Tuesday 16 February 2016

पूंजीवाद- ब्राह्मणवाद गठजोड़ और वामपंथ की लापरवाही ------ विजय राजबली माथुर

जिस तरीके से जे एन यू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया को षड्यंत्र पूर्वक गिरफ्तार किया गया और कोर्ट के बाहर कामरेड अमीक व उनके साथियों के साथ-साथ पत्रकारों पर केंद्र में सत्तारूढ़ दल के विधायक एवं हमदर्द वकीलों द्वारा आक्रमण किया गया है उसको देख कर अपने 1991 में लिखे तथा 2011 में ब्लाग पर प्रकाशित लेख के कुछ अंशों को यहाँ पुनः देना उचित समझ आ रहा है। 

Sunday, September 18, 2011


बामपंथी कैसे सांप्रदायिकता का संहार करेंगे? ------ विजय राजबली माथुर

लगभग 12 (अब  32)  वर्ष पूर्व सहारनपुर के 'नया जमाना'के संपादक स्व. कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर'ने अपने एक तार्किक लेख मे 1951  - 52 मे सम्पन्न संघ के एक नेता स्व .लिंमये के साथ अपनी वार्ता के हवाले से लिखा था कि,कम्युनिस्टों  और संघियों के बीच सत्ता की निर्णायक लड़ाई  दिल्ली की सड़कों पर लड़ी जाएगी।

आज संघ और उसके सहायक संगठनों ने सड़कों पर लड़ाई का बिगुल बजा दिया है,वामपंथी अभी तक कागजी तोपें दाग कर सांप्रदायिकता का मुक़ाबला कर रहे हैं;व्यापक जन-समर्थन और प्रचार के बगैर क्या वे संघियों के सांप्रदायिक राक्षस का संहार कर सकेंगे?....................
यहाँ का प्राचीन आर्ष धर्म हमें "अहिंसा परमों धर्मा : "और "वसुधेव कुटुम्बकम" का पाठ पढ़ाता रहा है। नौवीं सदी के आते-आते भारत के व्यापक और  सहिष्णु  स्वरूप  को आघात लग चुका था। यह वह समय था जब इस देश की धरती पर बनियों और ब्राह्मणों के दंगे हो रहे थे। ब्राह्मणों ने धर्म को संकुचित कर घोंघावादी बना दिया था । ....................
पूंजीवादी प्रेस वामपंथी सौहार्द के अभियान को वरीयता दे भी कैसे सकता है?उसका ध्येय तो व्यापारिक हितों की पूर्ती के लिए सांप्रदायिक शक्तियों को सबल बनाना है। अपने आदर्शों और सिद्धांतों के बावजूद वामपंथी अभियान अभी तक बहुमत का समर्थन नहीं प्राप्त कर सका है जबकि,सांप्रदायिक शक्तियाँ ,धन और साधनों की संपन्नता के कारण अलगाव वादी प्रवृतियों को फैलाने मे सफल रही हैं।

सड़कों पर दंगे :

अब सांप्रदायिक शक्तियाँ खुल कर सड़कों पर वैमनस्य फैला कर संघर्ष कराने मे कामयाब हो रही हैं। इससे सम्पूर्ण विकास कार्य ठप्प हो गया है,देश के सामने भीषण आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है । मंहगाई सुरसा की तरह बढ़ कर सांप्रदायिकता के पोषक पूंजीपति वर्ग का हित-साधन कर रही है। जमाखोरों,सटोरियों और कालाबाजारियों की पांचों उँगलियाँ घी मे हैं। अभी तक वामपंथी अभियान नक्कार खाने मे तूती की आवाज की तरह चल रहा है। वामपंथियों ने सड़कों पर निपटने के लिए कोई 'सांप्रदायिकता विरोधी दस्ता' गठित नहीं किया है। अधिकांश जनता अशिक्षित और पिछड़ी होने के कारण वामपंथियों के आदर्शवाद के मर्म को समझने मे असमर्थ है और उसे सांप्रदायिक शक्तियाँ उल्टे उस्तरे से मूंढ रही हैं।

दक्षिण पंथी तानाशाही का भय :.......................
वामपंथी असमर्थ :

वर्तमान परिस्थितियों का मुक़ाबला करने मे सम्पूर्ण वामपंथ पूरी तरह असमर्थ है। धन-शक्ति और जन-शक्ति दोनों ही का उसके पास आभाव है। यदि अविलंब सघन प्रचार और संपर्क के माध्यम से वामपंथ जन-शक्ति को अपने पीछे न खड़ा कर सका तो दिल्ली की सड़कों पर होने वाले निर्णायक युद्ध मे संघ से हार जाएगा जो देश और जनता के लिए दुखद होगा।







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http://navbharattimes.indiatimes.com/metro/delhi/politics/bjp-mla-op-sharma-beats-up-an-unidentified-man-outside-delhis-court/articleshow/50995987.cms


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यही उनकी सच्चाई है और आज एक अकेला जनसंघ नहीं है उनके साथ। 1980 में इंदिराजी ने देवरस से हुये 1975 के पैकट के तहत समर्थन प्राप्त कर सत्ता वापिसी की और 1984 में राजीव जी को भी उनका समर्थन रहा था। आज उनके समर्थक सपा,बसपा और वामपंथ में भी घुस चुके हैं। सेना, पुलिस और खुफिया विभागों तथा ब्यूरो क्रेसी में भी घुसे हुये हैं। JNUSU अध्यक्ष ने अपने भाषण में 'ब्राह्मण वाद - पूंजीवाद ' गठजोड़ की आलोचना की है और ' जय भीम - लाल सलाम' की बात उठाई है। इसी कारण कामरेड कन्हैया को गलत फंसाया गया है।उन पर व D.Raja साहब की पुत्री पर उल्टा इल्ज़ाम ब्राह्मण वाद - पूंजीवाद गठजोड़ का ही परिणाम है। वामपंथ में घुसे ब्राह्मण और ब्राह्मण वाद के पोषकों पर भी निगरानी रखने की ज़रूरत है जो भीतर- भीतर गृह मंत्री के साथ हैं। ------
बर्द्धन जी पर ब्राह्मण वाद के प्रहार :
आदरणीय  कामरेड  बर्द्धन जी के जीवन काल में भी ये ही साम्राज्यवाद/अश्लीलता समर्थक ब्राह्मण कामरेड उन पर तथा कामरेड अतुल अंजान साहब पर अभद्र प्रहार करते थे जिस कारण उनको पार्टी से निष्कासित भी किया गया था किन्तु गलत तरीके से। अब बर्द्धन जी के न रहने पर भी यह उन पर आक्रमण करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। इन लोगों को उन्ही लोगों का समर्थन प्राप्त है जो यू पी में दो बार पार्टी विभाजन के उत्तरदाई हैं  और जो पिछड़े/दलित  कामरेड्स को दबा कर रखने के प्रयासों में रहते हैं। भाजपाई राज्यपाल,मंत्रियों व सांसदों से मधुर संबंध अपने निजी हित में बनाए रखते हैं। कानूनी और राजनीतिक लड़ाई कामरेड कन्हैया के हक में चलाने के साथ-साथ पूंजीवादी तत्वों से गठजोड़ किए आंतरिक ब्राह्मण कामरेड्स पर भी ध्यान दिये जाने की आज परम आवश्यकता है। 





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इसका अभिप्राय यह हुआ कि, गृहमंत्री ने प्रधानमंत्री की छवी बिगाड़ने के लिए गलत चाल चल कर उनके खिलाफ माहौल बनाने में अपनी अक्ल का इस्तेमाल किया। लेकिन वह भी तो जन-हितैषी नहीं हैं।



वामपंथ को भाजपा के आंतरिक विवाद पर नहीं बल्कि अपने आंतरिक ब्राह्मण कामरेड्स पर नज़र रखने की ज़रूरत है। 

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