क्रान्तियों की कार्बन कॉपी या नकल नहीं होती। आज दुनिया की परिस्थितियाँ बहुत बदल चुकी हैं। आज के युग की क्रांतियाँ चीन की नवजनवादी क्रांति जैसी या हूबहू अक्टूबर क्रान्ति जैसी नहीं हो सकतीं। आज केवल देशी पूँजीवाद के विरुद्ध नहीं बल्कि साम्राज्यवाद और पूँजीवाद विरोधी क्रांतियां होंगी। पूँजीवाद आर्थिक रूप से संकटग्रस्त है लेकिन इसकी राज्यसत्ता तथा इसके सामाजिक अवलम्ब आज पहले से कहीं ज्यादा मज़बूत और गहरे जड़ जमाये हुए हैं। इक्कीसवीं सदी की नयी समाजवादी क्रांतियों को अंजाम देने के लिए आज मुक्त चिंतन और कठमुल्लावाद से बचते हुए मार्क्सवाद को रचनात्मक ढंग से अपने देश की परिस्थितियों में लागू करना होगा।
Meenakshy Dehlvi shared October Revolution Centenary Committee's post
24-07-2017
लखनऊ, 23 जुलाई। आज पूँजीवाद और साम्राज्यवाद पूरे विश्व में आक्रामक हैं लेकिन जगह-जगह इनके प्रतिरोध के आन्दोलन ज़ोर पकड़ रहे हैं जिन्हें सही दिशा की तलाश है। आने वाला समय पूँजीवाद-साम्राज्यवाद विरोधी नयी समाजवादी क्रान्तियों का होगा। मार्क्सवादी चिन्तक और ऐक्टिविस्ट शशि प्रकाश ने आज यहाँ 'समाजवाद की समस्याएँ: बीसवीं शताब्दी की क्रान्तियों के अनुभव' विषय पर अपने व्याख्यान में ये बाते कहीं।
'अक्टूबर क्रान्ति शतवार्षिकी समिति' और 'अरविन्द स्मृति न्यास' की ओर से जयशंकर प्रसाद सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता गिरि विकास अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रो. सुरिन्दर कुमार को करनी थी लेकिन अचानक अस्वस्थ हो जाने के कारण वे आज आ नहीं सके। व्याख्यान के बाद इस विषय के विभिन्न पहलुओं पर सवाल-जवाब का भी दौर चला।
शशि प्रकाश ने कहा कि 1917 में हुई अक्टूबर क्रान्ति ने बीसवीं सदी को एक नयी शक्ल दी। पूरी दुनिया में शोषण और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष को इसने प्रेरणा और दिशा दी। भारत में 1917 से 1930 के बीच हिन्दी और अन्य भाषाओं की पत्रिकाओं में लेनिन और सोवियत क्रान्ति, सोवियत संघ में स्त्रियों की स्थिति, कृषि के सामूहिकीकरण, पंचवर्षीय योजनाओं आदि के बारे में सैकड़ों लेख, कविताएँ आदि छपे। भगत सिंह और उनके साथियों ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम रखते हुए मार्क्सवादी सिद्धान्तों पर सर्वहारा वर्ग की पार्टी बनाने की घोषणा की।
उन्होंने कहा कि अक्टूबर क्रान्ति के बाद पहली बार ऐसी राजसत्ता कायम हुई जिसमें निजी स्वामित्व की व्यवस्था पर चोट की। उत्पादन के साधनों का समाजीकरण किया गया और कुछ ही वर्षों में करोड़ों लोगों के जीवनस्तर को कई गुना ऊपर उठाया गया। 1918 की विवाह और परिवार संहिता में पहली बार स्त्रियों को बराबर के अधिकार दिए गए। जीवन के हर क्षेत्र में उन्हें न केवल काम करने का अधिकार दिया गया बल्कि चूल्हे चौखट से उन्हें मुक्त करने के लिए सामूहिक भोजनालयों से लेकर बड़े स्तर पर शिशु शालाओं का निर्माण भी किया गया। वेश्यावृति, नशाखोरी, बेरोज़गारी, भीख आदि क्रान्ति के कुछ वर्षों बाद समाज से समाप्त हो गये। अक्टूबर क्रान्ति केवल 500 वर्ष के पूँजीवाद के विरुद्ध क्रान्ति नहीं थी, वह 5000 वर्षों के पूरे वर्ग समाज के विरुद्ध एक सतत क्रान्ति की शुरआत का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी।
समाजवाद की समस्याओं की चर्चा करते हुए शशि प्रकाश ने कहा कि हर मौलिक क्रान्ति की तरह इस पहली समाजवादी क्रान्ति की भी कुछ समस्याएँ थीं। क्रान्ति के बाद निजी मालिकाने का काफी हद खात्मा तो हो गया लेकिन समाज में मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम के बीच, कृषि और उद्योग के बीच, शहर और गाँव के बीच के अन्तर जैसी असमानताएँ बनी हुई थीं। मूल्य का नियम और मज़दूरी की व्यवस्था बने हुए थे। लोगों की सोच, संस्कार और आदतों में पूँजीवादी मूल्य-मान्यताएँ रातों-रात नहीं खत्म होते। निश्चय ही मार्क्सवाद के सिद्धान्तों पर अमल में व्यावहारिक ग़लतियाँ भी हुईं। पूँजीवाद की पुनर्स्थापना का प्रयास करने वाले तत्वों को इस ज़मीन पर अपनी ताक़त बढ़ाने का अवसर मिला और 1956 में सोवियत संघ में समाजवाद के लेबल के तहत पूँजीवाद की बहाली हो गयी तथा 1989 में लेबल भी हटाकर खुला पूँजीवाद आ गया।
उन्होंने कहा कि चीन में 1949 में होने वाली नवजनवादी क्रान्ति के बाद वहाँ इन समस्याओं पर लम्बा वाद-विवाद चला और 1966-67 में शुरू हुई सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के द्वारा पूँजीवाद की वापसी रोकने का एक रास्ता प्रस्तुत किया गया। इसमें कहा गया कि समाजवादी व्यवस्था कायम होने के बाद ऊपरी संरचना में सतत क्रान्ति जारी रखनी होगी और एक नया मानव बनाने का काम सर्वोपरि हो जायेगा। हालाँकि उस समय चीन में भी वर्ग शक्ति संतुलन पूँजीवादी पथगामियों के पक्ष में झुक गया था और 1976 के बाद से वहाँ भी बाजार समाजवाद के नाम पर पूँजीवाद की पुनर्स्थापना की शुरुआत हो चुकी थी।
आज के समय की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि क्रान्तियों की कार्बन कॉपी या नकल नहीं होती। आज दुनिया की परिस्थितियाँ बहुत बदल चुकी हैं। आज के युग की क्रांतियाँ चीन की नवजनवादी क्रांति जैसी या हूबहू अक्टूबर क्रान्ति जैसी नहीं हो सकतीं। आज केवल देशी पूँजीवाद के विरुद्ध नहीं बल्कि साम्राज्यवाद और पूँजीवाद विरोधी क्रांतियां होंगी। पूँजीवाद आर्थिक रूप से संकटग्रस्त है लेकिन इसकी राज्यसत्ता तथा इसके सामाजिक अवलम्ब आज पहले से कहीं ज्यादा मज़बूत और गहरे जड़ जमाये हुए हैं। इक्कीसवीं सदी की नयी समाजवादी क्रांतियों को अंजाम देने के लिए आज मुक्त चिंतन और कठमुल्लावाद से बचते हुए मार्क्सवाद को रचनात्मक ढंग से अपने देश की परिस्थितियों में लागू करना होगा।
कार्यक्रम में शहर के अनेक गणमान्य लेखक, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता शोधार्थी और छात्र-युवा उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन सत्यम ने किया।
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