Friday 15 June 2018

जनता की सहानुभूति व समर्थन पाने में विफल क्यों कम्यूनिज़्म ? ------ विजय राजबली माथुर

वर्ष 1978 - 79 में सहारनपुर के 'नया जमाना'के संपादक स्व. कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर'ने अपने एक तार्किक लेख मे 1951  - 52 मे सम्पन्न संघ के एक नेता स्व.लिमये के साथ अपनी वार्ता के हवाले से लिखा था कि,कम्युनिस्टों  और संघियों के बीच सत्ता की निर्णायक लड़ाई  दिल्ली की सड़कों पर लड़ी जाएगी।
प्रोफेसर निष्ठा के विचार उसी तथ्य की ओर इंगित कर रहे लगते हैं। 
छात्रों-नौजवानों को देश के सामने आई विकट समस्याओं पर भी विचार करना चाहिए क्योंकि भविष्य मे फासिस्ट तानाशाही से उन्हें ही टकराना पड़ेगा। अतः आज ही कल के बारे मे भी निर्णय कर लेना देश और जनता के हित मे उत्तम रहेगा।
ब्राह्मणवादी, ढ़ोंगी-पाखंडी तो कहते ही हैं दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि, वामपंथी, साम्यवादी औरे एथीस्ट भी 'हिन्दू ' को  'धर्म ' ही  मानते हैं। जबकि वस्तुतः 'हिन्दू ' शब्द सर्वप्रथम बौद्ध ग्रन्थों में हिंसक गतिविधियों में संलिप्त लोगों के लिए प्रयुक्त हुआ था। फिर फारसी या ईरानी आक्रांताओं ने एक गंदी व भद्दी गाली के रूप में भारतवासियों के लिए 'हिन्दू ' शब्द का प्रयोग प्रारम्भ किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने ' हिन्दू ' एक राजनीति का शब्द माना है कोई ' धर्म ' नहीं। परंतु सरकारी कागजों में, ब्राह्मण वादियों के प्रचार में व वामपंथी, साम्यवादी के साथ साथ एथीस्ट संप्रदाय भी 'हिन्दू ' को 'धर्म ' की संज्ञा दे रहा है।
क्यों नहीं जनता को 'धर्म ' का वास्तविक ' मर्म ' समझाया जाता ? क्यों नहीं जनता को बताया जाता कि, हिन्दू,इस्लाम,ईसाइयत,सिख,पारसी आदि कोई धर्म नहीं हैं ? जब तक आप जनता को अध्यात्म, भगवान,धर्म,ईश्वर की सही व्याख्या नहीं बताएँगे जनता आपकी बातें सुनने को तैयार ही नहीं होगी। भारत में सशस्त्र क्रांति संभव होती तो 1857 में ही सफल हो जाती तब गांधी जी को  ' सत्य व अहिंसा ' को हथियार न बनाना पड़ता। सम्पूर्ण मार्क्स वाद सही होते हुये भी भारत में मार्क्स और लेनिन / स्टालिन के बताए मार्ग से प्रस्तुत न किए जाने के कारण भारत की जनता की सहानुभूति व समर्थन पाने में विफल है। आपको जनता के बीच समझाना होगा कि , धर्म का नाम लेने वाले खुद ही अधार्मिक हैं क्योंकि , :
समस्या की जड़ है-ढोंग-पाखंड-आडंबर को 'धर्म' की संज्ञा देना तथा हिन्दू,इसलाम ,ईसाईयत आदि-आदि मजहबों को अलग-अलग धर्म कहना जबकि धर्म अलग-अलग कैसे हो सकता है ? वास्तविक 'धर्म' को न समझना और न मानना और ज़िद्द पर अड़ कर पाखंडियों के लिए खुला मैदान छोडना संकटों को न्यौता देना है। 
* धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।
* भगवान =भ (भूमि-ज़मीन )+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I(अनल-अग्नि)+न (जल-पानी)
* चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इसलिए ये ही खुदा हैं।
 * इनका कार्य G(जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय) है अतः यही GOD हैं।
* ईश्वर = जो ऐश्वर्यशाली हो अर्थात आज की इस दुनिया में कोई भी नहीं। 
* अध्यात्म = अध्ययन + आत्मा अर्थात अपनी आत्मा का अध्ययन न कि ढोंगियों  का आडंबर। 
* ' सन्त ' = संतुलित हो जीवन जिसका वह सन्त है।
* 'साधू ' = साध लिया हो अपना जीवन जिसने ( who have balanced his / her life ) साधू होता है।
लेकिन समाज में इन शब्दों के मर्म को न समझ कर गलत अर्थ में लिया जाता है तभी समाज व राष्ट्र को दुर्दिन देखने पड़ रहे हैं।









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