Friday, 28 February 2014

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और मीडिया की भूमिका?--- डॉ.गिरीश

 
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और मीडिया की भूमिका?
आखिर एक लम्बी जद्दोजहद के बाद ओएनजीसी(विदेश)के प्रमुख श्री सर्राफ को ओएनजीसी के सीएमडी पद पर नियुक्ति मिल ही गयी. कई माह पूर्व चयनबोर्ड ने इस महत्त्वपूर्ण पद पर उनकी नियुक्ति की सिफारिश की थी. लेकिन पेट्रोलियम मंत्री श्री वीरप्पा मोइली ने सारे कायदे कानूनों को ताक पर रख कर आज सेवा निवृत्त होने जारहे श्री वासुदेव को एक साल के लिये सेवा विस्तार देने की संस्तुति की थी. इससे ओएनजीसी का हित चाहने वालों में खलबली मच गयी थी, क्योंकि इस कार्यवाही में स्पष्टतः भ्रष्टाचार की गंध आरही थी. ठीक उसी तरह जैसे कि के.जी.बेसिन से निकाली जाने वाली गैस की कीमतों को ४.८ प्रति यूनिट से बड़ा कर ८.४ डालर प्रति यूनिट कर वीरप्पा ने रिलाइंस समूह के मुखिया श्री मुकेश अम्बानी को और भी मालामाल करने का रास्ता साफ कर दिया.
ओएनजीसी सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण उद्योग है जिसकी गिनती नवरत्न उद्योगों में होती है. यदि इसके मुखिया की नियुक्ति भ्रष्ट तौर तरीकों से हो तो इसमें भारी भ्रष्टाचार की भारी सम्भावनायें पैदा हो जाती हैं. चूंकि गत माह भारी उद्योग मंत्री श्री प्रफुल्ल पटेल भेल के प्रमुख को सेवा विस्तार दिलाने में कामयाब हो गये थे, अतएव सार्वजनिक क्षेत्र के शुभ चिंतकों में यही कहानी ओएनजीसी में दोहराए जाने को लेकर काफी चिंता व्याप्त थी. लेकिन इन दोनों ही मामलों पर मुख्य विपक्षी दल भाजपा समेत सारी पार्टियाँ चुप्पी सादे रहीं. यहाँ तक कि ‘आप’ भी खामोश बनी रही.
मामले को गंभीरता से लेते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इसे न केवल उजागर किया अपितु इसे एक प्रमुख मुद्दा बनाया. भाकपा सांसद का. गुरुदास दासगुप्त ने मामलों को संसद में तो उठाया ही एक के बाद एक कई पत्र लिख कर प्रधानमन्त्री से हस्तक्षेप की मांग की. गैस घोटाले पर उन्होंने एक पुस्तिका भी प्रकाशित की और सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिस पर ४ मार्च को सुनवाई होनी है. इन पंक्तियों के लेखक ने भी पेट्रोलियम मंत्रालय के इन घपलों की प्रभावी जांच की मांग की. लेकिन भाकपा के इन प्रयासों को कुछ समाचार पत्रों एवं न्यूज चेनल्स ने ही महत्त्व दिया. उन्हें बधाई. लेकिन शेष मीडिया ख़ामोशी अख्तियार किये रहा. लेकिन जब श्री केजरीवाल ने अपनी सरकार को शहीद करने के पहले कुछ मुद्दे खड़े करना जरूरी समझा तो उन्होंने के.जी. गैस मामले को लेकर एंटी करप्शन ब्यूरो में एफ़ाइअर दर्ज करा दी. सभी जानते हैं कि एसीबी इस मामले की जाँच करने का अधिकारी नहीं था. लेकिन सारा मीडिया उन्हें हीरो बनाने में जुट गया. मगर कई ने कहा कि यह मुद्दे तो भाकपा नेता ने उठाये थे.
अब जब कि भारी शोर शराबे के चलते और सीवीसी द्वारा वासुदेव को सेवा विस्तार देने की संस्तुति न करने पर सरकार को श्री सर्राफ को नियुक्तिपत्र देना पड़ा तो मीडिया के कुछ हिस्से इन मुद्दों को भाकपा के हाथ से छीनने में जुट गये. भाजपा के एक अंध समर्थक अख़बार ने लिखा कि इस मामले को वामपंथी दलों और भाजपा ने उठाया था जबकि भाजपा के किसी नेता ने मामले पर आज तक मुहं नहीं खोला. कुछ ही दिनों से लखनऊ और आगरा से प्रकाशित हो रहे एक टटपूंजिया अख़बार के सम्पादकीय प्रष्ट पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि गैस घोटाला केजरीवाल ने खोला. इस लेख के विद्वान् लेखक भूल गये या उन्होंने जानबूझ कर यह छिपाया कि इस मामले पर भाकपा पिछले ९ माह से अनवरत लड़ाई लड़ रही थी. सम्पादक महोदय ने भी निष्पक्षता जताने का कोई प्रयास नहीं किया. अब मीडिया ही इस स्थिति पर चर्चा करे तो अच्छा है कि वह कितना निष्पक्ष है. डॉ.गिरीश

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Saturday, 22 February 2014

केजरीवाल और उनकी मंडली पूंजीवाद के पक्ष में खड़ी है और उन्हीं की पैरोकार है---डॉ० गिरीश

भाकपा के राज्य सचिव डॉ० गिरीश




गरीब जनता की समस्यायों को लेकर भाकपा ने दिया विशाल धरना

मुसाफिरखाना(अमेठी)- गरीब और आम आदमी की ज्वलंत समस्यायों,  कानून व्यवस्था की बिगडी हालात और भाकपा नेता का० शारदा पाण्डेय के विरुध्द कोतवाली मुसाफिरखाना में दलालों के दबाब में दर्ज किये गये फर्जी मुकदमे के विरुध्द भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय खेत मजदूर यूनियन, अ० भा० किसान सभा, अ० भा० नौजवान सभा एवं आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के लगभग २५० कार्यकर्ताओं ने मुसाफिरखाना तहसील के प्रांगण में धरना दिया एवं एक आमसभा की.

सभा के मुख्यवक्ता भाकपा के राज्य सचिव डॉ० गिरीश थे. सभा को सम्बोधित करते हुये डॉ० गिरीश ने कहाकि आज केंद्र की सरकार द्वारा चलाई जारही नीतियों से जनता को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. केंद्र सरकार आये दिन डीजल पेट्रोल एवं रसोई गैस के दाम बढ़ाती रहती है. इस कारण और सरकार के दूसरे कदमों के कारण महंगाई आसमान छू रही है. आम जनता का जीवन दूभर होगया है. इस सरकार  के नौ वर्ष के शासनकाल में घपलों-घोटालों और भ्रष्टाचार की तो मानो बाढ़ सी आगयी है. बेरोजगारी बढ़ी है और शिक्षा एक व्यापार बन चुकी है,जिसके बेहद महंगा होजाने के कारण आमजन शिक्षा से वंचित रह जारहे हैं. सरकार की जनविरोधी नीतियों और कारगुजारियों के चलते जनता में भारी आक्रोश है जिसका खामियाजा कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनावों में निश्चय ही भुगतना होगा,

जनता के इस गुस्से को भाजपा अपने पक्ष में भुना कर सत्ता पर कब्जा करने की हर कोशिश में जुटी है. उसने देश और दुनियां के पूंजीपतियों, उद्योगपतियों एवं कार्पोरेट घरानों के सबसे चहेते नरेंद्र मोदी को चुनावों से पहले ही प्रधानमन्त्री पद का प्रत्याशी बना दिया है जबकि हमारे यहाँ संसदीय जनतंत्र है जिसमें चुनाव के बाद  सांसदों के बहुमत द्वारा चुना गया व्यक्ति ही प्रधानमन्त्री बनता है. वे मोदी को चाय बेचनेवाले के रूप में प्रचारित कर रहे हैं ताकि गरीबों को बहकाया जासके और इस बात पर पर्दा डाला जासके कि  मोदी की रैलियों और भाजपा के प्रचार अभियान में बहाया जारहा अरबों रुपया आखिर कहां से आरहा है. डॉ० गिरीश ने कहाकि सवाल यह नहीं है कि कोई चाय बेचता रहा है या चावल. सवाल यह है कि उसकी नीतियां चाय बेचने वाले जैसे गरीबों के पक्ष में खड़ी हैं या गरीबों को लूटने वाले धनपतियों के पक्ष में. ये मोदी नामक तत्व तो पूरी तरह धनपतियों का रक्षक है.

डॉ० गिरीश ने कहाकि वैसे भी भाजपा की आर्थिक नीतियों और कांग्रेस की नीतियों में कोई फर्क नहीं हैं. भाजपा नाम की मुर्गी के पेट से भी वही अंडा निकलेगा जो आज कांग्रेस के पेट से बाहर आरहा है. यह पार्टी भी महंगाई, भ्रष्टाचार बढ़ाने एवं सांप्रदायिकता फेलाने के लिये सुविख्यात है. यह जो सत्ता पर कब्जा करने के मंसूबे बांध रही है वो धुल-धूसरित होकर रहेंगे.

डॉ० गिरीश ने कहाकि आम जनता भ्रष्टाचार से बुरी तरह त्रस्त है और उसे पूरी तरह समाप्त करना चाहती है.

वह कांग्रेस, भाजपा एवं दूसरी पूंजीवादी पार्टियों से भी बुरी तरह परेशान है और एक जन हितेषी राजनैतिक विकल्प की तलाश में है. अपनी इसी ख्वाहिश के चलते जनता ने दिल्ली विधानसभा के चुनावों में आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया. लेकिन सरकार बनाने के बाद वे न तो अपने चुनावी वायदे पूरे कर पाये न ही सत्ता में बने रह पाये. अब उद्योगपतियों की बैठक में जाकर उन्होंने यह भी कह  डाला कि न तो वह पूंजीपतियों के खिलाफ हैं न ही निजीकरण के. उन्होंने अपना यह मन्तव्य भी उजागर कर दिया की वह सरकार के द्वारा उद्योग चलाये जाने के पक्ष में नहीं है. यह वही विचार है जिसे कांग्रेस और भाजपा अपनी  विनाशकारी नई आर्थिक नीतियों को जायज ठहराने के लिये प्रकट करती रही हैं. उन्होंने स्पष्ट कियाकि कोई या तो पूँजीवाद का पैरोकार हो सकता है अथवा गरीबों का. कोई पूँजीवाद का समर्थक हो सकता है या समाजवाद का. आज यह स्पष्ट होगया है कि केजरीवाल और उनकी मंडली पूंजीवाद के पक्ष में खड़ी है और उन्हीं की पैरोकार है.

भाकपा राज्य सचिव ने कहाकि आज ऊतर प्रदेश की सरकार भी हर मोर्चे पर विफल होचुकी है. कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है. किसान-कामगार तवाह होरहे हैं. वे आर्थिक बदहाली के चलते आत्महत्यायें कर रहे हैं. मुजफ्फरनगर शामली एवं मेरठ के दंगों सहित १४० दंगे सपा के शासनकाल में होचुके हैं जिन्हें रोकने में सरकार पूरी तरह नाकमयाब रही है. प्रदेश की सत्ता मफियायों, दलालों और दबंगों के हाथों में कैद है. ऐसे ही लोगों के कहने पर भाकपा के जुझारू नेता का० शारदा पाण्डेय के खिलाफ फर्जी मुकदमे लिखे जारहे हैं और उनको गरीबों का साथ छोड़ने अथवा जान से हाथ धोने की धमकियां दी जारही है. डॉ० गिरीश ने चेतावनी देते हुए कहाकि यदि का० शारदा पांडे के खिलाफ कुछ भी हुआ तो उत्तर प्रदेश सरकार की चूलें हिला दी जायेंगी.

भाकपा सुल्तानपुर के जिला सचिव का० शारदा पाण्डेय ने कहाकि आजादी के ६५ साल बाद भी किसान मजदूर गरीब मेहनतकश आवश्यक सुविधाओं से वंचित हैं. भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार की जनविरोधी नीतियों के चलते किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य, मजदूर को उसका सही हक मनरेगा के तहत काम, अत्यंत गरीबों को बीपीएल के तहत मिलने वाला अनाज, राशनकार्ड नहीं मिल रहा. नौजवानों को रोजगार और गरीबों के बच्चों को शिक्षा से वंचित रखा जारहा है. भाकपा आज ही नहीं अपने जन्म से ही इन सवालों पर संघर्ष करती रही है और करती रहेगी आज भाकपा को और मजबूती प्रदान करने की जरूरत है.

सभा के बाद एक ९ सूत्रीय ज्ञापन जो मुख्यमंत्री को सम्बोधित था उपजिलाधिकारी को सौंपा गया.

सभा को देव पाल सिंह एडवोकेट, जियालाल कोरी, रामदेव कोरी, रामप्यारे पांडे, रोशनलाल प्रधान, श्यामदेवी, नीलम, मीणा देवी, राम्सुधारे पासी, रामतीर्थ पासी, छितईराम पासी, बीडी रही, राकेश पासी, श्रीपाल पासी, एवं लल्लन पाल आदि ने सम्बोधित किया.

Thursday, 20 February 2014

कामरेड इन्द्रजीत गुप्ता: गाँधी जैसी सादगी और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण---राष्ट्रीय सहारा

 14 वीं पुण्यतिथि पर कामरेड इंद्रजीत गुप्त को लाल सलाम ::



भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के नेता कामरेड इन्द्रजीत गुप्त
सिर्फ 1977-80 को छोड़कर 1960 से जीवनपर्यंत सांसद रहे। सबसे वरिष्ठ सांसद रहने के नाते वह तीन बार (1996, 1998, 1999) प्रोटेम स्पीकर बने और उन्होंने नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलायी। वह सीपीआई के राष्ट्रीय महासचिव रहे। वह आॅल इण्डिया ट्रेड यूनियन काॅग्रेस (ए॰आई॰टी॰यू॰सी॰) के महासचिव (1980-90) रहे। वल्र्ड फेडरेषन आॅफ ट्रेड यूनियनस के अध्यक्ष (1998) रहे और एचडी देवगौड़ा के मंत्रिमंडल में वह (1996-1998) गृहमंत्री रहे। उन्हे 1992 में 1 ‘‘आउट स्टैन्डिंग पार्लियामेंटेरियन" का सम्मान दिया गया। राष्ट्रपति के॰ आर॰ नारायणन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि वह गाँधी जी जैसी सादगी, लोकतांत्रिक दृष्टिकोण और मूल्यों के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। वह वेस्टर्न कोर्ट के दो कमरों के क्वार्टर में रहते रहे। टहलते हुए संसद चले जाते थे। गृहमंत्री बनने पर प्रोटोकाल के नाते उन्हें सरकारी गाड़ी से जाना पड़ा। फिर भी उन्होंने वे बहुत सी सुविधाएं नहीं ली थीं जो मंत्री रहते हुए उन्हें मिलनी थीं। वह हमेशा  लोगों को होने वाली असुविधाओं का ख्याल रखते थे। मंत्री रहते हुए भी वह एयरपोर्ट में टर्मिनल तक वायुसेवा की बस से जाते थे न कि अपनी गाड़ी से।


कामरेड इन्द्रजीत गुप्ता का जन्म 18 मार्च, 1919 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता सतीश  गुप्ता देश  के एकांडटेंट जनरल थे। इन्द्रजीत जी के दादा बिहारी लाल गुप्त, आईसीएस थे और बड़ौदा के दीवान थे। इन्द्रजीत गुप्ता की पढ़ाई शिमला, दिल्ली के सेंट स्टीफेंस व किंग्स काॅलेज और कैम्ब्रिज में हुई। इंगलैड में ही वह रजनी पाम दत्त के प्रभाव में आये और उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली।


 1938 में कोलकाता लौटने पर वह किसानों और मजदूरों के आंदोलन से जुड़ गये। आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया और इसके तहत अन्य वाम नेताओं के साथ या तो इन्द्रजीत गुप्त को भूमिगत होना पड़ा या गिरफ्तार। इन्द्रजीत गुप्त का देहांत 20 फरवरी, 2001 को 81 साल की उम्र में कैंसर से हुआ।



Thursday, 13 February 2014

केजरीवाल के भ्रष्‍टाचार-विरोधी ''मुहिम'' पर गदगद कम्‍युनिस्‍ट मार्क्‍सवादी राजनीतिक अर्थशास्‍त्र का ककहरा भी नहीं जानते----कविता कृष्‍णपल्‍लवी



बुर्ज़ुआ जनवादी गणराज्‍य में भ्रष्‍टाचार का प्रश्‍न: मार्क्‍सवादी दृष्टिकोण

February 13, 2014 at 7:33pm
किसी भी पूँजीवादी जनवादी गणराज्‍य (बुर्ज़ुआ डेमोक्रेटिक रिपब्लिक) में भ्रष्‍टाचार-निर्मूलन का नारा मात्र एक लोकरंजक नारा ही हो सकता है। भ्रष्‍टाचार पूँजीवादी आर्थिक आधार और अधिरचना के बीच के अन्‍तरविरोध को हल करने में एक अहम भूमिका निभाता है। जब यह अपनी सीमा लाँघकर पूँजीवादी जनवाद के लिए संकट पैदा करने लगता है, तो स्‍वयं पूँजीवाद ही इसे नियंत्रित करने की कोशिश करता है। भ्रष्‍टाचार पर नियंत्रण पूँजीवादी अर्थतंत्र और पूँजीवादी जनवादी गणतांत्रिक अधिरचना में एक पैबंदसाजी से अधिक कुछ नहीं है। केजरीवाल के भ्रष्‍टाचार-विरोधी ''मुहिम'' पर गदगद कम्‍युनिस्‍ट मार्क्‍सवादी राजनीतिक अर्थशास्‍त्र का ककहरा भी नहीं जानते। ऐसे सतही सुधारवादी, लोकरंजकतावादी वामपंथियों के विचारार्थ (हालाँकि वे इसपर शायद ही विचार करेंगे या विचार करने की शायद उनकी क्षमता ही नहीं है) एक फ्रेडरिक एंगेल्‍स का और एक लेनिन का उद्धरण हम नीचे प्रस्‍तुत कर रहे हैं:


''जनवादी गणराज्‍य (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक) आधिकारिक तौर पर (नागरिकों के बीच) सम्‍पत्ति में अंतर का कोई ख़याल नहीं करता। उसमें धन-दौलत परोक्ष रूप से, पर और भी ज्‍यादा सुनिश्चित ढंग से, अपना असर डालती है। एक तो सीधे-सीधे राज्‍य के अधिकारियों के भ्रष्‍टाचार के रूप में, जिसका क्‍लासिकी उदाहरण अमेरिका है; दूसरे, सरकार तथा स्‍टॉक एक्‍सचेंज के गठबंधन के रूप में।'' -- फ्रेडरिक एंगेल्‍स: 'परिवार, निजी सम्‍पत्ति और राज्‍य की उत्‍पत्ति'



''जनवादी गणराज्‍य  ''तार्किक तौर पर'' पूँजीवाद से विरोध रखता है, क्‍योंकि ''आधिकारिक तौर पर'' यह धनी और गरीब दोनों को बराबरी पर रखता है। यह आर्थिक व्‍यवस्‍था और राजनीतिक अधिरचना के बीच का अन्‍तरविरोध है। साम्राज्‍यवाद और गणराज्‍य के बीच भी यही अन्‍तरविरोध होता है, जो इस तथ्‍य के द्वारा गहरा या गम्‍भीर हो जाता है कि स्‍वतंत्र प्रतियोगिता से इजारेदारी में संक्रमण राजनीतिक स्‍वतंत्रताओं की सिद्धि को और भी अधिक ''कठिन'' बना देता है। तब, फिर पूँजीवाद जनवाद के साथ सामंजस्‍य कैसे स्‍थापित करता है? पूँजी की सर्वशक्तिमानता के परोक्ष अमल के द्वारा। इसके दो आर्थिक साधन होते हैं: (1)प्रत्‍यक्ष रूप से घूस देना; (2) सरकार और स्‍टॉक एक्‍सचेंज का गठजोड़। (यह हमारी प्रस्‍थापनाओं में बताया गया है -- एक बुर्ज़ुआ व्‍यवस्‍था के अन्‍तर्गत वित्‍त पूँजी ''किसी सरकार और किसी अधिकारी को बेरोकटोक घूस दे सकती है और खरीद सकती है।'') एक बार जब माल उत्‍पादन की, बुर्ज़ुआ वर्ग की और पैसे की ताकत की प्रभुत्‍वशील हैसियत बन जाती है -- सरकार के किसी भी रूप के अन्‍तर्गत और जनवाद के किसी भी किस्‍म के अन्‍तर्गत -- (सीधे या स्‍टॉक एक्‍सचेंज के जरिए) घूस देना ''सम्‍भव'' हो जाता है। तब यह पूछा जा सकता है कि पूँजीवाद के साम्राज्‍यवाद की अवस्‍था में पहुँचने, यानी प्राक्-एकाधिकारी पूँजी का स्‍थान एकाधिकारी पूँजी द्वारा ले लेने बाद, इस सम्‍बन्‍ध में कौन सी चीज़ बदल जाती है? सिर्फ यह कि स्‍टॉक-एक्‍सचेंज की ताकत बढ़ जाती है। क्‍योंकि वित्‍त पूँजी औद्योगिक पूँजी का उच्‍चतम, एकाधिकारी स्‍तर होती है, जो बैंकिंग पूँजी के साथ मिल गयी होती है। बड़े बैंक स्‍टॉक एक्‍सचेंज के साथ विलय कर गये हैं या उसे अवशोषित कर चुके हैं। (साम्राज्‍यवाद पर उपलब्‍ध साहित्‍य स्‍टॉक एक्‍सचेंज की घटती भूमिका के बारे में बात करता है, लेकिन केवल इस अर्थ में कि हर दैत्‍याकार बैंक वस्‍तुत: अपने आप में एक स्‍टॉक एक्‍सचेंज है।)''-- व्‍ला.इ. लेनिन: 'ए कैरिकेचर ऑफ मार्क्सिज्‍़म ऐण्‍ड इम्‍पीरियलिस्‍ट इकोनॉमिज्‍़म'


https://www.facebook.com/notes/kavita-krishnapallavi/

Wednesday, 12 February 2014

" Indiscriminate use of lathis: Several women comrades got hurt.”---Communist Party of India






Twenty students on protest march injured in police lathicharge :

Nearly 20 students of the All India Students’ Federation (AISF), from across the country, were left injured after the Delhi Police allegedly lathicharged protesters near Jantar Mantar on Tuesday afternoon.
With a list of demands on education, these students, along with other members of the students’ organisation, were marching to Parliament from Ramlila Maidan when the incident took place.
Students said their demands included free education for all till post-graduation, students’ elections in every college and safety for women.
Aparajitha Raja, the daughter of Rajya Sabha member D Raja and a student at School of Social Sciences, Jawaharlal Nehru University (JNU), was among those injured. “My arm was injured in the lathicharge. We were near Jantar Mantar, trying to go towards the Parliament Street police station when the incident took place. The road near Jantar Mantar was not supposed to be blocked. It was supposed to be open to the protesters. But police tried to stop us. We broke the first barricade and as some us were jumping across, police lathicharged,” she said.
The injured students, including AISF national president Vali Ullah Kadri, were taken to Ram Manohar Lohia and LNJP hospitals, protesters said.
According to the protesters, police were “indiscriminately using lathis”. Aparajitha said, “Police were quite ruthless. There was an indiscriminate use of lathis. Several women comrades got hurt.”

students insisted that police had lathicharged them.
“We were raising the issue of commercialisation of education. Around 11.30 am, we started marching from Ramlila Maidan to Parliament. Police lathicharged on us at 12.30pm,” Durgesh, another AISF member from JNU, said.
Durgesh said, “Comrades from across the country — Kerala, Tamil Nadu, Punjab, Uttar Pradesh and Gujarat — had come to Delhi for the protest. After the lathicharge, a public meeting was conducted at the spot. D Raja attended the meeting. We requested him to raise our issues in Parliament.”
 

Saturday, 8 February 2014

In memory of Revolutionary Com.Kalpana Joshi-wife of Com. P.C.Joshi

On 20th Death Annuarsary :
Kalpana Datta(Kalpana Joshi-wife of Com. P.C.Joshi)

Kalpana Datta (27 July 1913 – 8 February 1995) (later Kalpana Joshi) was an independence movement activist and a member of the armed resistance movement led by Surya Sen, which carried out the Chittagong armoury raid in 1930.Later she joined the Communist Party of India and married Puran Chand Joshi, then General Secretary of the Communist Party of India in 1943.
Kalpana Datta was born at Sripur (Boalkhali Upazila) in Chittagong District of Bengal Province in British India now Bangladesh . After passing her matriculation examination in 1929 from Chittagong, she went to Calcutta and joined the Bethune College for graduation in Science. Soon, she joined the Chhatri Sangha (Women Students Association).
The Chittagong armoury raid was carried out on 18 April 1930. Kalpana joined the "Indian Republican Army, Cattagram branch", the armed resistance group led by Surya Sen in May 1931. In September, 1931 Surya Sen entrusted her along with Pritilata Waddedar to attack the European Club in Chittagong. But a week before the attack, she was arrested while carrying out reconnaissance of the area. She went underground after release on bail. On 17 February 1933 the police encircled their hiding place and Surya Sen was arrested but Kalpana was able to escape. She was arrested on 19 May 1933.
In the second supplementary trial of Chittagong armoury raid case, Kalpana was sentenced to transportation for life. After her release in 1939, Kalpana graduated from the Calcutta University in 1940 and joined the Communist Party of India. In 1946, she contested in the elections for the Bengal Legislative Assembly as a Communist Party of India candidate from Chittagong but could not win. She died in Calcutta on 8 February 1995.
In 1943, she married Puran Chand Joshi. They had two sons: Chand and Suraj. Chand Joshi was a noted journalist, who worked for the Hindustan Times. He was also known for his work, Bhindranwale: Myth and Reality (1985). Chand's wife Manini (née Chatterjee) penned a book on the Chattagram armoury raid, titled, Do and Die: The Chattagram Uprising 1930-34.




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Thursday, 6 February 2014

केजरीवाल की पार्टी की गुण्‍डागर्दी का विरोध करें, इनके असली चेहरे को पहचानें---मजदूर बिगुल

आखिर इतनी बौखलाहट क्‍यों?
फिर आखिर इस आन्‍दोलन से आम आदमी पार्टी को इतनी बौखलाहट क्‍यों है कि आन्‍दोलन की
 अभियान टोलियों के साथ जगह-जगह उनके कार्यकर्ता उलझ रहे हैं, गाली-गलौज कर रहे हैं और पर्चे जला रहे हैं। पिछले एक हफ्ते से उत्‍तर-पश्चिमी दिल्‍ली क्षेत्र में लगभग हर रोज़ ‘आप’ के कार्यकर्ताओं ने अभियान टोली के साथ बदसलूकी की, प्रचार सभाओं में बाधा पैदा करके मज़दूरों को तितर-बितर करने की कोशिश की। एक दिन एक प्रचार टोली से पर्चे छीन कर जलाये। यहाँ तक कि शाहाबाद डेयरी स्थित जिस शहीद भगतसिंह पुस्‍तकालय में स्‍त्री और पुरुष मज़दूरों की मीटिंगें और विविध सांस्‍कृतिक कार्यक्रम हुआ करते हैं, रात में उसका बोर्ड कुछ लोग उतार ले गये। फिर वहाँ पत्‍थरबाजी भी की गयी। कल शाम को गाड़ी में सवार पीकर धुत्‍त ‘आप’ पार्टी के कुछ लोगों ने बादली में प्रचार टोली की स्‍त्री सदस्‍यों के साथ गाली-गलौज की और धमकियाँ दीं, फिर मज़दूरों के इकट्ठा होने पर वे वहाँ से चले गये!पहली बात, यही वह लोकतांत्रिक संस्‍कृति है, जिसकी केजरीवाल, सिसोदिया और योगेन्‍द्र यादव दुहाई देते नहीं थकते? मज़दूरों के नितान्‍त शान्तिपूर्ण आन्‍दोलन से इतनी बौखलाहट क्‍यों? आखिर मज़दूर माँग ही क्‍या रहे हैं? उनका मात्र इतना कहना है कि केजरीवाल ने मज़दूरों से जो वायदे किये थे, उन्‍हें पूरा करने के बारे में कुछ तो बोलें! वे तो सत्‍तासीन होने के बाद साँस-डकार ही नहीं ले रहे हैं।
मज़दूरों से किये गये एक भी वायदे की चर्चा भी नहीं 

की!
केजरीवाल ने पूरी दिल्‍ली से ठेका प्रथा को खत्‍म करने का वायदा किया था। अब उन्‍होंने इसकी तकनीकि जाँच के लिए एक समिति बना दी है, जिसकी कोई ज़रूरत नहीं थी। उन्‍हें करना सिर्फ इतना था कि सिर्फ एक दिन का विधान सभा सत्र बुलाकर इस आशय का विधेयक पारित करवा लेना था कि दिल्‍ली में कोई भी निजी या सरकारी नियोक्‍ता नियमित प्रकृति के काम के लिए ठेका मज़दूर नहीं रह सकता। इसके बजाये एक समिति बनाकर केजरीवाल ने मामले को टाल दिया है। समिति रिपोर्ट देगी और उसपर सरकार विचार करेगी, तबतक लोकसभा चुनावों की आचार संहिता लागू हो जायेगी।केजरीवाल ने कहा था कि निजी झुग्‍गीवासियों को पक्‍के मकान दिये जायेंगे और तबतक कोई झुग्‍गी उजाड़ी नहीं जायेगी। अब इस काम के लिए समय-सीमा बताना तो दूर, केजरीवाल कुछ बोल ही नहीं रहे हैं। यही नहीं, कांग्रेस सरकार के समय जिन झुग्‍गी बस्तियों का नियमतिकरण हुआ था, अब उनमें भ्रष्‍टाचार बताकर उस फैसले को पलटने की बात की जा रही है। यानी लाखों मज़दूरों को पुनर्वास की व्‍यवस्‍था के बिना उजाड़ने की भूमिका तैयार की जा रही है।केजरीवाल ने दिल्‍ली के सभी पटरी दुकानदारों और रेहड़ीवालों को लाइसेंस और स्‍थाई स्‍थान देने का वायदा किया था, उसके बारे में भी वे अब साँस-डकार नहीं ले रहे हैं।चुनाव प्रचार के दौरान मज़दूर बस्तियों में उनके उम्‍मीदवार सौ अतिरिक्‍त सरकारी स्‍कूल खोलने और वर्तमान स्‍कूलों के स्‍तर को ठीक करने का वायदा कर रहे थे। इस वायदें को भी ठण्‍डे बस्‍ते में डाल दिया गया।
केजरीवाल का भ्रष्‍टाचार-विरोध मज़दूरों के लिए नहीं है!
केजरीवाल की राजनीति की पूरी बुनियाद भ्रष्‍टाचार-विरोध पर टिकी है। फिलहाल हम इस बुनियादी प्रश्‍न पर नहीं जाते कि पूँजीवाद को पूरी तरह भ्रष्‍टाचार-मुक्‍त किया ही नहीं जा सकता, कि पूँजीवाद स्‍वयं में ही भ्रष्‍टाचार है और यह कि जनता को भ्रष्‍टाचार-मुक्‍त पूँजीवाद नहीं, बल्कि पूँजीवाद-मुक्‍त राज और समाज चाहिए। भष्‍टाचार कितनी अधिक धनराशि का है, इससे अधिक अहम बात यह है कि किस भ्रष्‍टाचार से व्‍यापक आम आबादी का जीना मुहाल है! दिल्‍ली की साठ लाख मज़दूर आबादी का जीना मुहाल करने वाला भ्रष्‍टाचार है — श्रम विभाग का भ्रष्‍टाचार। किसी भी फैक्‍ट्री या व्‍यावसायिक प्रतिष्‍ठान में मज़दूरों को न्‍यूनतम मज़दूरी नहीं मिलती, काम के तय घण्‍टों से अधिक काम करना पड़ता है, ओवरटाइम तय से आधी दर पर मिलता है, कैजुअल मज़दूरों का मस्‍टर रोल नहीं मिंटेन होना, सैलरी स्लिप नहीं मिलती, पी.एफ. इ.एस.आई. की सुविधा नहीं मिलती, फैक्‍ट्री इंस्‍पेक्‍टर, लेबर इंस्‍पेक्‍टर आदि दौरा नहीं करते, कारखाने स्‍वास्‍थ्‍य, सुरक्षा और पर्यावरण के निर्धारित मानकों का पालन नहीं करते! तात्‍पर्य यह कि किसी भी श्रम कानूनों का पालन नहीं होता। यदि केजरीवाल वास्‍तव में भ्रष्‍टाचार से आम लोगों को होने वाली परेशानी से परेशान हैं, तो सबसे पहले उन्‍हें श्रम विभाग के भ्रष्‍टाचार को दूर करना चाहिए। मज़दूरों की यही माँग है।लेकिन मज़दूरों के प्रति केजरीवाल की सरकार का रवैया क्‍या है? डी.टी.सी. के 20हजार ठेका कर्मचारियों और 10हजार अस्‍थाई शिक्षकों के धरने और अनशन को हवाई आश्‍वासन की आड़ में नौकरी छीन लेने और दमन की धमकी से समाप्‍त कर दिया गया। वजीरपुर कारखाना यूनियन के मज़दूर जब अपनी माँगों को लेकर सचिवालय पहुँचे तो बैरिकेडिंग करके पुलिस खड़ी करके उन्‍हें मंत्री से मिलने से रोक दिया गया और दफ्तर में केवल उनका माँगपत्रक रिसीव कर लिया गया। केजरीवाल का जनता दरबार तो हवा हो ही गया, अब उनके मंत्री जनता से मिलते तक नहीं।
‘आप’ के आम आदमी
ये ‘आप’ के आम आदमी हैं कौन? यूँ तो ऊपर भी विचित्र खिचड़ी है! केजरीवाल का एन.जी.ओ. गिरोह, किशन पटनायक धारा के समाजवादी योगेन्‍द्र यादव, राज नारायण धारा के समाजवादी आनंद कुमार, मंचीय नुक्‍कड़ कवि, घोर दखिणपंथी विचारों वाला कुमार विश्‍वास, ए.बी.वी.पी. से एन.एस.यू.आई. से भा.क.पा.(मा-ले) होते हुए यहाँ तक आये गोपाल राय तथा कमल मित्र शेनॉय, परिमल माया सुधाकर, बली सिंह चीमा, आतिशी मारलेना आदि-आदि भाँति-भाँति के, रंग-बिरंगे ”वामपंथियों” के साथ कैप्‍टन गोपी नाथ, नारायण मूर्ति और वी. बालाकृष्‍णन जैसे कारपोरेट शहंशाह…। ऐसी लोकरंजक राजनीतिक खिंचड़ी का असली रंग और स्‍वाद तो ग्रासरूट स्‍तर पर पता चलता है। केजरीवाल को मध्‍यवर्गीय इलाकों में आर.डब्‍ल्‍यू.ए. खुशहाल मध्‍य वर्गीय जमातों, कारोबारियों और आई.टी. – व्‍यापार प्रबंधन आदि पेशों में लगे उन युवाओं का समर्थन प्राप्‍त है, जो पारम्‍परिक तौर पर दक्षिणपंथी विचारों के और प्राय: भाजपा के वोट बैंक होते रहे हैं। लेकिन सबसे दिलचस्‍प दिल्‍ली की मज़दूर बस्तियों में देखने को मिलता है। वहाँ सारे छोटे कारखानेदारों, दुकानदारों, लेबर-कांट्रेक्‍टर के अतिरिक्‍त मज़दूरों को सूद पर पर पैसे देने वाले, कमेटी डालने वाले, मज़दूरों के रिहाइश वाले लॉजों-खोलियों और घरों के मालिक तथा प्रापर्टी डीलर और उनके चम्‍पुओं के गिरोह — यही आम आदमी की टोपी पहनकर मज़दूर बस्‍तियों में घूम रहे हैं। पिछले एक माह के अभियान के दौरान हमलोगों ने इस नंगी-कुरूप सच्‍चाई को बहुत गहराई से महसूस किया और झेला। सिर्फ एक उदाहरण ही काफी होगा। ‘बवाना चैम्‍बर ऑफ इण्‍डस्‍ट्रीज’ के चेयरमैन प्रकाशचंद जैन उत्‍तर-पश्चिमी दिल्‍ली में आम आदमी पार्टी के एक अग्रणी नेता हैं। इनके साथ और भी कई फैक्‍ट्री मालिक, प्रॉपर्टी डीलर और ठेकदार हैं। कोई प्रकाश चन्‍द जैन से ही पूछे क्‍या उनके कारखानों में मज़दूरों को न्‍यूनतम वेतन, पी.एफ., ई.एस.आई. आदि दिया जाता है, क्‍या वहाँ श्रम कानूनों का पालन होता है? कमोबेश यही स्थिति दिल्‍ली के सभी औद्योगिक इलाकों और मज़दूर बस्तियों की है। इसके बावजूद, एन.जी.ओ.-सुधारवादियों और भाँति-भाँति के सामाजिक जनवादियों को तो छोड़ ही दें, आम आदमी पार्टी की झोली में यूँ ही जा टपकने वाले भावुकतावादी कम्‍युनिस्‍टों को अभी भी केजरीवाल की राजनीति का असली रंग नहीं दिख रहा है, तो निश्‍चय ही राजनीतिक काला मोतिया के चपेट में वे अंधे हो चुके हैं। या हो सकता है, वे पहले से ही अंधे रहे हों।आम जनता स्‍वराज और सड़क से सत्‍ता चलाने की रट लगाने वाले लोकरंजकातावादी मदारी अब सरकारी धोखाधड़ी और धमकी, पुलिसिया धौंसपट्टी और पार्टी कार्यकर्ताओं की दादागीरी का खुलकर सहारा ले रहे हैं। मज़दूरों की वर्ग दृष्टि एकदम साफ है। वह केजरीवाल के लोकरंजकतावाद की असलियत को अभी से समझने लगा है। वह कुछ कुलीनतावादी दिवालिये किताबी वामपंथियों की तरह मतिभ्रम-संभ्रम-दिग्‍भ्रम का शिकार नहीं है।

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