Sunday 31 March 2019

गलत निर्णय भारत में कम्युनिस्ट पार्टियों को जनता से विमुख किए हुये हैं ------ विजय राजबली माथुर


N  B  T  ,  lko.  ,  28-03-2019  ,  Page ------ 10



1975  में मेरठ में तथा 1985 में आगरा में मेरा सस्पेंशन और टर्मिनेशन करवाने में तत्कालीन यूनियन प्रेसीडेंट्स का प्रबल हाथ था। अतः मैंने तब किसी बड़े संस्थान की अपेक्षा छोटी-छोटी दुकानों में स्वतंत्र रूप से अकौन्ट्स जाब करके गुज़ारा करना शुरू किया। साथ ही ITC जैसी मल्टीनेशनल कंपनी से अन्यायपूर्ण बर्खास्त्गी  के विरुद्ध संघर्ष करने हेतु  स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी संत कामरेड अब्दुल हफीज साहब से संपर्क किया जिन्होने 'मजदूर भवन',  आगरा  पर कामरेड हरीश आहूजा साहब  के पास भेज दिया । आहूजा साहब ने केस लगा दिया और सप्ताह में एक दिन मजदूर भवन बुलाने लगे जहां CPI नेतागण कामरेड्स रमेश मिश्रा, डॉ महेश चंद्र शर्मा और डॉ जवाहर सिंह धाकरे क्रमिक रूप से आकर  मजदूर समस्याओं और उनके समाधान पर प्रकाश डालते थे। अक्तूबर 1986 में मुझे भी CPI में शामिल कर लिया गया और 'मजदूर भवन ' के स्थान पर मुझे पार्टी कार्यालय में सहयोग करने हेतु बुलाया गया। एक वर्ष के भीतर ही मुझे पार्टी की ज़िला काउंसिल में भी शामिल कर लिया गया।

पार्टी की विशेष बैठकों में कामरेड्स लल्लू सिंह चौहान, जगदीश नारायण त्रिपाठी, रामनारायन उपाध्याय आदि आते रहते थे और इस प्रकार इन स्वाधीनता सेनानियों के विचार भी जानने - समझने के अवसर मिलते रहे। लखनऊ मेरा जन्मस्थान होने के कारण लखनऊ में होने वाले प्रदर्शनों में भाग लेने खुशी-खुशी आता रहता था जबकि नजदीक  ही स्थित  दिल्ली के सिर्फ एक ही प्रदर्शन में भाग ले सका। बाबूजी के सहपाठी और रूममेट कामरेड भीखा  लाल जी से मिलने की काफी इच्छा थी और मैंने इसका ज़िक्र कामरेड डॉ महेश चंद्र शर्मा जी से किया था।बेगम हज़रत महल पार्क में पूरे प्रदेश से आए पार्टी कामरेड्स 'सांप्रदायिकता विरोधी रैली ' में भाग लेने को  एकत्र थे।  भीखा लाल जी पूर्व प्रदेश सचिव थे और उस समय  तत्कालीन प्रदेश सचिव कामरेड सरजू पांडे जी से कुछ चर्चा कर रहे थे जब डॉ शर्मा जी मुझे उनके पास ले गए थे ; हमारे आगरा के तत्कालीन जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी भी पांडे जी के ही साथ थे। कामरेड भीखा लाल जी ने बाबू जी के नाम का सिर्फ 'ताजराज ' शब्द सुनते ही मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा कि, तुम ताजराज बली के बेटे हो तुम उनके बारे में क्या बताओगे हम तुम्हें उनके बारे में बताएँगे। फिर उन्होने वर्ष सन- तारीख बताते हुये किस-किस क्लास में और हास्टल में साथ-साथ रहे  कहा कि वह और मेरे बाबूजी इतना घनिष्ठ रहे हैं जितने कि मेरे बाबूजी अपने घर-परिवार में अपने भाइयों से भी न रहे होंगे। भीखा लाल जी ने यह भी बताया कि 1939 में मेरे बाबूजी के दिवतीय विश्व युद्ध में जाने और 1945 में वापिस लौट कर आने की उनको सूचना है पर फिर संपर्क नहीं हो पाया था,  वह इस बात से बेहद खुश हुये थे कि मैं उनसे मिलने गया। भीखा लाल जी ने मुझसे कहा था कि अगली बार जब भी मैं लखनऊ आऊँ तो बाबूजी को भी साथ लाऊं परंतु कुछ समय बाद ही  भीखा लाल जी का निधन हो गया था।   

कामरेड सरजू पांडे जी एक बार शिवाजी मार्केट, आगरा की बैठक में जब मुख्य वक्ता के रूप में बोलने आए थे तो दोबारा उनको सुनने व देखने का अवसर मिला था। सरजू पांडे जी, भीखा लाल जी और रुस्तम सैटिन साहब आदि कम्युनिस्ट नेतागण बेहद ईमानदार, कर्मठ और स्पष्टवादी थे 'जनहित ' उनके लिए सर्वोपरि थे। 1967 में जब रुस्तम सैटिन साहब चौधरी  चरण सिंह सरकार में गृह राज्यमंत्री थे तब उन्होने ऐसी व्यवस्था की थी कि कोई भी पुलिस वाला किसी भी गरीब - असहाय तबके के इंसान को नाहक परेशान न कर पाये। लखनऊ में कुछ वरिष्ठ कामरेड्स से यह भी ज्ञात हुआ है कि एक बार पुलिसिया रौब में एक रिक्शे वाले को प्रताड़ित किया गया तो बहैसियत मंत्री  रुस्तम सैटिन साहब ने इंचार्ज समेत लखनऊ के उस  पूरे थाने  को सजा दी थी जिसके बाद पूरे प्रदेश में इसका असर हुआ था। 



लेकिन आज कम्युनिस्ट पार्टी में भी ऐसे नेताओं का सर्वथा आभाव है। कामरेड हरीश आहूजा के पार्टी छोडने के बाद रमेश मिश्रा जी ने दूसरे पार्टी कामरेड को मेरे होटल मुगल वाले केस को रेफर कर दिया था जिन्होने 1994 -95 में मेरे परिवार में एक वर्ष के भीतर तीन मौतें हो जाने के बाद मेरी परेशानी के माहौल में  होटल मेनेजमेंट के झुकाव में मेरे केस की पैरवी पर ध्यान नहीं दिया और पीठासीन अधिकारी ने 'Petitioner is no more interested' लिख कर मेनेजमेंट के पक्ष  में मेरी पिटीशन को रद्द कर दिया। वह कामरेड बाद में आगरा CPI के जिलामंत्री भी बने। एक प्राइमरी शिक्षक रमेश कटारा ने उत्तर प्रदेश CPI के कंट्रोल कमीशन में भी स्थान प्राप्त कर लिया था और रमेश मिश्रा जी को तांत्रिक प्रक्रियाओं से वशीभूत कर लिया था। विषम परिस्थितियों में मुझे भी मित्रसेन यादव जी के साथ 1994 में  पार्टी को छोडना पड़ गया  था।परंतु बाद में मिश्रा जी ने रमेश कटारा को पार्टी से निकलवा दिया और उसके बाद 2006 में मेरे घर आकर मुझको पुनः पार्टी में शामिल होने को कहा। उनके आग्रह पर उनके साथ मैं कार्यक्रमों  में भाग लेने लगा था। कमिश्नरी पर सांसद राज बब्बर जी के साथ डॉ गिरीश (अब राज्यसचिव) भी आए थे।   डॉ साहब की उपस्थिति में मिश्रा जी ने मुझसे पार्टी फार्म भरवा कर विधिवत शामिल कर लिया। आगरा से 2009 में लखनऊ शिफ्ट हो जाने के कारण मैं यहाँ सक्रिय हूँ। प्रदेश में एक बैंक कर्मी साहब आगरा के रमेश कटारा के अवतार हैं और तांत्रिक प्रक्रियाओं से कुछ बड़े नेताओं को प्रभावित किए हुये हैं तथा छोटे कार्यकर्ताओं को उत्पीड़ित करते रहते हैं।उनके हमदर्द वकील कामरेड्स अपने ही कैडर का उत्पीड़न / शोषण करने के अवसर तलाशते रहते हैं।   


वर्तमान चुनावों के माध्यम से साम्राज्यवादी / फासिस्ट शक्तियाँ सत्ता पर कब्जा करने की फिराक में हैं और कम्युनिस्ट शक्तियाँ बिखरी हुई हैं। 'संसदीय लोकतन्त्र ' को अपनाने के बावजूद कम्युनिस्ट शक्तियों ने पर्याप्त संख्या में प्रत्याशी ही नहीं खड़े किए हैं। जो संसदीय लोकतन्त्र के विरोधी कम्युनिस्ट हैं वे चुनावों का बहिष्कार कर रहे हैं। ऐसे में साम्राज्यवादी / फासिस्ट शक्तियों को खुला मैदान मिल गया प्रतीत होता है।
इसके अतिरिक्त सभी कम्युनिस्ट पार्टियों का नेतृत्व ब्राह्मण वादियों के नियंत्रण में रहने से दलित / पिछड़ा जो वास्तविक ' सर्वहारा' हैं को डिफ़ेक्टो नियंता के  विचारानुसार पार्टियों में उचित स्थान नहीं दिया जाता है।  किन्तु जनप्रिय दलित नेत्री मायावती को निष्प्रभावी करने हेतु भाजपा को लाभ पहुंचाने की पहल कर दी जाती है :   





इसी प्रकार बंगाल में पंचायत चुनावों के माध्यम CPM व भाजपा का तालमेल TMC के विरुद्ध हुआ था जबकि आरोप TMC पर लगा दिया गया है। 
  

Tuesday 19 March 2019

योग्य नेता, मार्गदर्शक और धवल छवि के अभिभावक : विश्वनाथ शास्त्री ------ उर्मिलेश उर्मिल


Urmilesh Urmil
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ वामपंथी नेता और गाजीपुर के पूर्व सांसद विश्वनाथ शास्त्री का आज सुबह लखनऊ में निधन हो गया। अभी एक मित्र ने गाजीपुर से फोन पर बताया कि उनकी अंत्येष्टि कल गाजीपुर में होगी। मेरे गांव के पास के असांव गांव में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे शास्त्री जी युवावस्था में ही कम्युनिस्ट आंदोलन में शामिल हो गये। सातवें से नवें दशक के बीच यूपी में वाम-लोकतांत्रिक आंदोलन के वह बड़े नेता बनकर उभरे! सन् 1991 में वह हमारे गाजीपुर संसदीय क्षेत्र से भाकपा के उम्मीदवार के रूप में सांसद चुने गए। एक जमाने में हमारा गाजीपुर जिला और बगल के आजमगढ़ और घोसी जैसे क्षेत्र वामपंथियों के गढ़ माने जाते थे। पूर्वी यूपी के इस इलाके से तीन-चार बड़े नेता वाम-राजनीति के राष्ट्रीय पटल पर उभरे! इनमें सरजू पांडे, झारखंडे राय, जयबहादुर सिंह, रुस्तम सैटिन और विश्वनाथ शास्त्री के नाम प्रमुख हैं। लेकिन नवें दशक के बाद वामपंथी राजनीति में पराभव‌ के साथ हमारे इलाके के वाम राजनेताओं का भी असर कम होता रहा! शास्त्री जी भी बाद के चुनाव में हार गए। लेकिन उनकी धवल छवि हमेशा अविजित रही! ईमानदारी, समझदारी और उत्पीड़ित समाज के प्रति अपनी पुख्ता तरफदारी के लिए वह युवा पीढ़ी के राजनीतिक कार्यकर्ताओं और आम लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने रहे और निधन के बाद भी बने रहेंगे!
मेरे बड़े भाई केशव प्रसाद के निधन के बाद शास्त्री जी अपने जनपद गाजीपुर में मेरे लिए अभिभावक जैसे थे! उनके निधन से हमने एक योग्य नेता, मार्गदर्शक और अपने बड़े भाई जैसा अभिभावक खो दिया। शास्त्री जी को सलाम और श्रद्धांजलि! 
पुनश्च: यह चित्र मेरी पिछली गाजीपुर-यात्रा का है। बगल में कामरेड विश्वनाथ शास्त्री हैं!
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=2170712602981938&set=a.509368019116413&type=3
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लखनऊ- 19 मार्च 2019, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व सांसद और पूर्व राज्य सचिव कामरेड विश्वनाथ शास्त्री का आज उनके गृह जनपद गाजीपुर में गंगा घाट पर अंतिम संस्कार कर दिया गया।

का॰ शास्त्री का कल लखनऊ में उनके आवास पर निधन होगया था। 74 वर्षीय का॰ शास्त्री को 1 मार्च को पैरेलिसिस का अटेक पड़ा था, तबसे उनकी हालत चिंताजनक बनी हुयी थी। कल ही उनके पार्थिव शरीर को उनके जन्मग्राम- असांव लेजाया गया था जहां जनता के दर्शनार्थ रखा गया था।

आज पूर्वान्ह उन्हें गाजीपुर में पार्टी के जिला मुख्यालय भारद्वाज भवन लाया गया जहां तमाम राजनैतिक दलों और आमजनों ने उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद शव यात्रा गंगा घाट पहुंची जहां उनके पुत्र आलोक ने सैकड़ों अश्रुपूरित लोगों के समक्ष उन्हें मुखाग्नि दी। इस मौके पर पार्टी की केंद्रीय कमेटी और राज्य कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर का॰ अतुल कुमार अंजान मौजूद रहे।

भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने गाजीपुर जिला प्रशासन द्वारा उन्हें वांछित सम्मान न देने के लिये उसकी आलोचना की है। डा॰ गिरीश ने लोक सभा सचिवालय से मांग की कि एक पूर्व सांसद की अन्त्येष्टि पर सामान्य प्रोटोकॉल न निभाने के इस मामले पर उचित संज्ञान लें।

का॰ विश्वनाथ शास्त्री का जन्म 6 जुलाई 1945 में एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा काशी विद्यापीठ में हुयी थी। छात्र जीवन में वे आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की कतारों में शामिल होगए। उसके बाद वे भाकपा के सक्रिय सदस्य बने और तीन बार जिला सचिव व एक बार राज्य सचिव भी चुने गये। वे पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य व भारतीय खेत मजदूर यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। वे गाजीपुर लोकसभा सीट से सांसद भी चुने गये।

का॰ शास्त्री के निधन से भाकपा और वामपंथी आंदोलन को गहरी क्षति पहुंची है जिसकी भरपाई जनता के सवालों पर निरंतर संघर्षों से की जासकती है। भाकपा राज्य काउंसिल उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करती है तथा शोक संतप्त परिवार के प्रति गहरी सहानुभूति का इजहार करती है।

डा॰ गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा , उत्तर प्रदेश

Thursday 14 March 2019

हिंदू हृदय सम्राट' के चमत्कारी विकास के कारनामों का नतीजा ------ मुकेश असीम


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पूंजीवाद का गहन होता आर्थिक संकट मजदूर-गरीब किसानों से आगे बढ़ता हुआ अब मध्यम वर्ग को चपेट में लेने लगा है। रोजगार के अभाव के बाद अब पहले से 'सुरक्षित' सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार में लगे भी अब इसकी मारक जद में आने लगे हैं। पहले 11 विज्ञान शोध केंद्र, अब बीएसएनएल, एचएएल, आदि में वेतन-भत्ते मिलना दूभर हो रहा है। विज्ञान के उच्च शिक्षा संस्थानों में मिलने वाली केवीपीवाई/इंस्पायर जैसी छात्रवृत्तियाँ कम की जा रही हैं या 6-6 महीने देर से मिल रही हैं। 
गहन होते आर्थिक संकट के बावजूद तेज आर्थिक वृद्धि का भ्रम बनाए रखने के लिए सरकार ने अनुत्पादक खर्चों व अमीरों के उपयोग के इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च को तेजी से बढ़ाया जिसका बड़ा हिस्सा भी हथियारों की डील में अनिल अंबानी जैसों की तिजोरी में गया। दूसरी ओर, सरमायेदारों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष करों में भारी छूट दी गई जो आम मेहनतकश जनता पर बढ़ाए करों, शुल्कों, भाडों से पूरी न हो सकती इसलिए कर वसूली बजट लक्ष्य से तकरीबन 2 लाख करोड़ रु नीचे है। इसके लिए सरकार ने रिजर्व बैंक पर लाभांश का शिकंजा कसा, अपनी कंपनियों को अपनी ही दूसरी कंपनियों को बेचकर उन्हें दिवालिया कर दिया, सबसे बड़ी बात एफ़सीआई जैसी सार्वजनिक कंपनियों के नाम पर बड़ा कर्ज लिया जो सरकारी कर्ज के आंकड़ों से छिपा रहा, संकट को छिपाने के लिए एसबीआई, एलआईसी को पैसा लगाने के लिए बाध्य किया, प्रोविडेंट फंड तक को भी दांव पर लगा दिया। पिछले कुछ महीने से मोदी के चुनाव प्रचार के लिए भी बड़ी मात्रा में सरकार ने खर्च किया है। नतीजा यह है कि सरकार कर हर अंग अब नकदी समस्या से दो-चार है।
सरकार की हरचंद कोशिश रही कि चुनाव तक इस संकट को छिपाये रखा जाए। मैं बार-बार यही कहता रहा हूँ कि चुनाव बाद कोई सरकार हो वो इस संकट का तकलीफदेह बोझ मेहनतकश जनता पर डालेगी ही, इसका कोई और विकल्प नहीं। पर अब तो चुनाव के पहले ही संकट छिप नहीं पा रहा, कहीं न कहीं से फूट कर बाहर निकल आ रहा है। सिर्फ वेतन-भत्ते ही नहीं, इसका असर कुछ वक्त बाद मध्यम वर्ग के पीएफ, बीमा, म्यूचुअल फंड में लगाई गई बचत की रक़मों पर भी दिखाई देगा, जिसके भरोसे वे अपने जीवन को सुरक्षित मान रहे हैं।
हे मध्यम वर्गीय टटपुंजिया भक्तों, भरोसा रखो, पूंजीवाद का आर्थिक संकट मजदूर, गरीब किसान तो झेलते ही आ रहे हैं, उनके खून की तो हर अतिरिक्त बूंद निचोड़ डाली गई है, पर तुम्हारे 'हिंदू हृदय सम्राट ' के चमत्कारी विकास के कारनामों का नतीजा भुगतने के लिए तुम भी अब कमर कस ही लो! उसका वक्त भी अब करीब आ रहा है।
https://www.facebook.com/MukeshAseem/posts/2673412909351840

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Sunday 3 March 2019

नकारात्मक होने के संगीन जुर्म में ------ कविता कृष्णा पल्लवी

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