Tuesday 10 February 2015

अदूरदर्शितापूर्ण जश्न आत्म-हत्या का प्रयास --- विजय राजबली माथुर

पूंजी ने अपना पक्ष-विपक्ष रच लिया --- कामरेड राम प्रताप त्रिपाठी :

'ARVIND IS A NICE MAN' लिखने वाले व " दिल्ली में आप की जीत जनता की जीत, सेक्यूलर ताकत की जीत " घोषित करने वाले कामरेड गण अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला कर जश्न मना रहे हैं। इस संदर्भ में पूर्व AISF नेता का निष्कर्ष ---'इसके बाद भी सच यही है कि मोदी की रणनीति कामयाब रही है ...." ही वास्तविक यथार्थ पर आधारित है।

इंदिरा जी ने अपनी निजी महत्वकांक्षा की पूर्ती हेतु 1980 में RSS के समर्थन से सत्ता वापिसी करके उसको सत्ता की सीढ़ी उपलब्ध करा दी थी। फिर 1984 में राजीव गांधी को भी ठोस समर्थन देकर RSS ने अपनी पकड़ को और मजबूत बनाया। 1989 में वी पी सिंह की सरकार को RSS समर्थित भाजपा का सहयोग मिला था। 1991 में पूर्व RSS कार्यकर्ता पी वी नरसिंघा राव के कांग्रेसी पी एम रहते हुये ही 1992 में अयोध्या के विवादित ढांचे को ढाहाया गया और इसके लिए दिन संविधान निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डॉ भीम राव अंबेडकर की पुण्य तिथि को चुन कर संविधान के ध्वस्तिकरण का संकेत दे दिया गया था। 1996 में बनी  13 दिनी अटल सरकार के गृह मंत्री मुरली मनोहर जोशी द्वारा तमाम फ़ाईलो को नष्ट करवा दिया गया था। बाद की देवगौड़ा व गुजराल सरकारों को अल्पावधि में गिरवा दिया गया था। 1998-2004 के शासन काल में 'विनिवेशीकरण' द्वारा पूंजीवाद को सुदृढ़ किया गया था जिसे बाद में 2004-2014 तक मनमोहन सिंह ने बदस्तूर जारी रखा था। मनमोहन जी ने अपने दूसरे कार्यकाल के प्रारम्भ से ही मोदी के सत्तारोहण के लिए प्रयास जारी कर दिये थे जिंनका प्रस्फुरण 2011 में हज़ारे/केजरीवाल आंदोलन के रूप में हुआ था। अपने ब्लाग के माध्यम से लगातार आगाह करता रहा था कि मनमोहन/मोदी/केजरी/RSS गठबंधन RSS की सत्ता की रूप रेखा तैयार कर रहा है जो मई 2014 में साकार हो गई। 

केंद्र में RSS नियंत्रित पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाने के बाद विपक्ष का सफाया करना ही शेष रह गया था जिसमें सफलता दिल्ली चुनाव परिणामों से मिल गई है। खतरे को भाँप कर सतर्क और सावधान होने के बजाए कम्युनिस्ट RSS के दूसरे गुट की सफलता का जश्न मनाने में मशगूल हो  गए हैं जो कि आसन्न पतन की निशानी है। 

यदि संसदीय साम्यवाद ने संसद और विधानसभाओं में आगे आ कर मुक़ाबला न किया तो फिर दिल्ली की सड़कों पर RSS से मुक़ाबला सशस्त्र क्रान्ति के समर्थक ही करने को बचेंगे जिनको सैन्य बल पर कुचलना शासन तंत्र के लिए और भी सुगम होगा। अतः भारत में तानाशाही की स्थापना को रोकने हेतु 'लोकतन्त्र की रक्षा' व इस हेतु चुनाव में भाग लेकर खुद को दावेदार पेश करने की बजाए RSS के दूसरे गुट की सफलता का जश्न मनाना 'आत्म-हत्या का प्रयास' है। 
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