Tuesday 14 April 2020

कामरेड पूरन चंद्र जोशी : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ------ अरविन्द राजस्वरूप


Arvind Raj Swarup Cpi
कामरेड पूरन चंद्र जोशी ।

(जन्म 14 अप्रैल 1907 - मृत्यु 9 नवंबर 1980).

पार्टी के राज्य सचिव ने फेसबुक पर सब लोगों को ठीक ही याद दिलाया कि 14 अप्रैल तो काम पूरन चंद्र जोशी , पार्टी के पूर्व महामंत्री एवं एक अद्वितीय व्यक्तित्व का भी जन्मदिन है।

उस दिन हम उनको भी याद करेंगे।
उसी दिन जब कि हम डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को भी याद करते होंगे।

कामरेड पी सी जोशी को मैंने व्यक्तिगत रूप से जाना था , क्योंकि मेरे पिता और माता पर उनका अनन्य स्नेह था।

मैं कम से कम 2 बार अपने बाल्य काल में अपनें पिता के साथ दिल्ली में उनके घर पर गया था।

मेरी स्मृति में उनकी वह छवि है कि जिसमें वह हाफ पैंट और आधी बाहों की शर्ट पहने हैं और उनके कंधे पर कपड़े का एक झोला है।

दिल्ली में कहीं रैली हो रही थी तो वह उस रैली में साधारण लोगों की तरह घूम रहे थे।
जो लोग उनको जानते हैं उनसे वह बातें कर रहे थे।उस भीड़ भाड़ में।

मुझे याद पड़ता है चाहे तो दिल्ली का रामलीला मैदान हो या लाल किले का मैदान किसी एक रैली में वह अपनी इसी पोशाक में और झोला कंधे पर डालें लोगों से बातें करते हुए टहल रहे थे।
मैंने उनको देखा और उनके पास गया और जाकर उनको नमस्ते की।उनको अपने पिता का नाम बताया ।
वह बहुत खुश हुए उन्होंने पीठ थपथपाई ।मेरे से पूछा कि कौन सी क्लास में पढ़ते हो ।मैंने भी उनको बताने में यह कतई चूक नहीं की कि मैं ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन का नेता हूं और कानपुर के एक महाविद्यालय में अध्ययन करता हूं।
उन्होंने मेरे माता पिता दोनों ही के बारे में पूछा।दिल्ली से घर लौटने के पश्चात मैंने अपने पिता और माता दोनों को बताया कि मैं कामरेड जोशी से मिला था और उन्होंने आप दोनों के बारे में मेरे से पूछा था।
तो इतना तो मेरा उनसे व्यक्तिगत इंटरेक्शन हुआ।

हमारी पीढ़ी के लोगों के लिए तो कामरेड पीसी जोशी एक इतिहास का हिस्सा हैं। उन पर लिखे गए लेखों, पुस्तकों अथवा उनके द्वारा लिखे गए लेखों एवं कृतियों को पढ़कर ही हम कुछ अपनी राय कायम कर सकते हैं।
या प्राचीन तरीका है श्रुति , पुराने नेताओं से उनके बारे में सुना या किसी से भी उनके बारे में सुना और वह बातें स्मृति में बैठा लीं ।

महापुरुषों के बारे में मूल रचना लिखना यकायक ही आसान बात नहीं और ऐसा संभव भी नहीं।

वैसे भी करोना काल में उन पर मेटेरियल उपलब्ध हो सके वह आसान नहीं फिर भी जो कुछ उपलब्ध है और पुराने नेताओं के द्वारा उनके बारे में लिखा जा चुका है , इस समय उसका उल्लेख कर देने से काम तो चलेगा।

कामरेड पी सी जोशी का जन्म अल्मोड़ा में एक शिक्षित परिवार में हुआ था। उनके पिता अध्यापक थे ।
स्वतंत्रता आंदोलन के प्रभाव ,रूस की क्रांति की सफलता से प्रेरित समाजवाद के संघर्ष के फल स्वरूप 1925 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म कानपुर में हुआ था ।
रूसी क्रांति ने उस काल के अनेकों चैतन्य मस्तिष्कों को प्रभावित किया था। उसमें पी सी जोशी जैसे नवयुवक को मार्क्सवाद और
कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ आकर्षित किया ।ठीक उसी तरह जिस तरह भगत सिंह और उनके साथी उस दिशा में आकर्षित हुए थे ।
इस प्रकार कामरेड जोशी एक कम्युनिस्ट कार्यकर्ता के रूप में विकसित हुए।
दिसंबर 1925 में कानपुर में पार्टी की स्थापना कान्फ्रेंस के बाद एक के बाद दूसरा जल्दी-जल्दी पार्टी के कई महासचिव चुने गए कामरेड बगरहट्टा, एस वी घाटे ,एस वी देशपांडे ,डॉक्टर गंगाधर अधिकारी।

महामंत्री
अंत में 1936 में पी सी जोशी पार्टी के सर्वोच्च पद पर चुने गए।
पी सी जोशी को उनके सहयोगी और पार्टी के कार्यकर्ता प्यार से पीसीजे के नाम से बुलाते थे। पार्टी के गठन के उन प्रारंभिक वर्षों में पी सी जोशी एक सर्वमान्य पार्टी निर्माता और पार्टी नेता के रूप में जाने जाते थे।
महासचिव के रूप में कामरेड जोशी के कार्यकाल में देश स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम और निर्णायक चरण में प्रवेश कर रहा था। ऐसा समय था जब राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े गंभीर एवं महत्वपूर्ण घटनाक्रम चल रहे थे। निसंदेह कामरेड जोशी में अपने आप को इस अवसर की चुनौतियों का मुकाबला करने में समर्थ साबित किया और एक ऐसे व्यक्ति के रूप में स्वयं को साबित किया जो इन चुनौतियों को समझता था और उनका मुकाबला कर सकता था।

भारतीय कम्युनिस्टों के नेता की हैसियत से कॉमरेड जोशी ने विश्व के अंदर हो रहे घटनाक्रम का विश्लेषण किया और इन्हें ठीक तरह से समझा।

आगे वह सन 42 से 47 तक का समय था जब कामरेड पीसी जोशी ने बड़े पैमाने पर गतिविधियां चलाईं। उन्होंने लेखों, पुस्तिकाओं, पर्चों,रिपोर्टों के प्रकाशन की एक झड़ी सी लगा दी। अन्य पार्टियों के नेताओं से पत्र व्यवहार किया, साहित्यिक हस्तियों, कलाकारों, वैज्ञानिकों से मुलाकात की ।पार्टी के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने और पार्टी की नीतियों को उन सबके सामने रखने के लिए अनेकानेक कांफ्रेंसों और रैलियों में हिस्सा लिया। कोई भी चीज ऐसी न थी जिस पर उनका ध्यान न गया हो या जिस पर उन्होंने लिखा ना हो।

महात्मा गांधी से पत्र व्यवहार।

उस समय महात्मा गांधी से जो उनका पत्र व्यवहार हुआ वह विशेष तौर पर उल्लेखनीय है। कम्युनिस्टों के विरुद्ध तमाम अफवाहों और झूठी निंदा को देखते हुए महात्मा गांधी ने उनसे कई सवाल पूछे थे और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव होने के नाते उनसे उनका जवाब एवं स्पष्टीकरण मांगा था।
कामरेड जोशी ने राष्ट्रीय नेता के प्रति अत्यंत शिष्टाचार लेकिन एक कम्युनिस्ट की शालीन गरिमा एवं आत्म सम्मान के साथ उनके हर सवाल का विस्तार से जवाब दिया।
गांधी जी ने जो सवाल पूछ रहे थे उनमें एक सवाल पार्टी की वित्त व्यवस्था के संबंध में था। पार्टी के निन्दकों की जिनकी जबान साँप से भी अधिक लंबी और जहरीली होती है आरोप लगाया था की पार्टी को सरकार से या संभव है रूस से पैसा मिलता है।

जवाब
कॉमरेड जोशी का जवाब सबके लिए जानने योग्य है:
उन्होंने लिखा यदि आप यानी गांधीजी जी पार्टी के अकाउंट की व्यक्तिगत रूप से जांच परख करना चाहते हैं तो जब आप चाहे वह यानी पार्टी कोषाध्यक्ष कामरेड सुंदरिया और अकाउंटेंट लीला तमाम रजिस्टरों के साथ आपके सामने हाजिर हो जाएंगे। यदि आप किसी प्रतिनिधि को नियुक्त करने का तय करें तो वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसे हम भी एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में जानते हो और जो हमारे खिलाफ पहले से ही पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो।
आप नहीं पाएंगे कि हमारे अकाउंट किसी वाणिज्य फर्म की तरह सही तरीके से रखा गया है
और मुझे पूरा विश्वास है कि इस बात पर ध्यान रखते हुए आप हमें सही पाएंगे कि हम अभी भी सीख रहे हैं की अकाउंट को कैसे रखा जाए क्योंकि गैरकानूनी होने के सालों में हमारा विवाद या रहा है कि रजिस्टरों और सही अकाउंट को रखना है आपराधिक बेवकूफी है।
उसमें आपको कुछ अनाम चंदा देने वाले मिलेंगे। पर मुझे विश्वास है कि आप भी अनाम चंदा देने वालों को स्वीकार करते हैं पर किसी ऐसे संदेह की अनाम सरकारी पैसे का कोड हो सकता है को दूर करने के लिए मैं आपको (आपके प्रतिनिधि को नहीं )उनके नाम बताने को तैयार हूं।
अपने अगले पत्र में गांधीजी ने माना कि आपका जवाब जितना है उसे मैं पूरी तरह संतोषजनक मानता हूं ।मैं आप की वित्त व्यवस्था के बारे में आगे कोई सबूत नहीं मांगूंगा।

बंगाल आकाल

कामरेड जोशी की और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की, उस समय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्थिति में फासिस्ट विरोधी पीपुल्स वार यानी जन युद्ध को चलाने में और भारत के लोगों को संघर्ष के लिए लामबंद करने में व्यस्तता , के बावजूद उनकी नजर में यह भयानक त्रासदी ओझल नहीं हुई जो अत्याधिक तबाही वाले अकाल के रूप में बंगाल में आई थी । आकाल में 2 लाख से अधिक लोग मर गए थे। लाखों लोग बेसहारा और भिखारी के रूप में भीख मांगते हुए सड़कों पर आ गए थे।

पार्टी ने और अन्य संगठनों में उस समय बड़े पैमाने पर राहत कार्य हाथ में लिया ।पैसा और राहत और सामग्री के लिए देशभर में स्वयंसेवकों को पूरी तरह लामबंद किया ।डॉक्टरों के दस्ते बंगाल भेजे गए।
कलाकारों एवं गायक दलों को लामबंद किया गया और जनता की मुसीबत को दिखाने वाले नुक्कड़ नाटक किए गए ।
यह सब बातें पीसीजे के जबरदस्त संगठन कौशल का सबूत है।
इस अभियान के दौरान ही इंडियन पीपल थियेटर एसोसिएशन ने जिसकी स्थापना की गई थी नें शुरुआती शोहरत और लोकप्रियता पाई।

कामरेड जोशी ने चित्र प्रसाद और सुनील जाना जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों की खोज की ।
चित्र प्रसाद की एक कार्टूनिस्ट के रूप में और जाना की मानव जीवन और समाज के लिए फोटोग्राफर के रूप में।
पृथ्वीराज कपूर ,बलराज साहनी ,ख्वाजा अहमद अब्बास और अनेक अन्य लोग इप्टा के झंडे के तले काम कर रहे थे और उन्होंने उन दिनों अत्यंत सराहनीय कार्य किया।

डंके की चोट पर कहा जा सकता है कि कॉमरेड जोशी ने कम्युनिस्ट पत्रकारिता की प्रवृत्ति को भी तय किया।
वे स्वयं एक कुशल पत्रकार थे जिन्होंने लेनिन के उस कथन का मर्म समझ लिया था की पार्टी की पत्र पत्रिकाएं पार्टी के प्रचार कर्ता,आंदोलन कर्ता, और संगठन कर्ता, का काम करती हैं। वह कयूर के कैदियों से फांसी होने से ठीक पहले मिले थे। उस मुलाकात की उन्होंने जो रिपोर्टिंग की वह पत्रकारिता का एक श्रेष्ठतम उदाहरण है।

कुछ आलोचना।

एक रिवाज है कि जब किसी एक बड़े व्यक्तित्व के बारे में लिखा जाता है जो अब जीवित नहीं है तो उनकी खामियां और गलतियों का जिक्र नहीं किया जाता।
परंतु ऐसा करना वास्तव में वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन नहीं कहलाएगा। एक ऐसे व्यक्तित्व द्वारा की गई गलतियों तथा खामियों को बताते हुए भी सकारात्मक गुणों से अलग नहीं किया जा सकता है ।इसके विपरीत वह केवल उनके मानवीय पहलू को ही रेखांकित करता है।

स्टॅलिन ग्राद में जर्मनी की पराजय के बाद यह साफ हो गया था कि युद्ध में फासिस्टों की पराजय सुनिश्चित है ।ऐसे में कार्य नीति में काफी लचीलापन दिखाना था जो संभव ना हुआ होगा।

पार्टी उस उत्कट एवं ज्वलंत देशभक्ति को समझने में भी असफल रही जिस नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपने सभी कार्यकलापों में प्रेरित किया था।
लेकिन इन सब मसलों पर कहीं दूसरी जगह ही विचार करना समीचीन होगा।

1947 के उत्तरार्ध में केंद्रीय समिति ने उन्हें महासचिव के पद से हटा दिया और उनकी जगह कामरेड बीटी रणदिवे को पदस्थापित कर दिया।
कामरेड बीटी रणदिवे के कार्यकाल में पार्टी एक दुस्साहस वादी भटकाव में चली गई ।

पर  यह भी यहां पर बहुत महत्वपूर्ण बिंदु नहीं है कहीं अन्यत्र ही इसकी चर्चा की जा सकती है।

1857 का विद्रोह ।

कामरेड पीसी जोशी ने 1957 में 1857 के विद्रोह की शताब्दी पर एक अत्यंत मूल्यवान संगोष्ठी - जिसका सार तत्व स्वयं उन्हीं का 1857 पर सौ पृष्ठों का लेख था- का संपादन किया ।

वह एक विद्वतापूर्ण निबंध था जिसमें कुछ सिपाहियों द्वारा एक तथाकथित विद्रोह के बारे में साम्राज्यवादी एवं ब्रिटिश समर्थक लेखन और उसके पीछे बदनाम करने वाले इरादों को उद्घाटित किया एवं आलोचना की ।उसमें उन कुछ प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकारों के योगदान को धारा शाही कर दिया जिन्होंने उसमें अपने खोए विश्व को पुनः प्राप्त करने के लिए शयोन्मुख सामंती स्वामियों सरदारों एवं उनके परिजनों के अंतिम हताश प्रयास को देखा था। उन्होंने इस मसले पर स्वयं जवाहरलाल नेहरू से भी विवाद किया जिनका इतिहास में इस घटना के बारे में वह उभयभावी दृष्टिकोण था। उन्होंने अपने इस निबंध में 200 से अधिक स्रोतों का उल्लेख किया जिनमें अनेक भारतीय थे और यह दिखाने के लिए ब्रिटिश स्रोतों की आलोचनात्मक जांच की कि वह एक राष्ट्रीय विद्रोह था जो विदेशी शासन एवं शोषण के खिलाफ भारतीय जनता के संघर्ष का अग्रदूत था सेना के विद्रोह ने उसे एक सशस्त्र टकराव का स्वरूप प्रदान किया।

कामरेड पी सी जोशी और उनके सहयोगी सहयोगियों की टीम ने उस अवधि के लोकगीतों, मौखिक परंपराओं का संग्रह किया जो उस समय सामान्य जनता के मिजाज तथा मनोविज्ञान को प्रदर्शित करने वाला मूल्यवान स्रोत है। इतिहास में जोशी के योगदान की खास विशेषता यह थी कि उन्होंने 1857 को उसके ऐतिहासिक परिपेक्ष में रखा और स्वतंत्रता के लिए उभरते राष्ट्रीय आंदोलन पर उसके प्रभाव को सामने प्रस्तुत किया।
कानपुर से संबंध।

कामरेड पीसी जोशी कानपुर से भी बहुत अरसे तक जुड़े रहे ।ऐसा मुझको कानपुर के पुराने नेताओं ने ज़बानी बताया था । कानपुर में 1955 में हुई टेक्सटाइल मिलों की 80 दिन की हड़ताल में भी कामरेड पीसी जोशी का बहुत योगदान रहा। कानपुर की पार्टी में सदैव ही कामरेड पी सी जोशी का नाम अत्यंत सम्मान पूर्वक लिया जाता रहा और मेरी से पहले की पीढ़ी के नेतागण जो उनको नजदीक से जानते थे ,उनके कृतित्व की चर्चा आम मीटिंगों में करते रहे जिसको हमने पार्टी के एक साधारण कार्यकर्ता होने के नाते और विद्यार्थी एक्टिविस्ट होने के नाते जाना।

गांधी जी का मेरठ जेल में कम्युनिस्ट नेताओं से मिलना।

एक उल्लेख और भी महत्वपूर्ण है वो यह कि कांग्रेस के लाहौर सत्र के बाद गांधी जी सीधे मेरठ जेल जाकर कम्युनिस्ट बंधुओं से मिले।कामरेड जोशी भी मेरठ जेल में ही थे।गांधी जी ने कहा:
मैंने अपना वादा पूरा कर दिया है ।हम अब स्वतंत्रता के लिए एक राष्ट्रीय संघर्ष शुरू करने जा रहे हैं। जेल के बाहर अपने साथियों से इसका समर्थन करने के लिए कहिए। कम्युनिस्ट नेताओं की ओर से कामरेड डॉक्टर गंगाधर अधिकारी ने उनसे पूछा क्या हम आशा करें कि आप इसे वापस नहीं लेंगे जैसा आपने चौरी चौरा में किया था।
महात्मा गांधी ने कहा ।
नहीं।
तो ऐसे थे हमारे नेता ,कामरेड पीसी जोशी ।एक मानव ,कम्युनिस्ट और भारत में कम्युनिस्ट पार्टी के निर्माता एवं नेता।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को निर्मित करने में उनके योगदान को कभी भूला नहीं जा सकता। किसी भी पार्टी को बनाने में और उसको चलाने में गलतियां भी हो सकती हैं !पर किससे वह गलतियां नहीं होती!

(संदर्भ साहित्य: स्मृतिशेष कामरेड ए बी बर्धन ,स्मृतिशेष कॉमरेड हरबंस सिंह और कॉमरेड अनिल राजिमवाले।)
कानपुर
13 अप्रैल 2020
https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/2610656415819147

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