भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और मीडिया की भूमिका?
आखिर एक लम्बी जद्दोजहद के बाद ओएनजीसी(विदेश)के प्रमुख श्री सर्राफ को ओएनजीसी के सीएमडी पद पर नियुक्ति मिल ही गयी. कई माह पूर्व चयनबोर्ड ने इस महत्त्वपूर्ण पद पर उनकी नियुक्ति की सिफारिश की थी. लेकिन पेट्रोलियम मंत्री श्री वीरप्पा मोइली ने सारे कायदे कानूनों को ताक पर रख कर आज सेवा निवृत्त होने जारहे श्री वासुदेव को एक साल के लिये सेवा विस्तार देने की संस्तुति की थी. इससे ओएनजीसी का हित चाहने वालों में खलबली मच गयी थी, क्योंकि इस कार्यवाही में स्पष्टतः भ्रष्टाचार की गंध आरही थी. ठीक उसी तरह जैसे कि के.जी.बेसिन से निकाली जाने वाली गैस की कीमतों को ४.८ प्रति यूनिट से बड़ा कर ८.४ डालर प्रति यूनिट कर वीरप्पा ने रिलाइंस समूह के मुखिया श्री मुकेश अम्बानी को और भी मालामाल करने का रास्ता साफ कर दिया.
ओएनजीसी सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण उद्योग है जिसकी गिनती नवरत्न उद्योगों में होती है. यदि इसके मुखिया की नियुक्ति भ्रष्ट तौर तरीकों से हो तो इसमें भारी भ्रष्टाचार की भारी सम्भावनायें पैदा हो जाती हैं. चूंकि गत माह भारी उद्योग मंत्री श्री प्रफुल्ल पटेल भेल के प्रमुख को सेवा विस्तार दिलाने में कामयाब हो गये थे, अतएव सार्वजनिक क्षेत्र के शुभ चिंतकों में यही कहानी ओएनजीसी में दोहराए जाने को लेकर काफी चिंता व्याप्त थी. लेकिन इन दोनों ही मामलों पर मुख्य विपक्षी दल भाजपा समेत सारी पार्टियाँ चुप्पी सादे रहीं. यहाँ तक कि ‘आप’ भी खामोश बनी रही.
मामले को गंभीरता से लेते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इसे न केवल उजागर किया अपितु इसे एक प्रमुख मुद्दा बनाया. भाकपा सांसद का. गुरुदास दासगुप्त ने मामलों को संसद में तो उठाया ही एक के बाद एक कई पत्र लिख कर प्रधानमन्त्री से हस्तक्षेप की मांग की. गैस घोटाले पर उन्होंने एक पुस्तिका भी प्रकाशित की और सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिस पर ४ मार्च को सुनवाई होनी है. इन पंक्तियों के लेखक ने भी पेट्रोलियम मंत्रालय के इन घपलों की प्रभावी जांच की मांग की. लेकिन भाकपा के इन प्रयासों को कुछ समाचार पत्रों एवं न्यूज चेनल्स ने ही महत्त्व दिया. उन्हें बधाई. लेकिन शेष मीडिया ख़ामोशी अख्तियार किये रहा. लेकिन जब श्री केजरीवाल ने अपनी सरकार को शहीद करने के पहले कुछ मुद्दे खड़े करना जरूरी समझा तो उन्होंने के.जी. गैस मामले को लेकर एंटी करप्शन ब्यूरो में एफ़ाइअर दर्ज करा दी. सभी जानते हैं कि एसीबी इस मामले की जाँच करने का अधिकारी नहीं था. लेकिन सारा मीडिया उन्हें हीरो बनाने में जुट गया. मगर कई ने कहा कि यह मुद्दे तो भाकपा नेता ने उठाये थे.
अब जब कि भारी शोर शराबे के चलते और सीवीसी द्वारा वासुदेव को सेवा विस्तार देने की संस्तुति न करने पर सरकार को श्री सर्राफ को नियुक्तिपत्र देना पड़ा तो मीडिया के कुछ हिस्से इन मुद्दों को भाकपा के हाथ से छीनने में जुट गये. भाजपा के एक अंध समर्थक अख़बार ने लिखा कि इस मामले को वामपंथी दलों और भाजपा ने उठाया था जबकि भाजपा के किसी नेता ने मामले पर आज तक मुहं नहीं खोला. कुछ ही दिनों से लखनऊ और आगरा से प्रकाशित हो रहे एक टटपूंजिया अख़बार के सम्पादकीय प्रष्ट पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि गैस घोटाला केजरीवाल ने खोला. इस लेख के विद्वान् लेखक भूल गये या उन्होंने जानबूझ कर यह छिपाया कि इस मामले पर भाकपा पिछले ९ माह से अनवरत लड़ाई लड़ रही थी. सम्पादक महोदय ने भी निष्पक्षता जताने का कोई प्रयास नहीं किया. अब मीडिया ही इस स्थिति पर चर्चा करे तो अच्छा है कि वह कितना निष्पक्ष है. डॉ.गिरीश
आखिर एक लम्बी जद्दोजहद के बाद ओएनजीसी(विदेश)के प्रमुख श्री सर्राफ को ओएनजीसी के सीएमडी पद पर नियुक्ति मिल ही गयी. कई माह पूर्व चयनबोर्ड ने इस महत्त्वपूर्ण पद पर उनकी नियुक्ति की सिफारिश की थी. लेकिन पेट्रोलियम मंत्री श्री वीरप्पा मोइली ने सारे कायदे कानूनों को ताक पर रख कर आज सेवा निवृत्त होने जारहे श्री वासुदेव को एक साल के लिये सेवा विस्तार देने की संस्तुति की थी. इससे ओएनजीसी का हित चाहने वालों में खलबली मच गयी थी, क्योंकि इस कार्यवाही में स्पष्टतः भ्रष्टाचार की गंध आरही थी. ठीक उसी तरह जैसे कि के.जी.बेसिन से निकाली जाने वाली गैस की कीमतों को ४.८ प्रति यूनिट से बड़ा कर ८.४ डालर प्रति यूनिट कर वीरप्पा ने रिलाइंस समूह के मुखिया श्री मुकेश अम्बानी को और भी मालामाल करने का रास्ता साफ कर दिया.
ओएनजीसी सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण उद्योग है जिसकी गिनती नवरत्न उद्योगों में होती है. यदि इसके मुखिया की नियुक्ति भ्रष्ट तौर तरीकों से हो तो इसमें भारी भ्रष्टाचार की भारी सम्भावनायें पैदा हो जाती हैं. चूंकि गत माह भारी उद्योग मंत्री श्री प्रफुल्ल पटेल भेल के प्रमुख को सेवा विस्तार दिलाने में कामयाब हो गये थे, अतएव सार्वजनिक क्षेत्र के शुभ चिंतकों में यही कहानी ओएनजीसी में दोहराए जाने को लेकर काफी चिंता व्याप्त थी. लेकिन इन दोनों ही मामलों पर मुख्य विपक्षी दल भाजपा समेत सारी पार्टियाँ चुप्पी सादे रहीं. यहाँ तक कि ‘आप’ भी खामोश बनी रही.
मामले को गंभीरता से लेते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इसे न केवल उजागर किया अपितु इसे एक प्रमुख मुद्दा बनाया. भाकपा सांसद का. गुरुदास दासगुप्त ने मामलों को संसद में तो उठाया ही एक के बाद एक कई पत्र लिख कर प्रधानमन्त्री से हस्तक्षेप की मांग की. गैस घोटाले पर उन्होंने एक पुस्तिका भी प्रकाशित की और सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिस पर ४ मार्च को सुनवाई होनी है. इन पंक्तियों के लेखक ने भी पेट्रोलियम मंत्रालय के इन घपलों की प्रभावी जांच की मांग की. लेकिन भाकपा के इन प्रयासों को कुछ समाचार पत्रों एवं न्यूज चेनल्स ने ही महत्त्व दिया. उन्हें बधाई. लेकिन शेष मीडिया ख़ामोशी अख्तियार किये रहा. लेकिन जब श्री केजरीवाल ने अपनी सरकार को शहीद करने के पहले कुछ मुद्दे खड़े करना जरूरी समझा तो उन्होंने के.जी. गैस मामले को लेकर एंटी करप्शन ब्यूरो में एफ़ाइअर दर्ज करा दी. सभी जानते हैं कि एसीबी इस मामले की जाँच करने का अधिकारी नहीं था. लेकिन सारा मीडिया उन्हें हीरो बनाने में जुट गया. मगर कई ने कहा कि यह मुद्दे तो भाकपा नेता ने उठाये थे.
अब जब कि भारी शोर शराबे के चलते और सीवीसी द्वारा वासुदेव को सेवा विस्तार देने की संस्तुति न करने पर सरकार को श्री सर्राफ को नियुक्तिपत्र देना पड़ा तो मीडिया के कुछ हिस्से इन मुद्दों को भाकपा के हाथ से छीनने में जुट गये. भाजपा के एक अंध समर्थक अख़बार ने लिखा कि इस मामले को वामपंथी दलों और भाजपा ने उठाया था जबकि भाजपा के किसी नेता ने मामले पर आज तक मुहं नहीं खोला. कुछ ही दिनों से लखनऊ और आगरा से प्रकाशित हो रहे एक टटपूंजिया अख़बार के सम्पादकीय प्रष्ट पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि गैस घोटाला केजरीवाल ने खोला. इस लेख के विद्वान् लेखक भूल गये या उन्होंने जानबूझ कर यह छिपाया कि इस मामले पर भाकपा पिछले ९ माह से अनवरत लड़ाई लड़ रही थी. सम्पादक महोदय ने भी निष्पक्षता जताने का कोई प्रयास नहीं किया. अब मीडिया ही इस स्थिति पर चर्चा करे तो अच्छा है कि वह कितना निष्पक्ष है. डॉ.गिरीश
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