Monday 25 December 2017

स्थापना दिवस 26 दिसंबर पर विशेष : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ------ विजय राजबली माथुर






इस दल की स्थापना तो 1924 ई में विदेश में हुई थी। किन्तु 25 दिसंबर 1925 ई को कानपुर में एक सम्मेलन बुलाया गया था जिसके स्वागताध्यक्ष  गणेश शंकर विद्यार्थी जी थे। 26 दिसंबर 1925   को एक प्रस्ताव पास करके  'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टीकी स्थापना की विधिवत घोषणा की गई थी। 1931 ई में इसके संविधान का प्रारूप तैयार किया गया था किन्तु उसे 1943 ई में पार्टी कांग्रेस के खुले अधिवेन्शन में स्वीकार किया जा सका क्योंकि तब तक ब्रिटिश सरकार ने इसे 'अवैध'घोषित कर रखा था और इसके कार्यकर्ता 'कांग्रेसमें रह कर अपनी गतिविधियेँ चलाते थे। 

वस्तुतः क्रांतिकारी कांग्रेसी ही इस दल के 
संस्थापक थे। 1857 ई की क्रांति के विफल होने व निर्ममता पूर्वक कुचल दिये जाने के बाद स्वाधीनता संघर्ष चलाने हेतु स्वामी दयानन्द सरस्वती (जो उस क्रांति में सक्रिय भाग ले चुके थे)ने 07 अप्रैल 1875 ई (चैत्र शुक्ल  प्रतिपदा-नव संवत्सर)को 'आर्यसमाज' की स्थापना की थी। इसकी शाखाएँ शुरू-शुरू में ब्रिटिश छावनी वाले शहरों में ही खोली गईं थीं। ब्रिटिश सरकार उनको क्रांतिकारी सन्यासी (REVOLUTIONARY SAINT) मानती थी। उनके आंदोलन को विफल करने हेतु वाईस राय लार्ड डफरिन के आशीर्वाद से एक रिटायर्ड ICS एलेन आकटावियन (A.O.)हयूम ने 1885 ई में वोमेश चंद (W.C.) बैनर्जी की अध्यक्षता में 'इंडियन नेशनल कांग्रेस' की स्थापना करवाई जिसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यवाद की रक्षा करना था। दादा भाई नैरोजी तब कहा करते थे -''हम नस-नस में राज-भक्त हैं''। 
स्वामी दयानन्द के निर्देश पर आर्यसमाजी कांग्रेस में शामिल हो गए और उसे स्वाधीनता संघर्ष की ओर मोड दिया। 'कांग्रेस का इतिहास' में डॉ पट्टाभि सीता रमइय्या ने लिखा है कि गांधी जी के सत्याग्रह में जेल जाने वाले कांग्रेसियों में 85 प्रतिशत आर्यसमाजी थे। अतः ब्रिटिश सरकार ने 1906 में 'मुस्लिम लीग'फिर 1916 में 'हिंदूमहासभा' का गठन भारत में सांप्रदायिक विभाजन कराने हेतु करवाया। किन्तु आर्यसमाजियों व गांधी जी के प्रभाव से सफलता नहीं मिल सकी। तदुपरान्त कांग्रेसी डॉ हेद्गेवार तथा क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने अपनी ओर मिला कर RSS की स्थापना करवाई जो मुस्लिम लीग के समानान्तर सांप्रदायिक वैमनस्य भड़काने में सफल रहा। 
इन परिस्थितियों में कांग्रेस  में रह कर क्रांतिकारी आंदोलन चलाने वालों को एक क्रांतिकारी पार्टी की स्थापना की आवश्यकता महसूस हुई जिसका प्रतिफल 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी'के रूप में सामने आया। ब्रिटिश दासता के काल में इस दल के कुछ कार्यकर्ता पार्टी के निर्देश पर  कांग्रेस में रह कर स्वाधीनता संघर्ष में सक्रिय भाग लेते थे तो कुछ क्रांतिकारी गतिविधियों में भी संलग्न रहे। उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यवाद से देश को मुक्त कराना था। किन्तु 1951-52 के आम निर्वाचनों से पूर्व इस दल ने संसदीय लोकतन्त्र की व्यवस्था को अपना लिया था। इन चुनावों में 04.4 प्रतिशत मत पा कर इसने लोकसभा में 23 स्थान प्राप्त किए और मुख्य विपक्षी दल बना। दूसरे आम चुनावों में 1957 में केरल में बहुमत प्राप्त करके इसने सरकार बनाई और विश्व की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार बनाने का गौरव प्राप्त किया। 1957 व 1962 में लोकसभा में साम्यवादी दल के 27 सदस्य थे। 
1925 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना से ब्रिटिश सरकार हिल गई थी अतः उसकी चालों के परिणाम स्वरूप 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' की स्थापना डॉ राम मनोहर लोहिया,आचार्य नरेंद्र देव आदि द्वारा की गई। इस दल का उद्देश्य भाकपा की गतिविधियों को बाधित करना तथा जनता को इससे दूर करना था। इस दल ने धर्म का विरोधी,तानाशाही आदि का समर्थक कह कर जनता को दिग्भ्रमित किया। जयप्रकाश नारायण ने तो एक खुले पत्र द्वारा  'हंगरी' के प्रश्न पर साम्यवादी नेताओं से जवाब भी मांगा था  जिसके उत्तर में तत्कालीन महामंत्री कामरेड अजय घोष ने कहा था कि वे स्वतन्त्रता को अधिक पसंद करते हैं किन्तु उन्होने विश्व समाजवाद के हित में सोवियत संघ की कार्यवाही को उचित बताया। 
कभी विश्व की प्रथम निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार की स्थापना केरल में करवा चुकी भाकपा गलत लोगों का साथ देने व पार्टी में गलत लोगों को प्रश्रय देने से   निरंतर संकुचित होती जा रही है।  जो कभी कामरेड बी टी रणदिवे व कामरेड ए के गोपालन द्वारा कहा गया था कि हम संविधान में घुस कर संविधान को तोड़ देंगे अब उस पर RSS नियंत्रित सांप्रदायिक/साम्राज्यवाद समर्थक सरकार अमल करने जा रही है। एक-एक करके राज्यों में येन-केन-प्रकारेंण अपनी सरकारे स्थापित करके जब वह संविधान संशोधन करने में सक्षम हो जाएगी तो वर्तमान संविधान की जगह अपना अर्द्ध-सैनिक तानाशाही वाला संविधान थोप देगी। क्योंकि भाकपा 'संसदीय लोकतन्त्र' को अपनाने के बावजूद न तो चुनावों में सही ढंग से भाग ले रही है और न ही सही साथी का चुनाव कर रही है अतः जनता कम्युनिस्टों के नाम पर नक्सलवादियों को ही जानती है जिनको न तो व्यापक जन-समर्थन मिल सकता है न ही वे सरकार सशस्त्र विद्रोह के जरिये गठित कर सकते हैं। देश की हृदय-स्थली उत्तर प्रदेश में भाकपा को अकेले दम पर चलाने का ऐलान करने वाला मोदी की छाया और RSS/USA समर्थित केजरीवाल का अंध - भक्त है।  
आज सर्वाधिक पुरानी राजनीतिक पार्टी की  (क्योंकि 1885 में स्थापित INC तो 1969 में विभाजित होकर 1977 में जनता पार्टी में विलीन हो गई थी और आज की राहुल कांग्रेस तो 1969 में इन्दिरा गांधी द्वारा स्थापित इन्दिरा कांग्रेस है ) स्थापना के 92  वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद जबकि केंद्र में सत्तारूढ़ सांप्रदायिक सरकार राज्यों में भी मजबूत  होती जा रही  है और समाजवाद के नाम पर भाकपा को  पीछे धकेलने वाले दल एकजुट हो रहे हैं भाकपा के भीतर भाजपा के हितैषी मोदी-मुलायम भक्त  उन दोनों महानुभावों से छुटकारा पाने की नितांत आवश्यकता है तभी पार्टी का विस्तार व लोकप्रियता प्राप्ति हो सकेगी। 
पुनश्च :
एमर्जेंसी  के इन्दिरा - देवरस गुप्त समझौते के जरिये 1980 में इन्दिरा जी की वापिसी और 1984 में राजीव जी का लोकसभा का बहुमत संघ के समर्थन से होने के बाद उसका दारा प्रत्येक राजनीतिक दल तक बढ़ गया है अतः तदनुरूप रणनीति बनाना समय की आवश्यकता है  ------
  

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