सवाल यह भी है कि नोटबंदी की घोषणा करने का हक पी एम को कैसे मिला ? यह हक तो रिज़र्व बैंक के गवर्नर का है। नोटबंदी से किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी सभी की मुसीबत बढ़ गई । निर्यात घटा, रोजगार के अवसर कम हो गए। अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी से उतर गई। नए नोट छापने के लिए कागज विदेशों से आयात किया जाएगा।
हिंदुस्तान , लखनऊ, 03 मार्च 2017, पृष्ठ - 14 पर अतुल अंजान साहब का साक्षात्कार ------
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1352467731481866&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=3
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'नया जमाना ', सहारनपुर के संस्थापक संपादक कन्हैया लाल मिश्र ' प्रभाकर ' ने 1950 - 51 में ही RSS प्रचारक लिंमये साहब से कह दिया था कि, जैसी गतिविधियेँ हैं यदि इनमें सुधार न हुआ तो एक दिन दिल्ली की सड़कों पर RSS और कम्युनिस्टों के मध्य सत्ता के लिए निर्णायक संघर्ष होगा।
गत वर्ष से चल रहे घटनाक्रमों का तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ में विश्लेषण किया जाये तो बिलकुल स्पष्ट हो जाएगा कि, कुछ भी अनायास नहीं हुआ है। यह सब प्रभाकर जी के द्वारा व्यक्त पूर्वानुमान का पूर्वाभ्यास ही है। कैसे ? :
* रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या और शराब व्यापारी विजय माल्या के देश छोडने की घटनाओं से ध्यान हटाने के लिए जे एन यू के तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष को 'राष्ट्र द्रोह ' का कल्पित आरोप लगा कर गिरफ्तार कर लिया गया जिससे सबका ध्यान इस गिरफ्तारी के पक्ष - विपक्ष में उलझ गया और फासिस्ट सरकार को राहत मिल गई।
* इस बार नोटबंदी से साधारण जनता,छोटे व्यापारी और सबसे ज़्यादा किसान - मजदूर त्रस्त थे। पाँच राज्यों में चल रहे चुनावों में केंद्र की सरकार के विरुद्ध आक्रोश परिलक्षित हो रहा था। अतः JNU छात्र उमर खालिद की आड़ में ABVP के माध्यम से रामजस कालेज, दिल्ली में उपद्रव करवा कर फिर उससे भी ध्यान हटाने के लिए दस माह पुराने वीडियो के मात्र एक पोस्टर को संदर्भ से काट कर विदेशी गिल्ली - डंडा के खिलाड़ी से उछलवा कर कार्गिल शहीद की पुत्री पर चरित्र हनन का दुष्प्रचार करवाया गया। स्व्भाविक रूप से जिसका प्रतिरोध हुआ ही और नोटबंदी की हानियों की ओर से जनता का ध्यान हटा दिया गया। :
* कम्युनिस्टों / वामपंथ ने अपने को गलत प्रचार के कारण जनता से भले ही काट रखा है परंतु इनके 'युवा ' और 'छात्र ' संगठन अभी भी जागरूक हैं । इसी कारण गत वर्ष भी और इस वर्ष भी CPI के एक राष्ट्रीय सचिव कामरेड डी राजा और CPM के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड सीताराम येचूरी तक को छात्रों के प्रदर्शनों में अपनी भागीदारी करनी ही पड़ी है।
* आने वाले समय में संभवतः 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व ही आर एस एस ऐसी परिस्थितियेँ उत्पन्न कर देगा कि, इच्छा या अनिच्छा से कम्युनिस्टों को दिल्ली समेत प्रमुख नगरों में सड़कों पर संघर्ष में कूदना ही पड़ेगा। आज की तारीख तक आर एस एस से निबटने के लिए वैसा ही मिलिटेंट संगठन किसी भी कम्युनिस्ट पार्टी के पास नहीं है। उत्तर प्रदेश समेत इन विधानसभा चुनावों में चतुराई से भाग लिया नहीं गया है। किसी भी संघर्ष की स्थिति में कम्युनिस्टों को केवल फासिस्ट संगठन ही नहीं उनको सहयोग कर रहे पुलिस,सेना,अदालत का भी मुक़ाबला करना होगा। हमारे देश में कामरेड लेनिन और कामरेड माओ जैसे चिंतक - विचारक संघर्षशील कामरेड नेता अभी तक प्रगट नहीं हुये हैं।
* सारा का सारा दारोमदार ' युवा ' व 'छात्र ' कम्युनिस्टों पर रहेगा। इनके ही दम पर फ़ासिस्टी शक्तियों की पराजय की उम्मीद की जा सकती है।
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1350894501639189
(विजय राजबली माथुर )
हिंदुस्तान , लखनऊ, 03 मार्च 2017, पृष्ठ - 14 पर अतुल अंजान साहब का साक्षात्कार ------
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'नया जमाना ', सहारनपुर के संस्थापक संपादक कन्हैया लाल मिश्र ' प्रभाकर ' ने 1950 - 51 में ही RSS प्रचारक लिंमये साहब से कह दिया था कि, जैसी गतिविधियेँ हैं यदि इनमें सुधार न हुआ तो एक दिन दिल्ली की सड़कों पर RSS और कम्युनिस्टों के मध्य सत्ता के लिए निर्णायक संघर्ष होगा।
गत वर्ष से चल रहे घटनाक्रमों का तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ में विश्लेषण किया जाये तो बिलकुल स्पष्ट हो जाएगा कि, कुछ भी अनायास नहीं हुआ है। यह सब प्रभाकर जी के द्वारा व्यक्त पूर्वानुमान का पूर्वाभ्यास ही है। कैसे ? :
* रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या और शराब व्यापारी विजय माल्या के देश छोडने की घटनाओं से ध्यान हटाने के लिए जे एन यू के तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष को 'राष्ट्र द्रोह ' का कल्पित आरोप लगा कर गिरफ्तार कर लिया गया जिससे सबका ध्यान इस गिरफ्तारी के पक्ष - विपक्ष में उलझ गया और फासिस्ट सरकार को राहत मिल गई।
* इस बार नोटबंदी से साधारण जनता,छोटे व्यापारी और सबसे ज़्यादा किसान - मजदूर त्रस्त थे। पाँच राज्यों में चल रहे चुनावों में केंद्र की सरकार के विरुद्ध आक्रोश परिलक्षित हो रहा था। अतः JNU छात्र उमर खालिद की आड़ में ABVP के माध्यम से रामजस कालेज, दिल्ली में उपद्रव करवा कर फिर उससे भी ध्यान हटाने के लिए दस माह पुराने वीडियो के मात्र एक पोस्टर को संदर्भ से काट कर विदेशी गिल्ली - डंडा के खिलाड़ी से उछलवा कर कार्गिल शहीद की पुत्री पर चरित्र हनन का दुष्प्रचार करवाया गया। स्व्भाविक रूप से जिसका प्रतिरोध हुआ ही और नोटबंदी की हानियों की ओर से जनता का ध्यान हटा दिया गया। :
* कम्युनिस्टों / वामपंथ ने अपने को गलत प्रचार के कारण जनता से भले ही काट रखा है परंतु इनके 'युवा ' और 'छात्र ' संगठन अभी भी जागरूक हैं । इसी कारण गत वर्ष भी और इस वर्ष भी CPI के एक राष्ट्रीय सचिव कामरेड डी राजा और CPM के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड सीताराम येचूरी तक को छात्रों के प्रदर्शनों में अपनी भागीदारी करनी ही पड़ी है।
* आने वाले समय में संभवतः 2019 के लोकसभा चुनावों से पूर्व ही आर एस एस ऐसी परिस्थितियेँ उत्पन्न कर देगा कि, इच्छा या अनिच्छा से कम्युनिस्टों को दिल्ली समेत प्रमुख नगरों में सड़कों पर संघर्ष में कूदना ही पड़ेगा। आज की तारीख तक आर एस एस से निबटने के लिए वैसा ही मिलिटेंट संगठन किसी भी कम्युनिस्ट पार्टी के पास नहीं है। उत्तर प्रदेश समेत इन विधानसभा चुनावों में चतुराई से भाग लिया नहीं गया है। किसी भी संघर्ष की स्थिति में कम्युनिस्टों को केवल फासिस्ट संगठन ही नहीं उनको सहयोग कर रहे पुलिस,सेना,अदालत का भी मुक़ाबला करना होगा। हमारे देश में कामरेड लेनिन और कामरेड माओ जैसे चिंतक - विचारक संघर्षशील कामरेड नेता अभी तक प्रगट नहीं हुये हैं।
* सारा का सारा दारोमदार ' युवा ' व 'छात्र ' कम्युनिस्टों पर रहेगा। इनके ही दम पर फ़ासिस्टी शक्तियों की पराजय की उम्मीद की जा सकती है।
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(विजय राजबली माथुर )
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