Saturday 20 October 2018

सर्वसत्ताग्राही अराजक गिरोह बन चुके हैं आरएसएस और भाजपा ------ डा॰ गिरीश



हाथरस में दशहरे के दिन आरएसएस के शस्त्र पूजन कार्यक्रम में आग्नेयास्त्रों से हुयी फायरिंग में प्रेस फोटोग्राफर के गंभीर रूप से और फायरिंग करने वाले विधायक पुत्र के मामूली रूप से घायल होने से हाथरस ही नहीं देश के तमाम सामाजिक, राजनैतिक हल्कों और मीडियाकर्मियों के बीच गहरी बहस छिड़ गई है।

ज्ञातव्य हो कि दशहरे के दिन संघ के लोग हर साल शस्त्र पूजन करते हैं जिसमें भाजपाई भी बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं। हाथरस में यह आयोजन स्थानीय श्री बागला इंटर कालेज में किया गया। इस बार केन्द्र में और उत्तर प्रदेश में सत्ता में होने का नशा सिर पर चढ़ कर बोल रहा था तो संघी और भाजपाइयों ने लुत्फ उठाने को एक से बढ़ कर एक आला हथियारों से फायरिंग शुरू कर दी।

इसी बीच फायरिंग कर रहे हाथरस अनुसूचित विधानसभा क्षेत्र के विधायक ने अपनी रायफल अपने बेटे को थमा दी और फिर विधायक पुत्र ने हथियार पर हाथ आजमाना शुरू कर दिया। इस बीच अनाड़ीपन से चलायी जारही रायफल की गोली उलटी चल गयी फलतः रायफल की मैगजीन फट गयी। परिणामस्वरूप मैगजीन का एक बड़ा टुकड़ा शस्त्र प्रदर्शन का कवरेज कर रहे प्रेस फोटोग्राफर की गर्दन में जा धंसा और वह गंभीर रूप से घायल होगया। विधायक पुत्र के भी खरौंचे लगी हैं।

घायल फोटोग्राफर को अलीगढ़ रेफर किया गया जहां आपरेशन के बाद उसकी हालत में सुधार होरहा है। विधायकपुत्र घर पर ही आराम फरमा रहे हैं।

सामान्य रूप से यह कानून व्यवस्था का मामला दिखाई देता है। कालेज के प्रधानाचार्य द्वारा दिये गए बयान के अनुसार  संघ के स्थानीय प्रमुख ने उनसे सुबह कुछ घंटे दशहरा मनाने को कालेज परिसर में जगह मांगी थी, शस्त्र संचालन के लिए नहीं। स्थानीय प्रशासन ने भी कहा है कि कार्यक्रम की अनुमति नहीं लीगयी थी। अब सवाल उठता है कि बिना अनुमति किये जारहे आयोजन में संगीन आग्नेयास्त्र लिये लोग एकत्रित होते रहे, सत्ता के घमंड में चूर संघी और भाजपाई फायरिंग करते रहे लेकिन प्रशासन ने उधर से आँखें फेरे रखीं। जबकि हर्ष फायरिंग पूरी तरह से प्रतिबंधित है और इस प्रतिबंध को अमल में लाने का दायित्व शासक दल और उसके मातहत प्रशासन पर है।  

इतना ही नहीं कई घंटों तक पुलिस- प्रशासन ने घटना को नजरंदाज किया और कोई तहरीर न होने का बहाना बनाते हुये एफ॰ आई॰ आर॰ तक दर्ज नहीं की। बाद में राजनैतिक और पत्रकारिक हलकों में कड़ी प्रतिक्रिया को देखते हुये तथा अपने को औरों से अलग कहने वाली पार्टी के विधायक विरोधी खेमे के सक्रिय होने के बाद पुलिस को मजबूरन अपनी ओर से एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। सभी फायरिंग करने वालों को चिन्हित कर कार्यवाही होगी या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा। जख्मी मीडिया कर्मी को पर्याप्त मुआबजा देने की मांग भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सहित कई स्थानीय संगठनों ने की है।

सवाल यह है कि क्या आरएसएस एक संविधान, न्यायप्रणाली और लोकतान्त्रिक व्यवस्था का विरोधी संगठन नहीं बन चुका है। दशहरे पर किसी व्यक्ति या परिवार द्वारा शस्त्र पूजन की परंपरा रही है। लेकिन आरएसएस इसे अपने घ्रणित उद्देश्यों के लिये स्तेमाल करता है। कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखा कर पूजन के नाम पर शस्त्र प्रदर्शन और परेड निकालने वाले संघ ने आजादी के बाद हुये कई युद्धों के लिये अपनी निजी सेनाओं को भेजने का आफ़र क्या कभी सरकार को दिया? नहीं न। दरअसल उसका शस्त्र पूजन और पथ संचलन अल्पसंख्यकों, दलितों और अन्य कमजोरों में दहशत पैदा करने का माध्यम है, राष्ट्र रक्षा का नहीं।

आज संघ गिरोह सबरीमाला में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की धज्जियां बिखेर कर महिलाओं के मंदिर प्रवेश को रोकने वाली दकियानूस और कट्टरपंथी ताकतों की अगुवाई कर रहा है। 6 दिसंबर 19992 में इसी गिरोह ने राष्ट्रीय एकता परिषद और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को ठेंगा दिखा कर बाबरी ढांचे का ध्वंस किया था। मामले के सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन होने के बावजूद वे 2019 में हर हाल में मंदिर निर्माण की घोषणायेँ कर रहे हैं। वोट और सत्ता के लिये वे कानून हाथ में लेने, संविधान और सर्वोच्च न्यायालय की प्रभुता को पैरों तले रौंदने से न वे पहले कभी चुके हैं न आगे चूकने वाले हैं। सभी लोकतान्त्रिक और लोकहितकारी ताकतों को यह साफ तौर पर समझना चाहिए।

प्राक्रतिक आपदाओं के समय किसी सुरक्षित से स्थान पर राहत कार्य करते हुये फोटो खिंचवा कर वाहवाही लूटना इनका एक और प्रमुख शगल है। हाल ही में केरल में आयी महाविपत्ति के बीच राहत कार्य में जुटे भाकपा के एक मंत्री की फोटो वायरल कर संघियों ने दाबा ठोका कि उसके लोग राहत कार्य में जुटे हैं। किसी कमजोर की मदद करते, किसी बलात्कारी या हत्यारे का सामाजिक बहिष्कार करते, किसी कर्ज में डूबे किसान की कर्ज से मुक्ति में मदद करते, किसी नौकरी से हठाए गये अथवा बेरोजगार युवक को नौकरी दिलवाते अथवा भारतीय संसक्रति के उदार पक्षों को उद्घाटित करते इस कथित सामाजिक- सान्स्क्रतिक संगठन को देखा नहीं गया। अलबत्ता इसके उलट तमाम कारगुजारियों में इसे हर रोज लिप्त पाया जाता है। मोब लिंचिंग के हर मामले में संघ गिरोह लिप्त पाया गया है।

व्यवस्था, लोकतन्त्र, संविधान और न्याय प्रणाली के लिये चुनौती बन चुके संघ परिवार को सामाजिक और कानूनी तौर पर नियंत्रित करने की जरूरत है। सभी लोकतान्त्रिक ताकतों को इस हकीकत को समझना चाहिये। इन सभी शक्तियों के सामूहिक और निजी प्रयासों से ही यह संभव है। कांग्रेस और मध्यमार्गी दलों को समझना होगा कि संघ के प्रति उनके ढुलमुल द्रष्टिकोण से देश और उसकी लोकतान्त्रिक प्रणाली को भारी हानि उठानी पड़ सकती है।

डा॰ गिरीश

Saturday 6 October 2018

एक थीं अच्छी मौसी : कामरेड प्रेमलता तिवारी ------ रीना सैटिन

 कामरेड प्रेमलता तिवारी के शताब्दी अवसर पर उनकी सुयोग्य भांजी कामरेड रीना सैटिन द्वारा भाव - पूर्ण स्मरण ...............................................................
दो किस्से : 
एक थीं अच्छी मौसी ( अच्छी इसलिए कि बच्चों को सारी मस्तियों  की छूट यही दिलाती थीं ) ॰॰
आज होतीं तो सौ साल की होतीं ॰॰
पर अपने जीवन में कई सौ साल जी गईं ॰॰

मेरे परिवार में आधे क्रांतिकारी थे, आधे नरम दल के ॰॰
प्रेमा मौसी दोनों थीं ॰॰

लंबा लिखना - पढ्ना  मुश्किल होगा तो मेरी माँ के सुनाये दो किस्से पेश हैं ॰॰

1 घर का : 
घर , जो नरम और गरम दलों के स्वतन्त्रता सेनानियों का गढ़ था, के बाहर पुलिस आई थी ॰॰
पुलिस को किसी तरह रोक कर सभी मौजूद लोग - अंदर रखे पोस्टर्स्स, पैम्फलेट्स और कुछ किताबें नष्ट करने में लग गए, कि पुलिस के हाथ न लग जाएँ ॰॰
सब फाड़ा जा रहा था , जलाया जा रहा था ॰॰
पूरा नष्ट करना संभव न देख , प्रेमा मौसी ने बहुत सा सामान शरीर पर लपेटा और दूसरी मंजिल से पीछे की गली में कूद गईं ॰॰
रानी लक्ष्मी बाई तो घोड़े पर सवार होकर कूदी थीं, यह खुद ही कूद गईं ॰॰

2 जेल का : 
जेल में बंद थीं - मेरी माँ भी वहीं थीं, और बहुत सी दूसरी महिला कामरेड्स भी वहीं थीं ॰॰
रात भर पोस्टर्स बनाए गए - और भोर होते ही जेल की दीवारों पर चिपकाए जाने लगे ॰॰
एक सिपाही आया और फाड़ने लगा ॰॰
इनहोने पकड़ा कालर , उसे फटका जमीन पर , छाती पर चढ़ बैठीं , और दे दना - दन ॰॰

जी , सजाएँ हर बार मिलीं - पर आजादी के दीवाने सजा की कब सोचते थे ? ॰॰

आजादी के बाद : 
आजाद भारत में सारी जिंदगी शिक्षिका रहीं, अपने स्कूल में भी और निजी जीवन में भी ॰॰

हम सब के चरित्र - केरेक्टर को बनाने में , और हमें न्याय के लिए डट कर खड़े होना सिखाने में उनकी भी बहुत बड़ी भूमिका रही ॰॰

आँखें नाम हैं, पर होठों पर मुस्कराहट है॰॰
अच्छी मौसी को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली ॰॰

( देवनागरी लिपिकरण का संदर्भ ) : 
https://www.facebook.com/reena.satin/posts/10215692606962023  




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सभी फोटो सौजन्य से : आलोक तिवारी 



Reena Satin 
06-10-2018 
2 Qisse
Ek theen Achchhee Mausee (achchhee is liye keh bachchon ko saaree mastiyon kee chhoot yahee dilaatee theen)..
Aaj hoteen to 100 saal kee hoteen..
Par apne jeevan mein kayee 100 saal jee gayeen..

Mere parivaar mein aadhe kraantikaaree the, aadhe naram dal ke..
Prema Mausee donon theen..

Lamba likha padhna mushkil hoga to meree maan ke sunaaye huye 2 qisse pesh hain..

1 Ghar, jo Naram aur Garam Dalon ke Swatantrata Senaanion ka gadh tha, ke baahar police aayee thee..
Police ko kisee tarah rok kar, sabhee maujood log - andar rakhe posters, pamphlets aur kuchh kitaaben nasht karne mein lag gaye, keh police ke haath na lag jaayen..
Sab phaada ja raha tha, jalaaya ja raha tha..
Poora nasht karna sambhav na dekh, Prema Mausee ne bahut sa material apne shareer par lapeta aur doosree manzil se peechhe kee galee mein kood gayeen.. 
Rani Lakshmi Bai to ghode par savaar ho kar koodee theen, yeh khud hee kood gayeen..

2 Jail mein band theen - meree maan bhee waheen theen, aur bahut sii doosree mahila comrades bhee waheen theen..
Raat bhar posters banaaye gaye - aur bhor hote hee jail kee deevaaron par chipkaaye jaane lage..
Ek sipaahee aaya aur phaadne laga..
Inhone pakda collar, usay patka zameen par, chhaatee par chadh baitheen, aur de dana dan..

Jee, sazaayen har baar mileen - par aazaadee ke deewaane saza kee kab sochte the..

Aazaad Bharat mein saaree zindagee shikshika raheen, apne school mein bhee aur nijee jeevan mein bhee..
Hum sab ke character ko banaane mein, aur humein nyaaye ke liye dat kar khade hona sikhaane mein inkee bhee bahut badee bhoomika rahee..

Aankhen nam hain, par hothon par muskuraahat hai..
Achchhee Mausee ko ashrupoorna shraddhaanjali..
https://www.facebook.com/reena.satin/posts/10215692606962023 
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लेखिका ------

कामरेड रीना सैटिन 1967 की संविद सरकार में उत्तर - प्रदेश के गृह राज्यमंत्री कामरेड रुस्तम सैटिन साहब की सुपुत्री हैं । आपकी मौसी  कामरेड प्रेमलता तिवारी एवं मौसा जी कामरेड हरीश तिवारी तथा आपकी माताजी कामरेड मनोरमा सैटिन एवं एक अन्य मौसी कामरेड कृष्णा  श्रीवास्तव  एवं मौसजी  बालकृष्ण श्रीवास्तव सभी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। 

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04 सितंबर 2014 को कामरेड हरीश तिवारी के जन्म शताब्दी वर्ष का एक समारोह राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह,क़ैसर बाग, लखनऊ में उनकी पुत्री अल्का तिवारी मिश्रा द्वारा आयोजित किया गया था जिसमें बिजली कर्मचारी यूनियन का भी सहयोग रहा था और इसमें कामरेड ए बी वर्द्धन की विशेष उपस्थिती रही थी।

इस अवसर पर एक पुस्तक ' मजदूर आंदोलन के सजग प्रहरी : कामरेड हरीश तिवारी ' जिसका सम्पादन उनके पुत्री - पुत्र द्वारा किया गया था जारी की गई थी। उस पुस्तक में यदा - कदा कामरेड प्रेमलता तिवारी का भी उल्लेख था।

 उस पुस्तक में दिये विवरण के अनुसार कामरेड प्रेमलता तिवारी का जन्म 06-10-1918 और मृत्यु 27 दिसंबर 1997 को हुई थी। उनका विवाह कामरेड हरीश तिवारी से 02 मई 1954 को बनारस में हुआ था ।बी एच यू से एम ए , हिन्दी थीं। काशी अनाथालय में वार्डन होते हुये भी दाइयों की हड़ताल में सक्रिय भागीदारी के कारण पद- त्याग करना पड़ा था।
दयानंद विद्या मंदिर, लखनऊ में तीन वर्ष प्रभारी का कार्य किया। बालिका विद्यालय इंटर कालेज, मोतीनगर, लखनऊ के हाई स्कूल खंड में कार्यरत रह कर 1982 में वहीं से अवकाश प्राप्त किया।
माध्यमिक शिक्षक संघ, महिला फेडरेशन की सक्रिय सदस्य रहीं और हड़ताल के समय अध्यापिकाओं का नेतृत्व किया। सक्रिय पार्टी कार्यकर्ता रहीं , देश की आजादी की लड़ाई में उनके योगदान की प्रमुख दो बातों का जिक्र  उनकी भांजी रीना जी ने अपने विवरण में भी किया है , वह बचपन से ही  ' वानर सेना '  का अनिवार्य अंग रही थीं।
पुस्तक के पृष्ठ- 344 पर प्रकाशित अपने संस्मरण में कामरेड सूरज लाल, पूर्व प्रांतीय कोषाध्यक्ष, उ प्र बिजली कर्मचारी संघ ने लिखा है कि, कामरेड हरीश तिवारी के पूरे परिवार का जीवन निर्वाह उनकी आदर्श पत्नी प्रेमा जी की आय पर ही निर्भर था। 

उसी पुस्तक के पृष्ठ 452 -453 पर कामरेड प्रेमलता तिवारी का एक आत्म - कथ्य भी प्रकाशित है जिसकी स्कैन कापी प्रस्तुत है ( इसे डबल क्लिक करके साफ पढ़ सकते हैं ) :


कामरेड हरीश तिवारी व कामरेड प्रेमलता तिवारी का पार्टी के प्रति समर्पण व त्याग सराहनीय ही नहीं वरन अनुकरणीय भी है लेकिन प्रदेश पार्टी नेतृत्व का इस ओर ध्यान नहीं है कि वह अपने पूर्वजों का स्मरण कर सके, न ही पार्टी का ध्यान युवा वर्ग को आकर्षित करने की ओर है एक डिफ़ेक्टो कामरेड निर्वाचित डिजूरे कामरेड्स को निर्देशित करते रहते हैं जिस कारण उत्तर प्रदेश में पार्टी का विस्तार संभव ही नहीं है। तभी तो कामरेड हरीश तिवारी का शताब्दी  समारोह उनके पुत्र- पुत्री को यूनियन के सहयोग से आयोजित करना पड़ता है और कामरेड प्रेमलता तिवारी का स्मरण उनकी भांजी को करना पड़ता है। यदि भाकपा को देश में अपनी भूमिका कायम करनी है तो यू पी में इसके नेतृत्व को अपने पूर्वजों  का अनुकरणीय स्मरण प्रस्तुत करना तथा आज के नौजवानों को अपनी ओर आकर्षित करना होगा न कि, लकीर का फकीर बन कर भाग्य के भरोसे बैठे रहना होगा। यह याद रखना होगा कि सोते हुये शेर के मुंह में हिरण नहीं घुसा करते।

------ विजय राजबली माथुर