Tuesday 22 September 2015

वाम बाजरवादियों की बौखलाहट --- विजय राजबली माथुर


अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर गोष्ठियाँ करने वाले खुद अभिव्यक्ति को कैसे प्रतिबंधित करते हैं उसका प्रमाण ---(सनातन संस्थान और इन बाजारवादी कामरेड्स में क्या अंतर है?) :
http://communistvijai.blogspot.in/2015/09/blog-post_20.html

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/946500785411898

बाजरवादियों के इस प्रतिनिधि के  उपरोक्त व निम्न कथन एब्यूसिव नहीं हैं। क्यों?



वाम बाजरवादियों की बौखलाहट का एहसास उपरोक्त फोटो स्कैन से हो जाता है। 'स्पष्ट सामयिक निर्णय' लिए जाते  तो केले के तने की तरह परत-दर-परत कैसे खुलती जाती? वस्तुतः उत्तर प्रदेश में पार्टी को कई-कई बार तोड़ने वाला अपनी तिकड़मों के जरिये इतना ऊपर उठ गया है कि बड़े से बड़े दिग्गज को अपनी उंगली पर नचाता है। उच्चस्थ पदाधिकारियों को वही कहने को मजबूर करता है जो उसके व उसके परिवार के हित में होता है। उत्तर प्रदेश से उस परिवार के तीन लोग (कुल सात में) नेशनल काउंसिल में विराजमान हैं। लखनऊ के ज़िला सम्मेलन में उसने पार्टी को संकुचित करने का खुला ऐलान किया था । अतः अर्चना उपाध्याय जी का कथन व सुमित का  उसको समर्थन वास्तविकता को ही प्रकट करते हैं। :



यदि केंद्रीय नेतृत्व ने अश्लीलता समर्थक बाजारवादियों पर लगाम नहीं लगाई तो वे पार्टी को फासिस्टों का पिछलग्गू ही बना डालेंगे। 

Sunday 20 September 2015

सच्चाई सामने आना ज़रूरी : बाजरवादियो द्वारा अनजान साहब पर प्रहार क्यों? --- विजय राजबली माथुर






State Council UP CPI को बाजारवादियों से आज़ाद करो। आज़ाद करो।--- Fakhrey Alam:


उत्तर प्रदेश में बाजारवादी/ब्राह्मण वादी लोग भाकपा पर हावी हैं जो बार-बार अनजान साहब को निशाना बनवाते हैं।टी वी चेनल्स में एक के पुत्र के माध्यम से इंनका प्रभाव है  जिसका इस्तेमाल अनजान साहब के विरुद्ध दुष्प्रचार में किया जाता है। इनके नायक का कहना है कि अनजान साहब को केंद्र में उन्होने भेजा है और प्रदेश सचिव की पीठ पर भी उनका हाथ है। पिछली अफवाह के बाद उन नायक साहब ने अनजान साहब से लगभग आधा घंटे फोन वार्ता द्वारा आश्वासन दिया था कि इस बार वह प्रदेश सचिव बदल देंगे। किन्तु आश्वासन पूरा किया नहीं और जिनको विकल्प के रूप में पेश करने की बात कही थी उनको इस बार के दुष्प्रचार का मुखौटा बना दिया गया। इतने से भी बात नहीं बनी तो माले के संपर्को को आगे किया गया है। 


उन बाजारवादी/ब्राह्मण वादी लोगों की निगाह '22-क़ैसर बाग' की बिल्डिंग पर लगी हुई है और वे इसके वारे-न्यारे करके मालामाल होना चाहते हैं। उनको लगता है कि 'अनजान' साहब उनके इस काले कारनामे में सबसे बड़ी बाधा हैं। अतः अनजान साहब को पार्टी से अलग कराने हेतु जब-तब अभियान चलवाते रहते हैं। ये तत्व पिछले 21 वर्षों में दो बार प्रदेश में पार्टी को विभाजित करा चुके हैं। इनके नायक की हिदायत है कि SC/OBC वर्ग के कार्यकर्ताओं से काम तो लो लेकिन उनको दायित्व न दो अर्थात पदाधिकारी न बनाओ। इसी वर्ष इन दो वर्गों से संबन्धित 
विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी रहे दो लोगों को अपने समर्थकों सहित पार्टी छोडने पर मजबूर होना पड़ा है। इन तथ्यों को जाने बगैर अनजान साहब पर प्रहार करने वाले लोग वस्तुतः बाजारवादी/ब्राह्मण वादी लोगों के मंसूबे पूरे कर रहे हैं बल्कि प्रकारान्तर से सत्तरूढ़ फासिस्ट सरकार को मजबूत बनाने में मदद कर रहे हैं।

'22-क़ैसर बाग' :

'22-क़ैसर बाग' स्थित पार्टी कार्यालय  भवन  राजा ब्रजेश सिंह जी जो स्वेतालना स्टालिन के पति थे द्वारा भाकपा को दान में प्रदान किया गया था। आज इस भवन की कीमत बाज़ार मूल्य से करोड़ों में होगी। इस भवन की ऊपरी मंज़िल में ऐसे किराएदारों को बसा दिया गया है जो पार्टी को अधिकृत रूप से किराया नहीं देते हैं। बाजार वादी पार्टी नियंत्रकों ने इस भवन को औने-पौने बेच कर निजी जेबों में धन भरने का मंनसूबा पाल लिया है। इस हेतु एक बार केयर टेकर कामरेड को भवन से हटाने का प्रस्ताव पास कर लिया गया था जिसे वयोवृद्ध कामरेड शिव प्रकाश तिवारी जी के 'सत्याग्रह' के कारण वापिस लेना पड़ा था। वे जानते हैं कि राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अनजान साहब के रहते वे इस 'भवन' को तीन-तेरह नहीं कर सकते हैं। इसी लिए कामरेड बर्द्धन जी  व अनजान साहब के विरुद्ध सुनियोजित अभियान चलाये जाते रहते हैं। जब तब उनके द्वारा पार्टी छोडने की झूठी अफवाहें उड़ाई जाती हैं। अपने अभियान में विफल रहने पर इस कड़ी में इनको अपने एक मोहरे को पार्टी से निष्कासित भी करना पड़ गया था। अब जिन वरिष्ठ कामरेड को 'मोहरा' बनाया गया है पहले उनको राज्यसचिव बना देने का फोन पर अनजान साहब को आश्वासन दिया गया था जिसे पूरा नहीं किया गया । अब उनको ही 'मोहरा' बना कर अंनजान साहब पर इसलिए प्रहार करवाया जा रहा है कि जिससे उनके विरुद्ध कारवाई करके उनको भी पहले मोहरे की भांति ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाये।  

पहले वाले निष्कासित मोहरे के कथन से स्पष्ट है कि सिर्फ अनजान साहब ही नहीं वरन बर्द्धन जी भी बाजरवादियों के निशाने पर हैं। इन बाजरवादियों को फासिस्टों से लड़ने की ज़रूरत नहीं है बल्कि उनको मदद करने के लिए अपनी पार्टी को ही तोड़ना चाहते हैं जिससे अफरा-तफरी के माहौल में वे आसानी से भवन को बेच कर मुनाफा कमा सकें। देश भर के पार्टी कामरेड्स को बर्द्धन जी व अनजान साहब पर बाजारवादियों के प्रहार की निंदा करनी चाहिए व पार्टी की जायदाद की रक्षा के लिए अनजान साहब व बर्द्धन जी का पुरजोर समर्थन करना चाहिए। 

इसी लिए साम्यवाद को समर्पित कार्यकर्ता का कहना है ---


State Council UP CPI को बाजारवादियों से आज़ाद करो। आज़ाद करो।--- Fakhrey Alam
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Sunday 13 September 2015

जितेंद्र रघुवंशीजी का स्मरण जन्मदिवस 13 सिंतबर पर





IPTA के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव कामरेड जितेंद्र रघुवंशी जी का लिखा  यह नोट शायद फेसबुक पर उनका 
अंतिम नोट है उसे ज्यों का त्यों  ही उनके जन्मदिन पर उनकी स्मृति में यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ---
1-02-2015  ·
आगरा में भाकपा का जिला सम्मलेन:18 फ़रवरी ---
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का २२वां जिला सम्मलेन सदर तहसील के सिरौली ग्राम में संपन्न हुआ.इसे संबोधित करते हुए पार्टी के राज्य सचिव डा.गिरीश ने कहा कि वर्तमान सरकारों से मोहभंग की शुरुआत हो चुकी है और आने वाले दिन जनता से जुड़े सवालों पर व्यापक संघर्ष के होंगे.आज खेती की ज़मीन छिनती जा रही है,रिश्वतखोरी खुले आम जारी है,महंगाई पर कोई अंकुश नहीं और विदेशियों द्वारा देश की लूट की खुली छूट दी जा रही है.भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन का अध्यादेश और श्रम-कानूनों में कटौती किसानों-मजदूरों पर हमला है.उन्होंने दुःख प्रकट किया कि प्रदेश में किसानों का बकाया नहीं मिला और कहीं भी कोई सुनवाई नहीं है. ऊपर से सांप्रदायिक विद्वेष फैलाया जा रहा है.डा.गिरीश ने धर्म-जाति से ऊपर उठ कर जनता से एकजुट होने का आह्वान किया.
सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए आर.बी.एस.कालेज के पूर्व प्राचार्य डा.जवाहर सिंह ढाकरे ने कहा कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सवालों पर जागरूकता के साथ स्थानीय समस्याओं पर आन्दोलन चलाने की ज़रुरत है.इस दौर में नए ढंग से काम करना होगा,तभी हम जनहितों के लिए असरदार ढंग से लड़ सकेंगे.पार्टी की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य और पर्यवेक्षक का. गफ्फार अब्बास ने अपने संबोधन में जन-चेतना और जागरूकता के लिए निरंतर सक्रियता पर जोर दिया.संस्कृतिकर्मी डा.जितेन्द्र रघुवंशी ने अंधविश्वास और बाबागीरी से बचने और तर्कसम्मत नजरिया बनाने की बात कही.
सम्मलेन की अध्यक्षता तेजसिंह वर्मा,जगदीश प्रसाद और ओमप्रकाश नौहवार ने संयुक्त रूप से व सञ्चालन वरिष्ठ नेता रमेश मिश्रा ने किया.ताराचंद और हरविलास दीक्षित ने गत तीन वर्षों की राजनीतिक और सांगठनिक रिपोर्ट पेश की.इन्हें स्वीकार करते हुए प्रतिनिधियों ने अपनी सीमाओं को पहचानने,कमियां दूर करने और शिद्दत से काम करने का संकल्प व्यक्त किया.पार्टी का 22 वां राज्य सम्मलेन 28 फ़रवरी से 2 मार्च तक इलाहाबाद में होगा.इसके लिए आगरा से तेजसिंह वर्मा और ओमप्रकाश प्रधान प्रतिनिधि चुने गये.22 वीं राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस 25 से 29 मार्च को पुडुचेरी में आहूत की गयी है.
जिला सम्मेलन में ताराचंद सचिव और एस.के.खोसला कोषाद्यक्ष चुने गये.इनके अलावा जिला काउन्सिल सदस्यों के रूप में रमेश मिश्रा,हरविलास दीक्षित,रमेश गुप्ता,भानुप्रताप सिंह,पी.एस.विप्लवी,ओमप्रकाश प्रधान,तेजसिंह वर्मा,निरोतीलाल कुशवाहा,भीकम सिंह,जगदीश शर्मा,आर.एस.पाल,मोतीराम कुशवाहा,पूरनसिंह यादव,सुधीर कुमार,तारासिंह,जितेन्द्र रघुवंशी,श्रीमती सरला जैन चुनी गयीं.रामस्वरूप दीक्षित,सुमन चौहान,नेमीचंद,जगदीश प्रसाद,भगवत सिंह आमंत्रित सदस्य होंगे.
सम्मलेन की स्थानीय व्यवस्थाएं रामकिशन,तारासिंह,चंद्रपाल,श्रीकिशन,चन्द्रराम ने संभालीं.


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आगरा में रहने के दौरान जब मैं भाकपा में शामिल हुआ तब से लखनऊ आने तक (1986 से 2009) तक आदरणीय कामरेड जितेंद्र रघुवंशी जी का सानिध्य प्राप्त रहा। इनके माता जी- पिताजी को भी सुनने व उनसे शिक्षा ग्रहण करने के कई अवसर मिले हैं। जितेंद्र जी को सदैव प्रसन्न मुद्रा में मुस्कराते हुये ही पाया है। उनको कोई कार्य कभी कठिन नहीं महसूस होता था। मेरे ज़िला काउंसिल में आने से पूर्व वही मिनट्स लिखते थे परंतु बाद में वह कार्य मुझको दिलवा दिया;जब-जब मैं काउंसिल में हुआ मिनट्स लिखने का कार्य मुझे मिला। पार्टी के बाहर भी जितेंद्र जी को श्रद्धा -सम्मान प्राप्त था। 2008 में एक बार जब मैं अकेले ही (ज़्यादातर जिलामंत्री रमेश मिश्रा जी के साथ गया था ) उनके घर गया तब इत्तिफ़ाक से वह भी अकेले ही एक पुस्तक का अध्ययन कर रहे थे। मेरे लेखन के संबंध में उनका कहना था कि मैं उनको कुछ लेख दूँ तो वह 'प्रगतिशील वसुधा' में प्रकाशित करा देंगे। परंतु मैं वहाँ से लखनऊ शिफ्ट करने की तैयारी में था इसलिए उनको कोई लेख दे न सका। ज्योतिष के संबंध में भी वह व्यक्तिगत रूप से मेरे दृष्टिकोण से सहमत थे किन्तु पार्टीगत दृष्टिकोण से कुछ कहने में उन्होने असमर्थता व्यक्त की थी। विस्तृत चर्चा के लिए उन्होने यूनिवर्सिटी में क्लास टाईम के बाद कक्षा में अकेले बैठ कर बात करने के लिए बुलाया था और जाने पर मुझसे खुल कर बातें की थीं। बाद में स्टाफ रूम में अपने साथी शिक्षकों (जर्मन व फ्रेंच भाषा के ) से परिचय भी कराया था। उन तीनों ने यह माना था कि पंडित चन्दन लाल पाराशर जो ज्योतिष शिक्षा दे रहे थे वह पोंगापंथ को बढ़ाने वाली थी । जबकि मैं उसके विरुद्ध था और जितेंद्र जी सहित उनके दोनों अन्य शिक्षक साथियों को मेरे तर्क उचित लगे थे जबकि जन-साधारण पोंगापंथ में ही उलझ कर अपना बिगाड़ कर लेता है। वह यह तो चाहते थे कि मैं अपने तर्कों का प्रचार करूँ परंतु कैसे इस संबंध में वह कुछ  सलाह नहीं दे सके। आगरा से लखनऊ आने के बाद से उनसे व्यक्तिगत भेंट न हो सकी किन्तु फोन व फेसबुक के माध्यम से उनसे सतत संपर्क बना रहा था। कुछ फोटो चित्र प्रस्तुत हैं :
(विजय राजबली माथुर )


Friday 11 September 2015

'रक्त रंजित' संघर्ष की संभावनाएं : देश के लिए सुखद नहीं --- विजय राजबली माथुर




इस समाचार के अंतिम अनुच्छेद में प्रोफेसर साहब के लिए लिखा गया है-"शुरू से जनता परिवार की एका व पार्टी विलय के खिलाफ थे। "
बिहार में राजद/ज द यू /कांग्रेस गठबंधन के विरुद्ध भाजपा गठबंधन व वामपंथी गठबंधन चुनाव लड़ेंगे। इसका प्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिलता दीखता है इसीलिए सपा को RJC गठबंधन से अलग रखा गया है। जिससे चुनाव बाद जीतने वाले गठबंधन का हाथ थामने में सुविधा रहे। 
रही बात उत्तर प्रदेश के 2017 के चुनावों की तो वे भी 2012 के विधानसभा व 2014 के लोकसभा चुनावों की तर्ज़ पर 'गुप्त समझौते' के तहत ही लड़े जाएँगे और आर एस एस के गुप्त समर्थन से सत्तारूढ़ उसी प्रकार पुनर्वापिसी करेगा जिस प्रकार 1980 में इंदिरा कांग्रेस ने की थी।
पूर्व पी एम नरसिंघा राव जी ने निजी अनुभवों के आधार पर ही 'THE INSIDER' में लिखा है कि हम "स्वतन्त्रता के भ्रमजाल में जी रहे हैं "।
लोकतन्त्र में मतदाता के हाथ में 'मत' है लेकिन उसका प्रयोग सुनिश्चित 'जाति','धर्म','संप्रदाय' के आधार पर ही होना है। वर्तमान केंद्र सरकार व उसकी प्रेरक शक्ति को इसी में सुविधा है कि दिखाने के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें रहें लेकिन 'वक्त' पर वे केंद्र की फासिस्ट शक्तियों को 'मजबूत' करती जाएँ।
साम्यवाद और वामपंथ के अनुगामी 'नियंत्रक' इस सच्चाई पर 'गौर' किए बगैर जन समर्थन की आस लगाते हैं जो 'मृग-मरीचिका' सिद्ध होती रही है। जब तक जन-पक्षधर शक्तियाँ 'मनसा-वाचा-कर्मणा' संगठित होकर वंचित तबकों को 'दिल' से अपने साथ नहीं जोड़तीं तब तक ऐसा ही होता रहेगा। साम्य और समानता कागजी रहे और आंतरिक रूप से 'जाति','धर्म','संप्रदाय' की नीति पर ही चला जाये तो कैसे जनता का साथ मिले?
जनता को साम्यवाद/वामपंथ द्वारा अपने साथ न जोड़ पाने की दशा में निकट भविष्य में 'रक्त रंजित' संघर्ष की संभावनाएं बनती हैं जो देश के लिए सुखद नहीं होंगी।



Tuesday 8 September 2015

: वाम असफल क्यो ? कौन दोषी है ? कहाँ चूक हुई ?,कमजोरियाँ किधर है ? ---विजय राजबली माथुर

07-09-2015 

ढ़ोंगी पोंगापंथी और एथीस्ट एक समान :

वेदों में निहित हैं साम्यवाद के सिद्धान्त :
 जिस प्रकार किसी भी संगठन या संस्था  के निर्माण के पूर्व उसके संचालन के लिए 'नियम' बनाए जाते हैं उसी प्रकार इस धरती के निर्माण के बाद जब 'मननशील प्राणी' = 'मनुष्य' की उत्पत्ति अब से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व  हुई तो इस नई सृष्टि के संचालन हेतु भी कुछ नियमों का निर्धारण किया गया । इन नियमों का संकलन 'वेदों' में है जो  श्रेष्ठ=आर्ष= आर्य  विद्वानों द्वारा संग्रहित किए गए थे। कालांतर में ढ़ोंगी-पाखंडी-आडंबरधारी ब्राह्मणवादी पोंगापंथियों द्वारा जिस हिंसक 'हिन्दू' संप्रदाय/मजहब/रिलीजन को खड़ा किया गया उसने वैदिक ज्ञान-विज्ञान को ध्वस्त करके पौराणिक कपोलकल्पित कहानियों की रचना की जो 'गर्व से हिन्दू' कहलाने वालों का आदर्श बनी हुई हैं। ये पौराणिक हिन्दू वैदिक ज्ञान को परिदृश्य में धकेलने हेतु उनको वेद-सम्मत बताते हैं और एथीस्ट उनके कथन को ब्रह्म-वाक्य मान कर चलते हैं। उपरोक्त फोटो टिप्पणियाँ ऐसे ही दो एथीस्टों द्वारा व्यक्त हैं जो उत्तर-प्रदेश भाकपा के कर्णधार भी हैं । ऐसी ही कारगुजारियों के कारण देश की जनता कम्यूनिज़्म को हिकारत की नज़र से देखती है।

 ये कर्णधार सवर्णवाद/ब्रहमनवाद से भी बुरी तरह से ग्रस्त हैं जिसका ज्वलंत उदाहरण यह टिप्पणी है ;



अभी हाल ही में भाकपा से लखनऊ की दो विधानसभा क्षेत्रों से पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी रहे( एक पिछड़े वर्ग से व दूसरे दलित वर्ग से संबन्धित ) पार्टी छोड़ कर एक ऐसी पार्टी में शामिल हुये हैं जो फासिस्ट संगठन की ही सहायक है। उन दोनों को धनिक होने के कारण पार्टी में शामिल करके प्रत्याशी बनाया गया था लेकिन उनके प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। उनको हारने पर संकेत दे दिया गया था कि अगले चुनावों में उनको प्रत्याशी नहीं बनाया जाएगा अतः गैर-कम्युनिस्ट प्रवृति के वे लोग उखड़ गए। कर्णधारों का यह व्यवहार उपरोक्त टिप्पणियों पर अवलंबित रहा है। 

ढोंगियों को जवाब देने या उनसे जवाब मांगने की क्या ज़रूरत ?:

एथीस्ट वादी भी ढोंगियों-पाखंडियों-आडंबरकारियों की ही तरह 'अधर्म' को धर्म कहते हैं व सत्य को स्वीकारना नहीं चाहते हैं क्योंकि वे भी उल्टे उस्तरे से जनता को मूढ़ रहे हैं। इसी कारण खुद को उग्र क्रांतिकारी कहने वाले एथीस्टों ने चुनाव बहिष्कार करके अथवा 'संसदीय साम्यवाद' के समर्थक दलों का विरोध करके केंद्र में सांप्रदायिकता के रुझान वाली सरकार गठित करवा दी है जिसका खामियाजा पूरे देश की जनता को भुगतना होगा। 

धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।



अध्यात्म =अध्यन+ आत्मा = अपनी आत्मा का अध्यन। 
देवता= जो देता है और लेता नहीं है ,जैसे-नदी,वृक्ष,पर्वत,आकाश,अन्तरिक्ष,अग्नि,जल,वायु आदि न कि जड़ मूर्तियाँ/चित्र आदि। 

भगवान = भ (भूमि-पृथ्वी)+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I (अनल-अग्नि )+न (नीर-जल )। 

खुदा = चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इनको किसी भी प्राणी ने नहीं बनाया है इसलिए ये ही 'खुदा' हैं। 

GOD = G (जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय )। उत्पत्ति,पालन व संहार करने के कारण ही इनको GOD भी कहते हैं। 
देखिये कैसे?:
वायु +अन्तरिक्ष =  वात 

अग्नि  =पित्त

 भूमि + जल = कफ 

इन तीनों का समन्वय ही शरीर को धारण करता है 

वात +पित्त + कफ =भगवान=खुदा=GOD 

शरीर को धारण करने व समाज को धारण करने हेतु
धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य परमावश्यक है। 

क्या महर्षि कार्ल मार्क्स अथवा शहीद भगत सिंह जी ने कहीं कहा है कि साम्यवाद के अनुयाइयों को झूठ बोलना चाहिये,हिंसा ही करनी चाहिए,चोरी करना चाहिए,अपनी ज़रूरत से ज़्यादा चीज़ें जमा करना चाहिए और अनियंत्रित सेक्स करना चाहिए। यदि इन विद्वानों ने  ऐसा नहीं कहा है तो इनका नाम बदनाम करने के लिए 'एथीस्ट वादी' ही जिम्मेदार हैं। और इसी कारण रूस से भी साम्यवाद उखड़ा है। 

"येभ्यो माता ................................................................आदित्यां अनुमदा स्वस्तये " (ऋग्वेद मंडल १० /सूक्त ६३ में वर्णित इस मन्त्र के भवानी दयाल सन्यासी जी द्वारा किये काव्यानुवाद  पंक्ति:

ऋतू अनुकूल मेंह बरसे दुखप्रद दुष्काल न आवे.
सुजला सुफला मातृ भूमि हो,मधुमय क्षीर पिलावे..

अब भगवान् का अर्थ मनुष्य की रचना -मूर्ती,चित्र आदि से पोंगा-पंथियों के स्वार्थ में कर दिया गया है और प्राकृतिक उपादानों को उपेक्षित छोड़ दिया गया है जिसका परिणाम है-सुनामी,अति-वृष्टि,अनावृष्टि,अकाल-सूखा,बाढ़ ,भू-स्खलन,परस्पर संघर्ष की भावना आदि-आदि.

एक विद्वान की इस प्रार्थना पर थोडा गौर करें -

ईश हमें देते हैं सब कुछ ,हम भी तो कुछ देना सीखें.
जो कुछ हमें मिला है प्रभु से,वितरण उसका करना सीखें..१ ..

हवा प्रकाश हमें मिलता है,मेघों से मिलता है पानी.
यदि बदले में कुछ नहीं देते,इसे कहेंगे बेईमानी..
इसी लिए दुःख भोग रहे हैं,दुःख को दूर भगाना सीखें.
ईश हमें देते हैं सब कुछ,हम भी तो कुछ देना सीखें..२ ..

तपती धरती पर पथिकों को,पेड़ सदा देता है छाया.
अपना फल भी स्वंय न खाकर,जीवन उसने सफल बनाया..
सेवा पहले प्रभु को देकर,बाकी स्वंय बरतना सीखें.
ईश हमें देते हैं सब कुछ,हम भी तो कुछ देना सीखें..३..

मानव जीवन दुर्लभ है हम,इसको मल से रहित बनायें.
खिले फूल खुशबू देते हैं,वैसे ही हम भी बन जाएँ..
जप-तप और सेवा से जीवन,प्रभु को अर्पित करना सीखें.
ईश हमें देते हैं सब कुछ,हम भी तो कुछ देना सीखें..४..

असत नहीं यह प्रभुमय दुनिया,और नहीं है यह दुखदाई.
दिल-दिमाग को सही दिशा दें,तो बन सकती है सुखदाई ..
'जन'को प्रभु देते हैं सब कुछ,लेकिन 'जन'तो बनना सीखें.
ईश हमें देते हैं सब कुछ,हम भी तो कुछ देना सीखें..५..

शीशे की तरह चमकता हुआ साफ़ है कि वैदिक संस्कृति हमें जन  पर आधारित अर्थात  समष्टिवादी बना रही है जबकि आज हमारे यहाँ व्यष्टिवाद हावी है जो पश्चिम के साम्राज्यवाद की  देन है. दलालों के माध्यम से मूर्ती पूजा करना कहीं से भी समष्टिवाद को सार्थक नहीं करता है.जबकि वैदिक हवन सामूहिक जन-कल्याण की भावना पर आधारित है.

ऋग्वेद के मंडल ५/सूक्त ५१ /मन्त्र १३ को देखें-

विश्वे देवा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निः स्वस्तये.
देवा अवन्त्वृभवः स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्व्हंससः ..

(जनता की कल्याण -कामना से यह यग्य रचाया.
विश्वदेव के चरणों में अपना सर्वस्व चढ़ाया..)

जो लोग धर्म की वास्तविक व्याख्या को न समझ कर गलत  उपासना-पद्धतियों को ही धर्म मान कर चलते हैं वे अपनी इसी नासमझ के कारण ही  धर्म की आलोचना करते और खुद को प्रगतिशील समझते हैं जबकि वस्तुतः वे खुद भी उतने ही अन्धविश्वासी हुए जितने कि पोंगा-पंथी अधार्मिक होते हैं.

ऋग्वेद के मंडल ७/सूक्त ३५/मन्त्र १ में कहा गया है-

शं न इन्द्राग्नी भवतामवोभिः शं न  इन्द्रावरुणा रातहव्या। 
शमिन्द्रासोमा सुविताय शं यो :शं न  इन्द्रा पूष्णा वाजसतौ । ।

(सूर्य,चन्द्र,विद्युत्,जल सारे सुख सौभाग्य बढावें.
रोग-शोक-भय-त्रास हमारे पास कदापि न आवें..)

इन्हीं तत्वों को जब मैक्समूलर साहब जर्मन ले गए तो वहां के विचारकों ने अपनी -अपनी पसंद के क्षेत्रों में उनसे ग्रहण सामग्री के आधार पर नई -नई खोजें प्रस्तुत कीं हैं.जैसे डा.हेनीमेन ने 'होम्योपैथी',डा.एस.एच.शुस्लर ने 'बायोकेमिक'  भौतिकी के वैज्ञानिकों ने 'परमाणु बम'एवं महर्षि कार्ल मार्क्स ने 'वैज्ञानिक समाजवाद'या 'साम्यवाद'की खोज की.

सर्वे भवन्तु सुखिन: ,सर्वे सन्तु निरामय :। 
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद दुखभाग भवेत॥ 
ऋग्वेद के अंतिम सूक्त के पांचवें इस  श्लोक  का काव्यानुवाद यह है---
सबका भला करो भगवान सब पर दया करो भगवान । 
सब पर कृपा करो भगवान,सब का सब विधि हो कल्याण । । 
हे ईश सब सुखी हों कोई न हो  दुखारी। 
सब हों निरोग भगवन धनधान्य के भण्डारी। । 
सब भद्र भाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों। 
दुखिया न कोई होवे सृष्टि में प्राणधारी । । 

वेदों में किसी व्यक्ति,जाति,क्षेत्र,सम्प्रदाय,देश-विशेष की बात नहीं कही गयी है.वेद सम्पूर्ण मानव  ही नहीं जीव-निर्जीव सभी सृष्टि की रक्षा की बात करते हैं। 
यदि हम जनता के समक्ष इन सच्चाईयों को लेकर जाएँ तो जनता हमारा न केवल स्वागत व समर्थन करेगी बल्कि संसद से ढ़ोंगी-साम्राज्यवादी/संप्रदायवादी  लोगों को भी उखाड़ फेंकेगी।





धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।



अध्यात्म =अध्यन+ आत्मा = अपनी आत्मा का अध्यन। 

देवता= जो देता है और लेता नहीं है ,जैसे-नदी,वृक्ष,पर्वत,आकाश,अन्तरिक्ष,अग्नि,जल,वायु आदि न कि जड़ मूर्तियाँ/चित्र आदि। 

भगवान = भ (भूमि-पृथ्वी)+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I (अनल-अग्नि )+न (नीर-जल )। 

खुदा = चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इनको किसी भी प्राणी ने नहीं बनाया है इसलिए ये ही 'खुदा' हैं। 

GOD = G (जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय )। उत्पत्ति,पालन व संहार करने के कारण ही इनको GOD भी कहते हैं। 
देखिये कैसे?:
वायु +अन्तरिक्ष =  वात 
अग्नि  =पित्त
 भूमि + जल = कफ 
इन तीनों का समन्वय ही शरीर को धारण करता है 

वात +पित्त + कफ =भगवान=खुदा=GOD 

शरीर को धारण करने व समाज को धारण करने हेतु
धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य परमावश्यक है। 

क्या महर्षि कार्ल मार्क्स अथवा शहीद भगत सिंह जी ने कहीं कहा है कि साम्यवाद के अनुयाइयों को झूठ बोलना चाहिये,हिंसा ही करनी चाहिए,चोरी करना चाहिए,अपनी ज़रूरत से ज़्यादा चीज़ें जमा करना चाहिए और अनियंत्रित सेक्स करना चाहिए। यदि इन विद्वानों से ऐसा नहीं कहा है तो इनका नाम बदनाम करने के लिए 'एथीस्ट वादी' ही जिम्मेदार हैं। और इसी कारण रूस से भी साम्यवाद उखड़ा है। 

एथीस्ट वादी भी ढोंगियों-पाखंडियों-आडमबरकारियों की ही तरह 'अधर्म' को धर्म कहते हैं व सत्य को स्वीकारना नहीं चाहते हैं क्योंकि वे भी उल्टे उस्तरे से जनता को मूढ़ रहे हैं। इसी कारण खुद को उग्र क्रांतिकारी कहने वाले एथीस्टों ने चुनाव बहिष्कार करके अथवा 'संसदीय साम्यवाद' के समर्थक दलों का विरोध करके केंद्र में सांप्रदायिकता के रुझान वाली सरकार गठित करवा दी है जिसका खामियाजा पूरे देश की जनता को भुगतना होगा। 

ढ़ोंगी-पाखंडी-आडंबरधारी और एथीस्ट दोनों का ही हित तानाशाही में है दोनों की ही आस्था लोकतन्त्र में नहीं है और दोनों ही परस्पर अन्योनाश्रित हैं । एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही संभव नहीं है। दोनों ही 'सत्य ' उद्घाटित नहीं होने देना चाहते हैं क्योंकि अज्ञान ही उनका संबल है जागरूक जनता को वे दोनों ही उल्टे उस्तरे से मूढ़ नहीं सकेंगे। 
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Sunday 6 September 2015

जब फासिस्ट तानाशाही का खतरा सिर पर हो तब आपस मे लठठम लठठास ? --- विजय राजबली माथुर


State Council UP CPI को बाजारवादियों से आज़ाद करो। आज़ाद करो।--- Fakhrey Alam


वामपंथ और साम्यवाद के लिए इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उत्तर प्रदेश के बाजारवादी/ब्राह्मणवादी तत्व अपने ही  एक कर्मठ राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अनजान साहब पर जब तब तीखे प्रहार करते रहते हैं। फेसबुक पर एक बड़े पदाधिकारी को मुखौटा बना कर इन तत्वों ने अनर्गल बातें लिखवाई हैं। पहले भी कई-कई बार ये प्रदेश में पार्टी को विभाजित करा चुके हैं ,कर्मठ कार्यकर्ताओं को पार्टी से अलग होने पर मजबूर करते हैं ऐसे ही लोगों से उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल को मुक्त करने की फखरे आलम साहब की अपील पार्टी को मजबूत बनाने के लिए है।  बाजारवादी/ब्राह्मणवादी तत्व यदि इस बार फिर सफल होते हैं तो यह सिर्फ CPI के लिए ही नहीं सम्पूर्ण वामपंथ के विनाश का आगाज होगा। जनता मे आम चर्चा है कि ब्राह्मण वामपंथी फासिस्ट सरकार का समर्थन कर रहे हैं। फासिस्ट सरकार के अश्लील विज्ञापन का विरोध करने पर जिस प्रकार कॉमरेड अतुल अनजान साहब पर  बाजारवादी/ब्राह्मणवादी तत्वों ने  वाक -प्रहार करवाया है उससे तो उस जन-चर्चा को ही बल मिलता है। जब फासिस्ट तानाशाही का खतरा सिर पर हो तब उसका मुक़ाबला करने के बजाए अपने ही कर्मठ नेता पर लांछन लगाना निंदनीय कृत्य है। 
http://communistvijai.blogspot.in/2015/09/blog-post.html
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उपरोक्त संदर्भित पिछली पोस्ट के बाद फेसबुक पर और ज़्यादा ही ऊताचाल देखने को मिल रहा है जैसा कि इस फोटो से स्पष्ट है।
"Comrade Anjan was defended by AIDWA General Secretary Jagmati Sangwan, who said that he was objecting to the advertisement not to Leone as an individual, “Not only he, we too are offended when the ad is aired on TV, his remarks shouldn’t be taken personally, we demand that the company withdraw the ad because it instigates sexual violence.”   http://www.thenewsminute.com/article/atul-anjans-comment-sunny-leone-shows-left-not-free-gender-bias-insiders-critique-34018"

कुछ इस तरह का वातावरण बनाया जा रहा है कि कामरेड अतुल अनजान साहब ने कोई भयंकर अपराध किया है जिसकी सजा उनको मिलनी ही चाहिए। यह कोई पहली बार ऐसा नहीं हो रहा है। दो वर्ष पूर्व भी अनजान साहब व बर्द्धन जी के विरुद्ध एक सुनियोजित अभियान चलवाया गया था अतुल जी के दूसरी पार्टी मेंजाने की गलत अफवाह भी उड़ाई गई थी । उसका खंडन उन्होने किया था :


यह एक अलग बात है जिसको मुखौटा बना कर कुत्सित- घृणित अभियान चलवाया गया था उसको पार्टी से केंद्रीय आदेश पर निकाला गया किन्तु वैधानिक प्रक्रिया से नहीं।  इस बार फिर अश्लील विज्ञापन के विरोध में उनके बयान को वीडियो में हेर-फेर करके पेश किया गया है हालांकि उसका भी स्पष्टीकरण उन्होने दे दिया है। उसके बाद भी माले नेत्री ने उन पर गंभीर प्रहार किया है जिस पर फेसबुक में उनको समर्थन भी मिल रहा है। 

उत्तर प्रदेश में बाजारवादी/ब्राह्मण वादी लोग भाकपा पर हावी हैं जो बार-बार अनजान साहब को निशाना बनवाते हैं।टी वी चेनल्स में एक के पुत्र के माध्यम से इंनका प्रभाव है  जिसका इस्तेमाल अनजान साहब के विरुद्ध दुष्प्रचार में किया जाता है। इनके नायक का कहना है कि अनजान साहब को केंद्र में उन्होने भेजा है और प्रदेश सचिव की पीठ पर भी उनका हाथ है। पिछली अफवाह के बाद उन नायक साहब ने अनजान साहब से लगभग आधा घंटे फोन वार्ता द्वारा आश्वासन दिया था कि इस बार वह प्रदेश सचिव बदल देंगे। किन्तु आश्वासन पूरा किया नहीं और जिनको विकल्प के रूप में पेश करने की बात कही थी उनको इस बार के दुष्प्रचार का मुखौटा बना दिया गया। इतने से भी बात नहीं बनी तो माले के संपर्को को आगे किया गया है। 

माले वाली लेखिका या फेसबुक पर कमेन्ट करने वाले अनजान साहब के विरुद्ध चलने वाले दुष्प्रचार की बात से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। उन बाजारवादी/ब्राह्मण वादी लोगों की निगाह '22-क़ैसर बाग' की बिल्डिंग पर लगी हुई है और वे इसके वारे-न्यारे करके मालामाल होना चाहते हैं। उनको लगता है कि 'अनजान' साहब उनके इस काले कारनामे में सबसे बड़ी बाधा हैं। अतः अनजान साहब को पार्टी से अलग कराने हेतु जब-तब अभियान चलवाते रहते हैं। ये तत्व पिछले 21 वर्षों में दो बार प्रदेश में पार्टी को विभाजित करा चुके हैं। इनके नायक की हिदायत है कि SC/OBC वर्ग के कार्यकर्ताओं से काम तो लो लेकिन उनको दायित्व न दो अर्थात पदाधिकारी न बनाओ। इसी वर्ष इन दो वर्गों से संबन्धित विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी रहे दो लोगों को अपने समर्थकों सहित पार्टी छोडने पर मजबूर होना पड़ा है। इन तथ्यों को जाने बगैर अनजान साहब पर प्रहार करने वाले लोग वस्तुतः बाजारवादी/ब्राह्मण वादी लोगों के मंसूबे पूरे कर रहे हैं बल्कि प्रकारान्तर से सत्तरूढ़ फासिस्ट सरकार को मजबूत बनाने में मदद कर रहे हैं। इसी लिए साम्यवाद को समर्पित कार्यकर्ता का कहना है ---
State Council UP CPI को बाजारवादियों से आज़ाद करो। आज़ाद करो।--- Fakhrey Alam
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फेसबुक कमेंट्स ::


Thursday 3 September 2015

लम्हे की खता की सजा सदियों मिलती है --- भावेश भारद्वाज








State Council UP CPI को बाजारवादियों से आज़ाद करो। आज़ाद करो।--- Fakhrey Alam

वामपंथ और साम्यवाद के लिए इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उत्तर प्रदेश के बाजारवादी/ब्राह्मणवादी तत्व अपने ही  एक कर्मठ राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अनजान साहब पर जब तब तीखे प्रहार करते रहते हैं। फेसबुक पर एक बड़े पदाधिकारी को मुखौटा बना कर इन तत्वों ने अनर्गल बातें लिखवाई हैं। पहले भी कई-कई बार ये प्रदेश में पार्टी को विभाजित करा चुके हैं ,कर्मठ कार्यकर्ताओं को पार्टी से अलग होने पर मजबूर करते हैं ऐसे ही लोगों से उत्तर प्रदेश राज्य काउंसिल को मुक्त करने की फखरे आलम साहब की अपील पार्टी को मजबूत बनाने के लिए है।  बाजारवादी/ब्राह्मणवादी तत्व यदि इस बार फिर सफल होते हैं तो यह सिर्फ CPI के लिए ही नहीं सम्पूर्ण वामपंथ के विनाश का आगाज होगा। जनता मे आम चर्चा है कि ब्राह्मण वामपंथी फासिस्ट सरकार का समर्थन कर रहे हैं। फासिस्ट सरकार के अश्लील विज्ञापन का विरोध करने पर जिस प्रकार कॉमरेड अतुल अनजान साहब पर  बाजारवादी/ब्राह्मणवादी तत्वों ने  वाक -प्रहार करवाया है उससे तो उस जन-चर्चा को ही बल मिलता है। जब फासिस्ट तानाशाही का खतरा सिर पर हो तब उसका मुक़ाबला करने के बजाए अपने ही कर्मठ नेता पर लांछन लगाना निंदनीय कृत्य है। 


जस्ट इन: कॉमरेड अतुल अनजान दिल्ली पहुंचे, सन्नी लियोन पर मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया!ANI, 3 Sept,2015 11a.m. आज शामिल होंगे सचिव मंडल की बैठक में, अतुल अनजान पिछले दिनों मऊ में जहा उनकी कोशिशो से कॉमरेड झारखंड राय और कॉमरेड जयबहादुर की प्रतिमा का अनावरण राज्य सरकार ने किया, जिसमे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह मौजूद थे और इस उपलक्ष पर कम्युनिस्ट पार्टी के निवेदन पर १०० करोड़ के प्रोजेक्ट मऊ को तोहफे में मिला, सपा मुखिया ने २२ मिनट कॉमरेड अतुल अनजान पर बोला और कहा की इन्हे संसद कब भेजोगे? फिर उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर इशारा करते हुए कहा की कब भेजोगे इन्हे? इस पर मुख्यमंत्री मुस्कराते रहे और कॉमरेड अनजान गंभीर दिखे!कॉमरेड अतुल कुमार अनजान दिल्ली पहुंच कर अपने विवादित बयान पर बात करते हुए एएनआई को कहा"जिन्हे सनी लियोन पर हमले से तकलीफ हुए उनसे माफ़ी मांगता हुँ, महिला अधिकारों के लिए जेल काटी है लाठिया खाई है मेरे बयान को कॉन्डम के इशहर से रेप को मिलता है बढ़ावा यह सरासर छेड़छाड़ है यूपीए ने अश्लील कंडोम पर प्रतिबन्ध लगाये थे लेकिन संस्कृति के रक्षक आजकी सरकार पोर्नस्टार सनी लियोन के इश्तेहार को प्रोमोट कर रही है, क्या मतलब है जिसमे कहा जा रहा है "सुबह से शाम करे और करते जाये की जी ना भरे, उन्होंने सवाल उठाया की क्या इसे परिवार में एक साथ देखा जा सकता है? यह सेक्स की तरफ उकसाता है ना की सूचना जानकारी बढ़ाता है, भारत का इश्तेहार का एड दशक से चलता है जिसमे सूचना का प्रसार है"!
Posted by Tanzeem E Insaaf Delhi on Wednesday, September 2, 2015
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