सुधार एवं भूमिहीनों को भूमि वितरण; 
  • निजी बीज कारपोरेशनों का पक्ष लेने वाले कदमों को बंद किया जाना चाहिए;
  • व्यापक एवं अनिवार्य फसल बीमा जिसके लिए प्रीमियम का भुगतान राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा किया जाये;
  • छोटे एवं सीमांत किसानों को ब्याज मुक्त ऋण;
  • कृषि उत्पादों के लिए लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य;
  • स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर अमल;
  • किसानों, खेत मजदूरों और ग्रामीण दस्तकारों समेत सभी को 3000 रूपये मासिक पेंशन; और 
  • खेत मजदूरों के लिए केन्द्रीय कानून को पारित करना। राज्यों एवं केन्द्र में कृषि के लिए अलग बजट।

विदेश नीति

  • स्वतंत्र विदेश नीति पर चलो, अमेरिका जैसी साम्राज्यवादी ताकतों के सामने कोई आत्म-समर्पण नहीं;
  • अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे पड़ोसी संबंधों को बढ़ावा दो;
  • श्रीलंका के तमिलों के लिए एक राजनीतिक समाधान पर जोर दो और 2009 में श्रीलंका में युद्ध के अंतिम दौर में जो मानवाधिकार उल्लंघन और युद्ध अपराध हुए उनके सम्बंध में विश्वसनीय जांच;
  • क्षेत्रीय सहयोग के संवर्धन पर जोर। ब्रिक्स एवं शंघाई सहयोग संगठन जैसे ग्रुपिंग्स में और अधिक सक्रिय भूमिका; और 
  • गुट निरपेक्ष आंदोलन को सार्थक तरीके से मजबूत करना।

शिक्षा नीति

  • सरकार द्वारा प्राइमरी से सेकेंडरी स्तर तक निःशुल्क एवं सर्वसुलभ शिक्षा के लिए गारंटी दी जाए;
  • शिक्षा पर खर्च को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 10प्रतिशत किया जाय;
  • शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं, सभी को समान गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, समान स्कूल प्रणाली, मेडिकल शिक्षा समेत सभी पेशेवर शिक्षा संस्थानों में दाखिले के लिए और अधिक अवसर; 
  • प्राइमरी से उच्चतर शिक्षा के सरकारी शिक्षा संस्थानों में तमाम रिक्त पदों को भरकर सभी स्तर पर सरकारी शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाना;
  • तर्कबुद्धिवाद ;रैशनलिज्मद्ध और वैज्ञानिक स्वभाव को प्रोत्साहित करने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव। संविधान विहित प्रावधानों के अनुसार धर्मनिरेक्षता की रक्षा;
  • छात्रों के लिए सभी लोकतांत्रिक अधिकारों की गारंटी;
  • अगले 5 वर्षोंं में निरक्षरता का खात्मा करो।

रोजगार के और अधिक अवसर

  • बुनियादी अधिकार के रूप में काम के अधिकार की गांरटी; 
  • सभी बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता;
  • स्वरोजगार से जुड़े लोगों, दस्तकारों एवं विकलंागों के लिए विशेष बैंक क्रेडिट नीति को सुनिश्चित करो;
  • नौकरियों में भर्ती पर रोक और सरकारी विभागों एवं सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों में वर्तमान रोजगार में कटौती को समाप्त करो; और
  • पंूजी सघन विकास के बजाय रोजगार सघन विकास पर जोर दिया जाये।

खाद्य सुरक्षा

  • सभी परिवारों को 2 रुपये प्रति किलो के अधिकतम भाव पर 35 किलो खाद्यान्न का प्रावधान;
  • सर्वसुलभ (यूनिवर्सल) सार्वजनिक वितरण प्रणाली स्थापित की जाये और उसे विस्तारित किया जाये;
  • आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी के विरूद्ध कठोरतम कानूनी कदम; और
  • किसी भी वस्तु में फॉरवर्ड ट्रेडिंग नहीं।

सामाजिक सुरक्षा

  • सर्वसुलभ (यूनिवर्सल) वृद्धावस्था पेंशन का ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में सभी के लिए विस्तार; और
  • पेंशन को रहन-सहन के खर्च के साथ लिंक करो।

स्वास्थ्य सेवा

  • स्वास्थ्य सेवा पर सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत खर्च सुनिश्चित करो;
  • स्वास्थ्य सेवा एक बुनियादी अधिकार बनाया जाना चाहिए।

भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना

  • जांच की स्वतंत्र शक्ति के साथ लोकपाल कानून को मजबूत करो; 
  • राष्ट्रीय एवं प्राकृतिक संसाधनों की लूट को बंद करो क्योंकि बड़े घपलों और घोटालों की जड़ में यही चीज है;
  • सरकारी कामकाज के सभी स्तरों पर पूरी तरह पारदर्शिता;
  • सूचना के अधिकार कानून को कमजोर नहीं करना;
  • शिकायत निवारण कानून बनाओ; और
  • बाकी पड़े कानूनों को पारित करो, शिकायतकर्ताओं/ जानकारी देने वालों की रक्षा के संबंध में कानून को मजबूत करो।

न्यायिक सुधार

  • वहनीय खर्च पर सभी को समय पर न्याय मिले इसे सुनिश्चित करना;
  • न्यायिक व्यवस्था का विस्तार करो;
  • राष्ट्रीय न्यायिक आयोग का गठन करो; और
  • राजद्रोह धारा एवं अन्य क्रूर कानूनों को हटाने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समुचित संशोधन लाओ;
  • जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता।

पुलिस सुधार

  • पुलिस बल में ऐसा सुधार जिससे वह उत्पीड़न के लिए राज्य के एक हथियार, जैसा कि आज वह है, के स्थान पर जनता की सेवा के लिए एक संस्था बने; और
  • पुलिस सुधार आयोग रिपोर्ट पर अमल करो।

महिलाओं के लिए 

  • लिंग समानता, सभी क्षेत्रों में महिलाओं को समान अधिकार;
  • महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत तंत्र; हिंसा की पीड़ित महिलाओं के लिए फास्ट टैªक कोर्ट सुनिश्चित करो;
  • संसद एवं विधान सभाओं मंे महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए कानून, स्थानीय निकायों मंे 50 प्रतिशत आरक्षण;
  • लिंग स्तर की पारदर्शिता एवं जवाबदेही;
  • समलैंगिकों, उभयलैंगिकों एवं लिंग परिवर्तितों को समान अधिकार सुनिश्चित करो।

मजदूर वर्ग के लिए

  • कठिन संघर्षों के बाद प्राप्त ट्रेड यूनियन अधिकारों की रक्षा;
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र एवं सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में ट्रेड यूनियन कानून लागू करो;
  • उचित न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा कदमों को लागू करना;
  • ठेके पर काम कराने, आउटसोर्सिग और कैजुअल मजदूरी को समाप्त करना;
  • आंगनवाडी, आशा मिड-डे-मील और घरेलू वर्करों समेत असंगठित मजदूरों के लिए सामाजिक सुरक्षा;
  • पहले की सुनिश्चित, गारंटीशुदा पेंशन योजना की बहाली;
  • हाथ से शौच-सफाई के काम (मैनुअल स्केवेंजिग) को खत्म करो;
  • बाल-मजदूरी एवं बंधुआ मजदूरी के चलन को खत्म करने के लिए कानूनी प्रावधानों पर सख्ती से अमल।

अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए

  • एससी /एसटी सब-प्लान के लिए केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर कानून;
  • उत्पीड़न के विरूद्ध कानूनों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए उनमें संशोधन किया जाए;
  • वन सम्पदा पर वनवासियों को अधिकार देने वाले कानूनों को समग्रता से लागू किया जाए;
  • निजी क्षेत्र एवं पीपीपी संस्थानों समेत सभी क्षेत्रों में अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग के हित मंे आरक्षण नीति पर उचित अमल को सुनिश्चित करो;
  • रोजगार के सभी प्रवर्गों में एससी/एसटी के लिए आरक्षित पदों को पूरी तरह भरने को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र बनाया जाए;
  • जनजाति आबादी वाले सभी क्षेत्रों को संविधान की 5वीं अनुसूची ;पेसाद्ध के अन्तर्गत लाया जाए;
  • आदिवासियों के लिए पांचवीं और छठी अनुसूची अधिकारों की रक्षा करना;
  • आदिवासी स्वायत्ता की रक्षा एवं संवर्धन के लिए बने कानूनों में समुचित संशोधन;
  • वन भूमि से आदिवासियों की बेदखली पर प्रतिबंध।

मछली उद्योग एवं मछुआरा समुदाय

  • मछली उद्योग और मछली पालन से जुड़े मजदूरों समेत मछुआरा समुदाय से संबंधित मुद्दों को डील करने के लिए अलग मंत्रालय बनाओ;
  • मछुआरा समुदाय को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का स्टेट्स देने के संबंध में विचार करो;
  • भारतीय मछुआरा समुदाय के अधिकारों की रक्षा करो; समुद्र में जाकर मछली पकड़ने वाले लोगों और मछुआरा समुदाय को विदेशी ताकतों के हमले से बचाओ। 

धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए

  • सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह और ईमानदारी से लागू करना, दलितों और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को सुविधाएं देने के संदर्भ मंे धार्मिक आधार पर भेद-भाव खत्म करना; 
  • एससी/एसटी सब प्लान की तर्ज पर केन्द्र और राज्य दोनों स्तर पर अल्पसंख्यकों के लिए एक सब प्लान का प्रावधान करना;
  • साम्प्रदायिक हिंसा पर नियंत्रण के लिए कठोर कानून बनाए जाए और दंगा पीड़ितों का उचित पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए;
  • अल्पसंख्यक आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाए;
  • सभी मकबूजा वक्फ भूमि और संपत्ति को वापिस करो, वक्फ की आय को अल्पसंख्यक समुदाय के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सुधार में इस्तेमाल किया जाए;
  • अल्पसंख्यकों के लिए 15 सूत्रीय प्रधानमंत्री कार्यक्रम समेत सभी सरकारी स्कीमों को समग्रता से लागू करना; 
  • उर्दू समेत मातृभाषा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा से लेकर माध्यमिक स्तर तक शिक्षा सुनिश्ेिचत की जाए; और
  • धार्मिक आधार पर होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए भर्ती के सभी रास्तों के मैकेनिज्म को ठीक करो।

आंतकवाद के संबंध में

  • आंतकवाद के संबंध में नीति में संशोधन करो, ‘सभ्यता के टकराव‘ के सिद्धांत पर आधारित अवधारणा को त्याग दो; 
  • एफआईआर और चार्जशीट बगैर सालों से हिरासत में लिए गए युवकों को रिहा करो;
  • न्यायालय द्वारा सभी रिहा किए गए आंतक के अभियुक्तों का सरकारी रोजगार और पर्याप्त वित्तीय मुआवजे के साथ पुनर्वास करो; 
  • मासूम नौजवानों को फंसाने वाले और फर्जी मुठभेड़ करने वाले अधिकारियों को सजा दो; और
  • गैर-कानूनी गतिविधि (निवारण) कानून (यूएपीए) समेत सभी काले कानूनों को रद्द करो।

केन्द्र-राज्य संबंध

  • संघवाद को मजबूत करो;
  • राजस्व एवं वित्तीय संसाधनों के उचित हिस्सा बंटाने को नये सिरे से तय करो और सुनिश्चित करो।

शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए

  • शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए रोजगार और आजीविका के लिए विशेष कानून; और
  • विकलांग अधिकार कानून को लागू करो।

वरिष्ठ नागरिकों के लिए

  • आयकर दाताओं को छोड़कर अन्य सभी को वृद्धावस्था पेंशन; और
  • देश के सभी 622 जिलों में प्रत्येक में कम से कम एक वृृद्धावस्था आवास (ओल्ड होम) सरकार द्वारा चलाया जाए।

युवकों के संबंध में

  • एक व्यापक युवा नीति बनाओ;
  • निर्णय लेने वाले सभी निकायों में युवकों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करो; और
  • युवाओं के सभी तबकों तक खेल-कूद की समान पहुंच को सुनिश्चित कराने के लिए खेल एवं क्रीड़ा नीति बनाओ। स्कूलों एवं शिक्षा संस्थानों मंे खेल-कूद एवं क्रीड़ा के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा बनाओ।

बाल अधिकारों के संबंध में

  • गुणवत्तापूर्ण डे- केयर सेवा;
  • पैदा होने से लेकर छः साल तक की उम्र के बच्चे को देखभाल और शिक्षा का अधिकार;
  • कार्यस्थलों पर शिशु सदनों का प्रावधान करो;
  • कुपोषण का अंत करो;
  • बच्चों के गिरते हुए लैंगिक अनुपात को रोको; और
  • सकल घरेलू उत्पाद का 3 प्रतिशत बच्चों की देखभाल में खर्च किया जाए।

संचार माध्यमों के संबंध में

  • इलेक्ट्रोनिक और प्रिन्ट मीडिया दोनों पर कॉरपोरेट घरानों द्वारा कब्जा करने की कोशिशों को रोको;
  • पत्रकारों के लिए वेज बोर्डों द्वारा की गयी सिफारिशों पर दृढ़ता से पूरी तरह अमल कर और पत्रकारों की नियुक्ति में अनुबंध व्यवस्था (कॉन्ट्रेक्ट सिस्टम) को खत्म कर पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बहाल किया जाए;
  • प्रसार भारती को वास्तविक रूप में जन प्रसारण सेवा बनाने के लिए और अधिक संसाधन मुहैय्या कराए जाएं। 

संस्कृति के संबंध में

  • बहुलवादी राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा करो;
  • एकरूपवादी (मोनोलिथिक) व्यवस्था को थोपने की कोशिशों को नाकाम करो;
  • संस्कृति की सभी धाराओं के साथ सरकार एक जैसा बर्ताव करें;
  • सभी भाषाओं को बढ़ावा देना;
  • आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं के साथ राष्ट्रीय भाषा के रूप में व्यवहार किया जाए;
  • आदिवासी और क्षेत्र-विशिष्ट संस्कृतियों को बढ़ावा देना; और
  • आदिवासी लिपियों और बोलियांे को विकसित करना।

पर्यावरण नीति

  • पर्यावरण के संरक्षण के लिए एक व्यापक नीति तैयार करो;
  • पर्यावरण की जरूरतों और विकास के बीच एक संतुलित दृष्टिकोण;
  • पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली खतरनाक टेक्नोलॉजी पर प्रतिबंध लगाओ;
  • प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सार्वजनिक परिवहन और पर्यावरण-अनुकूल परिवहन व्यवस्था का विकास करना।

जल-संसाधनों का संरक्षण 

  • जल-संसाधनों को व्यवसायिक उद्देश्य के लिए लीज पर न दिया जाये;
  • सभी को साफ पीने का पानी सुनिश्चित करो;
  • भूमिगत जल संसाधनों के अंधाधुंध इस्तेमाल पर नियंत्रण लगाओ; और
  • वर्षा जल संचयन के साथ-साथ परंपरागत झीलों, तालाबों और अन्य जल संसाधनों का संरक्षण करना।

विज्ञान और टेक्नोलॉजी के संबंध में

  • ज्ञान और आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक विज्ञान और टेक्नोलॉजी नीति;
  • प्रतिभा पलायन पर नियंत्रण करो;
  • शोध और विकास के लिए अधिक फंड ;
  • राष्ट्रीय हितों के संरक्षण के लिए वर्तमान पेटेंट कानून में संशोधन करो; और
  • परमाणु दायित्व कानून को कमजोर न किया जाय।

मतदाताओं से अपील
कारपोरेट पंूजी केन्द्र में एक कमजोर, अपनी खिदमतगार और दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी सरकार बनाने की कोशिश कर रही है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य वामपंथी पार्टियां विकास का फायदा आबादी की सभी तबकों तक पहुंचाने के लिए जो सामाजिक-आर्थिक नीतियां अपनाई जायेगी उनके संबंध में निरंतर एवं सुसंगत तरीके से एक सुस्पष्ट समझ बनाने के लिए कोशिश करती रही है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, जिसका एक बेहतर जीवन के लिए संसद के अंदर और बाहर जनता के संघर्षोंं को जोड़कर चलाने का एक गौरवपूर्ण रिकॉर्ड रहा है, मतदाताओं से अपील करती है कि वे देश के विभिन्न हिस्सों मंे उसके उम्मीदवारों को वोट दें।
आपका वोटः 

  • नव उदारवादी एवं जन विरोधी आर्थिक नीतियों को बदलेगा;
  • वर्तमान भ्रष्ट सरकार को सत्ता से हटायेगा;
  • सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता पर कब्जा करने से रोकेगा; और
  • एक जनतापक्षीय विकल्प के लिए पथ-प्रशस्त करेगा।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवारों को वोट दें।