Friday 1 December 2017

संगठन कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं का किया गया या कि सर्वहारा का ! ------ Virendra Kumar

जो पार्टियाँ या कार्यकर्ता यह मानते हैं कि उनकी पार्टी को सत्ता प्राप्त करना है चाहे वह बुलेट से चाहते हों या बैलॉट से, वह क्रांतिकारी या मार्क्सवादी नहीं हो सकते हैं.

Virendra Kumar
कम्युनिस्ट या सर्वहारा! : 
कम्युनिस्ट पार्टियाँ एवं उनके नेता एवं कार्यकर्ता मुगालते में हैं कि वह कम्युनिस्ट क्रांति का कार्य कर रहे हैं. जो पार्टियाँ या कार्यकर्ता यह मानते हैं कि उनकी पार्टी को सत्ता प्राप्त करना है चाहे वह बुलेट से चाहते हों या बैलॉट से, वह क्रांतिकारी या मार्क्सवादी नहीं हो सकते हैं. कम्युनिस्ट क्रांति का एक ही कार्य होता है जिसे किसी ने नहीं किया और जो कर रहे थे उन्होंने छोड़ दिया. वह कार्य था सर्वहारा आंदोलन (सर्वहारा के संघर्ष) को आगे ले जाना.
अगर वो ऐसा करते तो सर्वहारा लगातार बड़ी से बड़ी संख्या में संगठित होती जाती और संगठन एवं संघर्षों (वर्ग-हित के संघर्षों) के कारण उनमें राजनीतिक चेतना का विकास होता जाता और वर्गीय चेतना के कारण वह एक विशाल वर्ग में तब्दील हो जाते. तब वह चुनावों में जीत कर अपनी सत्ता कायम करते और अपने को शासक वर्ग के रूप में तब्दील कर देते. जो नहीं हो सका. जैसा मैने समझा है मार्क्सवाद के मुताबिक क्रांति का सारांश लोगों को सर्वहारा के वर्ग-हित के आधार पर संगठित करने में निहित है.
सारे के सारे कम्युनिस्ट भूल गये कि कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो में राज्य के बारे में क्या लिखा है. वहाँ सर्वहारा के प्रतिनिधि के रूप में कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता नहीं लिखा है बल्कि लिखा है - 'शासक वर्ग के रूप में संगठित सर्वहारा'. मार्क्सवाद तो मानता है कि प्रतिनिधियों की सत्ता, चाहे जिस किसी रूप में हो, उसका चरित्र बुर्जुआ ही होता है. सर्वहारा क्रांति के बाद, बुर्जुआ से छीन कर, उत्पादन के सारे साधन राज्य यानि संगठित सर्वहारा के हाथों में केंद्रित करना है न कि राज्य यानि सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों में.
अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा? कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो के मुताबिक वर्गों एवं वर्ग शत्रुता वाले पुराने बुर्जुआ समाज की जगह होगा - एक अशोसिएशन जिसमें सबों के विकास की शर्त होगी प्रत्येक का विकास.
आप सभी जानते हैं कि ऐसा हुआ या नहीं या क्या हुआ, सत्ता कम्युनिस्ट पार्टियों के हाथों गई या सर्वहारा के हाथों में, संगठन कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं का किया गया या कि सर्वहारा का. मेरी आलोचना तीखी है, बहुतों को बुरा लग सकता है. किंतु मैंने उनकी नियत पर चोट नहीं किया है. वह काफ़ी अच्छे लोग हैं. उनमें सच्चाई (भूल) स्वीकार करने का साहस होना चाहिए.
Excerpts from Communist Manifesto:
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“We have seen above, that the first step in the revolution by the working class is to raise the proletariat to the position of ruling class to win the battle of democracy.”
“The proletariat will use its political supremacy to wrest, by degree, all capital from the bourgeoisie, to centralise all instruments of production in the hands of the State, i.e., of the proletariat organised as the ruling class; and to increase the total productive forces as rapidly as possible.”
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“When, in the course of development, class distinctions have disappeared, and all production has been concentrated in the hands of a vast association of the whole nation, the public power will lose its political character. Political power, properly so called, is merely the organised power of one class for oppressing another. If the proletariat during its contest with the bourgeoisie is compelled, by the force of circumstances, to organise itself as a class, if, by means of a revolution, it makes itself the ruling class, and, as such, sweeps away by force the old conditions of production, then it will, along with these 
conditions, have swept away the conditions for the existence of class antagonisms and of classes generally, and will thereby have abolished its own supremacy as a class.”
“In place of the old bourgeois society, with its classes and class antagonisms, we shall have an association, in which the free development of each is the condition for the free development of all.”

https://www.facebook.com/virendra.kumar.9003/posts/1801206513224789

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