19 - 1 - 2017 |
संयुक्त वाम और यूपी चुनाव:
"एक गंभीर विचार फेस बुक पर देखा कि जो बीजेपी को हराये उसे ही वोट कर दो!
कम्युनिस्ट पार्टियां भी बीजेपी को हराना चाहती हैं पर वो अपनी उपस्थिति भी वैकल्पिक आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक नीतियों के आधार पर विधान सभा में दर्ज़ कराना चाहती हैं।
वो जनता को यह भी बताना चाहती हैं कि क्यों मोदी जी सत्ता में आये।
देश के धनवानों ने देश के जनवाद को अपने हिसाब से ढाल लिया है।"
"फिर पूंछना पड़ रहा है,
'पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?
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'पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?
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इधर कुछ वामपंथी बुद्धिजीवियों ने बहस शुरू की है कि जो बीजेपी को हराये उसे ही वोट कर दो.....
वामपंथ भी बीजेपी को किसी भी सूरत में हारते हुए देखना चाहता हैं पर वो क्या उसको अपनी पूरी ताकत से अपनी उपस्थिति वैकल्पिक आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक नीतियों के आधार पर विधान सभा में दर्ज़ कराने का अधिकार नहीं है ?"
वामपंथ भी बीजेपी को किसी भी सूरत में हारते हुए देखना चाहता हैं पर वो क्या उसको अपनी पूरी ताकत से अपनी उपस्थिति वैकल्पिक आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक नीतियों के आधार पर विधान सभा में दर्ज़ कराने का अधिकार नहीं है ?"
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*21 वर्ष पूर्व 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह का प्रस्ताव था कि, कामरेड ज्योति बसु देश के प्रधानमंत्री बनें जिस पर अन्य दलों की तो सहमति थी परंतु CPM के तत्कालीन महासचिव कामरेड प्रकाश करात ने ही ऐसा नहीं होने दिया जिसे कामरेड ज्योति बसु ने 'ऐतिहासिक भूल ' कहा था।
*लोकसभा अध्यक्ष कामरेड सोमनाथ चटर्जी को CPM से निष्कासित करके यू पी ए सरकार से वामपंथ ने समर्थन वापिस ले लिया लेकिन सरकार नहीं गिरी जबकि वामपंथ को नुकसान पहुंचा था।
*1994 में यू पी CPI में विभाजन कर एक गुट सपा में शामिल हो गया था तब भी भाकपा के तत्कालीन महासचिव और बाद में केंद्रीय गृह मंत्री बने कामरेड इंद्रजीत गुप्ता ने 1996 के चुनावों में यू पी में सपा को समर्थन दिया था। कांग्रेस के समर्थन से 13 दिनी बाजपेयी सरकार को गिरा कर जो संयुक्त सरकार बनी थी उसमें कामरेड इंद्रजीत गुप्त के अतिरिक्त कामरेड चतुरानन मिश्रा भी कृषी मंत्री के रूप में शामिल हुये थे।
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19-01-2017 * 2017 के यू पी चुनावों में वामपंथी दलों ने अलग से चुनाव लड़ने का फैसला किया है जैसा कि, अरविंद राज स्वरूप जी एवं प्रदीप शर्मा जी के नोट्स से प्रमाणित भी होता है । केवल 140 सीटों पर चुनाव लड़ कर और 263 सीटों पर चुनाव न लड़ कर वामपंथी जनता को यही संदेश देने जा रहे हैं कि, उनकी दिलचस्पी सरकार बनाने में बिलकुल भी नहीं है और इस प्रकार भाजपा विरोधी वोट बांटने से चूंकि भाजपा को ही लाभ होगा : जनता के समक्ष यही संदेश स्पष्ट है ;अतः जनता का समर्थन वामपंथ को नहीं मिलने जा रहा है । यदि अन्य जंतांत्रिक दलों के साथ मिल कर कामरेड इंद्रजीत गुप्त के फार्मूले पर मोर्चा बनाया जाता तब वामपंथ को जनता की सहानुभूति भी मिलती और कुछ विधायक भी चुन कर आ जाते। *कहने को तो यह छह वामपंथी दलों का गठबंधन है लेकिन लखनऊ के बख्शी का तालाब विधासभा क्षेत्र से CPM प्रत्याशी स्थानीय CPI कार्यकर्ताओं के विरुद्ध विष - वमन कर रहे हैं जिसकी शिकायत उन लोगों ने बाकायदा पार्टी मीटिंग में दर्ज कराई है। लखनऊ उत्तर से एक पुराने CPI कार्यकर्ता कामरेड आनंद रमन तिवारी ने चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की थी किन्तु उनको स्थानीय मंत्री से गुप्त समझौता होने के कारण चुनाव नहीं लड़ाया जा रहा है। इन परिस्थितियों में यह कहना कि, वामपंथ की उपस्थिती दर्ज कराने के लिए चुनाव लड़ा जा रहा है सरासर झूठ है। *2012 और 2014 के विधानसभा चुनावों में SC व OBC कामरेड्स को प्रत्याशी तो बनाया गया था किन्तु प्रादेशिक नेताओं का सहयोग व समर्थन नहीं मिला था। इस बार लखनऊ पश्चिम से एक मुस्लिम कामरेड को प्रत्याशी बनाया गया है उनका चुनाव परिणाम ही बताएगा कि, वरिष्ठ नेताओं के द्वारा उनको कितना सहयोग दिया गया। * यदि वामपंथ के सहयोग के बगैर ही सांप्रदायिक शक्तियों को परास्त कर दिया गया तो वामपंथ की प्रासांगकिकता को ज़बरदस्त आघात इन चुनावों के जरिये पहुंचेगा। लेकिन यदि सांप्रदायिकता विरोधी वोटों के बांटने से सांप्रदायिक शक्तियों को यू पी की सत्ता मिल जाती है तो उसमें वामपंथ का भी सहयोग समझा जाएगा। इस दृष्टि से यह चुनाव वामपंथ की लोकतान्त्रिक प्रतिबद्धता के लिए भी चुनौती साबित होंगे क्योंकि तब सांप्रदायिक शक्तियों के निर्मूलन के लिए 'हिंसा ' व 'बल प्रयोग ' ही एकमात्र विकल्प बचेगा । यू पी चुनाव में सांप्रदायिक शक्तियों की जीत होने पर संविधान व लोकतन्त्र के नष्ट होने का मार्ग ही प्रशस्त होगा।उस सूरत में वामपंथ(एथीज़्म ) - पोंगापंथ के COMPLEMETARY & SUPPLEMENTARY के रूप में जनता के सामने होगा। उत्तर प्रदेश की जागरूक जनता वामपंथ को दरकिनार करके लोकतन्त्र की रक्षा करेगी ऐसी संभावना प्रबल है। अतः जिस तरीके से वामपंथ चुनाव लड़ रहा है वह वामपंथ को ही नष्ट करने का आत्मघाती प्रयास बन सकता है। ************************************************** फेसबुक कमेंट्स : 23-01-2017 24-01-2017 सीपीएम की अदूरदर्शिता, छोटी सोच और बडी गलतियां करने की आदतों का परिणाम Roshan Suchan |