शताब्दी वर्ष समारोह के आयोजन की तैयारियां ज़ोरों पर
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी आगामी 26 दिसंबर 2024 को अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश करने जा रही है। पूरे देश में शताब्दी वर्ष को भव्य से भव्य बनाने की तैयारियां ज़ोरों पर हैं। भाकपा ने इस संबंध में काफी समय पहले ही निर्णय ले लिया था और आयोजनों की व्यापक कार्य योजना तैयार की गई थी। इसी माह के प्रारंभ में संपन्न हुयी राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बीच पार्टी के राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्यों द्वारा शताब्दी वर्ष समारोह के लिये एक ‘लोगो’ जारी किया गया।
पार्टी के शताब्दी वर्ष समारोहों का शुभारंभ कानपुर में 26 दिसंबर 2024 को एक भव्य समारोह के साथ होगा। सभी जानते हैं कि कानपुर में ही 25, 26 एवं 27 दिसंबर को पार्टी की स्थापना कांग्रेस हुयी थी। अतएव कानपुर को इस मौके के लिये खासतौर पर चुना गया है। वहां इसके आयोजन की जोरदार तैयारियां चल रही हैं। कानपुर ही नहीं अधिकतर राज्यों की राजधानियों में उस दिन भव्य कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे। कई राज्यों में यह आयोजन अगली तिथियों में होगा। ऐसा नेत्रत्व की उपलब्धता को ध्यान में रख कर किया गया है।
जिला स्तरों पर भी अनेकों जगह अनेक कार्यक्र्म आयोजित किए जायेंगे, जो विभिन्न रूपों में पूरे वर्ष चलते रहेंगे। मुख्य उद्देश्य पार्टी के गौरवशाली इतिहास को जन जन तक पहुंचाना तथा देश की बड़ी आबादी को भाकपा की आज प्रासंगिकता से अवगत कराना है। उत्तर प्रदेश जिसे कि भाकपा की स्थापना का गौरव हासिल है, की पार्टी राज्य समिति ने हर जिले में कम से कम 100 बैठकें आयोजित करने का निश्चय किया है, जहां कम से एक नया सदस्य बनाया जाएगा। इस तरह सौ नई शाखाओं की नींव रखी जायेगी। इसके अलावा हर जिले में कई कई बड़े कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे।
समापन स्थल के रूप में किसान- सशस्त्र संघर्षों की तपोभूमि- तेलांगाना के खम्मम को चुना गया है, जहां 26 दिसंबर 2025 को एक विशाल रैली और जनसभा आयोजित की जायेगी। 21 से 25 सितंबर के बीच चंडीगढ़ में पार्टी का आगामी महाधिवेशन होने जा रहा है। महाधिवेशन को सफल बनाने और पार्टी के पुनर्निर्माण और कायाकल्प के लिये शताब्दी वर्ष को एक यादगार अवसर बनाने का द्रढ़ निश्चय राष्ट्रीय परिषद में दोहराया गया है।
इस सारी कवायद के गंभीर कारण भी हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी देश की पहली और एकमात्र पार्टी है जिसकी स्थापना उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष के तपे- तपाये नेताओं ने की। देश की आजादी के संघर्ष को व्यापक और जुझारू रुप प्रदान करने तथा “संपूर्ण आजादी” को आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य निर्धारित कराने में इसने उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मात्रभूमि को स्वतंत्र कराने की अदम्य इच्छा से लैस विभिन्न क्रांतिकारी समूहों के अगुवा और उत्साही कामरेड्स 25 से 27 दिसंबर 1925 को तत्कालीन मजदूर आंदोलन के प्रमुख केन्द्र कानपुर में एकत्रित हुये और देश की पहली राष्ट्र- स्तरीय कम्युनिस्ट पार्टी- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ( Communist Party of India ) के नाम, नीतियों, लक्ष्यों और सांगठनिक ढांचे का निरूपण किया।
1917 के अक्तूबर माह में संपन्न रूस की समाजवादी क्रान्ति की सफलता ने भी इन्हें एकजुट होने और आजादी के संघर्ष को धार देने के लिये प्रेरित किया था। यहां यह रेखांकित किया जाना चाहिये कि आजादी की लड़ाई में मजदूर वर्ग की भूमिका के महत्व को समझते हुये मार्क्सवाद- लेनिनवाद से अनुप्राणित क्रान्तिकारी- भगत सिंह ने कानपुर में डेरा डाला था और एक समूह का गठन किया था।
तत्कालीन वस्तुगत परिस्थितियों ने भी भाकपा की स्थापना हेतु परिस्थितियों का निर्माण किया था। गांधीजी की अगुवाई और कांग्रेस के नेत्रत्व में चल रहे 1920- 22 के असहयोग आंदोलन और कई अन्य आंदोलनों ने साम्राज्यवाद के खिलाफ जन भागीदारी वाला आकार ग्रहण कर लिया था। लेकिन गोरखपुर के चौरी- चौरा में मुक्तियोद्धाओं के सशस्त्र संघर्ष से विचलित गांधीजी ने आंदोलन को वापस ले लिया था।
इससे हताश नौजवानों ने नई राह तलाशना शुरू कर दिया। इसी तरह अद्वितीय वीरता और बलिदानों के बावजूद संघर्षरत भूमिगत क्रान्तिकारी साम्राज्यवाद के खिलाफ जनता को लामबंद करने में असफल रहे। इससे मोहभंग होने पर युवाओं ने मार्क्सवाद- लेनिनवाद की ओर रुख किया और परिणाम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गठन था।
देश भर में किसान- मजदुर्रों और छात्रों के जुझारू और वर्गीय आंदोलनों के उभार ने भी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के लिये प्रष्ठभूमि तैयार की थी। क्रांतिकारियों पर विभिन्न षडयंत्रों के झूठे केस लगाने से भी साम्राज्यवादियों द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न के खिलाफ वातावरण निर्मित हुआ।
राष्ट्रीय आजादी और वर्ग संघर्ष को आधार बनाते हुये भाकपा ने- जोतने वालों को जमीन, विदेशी साम्राज्यवादी पूंजी का राष्ट्रीयकरण, वयस्क मताधिकार एवं प्रजातन्त्र, राष्ट्र की संपदा राष्ट्र के हाथों, में, काम के घंटे आठ, संगठन बनाने का लोकतान्त्रिक अधिकार, सभाएं प्रदर्शन एवं हड़ताल, महिलाओं को सामाजिक बराबरी, अछूतों को सामाजिक न्याय आदि मांगों को राष्ट्रीय एजेंडे का रूप दिया।
निर्धारित लक्ष्यों की ओर बढ़ते हुये कम्युनिस्टों की पहलकदमी से 1920 में देश के प्रथम राष्ट्रव्यापी मजदूर संगठन- एआईटीयूसी की स्थापना हुयी जिसमें आज भी वे प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। ये कम्युनिस्ट ही थे जिन्होंने 1921 में कांग्रेस के भीतर पूर्ण स्वतन्त्रता हेतु प्रस्ताव पेश किया और बाद में अपने संघर्षों के बल पर स्वीक्रत कराया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और उसके अनुयायियों की सक्रिय भागीदारी से 1936 में तीन संयुक्त जन संगठनों की स्थापना की गयी। वे हैं- आल इंडिया किसान सभा (AIKS), आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISF) एवं प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन (PWA)। 1941 में इंडियन प्यूपिल्स थ्येटर एसोशिएसन (IPTA) की स्थापना की गयी । सभी संगठनों ने देश के जाने माने बुध्दिजीवियों और आमजनों को आजादी के आंदोलन में उतारा और जनजागरण किया। महिला कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं ने 1954 में नेशनल फेडरेशन आफ इंडियन वीमेन (NFIW) के गठन में निर्णायक भूमिका निभाई।
1946 में निजाम के सामन्तवादी शासन को उखाड़ कर ज़मीनों को कब्जा कर जनता में बांटने का काम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने किया। इसे तेलांगाना सशस्त्र आंदोलन के नाम से जाना जाता है। 1940 में हुये कय्यूर, पुन्नप्रा- वायलार, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसान संघर्ष और ऐसे ही कई और बलिदानी आंदोलन इसकी झोली में हैं। राजशाही राज्यों को स्वतंत्र भारत में मिलाने के लिये भी भाकपा ने मजबूत आवाज उठायी।
1946 में हुये चुनावों में भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने वाकायदा हिस्सा लिया। स्पष्ट है भाकपा ने जन आंदोलनों, चुनावों और सशस्त्र संघर्षों को लक्ष्य प्राप्ति हेतु माध्यम बनाया।
हिटलर के फासीवाद पर ऐतिहासिक विजय के परिणामस्वरूप उत्पन्न जन उभार ने भारत की स्वतन्त्रता के लिये अंतिम संघर्ष के द्वार खोल दिये थे। युध्द के बाद के काल में 1945- 47 के साम्राज्यवाद विरोधी ज्वार में कम्युनिस्ट निर्णायक भूमिका में थे।
स्वतन्त्रता के बाद 1952 में हुये देश के प्रथम आम चुनावों में सीपीआई विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी। आगे के कई चुनावों में भी पार्टी शानदार जीत हासिल कर विपक्ष की भूमिका में रही। पार्टी की विपक्षी भूमिका को निरूपित करते हुये पार्टी के तत्कालीन महासचिव अजय घोष ने कहा कि हम केवल विरोध के ही लिये नहीं, इतिहास के नवनिर्माण हेतु विपक्ष की भूमिका निभायेंगे। यह है विपक्ष की भूमिका में कम्युनिस्टों का द्रष्टिकोण।
1957 में देश की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार केरल में स्थापित हुयी।
भाषा के आधार पर राज्यों के निर्धारण हेतु भी सीपीआई ने अहम भूमिका निभाई। दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों की आकांक्षाओं को सम्पूर्ण महत्व देते हुये भी सीपीआई जातिवाद का प्रबल विरोध करती है। शोषण और दमन से मुक्त वर्गविहीन और जातिविहीन समाज का निर्माण ही हमारा भविष्य का द्रष्टिकोण है।
व्यापक विविधता और बहुलवाद की भारत की विशिष्ट परिस्थितियों के अनुकूल संसदीय प्रणाली की रक्षा में भाकपा ने अद्भुत कार्य किया है। साथ ही संसद को जनता की सही आकांक्षाओं को पूरा करने वाला संस्थान बनाने को वह चुनाव सुधारों के लिये अभियान चला रही है ताकि चुनावों में धनबल और बाहुबल के प्रभाव को रोका जा सके। फासीवादी लक्ष्यों की ओर बढ़ रही मौजूदा सरकार द्वारा संविधान पर बोले जा रहे हमलों को वह अन्य शक्तियों के साथ मिल कर विफल करने के प्रयासों में जुटी है।
देश की एकता अखंडता की रक्षा में वह किसी से पीछे नहीं। खालिस्तानी आतंकवाद हो या कश्मीर का प्रायोजित आतंकवाद, सभी के खिलाफ लड़ते हुये उसके तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं ने शानदार शहादतें दी हैं। सांप्रदायिकता के खतरे को सर्वप्रथम पहचानते हुये इसने इसके विरूध्द संघर्ष को राजनीति के केन्द्र में ला दिया। सांप्रदायिक फासीवादी शासन की कुटिल मंशा को विफल बनाने को भाकपा ने ‘हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई एकता’ को वजूद में लाने के लिये कार्य किया है। वहीं किसानों- कामगारों के मुद्दा आधारित संघर्षों की अगुवाई कर उन्हें आजादी और लोकतन्त्र की रक्षा के संघर्ष में उतारा है।
100 वर्षों के विशाल और सम्रध्द इतिहास को कुछ पन्नों में नहीं समेटा जा सकता। भावी पीढ़ियाँ उसे पढ़ेंगी जानेंगीं और समझेंगीं। वे यह भी समझेंगीं कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन न केवल कम्युनिस्ट आंदोलन बल्कि देश की शोषित पीढ़ित जनता की पीठ में छुरा भौंकने के अतिरिक्त कुछ न था। विभाजन की चपेट में पार्टी ही नहीं जन संगठनों को भी लाया गया। यहां तक कि स्थापना दिवस पर भी नाहक विवाद खड़ा किया गया। जबकि संयुक्त कम्युनिस्ट पार्टी की का. बी. टी. रणदीवे की अध्यक्षता में संपन्न केंद्रीय सेक्रेटरियट की एक बैठक में अंतिम रूप से तय पाया गया कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 26 दिसंबर 1925 को कानपुर में हुयी थी।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी वैचारिक एवं राजनैतिक मतभेदों को दूर करते हुये अंतिम रूप से कम्युनिस्ट एकीकरण पर ज़ोर दे रही है। कारपोरेट- सांप्रदायिक- फासीवाद से निर्णायक संघर्ष के लिये ये अति आवश्यक है। उतना ही आवश्यक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के गौरवशाली इतिहास को जनता के बीच ले जाना है, ताकि पार्टी कतारों और आमजन को समाजवाद के लक्ष्य को हासिल करने को तैयार किया जा सके।
डा. गिरीश
19.12.2024
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