Sunday 25 May 2014

क्या संसद के अलावे संघर्ष का और कोई मैदान नहीं है?




प्रस्तुत शीर्षक संसदीय साम्यवाद विरोधी एक कामरेड के एक  फेसबुक नोट  की एक पंक्ति को बनाया गया है। परंतु कोई नई बात न कह कर अपने पूर्व प्रकाशित एक लेख को ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूँ क्योंकि यह आज भी मेरे दृष्टिकोण से बल्कि और ज़्यादा ही उपयुक्त हो गया है :

'क्रांतिस्वर'


Thursday, April 5, 2012

संसदीय लोकतन्त्र और साम्यवाद




कल 06 अप्रैल - दंतेवाड़ा त्रासदी की वर्षगांठ के अवसर पर हम आज  यह बताना चाहते हैं कि 'हिंसा' को छोड़ कर अपने संसदीय लोकतन्त्र के माध्यम से ही हम 'मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध' बनाने हेतु प्रयास करके सफल हो सकते हैं। दो वर्ष पूर्व इस त्रासदी पर मैंने समाधान हेतु विचार प्रस्तुत किए थे ,पहले उनमे से कुछ का अवलोकन करें जो इस प्रकार हैं-

दंतेवाडा आदि नक्सली आन्दोलनों का समाधान हो सकता है सर्वप्रथम दोनों और की हिंसा को विराम देना होगा फिर वास्तविक धर्म अथार्त सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रहम्चर्य का वस्तुतः पालन करना होगा.

सत्य-सत्य यह है कि गरीब मजदूर-किसान का शोषण व्यापारी,उद्योगपति,साम्राज्यवादी सब मिलकर कर रहे हैं.यह शोषण अविलम्ब समाप्त किया जाये.
अहिंसा-अहिंसा मनसा,वाचा,कर्मणा होनी चाहिए.शक्तिशाली व सम्रद्द वर्ग तत्काल प्रभाव से गरीब किसान-मजदूर का शोषण और उत्पीडन बंद करें.
अस्तेय-अस्तेय अथार्त चोरी न करना,गरीबों के हकों पर डाका डालना व उन के निमित्त सहयोग –निधियों को चुराया जाना तत्काल  प्रभाव से बंद किया जाये.कर-अपबंचना समाप्त की जाये.
 अपरिग्रह-जमाखोरों,सटोरियों,जुअरियों,हवाला व्यापारियों,पर तत्काल प्रभाव से लगाम कसी जाये और बाज़ार में मूल्यों को उचित स्तर पर आने दिया जाये.कहीं नोटों को बोरों में भर कर रखने कि भी जगह नहीं है तो अधिकांश गरीब जनता भूख से त्राहि त्राहि कर रही है इस विषमता को तत्काल दूर किया जाये.  
ब्रह्मचर्य -धन का असमान और अन्यायी वितरण ब्रहाम्चर्य व्यवस्था को खोखला कर रहा हैऔर इंदिरा नगर लखनऊ के कल्याण अपार्टमेन्ट जैसे अनैतिक व्यवहारों को प्रचलित कर रहा है.अतः आर्थिक विषमता को अविलम्ब दूर किया जाये.चूँकि हम देखते हैं कि व्यवहार में धर्मं का कहीं भी पालन नहीं किया जा रहा है इसीलिए तो आन्दोलनों का बोल बाला हो रहा है. 
दंतेवाडा त्रासदी खेदजनक है किन्तु इसकी प्रेरणा स्त्रोत वह सामाजिक दुर्व्यवस्था है जिसके तहत गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होता जा रहा है.कहाँ हैं धर्मं का पालन कराने वाले?पाखंड और ढोंग तो धर्मं नहीं है,बल्कि यह ढोंग और पाखण्ड का ही दुष्परिणाम है  कि शोषण और उत्पीडन की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं.जब क्रिया होगी तो प्रतिक्रिया होगी ही.
शुद्द रहे व्यवहार नहीं,अच्छे आचार नहीं.
इसीलिए तो आज ,सुखी कोई परिवार नहीं.


उत्तर प्रदेश और पंजाब के पिछले विधान सभा चुनावों मे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने बाम-पंथी मोर्चा बना कर चुनाव लड़े थे किन्तु जनता का समर्थन न मिल सका। अब पटना सम्मेलन के बाद यू पी मे सत्तारूढ़ सपा को लेकर तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास भाकपा द्वारा किया जा रहा है। संसदीय लोकतन्त्र मे ऐसे प्रयास ठीक हैं। परंतु बाम-पंथी और साम्यवादी सपनों का देश बनाने मे इन प्रयासों से कुछ भी भला न हो सकेगा,उल्टे साम्यवादी दल एवं बाम-पंथ भी बदनाम होगा जिससे अब तक बचा हुआ है। 

जातिगत,सांप्रदायिक आधार लेकर कारपोरेट जगत के सहारे से सत्तारूढ़ सपा व्यवहारिक सोच मे 'समाजवादी' नहीं है। 
न तो सपा डॉ लोहिया के आदर्शों पर ही चल रही है और न ही डॉ लोहिया के विचार साम्यवाद के लिए सहायक हैं जैसा कि सत्यनारायन ठाकुर साहब ने अपने लेखों की श्रंखला मे स्पष्ट किया था। उस पर मैंने यह टिप्पणी दी थी-

"सत्य नारायण ठाकुर साहब ने डा. लोहिया के विचारों के विरोधाभास को उजागर करते हुए तीन कड़ियों में विस्तार से बताया है उस पर ध्यान देने की पर्मावाश्यक्ता है.
वस्तुतः डा.लोहिया ने १९३० में 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी'की स्थापना १९२५ में स्थापित भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी'और इसके आंदोलन को विफल करने हेतु की थी.
स्वामी दयानंद के नेतृत्व में 'आर्य समाज'के माध्यम से देश की आजादी की जो मांग १८७५ में उठी थी उसे दबाने हेतु १८८५ में कांग्रेस की स्थापना रिटायर्ड आयी.सी.एस.श्री ह्यूम द्वारा वोमेश बेनर्जी की अध्यक्षता में हुयी थी जिसमें आर्य समाजियों ने घुस कर आजादी की मांग उठाना शुरू कर दिया था.बाद में कम्यूनिस्ट भी कांग्रेस में घुस कर ही स्वाधीनता आंदोलन चला रहे थे.
१९२० में स्थापित हिन्दू महासभा के विफल रहने पर १९२५ में आर.एस.एस. की स्थापना अंग्रेजों के समर्थन और प्रेरणा से हुयी जिसने आर्य समाज को दयानंद के बाद मुट्ठी में कर लिया तब स्वामी सहजानंद एवं गेंदा लाल दीक्षित सरीखे आर्य समाजी कम्यूनिस्ट आंदोलन में शामिल हो गए थे.
सी.एस. पी की वजह से जनता भ्रमित रही और क्रांतिकारी ही कम्यूनिस्ट हो सके.
डा.लोहिया ने अपनी पुस्तक'इतिहास चक्र'में साफ़ लिखा है 'साम्यवाद' और पूंजीवाद'सरीखा कोई भी वाद भारत के लिए उपयोगी नहीं है .
हम कम्यूनिस्ट जनता को यह नहीं समझाते थे -कम्यूनिज्म भारतीय अवधारणा है जिसे मैक्समूलर साहब की मार्फ़त महर्षि मार्क्स ने ग्रहण करके 'दास केपिटल'लिखा था.हमने धर्म को अधर्मियों के लिए खुला छोड़ दिया और कहते रहे-'मैन हेज क्रियेटेड गाड फार हिज मेंटल सिक्यूरिटी आनली'.हम जनता को यह नहीं समझा सके -जो शरीर को धारण करे वह धर्म है.नतीजा यह रहा जनता को भटका कर धर्म के नाम पर शोषण को मजबूत किया गया. डा.लोहिया भी रामायण मेला आदि शुरू कराकर जनता को जागृत करने के मार्ग में बाधक रहे.

आज यदि हम धर्म की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करके जनता को स्वामी दयानद,विवेकानंद,कबीर और कुछ हद तक गौतम बुद्ध का भी सहारा लेकर समझा सकें तो मार्क्सवाद को भारत में सफल कर सकते हैं जो यहीं सफल हो सकता है.यूरोपीय दर्शन जो रूस में लागू हुआ विफल हो चुका है.केवल और केवल भारतीय दर्शन ही मार्क्सवाद को उर्वर भूमि प्रदान करता है,यदि हम उसका लाभ उठा सकें तो जनता को राहत मिल सके.व्यक्तिगत स्तर पर मैं अपने 'क्रांतिस्वर' के  माध्यम से ऐसा ही कर रहा हूँ.परन्तु यदि सांगठनिक-तौर पर  किया जा सके तभी सफलता मिल सकती है।" 



हमारे कामरेड्स के बीच यह बड़ी गलतफहमी है कि धर्म कम्यूनिज़्म का विरोधी है। चूंकि वे पोंगा-पंथियों के प्रलाप को ही धर्म मानते हैं इसलिए ऐसा सोचते हैं। बात-बात मे चीन का उदाहरण देने वाले हमारे कामरेड्स बंधु इस समाचार पर गौर करके अमल करें तो लाभान्वित हो सकते हैं-


हिंदुस्तान,आगरा,23 फरवरी 2007

  'क्रांतिस्वर' ब्लाग के माध्यम से व्यक्तिगत-स्तर पर मै तो  'धर्म' की वास्तविक व्याख्या बार-बार समझाने का प्रयास करता रहूँगा तथा ढोंग-पाखंड का प्रबल विरोध करता रहूँगा किन्तु दुख और खेद के साथ कहना चाहता हूँ कि हमारे कामरेड साथी ही जो धर्म को सिरे से ही खारिज करते हैं अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन मे धर्म के नाम पर प्रदूषित पोंगा-पंथ का खूब अनुसरण करते है-मंदिर,मस्जिद और मजारों,चर्च और गुरुद्वारों  तक जाते हैं। जबकि मै केवल वैज्ञानिक 'हवन' ही करता हूँ और किसी भी प्रकार के  ढ़ोंगी स्थानो  पर जाने से परहेज करता हूँ। 


भारत मे लोकतान्त्रिक रूप से साम्यवादी -सत्ता स्थापित करने हेतु जनता को वास्तविक -वैज्ञानिक 'धर्म' से परिचय कराना ही होगा -आज नहीं तो कल। अन्यथा तीसरे-चौथे मोर्चे के नाम पर फिर वही लुटेरे राज करते रहेंगे।सी पी आई और सी पी एम के विलय के प्रयास भी हो रहे हैं केवल इतने मात्र से साम्यवादी विचार -धारा को 'हिन्दी क्षेत्र' मे समर्थन नहीं हासिल हो सकेगा। डॉ राम मनोहर लोहिया,राजर्षि पुरुषोत्तम दास  टंडन,सरदार पटेल,लाल बहादुर शास्त्री जी,चौ.चरण सिंह  आदि ऐसे ख्याति प्राप्त राष्ट्रीय नेता रहे हैं जिनहोने बड़े ही सुनियोजित ढंग से हिन्दी क्षेत्र मे साम्यवादी आंदोलन को कुचला और दबाया था। जब हम हिन्दी क्षेत्र मे साम्यवादी आंदोलन की पुनः प्रतिष्ठा करने का प्रयास करेंगे तो हमे जनता को यह भी समझाना पड़ेगा कि इन प्रसिद्ध नेताओ ने 'धर्म की गलत व्याख्या' को समर्थन देने के कारण साम्यवाद का विरोध किया था। ऐसा करने से ही हम जनता का समर्थन सत्ता हेतु प्राप्त कर सकेंगे। अन्यथा जनता अपनी मूलभूत समस्याओ का निराकरण साम्यवादियों से कराती रहेगी और चुनावो मे वोट जातीय और धार्मिक आधार पर देती रहेगी। आखिर क्या वजह है कि हम जनता को 'धर्म' के वास्तविक अर्थ समझा कर उसका ठोस समर्थन हासिल नहीं कर सकते?


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लखनऊ के एक साप्ताहिक अखबार ने इन विचारों को 2010 में प्रकाशित भी किया था और बाद में 'क्रांतिस्वर'ब्लाग पर भी दिया था। चूंकि मैं एक मामूली व्यक्ति हूँ इसलिए इन पर किसी ने कोई गौर नहीं किया किन्तु 2014 के परिणामों ने कम्यूनिज़्म-वामपंथ को जो अंजाम दिया उससे बचा जा सकता था यदि इस पर ध्यान दिया जाता या अब भी ध्यान दिया जाये तो आगे लाभ उठाया जा सकता है।  

Thursday 15 May 2014

Giriraj’s remark amounts to terrorising minorities:Sudhakar Reddy


https://www.facebook.com/cpofindia/photos/a.335629103138331.91488.120263388008238/749194791781758/?type=1&theater

Giriraj’s remark amounts to terrorising minorities: CPI

We will ask EC to serve notice on him, says Sudhakar Reddy
The Communist Party of India will write to the Election Commission, urging that it serve notice on Giriraj Singh, a BJP leader in Bihar, for his remark that those opposing Narendra Modi can go to Pakistan, party general secretary S. Sudhakar Reddy said on Sunday.
“This is nothing but terrorising the minorities, and all those who oppose Mr. Modi. Who is he to say that? We equally condemn [senior BJP leader] Nitin Gadkari, who shared the stage with Mr. Giriraj Singh, but did not condemn the statement. The EC should not permit him to address meetings.”
‘Gadkari should apologise’
Speaking to journalists before campaigning for the CPI candidate for Nagapattinam, Mr. Reddy also criticised Mr. Gadkari for his statement that casteism was in the blood of Biharis. “He should apologise and withdraw the statement.”
He said the BJP’s position on Article 370 only showed what would happen to the country’s unity if the party came to power.
Asked about the stability of the Left Front vis-à-vis the challenges the pre-poll alliances had thrown up to its unity, especially with the RSP breaking away from the LDF in Kerala, Mr. Reddy said it was sad that it happened; but he was hopeful that the RSP would return after the elections. “Yes, there are issues to be discussed and rectified within the Front after the elections. The RSP is still with us at the national level, and we are sure they will return to LDF after the elections.”
‘No increase in polling’
Dismissing the ‘Modi wave’ as a creation of the corporate media, Mr. Reddy said Bihar witnessed only 52 per cent polling, the usual percentage in the State. “The BJP claims to win 30 seats in Bihar. But had there been a Modi wave, there should have been at least a marginal increase in the polling percentage.”
On the AIADMK’s exit from the alliance with the Left, he said the decision could have been influenced by corporate interests.
Mr. Reddy said the elections would throw up a fractured mandate, but the Left alliance would emerge as the single biggest block, with bright prospects in Kerala and Manipur.
‘BJP will fall short of majority’
Thanjavur Staff Reporter writes
CPI State secretary D. Pandian said the Congress would be defeated in the Lok Sabha polls. Though the BJP would emerge as the single largest party, it would not have the required numbers to form the government.
“In such a situation, there is a possibility of a non-Congress and non-BJP government at the Centre, and the Left parties are working towards forming a secular government,” he said.
He criticised the DMK for fielding the former Union Ministers, A. Raja and Dayanidhi Maran, who were facing corruption cases. The AIADMK and the DMK should spell out their stand on the Common Civil Code, the special status to Kashmir and construction of a Ram temple, he said.

Thursday 1 May 2014

पहली मई का पैगाम काम के घण्टे कम कराने की ऐतिहासिक अनिवार्यता ---जगदीश चंदर/डॉ शिखा सिंह
















पहली मई का पैगाम
काम के घण्टे कम कराने की ऐतिहासिक अनिवार्यता :

याद करें! पहली मर्इ 1886 का महान ऐतिहासिक बलिदानी दिवस। अमेरिका के शिकागो शहर की सड़कें जब लाखों मजदूरों के खून से रक्त रंजित हो उठी थीं। ''आठ घण्टे काम, आठ घण्टे आराम, और आठ घण्टे मनोरंजन' की राजनीतिक ऐतिहासिक मजदूर वर्गीय मांग के इस आन्दोलन ने पूंजीपति वर्ग को आठ घण्टे का कार्य दिवस लागू करने को मजबूर कर दिया था। इससे पूर्व पूंजीवाद के विकास की प्रारमिभक अवस्था में पूंजीपति वर्ग द्वारा मजदूरों से 16-18 घण्टे तक काम करवाया जाता था। इन अमानवीय सिथतियों के विरुद्ध पैदा हो रहे असन्तोष व आक्रोश के संघात में मजदूरों ने काम के घण्टे कम कराने की अपनी वर्गीय मांग को लेकर संघर्ष प्रारम्भ किया। 19 वीं सदी मे प्रारम्भ में अमेरिका के मजदूर इसके खिलाफ आवाज उठाने लगे। 1820 से 1840 तक काम के घण्टे कम कराने के लिए लगातार हड़तालें हुर्इं। श्रम दिवस 10 घण्टे करने की मांग की जाने लगी। अमेरिकी सरकार को 1837 के आर्थिक संकट के राजनीतिक संघात में 10 घण्टे का श्रम दिवस लागू करना पड़ा। किन्तु कुछ ही स्थानों पर लागू होने के कारण पुन: मजदूर आन्दोलन 10 घण्टे कार्य दिवस की जगह 8 घण्टे का कार्य दिवस की मांग के साथ तेज होने लगा। यह आन्दोलन अमेरिका तक ही सीमित न रहकर उन सभी देशों में फैल गया जहां पूंजीवाद असितत्व में आ चुका था।

इसी क्रम में अमेरिका में 1866 में 20 अगस्त को 60 मजदूर टे्रडयूनियनों के प्रतिनिधियों ने बालिटक मोर में एकति्रत होकर नेशनल लेबर यूनियन गठित की और प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय के नेताओं माक्र्स व एंगेल्स के साथ मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयासों में लग गये। अपने स्थापना सम्मेलन में नेशनल लेबर यूनियन ने एक प्रस्ताव पास किया कि '' इस देश के मजदूर वर्ग को पूंजीपतियों की दासता से मुक्त कराने के लिए इस समय का प्रथम और प्रधान काम ऐसा कानून पास कराना है, जिससे अमेरिका के सभी अंग राज्यों में आठ घण्टे काम का समय हो। इस महान लक्ष्य को पूरा करने के लिए हम सारी शकित लगाने की शपथ लेते हैं। 1869 में ही नेशनल लेबर यूनियन ने अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर आन्दोलन के साथ सहयोग करने का प्रस्ताव किया। गौरतलब है कि सितम्बर 1866 में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय की जेनेवा कांग्रेस में ही पारित प्रस्ताव में कहा था कि काम का समय कानून के जरिये सीमाबद्ध करना एक प्राथमिक अवस्था है, इसके बिना मजदूर वर्ग की उन्नति और मुकित की बाद वाली सारी कोशिशें निशिचत ही विफल होंगी।
वहीं देखते-देखते आठ घण्टे काम, आठ घण्टे मनोरंजन व आठ घण्टे आराम का मजदूर वर्गीय आन्दोलन एटलांटिक महासागर से प्रशांत महासागर व न्यू इंग्लैण्ड से कैलिफोर्निया तक फैल गया। द्वितीय अन्तर्राष्ट्रीय की प्रथम पेरिस कांग्रेस में पहली मर्इ 1886 को विशेष दिवस मनाने का फैसला लिया गया। जबकि इससे पूर्व अमेरिका के फेडरेशन आफ लेबर ने सन 1884 के 7 अक्टूबर को एक प्रस्ताव पासकर 1886 की पहली मर्इ से 8 घण्टे काम का दिन की वैधता मानने का प्रस्ताव पास किया था और वहीं मजदूरों की शहादत के साथ पहली मर्इ 1886 को अमेरिका के शिकागो शहर में जिसका इन्कलाबी इतिहास रचा गया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष पहली मर्इ को मजदूर दिवस के रूप में मनाने की परम्परा चल पड़ी। लेकिन इस दिन को तमाम कथित कम्युनिस्ट पार्टियां, मजदूरों का हितैषी बताने के नाम पर मजदूरों की एकता को भंग करने वाले ट्रेडयूनियन सिर्फ एक जश्न मनाकर इसके इतिहास व कार्यभार पर पर्दा डालने का काम करते चले आ रहे हैं।
आज 21 वीं सदी के द्वितीय दशक काल में आठ घण्टे के कार्य दिवस को लागू हुए आज 127 वर्ष होने जा रहे हैं। इन वर्षों में पूंजीवाद ने अपना राष्ट्रीय रूप त्याग कर अन्तर्राष्ट्रीय यानि साम्राज्यवादी रूप ग्रहण किया। जिसका विश्लेषण मूल्यांकन कर महान माक्र्सवादी लेनिन ने 20 वीं सदी के प्रथम दशक काल में ही कहा था राष्ट्रीय पूंजीवाद अब विकसित होकर साम्राज्यवादी अवस्था में पहुंचकर विश्व पूंजीवाद, मरणोन्मुख पूंजीवाद हो गया है। वहीं इन वर्षों में मशीनों में तकनीकी विकास व विज्ञान के सहारे श्रम उत्पादकता में कर्इ गुना वृद्धि हुर्इ। परन्तु कानूनन कार्य दिवस आठ घण्टे का ही बना रहा। जिससे आवश्यक श्रम काल कम होता गया और अतिरिक्त श्रम काल लगातार बढ़ता गया। यानि मजदूर वर्ग का शोषण लगातार तीव्रतर से तीव्रतम होता गया। जबकि कार्य दिवस के सम्बन्ध में भयानक सचार्इ यह है कि अघोषित व अलिखित रूप से आज मजदूर 15 से 16-18 घण्टे तक काम करने को लगातार विवश किया जा रहा है और सरकारें कानूनी रूप से कार्य दिवस को 8 से 10-12 घण्टे करने का मंसूबा बना रही हैं। इन सबके फलस्वरूप एक तरफ आम श्रमिक जन वर्ग का शोषण, दोहन, दमन, उत्पीड़न में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है वहीं इसी के अनिवार्य परिणाम के रूप में उत्पन्न गरीबी, बेकारी, बेरोजगारी, मंहगार्इ मुद्रास्फीति, भ्रष्टाचार, अराजकता, असमानता अभावग्रस्तता, सरीखी समस्याएं भी विकराल रूप धारण करती जा रही हैं। इनके बीच श्रमिक जन-वर्ग घुट-घुटकर जीने को विवश है। इसी का परिणाम है कि कहीं किसान सपरिवार आत्महत्या कर रहे हैं कहीं मजदूर। कहीं बरोजगारी, बेकारी का दंश झेलता युवा आत्महत्या का शिकार हो रहा है। (साभार : कार्ल मार्क्स )
- See more at: http://www.sangharshsamvad.org/2013/05/blog-post.html#sthash.CvXno1lP.dpuf

Jagdish Chander दुनिया के मज़दूरों को लाल सलाम ? दुनिया के मजदूरों एक हो ? ....................................................................................................................................... तुम्हारे पास खोने के लिए केवल जंजीरें हैं , और पाने के लिए सारा संसार है ???............................................................................................................................... मजदूरों के काम के घंटे कम करने के लिए अमेरिका के शिकागो शहर में मजदूरों का संघर्ष ???

अमेरिका के शिकागो शहर की सड़कें जब लाखों मजदूरों के खून से रक्त रंजित हो उठी थीं । इन अमानवीय सिथतियों के विरुद्ध पैदा हो रहे असन्तोष व आक्रोश की परिस्थितियों में मजदूरों ने काम के घण्टे कम कराने की अपनी वर्गीय मांग को लेकर संघर्ष प्रारम्भ किया। अमेरिकी सरकार को 1837 के आर्थिक संकट के राजनीतिक परिप्रेक्ष में दुनिया के इतिहास में पहली बार १६ से 18 घंटे काम के बजाय काम के घंटे कम करते हुए अमेरिकी सरकार को १० घण्टे का श्रम दिवस लागू करना पड़ा । इस देश के मजदूर वर्ग को पूंजीपतियों की दासता से मुक्त कराने के लिए, दुनिया में उस समय का यह प्रथम और प्रमुख ऐसा , काम (कार्य) के घंटे कम करने का पहला कानून पास कराना था ??