Wednesday 6 January 2016

बर्धन: एक ईमानदार पुरोधा श्रद्धांजलि ------ अतुल अंजान


 दलितों, आदिवासियों मजदूरों, अंतराराष्ट्रीय राजनैतिक परिस्थितियों और आर्थिक विषयों पर कॉमरेड बर्धन की पकड़ थी और इन विषयों पर उन्होंने लगभग 20 किताबें लिखीं। मार्क्‍सवाद और विवेकानंद के दर्शन पर उनकी लिखी किताब आध्यात्मिक तर्कशास्त्रियों के बीच चर्चित रही। मंडल-कमंडल के विवाद में वो मंडल कमीशन की सिफारिशों के बड़े समर्थक थे। उन्होंने मंदिर-मस्जिद विवाद में, संप्रदायवादियों से विशेषकर संघ परिवार और भाजपा से वैचारिक स्तर पर राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया, आंदोलन किया और सन 2003 में देश में भाजपा की सरकार के खिलाफ ‘‘बचाओ भारत-बनाओ भारत’ को लेकर भाकपा का राष्ट्रीय अभियान चलाया, जिसमें लेखक ने भी (मणिपुर से दिल्ली) चार हजार किमी की यात्रा की। नाइंसाफी के खिलाफ एक बुलंद आवाज थे साथी बर्धन। आप हमेशा अधिकारों के लिए लड़ रहे लोगों के दिलों में रहेंगे। आपको भावभीनी श्रद्धांजलि।---- अतुल अंजान


बर्धन: एक ईमानदार पुरोधा 
श्रद्धांजलि
अतुल अंजान
भारत की आजादी की लड़ाई से जुड़ी हुई विभूतियां एक-एक कर हमसे विदा हो रही हैं। सिर्फ वो हमारे बीच से ही नहीं जा रहे बल्कि संघर्षो की, कुर्बानियों की एक पूरी गाथा हमारी आंखों के सामने से इतिहास का हिस्सा बनती जा रही है। 2016 के आगमन के साथ ही 2 जनवरी को महान वामपंथी नेता भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव कॉमरेड ए बी बर्धन 27 दिनों तक जीवन से संघर्ष करते हुए दिल्ली के सरकारी जीबी पंत अस्पताल में (किसी र्नसंिग होम में नहीं) अपने जीवन की अंतिम सांसें साढ़े आठ बजे रात में लेकर कुर्सी की राजनीति से दूर, कुर्बानी का पाठ पढ़ाकर चले गए।उनका चले जाना इरादों के साथ, ईमानदारी का संग लेकर राजनीति करने वाले लोगों की जमात के एक पुरोधा का चले जाना है। 92 वर्षीय एबी बर्धन ने साठ वर्षो से अधिक के सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में, विभिन्न क्षेत्रों में बेदाग छवि के साथ मजदूरों, किसानों, अधनंगे भूखों और बुनकरों की लड़ाई लड़कर अपनी जानदार आवाज से उनके संघर्षो को नई धार दी। बर्धन जिन्हें महाराष्ट्र के लोग साथी बर्धन-भाई बर्धन के नाम से पुकारते थे, का जन्म 25 सितम्बर 1925 को हुआ था। कामरेड बर्धन ने एम ए (अर्थशास्त्र) और वकालत की उच्च शिक्षा हासिल की। बीस वर्ष की अवस्था में वे नागपुर विश्विद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए और उन्होंने उस समय के प्रमुख कांग्रेसी छात्रनेता-जो बाद में केंद्रीय मंत्री बने-स्वर्गीय बसंत साठे को पराजित किया था। छात्रसंघ अध्यक्ष बनने से पूर्व वह ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के सदस्य बन चुके थे और बाद में उसके राष्ट्रीय सचिव चुने गए। बर्धन प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य ब्रिटिश काल में बने। पार्टी के होलटाइमर बनकर वो घर-बार छोड़कर पार्टी के विस्तार में नागपुर संभाग में जुट गए। उनका विशेष ध्यान मजदूर वर्ग की दुर्दशा पर था, इसीलिए वो मजदूरों को संभठित करने के लिए उनके ट्रेड यूनियनों को संगठित करने में जुट गए। बिजली कर्मचारियों, रेल मजदूरों, कपड़ा मिलों के मजदूरों, डिफेंस मजदूरों, समाचार पत्रों के प्रेस कर्मचारियों, इंजीनियर कर्मचारियों को संगठित करने में अपनी पूरी शक्ति लगाई। उन्होंने भारत के बुनकरों के शोषण को देखकर विशेष रूप से इस उद्योग में लगे विशाल अल्पसंख्यकों की संख्या और उन्हें नारकीय जीवन से निकालने के लिए राष्ट्र स्तर पर उनका संगठन तैयार किया, फलस्वरूप बुनकरों को उनके उत्पादित माल का संरक्षण और सरकारी बाजार मिल सका। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में हिस्सा लिया और करीब साढ़े चार साल जेल में बिताए। कॉमरेड बर्धन का नाम अत्यंत साहित्यिक नाम है- अध्रेदु भूषण बर्धन। वो उच्च मध्य परिवार में पैदा हुए थे। सिलहट (वर्तमान बांग्लादेश) में उनकी पैदाइश है। उनके पिता रेलवे में बड़े अधिकारी थे और रेल की सेवा के तहत वो नागपुर में ही बस गए थे। फलत: बर्धन का भी सामाजिक-राजनीतिक कार्यकलाप का क्षेत्र नागपुर बन गया। लंबे दौर तक रायपुर-नागपुर मध्य भारत प्रदेश का बहुत बड़ा केंद्र था। दरअसल बर्धन का विशेष गुण यह था कि वो मार्क्‍सवादी दर्शन और वैज्ञानिक समाजवाद के उद्भट ज्ञाता थे। अर्थशास्त्र की शिक्षा और उनकी कुशाग्र बुद्धिता ने जटिल मार्क्‍सवादी दर्शन के विचारों को गहरी पकड़ के साथ समझने और औरों को समझाने की विलक्षण प्रतिभा विकासित की। श्रमिक आंदोलन में उनकी गहरी रुचि और योगदान दिन-रात उनकी पैरवी करते हुए मालिकों और अधिकारियों के सामने वैज्ञानिक तर्क रखकर मजदूरों के हितों के लिए कुछ हासिल करने का उनका अंदाज मजदूरों को हमेशा अच्छा लगता था, इसीलिए वह उनके प्रिय नेता बन गए। जीवनपर्यत वो महाराष्ट्र के बिजली कर्मचारियों के निद्र्वद्व नेता बने रहे। महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी वकर्स फेडरेशन के पचास साल से भी अधिक वर्षो तक अध्यक्ष या महामंत्री चुने जाते रहे।वर्तमान में विभिन्न राज्यों के बिजली कर्मचारियों के राष्ट्रीय संगठन ऑल इंडिया इलेक्ट्रिसिटी इंप्लायर्स फेडरेशन के अध्यक्ष रहे। वो बीसियों वर्ष से ऑल इंडिया डिफेंस फेडरेशन (जो डिफेंस कर्मियों का एक मात्र संगठन है) के उपाध्यक्ष रहे। 1968 में कॉमरेड बर्धन भाकपा के शीर्षस्थ नीति निर्माता समिति-राष्ट्रीय परिषद-के सदस्य चुने गए और फिर 1978 में वो केंद्रीय कार्यसमिति के सदस्य चुने गए। वैचारिक प्रश्नों पर एवं मजदूरों में काम करने, पार्टी की राजनीतिक कार्यनीति के संबंध में भाकपा के एवं देश की कम्युनिस्ट और मजदूर आंदोलन के शीर्ष नेता कामरेड श्रीपाद अमृत डांगे से उनके गहरे मतभेद भी हुए। जो लोग ये कहते हैं कि भाकपा के संगठन में जनवाद नहीं है और वहां तानाशाही चलती है, उनके लिए यही जवाब है। आंख खोलकर देखने की बात है कि कॉमरेड डांगे से मतभेद के बाद भी कॉमरेड बर्धन संगठन में अपनी जगह बनाते रहे।जन आंदोलनों का नेतृत्व करते हुए साथी बर्धन 1957 में नागपुर शहर से विधानसभा का चुनाव जीते और पांच सालों तक महाराष्ट्र विधानसभा में मजदूरों, कपड़ा मजदूरों, बुनकरों, कपास-मूंगफली-तिलहन पैदा करने वाले किसानों के सवालों को बड़े शानदार तरीके से उठाकर, तर्क के साथ इस समाज की समस्याओं को राजनैतिक और आर्थिक सुधार के एजेंडे में शामिल कर देते थे। 1994 में जब भारत के संसदीय जीवन के सर्वोच्च सांसद एवं ट्रेड यूनियन नेता स्व. कॉमरेड इंद्रजीत गुप्ता भाकपा के महासचिव बने तो देश के सबसे पुराने ट्रेड यूनियन-ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस-के महासचिव के पद पर साथी बर्धन को चुना गया। बाद में कॉमरेड गुप्ता ने 1996 में श्री देवेगौड़ा की सरकार में देश के गृहमंत्री बने तो कॉमरेड बर्धन को भाकपा राष्ट्रीय परिषद ने पार्टी का महासचिव चुना और इस पद को वह सन 2012 तक सुशोभित करते रहे। साथी बर्धन हिंदी, अंग्रेजी और मराठी भाषा के जानकार थे और इन तीनों भाषाओं में विशिष्ट वक्ता भी थे। बोलचाल में वो बांग्ला भाषा भी बहुत साफबोलते और पढ़ते थे। दलितों, आदिवासियों मजदूरों, अंतराराष्ट्रीय राजनैतिक परिस्थितियों और आर्थिक विषयों पर कॉमरेड बर्धन की पकड़ थी और इन विषयों पर उन्होंने लगभग 20 किताबें लिखीं। मार्क्‍सवाद और विवेकानंद के दर्शन पर उनकी लिखी किताब आध्यात्मिक तर्कशास्त्रियों के बीच चर्चित रही। मंडल-कमंडल के विवाद में वो मंडल कमीशन की सिफारिशों के बड़े समर्थक थे। उन्होंने मंदिर-मस्जिद विवाद में, संप्रदायवादियों से विशेषकर संघ परिवार और भाजपा से वैचारिक स्तर पर राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया, आंदोलन किया और सन 2003 में देश में भाजपा की सरकार के खिलाफ ‘‘बचाओ भारत-बनाओ भारत’ को लेकर भाकपा का राष्ट्रीय अभियान चलाया, जिसमें लेखक ने भी (मणिपुर से दिल्ली) चार हजार किमी की यात्रा की। नाइंसाफी के खिलाफ एक बुलंद आवाज थे साथी बर्धन। आप हमेशा अधिकारों के लिए लड़ रहे लोगों के दिलों में रहेंगे। आपको भावभीनी श्रद्धांजलि।


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