Wednesday 7 October 2015

Durgavati Devi (Durga Bhabhi) --- Sanjog Waltar







Durgavati Devi (Durga Bhabhi) (7 October 1907 – 15 October 1999) was an Indian revolutionary and a freedom fighter. She was one of the few women revolutionaries who took an active participation in armed revolution against the ruling British. She is best known for having accompanied Bhagat Singh on the train journey in which he made his escape in disguise after the Saunders killing, Since she was wife of another HSRA member Bhagwati Charan Vohra, other members of HSRA referred her as 'Bhabhi' (elder brother's wife) and became popular as "Durga Bhabhi" in Indian revolutionary circles. Durga was a Bengali and her mother tongue was Bengali.
Durgavati Devi was married to Bhagwati Charan Vohra when she was aged eleven.
An active member of the Naujawan Bharat Sabha, Durga came into prominence when the Sabha decided to observe the 11th anniversary of Kartar Singh Sarabha’s martyrdom on 16 November 1926 at Lahore. Her most glorious moment came on 19 December 1928 when Bhagat Singh and Sukhdev Thapar went to her house two days after killing Saunders.
She led the funeral procession of Jatin Das from Lahore to Calcutta after his death in the 63-day jail hunger strike. All along the way, huge crowds joined the funeral procession.
She tried to kill Lord Hailey after Bhagat Singh surrenderd himself for 1929 Assembly bomb throwing incident. Lord Hailey escaped but many of associates died. She was caught by the police and imprisoned for three years. She had also sold her ornaments worth Rs. 3,000 to rescue Bhagat Singh and his comrades under trial.
She, along with her husband, helped Vimal Prasad Jain, an HSRA member in running a bomb factory in the name of 'Himalayan Toilets' (a smokescreen to hide the agenda of making bombs) at Qutub Road, Delhi. In this factory, they handled picric acid, nitroglycerine and fulminate of mercury.
Two days after killing Saunders, on 19 December 1928, Sukhdev called on Durga for help, which she agreed to do. They decided to catch the train departing from Lahore for Bathinda en route to Howrah (Calcutta) early the next morning. She posed herself as the wife of Bhagat Singh and put her son Sachin in his lap while Rajguru carried their luggage as their servant. To avoid recognition, Singh had shaved off his beard and cut his hair short the previous day and dressed in a western attire. In fact, when Bhagat Singh and Sukhdev came to her house on the night of 19 December 1928, Sukhdev introduced Bhagat Singh as a new friend. Durga could not recognise Bhagat Singh at all. Then Sukhdev told Durga the truth and said that if Durga Bhabhi could not recognise Bhagat Singh in his changed clean-shaved appearance despite knowing him well, surely the police would not recognise him as they would be looking for a bearded Sikh.
They left the house early the next morning. At the station, Bhagat Singh, with his concealed identity, bought three tickets to Cawnpore (Kanpur) — two first class tickets for Bhabhi and himself and a third class one for Rajguru. Both men had loaded revolvers with them to deal with any unanticipated incident. They avoided raising the suspicions of the police and boarded the train.Breaking journey at Kanpur, they boarded a train for Lucknow since the CID at Howrah railway station usually scrutinised passengers on the direct train from Lahore. At Lucknow, Rajguru left separately for Benares while Bhagat Singh, Durga Bhabhi and the infant went to Howrah. Durga returned to Lahore a few days later with her infant child.
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Unlike other freedom fighters, after Indian independence Durga started living as a common citizen in quite anonymity and exclusion in Ghaziabad. She later opened a school for poor children in Lucknow. Prime minister Pandit Jawaharlal Nehru visited her school in 1956.
Durga died in Ghaziabad on 15 October 1999 at the age of 92.

Monday 5 October 2015

उत्पीड़न,मंहगाई व सूखा तथा दादरी कांड के खिलाफ लखनऊ में आंदोलन






 भाकपा,लखनऊ के जिलामंत्री द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार आज दिनांक 05 अक्तूबर 2015 को राष्ट्रीय आव्हान पर जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ के नेतृत्व में मोदी सरकार की आम जनता पर कमर तोड़ आर्थिक बोझ लादने वाली कारपोरेट समर्थक जनविरोधी नीतियों के प्रतिरोध स्वरूप 'मंहगाई दिवस' के रूप मनाया गया व राष्ट्रपति को संबोधित एक सात सूत्रीय ज्ञापन जिलाधिकारी, लखनऊ के माध्यम से सौंपा गया। 
ज्ञापन द्वारा बेतहाशा बढ़ती मंहगाई,पार्टी कार्यकर्ताओं का अजय सिंह, का सागर सिंह, का नरेश चन्द्र,का राम निवास जोशी  पर अमरोहा व बिजनौर में किए गए पुलिस ज़ुल्म और तमाम गंभीर धाराओं में निरुद्ध किए जाने को गलत ठहराया गया है व उनके बिना शर्त रिहा किए जाने की मांग की गई है। प्रदेश में समान शिक्षा दिये जाने व अनुसूचित जाति एवं भूमि हड़पने जैसा कानून निरस्त करने तथा गौतम बुद्ध नगर -दादरी (बिसाहड़ा ) में सांप्रदायिक ताकतों द्वारा मिथ्या आरोप पर असामाजिक तत्वों द्वारा  बेगुनाह की हत्या करने वालों पर रासुका लगा कर गिरफ्तार किए जाने की मांग की गई है। ई-रिक्शा चालकों के हो रहे उत्पीड़न को भी बंद किए जाने की मांग उठाई गई है। 
ज्ञापन देने जाने वालों में प्रमुख रूप से सर्व कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़, मधुराम मधुकर, परमानंद दिवेदी, मोहम्मद अकरम, राम देव तिवारी, हरिहर प्रसाद गुप्ता, शरीफ, विजय माथुर,  डॉ संजीव सक्सेना, रूप नारायण आदि शामिल थे। 

गांधी प्रतिमा, जी पी ओ पार्क पर वाम  मोर्चे द्वारा दादरी कांड पर संयुक्त धरना :

छह वामपंथी दलों ने संयुक्त रूप से दादरी कांड पर दोपहर दो बजे से धरना दिया। लगभग सभी वक्ताओं ने पीड़ित परिवार को सुरक्षा व दोषियों को कडा दंड देने की मांग की। महिला नेता  कामरेड ताहिरा हसन ने सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध जनता की लामबंदी की बात रखी जबकि भाकपा, लखनऊ के जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़  ने आने वाले समय की कठोर चुनौतियों से वाकिफ कराया। उनका सुदृढ़ अभिमत था कि अब समय आ गया है कि हमको इन सांप्रदायिक शक्तियों से मुक़ाबला करने के लिए खुद को संगठित करना होगा और उनको मुंहतोड़ जवाब देना होगा। 
इस संयुक्त धरने में भाकपा की ओर से जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ के अतिरिक्त परमानंद दिवेदी, विजय माथुर और डॉ संजीव सक्सेना शामिल हुए । 

Sunday 4 October 2015

पूर्ववर्तियों का स्मरण : सराहनीय व अनुकरणीय प्रयास -----विजय राज बली माथुर



लखनऊ,0 2 अक्तूबर 2015 : आज गांधी/शास्त्री जयंती थी 22-क़ैसर बाग,स्थित भाकपा ज़िला कार्यालय पर पूर्व जिलामंत्री कामरेड बाबू खाँ साहब की 20 वीं वीं पुण्य तिथि मनाने के लिए प्रमुख कामरेड्स एकत्रित हुये थे। गत वर्ष की भांति ही इस वर्ष भी जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब व मोहम्मद अकरम खान के सौजन्य से इस स्मृति सभा का आयोजन किया गया था। उपस्थित वक्ताओं ने कामरेड बाबू खान साहब के चरित्र व विचारों पर अमल करने का संकल्प दोहराया। आपा-धापी और उठा-पटक के इस नाज़ुक दौर मे कामरेड ख़ालिक़ साहब द्वारा अपने पूर्ववर्तियों का स्मरण करना एक सराहनीय व अनुकरणीय प्रयास है।
कामरेड अतुल अंजान - पार्टी की 'रीढ़' :कामरेड शिव प्रकाश तिवारी 
04/10/2014 --13 :11 
लखनऊ,04  अक्तूबर 2014 : परसों  गांधी/शास्त्री जयंती थी परंतु हम लोग 22-क़ैसर बाग,स्थित भाकपा कार्यालय पर पूर्व जिलामंत्री कामरेड बाबू खाँ साहब की 19 वीं पुण्य तिथि मनाने के लिए एकत्रित हुये थे।  विचार गोष्ठी की अध्यक्षता का भार वयोवृद्ध कामरेड शिव प्रकाश तिवारी जी के कंधों पर था। संचालन जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने किया। उन्होने बाबू खाँ साहब के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालने हेतु सर्व प्रथम वयोवृद्ध कामरेड मुख्तार अहम्मद साहब को आमंत्रित किया।
मुख्तार साहब ने बाबू खाँ साहब के साथ काम करने के अनुभवों के आधार पर उनका सरल शब्दों में गूढ परिचय दिया। एक सादगी पसंद और नेक इंसान के रूप में उनको सदैव याद किया जाएगा ऐसी उम्मीद उन्होने ज़ाहिर की।

ओ पी अवस्थी साहब ने बताया कि उनकी जन्मतिथि उपलब्ध न होने के कारण उनकी पुण्य तिथि मनाई जा रही है। उन्होने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति के कार्यों का मूल्यांकन उसके जाने के बाद ही हो पाता है। 
मधुकर मौर्या ने नितांत निजी सम्बन्धों के आधार पर बाबू खाँ साहब का बेहद गुण गान किया। उन्होने कहा कि बाबू खाँ जैसा न कोई और कामरेड हुआ है और न आगे होगा। 


कामरेड राजपाल यादव ने इस दोहे के साथ बात की शुरुआत की कि ---
"दुख में सुमिरन सब करें,सुख में करे  न कोय। 
जो सुख में सुमिरन करे ,तो दुख काहे   होय । । "
उन्होने साफ-साफ कहा कि हमें निराश नहीं होना चाहिए और जीवन काल में ही कामरेड्स के गुणों को पहचान कर उनको सम्मान देना चाहिए। उन्होने कहा कि आदरणीय बाबू खाँ साहब जैसे और भी बहुत से कामरेड्स हमारे बीच में आज भी मौजूद हैं। इस कड़ी में उन्होने वर्तमान जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब की तुलना पूर्व जिलामंत्री बाबू खाँ साहब से की। 

कामरेड विजय माथुर ने कहा कि हमें महापुरुषों का स्मरण उनके आचरण को अपने व्यवहार में उतारने का संकल्प लेकर करना चाहिए न कि उनकी यादगार सभा में केवल चाय -नाश्ता करके और कोरा गुण गान  करके खाना-पूर्ती करनी चाहिए। 
उन्होने  प्रारम्भ में  कामरेड नजीरुल हक साहब का लिखा वह नोट पढ़ कर सुनाया जिसमें हक साहब ने 27-28 सितंबर 2014 को इस्लामाबाद में 5 वामपंथी गुटों के द्वारा मिल कर एक 'पाकिस्तान वर्कर्स अवामी पार्टी' बनाने की सूचना दी थी और भारतीय वामपंथियों का आह्वान किया था कि 'दुनिया के मजदूरों एक हो का स्लोगन देने वाले खुद तो एक हो'। http://vijai-vidrohi.blogspot.in/2014/09/duniya-ke-mazddoro-ek-ho-ka-slogan-dene.html
इसके बाद उन्होने किसान सभा व महिला सभा की कर्मठ नेत्री कामरेड अर्चना उपाध्याय जी द्वारा जारी नोट जिसमें उत्तर-प्रदेश भाकपा से सकारात्मक कदम उठाने की मांग की गई थी का ज़िक्र किया। एक कामरेड  ने सुझाव देते हुये कहा कि कामरेड माथुर को नजीरुल हक साहब का नोट 'मुक्ति संघर्ष' व 'पार्टी जीवन ' को प्रकाशनार्थ भेज देना चाहिए। उनका जवाब देते हुये कामरेड माथुर ने कहा कि 'मुक्ति संघर्ष' को भेज देंगे (प्रधान संपादक शमीम फैजी साहब को फेसबुक मेसेज के जरिये अब भेज दिया है ) लेकिन 'पार्टी जीवन ' नहीं छापेगा क्योंकि उसके कार्यकारी संपादक प्रदीप तेवारी उनके प्रति वितृष्णा भाव रखते हैं। उन्होने पार्टी की सिकुड़ती हुई स्थिति व गिरती हुई साख के लिए प्रदीप तेवारी को जिम्मेदार ठहराया। 
बीच में अनाधिकृत हस्तक्षेप करते हुये मधुकर मौर्या ने माथुर को बैठ जाने को कहा। उनको टोकते हुये राजपाल जी ने पूछा कि जब  सभा अध्यक्ष जी व जिलामंत्री जी कुछ नहीं कह रहे हैं तो मधुकर मौर्या किस हैसियत से हस्तक्षेप कर रहे हैं। इस पर अध्यक्ष जी व जिलामंत्री जी ने कामरेड माथुर को अपनी बात जारी रखने को कहा। किन्तु कामरेड माथुर ने यह कहते हुये कि --- 'सोते हुओं को तो जगाया जा सकता है लेकिन जो जागते हुये सोने का उपक्रम करें उनके लिए वह अब एक शब्द भी नहीं कहेंगे। जब इंसान उनको सुनने के लिए तैयार नहीं हैं तो दीवारों को सुनाने का कुछ फायदा नहीं है' ---आगे बोलने से इंकार कर दिया। *

कामरेड ख़ालिक़ साहब ने अपने मार्मिक उद्बोद्धन में बाबू खाँ साहब को निर्भीक,साहसी और ईमानदार नेता बताया। उन्होने ज़िक्र किया कि बाबू खाँ साहब कहते थे कि 'प' अक्षर से सावधान रहना चाहिए जैसे-पड़ौसी,पार्टी,पैसा,प्रचार,'प' अक्षर वाले आदमी आदि। ख़ालिक़ साहब ने बताया कि वह सबकी निस्स्वार्थ भाव से मदद करते थे और उनको किसी प्रकार का लालच नहीं था। बेहद सादगी से रहते हुये वह दबंग विचारों के धनी थे। सरकारी अधिकारी उनकी इज्ज़त करते हुये काम कर देते थे। उन्होने कहा कि सच में हमें आज बाबू खाँ साहब के आदर्शों पर चलने की बहुत ज़रूरत है।

अंत में धन्यवाद देने से पूर्व सभा-अध्यक्ष आदरणीय कामरेड शिव प्रकाश तिवारी जी ने कामरेड बाबू खाँ साहब के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर व्यापक प्रकाश डाला। उन्होने इस कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए कामरेड ख़ालिक़ को विशेष धन्यवाद भी दिया। उन्होने कहा कि बाबू खाँ साहब में न तो लालच था और न ही घमंड जिस वजह से वह हमेशा कामयाब रहे। लेकिन अब के कामरेड्स उनके आचरण को अपने जीवन में उतारना ही नहीं चाहते। उन्होने युवा साथी राजपाल यादव की इस बात के लिए भूरी-भूरी प्रशंसा की कि उन्होने लखनऊ पूर्व से चुनाव लड़ कर पार्टी का झण्डा और पहचान घर-घर फिर से पहुंचा दी। उन्होने राजपाल यादव को पार्टी के लिए आशा की एक किरण बताया। उन्होने अशोक मिश्रा जी की प्रशंसा करते हुये कहा कि जब वह जिलामंत्री थे तो उन्होने उनकी काफी सहायता की थी। शिव प्रकाश जी ने पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और किसानसभा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड अतुल अंजान को पार्टी की 'रीढ़' बताया। उन्होने कामरेड हरीश तिवारी के दामाद के भाजपा नेता होने का ज़िक्र करते हुये कहा कि कामरेड्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी सन्तानें भी पार्टी की विचार-धारा को ही आगे बढ़ाएँ इसके लिए पार्टी में सभी कामरेड्स को समान महत्व दिये जाने की उन्होने आवश्यकता बताई। पार्टी के सिकुड़ते जाने के लिए उन्होने कुछ नेताओं के अहंकार और स्टेटस को उत्तरदाई माना। इस दुर्वस्था से निकाल कर पार्टी को जनता के बीच ले जाने की ज़रूरत पर उन्होने ज़ोर दिया। 
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* ज्ञातव्य है कि मधुकर मौर्या डॉ गिरीश शर्मा/प्रदीप तेवारी गुट की ओर से जिलामंत्री पद के संभावित प्रत्याशी हैं और इसी अहंकार में अलोकतांत्रिक प्रक्रिया अपना कर प्रदीप तेवारी के प्रति अपनी निजी वफादारी का प्रदर्शन कर रहे थे। उनकी पुत्री AISF की प्रदेश कोषाध्यक्ष है  और प्रदीप तेवारी AISF के प्रदेश इंचार्ज जिस कारण भी उनको प्रदीप की तरफदारी करना  भी बेहद ज़रूरी था।