Sunday 26 February 2017

उत्तर प्रदेश चुनाव में कहाँ है वामपंथ ? ------ कौशल किशोर

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कौशल किशोर जी ने जिस वास्तविकता को इंगित किया है कि, वामपंथियों ने डॉ अंबेडकर द्वारा बताए मार्ग जातीय असमानता के विरुद्ध संघर्ष को अहमियत नहीं दी वही वह मूल कारण है जिसने भारत की जनता को साम्यवाद / वामपंथ से दूर कर दिया है। 
वस्तुतः भारतीय वांगमय 'समष्टिवाद' पर आधारित है जो साम्यवाद / वामपंथ के निकट है परंतु ब्राह्मण वाद के वर्चस्व के चलते पौराणिक कुव्याख्याओं द्वारा उसी को साम्यवाद विरोध के लिए हथियार बना कर शोषक वर्ग साधारण जनता को भ्रमित कर ले जाता है। 
यदि थोथी 'नास्तिकता '/ 'एथीस्ट्वाद ' के भ्रमजाल से निकल कर वामपंथी विद्वजन जनता को समझाएँ तो कोई कारण नहीं कि, जनता हमारे साथ न आए। 
व्यक्तिगत स्तर पर ' एकला चलो रे ' की तर्ज़ पर मैं इस ओर सतत प्रयास करता रहता हूँ जिसका एथीस्टवादी खूब मखौल उड़ाते हैं बजाए समर्थन करने के। केवल और केवल आर्थिक आधार पर भारत में 'सर्वहारा' को संगठित न किया जा सका है न किया जा पाएगा। क्योंकि भारतीय सर्वहारा वर्ग obc व sc जातियों में सिमटा हुआ है और वांमपंथी कर्णधारों का दृष्टिकोण है कि, obc व sc वर्ग से सिर्फ काम लिया जाये उनको कोई पद न दिया जाये । यही वजह रही है कि, वामपंथ से obc व sc वर्ग के कार्यकर्ता टूट कर सपा व बसपा में चले गए हैं जिससे वामपंथ क्षीण से क्षीणतर होता गया है। छह  वाम दलों का मोर्चा भी ब्राह्मण वर्चस्व पर ही टिका है इसलिए जनता को प्रभावित करने में असमर्थ है। 
 


"काश सभी बिखरी हुई कम्युनिस्ट शक्तियाँ  दीवार पर लिखे को पढ़ें और  यथार्थ को समझें और जनता को समझाएँ तो अभी भी शोषक-उत्पीड़क-सांप्रदायिक शक्तियों को परास्त किया जा सकता है। लेकिन जब धर्म को मानेंगे नहीं अर्थात 'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य' का पालन नहीं करेंगे 'एथीस्ट वाद' की जय बोलते हुये ढोंग-पाखंड-आडंबर को प्रोत्साहित करते रहेंगे अपने उच्च सवर्णवाद के कारण तब तो कम्यूनिज़्म को पाकर भी रूस की तरह खो देंगे या चीन की तरह स्टेट-कम्यूनिज़्म में बदल डालेंगे। प्रस्तुत कटिंग के लेखक जैसे लोगों को कम्यूनिज़्म-वामपंथ के ढलने की घोषणा करने को प्रेरित करते रहेंगे।"
http://krantiswar.blogspot.in/2014/05/blog-post_22.html

Thursday 23 February 2017

"धर्मनिरपेक्षता" : एक संविधान-विरुद्ध अवधारणा ------ एस रंजन राय

S Ranjan Rai

धर्मनिरपेक्षता" : एक संविधान-विरुद्ध अवधारणा
मीडिया ने एक गलत शब्द "धर्मनिरपेक्षता" का प्रचार कर रखा है । यह झूठा प्रचार किया जाता है कि भारत एक "धर्मनिरपेक्ष" राष्ट्र है । संविधान में ४२ वें संशोधन (१९७६ ई.) के तहत जब "सेक्युलर" शब्द संविधान के Preamble (उद्देशिका) में जोड़ा गया उसी समय इसपर बहस हुई थी कि अंग्रेजी शब्द "सेक्युलर" का हिंदी अनुवाद "धर्मनिरपेक्ष" हो या न हो । भाकपा सांसद भोगेन्द्र झा ने 'धर्म' शब्द की शास्त्रीय परिभाषा बताते हुए कहा कि 'धर्म' शब्द का अर्थ रिलिजन नहीं है। उदाहरणार्थ बताया गया कि महाभारत में धर्म के दस लक्षण गिनाये गए हैं : "धृति क्षमा दमः अस्तेयं शौचम् इन्द्रिय-निग्रहः । धीः विद्या सत्यम अक्रोध दशकं धर्म लक्षणम् ॥ " इन लक्षणों से युक्त नास्तिक व्यक्ति भी धार्मिक माना जाएगा । पश्चिम के भारतविद् भी 'धर्म' शब्द का अनुवाद रिलिजन न करके Traditional Law करते हैं । लेकिन भारत में ऐसे मूर्खों की कमी नहीं है जो न तो अपने देश का संविधान पढ़ते हैं और न ही शास्त्रों का अध्ययन अध्ययन करते हैं । इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोगों ने भी इस मत का समर्थन किया । अतः सर्वसम्मति से संसद ने स्वीकार किया कि संविधान के Preamble (उद्देशिका) में ४२ वें संशोधन के तहत जो "सेक्युलर" शब्द जोड़ा गया, उसका हिंदी अनुवाद आधिकारिक तौर पर "धर्मनिरपेक्ष" न करके "पंथनिरपेक्ष" किया जाए ।
संविधान में ४२ वाँ संशोधन अत्यधिक व्यापक था प्रावधान विवादास्पद थे जो अदालत की शक्तियों पर कुठाराघात करते थे । अतः १९७७ में जनता पार्टी की सरकार बनने पर ४२ वें संशोधन के कुछ प्रावधानों को हटाया गया । बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी अदालत सम्बन्धी कुछ गलत प्रावधानों को संविधान-विरुद्ध ठहराया । लेकिन Preamble (उद्देशिका) में जोड़े गए शब्द "सेक्युलर" और इसके हिंदी अनुवाद "पंथनिरपेक्ष" को कभी नहीं हटाया गया । भारतीय संविधान में जहां कही भी "सेक्युलर" शब्द है, इसका अनुवाद "धर्मनिरपेक्ष" कहीं भी नहीं है, सर्वदा "पंथनिरपेक्ष" ही है । भारतीय संविधान को "धर्मनिरपेक्ष" कहने वाले पर अदालत में मुकदमा भी किया जा सकता है, यद्यपि आजतक ऐसा किसी ने किया नहीं है, क्योंकि जानबूझकर "धर्मनिरपेक्ष" शब्द का प्रयोग करने वाले तर्क दे सकते हैं। 
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Tuesday 21 February 2017

कामरेड ऊदल और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव : 2017 ------ विजय राजबली माथुर




कारपोरेट जगत के अखबार 'हिंदुस्तान' ने तो ईमानदार राजनीतिज्ञ कामरेड ऊदल को याद कर लिया किन्तु वामपंथी कामरेड जगत में कामरेड ऊदल का दृष्टांत नए लोगों को नहीं बताया जाता है। जब obc जगत से सम्बद्ध कामरेड मित्रसेन जी यादव ने राज्यसचिव रहते हुये स्वतंत्र कार्य करने में स्वम्य को असमर्थ पाया तो भाकपा उत्तर प्रदेश का सपा में विलय करा दिया। ऐसी विषम परिस्थिति में ब्रहमन वादी कामरेड्स ने कामरेड ऊदल को राज्यसचिव के पद पर आसीन करवा दिया था और उनके बाद पुनः ब्राह्मण वादी वर्चस्व कायम कर लिया जो लगातार जारी है और उसके बाद एक बार फिर पार्टी टूट चुकी है। लखनऊ के मलीहाबाद से sc को 2012 में और पूर्व से 2014 उप चुनाव में obc को चुनाव लड़ा कर बाद में पार्टी छोडने पर मजबूर कर दिया। इस बार पश्चिम से मुस्लिम कामरेड को(जिनकी ब्राह्मण कामरेड्स आलोचना करते रहे हैं ) खड़ा कर दिया बगैर किसी जनाधार के। ज़ाहिर है यह चुनाव भी जीतने के लिए नहीं किसी को गुप्त लाभ दिलाने हेतु ही लड़ा जा रहा है। 



26-01-2017 
26-01-2017 
27-01-2017 


February 19
वाम गठबंधन मे ये क्या हो रहा हैं?किसकी मदद कर रहे हैं?सब गोलमाल हैं ।





कामरेड बी टी रणदिवे और कामरेड ए के गोपालन का सिद्धान्त RSS चला रहा है 
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कभी कामरेड द्वय ने कहा था कि, 'हम संविधान में घुस कर संविधान को तोड़ देंगे' उनके इस सिद्धान्त को अब आर एस एस ने पूरी तरह से अंगीकार कर लिया है। आर एस एस ने धीरे - धीरे सेना, पुलिस,अर्द्ध सैनिक बल,आई ए एस आदि मे अपने समर्थकों को पहले ही समायोजित करवा रखा था, 1980 से इन्दिरा कांग्रेस में घुसपैठ कर ली थी फिर अन्य राजनीतिक दलों में भी अपने हितचिंतक बैठा लिए हैं। विगत वर्षों में केरल CPM में भाजपा से आए लोगों को प्रवेश दिया गया है और बंगाल CPM से कार्यकर्ता भाजपा में भेजे गए हैं। CPM के सुझाव पर ही छह वामपंथी दल अलग से चुनाव मैदान में उतरे हैं जबकि वामपंथी  दलों को आगे आ कर समस्त जंनतांत्रिक दलों को लेकर एक व्यापक मोर्चा बनाना चाहिए था। 
उत्तर प्रदेश की जनता भाजपा विरोध की लहर में वामपंथी दलों को भी नकार देगी और यह चुनाव वामपंथ के भविष्य के लिए एक बड़ा प्रश्न - चिन्ह खड़ा कर देगा जो कि भाजपा के लिए भविष्य में शुभ व लाभदायक रहेगा। इसी से स्पष्ट है कि, 'किसकी मदद कर रहे हैं?' ------
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1342661975795775
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