Saturday, 20 August 2022

'बिहार इप्टा के पहले 14 साल' ------ डाॅ० ए० के० सेन

 




1946 में बिनय राय के नेतृत्व में इप्टा का केन्द्रीय जत्था पटना आया था, जिसने पटना मेडिकल काॅलेज में ‘अमर भारत’ नामक बैले प्रस्तुत किया था। इस प्रस्तुति में रविशंकर, शांतिवर्द्धन, दशरथलाल जैसे कलाकारों ने भाग लिया था। यह बंगाल के अकाल की राहत के लिए चंदा एकत्र करने के दौरान अखिल भारतीय स्तर पर गठित इप्टा की स्थापना के एक साल के बाद की बात है।

1947 में ‘बिहार इप्टा’ की स्थापना हुई, जिसके महासचिव दशरथ लाल थे और जिसने स्वतंत्रता-संग्राम के आधार पर अपनी पहली प्रस्तुति की थी।

1948 के बाद, लगभग 4-5 साल तक इप्टा सरकारी तौर पर एक ‘विध्वंसक’ संगठन बना रहा, फिर भी इसकी सक्रियता बनी हुई थी और 1952 के बाद तो यह विशेष रूप से लोकप्रिय होने लगा।

1954 में महान मराठी गायक जनगायक अमर शेख आमंत्रित किये गये। अमर शेख ने पटना और आस-पास के शहरों में जोशिले गीतों से एक समाँ बांध दिया और इप्टा को नयी गरिमा प्रदान की।

इसी साल चंद्रा हाउस, कदमकुँआ (पटना) में बिहार इप्टा का पहला राज्य सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में बिहार के कई हिस्सों से इप्टा की 12 शाखाओं ने भाग लिया और अपनी प्रस्तुतियाँ कीं। इसी सम्मेलन में डाॅ० एस० एम० घोषाल अध्यक्ष चुने गये और सिस्टर पुष्पा महासचिव बनीं।

1955 में बिहार इप्टा ने भोजपुरी में एक बैले प्रस्तुत किया-‘सभ्यता का विकास’। यह सांस्कृतिक क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने राजधानी में हलचल मचा दी। इस बैले में प्रमुख भूमिकाओं में विश्वबंधु, कुमुद छुगानी और अरूण पालित थें; श्याम सागर और कुमुद अखौरी मुख्य गायक थे और सतीश्वर सहाय तथा उमा शंकर वर्मा ने मिलकर इसका आलेख तैयार किया था। सबने इस प्रस्तुति को सफल बनाने के लिए महीनों कड़ी मेहनत की थी।

1955 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर ‘राजभवन’ में राज्यस्तर  पर एक बैले-प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसमें इप्टा को भी आमंत्रित किया। हमलोगों ने ‘सभ्यता का विकास’ प्रस्तुत किया और प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया।

बिहार इप्टा का दूसरा सम्मेलन 1956 में कलामंच (पटना) में हुआ। इस सम्मेलन में पहली बार असम, आगरा, कलकत्ता, मणिपुर, पंजाब और राजस्थान के कलाकारों ने भी काफी संख्या में भाग लिया। इसी साल गौतम बुद्ध की 2500 की जयंती के उपलक्ष्य में कलकत्ता के प्रसिद्ध नृत्य निर्देशक शंभू भट्टाचार्य के निर्देशन में ‘बोधिलाभ’ नामक एक बैले तैयार किया गया, जिसमें विश्वबंधु और अर्चना मजूमदार प्रमुख भूमिकाओं में थें।

1957 में 1857 की क्रांति की शतवार्षिक मनाई गयी। इस एतिहासिक अवसर पर पटना इप्टा ने विशेष रूप से काफी शोध के बाद एक पूर्णकालिक नाटक ‘पीर अली’ प्रस्तुत किया।

नाट्यालेख लक्ष्मी नारायण ने तैयार किया था और निर्देशन किया था-डाॅ० एस० एम० घोषाल ने। रामेश्वर सिंह कश्यप सह निर्देषक थें और आर० एस० चोपड़ा ने केन्द्रीय भूमिका अभिनीत की थी। पटना में इस नाटक के नौ प्रदर्शन किये गये, जिन्हें हजारों दर्शकों ने देखा। इसके उक्त प्रदर्शन में तत्कालीन राज्यपाल डाॅ० जाकिर हुसैन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थें।

1958 में इप्टा को बिहार सरकार दिल्ली में आयोजित ‘अखिल भारतीय नाट्य प्रतियोगिता’ में बिहार की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति के रूप में ‘पीर अली’ का प्रदर्शन करने का आमंत्रण मिला। इप्टा ने यह आमंत्रण स्वीकार किया और ‘पीर अली’ को दिल्ली में ‘द्वितीय सर्वश्रेष्ठ नाट्य प्रस्तुति’ का पुरस्कार मिला। विद्वान निर्णायकों का तो यही कहना था कि यदि ‘इप्टा’ का नाम बदल दिया जाता, तो ‘पीर अली’ को निश्चित रूप से पहला पुरस्कार मिलता।

सन् 1961 में बिहार इप्टा के कलाकारों ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर-जयंती समारोह में बड़े उत्साह के साथ भाग लिया और ‘रक्तकरबी’ का हिन्दी अनुवाद ‘लाल कनेर’ मंचित किया। इस प्रस्तुति में रामेश्वर सिंह कश्यप और अर्चना मजुमदार प्रमुख भूमिकाओं में थें। ‘लाल कनेर’ का प्रदर्शन कलकत्ता और बनारस में भी विशाल दर्शक समुदाय के बीच सफलतापूर्वक किया गया।

1947 से 1960 तक बिहार इप्टा की गतिविधियों में स दौरान काम करने वाले - निरंजन सेन, राधे श्याम, टी०एन० शुक्ल, जी०सी० सामंत, ए० के० नंदी, कमल किशोर, गौर गोस्वामी, पेणु दा, आर० सी० हाल्दार, मंटू दा, ब्रज किशोर प्रसाद, कन्हैया और ललित किशोर सिन्हा अदि महत्वपूर्ण व्यक्तियों के प्रयास से ही संभव हुई। 

(बिहार इप्टा के 8वें राज्य सम्मेलन, सासाराम 1984 की स्मारिका से साभार)

          द्वारा  ------ Firoz Ashraf Khan














 








 






 




  



No comments:

Post a Comment