Saturday 13 August 2016

शिक्षा कोई घुड़दौड़ नहीं ------ राहिला परवीन



हाल ही में बिहार के शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा जो पूरे देश में चर्चा का विषय बना रहा.

बिहार टॉपर घोटाले का खुलासा होते ही सरकार के तरफ से कारवाई शुरू कर दी गई थी, जाँच कमिटी बनाई गई. सारे टॉप करने वाले छात्रों का फिर से टेस्ट लिया गया और जिन छात्रों के टॉप करने पर सवाल उठा था उन छात्रों को असफल पाए जाने पर उनके परीक्षाफल को रद्द भी कर दिया गया. आर्ट्स की टॉपर रूबी राय को हिरासत में ले कर क़ानूनी प्रक्रिया के तहत पूछताछ की गई. लेकिन इन सबके बीच ये सवाल कम नहीं हुआ कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था इतनी लचर कैसे है? देश के चारों कोनों से ये आवाज़ आती रही की बिहार में बिना पढ़े कोई भी टॉप कर सकता है. इस तथ्य पर गौर किये बगैर  कि ,क्या बिहार में हर साल इसी तरह बच्चे टॉप करते हैं. बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर हर दूसरा आदमी अपनी निगेटिव राय रखने लगा है. जबकि पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था आज के दौर में खस्ता हाल की शिकार है. इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार का टॉपर घोटाला पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था पर काला धब्बा है. उसी समय गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के मामले भी सामने आए, जहां कहीं सौ नंबर

के पेपर में उससे ज्यादा मार्क्स दिए गए थे, तो मध्य प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था में घपला व्यापम के शक्ल में पूरे देश के सामने आ चुका है. जिसमें न सिर्फ डिग्रियां बेची गईं बल्कि इस घपले की जाँच करने वालों की जान भी ली गईं. सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम भी इस दिशा में कारवाई के रूप में नहीं उठाये गए. ऐसे हालात में क्या सिर्फ बिहार को निशाना बनना तर्कसंगत होगा? लेकिन इसके बावजूद बिहार में जिस तरह शिक्षा व्यवस्था के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है उसे कत्तई सही नहीं ठहराया जा सकता. जो लोग इसके जिम्मेदार हैं उन्हें भारतीय क़ानून के तहत सज़ा होना चाहिए. जाँच में रूबी राय से पूछे जाने पर वह कहती है कि मैं कैसे टॉप की मुझे नहीं पता, मैंने बस इतना कहा था कि मुझे पास करवा देना. अब सवाल ये उठता हे कि कौन चाहता था कि रूबी राय और दूसरे फर्जी टॉपर टॉप करें. उनके मां-बाप या समाज का अपंग समाजिक ढांचा? जिसे झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा बहुत लुभाती है. परीक्षा चाहे जो भी हो उसमें परीक्षार्थी की सफलता सिर्फ मार्कशीट पर लिखे नंबर से ही तय होती है.

आख़िर ये मानसिकता कहाँ से पनपी? क्यों उन छात्रों के मां-बाप ने ये कदम उठाया? क्या ये सच नहीं कि इस तरह के अपराध के हम आदि हो गए हैं, हमें ये अपराध कभी अपराध लगता ही नहीं हैं. दौड़ में आगे वही जाता है जो तेज़ दौड़ता हो, जाहिर है जो बच्चे पढ़ाई में अच्छे हैं, जिन्हें सारी सुविधा मिली हो वो बेहतर कर पाएंगे. लेकिन हमें हमेशा ये याद रखना चाहिए कि शिक्षा कोई घुड़दौड़ नहीं. राज्य व केंद्रीय सरकार द्वारा समाजिक आर्थिक रूप से पिछड़ें बच्चों के लिए वो सारी सुविधा मुहैया कराना चाहिए जिससे कोई भी बच्चा अपनी मेहनत लगन से सफलता को हासिल कर पाए. इस पूरे घोटाले की प्रक्रिया में बोर्ड के वे सारे कर्मचारी भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने चंद पैसों के लिए देश की शिक्षा वयवस्था के साथ

खिलवाड़ किया. आज के दौर में पूरे देश में शिक्षा का व्यापारीकरण किया जा रहा है. देश के अंदर शिक्षा का जिस तरह निजीकरण हो रहा है ऐसे में शिक्षा कुछ ही लोगों के हाथों की कठपुतली बन कर रह गई है. सरकारी स्कूलों, कॉलेजों के स्तर को बेहतर बनाना जरूरी है. शिक्षा देश के हर बच्चों को देना राज्य की जिम्मेदारी होती है. इसके लिए केंद्र सरकार को भी मजबूत कदम उठाने होंगे. 


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