Thursday 19 December 2013

क्या कम्युनिस्ट 'आप' के खतरे को पहचानेंगे?






कितना सटीक है यह कथन कि 'एक मूर्ख को सही बात बताना गलत है वह इस पर घृणा करेगा'। आजकल क्या बुजुर्ग पत्रकार, क्या उतावले कम्युनिस्ट सभी एक स्वर से 'आप'/केजरी भक्ति में तल्लीन हैं जैसे उन्होने परमात्मा को प्राप्त कर लिया है और उनको अब कुछ नहीं चाहिए। इनको मधुकर दत्तात्रेय उर्फ बाला साहब देव रस की तिकड़म सफल होने पर खुशी हो रही है। पहले केवल 'जनसंघ' ही RSS का राजनीतिक विंग था फिर 1980 में आपात काल के दौरान देवरस/इन्दिरा के मध्य हुये 'गुप्त समझौते'के अंतर्गत कांग्रेस में संघियों की पैठ हुई और इंदिराजी की सत्ता वापिसी भी। कालांतर में 'जनसंघ' को जनता पार्टी में विलीन करके समाजवादियों में भी संघ की पैठ बना ली गई जो 'भाजपा' में स्पष्ट देखी जा सकती है। पूर्व सोशलिस्ट सुषमा स्वराज जी आज भाजपा की वरिष्ठ नेता हैं। जब कांग्रेस और भाजपा दोनों की पोल खुलने लगी तो संघ ने हज़ारे/केजरी को आगे करके एक नया प्रयोग/विकल्प खड़ा किया जिसकी परिणति 'आप' है। अब यदि कुछ कम्युनिस्ट भी 'आप' के गीत गाते हैं तो समझना चाहिए कि या तो वे निकट अतीत से अपरिचित हैं या फिर उनके निजी स्वार्थ अब संघ के साथ जाने में हैं। 'उत्पादन और वितरण के साधनों पर समाज का स्वामित्व 'चाहने वाला कोई भी व्यक्ति कारपोरेट/RSS के चहेते 'आप' की वकालत नहीं कर सकता।

क्या है देवरस तिकड़म?

माधव राव सदाशिव गोलवलकर अपने जीवन काल में केंद्र में संघ को सत्ता पर जब काबिज न करा सके तो उनके उत्तराधिकारी मधुकर दत्तात्रेय देवरस ने शहरों के 2 प्रतिशत और गांवों के 3 प्रतिशत वोटों के सहारे संघियों को सत्ता के दरवाजे तक पहुंचाने का नया सूत्र खोजा था । आपातकाल की गिरफ्तारी के दौरान उन्होने इंदिराजी से एक गुप्त सम्झौता किया जिसके अनुसार उनको समर्थन देकर अपना एजेंडा कार्यान्वित करवाने का भरोसा उनको मिला। 1980 में पहली बार RSS के शुद्ध समर्थन से इन्दिरा कांग्रेस की सरकार बनी और 'समाजवाद' की नीति का परित्याग हुआ। 'श्रम न्यायालयों'में श्रमिकों के विरुद्ध फैसले सुनाये जाने की प्रक्रिया इसी का प्रतिफल थी। 1984 में भी संघ का समर्थन इन्दिरा कांग्रेस को मिला जिसके फलस्वरूप  राजीव गांधी  ने बाबरी मस्जिद/रामजन्म भूमि का ताला खुलवा कर पूजा प्रारम्भ कारवाई। 1992 में पूर्व संघी एवं इन्दिरा कांग्रेसी प्रधानमंत्री के आशीर्वाद से कल्याण सिंह ने बाबरी मस्जिद को ढहवा दिया। 

1996 में 13 दिनी सरकार के गृह मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने संघ को घेरने वाली तमाम फ़ाईलो को जलवा डाला। 1998 से 2004 तक के गृह मंत्री आडवाणी ने पुलिस,सी बी आई आदि-आदि में संघियों को भर्ती करा दिया। आज के अनेक जांच परिणाम इसी सांप्रदायिक सोच को दर्शाते हैं। यही नहीं सेना मे भी संघी सोच के लोग प्रविष्ट करवाए गए। 

प्रो . बलराज माधोक ने तो खुल कर भाजपा को कांग्रेस की 'बी' टीम बताया ही था दोनों की सरकारों द्वारा समान नीतियाँ अपनाने से जब जनता को भी ऐसा ही आभास होने लगा तब शातिर संघियों ने देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों के सहयोग से NGOs का मोर्चा 'आप' पार्टी के रूप में गठित करा दिया जो NGOs एवं कारपोरेट घरानों को 'लोकपाल'के दायरे से मुक्त रखने का ज़बरदस्त अभियान चलाये है और अभी सफल भी है। 

भ्रष्टाचार के जनक उद्योगपति/व्यापारी,IAS/IPS होते हैं और इनकी ही पत्नियाँ अधिकांश NGOs की संचालक हैं। स्पष्ट है कि 'आप' पार्टी श्रमिकों/किसानों का शोषण करने वाले व्यापारियों/उद्योगपतियों एवं उनके सहयोगी IAS/IPS का बचाव करने वाली पार्टी है न कि आम जनता की हितैषी। इस सबके बावजूद जो लोग खुद को 'कम्युनिस्ट' बताते हुये भी 'आप' का घोषणा-पत्र प्रचारित कर रहे हैं उसकी वकालत कर रहे हैं तो साफ है कि वे RSS को ही संरक्षण प्रदान कर रहे हैं। 

एक ओर कम्युनिस्ट खुद परस्पर बंटे हुये हैं उस पर उनके बीच ऐसे संघियों का प्रवेश भविष्य की राजनीतिक परिस्थितियों का एक भयावह संकेत प्रस्तुत करता है। पुलिस,सेना,विभिन्न सरकारी विभागों में बैठे संघी भाजपा,कांग्रेस,आप के संघियों की खुल कर मदद करेंगे तथा कम्युनिस्टों के बीच घुस आए संघी तोड़-फोड़ करेंगे। तब एकमात्र मार्ग हिंसक और रक्त-रंजित क्रांति का ही बचेगा जैसा कि 'नया ज़माना',सहारनपुर के संस्थापक संपादक कन्हैया लाल मिश्र'प्रभाकर' ने RSS प्रचारक लिंमये से दिल्ली में कहा था और अपने एक समपादकीय मे इसका उल्लेख किया था। 

1925 में स्थापित सर्वाधिक पुराने राजनीतिक दल 'भाकपा' जिसने संसदीय लोकतन्त्र को अख़्तियार किया है से यह अपेक्षा है कि आगे आ कर संसदीय लोकतन्त्र की रक्षा हेतु समस्त कम्युनिस्ट शक्तियों को एकजुट करे व अपने बीच से संघियों की छुट्टी करे। अन्यथा आने वाले समय में भूखी जनता जब क्रांति करेगी तो नेतृत्व छोटे-छोटे गुटों के हाथ में होगा। भाकपा को उनका अनुसरण करना तब मजबूरी होगी। अभी समय है कि 'आप' के समर्थकों से पार्टी किनारा कर ले। 
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1 comment:

  1. Kavita Krishnapallavi :
    जो कन्‍फ्यूज्‍़ड हैं वे तो नतीजा सामने आने के बाद ही चीज़ों को समझ पाते हैं। जो वैज्ञानिक विश्‍लेषण करते हैं वही समझ सकते हैं।

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