Wednesday 23 March 2016

कन्हैया के विरुद्ध बाजरवादी वामपंथियों का प्रहार किसको लाभ पहुंचाने के लिए ? ------ विजय राजबली माथुर

23 मार्च 2016 को  हैदराबाद में रोहित वेमुला की माँ से AISF महासचिव के साथ कन्हैया कुमार 


******JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार AISF महासचिव सैयद वलीउल्लाह खादरी के साथ हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दिवंगत छात्र रोहित वेमुला की माँ व परिवारीजनों से मिलने गए। उनको वहाँ यूनिवर्सिटी में जा कर आज सभा को संबोधित करना था किन्तु कल ही छात्रों पर पुलिस द्वारा बर्बर लाठी चार्ज के बाद 28 तारीख तक के लिए यूनिवर्सिटी को बंद कर दिया गया था। 
कन्हैया और साथियों ने जे एन यू में रोहित को न्याय दिलाने के लिए मुहिम चला रखी है। अपनी गिरफ्तारी से पूर्व व पश्चात भी कई बार कन्हैया ने वामपंथ (लाल ) व आंबेडकर पंथ ( नीला ) के सहयोग तथा समन्वय से साम्राज्यवादी/संप्रदायवादी शक्तियों से आज़ादी की बात उठाई है। इसीलिए उनके भाषण के वीडियोज़ में ओवरलेपिंग करके उनको झूठे आरोपों पर गिरफ्तार कराया गया व उन पर शारीरिक हमले कराये गए। उनकी हत्या के लिए इनाम घोषित कराये गए। उन पर सेना को बदनाम करने के मन गढ़ंत आरोप लगाए गए। जस्टिस वर्मा की रिपोर्ट एवं रेलमंत्री को ट्वीट किए गए समाचारों से कन्हैया द्वारा व्यक्त तथ्यों की पुष्टि ही होती है। फिर भी उनका चरित्र हनन अभियान जारी है। 
ऐसे में प्रश्न उठता है कि अति वामपंथ अथवा क्रांति के नाम पर कन्हैया विरोधी अभियान चलाने वाले आखिर किसका भला कर रहे हैं। इसे समझने के लिए 1964 के सी पी आई के विभाजन को याद करना होगा। तब पार्टी में दलित व पिछड़ा वर्ग के लोग प्रभावी होने की स्थिति में आ रहे थे अतः ब्राह्मण वादियों ने सिद्धांतों का जामा पहना कर सी पी एम का गठन करके पार्टी को विभाजित कर दिया जिससे दोनों दलों में ब्राह्मण वर्चस्व बना रहा। सी पी एम से अनेक और विभाजन हुये परिणाम स्वरूप वामपंथ जनता से और दूर हो गया। केंद्र में दक्षिण पंथी तानाशाही चाहने वाला दल सत्ता में आ गया जो पुलिस,सेना,प्रशासन और न्यायपालिका तक को प्रभावित करने को प्रयत्नशील है।   इन परिस्थितियों की भयावत: के बीच उन कन्हैया  पर सोशल मीडिया के माध्यम से प्रहार किया जा रहा है जो दक्षिण पंथ विरोधी व्यापक एकता की बात की पहल कर रहे हैं। तब मतलब साफ है कि यह एक ब्राह्मण वादी साजिश है जो दक्षिण पंथ की ही सहायता का अभियान है। 

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फेसबुक पर प्राप्त  टिप्पणी ::

वस्तुतः आज भी मार्क्स की जय बोलते हुये मास्को/पेकिंग रिटर्ण्ड ब्राह्मण वादी कामरेड्स सामंतवादी/साम्राज्य वादी/सांप्रदायिक मानसिकता से ग्रस्त हैं परंतु विभिन्न दलों में ये ही नियंत्रक बने हुये हैं। अन्य लोगों को दबा/कुचल कर रखना इनका शगल है और विभिन्न विभाजनों के लिए ये ही जिम्मेदार हैं। इनका कहना है ओ बी सी व दलित से काम तो लो लेकिन उनको पद न दो । यह व्यवहार खुद में शोषण-उत्पीड़न ही है। कन्हैया ने सबको समान महत्व देने की बात उठाई है इसलिए दक्षिण पंथी और वामपंथी ब्राह्मण एक साथ उनका विरोध कर रहे हैं। 
हालांकि 'नौजवान भारत सभा' के कार्यालय पर भी रात को छापा डाला गया है। किन्तु दलित छात्रों जिनमें डॉ आंबेडकर के पौत्र भी शामिल हैं देशद्रोही बताया जा रहा है। 

जैसा आलोकतांत्रिक वातावरण व्याप्त हो रहा है उसमें सभी लोकतान्त्रिक लोगों को एकजुट होने की ज़रूरत है और यही प्रयास कन्हैया का है। जब लोकतन्त्र ही नहीं रहेगा तब जनता तो बस गुलाम ही होगी। इसलिए वामपंथ में घुसे आलोकतांत्रिक लोगों से सतर्क रहने की प्रबल आवश्यकता है। 

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