Thursday 5 March 2020

उसने प्रेम खर्च किया और बदले में प्रेम पाया : कन्हैया कुमार ------ जगदीश्वर चतुर्वेदी

Jagadishwar Chaturvedi
9 hrs
नरेन्द्र मोदी और कन्हैया कुमार में अंतर है !

नरेन्द्र मोदी हम जानते हैं आप फेसबुक शौकीन हो,यहां जो लिखा जा रहा है,उसको पढ़ते हो।हमने सबसे पहले आगाह किया था और कहा था यह कंस की तरह काम मत करो।सच सामने है जनता पर हमले हो रहे हैं। अंतत: तुमने कन्हैया कुमार आदि पर मुकदमा चलवा ही दिया! अब आएगा मजा! कन्हैया के भाषणों से आप बहुत आहत हैं! इसी प्रसंग में धूमिल की ये पंक्तियां पढ़ो ," मैं तीन बार संसद कहूँगा/ और चार बार संविधानः/हिन्दुस्तानी लुकमें की आदती जुबान/दाँतों की दलबंदी तोड़कर बाहर आ जाएगी।"
क्या राजनीतिक साख रह गयी तुम्हारी। पहली बार जब कन्हैया बोल रहा था तुम घर में बैठे उसके एक एक अक्षर को सुन रहे थे,तुम्हारे मंत्री सुन रहे थे,बटुक सुन रहे थे।यही ताकत है कन्हैया की कि उसने तुमको तुम्हारे ड्राईंगरूम में जाकर घेर लिया,तुम उसे सुन रहे थे और बड़बड़ा रहे थे,यही ताकत है मार्क्सवादी नेता की कि उसकी विचारधारात्मक मार सीधे दुश्मन के हृदय पर चोट करती है,हम जानते हैं कन्हैया ने तुमको बुरी तरह घायल किया है।
हिन्दी के बागी कवि हैं धूमिल उन्होंने भारत के बारे में लिखा है,"न कोई प्रजा है/न कोई तंत्र है/यह आदमी के खिलाफ/आदमी का खुलासा /षडयंत्र है।"

कन्हैया सामान्य नागरिक है,वह तुम्हारी तरह प्रायोजित नायक नहीं है।वह रीयलसेंस में छात्रों का नायक है।नरेन्द्र मोदी जान लो भारत में लोकतंत्र है,तुम इसे भडुआतंत्र बनाने में लगे हो,भडुआतंत्र प्रायोजित तंत्र है,तुम उसके वैध नायक हो,जबकि कन्हैया तो इस तंत्र के खिलाफ लड़कर ही बड़ा हुआ है,वह छात्र है,आज उसके साथ देश का सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय खड़ा है,सारा देश उसे सुन रहा है,सारे चैनल उसे दिखा रहे हैं,इसके लिए उसने एक पैसा खर्च नहीं किया,बिना पैसा खर्च किए इतना विशाल कवरेज,इतनी प्रशंसा और लाखों छात्रों का नायक बनने में उसने क्या खर्च किया ? उसने प्रेम खर्च किया और बदले में प्रेम पाया।तुमको तो प्रेम से ही चिढ़ है।
संघी लोग उसके खिलाफ हीनताग्रंथी से ग्रस्त राग अलाप रहे हैं।संघियो कन्हैया के सामने रखकर देखो अपने को।सच कहो हीनताग्रंथी के शिकार हो या नहीं? सच कहो रात में ठीक से नींद आती है या सपने में भी कन्हैया कन्हैया जपते हो! 
नरेन्द्र मोदी यह जान लो जेएनयू के हाथों जो नेता पिटता है उसको स्वर्ग-नरक कहीं पर जगह नहीं मिलती,आज तुम त्रिशंकु हो! जेएनयू के भावबोध को धूमिल ने सही व्यक्त किया है,लिखा है-" मेरा जानना/और तुम्हारा नकारना/हमें इस काबिल बनाते हैं/ कि हम/ चेहरे को चेहरा और चाकू को चाकू कह सकें।"

मोदी के ज़रिए जो लोग आधुनिक भारत का सपना देख रहे थे उनके सपनों पर मोदी ने सीएए-एनआरसी-नोटबंदी नामक तेज़ाब फेंक दिया है। इससे मोदी का आधुनिक नहीं मध्यकालीन रुप सामने आया है ।

धूमिल ने कहा है- "पेट और प्रजातंत्र के बीच का संबंध/ उसके पाठ्यक्रम में नहीं है।"

नरेन्द्र मोदी सोचो तुम आज कन्हैया के सामने बौने क्यों लग रहे हो? मोदी ,तुमने छात्रों की ललकार और प्रतिवाद को नहीं देखा !तुम हमेशा चाटुकारों में रहे,चाटुकार विचारधारा का आनंद लिया,तुम क्या जानो भारत क्या है ? भारत के छात्र का दर्द क्या है? तुमको तो कभी ठीक से किसान- मजदूर से बात करते हुए भी नहीं देखा किसी ने ! तुमने वही बोला जो सत्ता के लुटेरों ने बुलवाया,तुमने कभी भारत के मन को जानने का प्रयास नहीं किया।तुम सत्ता,अमीर और विज्ञापन कंपनियों की बैसाखियों पर सवार होकर पीएम बने हो,तुम क्या जानो आम आदमी का दर्द !देखो कन्हैया कहां से खड़े होकर देश को देख रहा है और तुम कहां से खड़े होकर देख रहो !तुम्हारी जमीन और कन्हैया की जमीन अलग है,तुम्हारे सपनों का भारत और कन्हैया के सपनों का भारत अलग है,तुम्हारे राजनीतिक सरोकार और कन्हैया के सामाजिक सरोकार अलग हैं,तुम्हारी भाषा और उसकी भाषा अलग है,तुम्हारी घृणा और उसकी घृणा अलग है,तुम्हारे दोस्त और कन्हैया के दोस्त अलग हैं,तुम्हारा देशप्रेम और कन्हैया का देशप्रेम अलग है।कन्हैया में देश बोल रहा है तुममें संघी बोल रहा है,तुम सारे देश में उन्माद के नायक बनकर आए लेकिन कन्हैया देशप्रेम और संघर्ष का नायक बनकर उभरा है।यही वजह है नरेन्द्र मोदी तुम कन्हैया के सामने बौने लग रहे हो।

धूमिल ने लिखा- "यौवन एक ऐसा सिक्का है/जिसके एक ओर प्यार/और दूसरी ओर गुस्सा छपा है।"

नरेन्द्र मोदी तुम भय और सत्ता का आतंक पैदा करके बुद्धिजीवियों और जनता को चुप कराना चाहते थे,लेकिन तुम्हारी सारी रणनीति जेएनयूवालों ने पंक्चर कर दी है।अब आगे सोचो क्या करोगे? बुद्धिजीवियों पर धूमिल ने लिखा है- "वह एक दुधमुँही दिलचस्पी है/कुलबुल जिज्ञासा है/जिसे मारने के लिए इस पृथ्वी पर/ अभी कोई गोली नहीं बनी।"

असल में भाड़े के टट्टुओं के बल पर राजनीति करने वाले और जनबल के आधार पर राजनीति करने वाले का फर्क देखना हो तो नरेन्द्र मोदी और कन्हैया में अंतर देखो,मोदी ने अरबों रूपये खर्च करके जितनी जनप्रियता हासिल की उससे कहीं ज्यादा जनप्रियता कन्हैया ने फूटी कौड़ी खर्च किए बिना हासिल कर ली ।
जिस समय कहा जा रहा था वाम का अंत हो गया ठीक उसी समय जेएनयू की राख से कन्हैया का जन्म हुआ और आज यह वाम का नायक हर शिक्षित की जुबान पर है।मीडिया की सुर्खियों में है,इसे कहते हैं धूल का फूल। कन्हैया का मार्ग वह है जिसका 
धूमिल ने जिक्र किया है, लिखा, "आज की भूख से भूख के अगले पड़ाव तक/लिख दें/यह रास्ता लोकतंत्र को जाता है।"
पीएम मोदी की बड़ी उपलब्धि है कि उनके सत्तारूढ होते ही भाजपा हेट स्पीच पार्टी में रूपान्तरित हो गयी ।मीडिया इन घृणा प्रचारकों की भक्ति में डूबा है।

कन्हैया को मोदी की तरह किसी विज्ञापन एजेंसी ने प्रमोट नहीं किया,कन्हैया को किसी अदानी-अम्बानी ने मुखौटे के रूप में खड़ा नहीं किया,कन्हैया तो विलोम है पूंजीवादी शोषण का।आज कन्हैया करोडो़ं भारतीयों के घर में पहुंच गया है,प्रत्येक छात्र उसका नाम जानता है,हर बुद्धिजीवी उसे सुन रहा है,उसके बारे में पढ़ रहा है,वह संसद से साइबर तक आम भारतीय का कण्ठहार बन गया है ,जानते हो ऐसा क्यों हुआ ? क्योंकि कन्हैया सच्चा देशप्रेमी है।सच्चा कम्युनिस्ट है।कम्युनिस्ट सारी दुनिया में अपने विचारों और आदर्शों के कारण जनप्रिय रहे हैं,कन्हैया की जनप्रियता और देशप्रेम की धुरी है उसका मार्क्सवादी नजरिया।

धूमिल ने लिखा है-" मैं ...ज...हूँ...ज/और तुम ...न ...हो/ हम दोनों मिलकर "जन" बनाते हैं/तुम मुझे कहीं भी देख सकते हो।"

कन्हैया ने अपने लाइव टीवी प्रसारणों के जरिए "आजादी" और इंकलाब के नारे को भारत की जनता का जनप्रिय नारा बना दिया ।आज आज़ादी और इंकलाब एक विचार हैं, जनांदोलन हैं। अंत में

धूमिल के ही शब्दों में "न मैं पेट हूँ/न दीवार हूँ/न पीठ हूँ/अब मैं विचार हूँ।"

साभार : 

https://www.facebook.com/jagadishwar9/posts/3235359559826062

Tuesday 3 March 2020

कन्हैया कुमार से घबराहट किनको ? ------ सुमन कुमार

 
  Suman Kumar
'कन्हैया कुमार' से जुड़े 15 रोचक तथ्य, जिन्हे हर भारतीय को जानने चाहिए*

1- कन्हैया कुमार का जन्म 13 जनवरी 1987 को बिहार राज्य के बेगुसराय जिले बीहट गाव के मसनदपुर टोला (वार्ड 15) मे एक भूमिहार परिवार मे हुआ।

2- कन्हैया पिता स्वर्गीय जयशन्कर सिह एक किसान थे।जो अपने जीवन के अन्तिम दिनो मे लकवे का शिकार थे। कन्हैया की माँ मीना देवी एक आन्गनवाड़ी कार्यकत्री है।कन्हैया के दो भाई और एक बहन है।

3- वर्ष 1962 मे तेघरा विधानसभा से विधायक रहे एव बिहार की पहली गैर कान्ग्रेसी सरकार मे सिचाई,ऊर्जा एव कृषि मन्त्री रहे प्रसिध्द कम्यूनिष्ट नेता चन्द्रशेखर सिह, कन्हैया के दादा थे। कन्हैया का परिवार कम्यूनिष्ठ विचारधारा का परम्परागत सपोर्टर रहा है।
वह अपने दादा चंद्रशेखर सिंह को नहीं देखा पर उनके विचारों के मार्ग पर चलने वाले अपने टोला के राम प्रकाश सिंह (रिश्ते के बाबा) और गाँव के चंदेश्वरी सिंह (चानो दा) जैसे कॉम्युनिस्ट विचारधारियों को देख बड़ा हुआ!

4- कन्हैया की स्कूली शिक्षा उनके गाव (बीहट) मे हुई।यहाँ ये इप्टा जैसे संस्था से जुड़ा कन्हैया ने दसवी की परीक्षा प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण की। फिर पटना के 'कालेज आफ कामर्स' से स्नातक एव परास्नातक की परीक्षा भी। कालेज के दिनो मे ही कन्हैया AISF से जुड़ गये। जो भारतीय कम्यूनिष्ठ पार्टी की एक शाखा है।

5- वर्ष 2011 मे कन्हैया ने दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्विविद्यालय मे अफ्रीकन स्टडीज विषय मे शोध के लिए दाखिला लिया। इस विषय के शोध के लिए प्रवेश परीक्षा को कन्हैया ने पूरे देश मे टॉप किया। कन्हैया ने जेएनयू में अफ्रीकन स्टडीज में पीएचडी पूरी की और डॉक्टरेट की उपाधि ली!

6- अपने शोध की पढाई के दौरान कन्हैया जेएनयू छात्र सन्घ के अध्यक्ष चुने गये। कन्हैया ने अपने जबरदस्त भाषण देने के अन्दाज से छात्र सन्घ चुनाव जीत हासिल की। 2015 में कन्हैया जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष पद के लिए चुने जाने वाले एआईएसएफ के पहले सदस्य बने। इस चुनाव में उन्होंने एआईएसए, एबीवीपी, एसएफआई और एनएसयूआई के उम्मीदवारों को हरा कर जीत हासिल की थी। जेएनयू में उनके जानने वाले (हेमंत कुमार, मधरापुर) बताते हैं कि विश्वविद्यालय में चुनावों के एक दिन पहले भी कन्हैया ने दमदार भाषण दिया था। माना जाता है कि उनका भाषण इतना असरदार था कि अगले दिन वही उनकी जीत का कारण बन गया।कन्हैया की बोलने की शैली काफी काबिले तारीफ है। अपने शानदार स्पीच की बदौलत आज देश विदेश तक कन्हैया की करोड़ो की फैन फालोविन्ग है। लिंक :-https://youtu.be/6kkj7ju1w3A

12 फरवरी 2016 को कन्हैया जेएनयू मे देश विरोधी नारे लगाने के लिए गिरफ्तार कर लिये गये। इस दौरान उन पर धारा 124-A और 120-B के तहत मुकदमा चलाया गया। कन्हैया को जेल के जिस वॉर्ड में रखा गया था उसका नाम भी 'मदर टेरेसा वॉर्ड' था। इस घटना से कन्हैया पूरे भारत मे चर्चित हुए और कई दिनो तक देश के अखबारो की पहली खबर बनते रहे।कन्हैया ने खुले मंच और न्यूज़ चैनलों / प्रिंट मिडीया से कई बार सत्ताधारी पार्टी और तमाम आलोचकों से चैलेंज किया कि अग़र इसके ख़िलाफ़ किसी के पास कोई सबूत हो तो कोर्ट को दें! 3साल से ऊपर हो गया आज़ तक पुलिस प्रशासन या सत्ताधारी दल ने कोर्ट मे एक सही से चार्जशीट नही दाख़िल कर पाई!

9- फरवरी 2016 में जेएनयू में भारतीय संसद पर हमले के दोषी, मोहम्मद अफजल गुरु की फांसी की सजा के खिलाफ कथित रूप से राष्ट्रविरोधी नारे लगाए गए थे। इस दौरान कन्हैया छात्र संघ के अध्यक्ष थे, इसलिए उन पर देशद्रोह के आरोप में मामला दर्ज किया गया। इसी दौरान कन्हैया, राष्ट्रीय मीडिया में आए। देशद्रोह का आरोप लगने पर कन्हैया पूरे देश मे देशद्रोही की नजर से देखे जाने लगे। उनको जान से मारने के नाम पर इनाम घोषित किया जाने लगा। जैसे जीभ काटने पर पान्च लाख और गोली मारने पर 11 लाख आदि।

10- 2 मार्च 2016 को दिल्ली हाइकोर्ट की जस्टिस प्रतिभा रानी ने कन्हैया कुमार को यह कहते हुए अन्तरिम जमानत दे दी कि सबूत के तौर पर देश विरोधी नारे लगाने वाले इस विडियो मे कन्हैया कही भी नही दिख रहे और उनके वहा रहने का कोई सबूत नही है।चुनाव आयोग भी इसे चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दिया!

11- जेएनयू की एक 'हाइ लेवल कमेटी' की जाच मे भी कन्हैया कही भी दोषी नही पाये गये। कमेटी ने जाच मे पाया की देश विरोधी नारे लगाने वाले लोग बाहरी थे जिन्होंने मुह पे मास्क पहन रखे थे।

12- कन्हैया कुमार ने जेल मे रहते हुए अपनी एक किताब लिखी है 'बिहार टू तिहाड़'। इस किताब का विमोचन के समय ही कन्हैया ने पिता का देहान्त हो गया था, जिसके कारण किताब विमोचन के समय घर से इनके चाचा प्रेम प्रकाश ही केवल शरीक़ हो सके थे और के सी त्यागी और मणिशंकर अय्यर शरीख़े राजनेता उपस्थित हुये थे! ये किताब में कन्हैया के बचपन के स्कूल से लेकर जेएनयू तक के जीवन सफर का चित्रण करती है।इस किताब को पांच भागों में पूरा किया गया है! बचपन, पटना, दिल्ली, जेएनयू और तिहाड़. !कन्हैया बिहार के बेगूसराय ज़िले के एक सबसे संपन्न गांव के बेहद गरीब परिवार से है! कैसे सामान्य जाति का होने के बावजूद भी, गरीबी जीवन में बड़ी-बड़ी चुनौतियां खड़ी करती है, इसकी सहज झलक इस किताब में देखने को मिलती है!

13-कन्हैया कुमार का आजादी सान्ग भी बहुत प्रसिध्द है। जिसमे वह ढपली लेकर देश की तमाम समस्याओ से आजादी पाने की बात करते है। कन्हैया के तमाम रोचक विडियो, यूट्यूब आदि पर मौजूद है। जिसमे भाजपा प्रवक्ता सम्बित पात्रा के साथ 44 मिनट की डीबेट खूब पसन्द की जाती है।

14- कन्हैया कुमार 21 वी सदी का सबसे चर्चित एव ऊर्जावान चेहरा है। उसके ऊपर देशद्रोही होने का किसी के पास कोई ठोस सबूत नही है। पर कुछ बिकाऊ मीडिया ने सत्ताधारी दल के सपोर्ट में इसके इमेज़ को बदनाम किया

15- वर्तमान समय मे कन्हैया 17 वी लोकसभा मे बेगुसराय की लोकसभा सीट से सीपीआई के प्रत्याशी है। कन्हैया कुमार की वजह से बेगुसराय की लोकसभा देश की सबसे चर्चित लोकसभा बन चुकी है। और बेगूसराय का ये बेटा बेगुसरायवासी के आशीर्वाद प्राप्त करने मे सफ़ल रहा! राजनीति में सफल और धामेकार एंट्री हो जाने के बावजूद कन्हैया शिक्षा के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं। कन्हैया का मुकाबला भाजपा के दिग्गज नेता और 2014 में नवादा से जीते गिरिराज सिंह से है। गिरिराज पहले इस सीट से कन्हैया कुमार के सामने प्रतियाशी बन लड़ना नहीं चाहते थे लेकिन अब ये उनके लिए भी सम्मान की लड़ाई में बदल चुका है। कन्हैया अक्सर यह कहते हैं कि वो चाहे जीतें या हारें, मगर भाजपा के खिलाफ उनकी लड़ाई लगातार जारी रहेगी।
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Sunday 1 March 2020

क्या वामपंथी देश के दुश्मन हैं? ------ सुधांशु धर द्विवेदी


एक लंबे समय से कम्युनिस्ट केजरीवाल को अच्छा बताते हुए उनका समर्थन करते चले आ  रहे हैं। दिल्ली की तीसरी जीत पर बाकायदा बड़े - बड़े कामरेड्स ने केजरीवाल को बधाई दी  व प्रशंसा में खूब लिखा। मुझे खूब अच्छे तरीके से याद है कि, उत्तर - प्रदेश भाकपा के कार्यालय पर २६ दिसंबर २०१० को पार्टी स्थापना के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के बोल चुकने के बावजूद विलंब से आए केजरीवाल को बुलवा कर अपनी पार्टी के राष्ट्रीय नेता को अपमानित किया गया था। क्या अब भी वे अपना दृष्टिकोण बदलेंगे या अब भी केजरीवाल के समर्थक बने रहेंगे ? ------ विजय राजबली माथुर 
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सुधांशु धर द्विवेदी is with Sudhanshu Dwivedi.

क्या वामपंथी देश के दुश्मन हैं? ( दो भागों में से प्रथम)

ऐसा माना जाता है ( जो कुछ दिन पहले खुली वास्तविकता थी ) कि इस्लाम व ईसाइयत से भी ज्यादा संख्या मार्क्सवादी लोगों की है , ज्यादा सही शब्द होगा कि वामपंथी लोगों की है।

वामपंथी विचारधारा अपने अंदर मार्क्स, लेनिन , माओ , ट्राटस्की से लेकर सोशल डेमोक्रेटिक , सोशलिस्ट आदि तमाम धाराओं को समेटे है। इसमें अति वामपंथी भी शामिल हैं जिनको माओवादी कहा जाता है, भारत में इनको नक्सलबाड़ी आंदोलन से निकले होने की वजह से नक्सली कहा जाता है। अति पूंजीवादी देशों में तो लिबरल लोगों को भी वामपंथी मान लिया जाता है( भारत में भी बीजेपी आई टी सेल इनको लिब्रान्डु से लेकर वामी कामी कांगी आदि जाने क्या क्या कहती है।)।

वामपक्ष का उदय इंग्लैंड व फ्रांस से शुरू हुआ ऐसा माना जाता है। ग्यारहवीं व बारहवीं शताब्दी में राजा व सामंतों के बीच अधिकारों को लेकर जंग शुरू हुई। इस जंग का मंच थी इंग्लैंड की नवोदित संसद। इसमें राजा की शक्तियों के तरफदार लोग राजा के सिंहासन के दाहिनी तरफ बैठते थे , वे आमतौर पर रूढ़िवादी लोग थे( आज वे कंजरवेटिव पार्टियों से जुड़े हैं) , वे दक्षिण पंथी कहलाने लगे। राजा के अधिकारों में कटौती करके अधिकारों का विकेंद्रीकरण करने के समर्थक राजा के बाएँ बैठते थे , यही लोग वामपंथी कहलाये ( आज लेबर पार्टी टाइप दल )...ये लोग धर्म , समाज , राजनीति आदि में परिवर्तन वादी थे। बाद में उदारवादी, परिवर्तनवादी, क्रान्तिवादी लोगों के लिए वामपंथी शब्द रूढ़ हो गया। इसीलिए जब फ्रेंच क्रांति के समय स्टेटस जनरल की मीटिंग्स हुईं तो परिवर्तन वादी लोग अध्यक्ष के सिंहासन के बाएँ बैठे, यहाँ से वामपक्ष परिवर्तन कामियों के लिए एक आम प्रचलन वाला शब्द बन गया। यही कारण था कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट हों या लेनिनवादी या फिर माओवादी सभी वामपंथी ही कहे जाते हैं यहाँ तक कम्युनिष्टों को शत्रु मानने वाले सोशलिस्ट भी आख़िर कार कम्युनिस्ट लोगों के ही समान वामपंथी घोषित हो गए क्योंकि आक्रामक रूढिवादियों( दक्षिणपंथी लोगों) के लिए लिबरल , सोशलिस्ट व कम्युनिस्ट सभी उनके विरोधी थे इसलिए वे वामपंथी के रूप में उनके साझा शत्रु समझे जाने लगे।

कम्युनिष्टों में मार्क्सवादी मोटे तौर पर मार्क्सवादी वे लोग थे जो क्रान्ति को स्वतःस्फूर्त मानते थे। लेनिनवादी वे थे जो मानते थे क्रांति को संगठित( पार्टी बनाकर ) करना पड़ेगा। माओ वादी वे लोग थे जो खूनी क्रांति में यकीन रखते थे ( क्योंकि माओ जादोनांग का मानना था कि शक्ति बंदूक की नली से निकलती है)...भारत के नक्सली अपने को माओ व लेनिनवादी दोनों बताते हैं क्योंकि यहाँ पार्टी व सैन्य दल दोनों का गठन होता है। सोशलिस्ट संवैधानिक व्यवस्था के तहत संसाधनों के समान बंटवारे पर जोर देते हैं।भारत में लोहिया , नरेन्द्र देव इसके पुरोधा थे हालाँकि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान ही नेहरू व सुभाष के साथ जेपी , अच्युत पटवर्द्धन आदि लोग समाजवादी खेमे से जुड़े थे। इनको पहले वाम में नहीं गिना जाता था पर जब लिबरल्स को वाम कहा जाने लगा व बीच का रास्ता ही नही बचा ( मध्यम मार्ग इसलिए नही बचा क्योंकि दक्षिण पंथियों ने अपने से अलग पहचान का दावा करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपना शत्रु व वामपंथी घोषित कर दिया था)। धीरे धीरे जैसे दुनिया भर में दक्षिण पंथ का बोलबाला शुरू हुआ वाम पक्ष को शत्रु ही नही उनको राक्षस , देशद्रोही इत्यादि घोषित कर देने के लिए पूरी शक्ति झोंक दी गयी। ताकि अखबार , मीडिया व तंत्र पूंजीवादी ताकतों के नियंत्रण में थे इसलिए घृणा व झूठ का यह अभियान बहुत जोर पकड़ चुका है। जबकि असलियत बिल्कुल अलग है।

आज कल अडानी अम्बानी के कालेधन से मजबूत ट्रोलर्स , व्हाट्सएप आर्मी वाली बीजेपी आई टी सेल वाम पंथ के पीछे पड़ी है, जैसे कि मनुष्य मनुष्य की समानता , विषमता का नाश वगैरह अपराध हो ।
राजनीति में उस पक्ष या विचारधारा को कहते हैं जो समाज को बदलकर उसमें अधिक आर्थिक और जातीय समानता लाना चाहते हैं। इस विचारधारा में समाज के उन लोगों के लिए सहानुभूति जतलाई जाती है जो किसी भी कारण से अन्य लोगों की तुलना में पिछड़ गए हों या शक्तिहीन हों।

दुनिया मे जब से वामपक्ष उभर कर सामने आया है तबसे सबसे पढ़े लिखे , रचनात्मक लोग इससे जुड़ते रहे हैं क्योंकि यह रूढिवाद व यथास्थिति वाद का विरोधी था। ग्राम्शी , टेरी ईगलटन , बर्टोल्ड ब्रेख्त , डीपी चटोपाध्याय, डी डी कोसंबी , डेविड हार्वे ,जार्ज लुकाच , रोजा लक्जेमबर्ग, जॉर्जी फ़्लेखनोव, रेमंड विलियम्स, नॉम चोम्स्की , जीन स्टीनबेक, एल्डोस हक्सले, अल्बर्ट आइंस्टीन, हॉवर्ड जिन, थॉमस पिकेटी, एमिल जोला, चार्ल्स डिकिन्स, एच जी वेल्स , गैब्रियल गार्शिया मार्केज, एम एन रॉय , रामविलास शर्मा , मुक्तिबोध जैसे हज़ारों महान लेखक, फ़िल्मकार , इतिहासकार आदि इस विचारधारा से जुड़े रहे हैं। यहाँ तक कि भगत सिंह , चंद्रशेखर आज़ाद , सुभाष चन्द्र बोस , जवाहर लाल नेहरू जैसे अपनी पीढ़ी के सबसे सक्षम लोग वामपंथी थे। आज़ादी के बाद भी कलमकारों व रचनात्मक लोगों की सबसे बड़ी संख्या वामपंथी लोगों की थी।

मैं यकीन के साथ चैलेंज देकर कहता हूँ कि दक्षिण पंथी कट्टरपंथियों ने ही भारत का विभाजन किया चाहे वो मुसंघी हों या हिंदू कट्टरपंथी । आज़ादी के बाद भी ये लगातार भारत को खोखला करने का काम कर रहे हैं। ये लोग दुनिया में भारत की छवि को बिगाड़ने का काम कर रहे हैं। वामपंथी भी अपने मकसद से भटक गए हैं , ज़मीन पर काम करने की ताकत इन्होंने गँवा दी है, इसलिए मध्यम मार्गी लिबरल्स ही अब दक्षिण पंथियों के मुख्य विपक्षी रह गए हैं। दक्षिण पंथी खुले तौर पर विषमता , धार्मिक-जातीय-लैंगिक ऊंच नीच को मान्यता देते हैं व धार्मिक, क्षेत्रीय , भाषायी , धार्मिक अलगाव की गन्दी राजनीति करते हैं। लिबरल्स का यह कर्तव्य है कि वे वामपक्ष द्वारा छोड़े गए निर्वात को भरें व दक्षिणपंथी घृणा अभियान का समुचित प्रति उत्तर दें और बताएँ कि दक्षिण पंथ आम लोगों व प्रगतिशीलता का शत्रु कैसे बन गया है। यह हर उदार भारतीय का कर्त्तव्य है कि वह हर तरह के कट्टरपंथी विचार को बेनकाब करे और हर तरह के आर्थिक , राजनीतिक, सामाजिक , सांस्कृतिक , धार्मिक सच को सामने लाये जो दक्षिणपंथी प्रोपेगैंडा के शोर में दब रहा है।

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