Sunday 21 July 2019

गाँधी जैसी सादगी और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण के धनी कामरेड इन्द्रजीत गुप्ता ------ राष्ट्रीय सहारा



भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के नेता कामरेड इन्द्रजीत गुप्त सिर्फ 1977-80 को छोड़कर 1960 से जीवनपर्यंत सांसद रहे। सबसे वरिष्ठ सांसद रहने के नाते वह तीन बार (1996, 1998, 1999) प्रोटेम स्पीकर बने और उन्होंने नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलायी। वह सीपीआई के राष्ट्रीय महासचिव रहे। वह आॅल इण्डिया ट्रेड यूनियन काॅग्रेस (ए॰आई॰टी॰यू॰सी॰) के महासचिव (1980-90) रहे। वल्र्ड फेडरेषन आॅफ ट्रेड यूनियनस के अध्यक्ष (1998) रहे और एचडी देवगौड़ा के मंत्रिमंडल में वह (1996-1998) गृहमंत्री रहे। उन्हे 1992 में 1 ‘‘आउट स्टैन्डिंग पार्लियामेंटेरियन" का सम्मान दिया गया। राष्ट्रपति के॰ आर॰ नारायणन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि वह गाँधी जी जैसी सादगी, लोकतांत्रिक दृष्टिकोण और मूल्यों के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। वह वेस्टर्न कोर्ट के दो कमरों के क्वार्टर में रहते रहे। टहलते हुए संसद चले जाते थे। गृहमंत्री बनने पर प्रोटोकाल के नाते उन्हें सरकारी गाड़ी से जाना पड़ा। फिर भी उन्होंने वे बहुत सी सुविधाएं नहीं ली थीं जो मंत्री रहते हुए उन्हें मिलनी थीं। वह हमेशा  लोगों को होने वाली असुविधाओं का ख्याल रखते थे। मंत्री रहते हुए भी वह एयरपोर्ट में टर्मिनल तक वायुसेवा की बस से जाते थे न कि अपनी गाड़ी से।

कामरेड इन्द्रजीत गुप्ता का जन्म 18 मार्च, 1919 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता सतीश  गुप्ता देश  के एकांडटेंट जनरल थे। इन्द्रजीत जी के दादा बिहारी लाल गुप्त, आईसीएस थे और बड़ौदा के दीवान थे। इन्द्रजीत गुप्ता की पढ़ाई शिमला, दिल्ली के सेंट स्टीफेंस व किंग्स काॅलेज और कैम्ब्रिज में हुई। इंगलैड में ही वह रजनी पाम दत्त के प्रभाव में आये और उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली।

 1938 में कोलकाता लौटने पर वह किसानों और मजदूरों के आंदोलन से जुड़ गये। आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया और इसके तहत अन्य वाम नेताओं के साथ या तो इन्द्रजीत गुप्त को भूमिगत होना पड़ा या गिरफ्तार। इन्द्रजीत गुप्त का देहांत 20 फरवरी, 2001 को 81 साल की उम्र में कैंसर से हुआ।
(साभार ' राष्ट्रीय सहारा ' )

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Saturday 20 July 2019

चुनाव न लड़ने से पार्टी का नाम ,पार्टी का ऑफिस और पार्टी के नेता बचेंगे, बस पार्टी नहीं बचेगी। ------पीयूष रंजन झा



Piyush Ranjan Jha
16 hrs (20-07-2019 )
सीपीआई के नवनिर्वाचित महासचिव कॉमरेड डी.राजा को अग्रिम बधाई। हालाँकि अभी औपचारिक घोषणा सीपीआई की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक की समाप्ति के बाद आज से २ दिन बाद होगी। यह कम्युनिस्ट पार्टी के लिए भी ऎतिहासिक क्षण होगा जब पार्टी पे आरोप लगती रही है कि कोई दलित अभी तक पार्टी के सर्वोच्य पद पर अभी तक नहीं पहुंच पाया था। पार्टी को बधाई।
कॉमरेड डी.राजा एक ऐसे समय में पार्टी की कमान संभालने जा रहे है जब पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यहाँ तक की सीपीआई पर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म होने का भी खतरा मंडरा रहा है। केरला जैसे राज्य को छोड़ दे तो किसी और राज्य में पार्टी की विधानमंडलों और लोकसभा में भी कोई निर्णायक भूमिका नहीं बची है। सांगठनिक तौर पर भी पार्टी क्षरण की ओर अग्रसर है। कॉमरेड डी.राजा के लिए इस वक़्त यह भूमिका ग्रहण करना काटों भरा ताज पहनने से कम नहीं है और अगर वे पार्टी को इससे उबार पाए तो निश्चित ही वे चैंपियन होंगे। नए नेतृत्व को एक दिशाहीन पार्टी में नयी ऊर्जा ,जूनून और लक्ष्य निर्धारण करके आगे बढ़ने की गंभीर चुनौती है। 
पार्टी के पिछले महाधिवेशन में कन्हैया कुमार ने जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया को कन्फ्यूज्ड पार्टी ऑफ़ इंडिया कहा तब बड़ा बवाल मचा था. लेकिन मैं समझता हूँ की उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा था। आज लगभग हर राज्यों में पार्टी का संगठन होने के बावजूद पार्टी अपने दम पर हर सीट पर कैंडिडेट नहीं उतार पाती है। राष्ट्रीय नेता ऑफिसों में बैठकर, देश भर में घूम घूम कर भाषण देकर और पार्टी की मीटिंग अटेंड करके आत्ममुग्ध रहते है,और इसी का अनुसरण राज्यों के नेता भी करते है। और जब इन नेताओ से पार्टी की चुनावी हार पर बात कीजिये तब ये कहेंगे की " हम चुनावी (संसदीय ) राजनीति के लिए नहीं बने है ".यह जवाब निश्चित ही "संशोधनवादी होने " के आरोप का प्रतिउत्तर लगता है. यही से साबित होता है की पार्टी पूरी तरह कन्फ्यूज्ड है। क्योँकि इस जवाब से फिर यह सवाल भी उठता है कि तब आप चुनाव लड़ते ही क्योँ है? क्या सिर्फ इसलिए की आपकी पार्टी का राष्ट्रीय दर्जा बचा रहे और आप आराम से नेता बने रहे। लेकिन उनका क्या जो जमीन पर हर दुःख दर्द जुल्म सहकर पार्टी का झंडा उठाये हुए है। इस शुद्धतावादी सोच से आगे बढ़ना होगा। सोवियत संघ के विघसीपीआई के नवनिर्वाचित महासचिव कॉमरेड डी.राजा को अग्रिम बधाई। हालाँकि अभी औपचारिक घोषणा सीपीआई की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक की समाप्ति के बाद आज से २ दिन बाद होगी। यह कम्युनिस्ट पार्टी के लिए भी ऎतिहासिक क्षण होगा जब पार्टी पे आरोप लगती रही है कि कोई दलित अभी तक पार्टी के सर्वोच्य पद पर अभी तक नहीं पहुंच पाया था। पार्टी को बधाई।
कॉमरेड डी.राजा एक ऐसे समय में पार्टी की कमान संभालने जा रहे है जब पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यहाँ तक की सीपीआई पर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म होने का भी खतरा मंडरा रहा है। केरला जैसे राज्य को छोड़ दे तो किसी और राज्य में पार्टी की विधानमंडलों और लोकसभा में भी कोई निर्णायक भूमिका नहीं बची है। सांगठनिक तौर पर भी पार्टी क्षरण की ओर अग्रसर है। कॉमरेड डी.राजा के लिए इस वक़्त यह भूमिका ग्रहण करना काटों भरा ताज पहनने से कम नहीं है और अगर वे पार्टी को इससे उबार पाए तो निश्चित ही वे चैंपियन होंगे। नए नेतृत्व को एक दिशाहीन पार्टी में नयी ऊर्जा ,जूनून और लक्ष्य निर्धारण करके आगे बढ़ने की गंभीर चुनौती है। 
पार्टी के पिछले महाधिवेशन में कन्हैया कुमार ने जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया को कन्फ्यूज्ड पार्टी ऑफ़ इंडिया कहा तब बड़ा बवाल मचा था. लेकिन मैं समझता हूँ की उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा था। आज लगभग हर राज्यों में पार्टी का संगठन होने के बावजूद पार्टी अपने दम पर हर सीट पर कैंडिडेट नहीं उतार पाती है। राष्ट्रीय नेता ऑफिसों में बैठकर, देश भर में घूम घूम कर भाषण देकर और पार्टी की मीटिंग अटेंड करके आत्ममुग्ध रहते है,और इसी का अनुसरण राज्यों के नेता भी करते है। और जब इन नेताओ से पार्टी की चुनावी हार पर बात कीजिये तब ये कहेंगे की " हम चुनावी (संसदीय ) राजनीति के लिए नहीं बने है ".यह जवाब निश्चित ही "संशोधनवादी होने " के आरोप का प्रतिउत्तर लगता है. यही से साबित होता है की पार्टी पूरी तरह कन्फ्यूज्ड है। क्योँकि इस जवाब से फिर यह सवाल भी उठता है कि तब आप चुनाव लड़ते ही क्योँ है? क्या सिर्फ इसलिए की आपकी पार्टी का राष्ट्रीय दर्जा बचा रहे और आप आराम से नेता बने रहे। लेकिन उनका क्या जो जमीन पर हर दुःख दर्द जुल्म सहकर पार्टी का झंडा उठाये हुए है। इस शुद्धतावादी सोच से आगे बढ़ना होगा। सोवियत संघ के विघटन के 'शॉक' से बाहर निकलना होगा। कॉमरेड इस 'शॉक' ने न जाने कितने प्रतिभाशाली पार्टी कार्यकर्ताओ की ज़िंदगी ख़राब कर दी है। 
पार्टी को एक सर्जरी की अत्यंत जरुरत है। असक्षम और निक्कम्मे नेताओ से पार्टी को किनारा करना होगा। पार्टी और जन संगठनो में सदस्यता की जाँच होनी चाहिए। आज फर्जी सदस्यता के कारण ही नाकाम और असक्षम नेतृत्व कुर्सी जमा कर बैठे हुए है। यह न सिर्फ पार्टी बल्कि आंदोलन के साथ भी गद्दारी है। क्या कारण है कि महिला संगठन, शिक्षक संगठन, कर्मचारी संगठन ,इप्टा, प्रलेस इत्यादि में पार्टी सदस्य जनरल सेक्रेटरी तो है लेकिन संगठन खंड खंड बिखरा हुआ है? न तो इन संगठनो पर पार्टी के नेता का कोई प्रभाव होता है न ही इसके अधिकतर सदस्यों का पार्टी और विचारधारा से कोई लगाव होता है। मुझे याद आता है की २०११ -१२ में बिहार में असक्षम नेतृत्व के कारण कॉलेज का एडमिनिस्ट्रेशन कॉलेज के शिक्षक और कर्मचारी संगठन पर हावी हो जाता है और पार्टी का शिक्षक और कर्मचारी संघ AISF को असामाजिक तत्व बताते हुए एडमिनिस्ट्रेशन को समर्थन पत्र लिखता है। पार्टी को आज इस बात पर भी मंथन करना चाहिए की क्या अपने जन संगठनो को पार्टी का जन संगठन बताने से परहेज करना और सभी के लिए जन संगठन का दरवाजा खुला रखना, कही पार्टी और आंदोलन को नुकसान तो नहीं पंहुचा रहा है। उदाहरण के लिए मजदूरों के संगठन AITUC में भाजपा का विधायक नेता कैसे बना हुआ है ?

आज पार्टी के कार्यकर्ताओं में घोर निराशा है जिसको ख़त्म करने की चुनौती नए नेतृत्व की है। वरना गोवा की आज़ादी के लिए लड़ने वाली सीपीआई अब गोवा में चुनाव नहीं लड़ती वही हाल देश भर में हो जायेगा, और कुछ समय बाद सीपीआई गोवा की तरह सिर्फ पार्टी का नाम ,पार्टी का ऑफिस और पार्टी के नेता बचेंगे, बस पार्टी नहीं बचेगी।
--पीयूष रंजन झा
https://www.facebook.com/piyushranjan.jha.5/posts/2299620040159042

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Wednesday 10 July 2019

सुप्रसिद्ध पत्रकार व राजनीतिज्ञ कामरेड शमीम फ़ैज़ी को लखनऊ में श्रद्धांजली अर्पण ------ अरविंद राज स्वरूप



लखनऊ,9 जुलाई 2019
जानें मानें पत्रकार और नेता कॉम शमीम फ़ैज़ी को लखनऊ नें श्रधांजलि दी।

जानें मानें पत्रकार और सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य कॉम शमीम फ़ैज़ी को कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य मुख्यालय पर श्रधांजलि दी गई।उनका निधन लम्बी बीमारी के बाद विगत 5 जुलाई को दिल्ली में हो गया था।सभा की अध्यक्षता राज्य सचिव डॉ गिरीश नें की,संचालन राज्य सह सचिव कॉम अरविन्द राज स्वरूप नें किया तथा दूसरे राज्य सहायक सचिव एवं पूर्व विधायक कॉम इम्तियाज़ अहमद नें शोक प्रस्ताव पेश किया।
कॉम इम्तियाज़ नें उनके बारे में बताते हुए कहा कि उनका जन्म 1946 में हुआ था और उनके पुरखे मऊ से महाराष्ट्र चले गये थे। वो अनेकों अखबारों में पत्रकार रहे।फिर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शरीक हुए।वो पार्टी के अंग्रेज़ी , न्यू ऐज अखबार के और उर्दू अखबार हयात के संपादक थे।उनका व्यक्तित्व सहज था।
अध्यक्ष डॉ गिरीश नें कहा राजनैतिक सम्बन्धों से व्यक्तिगत सम्बन्ध कब हो गए पता ही नहीं चला।वो पार्टी की शीर्षस्थ समिति के सदस्य थे, पार्टी के दस्तावेजों को स्पष्ट रूप से लिखते थे।पार्टी में यदि विचारों में मतभेद हुआ तो वो दोनों पक्षों को समझा सकते थे।बर्धन जी जैसे बड़े नेता भी उनकी प्रतिभा का लोहा मानते थे।उनके जानें से पार्टी की भारी क्षति हुई है लेकिन उनके विचारों का अनुसरण किया जाएगा।
संचालक कॉम अरविन्द राज स्वरूप नें कहा कि उनकी लेखनी विश्लेषणात्मक थी।उनोहने बताया कि उनके सम्बंध विद्यार्थी जीवन से थे।वो मास्टरपीस लेखक थे।उनोहने इस्लाम के धर्मावलंबियों पर जो पुस्तिका लिखी उसका कोई मुकाबला नहीं है।वो संस्कृति और साहित्य से गहराई से जुड़े थे ।बड़ी क्षति हुई है उनके जानें से।

इस अवसर पर इप्टा के राकेश नें उनके सांस्कृतिक योगदान का जिक्र किया। प्रलेस के वीरेंद्र यादव नें कहा कि उनोहने पीपीएच को पुनर्जीवित कर प्रगतिशील साहित्य के विस्तार में भारी योगदान दिया ,एटक के महेंद्र राय,महिला फेडरेशन की नेत्री आशा मिश्रा, नौजवान सभा के विनय पाठक ,प्रदीप घोष,ऋषि श्रीवास्तव,राम सोच यादव,देवेंद्र चौहान,ओ पी अवस्थी,ज्ञान शुक्ला,अनिल श्रीवास्तव,कल्पना पांडे आदि नें भी विचार रखे।
सभा के अंत मे 2 मिनट का मौन रखा गया और उनके परिवार के प्रति गहरी शोक संवेदनायें व्यक्त कीं।
सभा का अंत शमीम फ़ैज़ी..
अमर रहैं!! के नारे से सम्पन्न हुआ।
सभी उपस्थित जनों नें उनके चित्र पर पुष्प अर्पित किये।
https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/2386233041594820

श्रद्धांजली सभा में खिलखिलाती हंसी !

Thursday 4 July 2019

बोल्शेविक क्रांति की धरती पर आर्थिक अन्याय को संस्थागत रूप दे दिया गया है ------ हेमंत कुमार झा

Hemant Kumar Jha
3 hrs