Saturday, 29 March 2014

यदि लोकशाही खतरे में है तो इसके लिए डॉ मनमोहनसिंह जिम्मेदार है ! ---श्रीराम तिवारी

https://www.facebook.com/shriram.tiwari1/posts/737016282997135

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

भारत में यदि लोकशाही खतरे में है तो इसके लिए डॉ मनमोहनसिंह जिम्मेदार है !

निसंदेह 'संघ परिवार' ,भाजपा ,स्वामी रामदेव और 'नरेंद्र मोदी की विचारधारा लोकतंत्र के बरक्स 'फासिज्म' की ओर ले जाती है।इस विचारधारा के नेता,उनके वित्तपोषक- कार्पोरेट संरक्षक लोकतांत्रिक बाध्यताओं के चलते ऐन चुनाव के दौरान ही नहीं अपितु हर समय - भारत के अर्धशिक्षित एवं अविकसित मानसिकता के जनगण को बरगलाने की कोशिश करते रहते हैं । कुछ पढ़े-लिखे और सुशिक्षित जनगण भी किसी खास नेता ,महाबली,अवतार या पैगम्बर की आराधना में लीन हो जाते हैं। वे मानसिक रूप से सिर्फ भृष्ट नेताओं या स्वामियों तक ही सीमित नहीं रहते, वे आसाराम ,निर्मल बाबा और उनके जैसे अधिकांस बदमाशों के चंगुल में भी हरदम फंसने को उतावले रहते हैं । जैसे कि अभी इन दिनों ज्यादातर मीडिया वाले और पैसे वाले मोदी के तथाकथित सुशासन ,विकाश, निर्बाध आर्थिक- उदारीकरण,बहुलतावाद तथा अंध राष्ट्रवाद के मुरीद हैं। कुछ ' सफेदपोश'तो मोदी द्वारा परोसे गए आवाम के आम सरोकारों का लालीपाप लपकने की कोशिश में ही फुदक रहे हैं।
उनका यह बहुदुष्प्रचारित एजेंडा सभ्रांत वर्ग के साथ -साथ यूपीए और कांग्रेस से नाराज लोगों को भी खूब लुभा रहा है। इन्ही कारणों से वर्तमान केंद्र सरकार के खिलाफ चल रही एंटी इन्कम्बेंसी लहर को मीडिया के मार्फ़त 'नमो लहर' बताया जा रहा है। हर प्रकार के प्रायोजित  सर्वे में तथा बहस मुसाहिबों में "हर-हर मोदी - घर-घर मोदी "अव्वल बताये जा रहे हैं। हालाँकि जो असल तस्वीर है वो अभी भी धुंधली है। आइंदा राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा यह आंकना अभी तो बड़ा मुश्किल काम है । यह राजनैतिक तस्वीर - सुशासन ,विकाश , बहुलतावाद,राष्ट्रवाद और सर्वजन सरोकारों का केनवास -लोक लुभावन नारों के रंगों से तैयार किया गया है।यह केवल एलीट क्लास को ही लुभा पा रहा है। इस प्रायोजित तस्वीर का रंग न केवल बदरंग है बल्कि नित्य परिवर्तनशील भी है। हालाँकि इस तस्वीर में यूपीए, एनडीए या 'आप' के  अलावा भी बहुत कुछ रचे जाने की गुंजायश है । अधिसंख्य क्षेत्रीय दलों समेत तीसरे मोर्चे बनाम 'फर्स्ट फ्रंट ' एवं तीन-चौथाई भारत की राजनीतिक ताकत को अनदेखा कर मीडिया के माध्यम से केवल मोदी ,राहुल तथा नवेले नेता -केजरीवाल को ही महिमा मंडित किया जा रहा है। इन्ही की आपस में व्यक्तिवादी तुलना भी की जा रही है? भारत के स्थाई शासक वर्ग ने यूपीए की लुटिया डूबते देख - यह वैकल्पिक तस्वीर  याने छवि केवल अपने क्षणिक 'नयन सुख' के लिए नहीं अपितु सर्वशक्तिमान शाश्वत सत्ता सुख के वास्ते निर्मित की है। इस बदरंग और अधूरी तस्वीर में भविष्य के संकट का ऐंसा बहुत कुछ है जिसे छिपाया जा रहा है। देश के कर्णधारों को फासिज्म ' की यह अनदेखी बहुत महँगी साबित हो सकती है।
कुछ चिंतकों और प्रगतिशील विचारकों को यह गलत फहमी है कि भाजपा की जरुरत ,आरएसएस के सरोकार , मोदी की आकांक्षा और यूपीए की बदनामी के कारण ही वर्तमान दौर का विमर्श व्यक्ति केंद्रित हो गया है। शायद अनायास ही देश के कर्णधारों ने नीतियां , कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय चुनौतियों के विमर्श को हासिये पर धकेल दिया गया हो. यह सच है कि संघ परिवार हमेशा अपने एजेंडे-एक्चालुकनुवर्तित्व का मुरीद रहा है, किन्तु इतिहास के पन्नो पर बिखरे सबूतों ने सावित कर दिया है कि इसका तात्पर्य व्यक्ति नहीं बल्कि विचारधारा ही है। अब यदि इन दिनों भारत में 'राग मोदी' की धूम है तो इससे देश की सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला। वैसे भी इसमें सारा कसूर मोदी या संघ परिवार का ही नहीं माना जा सकता। मान लो यदि यूपीए -प्रथम की तरह ही यूपीए -२ को भी वामपंथ का समर्थन होता और कुछ 'जनकल्याणकारी काम हुए होते तो कांग्रेस और यूपीए की नैया इस तरह भवर में हिचकोले नहीं खाती। इसके अलावा "नमो नाम केवलम' के लिए देश की आवाम का एक बहुत बड़ा वर्ग भी जिम्मेदार है। जो हंसी-मजाक में अभी "नमो-नमो' या "हर-हर मोदी -घर-घर मोदी " का जाप करने में मशगूल है। वो नहीं जानता कि देशी-विदेशी आवारा पूँजी ने सारे विमर्श को जान बूझकर 'नमो' केंद्रित कर रखा है। जो कि पूँजीवाद और फासिज्म दोनों का उपासक है. वर्तमान प्रधान मंत्री डॉ मनमोहनसिंह की नीतियां भी इसी पूँजीपति वर्ग के हितों की ही पोषक रही हैं । चूँकि वे साम्प्रदायिकता, निर्बाध पूँजीवाद और 'निरंकुश' शासन के पक्षधर नहीं रहे इसलिए वे न केवल मोदी से बल्कि एनडीए की अटल सरकार से भी बेहतर माने जांयेंगे । क्योंकि उनके नेत्तव में न तो सरकार फील गुड में है और न ही कांग्रेस। अब यदि वे १० साल बाद पदमुक्त हो रहे हैं और कांग्रेस भी कुछ सालों के लिय यदि सत्ता सुख से वंचित हो भी जाती है तो भी उनका यह एहसान तो अवश्य है कि वे फासिस्ट नहीं हैं या कि लोकतंत्र को डंडे से नहीं हांका। हालाकि उनकी नीतियों के कारण ही देश के अमीर और ज्यादा अमीर हुए और निर्धन और ज्यादा निर्धन। डॉ मनमोहनसिंह की नीतियों को ही १९९९ -२००४ तक तत्कालीन एनडीए की अटल सरकार ने भी अपनाया था। अमेरिका प्रणीत और मनमोहन सिंह द्वारा स्थापित नीतियों को एनडीए ने इतना अमली जमा पहनाया कि तब उन्हें "इण्डिया शाइनिंग' और राजनीतिक फील गुड होने लगा था। यूपीए और कांग्रेस को या डॉ मनमोहनसिंह को वैसा घमंड या फीलगुड नहीं हो रहा जैसा भाजपाइयों को २००४ में सत्ता में रहते हो रहा था। आज भले ही मॅंहगाई ,बेरोजगारी और भृष्टाचार के के लिए डॉ मनमोहनसिंह की नीतियों को और यूपीए सरकार को गालियां दीं जा रही हैं किन्तु देश को यह याद रखना चाहिए कि मोदी और भाजपा की नीतियाँ भी वही हैं जो डॉ मनमोहनसिंघ की हैं। चूँकि डॉ मनमोहनसिंह , सोनिया गांधी और कांग्रेस के नेत्तव में भारत में लोकशाही ज़िंदा रही इसलिए उन्हें धन्यवाद दिया जा सकता है । किन्तु उनकी विनाशकारी आर्थिक नीतियों के कारण जब जनाक्रोश चरम पर है और जबकि देश पर फासिज्म के सत्ता में आने की प्रवल सम्भावनाएं हैं तो डॉ मनमोहन सिंह ,सोनिया गांधी ,राहुल और कांग्रेस पर यह आरोप सदा लगाया जाता रहेगा कि वे भारत में 'फासिज्म' को मौका देने के लिए उतने ही जिम्मेदार हैं जितने कि व्यक्तिपूजक -साम्प्रदायिक और दिग्भ्रमित जनगण।

Thursday, 27 March 2014

सर्वोच्च न्यायालय की रोशनी में ठोस कदम उठाये राज्य सरकार- डॉ. गिरीश,भाकपा

Press Note of CPI, U.P.

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Girish CPI 

5:06 PM (2 hours ago)

सर्वोच्च न्यायालय की रोशनी में ठोस कदम उठाये राज्य सरकार- भाकपा



लखनऊ- २७, मार्च, २०१४.  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कहा कि मुजफ्फरनगर के दंगों पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उत्तर प्रदेश की सरकार इन दंगों के फ़ैलने देने की गुनहगार है और उसे अब इन दंगों की नैतिक जिम्मेदारी कबूल कर लेनी चाहिये. लेकिन इस फैसले की आड़ में भाजपा द्वारा अपने को निर्दोष साबित करने की कोशिशों को भी भाकपा कतई बर्दाश्त नहीं करेगी और दंगों में उसकी संलिप्तता का भी पर्दाफाश करेगी.
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भाकपा की प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाकपा के राज्य सचिव डॉ.गिरीश ने कहा कि वे स्वयं और उनकी पार्टी शुरू से ही कहती आरही है कि मुजफ्फरनगर दंगों में राज्य सरकार अपने राजनैतिक स्वार्थों को पूरा करने में जुटी रही और उसने दंगों को रोकने और फैलने से रोकने के लिये समुचित प्रयास नहीं किये. राज्य सरकार अपने कर्तव्य निर्वहन की दोषी है. अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसे कटघरे में खड़ा कर देने के बाद राज्य सरकार को इसकी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार कर लेनी चाहिये.
भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि इस फैसले की आड़ में भाजपा अपने को पाक दामन साबित करने में जुट गयी है. उसकी इस कोशिश का भाकपा पर्दाफाश करेगी. इस हेतु शीघ्र ही एक “खुलासा पत्र” जारी किया जायेगा.
डॉ. गिरीश ने राज्य सरकार से मांग की कि वह इस फैसले को अमली जमा पहनाये और दंगे के दोषी वे चाहे किसी भी सम्प्रदाय अथवा पार्टी से सम्बंधित हों को तत्काल गिरफ्तार करे, सभी पीड़ितों को समान मुआबजा दे तथा वहां से पलायित लोगों को उनके  गांवों में बसाने को ठोस कदम तत्काल उठाये.
डॉ. गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा , उत्तर प्रदेश 

Sunday, 16 March 2014

Was a mistake to form a third front before elections: CPI's AB Bardhan

Karan Thapar,CNN-IBN | Mar 16, 2014 at 11:18am IST
http://ibnlive.in.com/news/was-a-mistake-to-form-a-third-front-before-elections-cpis-ab-bardhan/458212-37-64.html


New Delhi: Former CPI general secretary AB Bardhan has admitted that it was a mistake for the Left front to attempt to forge a third front alliance before the polls.
In conversation with Karan Thapar on this week's Devil's Advocate, he also said the embarrassment of its premature failure could have been avoided if the Left had not gone into seat sharing talks with so many regional parties.
Bardhan also accepted that he was "disappointed" by Tamil Nadu Chief Minister J Jayalalithaa's behaviour and felt "slighted" by her offer of only one seat in the state, while repeatedly pointing out that Jayalalithaa was the one who approached the Left Parties and announced the alliance.
Here is an excerpt of the conversation:
Karan Thapar: The third front the left parties tried to put together, would you accept it ended in embarrassing failure
AB Bardhan: I wouldn't say embarrassing failure. I have always maintained that such a front can come about only after the elections
Karan Thapar: Was it a mistake to try and put it together before the elections
AB Bardhan: No. It is difficult to put it together before the elections, because a third front can come about only with a non Congress, non BJP parties. Mostly these are regional parties
Karan Thapar: It is not just difficult. It resulted in embarrassing headlines. So I put it to you again, was it a mistake to try the difficult at the wrong time.
AB Bardhan: I think you see we need not have gone on trying to work out you see adjustments with all regional parties. That we need not have tried. Because some of the regional parties wanted to maximise their seats and they were not willing to concede any seat to the left.
Karan Thapar: So you do accept that the attempt to work out regional arrangements with regional parties was a mistake
AB Bardhan: All the regional parties, was a mistake.

Saturday, 15 March 2014

उत्तर प्रदेश में पिछले दो सालों में प्रदेश का राजनैतिक ढांचा पूरी तरह चरमरा गया---डॉ. गिरीश


DrGirish Cpi
लखनऊ- 14 , मार्च 2014 - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य काउन्सिल की दो दिवसीय बैठक आज यहाँ सम्पन्न होगयी. बैठक में भाकपा द्वारा लड़ी जारही ८ लोक सभा सीटों पर चुनाव की तैय्यारियों पर चर्चा की गई, इस हेतु जनता से चुनाव फंड एकत्रित करने का निर्णय लिया गया तथा इन सीटों पर शीघ्र से शीघ्र कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया. साथ ही वामदलों के साथ अधिक से अधिक सहमति बनाने को सघन प्रयास करने का निर्णय भी लिया गया.
बैठक में देश और प्रदेश के मौजूदा हालात पर चर्चा करते हुये पार्टी के राज्य सचिव डॉ. गिरीश ने कहा कि देश इस समय अभूतपूर्व राजनैतिक एवं आर्थिक संकटों से जूझ रहा है. केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा अपनायी जा रही नीतियों से आम जनता बेहद कठिनाइयों का सामना कर  रही है. जनता कमरतोड़ महंगाई, शासन- प्रशासन में दीमक की तरह घुस चुके भ्रष्टाचार, निरंतर बढ़ रही महंगाई, महंगे इलाज और महंगी पढ़ाई की मार से जूझ रही है. सत्ता में बैठे पूंजीवादी दलों से जनता आजिज आगयी है और वह उसका विकल्प चाहती है.
जनता के गहरे आक्रोश को भांपते हुये ये पार्टियाँ उसको गुमराह करने को हर तरह के हथकंडे अपना रही हैं. कांग्रेस अपनी उपलब्धियों का झूठा ढिंढोरा पीट रही है. भाजपा फिर से अपने चिर परिचित सांप्रदायिक औजारों को पैना कर रही है. उसने मुजफ्फर नगर और उसके अगल-बगल के जिलों को साम्प्रदायिकता की प्रयोगशाला बनाया और सैकड़ों लोगों की हत्याएं वहां कराई गयीं. वे नारा देरहे हैं- उत्तर प्रदेश गुजरात बनेगा. वे गुजरात के विकास के फर्जी आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं.
डॉ. गिरीश ने कहा कि उत्तर प्रदेश में पिछले दो सालों में प्रदेश का राजनैतिक ढांचा पूरी तरह चरमरा गया और आम आदमी का जीवन दूभर होगया. यहाँ तक कि राज्य सरकार सांप्रदायिक वारदातों को रोकने के बजाय वोट की राजनीति करते नजर आयी. सूबे का मुख्य विपखी दल बसपा है जो कभी भी जनता के सवालों पर आवाज नहीं उठाता. वे वोट के लिए केवल और केवल जातीय समीकरण साधने में लगे रहते हैं. प्रदेश की जनता अपने जीवन से जुड़े कठिन सवालों का हल चाहती है लेकिन ये सारे दल मुद्दों से दूर भाग रहे हैं.
उन्हाने कहाकि वह केवल वामपंथ है जो जनता के ज्वलंत सवालों महंगाई भ्रष्टाचार बेरोजगारी महंगी शिखा महंगे इलाज और किसान कामगारों की जिन्दगी में रोशनी लाने वाले सवालों पर निरंतर आवाज उठा रहा है और सांप्रदायिक और विभाजनकारी अन्य ताकतों को कड़ी चुनौती देता रहा है. हम इन्ही सवालों को लेकर चुनाव अभियान चलाएंगे.हम जनता से अपील करेंगे कि वह मुद्दों पर आधारित राजनीति को बल प्रदान करे और वामपंथी दलों को आगे बढ़ाये. उन्होंने भाकपा कार्यकर्ताओं और नेताओं से अपील की कि वे भाकपा प्रत्याशियों की सफलता के लिए पूरी ताकत से जुट जायें.
बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि भाकपा को अपना चुनावी अभियान जनता के सहयोग से चलाना है माफिया दलाल और शोषकों के धन से नहीं. इसके लिए जनता के बीच जाकर चुनाव फंड एकत्रित करने का निर्णय भी लिया गया.
बैठक में बुन्देलखण्ड पश्चिमी उत्तर प्रदेश मध्य उत्तर प्रदेश एवं पूर्वांचल में ओलों एवं वारिश से फसलों के हुये भारी नुकसान पर गहरी चिंता व्यक्त की गयी. एक प्रस्ताव पास कर राज्य सरकार और केंद्र सरकार से मांग की गयी कि वह फसलों की हानि की शत-प्रतिशत भरपाई तत्काल करे. निर्वाचन आयोग से भी मांग की गयी कि वह केंद्र और राज्य सरकार को किसानों को तत्काल आर्थिक पैकेज उपलब्ध कराने का निर्देश जारी करे.
बैठक की अध्यक्षता अशोक मिश्र ने की. बैठक को पूर्व विधायक  इम्तियाज़ अहमद, एटक के प्रांतीय अध्यक्ष एवं सचिव अरर्विन्द राज स्वरूप व सदरुद्दीन राना, महिला फेडरेशन की महासचिव आशा मिश्रा आदि ने भी  सम्बोधित किया.

डॉ. गिरीश, राज्य सचिव 

Tuesday, 4 March 2014

कम्यूनिज़्म के विध्वंसक हैं आ आ पा समर्थक

AAP=आ आ पा समर्थक ये लोग खुद को कम्यूनिज़्म का सबसे बड़ा वफादार भी कहते हैं और सबसे पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेताओं पर बड़ी शान के साथ प्रहार भी करते हैं। जो बड़े नेता उनको समझाने का प्रयास करर्ते हैं उन पर ही न समझने का आरोप भी ये लोग जड़ देते हैं जैसा कि निम्नांकित  स्क्रीन शाट सिद्ध कर रहे हैं। इन साहब के मन्त्र्दाता ने आदरणीय कामरेड बर्द्धन जी के जन्मदिवस पर अप्रत्यक्ष प्रहार किया था जैसा कि आगे दिये गए स्क्रीन शाट में वर्णित है। उसी से प्रेरणा लेकर बर्द्धन जी व अनजान साहब के मुखर आलोचक साहब ने अगले दिन बर्द्धन जी पर सीधा हमला बोल दिया। 















2002 के दंगों के बाद की तस्वीर में बहुजन समाज पार्टी की नेता
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मेरा तो सुदृढ़ व स्पष्ट विचार है कि -मनमोहन जी के आउट आफ डेट होने तथा मोदी साहब के जन-संहार के दोष से मुक्त न होने के बाद देशी-विदेशी कारपोरेट ने केजरीवाल को आगे करके AAP को खड़ा किया है जो है ही NGOs का राजनीतिक संगठन। अतः समस्त NGOs संचालक चाहे वे वामपंथी हों या दक्षिन्-पनथी AAP के सिवा कहाँ शरण लेंगे? अतः कम्युनिस्ट पार्टियों  में घुसपैठ किए हुये पूँजीपतियों के दलाल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से RSS के दूसरे मुखौटा केजरीवाल और उनकी पार्टी का समर्थन कर न केवल उनको लाभ पहुंचाना वरन कम्युनिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट आंदोलन को क्षति पहुंचाना चाहते हैं और इसी क्रम में वे पार्टी के लोकप्रिय नेताओं की छवी धूमिल करते रहते हैं। और चूंकि उन पर बड़े लोगों में से ही कुछ का वरद हस्त रहता है इसलिए उनके हौंसले भी बुलंद रहते हैं। हज़ारे आंदोलन के समय ही केजरीवाल व हज़ारे के संघी सिपाही होने की बात सामने आ चुकी है। संघ के समर्थन से सरकार बना चुकी बसपा का समर्थन भी कम्युनिस्ट पार्टी में छिपे संघियों का ही करिश्मा है। 


और CPM ने तो अपने केरल के एक अखबार में मोदी का विज्ञापन पैसों की कमाई के लिए छाप दिया है । इससे पहले भाजपा कार्यकर्ताओं को भी CPM में शामिल किया जा चुका है। शायद यह RSS ब्रांड कम्यूनिज़्म होगा?