Wednesday 23 May 2018

‘‘पोल खोल-हल्ला बोल’’ ------ प्रेमनाथ राय / अरविंद राज स्वरूप

फोटो सौजन्य से अरविंद राज स्वरूप 
 दोनों फोटो सौजन्य से प्रदीप शर्मा 



Arvind Raj Swarup Cpi
23-05-2018 
जन एकता! जन अधिकार!! जन प्रतिरोध!!!
जन एकता, जन अधिकार आंदोलन, उत्तर प्रदेश
(जन संगठनों, वर्गीय संगठनों, सामाजिक संगठनों, आंदोलनों सहित प्रगतिशील
समूहों व व्यक्तियों का मंच)
लखनऊ
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भाजपा की केन्द्र सरकार के चार साल पूरा होने पर
प्रदेश के सभी जिलों समेत राजधानी लखनऊ में ‘‘पोल खोल-हल्ला बोल’’ के तहत
किया गया प्रदर्शन
लखनऊ 23 मई। केन्द्र में भाजपा की सरकार के चार साल पूरा होने पर सौ से
ज्यादा संगठन मिलकर ‘‘पोल खोल-हल्ला बोल’’ अभियान के तहत आज 23 मई को
प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों सहित प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जोरदार
विरोध प्रदर्शन किया गया।
राज्य केन्द्र पर प्राप्त सूचना के अनुसार प्रदेश के 30 से ज्यादा जिलों
में धरना प्रदर्शन किया गया। बलिया, गाजीपुर, इलाहाबाद, कानपुर, फैजाबाद,
जौनपुर, हाथरस,वाराणसी, मुरादाबाद, बुलंदशहर, इटावा, लखीमपुर, मऊ, आजमगढ़,
मथुरा, कासगंज आदि जिलों में सैकड़ों की तादाद में लोग सड़कों पर उतरे और
विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।
इसी क्रम में आज लखनऊ में जन एकता जन अधिकार आंदोलन बैनर तले 30 से
ज्यादा संगठनों के कार्यकर्ताओं ने जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन
किया। प्रदर्शन से पूर्व इप्टा के कार्यालय 22 कैसरबाग में ‘‘हवालात’’
नुक्कड़ नाटक का मंचन किया गया। नाटक के माध्यम से जनविरोधी मोदी सरकार का
पर्दाफाश किया गया। नाटक के बाद प्रदर्शनकारी बारादरी, परिवर्तन चौक,
बी0एस0एन0एल0 कार्यालय चौराहा होते हुए जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचे।
इस अवसर पर हुई सभा को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि केन्द्र की
मोदी सरकार ने ‘‘अच्छे दिन’’ और ‘‘सबका साथ-सबका विकास’’ का नारा दिया
था। यह भी कहा था कि विदेश से काला धन वापस आयेगा और सभी के खाते में 15
लाख रूपये आयेंगे। मोदी सरकार ने अपने किये गये वायदों में से किसी को भी
पूरा नहीं किया। यही नहीं सरकार आने के बाद योजना आयोग को भंग कर नीति
आयोग बना दिया गया है। इन चार वर्षों में मजदूरों, किसानों, छात्रों,
नौजवानों, महिलाओं, दलितों एवं अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हुए हैं। महंगाई
में बेतहाशा वृद्धि हुई है। डीजल और पेट्रोल की कीमतें आसमान छू रही हैं।
आम जनता की क्रय शक्ति में भारी कमी आयी है। श्रम सुधारों के नाम पर
मजदूरों के अधिकारों में कटौती की गयी है। सरकार जिलों में धरना/प्रदर्शन
करने के लोकतांत्रिक अधिकार पर हमला इस रूप में कर रही है कि अब
जिलाधिकारी कार्यालयों/कचेहरी पर परम्परागत धरना प्रदर्शन स्थल पर रोक
लगायी जा रही है।
वक्ताओं ने कहा कि इस दौर में भ्रष्टाचार में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
कानून व्यवस्था में भारी गिरावट आयी है। बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।
केन्द्र और राज्य सरकार के विभागों में लाखों पद रिक्त पड़े हैं, उन पर नई
नियुक्तियां नहीं हो रही हैं। पदों को समाप्त करने की कोशिश हो रही है।
सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं-आंगनवाड़ी, मनरेगा आदि के बजट में लगातार कटौती
की जा रही है।
जिलाधिकारी कार्यालय पर सभा हुई। जिसकी अध्यक्षता अरविंद राज स्वरूप व
संचालन प्रवीन पाण्डेय ने किया। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति के नाम
ज्ञापन जिलाधिकारी को दिया। सभा को प्रेमनाथ राय, रमेश सिंह, आशा मिश्रा,
महराजदीन चौधरी, उदय सिंह, सीमा राना, अनुपम यादव, फूलचंद यादव, परमानंद
द्विवेदी, एस0पी0 विश्वास आदि ने सम्बोधित किया।
उक्त जानकारी जन एकता-जन अधिकार आंदोलन की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति
में प्रेमनाथ राय ने दी।
साभार : 
https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/2108954685989325

Tuesday 22 May 2018

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रस्तावित लोकार्पण कार्यक्रमों और आम सभाओं को प्रतिबंधित करें ------ डॉ गिरीश


कैराना लोकसभा और नूरपुर विधान सभा क्षेत्रों का प्रचार थमने और मतदान से पहले होने जारही मोदी की बागपत रैली और लोकार्पण कार्यक्रम पर रोक लगाये निर्वाचन आयोग

भाकपा ने की मांग


लखनऊ- 22 मई, 2018—भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव मंडल ने केन्द्रीय निर्वाचन आयोग से मांग की है कि वह उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीटों पर प्रचार थमने के बाद से मतदान संपन्न होने के दरम्यान उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रस्तावित लोकार्पण कार्यक्रमों और आम सभाओं को प्रतिबंधित करें.
ज्ञातव्य हो कि उपर्युक्त दोनों सीटों पर 26 मई को सायंकाल प्रचार कार्य थम जायेगा और 28 मई की शाम पांच बजे तक मतदान होगा.
भाजपा और प्रधानमंत्री ने इस प्रचारबन्दी और मतदान की अवधि में बड़ी चतुराई से 27 मई को समीपस्थ जिले बागपत के मवीकलां में ईस्टर्न पेरिफेरल हाईवे का उद्घाटन करने और खेकडा में आमसभा करने का कार्यक्रम निर्धारित कर लिया है. इस कार्यक्रम में अपने खर्च पर और बड़े पैमाने पर  भाजपा दोनों चुनाव क्षेत्रों से जनता और मतदाताओं को लेजाने में जुटी है. साथ ही समूची कार्यवाही और लोकलुभावन घोषणाओं को टीवी चैनलों एवं अन्य समाचार माध्यमों के जरिये फैला कर मतदाताओं को प्रभावित किया जायेगा.
गत लोक सभा चुनावों और कई विधानसभा चुनावों के दरम्यान भी भाजपा और श्री मोदी ने किसी एरिया विशेष में मतदान के दिन किसी अन्य क्षेत्र में रैली, आमसभा अथवा रोडशो आयोजित कर संचार माध्यमों के जरिये मतदाताओं को प्रभावित करने का षडयंत्र किया था. यही कहानी वे 27 मई को दोहराने जारहे हैं. जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 31 मई तक इस हाईवे के लोकार्पण की छूट देरखी है तो यह कार्यक्रम 28 मई के बाद की किसी तिथि पर आयोजित किया जासकता है. माननीय सर्वोच्च न्यायालय को भी संज्ञान लेना चाहिये कि उनके आदेश की आड़ में राजनैतिक खेल तो नहीं खेला जारहा है.
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने भाजपा की इस कार्यवाही को आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन और नियम विरुध्द बताते हुये इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है.

डा. गिरीश, राज्य सचिव

भाकपा, उत्तर प्रदेश


Saturday 5 May 2018

‘‘सवाल दुनिया को बदलने का है’’ : मार्क्स ------ सीमा आज़ाद

5 मई 1818


Seema Azad
0- 05 - 2018 
मार्क्स की 200वीं जयन्ती [ 5 मई २०१८]

‘‘सवाल दुनिया को बदलने का है’’

‘अब तक दार्शनिकों ने समाज की व्याख्या की है, लेकिन सवाल इसे बदलने का है।’’ 
दुनिया को समझने ही नहीं, बल्कि इसे बदलने का दर्शन समाज को देने वाले कार्ल मार्क्स 200 साल के हो रहे हैं। 5 मई 2018 को दुनिया उनके जन्म की 200वीं जयन्ती मनायेगी। दुनिया को अब तक जिस दर्शन ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, वह हैं कार्ल मार्क्स। जिसे मार्क्सवाद के नाम से पूरी दुनिया में जाना गया। यह वह दर्शन है, जिसने सदियों से चली आ रही धर्म की सत्ता का वैज्ञानिक आधार पर खण्डन किया। हलांकि ऐसा नहीं है कि मार्क्स के पहले धर्म की सत्ता को स्थापित करने वाले अवैज्ञानिक-अतार्किक और भाववादी दर्शन के बरख़्श कोई वैज्ञानिक विचार था ही नहीं। पूरे विश्व और भारत में भी भाववादी दर्शन को चुनौती देने वाली विचारधारा हमेशा विद्यमान रही है, जो अपने समय के सापेक्ष विकसित और वैज्ञानिक विचारधारा रही है, बल्कि इसी की नींव पर मार्क्स ने अब तक के सबसे वैज्ञानिक और विकसित दर्शन की इमारत खड़ी की है। यह मार्क्स की ही दर्शन दृष्टि है, जिससे हम चीजों को उसकी निरन्तरता में देख पा रहे हैं। मार्क्स का दर्शन कहता है-‘‘प्रत्येक वस्तु सतत गतिमान व परिवर्तन की निरन्तर नवीकरण व विकास की अवस्था में रहती है, जिसमें सदैव कुछ उदित व विकसित होता रहता है तथा कुछ का हृास व विलोप होता रहता है।’’ जाहिर है यह प्रक्रिया दर्शन के क्षेत्र में भी होती है। एक ज्ञान की नींव पर दूसरे ज्ञान की इमारत तैयार होती है। 
यह महत्वपूर्ण है कि मार्क्स के दर्शन ने न सिर्फ प्रकृति के साथ समाज को भी समझने की दृष्टि प्रदान की, बल्कि समाज के सचेत बदलाव का दर्शन भी दुनिया को प्रदान किया। यानि इस दर्शन ने दुनिया के इतिहास को देखने की दृष्टि प्रदान की, जिससे हम बेहतर भविष्य के लिए वर्तमान में अपनी भूमिका भी सुनिश्चित कर सके। इस रूप में कार्ल मार्क्स ने अपना जीवन न सिर्फ दुनिया को समझने में लगाया, बल्कि उसे बदलने के काम में भी उतनी ही लगन से लगे रहे। याद रखें कि यह कार्ल मार्क्स की 200वीं जयन्ती है, मार्क्सवादी दर्शन की उम्र इससे भी कम है, लेकिन इतने कम समय में इस दर्शन ने दुनिया भर में बदलाव की ऐसी बयार बहा दी, कि दुनिया भर के शोषक-शासकों के कार्यों का सबसे बड़ा हिस्सा, शक्ति, समय और धन इस दर्शन से लैस और प्रेरित आन्दोलनों को रोकने में खर्च हो रहा है। 
5 मई 1818 को जर्मनी (तत्कालीन प्रशा के राहन क्षेत्र में) में जन्मे कार्ल मार्क्स का समाज के लिए किये गये योगदानों की चर्चा की जाये, तो इस पर कई पुस्तक लिखी जा सकती है, क्योंकि मार्क्स के विचारों ने पूरी दुनिया में प्राकृतिक विज्ञान, समाज विज्ञान के साथ-साथ कला, संस्कृति, साहित्य आदि को भी गहरे तक प्रभावित किया है। मार्क्स के योगदानों को एक छोटे से लेख में बयान करना मुश्किल है, लेकिन दुनिया भर के शोषितों उत्पीड़ितों को लड़ने की दृष्टि देने वाले और दुनिया भर के शासकों और मुनाफाखोरों को डराने वाले इस दर्शन पर संक्षिप्त चर्चा मार्क्स की 200 वीं जयन्ती पर आवश्यक है, ताकि इस वैचारिक हथियार को हम शोषित एक बार फिर से याद कर इसका इस्तेमाल तेज कर सकें। लेकिन उसके पहले यह कहना आवश्यक है कि आज हम जिसे मार्क्सवादी दर्शन कहते हैं, वह मार्क्स और एंगेल्स का साझा काम है। दोनों जिगरी दोस्त थे और दुनिया को समझने और बदलने में दोनों की दोस्ती भरी साझेदारी ऐसी थी, कि मार्क्स के साथ हमेशा एंगेल्स का नाम आ ही जाता है। दोनों अपने दर्शन के कारण ही नहीं, बल्कि अपनी दोस्ती के लिए भी हमेशा याद किये जायेंगे। इसके साथ ही मार्क्स की पत्नी जेनी उनके हर लिखे की पहली पाठक और सुझावदाता थीं। 
जैसा कि पहले कहा गया है कि मार्क्स का दर्शन या विचार कोई जड़ दर्शन नहीं है। इस दर्शन की मूल बात यही है कि मार्क्सवाद ने दुनिया को देखने का वह नजरिया उपलब्ध करा दिया, जिसके माध्यम से हर समय को, हर समाज की परिस्थिति को समझा जा सकता है। मार्क्स ने अपने समय तक पूंजी का जो रूप देखा, उसके आधार पर उन्होंने ‘पूंजी’ के तीन खण्ड लिख कर पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में शोषण की व्यवस्था को इतने अकाट्य तरीके से बयान किया, कि इसका खण्डन आज तक कोई भी अर्थशास्त्री या दार्शनिक नहीं कर सका है। लेकिन मार्क्स ने पूंजी के साम्राज्यवादी और एकाधिकारी स्वरूप को अपने समय में नहीं देखा, जिसे बाद में ब्लादिमीर लेनिन ने देखा समझा और इसे लिखकर मार्क्सवादी दर्शन को समृद्ध किया। लेनिन के बाद माओत्से तुंग ने चीन जैसे उन देशों में साम्राज्यवादी पूंजी के आगमन के प्रभाव को देखा और समझा, जहां अभी पूंजीवाद नहीं आया था, बल्कि यह समाज सामंती व्यवस्था से निकलने की प्रक्रिया में ही था। उन्होंने ऐसे समाजों की अर्थव्यवस्था को ‘अर्द्धसामन्ती-अर्द्धऔपनिवेशिक’ के रूप में व्याख्यायित कर इन देशों में बदलाव का नया रास्ता दिखाया, जिसे ‘समाजवादी क्रांति’ नहीं, बल्कि ‘नवजनवादी क्रांति’ कहा। माओ का यह योगदान भी मार्क्सवादी विचारधारा का संवर्धन थी। माओ ने दर्शन के स्तर पर भी, खास तौर से प्रकृति विज्ञान और समाज विज्ञान में अन्तर्विरोधों को समझने में मार्क्सवादी ज्ञान दर्शन में अमूल्य इजाफा किया। आज जब हम अपने देश में बदलाव के लिए मार्क्सवादी दर्शन से रोशनी ग्रहण करते हैं तो मार्क्स के साथ लेनिन और माओ के विचारों के साथ ही करते हैं। इन्हें छोड़कर हमारा मार्क्सवाद का ज्ञान अधूरा रह जायेगा।

विज्ञान और दर्शन में मार्क्सवाद का योगदान : 

दुनिया को समझने के लिए अब तक तीन तरह के दर्शन रहे है। पहला है आध्यात्मवादी या भाववादी दर्शन- जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड की प्रत्येक घटना या गति के लिए कोई अदृश्य शक्ति जिम्मेदार है। इस अदृश्य शक्ति को ही ईश्वर माना गया। यह दुनिया का सबसे पहला दर्शन है, जो कि अज्ञान से उपजा था, लेकिन ब्रह्माण्ड की अनेक गतियों और घटनाओं का ज्ञान होते जाने के बाद भी यह दर्शन आज भी समाज में न सिर्फ मौजूद है, बल्कि समाज के एक बड़े हिस्से को जकड़े हुए है आज के समय में यह शोषकों का दर्शन है। 
ज्ञान का स्तर आगे बढ़ने पर जो दूसरा दर्शन आया वह है भौतिकवादी दर्शन- जिसके अनुसार हर चीज का कारण इसी जगत में है, कोई अदृश्य कारण नहीं। यह ज्ञान के स्तर पर एक छलांग थी, लेकिन यह गतियों और घटनाओं के कारणों को सम्पूर्णता में देख पाने में अक्षम था, क्योंकि यह वस्तुओं की आन्तरिक गति तक नहीं पहुंच सका था, तथा गतियों और घटनाओं के केवल बाहरी कारणों के आधार पर उन्हें समझने की असफल कोशिश करता है।
मार्क्स ने इस दर्शन परम्परा में जोड़ा कि ‘हर गति का कारण इसी दुनिया में मौजूद है, साथ ही हर गति या विकास का कारण द्वन्द है, यह जगत और इसका हर पदार्थ द्वंदात्मक गति के कारण आगे बढ़ रहा है।’ ‘द्वंदात्मक गति’ का मतलब है एक बाहरी गति तथा दूसरी आन्तरिक गति, जिसमें आंतरिक गति प्रधान होती है। इन दोनों गतियों का परिणाम है ब्रह्माण्ड और समाज की कोई भी गति और विकास। इसी कारण मार्क्स के दर्शन को ‘‘द्वंदात्मक भौतिकवाद’’ कहा जाता है। 
यह दर्शन ज्ञान के क्षेत्र में ऐसी छलांग थी, जिसने प्रकृति विज्ञान और समाज विज्ञान की एक बड़ी गुत्थी को सुलझा दिया। द्वंदात्मक भौतिकवाद संसार को देखने का ऐसा नजरिया था, जिसने अब तक ज्ञात बातों को समझने और अज्ञात बातों तक पहुंचने का सूत्र पकड़ा दिया। यही वजह है कि दुनिया में मार्क्सवाद यानि द्वंदात्मक भौतिकवादी दर्शन के आने के बाद विज्ञान के क्षेत्र में सालों तक एक से बढ़कर एक बड़ी सैद्धांतिक खोजें होती रहीं। 19 सदी के मध्य में ही एंगेल्स ने ‘प्रकृति में द्वंदात्मक गति’ नामक आलेख के माध्यम से खगोल विज्ञान यानि अन्तरिक्ष के रहस्यों को समझने का प्राथमिक सूत्र थमा दिया था। ब्रह्माण्ड को समझने के लिए आइंस्टीन के ‘सापेक्षिकता के सिद्धांत’ जैसी बड़ी खोज का मुख्य आधार यह दर्शन है। यह दर्शन चूंकि संसार के हर अज्ञात कारणों को जानने का साहस देता है, इसलिए पूंजीवादी अराजकता के आज के दौर में इसे कुंद करने की फिर से साजिश रची जा रही है, जैसे तथाकथित ‘गॉड पार्टिकल’ की खोज का ढोंग, जिसमें अरबों रूपये पानी की तरह बहाये जा रहे हैं। गॉड पार्टिकल’ की खोज करने के दर्शन का आधार दरअसल पुराना भाववादी और आध्यात्मिक दर्शन ही है, जो मानता है कि कोई अदृश्य शक्ति दुनिया को संचालित कर रही है। ऐसा नहीं है कि इस अन्तिम पार्टिकल का नामकरण ‘गॉड’ या ‘ईश्वर’ के नाम पर यूं ही कर दिया गया, बल्कि इसके पीछे की सोच भी विज्ञान से दूर लेकर जाती है और चुपके से धार्मिक दर्शन की गोद में बिठा देती है। ‘गॉड पार्टिकल’ की खोज उस काल्पनिक सबसे छोटे अणु की खोज करना है, जिसका विखण्डन न हो सके। अर्थात ये ऐसा पार्टिकल होगा, जो शाश्वत है, यानि जो हमेशा से था और रहेगा। इस खोज के पीछे की सोच है कि ब्रह्माण्ड में एक अन्तिम अणु है जिसे किसी अदृश्य शक्ति ने बनाया है, जिसका नाम ईश्वर है। इसके आगे ज्ञान की धारा पर विराम लग जाता है। यदि इस प्रयोग से ऐसा साबित हो भी गया कि सबसे छोटा पार्टिकल यह है, तो भी इस अणु के आगे न देख पाना इस समय की सीमा है, न कि विज्ञान की। 
मार्क्सवादी दर्शन यह बताता है अणुओं के विखण्डन की कोई सीमा नहीं, हर अणु विखण्डनीय है, इसलिए अन्तिम या प्रारम्भिक अणु या किसी अदृश्य शक्ति द्वारा तैयार ‘गाड पार्टिकल’ जैसे किसी अणु का अस्तित्व नहीं हो सकता। हर पदार्थ अपना रूप बदलता है। अणुओं के संघनित और विरल होते जाने से पदार्थ का रूप बदलता जायेगा।
दुनिया में मार्क्सवादी दर्शन को लागू करने वाली सामाजिक व्यवस्था क्योंकि इस समय पूरी दुनिया में नहीं है, इस कारण इस समय विज्ञान का दार्शनिक और सैद्धांतिक विकास भी ठहरा हुआ है, आज जिस विकास को हम देख रहे हैं, वह दरअसल तकनीकी विकास है, जो कि पूंजीवादी शोषण को तेज करने का ही काम कर रहा है।

समाज विज्ञान के क्षेत्र में मार्क्स का योगदान : 

मार्क्सवादी दर्शन द्वंदात्मक भौतिकवाद की यह विशेषता है कि इससे केवल प्रकृति विज्ञान ही नहीं बल्कि समाज विज्ञान की गति को भी साफ-साफ समझा जा सकता है। मार्क्स और एंगेल्स ने द्वंदात्मक भौतिकवाद के दर्शन को समाज पर लागू कर समाज की गति की व्याख्या की, तो उसे ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद’ कहा गया। इसके पहले इतिहास को दो शासकों के यु़द्धों या विशेष राज में उस समय के प्रशासनिक खूबियों या कमियों के रूप में ही बयान किया जाता रहा। लेकिन मार्क्सवाद के ‘ऐतिहासिक भौतिकवादी’ दर्शन ने समाज विकास का कारण ‘वर्ग संघर्ष’ बताया। यानि इतिहास सिर्फ दो राजाओं के बीच परस्पर युद्ध की कहानी नहीं है, बल्कि यह शासक और शोषितों के बीच के अन्तर्विरोध और उससे उत्पन्न ‘वर्ग संघर्षों’ का विज्ञान है, जिससे समाज आगे बढ़ता है तथा निरन्तर विकास की नयी मन्जिल की ओर बढ़ता रहता है। हर समाज व्यवस्था में शासक और शोषकों के बीच का अन्तर्विरोध उस समय में मौजूद उनके बीच के उत्पादन सम्बन्धों को तोड़ कर आगे बढ़ने, (जो कि शोषित करता है) और उसे बनाये रखकर शोषण जारी रखने, (जो कि शोषक करता है) का होता है। इस सम्बन्ध को तोड़कर आगे बढ़ने के लिए तत्पर वर्ग अपने समय का प्रगतिशील और क्रांतिकारी वर्ग होता है और उसे रोक कर रखने वाला वर्ग पिछड़ा और प्रतिक्रियावादी वर्ग होता है। ऐतिहासिक भौतिकवाद के इसी सूत्र पर अब तक समाज दास युग, सामंती युग से होता हुआ पूंजीवादी और साम्राज्यवादी युग तक पहुुुंचा है, तथा इसी वैज्ञानिक नियम के आधार पर यह पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि इसकी अगली मंजिल समाजवाद और साम्यवाद होगी। भारत के सन्दर्भ में यह नवजनवाद से होकर समाजवाद के रास्ते पर बढेगा। भारत में अपने सामंती उत्पीड़कों के खिलाफ किसान, दलित, आदिवासी, और साम्राज्यवाद के खिलाफ मजदूर वर्ग आज का प्रगतिशील क्रांतिकारी तबका है, क्योंकि यही उस पुराने उत्पादन सम्बन्धों को तोड़ने की दिशा में बढ़ रहा है, जिसे मनुवादी सामंती सत्ता और साम्राज्यवादी कॉरपोरेटी घराने शोषक वर्ग के रूप में, बनाये रखने का प्रयास कर रहे हैं। 
कुल मिलाकर यह कि आध्यात्मिक और भाववादी दर्शन समाज व्यवस्था के बारे में यह बताता है कि दुनिया में अमीर और गरीब शोषक और शोषित बनाने वाला भगवान है, और वह इंसान के पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर अमीर और गरीब बनाता है, या अपने दुखों में खुश रहना उसे स्वीकार करना ईश्वर को खुश करने जैसा है, जिसका परिणाम इंसान को मरने के बाद मिलेगा। पूंजीवादी भौतिकवादी दर्शन अब यह बताता है, कि ‘जो जितना मेहनत करता है उतना अमीर होता जाता है’, और यह कि ‘अमीर आदमी दिमागी मेहनत करके अमीर बनता है’, जो कि गरीब नहीं कर सकता, क्यांेकि उसके पास दिमाग कम है। वहीं ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद’ बताता है कि समाज आज जैसा भी है, वह यहां मौजूद दो वर्गों के अन्तर्विरोधों के आधार पर है, और इसी के कारण वह बदलेगा। इतिहास की गति, जो कि शोषित वर्ग की चेतना का निर्धारण भी करती है, इसी चेतना से वह अपनी भौतिक स्थितियों यानि पुराने उत्पादन सम्बन्धों को बदलने का काम करता है। जैसे पूंजीवाद में उत्पादन की पद्धति का सामूहिकीकरण, लेकिन उत्पादन के साधनों पर निजी मिल्कियत, यह ऐसा अन्तर्विरोध है, जिसकी स्वाभाविक मांग समाजवादी अर्थव्यवस्था है। उत्पादन में सख्त अनुशासन और बाजार में अराजकता यह सब भौतिक परिस्थितियां मिलकर पूंजीवाद के प्रगतिशील वर्ग मजदूर की उस चेतना का निर्धारण करती है, जो इस पुराने उत्पादन सम्बन्धों को बदलने की ओर उसे प्रेरित करती है। 
क्योंकि समाज में दो वर्ग हैं इसलिए समाज में व्याप्त अराजकता को देखने का दो दर्शन भी मौजूद रहता है। सही-गलत दर्शन को चुनने के सन्दर्भ में मार्क्स का कहना है ‘‘जब हम ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे प्रगतिशील वर्ग का दृष्टिकोण अपनाते हैं, केवल तभी हम सत्य के और अधिक निकट पहुंचने में समर्थ हो सकते हैं।’’

अर्थशास्त्र को मार्क्स का योगदान : 

हलांकि सम्पूर्णता में देखने पर समाज विज्ञान से अर्थशास्त्र को अलग नहीं किया जा सकता, लेकिन चूंकि मार्क्स ने अपने समय में अदृश्य शोषण की एक ऐसी गुत्थी को सुलझा ली थी, जो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के शोषण को उजागर कर देती है, इसलिए उनके इस योगदान को अर्थशास्त्र का हिस्सा माना जाता है। मार्क्स का समाज को यह ऐसा योगदान है कि पूंजीवादी अर्थशास्त्री आज तक मार्क्स के इस काम पर मौन साधे हुए हैं। 
सामंतवादी उत्पादन सम्बन्धों को तोड़कर जब यूरोप में पूंजीवाद आया, तो उसने यह दावा किया कि उसने श्रम को मुक्त कर दिया है, हर किसी को उसके किये का दाम यानि फल मिलेगा और किसी का शोषण नहीं होगा। लेकिन उसने इस दावे की आड़ में श्रम के जिस शोषण को अपनाया, उससे श्रम बेचने के लिए मुक्त और वस्तुओं के उत्पादन करने में लगे मजदूर की स्थिति में तो कोई बदलाव नहीं हुआ, जबकि मजदूरों के श्रम से माल उत्पादन में लगे पूंजीपति अमीर से अमीर होते गये। पूंजीपति का यह दावा था कि वह तो मजदूर को पूरी मजदूरी दे रहा है, उसका मुनाफा उसकी अपनी पूंजी और दिमाग के कारण हो रहा है, जो कि मजदूरों के पास नहीं है। मार्क्स ने इसी गुत्थी को सुलझाने में सालों लगाये उन्होंने तीन खण्डों में ‘पूंजी’ लिख कर पूंजी के चरित्र को तो दुनिया के सामने रखा ही, साथ ही उन्होंने मजदूरों के श्रम का गबन करने वाली पूंजीपतियों की नीति को भी समझाया जिसे ‘अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत’ कहते हैं। उन्होंने बताया कि पूंजीपति अपना मुनाफा अपने दिमाग या कारोबार में लगाई गयी पूंजी से नहीं कमाता है, बल्कि वह अपना मुनाफा मजदूरों के श्रम की चोरी से ही कमाता है। संक्षेप में इसे ऐसे समझा जा सकता है कि पूंजीवाद के आने के बाद नित नयी विकसित तकनीक वाली मशीनों के रूप में मनुष्य का श्रम पहले ही लग चुका होता है। मशीनें मनुष्य के श्रम का ही विकसित रूप है और कुछ नहीं। यानि यदि मनुष्य पहले यदि 8 घण्टे में 10 जोड़ी जूते बना लेता था, और आठ घण्टे का उस 200 रूपये मिलता था (जो कि हम फिलहाल मान लेते हैं, कि उसके पुनरूत्पादन पर लगने के लिए पर्याप्त हैं। अब नयी विकसित मशीनें, जो कि मजदूरों के श्रम का ही विकसित रूप है, के आ जाने पर वह 10 जोड़ी जूते 4 घण्टे में ही बना लेता है, लेकिन पूंजीपति अब भी उससे 8 घण्टे ही काम ले रहा है, और मजदूरी उतनी ही दे रहा है, या वो एक मजदूरी में दो मजदूर का काम करा रहा है। यानि श्रम के विकसित रूप में मशीनों के इस्तेमाल से एक मजदूर पहले 4 घण्टे में ही खुद को मिलने वाले मूल्य का श्रम कर ले रहा है, उसके आगे के 4 घण्टे जो वह श्रम कर रहा है, वह पूंजीपति द्वारा उसके श्रम की चोरी है और यही उसके मुनाफे का आधार है, न कि पूंजीपति की पूंजी। 
दुनिया में हर पूंजी का आधार श्रम ही है और कुछ नहीं। इस रूप में दुनिया की मुख्य पूंजी प्रकृति के बाद श्रम है, एक पर कब्जा कर और दूसरे की चोरी कर पूंजीपति अपना मुनाफा बढ़ाता जाता है। इसे ही ‘अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत’ कहते हैं। यह मुनाफाखोर पूंजी समाज में अराजकता पैदा करता है, शोषण को बढ़ाती है। इसी कारण मंदी का बार-बार आना तय है, इसका कारण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में ही निहित है। पूंजीवाद के खात्मे के साथ ही यह मंदी खत्म होगी, क्योंकि तब अर्थव्यवस्था मुनाफे पर नहीं, इंसान की जरूरत पर टिकी होगी। साथ ही मशीनों के रूप में श्रम का संग्रहण मनुष्य के श्रम को वास्तव में मुक्त करेगी, ताकि वह उसका इस्तेमाल ढेरों रचनात्मक कार्यों और इंसानियत की बेहतरी के लिए कर सके। 
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के ऐसे राज को खोलने वाली पुस्तक ‘पूंजी’ मार्क्स का समाज विज्ञान और अर्थशास्त्र के लिए बहुमूल्य योगदान है।

कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र : 

मार्क्स के महत्वपूर्ण योगदानों में यह भी उनका एक महत्वपूर्ण योगदान है, जो इसका गवाह है कि ‘दुनिया को समझने का दावा तो बहुत लोग कर चुके सवाल इसे बदलने का है।’ कम्युनिष्ट घोषणा पत्र इसी बात की घोषणा है, कि यह समाज आज जैसा है वैसा नहीं रहेगा और इसका आधार मात्र भावना नहीं, बल्कि विज्ञान है। आने वाला समाज कैसा होगा इसकी भी घोषणा है यह दस्तावेज, जिसे मार्क्स ने एंगेल्स और जेनी से सलाह मशविरे के साथ 1848 में लिखा था, जो आज तक समाज बदलने वालों का महत्वपूर्ण औजार है, और जो आज भी दुनिया भर में सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों की सूची में है। जिसके आधार पर 1871 में मार्क्स के ही समय में फ्रांस में पेरिस कम्यून के रूप में समाजवाद के विचार को पहली बार धरती पर उतारा भी गया। इस ऐतिहासिक घटना के बारे में भी मार्क्स ने लिखा, तथा इस घटना की समीक्षा की।

मार्क्सवाद और महिलाओं की मुक्ति : 

सदियों से पितृसत्ता की मार झेलती महिलाओं की मुक्ति के रास्ते को मार्क्सवाद ने ही सबसे वैज्ञानिक तरीके से बताया है। जिसकी घोषणा कम्युनिस्ट घोषणापत्र में तो है ही, एंगेल्स ने अपनी पुस्तक ‘परिवार निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति’ में वैज्ञानिक तरीके से महिलाओं के शोषण और उनकी दोयम दर्जे की स्थिति को समझाया है। एंगेल्स ने बताया है कि वह निजी सम्पत्ति की व्यवस्था है, जिसने मातृप्रधान समाज को पितृसत्ता में तब्दील कर दिया और महिलाओं को पुरूषों के अधीन कर दिया। यह स्थिति हमेशा बनी रहे इसके लिए इस अधीनता को धर्म का आवरण पहना दिया गया। एंगेल्स ने मातृप्रधान समाज के पितृसत्तात्मक समाज में बदल जाने को दुनिया और समाज का पहला वर्ग विभाजन कहा है, जिसमें महिला पुरूष की दासी बन गयी। इस इतिहास को ध्यान में रख कर मार्क्सवाद यह बताता है कि महिलाओं की पूरी मुक्ति निजी सम्पत्ति के खात्मे वाली व्यवस्था के साथ ही संभव है। यह एक अलग लेख का विषय है, लेकिन यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि मार्क्सवाद को जमीन पर उतारने वाले देश सोवियत संघ में ही पहली बार महिलाओं को वोट डालने सहित ऐसे तमाम अधिकार सुनिश्चित किये गये, जिनसे समाज में स्त्री पुरूष के बीच बराबरी आ सके। मार्क्सवाद बताता है कि पूंजीवाद महिला पुरूष की गैर बराबरी की स्थिति से अपना मुनाफा बढ़ाता है, क्योंकि वह महिला के घरेलू श्रम का विनिमय मूल्य नहीं बनने देता। और जहां पूंजी के साथ सामन्ती शोषण भी मिला हो, वहां तो उनकी स्थिति और भी बुरी होगी, जैसे कि भारत में। माओ ने इस दर्शन को विकसित करते हुए कहा है कि अर्द्धसामन्ती-अर्द्ध औपनिवेशिक देशों के शोषितों पर तीन तरह का पहाड़ है, लेकिन इन देशों की महिलाओं पर यह पहाड़ चार तरीके का है, चौथा पहाड़ पितृसत्ता का है।

कला-साहित्य-संस्कृति में मार्क्सवाद का प्रभाव : 

मार्क्सवादी दर्शन जब दुनिया में आया, तो इसने न सिर्फ प्रकृति विज्ञान, समाज विज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र को गहराई से प्रभावित किया, बल्कि कला साहित्य और संस्कृति की दुनिया को भी गहराई के साथ प्रभावित किया। मार्क्सवादी दर्शन यह कहता है कि जैसे शासक और शोषित वर्ग का दो अलग-अलग जीवन दर्शन होता है, उसी तरह हर साहित्य व कला भी किसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। समाज के अगुवा तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाला साहित्य ही श्रेष्ठ साहित्य है। दरअसल समाज को देखने समझने की वैज्ञानिक समझ से लैस होने के वाले जनवादी साहित्य ने साहित्य के मानदण्डों को ही बदल दिया। साहित्य सिर्फ अच्छी कला प्रदर्शन का नमूना भर नहीं, बल्कि समाज बदलाव का सचेत धारदार हथियार भी बन गया। कला को सिर्फ कला के लिए नहीं, प्रगतिशील विचाारों के वाहक के रूप में देखना मार्क्सवादी दर्शन की ही देन है आज भी साहित्य में यह बहस जिन्दा है, लेकिन पूरी दुनिया में वही साहित्य सराहा गया है, जो सिर्फ यथार्थ का आइना नहीं, बल्कि जिसमें पुराने को तोड़ नये मूल्यों, विचाारों के आने की आहट भी होती है। साहित्य के साथ कला के अन्य रूप भी सिर्फ यथार्थ को चित्रित करने का एकतरफा माध्यम नहीं, बल्कि समाज को समझने आगे ले जाने का सचेत जरिया भी बनने लगा। मार्क्सवादी रंगकर्मी जर्मनी के बर्तोल्त ब्रेख्त का प्रसिद्ध कथन है कि ‘‘कला ऐसा कोई आइना नहीं है, जिसमें यथार्थ कैद किया जाता है, बल्कि कला वह हथौड़ा है, जिससे यथार्थ का रूप बदला जाता है।’’ आगे चलकर माओ ने मार्क्सवादी कला साहित्य के दर्शन को रेखांकित करते हुए कहा कि क्रांति के लिए दो फौज का होना जरूरी है। पहला बन्दूक की फौज, दूसरा कलम की फौज। कला और संस्कृति के बगैर सेना मन्दबुद्धि सेना है।’’ 
कुल मिलाकर मार्क्सवादी दर्शन ने पूरी दुनिया में खलबली पैदा कर दी। मार्क्स के विचार को, उनके दर्शन को दुनिया से खतम कर देने की कोशिशें लगातार जारी है, शोषक वर्ग की ओर से भी, खुद को मार्क्सवादी बताने वालों की ओर से भी। पिछले दो दशकों से विचारधारा का अन्त और विचारधारात्मक आन्दोलनों के युग का अन्त जैसे प्रतिक्रियावादी सिद्धांत शासक वर्ग की ओर से फैलाये जा रहे हैं। दूसरी ओर पुराने उत्पादन सम्बन्धों को ध्वस्त कर नये विकसित समाज में कदम रखने के मार्क्सवादी दर्शन को धूमिल कर उत्पादन सम्बन्धों में सुधार करने का गैर क्रांतिकारी विचार भी हमलावर है, ऐसा इसलिए भी है कि मार्क्सवाद को जमीन पर उतारने वाले देश खुद मार्क्सवादी दर्शन का विचार त्याग कर चुके हैं। लेकिन इससे यह साबित नहीं हो जाता कि मार्क्सवादी दर्शन अप्रासंगिक हो गया है, मार्क्सवाद मात्र विचार नहीं, यह दुनिया को देखने और उसे बदलने का दर्शन है, दुनिया में समाजवाद भले ही न हो दुनिया को देखने का यह दर्शन हमेशा लोगों को सही दृष्टि देता रहेगा। दूसरी बात यह कि मार्क्सवादी इतिहास ही यह बताता है कि एक समाज व्यवस्था से दूसरी समाज व्यवस्था में जाने में हर समाज को कई साल लगे। और अभी तो मार्क्सवाद को आये ही 150 साल हुए है इतिहास की दृष्टि से यह समय काल काफी छोटा है। लेकिन इस छोटी सी समय अवधि में ही दुनिया के कई देशों में इसे उतार कर दिखा भी दिया गया और कई देश इसे जमीन पर उतारने की प्रक्रिया में है। लेकिन शोषकों के वर्ग को पता चल गया है कि मार्क्सवादी दर्शन ही तीर है जिससे वे मारे जा सकते हैं, इसलिए अपने इस दुश्मन के प्रति वे ज्यादा सचेत और आक्रामक भी हैं। चाहे देश के अन्दर की बात हो या देश के बाहर हर जगह मार्क्सवादी दर्शन को जमीन पर उतारने का संघर्ष करने वाले लोग सत्ता के निशाने पर हैं। यही इस बात का प्रमाण है कि इस दर्शन से ही शोषण करनेवाला वर्ग सबसे अधिक डरता है और यही मार्क्सवाद के सटीक दर्शन होने की पुष्टि करता है। दुनिया को समझने के लिए ही नहीं इसे बदलने के लिए भी मार्क्स का दर्शन हमेशा पढ़ा जाता रहेगा, और इसे जमीन पर उतारने के आन्दोलन हमेशा जिंदा रहेंगे।

 ------ सीमा आजाद

दस्तक मई-जून २०१८ अंक में प्रकाशित लेख

https://www.facebook.com/seema.azad.33/posts/2512514455640756

Tuesday 1 May 2018

कामरेड कन्हैया : स्वागत, बधाई व शुभकामनायें ------ विजय राजबली माथुर



फोटो - सौजन्य कामरेड तापस सिन्हा 


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Arvind Raj Swarup Cpi
Newly elected Leadership of CPI.

23rd Party Congress of Communist Party of India.
From April 25 to 29, 2018,At A.B. Bardhan Nagar, Kollam, Kerala
Elected Members of the Central Control Commission, National Council and Candidate Members to National Council
Central Control Commission
1. Pannian Ravindran
2. C.A. Kurien
3. C.R. Bakshi
4. P.J.C. Rao – Andhra Pradesh
5. Bijoy Narayan Mishra - Bihar
6. Moti Lal – Uttar Pradesh
7. Dr. Joginder Dayal - Punjab
8. M. Shakhi Devi – Manipur
9. T. Narsimhan - Telangana
10. M. Arumugham – Tamil Nadu
11. Apurba Mandal – West Bengal
National Council Members
1. S. Sudhakar Reddy Gen Secy.
2. Gurudas Das Gupta
3. Shameem Faizee
4. Ramendra Kumar
5. D. Raja
6. Amarjeet Kaur
7. Atul Kumar Anjaan
8. Dr. K. Narayana
9. Nagendranath Ojha
10. Dr. B.K. Kango
11. Binoy Viswam
12. Pallab Sengutpa
13. Annie Raja​​-​Women Front
14. Azeez Pasha
15. CH Venkatachalam​- ​Bank Front
16. B.V. Vijaylakshmi​- ​TU Front
17. S. V. Damle​​- ​TU Front
18. Vidyasagar Giri​​-​TU Front
19. R.S. Yadav​​- ​Mukti Sangharsh
20. Manish Kunjam​​- ​Tribal Front
21. C. Srikumar​​- ​Defence
22. Gargi Chakravarthy​- ​Women Front
23. Anil Rajimwale​​-​Education Department
24. Viswajeet Kumar​- ​Student Front
25. R. Thirumalai​​- ​Youth Front
26. Kanhaiya Kumar
27. A.A. Khan​​- ​Minority Front
AndhraPradesh
28. K. Ramakrishna
29. M.N. Rao
30. J.V.S.N. Murthy
31. Jalli Wilson
32. Akkineni Vanaja
Assam
33. Munin Mahanta
34. Kanak Gogoi
Bihar
35. Satya Narayan Singh
36. Ram Naresh Pandey
37. Janki Paswan
38. Rajendra Prasad Singh
39. Rageshri Kiran
40. Om Prakash Narayan
41. Pramod Prabhakar
42. Ram Chandra Singh
43. Nivedita
44. Jabbar Alam
Chhattisgarh
45. R.D.C.P. Rao
46. Rama Sori
Delhi
47. Dhirendra K. Sharma
48. Prof. Dinesh Varshney
Goa
49. Chirstopher Fonseca
Gujarat
50. Raj Kumar Singh
51. Vijay Shenmare
Haryana
52. Dariyao Singh Kashyap
Himachal Pradesh
53. Shayam Singh Chohan
Jharkhand
54. Bhubaneshwar Prasad Mehta
55. K.D. Singh
56. Rajendra Prasad Yadav
57. Mahendra Pathak
Jammu and Kashmir
58. Vacant
Karnataka
59. P.V. Lokesh
60. Saathi Sundresha
Kerala
61. Kanam Rajendran
62. K.E. Ismail
63. K. Prekash Babu
64. E. Chandrasekharan
65. Adv. P. Vasantham (F)
66. T.V. Balan
67. C.N. Jayadevan
68. K.P. Rajendran
69. J. Chinju Rani (F)
70. Adv. N. Anirudhan
71. Adv. Rajan
Manipur
72. M. Nara Singh
73. L. Sotin Kumar
Meghalaya
74. Samudra Gupta
Maharashtra
75. Tukaram Bhasme
76. Namdev Gavade
77. Ram Baheti
78. Prakash Reddy
Madhya Pradesh
79. Arvind Shrivastava
80. Haridwar Singh
Odisha
81. Dibakar Nayak
82. Ashish Kanungo
83. Abhaya Sahoo
84. Ramakrushna Panda
85. Souribandhu Kar
Puducherry
86. A.M. Saleem
87. A. Ramamoorthy
Punjab
88. Bant Singh Brar
89. Jagrup Singh
90. Hardev Singh Arshi
91. Nirmal Singh Dhaliwal
92. Jagjit Singh Joga
Rajasthan
93. Narendra Acharya
94. Tara Singh Sidhu
Tripura
95. Vacant
Tamil Nadu
96. R. Nallakkannu
97. D. Pandian
98. R. Mutharasan
99. C. Mahendran
100. K. Subbarayan
101. M. Veerapandian
102. T.M. Murthi
103. G. Palaniswamy
104. P. Padmavathi
105. P. Sethuraman
Telangana
106. Chada Venkat Reddy
107. Palla Venkat Reddy
108. K. Sambasiva Rao
109. Pasya Padma
110. K. Srinivas Reddy
111. K. Shanker
112. T. Srinivas Rao
Uttar Pradesh
113. Dr. Girish Sharma
114. Arvind Raj Swarup
115. Imtiyaz Ahmed
116. Prof. Nisha Rathor
117. Ram Chand Saras
Uttarakhand
118. Samar Bhandari
West Bengal
119. Swapan Banerjee
120. Manju Kumar Mazumdar
121. Santosh Rana
122. Shyama Sree Das
123. Ujjawal Chaudhury
124. Chittaranjan Das Thakur
125. Prabir Deb
126. Tarun Das
Candidate Members
1. Krishna Jha (New Age)
2. Prof. Arun Kumar (Teachers)
3. Aftab Alam Khan (Youth Front
4. Wali – Ullah – Khadri (Student Front)
5. N. Chidambaram (New Age/Office)
6. Dr. Arun Mitra (Doctor’s Front)
7. M. Bal Narsima (Telangana)
8. Mithlesh Jha (Bihar)
9. Suhaas Naik (Goa)
10. Mahesh Kakkathu (Kerala)
11. Kh. Surchand Singh (Manipur)
12. Richard B. Thabah (Meghalaya)
13. G. Obulesu (Andhra Pradesh)
Invitee Members
1. Lakshadweep. 
National Secretariat elected in XXIII Congress of CPI
1. S Sudhakar Reddy
2. D Raja
3. Shameem Faizee
4. Amarjeet Kaur
5. Atul Kumar Anjaan
6. Rameendra Kumar
7. Dr K Narayana
8. Kanam Rajendran
9. Binoy Vishwam
10. Dr. BK Kango
11. Pallab Sen Gupta
Newly Elected National Executive XXIII Congress of CPI
1. S Sudhakar Reddy
2. D Raja
3. Shameem Faizee
4. Amarjeet Kaur
5. Atul Kumar Anjaan
6. Rameendra Kumar
7. Dr K Narayana
8. Kanam Rajendran
9. Binoy Vishwam
10. Dr. BK Kango
11. Pallab Sen Gupta
12. Nagendra Nath Ohha
13. Annie Raja
14. Azeez Pasha
15. K Ramakrishna
16. Satyanarayan Singh
17. Janaki Paswan
18. Ram Naresh Pandey
19. Bhubaneshwar Prasad Mehta
20. KE Ismail
21. Dr M Nara Singh
22. Dibakar Naik
23. Mutturasan
24. C Mahendran
25. Chada Venkat Reddy
26. Subbarayan
27. Swapan Banarjee
28. Bant Singh Brar
29. Munin Mahanto
30. CH Venkatachalam
31. Paniyan Ravindran (Chairperson Central Control Commission)
32. Gurudas Das Gupta (Chairman, Permanent Program Commission as Ex Officio Member – Permanent Invitee)
https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/2091282534423207

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जब कोई सही बात की जाती है तब निहित स्वार्थी तत्वों को वह कुबूल नहीं होती है जिस ओर कामरेड अंकित इंगित कर रहे हैं । हमने 18 मार्च 2016 में ही कामरेड कन्हैया कुमार के हस्त - विश्लेषण से उनके उज्ज्वल भविष्य का आंकलन करके सार्वजनिक कर दिया था। कोलम में सम्पन्न भाकपा की 23 वीं कांग्रेस में कामरेड कन्हैया कुमार को नेशनल काउंसिल में चुने जाने हेतु हम उनका स्वागत व अभिनंदन करते हैं तथा बधाई व शुभकामनायें प्रेषित करते हैं।