गाँधी का मूल्याङ्कन करने में कम्युनिस्ट साथियों से भूल हुई है । संघ से कदम ताल मिला कर गाँधी जी की निंदा करना उनके लिए नुकसान देह ही रहा है । गाँधी जी ने वोल्शेविज्म के आदर्श को नमन किया था , पर वे कम्युनिस्ट तो नहीं ही थे न । कम्युनिस्ट यदि दुनिया भर के मुक्ति संग्रामो और जनवादी क्रांतियो का मूल्याङ्कन करते वक्त उनके नेताओं को इसी कसौटी पर कसने लगें कि उनका कुल आचार-विचार रणनीति और लक्ष्य समाजवादी/कम्युनिस्ट क्रांति के अनुरूप था या नहीं तो फिर सबकी निंदा ही करते रहेंगे ।
Madhuvandutt Chaturvedi
गाँधी का मूल्याङ्कन करने में कम्युनिस्ट साथियों से भूल हुई है । संघ से कदम ताल मिला कर गाँधी जी की निंदा करना उनके लिए नुकसान देह ही रहा है । गाँधी जी ने वोल्शेविज्म के आदर्श को नमन किया था , पर वे कम्युनिस्ट तो नहीं ही थे न । कम्युनिस्ट यदि दुनिया भर के मुक्ति संग्रामो और जनवादी क्रांतियो का मूल्याङ्कन करते वक्त उनके नेताओं को इसी कसौटी पर कसने लगें कि उनका कुल आचार-विचार रणनीति और लक्ष्य समाजवादी/कम्युनिस्ट क्रांति के अनुरूप था या नहीं तो फिर सबकी निंदा ही करते रहेंगे । गाँधी से उन्होंने यही अपेक्षा की थी , जो गलत थी ।भारत के स्वतंत्रता संग्राम में समाज सुधार के कार्यक्रम और समान रूप से सामंतवाद विरोधी जनतान्त्रिक क्रांति को हम समुचित सम्मान नहीं दे सके हैं । ऐसा लगता है जैसे हम गाँधी पर इसलिए झुंझलाते हों कि गाँधी ने समाजवादी क्रांति क्यों नहीं की ।भाई , ये हमारा लक्ष्य है ,उनका नहीं न ।उन्होंने साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रिय आन्दोलन का नेतृत्व किया था और धर्मनिरपेक्ष भारतीय गणराज्य के लिए अपेक्षित राष्ट्रीयता का विकास किया था । इस गणराज्य को फासिज्म की चुनौतियाँ तब भी स्पष्ट थीं और गाँधी- नेहरू ने यह पहचानी हुईं थी । समाजवादी क्रांति के लक्ष्य को आगे बढ़ाते हुए यदि हम फासिज्म की चुनौती का सामना करने के लिए गाँधी- नेहरु की चिन्ताओ में साझा होते रहते तो आज फासिस्ट प्रचारक गाँधी-नेहरु के प्रति युवकों को दुष्प्रचार से भ्रमित करने में सफल न होते ।
1942 August struggle and the communist party of india
by Dilip BoseForward By
C Rajeswara Rao
This is not the first time that the Quit India moment has been forked out to slander and attack the communist moment in our country. Whenever the ruling circles and reactionary vested interested are in the tight corner or the communist moment making headway, they would dig up old fables to whip up anti-communist prejudices.The pet theme is the so called ‘betrayal’ of the freedom struggle in 1942 by communist party of india. Such things happened a number of times in the past, even as late as in 1975,during the days of emergency imposed by Mrs Indira Gandhi.
Now extreme reaction is worried because of the forging of left unity through the united struggles of the toiling people and also its gathering round of democratic allies. Hence this resurrection of the ghost of 1942 once again by Arun shourie in order to isolate the communist moment by fanning anti – communism
Communists are second to none in their love for the motherland. Sometimes our path and tactics are differed from thoseof the leadership of the Congress. But that is another matter. We are also second to none in making sacrifices in the cause of the countries freedom and its advance. Because of this the communist moment in our country could attract ardent patriots and revolutionaries form all streams of the freedom moment, including the congress, some of whose names are mentioned in the booklet.
We are proud that we brought the organized movements of the workers, peasants, agricultural labourers, students , youth and women in to the freedom struggle
We are also proud that in the final phase of the freedom struggle, communist party of india led such revolutionary movements as the famous Telengana armed struggle, punnapra vayalar Armed struggle,in Kerala and Bombay textile workers in support of RIN mutiny, Nilgiri- Dhenkanal struggles in the former princely states of Orissa and the Banga Tegbhaga struggle in which over 5000 communists laid down their lives. In this way the CPI played its roll in the foiling the game of British imperialists and their stooges, the native princes, to balkanise our country by spilling the blood of heroic martyrs.
https://communistindian.wordpress.com/2016/03/15/1942-august-struggle-and-the-communist-party-of-india/
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निस्संदेह कम्युनिस्टों का योगदान देश को आज़ादी दिलाने में अविस्मरणीय है। किन्तु बावजूद लेनिन व स्टालिन की उपयुक्त सलाह के भारतीय संदर्भों को न अपनाना तब भी और अब भी कम्युनिस्टों के विपरीत जा रहा है जिसका पूरा-पूरा लाभ फासिस्ट साम्राज्यवादियो को मिलता रहा है। ब्राह्मण वादी कामरेड्स के कम्युनिस्ट पार्टियों में नियंता होने का भी सम्पूर्ण लाभ फासिस्ट-साम्राज्यवादी ही उठा रहे हैं।
(विजय राजबली माथुर )
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यह विचारणीय है. हम समाजवाद के लिए लड़ते हैं कम्युनिस्ट का साम्राज्य के लिए नहीं. यदि समाजवाद के लिए कोई आन्दोलन हो रहे हो तो निश्चित उसे आगे बढ़ाना चाहिय . अन्यथा पहले यह तय कर लें कि हमारी असली लड़ाई किसलिए है?
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