Tuesday 21 March 2017

REMEMBERING M.N.ROY ------ N.d. Pancholi

Lenin and Roy
N.d. Pancholi

REMEMBERING M.N.ROY ON THE OCCASION OF HIS 130TH BIRTH ANNIVERSARY
(21ST March 1887- 25th January 1954)
At the age of 14 Roy started his career as a militant revolutionary in Bengal against the British, left India in 1915 in search for arms for Indian revolutionaries during Ist World War, landed in USA, converted to socialism and Marxism, went to Mexico in 1917, became General Secretary of the Mexican Socialist Party, joined Communist International in 1919 and converted the Mexican Socialist Party into the Communist Party of Mexico –thus became founder of the First Communist Party in the World after Russia, Lenin invited him to attend the second Congress of the Communist International in 1920, took active part in formulations and activities of the Communist International, was elected as member of its Presidium and of its Secretariat, was made in-charge of organizing the communist movement in Asia and of training and education of Asiatic communists in the Eastern University of Moscow, founded Communist Party of India (émigré) in October 1920 at Tashkent, flooded India with large amount of Marxist and communist literature and promoted communist groups in several parts of India, led the delegation of the Communist International to China in December 1926 to implement its theses on China and to guide revolutionary process, mission met catastrophic failure, on return in 1927 to Moscow differences developed with several members of the Presidium, came to Berlin, started writing articles opposing the policies of the Communist International which he thought were going to help the Fascists in Europe, severed his relations with the Communist International in 1928 for reasons of disagreement regarding both the theory and practice of communism, came to India in 1930, was imprisoned under the charge of Sedition in the famous Kanpur communist conspiracy case in which he was accused No.1, spent six years in jail, on release in 1936 joined Indian National Congress and became member of its Working committee, did not agree with the Congress’s policy on its attitude to the 2nd World War and severed relations with it, opposed the Quit India Movement as he thought that defeat of Fascist Powers in the Second World War was more important at that moment of world history, founded Radical Democratic Party of India in 1940 which he dissolved himself in 1948 as he thought that ‘party politics’ was incompatible with the philosophy of Radical Humanism which he had evolved in the last phase of his life. Since then he occupied himself with the philosophical and historical writings as Founder-Director of the Indian Renaissance Institute, Dehradun, a cultural-educational institution founded with the object of re-educating the educators and young intellectuals of India in the spirit and with the ideas of Radical (or Integral) Humanism. He believed in the dictum of ancient wisdom that ‘man’ is the measure of everything and that merit of any social organization or political institution is to be judged by the measure of freedom it gives to the individual. He died in Dehradun on 25th January, 1954. 
(The portrait here is the rare photo of delegates to the second Congress of the Communist International (1920) which include Lenin and Roy.)

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1898948580352782&set=a.1432721293642182.1073741828.100007129741266&type=3


Sharwan Kumar
Sharwan Kumar
8 hours ago
क्रांतिकारी विचारक,चिन्तक मानवेंद्रनाथ राय( एम एन राय) की जयन्ती  
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विश्वप्रसिद्ध राजनीतिक सिद्धांतवेत्ता एवं भारत में कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक मानवेंद्रनाथ राय का जन्म आज ही तिथि 21 मार्च 1887 को पश्चिम बंगाल में हुआ था । 14 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया था । स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी संगठन को विदेशों से धन एवं हथियार उपलब्ध करवाया जिसके कारण 1912 में 'हावड़ा षड्यंत्र केस' में उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया। 'कानपुर षड्यंत्र केस' में भी उन्हे छह साल की जेल की सजा हुई । सन् 1922 में उन्होंने बर्लिन में 'द लैंगार्ड ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस' नामक पत्र निकाला। वे मेक्सिको की कम्युनिस्ट पार्टी के भी संस्थापक थे। उन्होंने लगभग अस्सी किताबों की रचना की। 'दी वे टू डयुरेबिल पीस','रीजन ,रोमांटिसिज्म ऐंड रिवॉल्यूशन','इंडियन प्राॅबलम्स एण्ड देयर सोल्यूशन' आदि उनके प्रमुख पुस्तक हैं।आइए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी, विचारक, दार्शनिक एम एन राय उर्फ मानवेंद्रनाथ राय को उनकी जयन्ती पर क्रांतिकारी सलाम पेश करते हैं।

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1884548198481281&set=a.1388791514723621.1073741826.100007783560528&type=3


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Friday 17 March 2017

अपनी संस्कृति और जड़ों से कटे वामपंथ का हश्र ------ ध्रुव गुप्त




हिंदुस्तान। लखनऊ, 17 मार्च 2017 , पृष्ठ---12 


Dhruv Gupt
Yesterday at 6:54am 
यहां बाएं से रास्ता बंद है !
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का एक और ग़ौरतलब पहलू भी है जो लोगों की नज़रों से ओझल ही रह गया। इस चुनाव में देश की कम्युनिस्ट पार्टियों ने एक सौ पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। सभी एक सौ पांच उम्मीदवारों को मिलाकर उनके पक्ष में कुल एक लाख से कुछ ज्यादा वोट पड़े। देश की मौज़ूदा फिरकापरस्त, पूंजीवादी, भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था में भी वामपंथी पार्टियां अगर राजनीतिक विमर्श के बाहर हैं तो प्रगतिकामी लोगों के लिए यह चिंता का सबब है। न लोग उन्हें गंभीरता से ले रहे हैं और न वे ख़ुद अपने को लेकर गंभीर है। हालत यह है कि उनके पास अब कार्यकर्ता कम और बुद्धिजीवी ज्यादा रह गए हैं ! अपने देश की परिस्थितियों के अनुरूप ख़ुद को ढालने में असमर्थ, ज़मीन से कटे उनके किताबी, आत्ममुग्ध और अहंकारी नेतृत्व ने देश में वामपंथ की लुटिया ही डुबो दी है। वे अरसे से देश की दिशाहीन राजनीति को न तो कोई विकल्प दे सके, न परिवर्तनकामी युवाओं-किसानों-मज़दूरों को कोई दिशा। एक क़ायदे का विपक्ष तक नहीं खड़ा हुआ उनसे। कभी उन्होंने वंशवादी, भ्रष्ट कांग्रेस की पूंछ पकड़ी तो कभी अवसरवादी लालू, मुलायम, करूणानिधि जैसों का पिछलग्गू बनकर चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश की। यह राजनीतिक अवसरवाद उनके लिए आत्मघाती साबित हुआ। अब हालात ऐसे बन गए हैं कि त्रिपुरा, केरल और बंगाल के अलावा कहीं कोई नामलेवा भी नहीं बचा है उनका। वह दिन दूर नहीं जब वामपंथ दिल्ली के उस जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय की चहारदीवारी तक सिमट कर रह जाने वाला है जहां वामपंथ का अबतक का सबसे लुच्चा, ग़ैरज़िम्मेदार और अराजक संस्करण तैयार हो रहा है। जहां छद्म राष्ट्रवादियों के प्रतिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर देश के टुकड़े करने के नारे लगाना फैशन है। जहां आतंकी नक्सलियों द्वारा सुरक्षाबलों के नरसंहार पर जश्न मनाए जाते हैं। जहां प्रगतिशीलता के नाम पर हिन्दू देवियों को वेश्या कहकर संबोधित किया जाता है। जहां धुर दक्षिणपंथी प्रतिगामिता की काट में वामपंथी अराजकता को खुला बढ़ावा दिया जा रहा है।

आप मानें या न मानें, अपनी संस्कृति और जड़ों से कटे वामपंथ के ताबूत में आख़िरी कील जे.एन.यू ही ठोकने वाला है।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1314513361958592&set=a.379477305462207.89966.100001998223696&type=3

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एस रंजन राय साहब की टिप्पणी बहुत सटीक है कि, ''जो वोट नहीं देता उसके लिए पूरे संगठन को सड़क पर लाता है। " IAS दुर्गाशक्तिनाग्पाल ( RSS के नेता की पुत्री ) के निलंबन के विरुद्ध यू पी भाकपा ने लखनऊ की  सड़कों पर प्रदर्शन किया था जिसमें प्रदेश सचिव व प्रदेश कोशाध्यक्ष बड़े जोश से शामिल हुये थे। लेकिन नोटबंदी के विरुद्ध साधारण जनता के साथ नहीं खड़े हुये केवल प्रेस नोट जारी कर दिये गए थे।
  Vvsrd India
दोस्तों, अब से कुछ देर बाद ही देश के 5 राज्यो मे बिधान सभा चुनाव का नतीजा आने लगेगा। अगर इन राज्यो मे (खासकर उत्तर प्रदेश मे) भाजपा की जीत हुई तो आज से ही पूरे देश मे होली का नजारा देखने को मिलेगा; और अगर इसका बिपरित हुई तो देश मे राजनीतिक माहौल का नजारा कुछ दूसरा ही होगा। 
मेरा माने तो भाजपा को पूरा देश मे आने ही देना चाहिए क्योकि बहुतों के मन मे आज भाजपा के प्रति जो गलतफहमी है उसे दूर करने के लिए यह जरूरी है। जैसा की कभी बंगाल के लोगो का CPM पार्टी के प्रति रुझान था। 
भाजपा का बिरोधी लोगो का यह अंदेशा पर मुझे कतई शक नहीं की भाजपा इस देश मे एक बहुसंख्यक धार्मिक लोगो का sentiment को उभारकर एक निरंकुश पूंजीवादी ब्यबस्था कायेम करना चाहती है। उस आनेवाला खतरनाख निरंकुश शासन ब्यबस्था का असली चेहरा देखे बिना आम अशिक्षित-गरीब-लाचार-अनपढ़-गवार-अंध-बिस्वासी जनता के आंखे खुल नहीं सकता। 
मेरा यह भी बिस्वास है की इतनी बड़ी देश मे निरंकुश शासन केवल देश मे गृह-युद्ध छेड़कर राज्यो को टूकडा –टुकड़ा करके ही किया जा सकता जैसा की USSR (अभी का रूस) का हुआ। 
जो भी हो चुनाव नतीजा जो आयेगा उससे सहज रूप से स्वीकार करना ही पड़ेगा । उसको देख अचरज मे पड़ने की बात नहीं। वोट-राजनीति का अदृश्य अर्थनैतिक धारा जिस दिशा की और बहा होगा उसी दिशा मे नतीजा भी आयेगा। जाहीर है की नोट-बंदी से लेकर इलैक्शन कमिशन को सजाने की तैयारी मे लिप्त भाजपा का अंदरूनी कौशिश अगर रंग लाएगा तो इसमे अचरज की कोई बात नहीं। और अगर इसे बिपरित बिहार जैसा नतीजा निकलता है तब तो मानना ही पड़ेगा की सामंतवादी सोच-विचार अभी भी हमारे समाज मे हावी है जो गंदी पूंजीवादी सोच-विचार को हमारे समाज-राजनीति व अर्थनीति मे हावी होने से रोकने मे सक्षम है। 
इसे हमारा समाज-ब्यबस्था का ताकत कहेंगे या कमजोरी
https://www.facebook.com/vvsrdindia123/posts/1075822669231267


17 मार्च 2017 
इस 0 .2 फीसदी अर्थात 1,38,769 मत में से  लखनऊ के उत्तर क्षेत्र में CPI को 596 और बी के टी में CPM को 1932 वोट मिले हैं।  जिस प्रकार से छह वामपंथी दलों का प्रथक मोर्चा बना था उसी से वर्तमान चुनाव परिणाम आने की आशंका पुष्ट हो गई थी। 1994 से अब तक जिन मास्को रिटरंड मोदीस्ट कामरेड ने ( जो यू पी में खुद को सर्वेसर्वा घोषित करते हैं और वैधानिक निर्वाचित सचिव को खुद की कृपा पर टिका हुआ बताते हैं, जिनका कथन है कि, obc व sc कामरेड्स से सिर्फ काम लिया जाये और उनको कोई पद न दिया जाये, जो ऐसे कामरेड्स को लखनऊ से  2012 और 2014 में अधिकृत चुनाव लड़वाने के बाद पार्टी छोडने पर मजबूर कर चुके हैं, 2017 में एक उस  मुस्लिम को चुनाव लड़वाया है जिसे बुद्धिहीन कहते रहे हैं ) दो - दो बार पार्टी को तोड़ चुके हैं लेकिन पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर भी शक्तिशाली हैं और बर्द्धन जी के बाद अपना रुतबा बताते रहे हैं वस्तुतः मक्का - मदीना हो आए उस हाजी की तरह हैं जिसका इस्लाम से कोई आंतरिक सरोकार नहीं होता ।  इनके अनुयाई साम्यवाद / वामपंथ के हितार्थ दिये गए किसी भी सुझाव को निर्ममतापूर्वक रद्द कर देते हैं। अतः फासिस्ट / सांप्रदायिक शक्तियों की मजबूती में ऐसे ही लोगों के कर्मों को उत्तरदाई माना जाना चाहिए। 
(विजय राजबली माथुर )


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Saturday 4 March 2017

नोटबंदी की घोषणा करने का हक पी एम को कैसे मिला ? ------ अतुल कुमार अंजान

सवाल यह भी है कि  नोटबंदी की घोषणा करने का हक पी एम को कैसे मिला ? यह हक तो रिज़र्व बैंक के गवर्नर का है। नोटबंदी से किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी सभी की मुसीबत बढ़ गई । निर्यात घटा, रोजगार के अवसर कम हो गए। अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी से उतर  गई। नए नोट छापने के लिए कागज विदेशों से आयात किया जाएगा। 
हिंदुस्तान , लखनऊ, 03 मार्च 2017, पृष्ठ - 14 पर  अतुल अंजान साहब का साक्षात्कार ------

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March 1 at 6:20pm
'नया जमाना ', सहारनपुर के संस्थापक संपादक कन्हैया लाल मिश्र ' प्रभाकर ' ने 1950 - 51 में ही RSS प्रचारक लिंमये साहब से कह दिया था कि, जैसी गतिविधियेँ हैं यदि इनमें सुधार न हुआ तो एक दिन दिल्ली की सड़कों पर RSS और कम्युनिस्टों के मध्य सत्ता के लिए निर्णायक संघर्ष होगा। 
गत वर्ष से चल रहे घटनाक्रमों का तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ में विश्लेषण किया जाये तो बिलकुल स्पष्ट हो जाएगा कि, कुछ भी अनायास नहीं हुआ है। यह सब प्रभाकर जी के द्वारा व्यक्त पूर्वानुमान का पूर्वाभ्यास ही है। कैसे ? :
* रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या और शराब व्यापारी विजय माल्या के देश छोडने की घटनाओं से ध्यान हटाने के लिए जे एन यू के तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष को 'राष्ट्र द्रोह ' का कल्पित आरोप लगा कर गिरफ्तार कर लिया गया जिससे सबका ध्यान इस गिरफ्तारी के पक्ष - विपक्ष में उलझ गया और फासिस्ट सरकार को राहत मिल गई। 
* इस बार नोटबंदी से साधारण जनता,छोटे व्यापारी और सबसे ज़्यादा किसान - मजदूर त्रस्त थे। पाँच राज्यों में चल रहे चुनावों में केंद्र की सरकार के विरुद्ध आक्रोश परिलक्षित हो रहा था। अतः JNU छात्र उमर खालिद की आड़ में ABVP के माध्यम से रामजस कालेज, दिल्ली में उपद्रव करवा कर फिर उससे भी ध्यान हटाने के लिए दस माह पुराने वीडियो के मात्र एक पोस्टर को संदर्भ से काट कर विदेशी गिल्ली - डंडा के खिलाड़ी से उछलवा कर कार्गिल शहीद की पुत्री पर चरित्र हनन का दुष्प्रचार करवाया गया। स्व्भाविक रूप से जिसका प्रतिरोध हुआ ही और नोटबंदी की हानियों की ओर से जनता का ध्यान हटा दिया गया। :
* कम्युनिस्टों / वामपंथ ने अपने को गलत प्रचार के कारण जनता से भले ही काट रखा है परंतु इनके 'युवा ' और 'छात्र ' संगठन अभी भी जागरूक हैं । इसी कारण गत वर्ष भी और इस वर्ष भी CPI के एक राष्ट्रीय सचिव कामरेड डी राजा और CPM के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड सीताराम येचूरी तक को छात्रों के प्रदर्शनों में अपनी भागीदारी करनी ही पड़ी है। 
* आने वाले समय में संभवतः 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व ही आर एस एस ऐसी परिस्थितियेँ उत्पन्न कर देगा कि, इच्छा या अनिच्छा से कम्युनिस्टों को दिल्ली समेत प्रमुख नगरों में सड़कों पर संघर्ष में कूदना ही पड़ेगा। आज की तारीख तक आर एस एस से निबटने के लिए वैसा ही मिलिटेंट संगठन किसी भी कम्युनिस्ट पार्टी के पास नहीं है। उत्तर प्रदेश समेत इन विधानसभा चुनावों में चतुराई से भाग लिया नहीं गया है। किसी भी संघर्ष की स्थिति में कम्युनिस्टों को केवल फासिस्ट संगठन ही नहीं उनको सहयोग कर रहे पुलिस,सेना,अदालत का भी मुक़ाबला करना होगा। हमारे देश में कामरेड लेनिन और कामरेड माओ जैसे चिंतक - विचारक संघर्षशील कामरेड नेता अभी तक प्रगट नहीं हुये हैं। 
* सारा का सारा दारोमदार ' युवा ' व 'छात्र ' कम्युनिस्टों पर रहेगा। इनके ही दम पर फ़ासिस्टी शक्तियों की पराजय की उम्मीद की जा सकती है।
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1350894501639189
(विजय राजबली माथुर )