Friday 3 January 2014

अरविन्द केजरीवाल और मोदी भारत के बड़े पूंजीपति वर्ग के दो खेमों के प्रतिनिधि हैं---अजय सिन्हा

"आप" और पूंजीपति वर्ग:

भारत और पूरे विश्व में जो अंतहीन आर्थिक मंदी फैली है, उसने सभी देशों के पूंजीपति वर्ग को शासन के नए-नए रूपों और नए-नए मुखौटों की बेतहाशा से खोज करने के लिए प्रेरित और बाध्य किया है। पूरी दुनिया के पूंजीवादियों और साम्राज्यवादियों को भावी क्रांति के पदचाप सुनाई देने लगे हैं। वे रातों की नींद और दिन का चैन खो चुके हैं। वे किसी भी तरह से अपनी कब्र खोदने वाले मज़दूर वर्ग को जगने और उसकी विराट क्रांतिकारी ताकत के जाग उठने को रोकना चाहते है। लेकिन हाय रे भाग्य ! उनकी कोई भी कोशिश कामयाब होती नहीं दिख रही है।

भारत में आर्थिक मंदी के दिनों-दिन गहराते जाने की परिस्थिति ने जहां एक तरफ मज़दूरों के श्रम की भयंकर लूट को जन्म दिया और निम्नपूंजीवादी व मंझोले तबकों के भारी पैमाने पर सम्पतिहरण व स्वत्वहरण को जन्म दिया, वहीँ दूसरी तरफ इसने भारत के पूंजीपति वर्ग को नरेंद्र मोदी जैसे फासीवादी को भारत के भाग्यविधाता के रूप में पेश करने के लिए बाध्य किया है जो जनता को धर्म और छदम देशभक्ति के आधार पर बांटने का काम करने के साथ-साथ पूंजीपति वर्ग की भारी लूट को भी बदस्तूर जारी  रख सके …लेकिन इस choice में क्रांति के फूट पड़ने के अपने भारी खतरें हैं, जिससे पूंजीपति वर्ग वाकिफ है। दरअसल पूंजीपति वर्ग के बीच इस बात को लेकर भारी मतभेद दिखाई दे रहा हैं कि मोदी जैसे फासीवादी नेता को आगे बढ़ाकर किसी भी तरह से श्रम की भारी लूट के आधार पर सुपर मुनाफा को बनाए रखा जाए या फिर किसी moderate व्यक्ति, जिसकी छवि ठीक-ठाक हो, को आगे बढ़ाकर बीच का कोई रास्ता निकाला जाए। लेकिन दूसरे option की कल तक दिक्कत यह थी कि भारत में कल तक ऐसी कोई पार्टी और व्यक्ति नहीं था। कांग्रेस, सपा, बसपा, राजद, जद, टीएमसी … सभी जनता की नज़रों में पहले ही गिर चुकी थीं। इस मोड़ पर पूंजीपति वर्ग की सबसे बड़ी आफियत या सुविधा यह थी कि इस बीच मज़दूर वर्ग की ताकतें अत्यंत कमजोर ही बनी रहीं। 


"आप" पार्टी बड़े पूंजीपति वर्ग की सबसे चहेती पार्टी बनकर उभर रही है.…

इस घटनाक्रम के ठीक इसी मोड़ पर सुनियोजित या अप्रत्याशित तौर से "आप" पार्टी और क्षमतावान, आदर्शवादी और वैचारिक तौर पर सबसे कम खतरनाक तथा सुघड़ नेता श्री अरविन्द केजरीवाल के उदय ने पूंजीपति वर्ग के लिए दूसरे options को आज़माना आसान बना दिया है। अरविन्द केजरीवाल और मोदी भारत के बड़े पूंजीपति वर्ग के दो खेमों के प्रतिनिधि हैं, जिसमें अरविन्द केजरीवाल के आदर्शवादी चेहरे व कुछ नया प्रयोग करने वाले व्यक्तित्व और दिल्ली में मिली अपार सफलता से निखरी "आप" पार्टी बड़े पूंजीपति वर्ग की सबसे चहेती पार्टी बनकर उभर रही है.…… यह महज़ कोई संयोग नहीं है कि प्रायः सभी कॉर्पोरेट मीडिया घरानों में "आप" और केजरीवाल की धूम मची है और वे खुलकर "आप" को केंद्रीय सत्ता की असली हकदार बता रहे हैं

इस मोड़ पर मज़दूर वर्ग की ताकतों को सही मूल्यांकन और सही कार्यनीति अपनाने की सख्त जरूरत है...... आप सभी दोस्तों से हार्दिक अपील है कि इस बहस को गम्भीरता के साथ आगे बढ़ाया जाए …… .


  ‘आप’ में शामिल होने के लिए ‘खास’ में मची होड़:

 Ajay Sinha ‘आप’ में शामिल होने के लिए ‘खास’ में मची होड़
आईबीएन-7 | 03-Jan 10:26 AM

कॉरपोरेट जगत से जुड़े कई बड़े नाम पार्टी से जुड़े हैं। रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड की पूर्व अध्यक्ष मीरा सान्याल लंबे अरसे से आम आदमी पार्टी से जुड़ी हैं। मीरा ने दक्षिण मुंबई से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए आवेदन भी किया है। आदर्श, दुनिया की नाम कंपनियों में शुमार एप्पल के पश्चिमी भारत के सेल्स प्रमुख थे। आईटी कंपनी इन्फोसिस के बोर्ड मेंबर वी बालाकृष्णन भी बुधवार को आम आदमी पार्टी के सदस्य बन गए। बालाकृष्णन को इन्फोसिस के संभावित सीईओ के तौर पर देखा जा रहा था।
कॉरपोरेट जगत के अलावा दूसरी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं में आप ज्वाइन करने की होड़ मची है। दिल्ली विश्वविद्यालय की अध्यक्ष रह चुकी अलका लांबा ने कांग्रेस से 20 साल पुराना नाता तोड़ आप का दामन थाम लिया है। लंबे अरसे तक समाजवादी पार्टी की लाल टोपी पहनने वाले कमाल फारुकी को भी आम आदमी की टोपी में नया सबक नजर आ रहा है। बीजेपी के पूर्व एमएलए कानू कलसारिया ने आम आदमी पार्टी का हाथ थाम लिया है।

https://www.facebook.com/ajay.sinha.9699/posts/762252950470960 


मज़दूर वर्ग के सापेक्ष "आप", कांग्रेस और भाजपा तीनों के बीच कहाँ कोई फर्क है ?
मज़दूर वर्ग के सापेक्ष "आप", कांग्रेस और भाजपा तीनों के बीच कहाँ कोई फर्क है ? कहाँ कोई फर्क दिखा ??

आज विधान सभा में मज़दूर वर्ग के सापेक्ष "आप", कांग्रेस और भाजपा तीनों के बीच कोई फर्क नहीं दिखा।जो फर्क आज से पहले दीखता था आज उसका पूरी तरह खात्मा हो गया। आज विधान सभा में "आप" पर चौतरफा हमला बोलने वाली भाजपा ने एक बार भी नहीं पूछा कि "आप" सरकार के मज़दूर वर्ग के हितों के लिए क्या programme है। उसे यह बात भी याद नहीं रही कि अरविन्द केजरीवाल ने contract labour की प्रथा को समाप्त करने का वादा किया था। कांग्रेस को भी "आप" की यह वादाखिलाफी याद नहीं आयी। वाह! क्या संयोग है !! कैसी सुन्दर चतुर एकता है !!! क्या मज़दूर वर्ग इसका जवाब देगा?????? जरूर देगा, जरूर



2 comments:

  1. जिस तरह "आप" के सुर बदलनें लगे हैं उससे लगता है की केजरीवाल भी उन ख़ास लोगों की भीड़ में जल्दी ही खो जायेंगे और फिर उस भीड़ में, हमेशा की तरह आम आदमी को खोजना मुश्किल होगा | ढूंढते रह जाओगे ===?मैं जज्बाती कतई नहीं हो रहा ,क्या हम सब नहीं चाहते कि राजनीति का चेहरा बदले ?

    ReplyDelete
  2. अगर IAS,IRSE,IPS ,पत्रकार आम आदमी है तो दिहाडीदार मजदूर,किसान, छोटे दुकानदारो को क्या कहोगे ?

    ReplyDelete