Sunday 28 June 2015

पहचान के संकट से जूझ रहा है- कम्युनिस्ट पार्टी की तरह --------- डॉ गिरीश




*****युवा दृष्टिकोण :
*2012 मथुरा विधानसभा क्षेत्र :
**2012 में उत्तर-प्रदेश विधानसभा के  चुनाव लड़े भाकपा प्रतियाशियों के प्राप्त मत :
***14 may 2015 रास्ता रोको अभियान :
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 **अपने ब्लाग-पोस्ट में रामचन्द्र गुहा साहब के एक लेख को उद्दृत करते हुये मैंने अंतिम अनुच्छेद में लिखा था :

Friday, June 26, 2015


एमर्जेंसी 26 जून 1975 की ---

"रामचन्द्र गुहा साहब ने उचित रूप से ही कांग्रेस व भाजपा को आपातकाल लगाने वालों से युक्त बताया है। मुलायम,लालू व नीतीश की पार्टियों को भी जे पी के रास्ते से भटका बता कर सही बात कही है। शेष बचते हैं साम्यवादी-वामपंथी दल उनमें भी कुछ कांग्रेस के साथ थे। आज के संन्दर्भ में फासीवाद की तलवार सिर पर लटकने के बावजूद वे ठोस मोर्चा बना कर जनता को अपने पीछे लामबंद करने में तब तक असमर्थ रहेंगे जब तक सामाजिक स्तर पर ब्राह्मणवाद से टकराना नहीं चाहेंगे। विभिन्न साम्यवादी दलों में ब्राह्मणों का प्रभाव व अस्तित्व देखते हुये अभी तो उनके ब्राह्मणवाद के विरुद्ध उठ खड़े होने की कोई संभावना नहीं है जो उन फासीवादी शक्तियों के लिए टानिक का काम कर रही है जो कि संविधान व लोकतन्त्र को नष्ट करने की दिशा में कदम उठा चुकी हैं।"  
http://krantiswar.blogspot.in/2015/06/26-1975.html

इस पर एक युवा कम्युनिस्ट ने घोर आपत्ति की थी कि कम्युनिस्ट विरोधी गुहा साहब का कथन क्यों उद्धृत किया गया जबकि हिन्दी के वृद्ध विद्वान की टिप्पणी यह थी: 
("विभिन्न साम्यवादी दलों में ब्राह्मणों का प्रभाव व अस्तित्व देखते हुये अभी तो उनके ब्राह्मणवाद के विरुद्ध उठ खड़े होने की कोई संभावना नहीं है" अभी नहीं प्रारंभ से इनका प्रभुत्व रहा है और इनके प्रभुत्व के कारण ही साम्यवादी आंदोलन अपने अपेक्षित लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सका|)

इस पर मुझे यह लिखना पड़ा : 
अक्सर अपने ब्लाग-पोस्ट के समर्थन में किसी विद्वान के द्वारा व्यक्त विचारों वाला लेख स्कैन कटिंग के रूप में लगा देते हैं। सम्पूर्ण विवरण ब्लाग में ही होता है जिसे पढे बगैर सिर्फ फेसबुक लिंक को देख कर कुछ उतावले लोग असंदर्भित टिप्पणियाँ कर देते हैं उंनका जवाब देना मेरे लिए जरूरी नहीं है।

 परंतु मेरा कहना यह है कि भले ही रामचन्द्र गुहा कम्यूनिज़्म के विरोधे हों और उनका लेख हमारे पक्ष के लिए नहीं लिखा गया हो एक कम्युनिस्ट के नाते हम क्यों न उनके लेख का अपने हक में स्तेमाल कर लें। इसी वजह से उनके लेख को अपने ब्लाग पोस्ट के समर्थन में लिया है। खेद इस बात का है कि खुद कम्युनिस्ट लोग ही इसकी आलोचना करके अपने विरोधियों का उत्साह वर्द्धन करने लगे हैं। 
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/902430993152211?pnref=story
 कहा तो यह जाता है कि संकट के समय परस्पर संघर्षरत लोग एकजुट हो जाते हैं। लेकिन  जब फ़ासिज़्म की ओर तेज़ी से बढ़ रही सरकार निरंतर जन-विरोधी कार्यों में संलग्न है विभिन्न वामपंथी गुट ऊपरी एकता की बातें एक ओर करते तो हैं लेकिन भीतरी तौर पर अपने ही लोगों को काटने में मशगूल भी हैं। इस संबंध में लखनऊ नगर के एक विद्वान का कहना है कि ऊपर के वामपंथी नेता भीतर-भीतर मोदी सरकार को ही मजबूत करने में लगे हैं उनको जनवाद और जनता से उतना ही सरोकार है जितना प्रदर्शनों में भीड़ जुटाने की ज़रूरत है। केवल और केवल आर्थिक लड़ाई द्वारा साम्यवाद नहीं स्थापित किया जा सकता है जब तक कि जनता के सामाजिक सरोकारों को न समझा जाये और सामाजिक -विषमता को दूर करने का प्रयास न किया जाये। और  जबकि वामपंथी नेतृत्व भी उच्च सामाजिक वर्ग से संबन्धित है यह कैसे संभव है?
------(विजय राजबली माथुर )
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Thursday 18 June 2015

हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी आने वाली पीढ़ि‍याँ --- -- कविता कृष्‍णपल्‍लवी

कला-संस्‍कृति और विचार की दुनिया पर बर्बरों का हमला

-- कविता कृष्‍णपल्‍लवी

नरेन्‍द्र मोदी की सरकार जिस धुँआधार रफ्तार से नवउदारवादी आर्थिक नीतियों का पाटा चला रही है, जिस संगठित ढंग से संघ परिवार के अनुषंगी संगठन, गुण्‍डा वाहिनियाँ और संत-महंत-नेता आदि साम्‍प्रदायिक ध्रुवीकरण और दंगों का कुचक्र रच रहे हैं, उतने ही योजनाबद्ध और ख़तरनाक तरीके से शिक्षा, संस्‍कृति, मीडिया और अकादमि‍क दुनिया के भगवाकरण की मुहिम भी लगातार जारी है। कला-संस्‍कृति की शासकीय-अर्द्धशासकीय स्‍वायत्‍त संस्‍थाओं और शिक्षा परिसरों का रहा-सहा जनवादी स्‍पेस छीज-सिकुड़कर नष्‍ट होता जा रहा है।
भाजपा शासित राज्‍यों के विश्‍वविद्यालयों में तमाम चम्‍पू कुलपति बिठाने के बाद केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में भाजपा के लोगों को बैठाने की कोशिशें लगातार जारी हैं। आई.आई.टी., आई.सी.एच.आर., आई.सी.सी.आर. आदि के भगवाकरण के बाद अब एन.सी.ई.आर.टी. और एन.बी.टी. को भी कब्जियाने की साजिशें चल रही हैं। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय में संघी चम्‍पू कुलपति कुठियाला के खिलाफ वहाँ के छात्रों का आन्‍दोलन लगातार जारी है। अब पत्रकारिता के अन्‍य अग्रणी संस्‍थान आई.आई.एम.सी. की तबाही की संघी योजना भी तैयार हो जाने की ख़बरें सुनने में आ रही हैं।
संघी फासिस्‍टों का ताज़ा हमला अन्‍तरराष्‍ट्रीय प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त भारतीय फिल्‍म और टेलीविजन संस्‍थान, पुणे (एफ.टी.आई.आई.) पर हुआ है। महाभारत में युधिष्ठिर की भूमि‍का निभाने के बाद हिन्‍दी की कई सी-ग्रेड और सॉफ्ट-पोर्न फिल्‍मों में भू‍मि‍का निभाने वाले तथा टी.वी. चैनल पर हनुमान जी का रक्षा-कवच-यंत्र बेचने वाले गजेन्‍द्र चौहान को संस्‍थान का नया चेयरमैन बनाया गया है। यह व्‍यक्ति गत 20 वर्षों से भाजपा कार्यकर्ता है और लोकसभा और हरियाणा विधान सभा के विगत चुनावों में भाजपा का एक अगुआ प्रचारक था। यही नहीं, संघियों के लिए प्रचार फिल्‍में बनाने वाले अनघ घइसास और शैलेश गुप्‍ता को एफ.टी.आई.आई. की गवर्निंग कौंसिल का सदस्‍य भी बनाया गया है। स्‍मरणीय है कि सेंसर बोर्ड, बाल चित्र विकास निगम आदि संस्‍थाओं को पहले ही संघ के विश्‍वसनीय लोगों के हवाले किया जा चुका है।
संस्‍कृति और कला की दुनिया के फासिस्‍टीकरण-मुहिम के इस नये कदम का देश भर के सेक्‍युलर, जनवादी कलाकर्मी और सिनेकर्मी पुरजोर विरोध कर रहे हैं। एफ.टी.आई.आई. के छात्र इन नयी नियुक्तियों के विरुद्ध आन्‍दोलन चला रहे हैं।
हिन्‍दुत्‍ववादी फासिस्‍टों की इस कार्रवाई को अप्रत्‍याशित कत्‍तई नहीं माना जा सकता। सभी फासिस्‍ट जितनी बर्बरता से धार्मि‍क-नस्‍ली अल्‍पसंख्‍यकों, मज़दूरों और स्त्रियों को अपना निशाना बनाते हैं, उतनी ही सक्रिय घृणा के साथ वे विज्ञान, इतिहास-बोध, कला और संस्‍कृति की दुनिया पर भी हमला बोलते हैं। सामाजिक ताने-बाने में और जनमानस में जनवाद और तर्कणा की ज़मीन को नष्‍ट करने के लिए हर तरह के फासिस्‍ट ऐसा करते हैं। इतिहास के उदाहरण और सबक हमारे सामने हैं। यदि संस्‍कृति, कला-साहित्‍य और अकादमि‍क क्षेत्र के सभी प्रबुद्ध, सेक्‍युलर, जनवादी, प्रगतिशील लोग अभी से एकजुट होकर विचार और संस्‍कृति की दुनिया पर फासिस्‍ट बर्बरों के इन हमलों को पुरज़ोर प्रतिरोध नहीं शुरू करेंगे, तो कल बहुत देर हो चुकी रहेगी। हमारी गै़रज़ि‍म्‍मेदारी, कायरता और लापरवाही के लिए इतिहास हमें कभी माफ़ नहीं करेगा। आने वाली पीढ़ि‍याँ हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी।
https://www.facebook.com/notes/kavita-krishnapallavi/
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(अहम अथवा स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध करने के फेर में यदि वास्तविकता पर ध्यान न दिया गया तो  कविता कृष्‍णपल्‍लवी जी का सही  आंकलन घटित हुये बगैर नहीं रह सकता । 
--- विजय राजबली माथुर )
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Thursday 11 June 2015

कामरेड सूरज लाल का स्मरण क्यों?



(भाकपा उत्तर-प्रदेश के  सह-सचिव कामरेड अरविंद राज स्वरूप स्मृति सभा का प्रारम्भ करते हुये )

आज दिनांक 05 जून.2015 को 22 क़ैसर बाग , लखनऊ स्थित भाकपा कार्यालय में दिवंगत कामरेड सूरज लाल जी की स्मृति में एक भावभीनी श्रद्धांजली सभा सम्पन्न हुई। प्रदेश सह-सचिव कामरेड अरविंद राज स्वरूप ने उनके साथ UPTUC में किए गए उनके कार्यों का स्मरण किया और उनके पुत्र दिनेश जी को प्रदेश पार्टी की ओर से आश्वस्त किया कि सम्पूर्ण कम्युनिस्ट परिवार उनके साथ है। IPTA के राकेश जी ने उनके द्वारा निस्वार्थ भाव से दिये गए योगदान को स्मरण करते हुये बताया कि 1978 के लगभग IPTA के रिहर्सल कार्यक्रम में सूरज लाल जी ने भाग ले रहे कलाकारों को चाय पिलवाने का कार्य गुप्त रूप से किया था जिसका खुलासा तब हुआ जब चाय वाले को भुगतान करना चाहा तब उसने बताया कि सूरज लाल जी सारा भुगतान कर चुके हैं। इसी प्रकार उस समय के जिलामंत्री और होल टाईमर (जो प्रदेश सचिव होते हुये अब राष्ट्रीय नेता हो गए हैं ) कामरेड अशोक मिश्रा जी को सूरज लाल जी ने अपने नाम से सरकारी मकान एलाट करा कर दिया था जिसके आधार पर अशोक जी लखनऊ में सुगमता से सेटिल हो सके। कामरेड फूलचंद यादव जी ने उनके सिद्धांतनिष्ठ व दृढ़ विचारों के अनेक उदाहरण दिये।कामरेड मधुकर मौर्या ने सूरज लाल जी की 'निष्पक्षता' को रेखांकित किया और इस संदर्भ में उनके द्वारा की गई एक बैठक की उनकी अध्यक्षता का उदाहरण प्रस्तुत किया। कामरेड ख़ालिक़ ने उनके साथ अंतरंग आत्मीयता का मार्मिक वर्णन किया जबकि विजय माथुर ने सूरज लाल जी के सौहार्दपूर्ण व मधुर सम्बन्धों का ज़िक्र किया। अन्य प्रमुख वक्ताओं में सर्व कामरेड ओ पी अवस्थी,पी एन दिवेदी,अकरम,एन्नुद्दीन,ओ पी सिंह,डॉ संजीव सक्सेना,कान्ति मिश्रा जी,कल्पना पांडे जी आदि थे।


https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/890071551054822?pnref=story 


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पहली मई 1944 को जन्मे सूरज लाल जी का निधन 29 मई 2015 को हो गया था उनकी स्मृति में भाकपा कार्यालय पर एक स्मृति सभा विगत 05 जून 2015 को आयोजित की गई थी। संचालन करते हुये जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने उनका संक्षिप्त परिचय देते हुये उनके साथ मिल कर किए गए संघर्षों और उनमें उनकी निष्ठा व लगन का वृहद वर्णन किया था। कामरेड अरविंद राज जी ने उनके सुपुत्र दिनेश जी को इंगित करते हुये यह भी कहा था कि जब कोई महत्वपूर्ण कामरेड संसार छोड़ जाता है तब उसके परिवार से पार्टी का रिश्ता टूट जाता है ऐसा नहीं होना चाहिए और उनकी अपेक्षा थी कि दिनेश जी अपने पिता के संघर्षों की पार्टी से जुड़ें। दिनेश जी ने सकारात्मक रुझान का संकेत भी दिया। 

सूरज लाल जी बिजली कर्मचारी संघ के कोषाध्यक्ष रहे थे उन्होने वरिष्ठ नेता कामरेड हरीश तिवारी जी की स्मृति में एक विस्तृत लेख लिखा था जिसका अंतिम भाग फोटो स्कैन के रूप में प्रस्तुत है। इससे हमें उनकी लेखन क्षमता व तथ्यों के गहन अध्यन करने की प्रवृति का पता चलता है वह मार्क्सवाद के अच्छे ज्ञाता थे।  मार्क्सवाद के साहित्य की दो दर्जन से अधिक पुस्तकें भावी पीढ़ी के ज्ञानार्जन के लिए उन्होने ज़िला कार्यालय को भेंट कर दी थीं। सूरज लाल जी जैसे ज्ञानवान व संघर्षशील कामरेड्स का आज नितांत आभाव है। जहां एक ओर कुछ स्थापित वरिष्ठ कामरेड नए लोगों को आगे बढ़ना तो दूर पनपने भी नहीं देना चाहते और अपना व अपने परिवार का पार्टी व जन-संगठनों में दबदबा कायम रखने में ही मशगूल हैं वहीं दूसरी ओर सूरज लाल जी जैसे सहयोगी व नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने व उठाने में संलग्न  कामरेड का चला जाना पार्टी के लिए एक अपूर्णीय क्षति है। 
(--- विजय राजबली माथुर )
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