Wednesday, 31 December 2014

दक्षिण में मोदी के कदमों को थामा जा सके ?---~विजय राजबली माथुर



राज्यसभा में 'रेखा' और 'सचिन तेंदुलकर' ये दो ऐसे  सदस्य हैं जिनको मनमोहन सरकार ने अप्रैल 2012 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी से मनोनीत करवाया था। मोदी ने सफाई नवरत्नों में तेंदुलकर को शामिल किया था अब 'पेटा' के जरिये रेखा को अपने साथ नामित करवाया है ये सारी कोशिशें इन दोनों सांसदों का दिल जीत कर अपनी सरकार के समर्थन में खड़ा करने के लिए हैं। तेंदुलकर को ज़मीन का भी लाभ दिलाने की कोशिश इसी योजना का ही हिस्सा है। 




 सिर्फ सिन्धी होने के कारण ही आडवाणी ने हिरानी की फिल्म का समर्थन नहीं किया है बल्कि आमिर खान और मोदी की घनिष्ठता के कारण भी यह समर्थन आया है। फासिज़्म को मजबूत करने के लिए विपक्ष को समाप्त करना है उस दिशा में दो गुट बनाए गए हैं । एक गुट एक बात उठाता है दूसरा गुट उसका विरोध करता है। हिंदूमहासभा के बेनर पर गोडसे की मूर्ती लगाने की तैयारी और भाजपा के बेनर पर उसका विरोध। साधारण जनता व फासिस्ट विरोधी दलों को इस साजिश को समझते हुये ही अपनी नीतियाँ बनानी व अमल करना चाहिए। आमिर खान द्वारा मोदी के समर्थन से फिल्म बना कर जो विवाद उत्पन्न किया गया है उसका पूरा-पूरा लाभ केंद्र की फासिस्ट सरकार को ही मिलेगा। यह ध्यान में रख कर ही कदम उठाने चाहिए। आडवाणी का वक्तव्य आँखें खोलने के लिए काफी होना चाहिए।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=808278565900788&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=1&theater


 मेरे उपरोक्त निष्कर्ष से सहमति व्यक्त करने वाले फिल्म निर्माता व समीक्षक सत्यप्रकाश गुप्ता जी ने खुद एक तथ्यात्मक सत्य - विश्लेषण प्रस्तुत किया है :

 https://www.facebook.com/groups/231887883638484/permalink/365350976958840/

 मोदी की यह सरकार एमर्जेंसी के दौरान गिरफ्तार मधुकर दत्तात्रेय देवरस और इन्दिरा गांधी के मध्य हुये गुप्त समझौते की ही परिणति है जिसके तहत RSS ने 1980 व 1984 के लोकसभा चुनावों में इन्दिरा कांग्रेस का समर्थन करके अपनी घुसपैठ बनाई थी।2011 से चले हज़ारे/केजरीवाल आंदोलन को RSS/मनमोहन सिंह व देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों का पूर्ण समर्थन था और उसी अनुरूप सौ से अधिक कांग्रेसियों ने भाजपा सांसद बन कर मोदी को स्पष्ट बहुमत प्रदान कर दिया। अब राज्यसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं में समर्थन जुटाने की कवायद चल रही है और सफलता मिलते ही वर्तमान संविधान को ध्वस्त करके RSS की अर्द्ध-सैनिक तानाशाही को  संवैधानिक संरक्षण द्वारा स्थापित कर दिया जाएगा। साम्यवादी/वामपंथी विद्वान व नेता गण थोथी नास्तिकता या एथीस्टवाद में फंस कर ढोंग-पाखंड-आडंबर को मजबूत करते जा रहे हैं और अंततः फासिस्टों को सफलता दिलाते जाकर खुद को नष्ट करने की प्रक्रिया पर चल रहे हैं। तामिलनाडु में होने वाले वर्ष 2016 के चुनावों के लिए मोदी द्वारा रेखा को अपने पाले में खींचने का अभियान शुरू हो चुका है जिनका 29 जून 2017 तक का समय राजनीतिक रूप से उज्ज्वल है। क्यों नही तामिलनाडु से भाकपा के राज्यसभा सांसद कामरेड डी राजा साहब रेखा को वामपंथी खेमे में लाने का प्रयास करते ? क्योंकि एथीज़्म में ज्योतिष का कोई महत्व नहीं है भले ही फासिस्ट मोदी सरकार उनका लाभ उठा ले जाये। यदि रेखा को वामपंथी मोर्चे का नेता बना कर तामिलनाडु विधानसभा का चुनाव लड़ा जाये तो वहाँ यह मोर्चा सफलता प्राप्त कर सकता है। यदि फ़ासिज़्म को उखाड़ना है तो अभी से ही जुटना होगा और फ़ासिज़्म की चालों का शिकार बनने से बचना होगा। वामपंथी नेता गण बाजपेयी,केजरीवाल, pk फिल्म का समर्थन करके अपना जनाधार फासिस्टों को क्यों सौंपते जा रहे हैं? यह दुखद एवं सोचनीय विषय है। मनमोहन सिंह के फेर में फंस कर सोनिया कांग्रेस तो रेखा अथवा ममता बनर्जी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ने से वंचित हो गई किन्तु वामपंथ के सामने 2016 के  तामिलनाडु विधानसभा चुनाव रेखा के नेतृत्व में लड़ने के प्रयास तो अभी से किए ही जा सकते हैं जिससे कि दक्षिण में मोदी के कदमों को थामा जा सके।

http://krantiswar.blogspot.in/2014/02/blog-post_11.html
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  ~विजय राजबली माथुर ©
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Friday, 26 December 2014

भाकपा स्थापना दिवस की लखनऊ गोष्ठी --- विजय राजबली माथुर

लखनऊ, 26 दिसंबर 2014 : आज मध्यान्ह भाकपा कार्यालय, 22-क़ैसर बाग परिसर में पार्टी के 90वें स्थापना दिवस पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता  वरिष्ठ किसान नेता कामरेड राम प्रताप त्रिपाठी ने  की व संचालन कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ ने किया। गोंडा से पधारे वरिष्ठ वकील कामरेड सुरेश त्रिपाठी व प्रसिद्ध महिला नेत्री कामरेड आशा मिश्रा भी मंचासीन थीं। 

प्रारम्भ में कामरेड सुरेश त्रिपाठी ने भाकपा की स्थापना से पूर्व की राजनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख करते हुये बताया कि ब्रिटिश साम्राज्य से संघर्ष के दौरान हमारे तब के नेता गण कांग्रेस में रह कर  आंदोलन रत थे तथा मजदूरों  के शोषण के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए 1921 में AITUC का गठन कर चुके थे। 25 दिसंबर 1925 को उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर में समान विचार धारा वाले संघर्षशील नेताओं ने एक सम्मेलन का आयोजन किया और अगले दिन 26 दिसंबर को एक प्रस्ताव पास करके 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' -CPI का गठन किया गया। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन पर कम्युनिस्ट विचार धारा की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। चाहे चंद्रशेखर आज़ाद हों या सरदार भगत सिंह, रामप्रसाद 'बिस्मिल', अशफाक़ उल्ला खाँ, रोशन लाहिरी, बटुकेश्वर दत्त इत्यादि सभी तो कम्युनिस्ट विचार धारा से ओत -प्रोत थे। आज़ादी के बाद भी प्रारम्भिक काल में सरकार ने कम्युनिस्ट आंदोलन से प्रेरित होकर ही निर्णय लिए थे। विनोबा भावे का भू-दान आंदोलन तेलंगाना के कम्युनिस्ट विद्रोह से ही प्रभावित था। भू-सुधार क़ानूनों के निर्माण में भी कम्युनिस्ट छाप सरलता से देखी जा सकती है। 
इप्टा के राकेश जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि कामरेड सुरेश त्रिपाठी जी ने संक्षिप्त रूप से सार गर्भित तथ्यों पर प्रकाश डाला है। उनका ज़ोर था कि हमको गोष्ठियों व सभाओं से निकल कर जनता के मैदान में जाना चाहिए और जन-हित के मुद्दों पर संघर्ष करना चाहिए। कामरेड आशा मिश्रा ने बीमा ,बैंक आदि के राष्ट्रीयकरण किए जाने में कम्युनिस्टों की भूमिका व समाज सुधार के कानून बनवाने में महिला फेडरेशन के योगदान की चर्चा की। उनका कहना था कि कम्यूनिस्ट आंदोलन में विभाजन होने के कारण कमजोरी आई है जिससे आज सांप्रदायिक शक्तियों को सत्ता मिल गई है। कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ ने स्पष्ट किया कि न तो पहले और न ही अब कम्युनिस्ट आंदोलन कमजोर है बल्कि हमारे नेताओं की 'इच्छा-शक्ति में कमी' के कारण हम पिछड़ गए हैं। उन्होने दृढ़ इच्छा शक्ति अपनाए जाने पर ज़ोर दिया। 

अपने अध्यक्षीय उद्बोद्धन में कामरेड राम प्रताप त्रिपाठी जी ने एक संस्कृत श्लोक का उच्चारण करते हुये कहा कि हमारी तो संस्कृति ही अंतर्राष्ट्रीयतावादी रही है। जब हम ब्रिटिश दासता के विरुद्ध लड़ रहे थे तब हमारे महान नेता गण- ज्योति बसु, नंबुद्रीपाद इत्यादि 'कम्युनिस्ट पार्टी आफ यू के ' के सदस्य थे और उनका अपनी पार्टी के गठन में काफी योगदान रहा है। उन्होने कहा कि हमें आज भी सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए ही संघर्ष करना है। उपस्थित कामरेड्स को गोष्ठी में सम्मिलित होने के लिए धन्यवाद देते हुये उन्होने गोष्ठी समापन की घोषणा की। कामरेड ख़ालिक़ ने अपनी गंभीर बीमारी के बावजूद गोष्ठी में सक्रिय भागीदारी के लिए कामरेड राम प्रताप त्रिपाठी जी का आभार व्यक्त किया।

Saturday, 13 December 2014

छह वाम दलों द्वारा एक संयुक्त मार्च --- विजय राजबली माथुर

छह वाम  दलों-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्स वादी ),आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक,भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले )लिब्रेशन,सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर आफ इंडिया (कम्युनिस्ट),रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी -द्वारा एक संयुक्त मार्च परिवर्तन चौक से गांधी प्रतिमा,जी पी ओ पार्क,हजरतगंज,लखनऊ तक निकाला गया। कार्यकर्ताओं द्वारा FDI नहीं चलेगी,मोदी सरकार मुर्दाबाद,मंहगाई पर रोक लगाओ,महिलाओं पर हो रहे  अत्याचार पर रोक लगाओ आदि गगन भेदी नारे लगाते हुये चल रहे थे।
भाकपा की ओर से इस संयुक्त मार्च में सर्व कामरेड राम प्रताप त्रिपाठी,फूल चंद यादव,मोहम्मद ख़ालिक़,राकेश (इप्टा),महेंद्र रावत,विजय माथुर, सत्य नारायण  आदि सम्मिलित हुये जो एक जुलूस के रूप में पार्टी साथियों के साथ 22- क़ैसर बाग स्थित पार्टी कार्यालय से परिवर्तन चौक पर अन्य वामपंथी दलों के साथ संयुक्त हो गए थे।
प्रदर्शन में उठाई मांगों का एक ज्ञापन प्रशासन को सौंपा गया जो इस प्रकार हैं-