Wednesday, 25 June 2014

पहला माह कारपोरेटों को लाभ पहुँचाने और आमजनों की कठिनाइयाँ बढ़ाने वाला ही दिखा---डॉ गिरीश



मोदी सरकार का एक माह- अच्छे दिनों की बदरंग शुरुआत:
किसी भी सरकार के मूल्यांकन के लिये एक माह का कार्यकाल पर्याप्त नहीं कहा जा सकता. लेकिन केंद्र सरकार ने एक माह में जिस तरह ताबड़तोड़ फैसले लिये हैं और आम जनता में इसकी जैसी तीखी प्रतिक्रिया हुई है उसके चलते बरबस ही सरकार के कामकाज पर चर्चा शुरू होगयी है.
शुरुआत चुनाव नतीजे आते ही होगयी थी.

  रोम जब जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था :
 भारतीय जनता पार्टी को इस बार पर्याप्त बहुमत हासिल हुआ है अतएव उसे सरकार गठन के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं करनी थी. फिर भी उसने परिणामों के ठीक दस दिन बाद- २६ मई को भव्य शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया. लोकतंत्र में राजतंत्र जैसा शपथग्रहण आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला. सभी पड़ोसी क्षत्रपों को शपथग्रहण समारोह का आमंत्रण दिया गया था. अम्बानी, अदानी जैसे धनपति और कई फिल्म सेलिब्रिटी समारोह के खास मेहमान थे. तो फिर व्यवस्था भी भव्य की ही जानी थी. लेकिन पूरे दस दिनों तक इतने बड़े देश में कोई जबाबदेह सरकार नहीं थी. इसकी जिम्मेदारी तो फिर भाजपा की ही बनती है. इसका पहला खामियाजा गोरखधाम एक्सप्रेस के उन निर्दोष रेल यात्रियों को भुगतना पड़ा जो शपथग्रहण के दिन ही दुर्घटनाग्रस्त होगयी और लगभग दो दर्जन लोग काल कवलित होगये. इधर मृतकों और घायलों के परिवारीजनों का करुण क्रंदन जारी था और उधर राजतिलक का लकदक आयोजन चल रहा था. कहाबत है रोम जब जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था. ऐसा यदि किसी अन्य दल ने किया होता तो भाजपा ने जरूर आसमान सिर पर उठा लिया होता. लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद भी श्री मोदी ने समारोह को सादगी से आयोजित करने की सदाशयता नहीं दिखाई.
 
काले धन वालों के तो अच्छे दिन:

सरकार के आगाज के साथ ही सेंसेक्स ने जो छलांग लगाई, शेयर बाज़ार के बड़े खिलाड़ी मालामाल होगये. सोने का आयात खोल दिया गया और परिणामतः सोने के दाम काफी नीचे आगये. आम लोगों को भ्रम हुआ कि उनके अच्छे दिन आगये और अब वे भी सस्ते सोने के आभूषण पहन सकेंगे. लेकिन उनका यह सपना पलक झपकते ही धूल धूसरित होगया और सोने की कीमतें फिर से चढ़ने लगीं. लेकिन इस बीच काले धन वालों ने जम कर सोना खरीदा और अब उसे वह ऊंची कीमतों पर बेचेंगे. उनके तो अच्छे दिन आही गये.
विपक्ष खासकर वामपंथी विपक्ष लगातार कहता रहा है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही आर्थिक नवउदारवाद की नीतियों की पोषक हैं अतएव महंगाई भ्रष्टाचार एवं बेरोजगारी जैसे सवालों पर जनता को भाजपा से ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिये. यह तब स्पष्ट होगया जब केंद्र सरकार ने अपने जश्नकाल में ही डीजल की कीमतें बड़ा कर महंगाई बढ़ने देने का रास्ता खोल दिया और मई माह में थोक और खुदरा बाज़ार में महंगाई ने बढ़त जारी रखी. अब रेल किराये में १४.२प्रतिशत और मालभाड़े में ६.४प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर महंगाई को छलांग लगाने का रास्ता हमबार कर दिया. रही सही कमी चीनी पर आयात शुल्क में १५ के स्थान पर ४०प्रतिशत की वृध्दि ने कर दी. निर्यात पर प्रति टन रु. ३३०० की दर से दी जाने वाली सब्सिडी को सितंबर तक बढ़ा दिया गया. पेट्रौल में दस प्रतिशत एथनाल मिलाने की छूट दे दी. परिणामस्वरूप बाज़ार में एक ही झटके में चीनी के दामों में एक रु. प्रति किलो की बढोत्तरी होगयी जो चंद दिनों में रु.३.०० प्रति किलो तक जा सकती है. एक तरफ उपभोक्ताओं पर भीषण कहर वरपा किया गया वहीं चीनी उद्योग समूह को रु.४४०० करोड़ का व्याजमुक्त अतिरिक्त ऋण देने का निर्णय भी ले डाला. पूर्ववर्ती केंद्र सरकार पहले ही इस मद में रु.६६०० करोड़ दे चुकी है. यह सब किसानों के मिलों पर बकाये के भुगतान के नाम पर किया जारहा है. नीति वही पुरानी है केवल अमल करने वाले बदल गये हैं. आज भी यह सब कुछ विकास के नाम पर किया जारहा है.
 
जनविरोधी इन नीतियों की फिराक में विभाजनकारी एजेंडे:

दिन दो दिन में गैस और केरोसिन के दाम बढ़ाये जाने हैं जो चौतरफा महंगाई वृध्दि का रास्ता खोलेंगे. प्याज के दामों में वृध्दि जारी है और वह रुलाने के स्तर तक पहुँच कर ठहरेगी. आम बजट और रेल बजट की तस्वीर भी कुछ कुछ दिखाई देने लगी है.
जनविरोधी इन नीतियों को आसानी से लोगों के गले उतारने की फिराक में विभाजनकारी एजेंडे को पहले ही दिन से चालू कर दिया गया. अनुच्छेद ३७० और कामन सिविलकोड पर अलग अलग प्रवक्ता पैरवी करते दिखे. राम मन्दिर का निर्माण अभी ठन्डे बस्ते में है लेकिन बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं के दोहन के लिये गंगा की शुध्दि को साइन बोर्ड के तौर पर स्तेमाल किया जारहा है. गंगा की शुध्दि के लिये कड़े नैतिक कदम उठाने की जरूरत है पर एनडीए सरकार मुद्दे को सिर्फ गरमाए रखना चाहती है. सोशल मीडिया पर हिंदी के प्रयोग को बलात लादने के गृह मन्त्रालय के फैसले को भी इसी श्रेणी में रखा जारहा है. इराक युध्द को लेकर भी केंद्र सरकार अँधेरे में हाथ पैर मार रही है और वहां फंसे भारतीय कार्मिकों की सुरक्षित वापसी के लिये कुछ भी नहीं कर पायी है.
यहाँ बहुत याद करने पर भी एक माह में सरकार का एक भी काम याद नहीं आपारहा जिसे आम जनता के लिये अच्छे दिनों की शुरूआत माना जासके. जनता का दोहन करने वालों के लिये अच्छे दिनों की शुरुआत अवश्य होगयी. मोदी ने जब कुछ कठोर कदम उठाने की बात की थी तो सभी ने अलग अलग अलग मायने निकाले थे. कुछ ने माना था कि बेतहाशा दौलत वालों को कटघरे में लाया जायेगा. काले धनवालों की एक सूची भी सरकार के पास है. लगा कि उन पर कार्यवाही होगी. बैंकों के बड़े बकायेदारों से बसूली का मामला भी सरकार के सामने है. लोग उम्मीद कर रहे हैं कि छप्पन इंच के सीने वाला प्रधानमन्त्री अवश्य ही कुछ करेगा. लेकिन पहला माह कारपोरेटों को लाभ पहुँचाने और आमजनों की कठिनाइयाँ बढ़ाने वाला ही दिखा. निश्चय ही जनता आने वाले माहों में अच्छे दिनों के आने की उम्मीद लगाये बैठी है


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Thursday, 19 June 2014

वेदों मे निहित समानता की भावना ही साम्यवाद का मूलाधार है ---विजय राजबली माथुर

 यह लेख मूल रूप से पूर्व प्रकाशित है :

Wednesday, April 25, 2012


अधर्म को 'धर्म' मानने की गलती

 

हिंदुस्तान,लखनऊ,23-04-2012 ,पृष्ठ-7

मुद्रा राक्षस जी बुजुर्ग और उच्च कोटि के विद्वान हैं। वह जो कहना चाहते थे उसे समझे बगैर लोगों ने उनका विरोध कर दिया।
* किन्तु थोड़ी सी गलती उनकी भी यह है कि उन्होने 'हिन्दू धर्म' शब्द का प्रयोग किया है। वस्तुतः 'हिन्दू' कोई धर्म है ही नही।बौद्धो के विरुद्ध क्रूर हिंसा करने वालों ,उन्हें उजाड़ने वालों,उनके मठों एवं विहारों को जलाने वाले लोगों को 'हिंसा देने' के कारण बौद्धों द्वारा 'हिन्दू' कहा गया था। फिर विदेशी आक्रांताओं ने एक भद्दी तथा गंदी 'गाली' के रूप मे यहाँ के लोगों को 'हिन्दू' कहा।साम्राज्यवादियों के एजेंट खुद को 'गर्व से हिन्दू' कहते हैं। 

*मुद्रा जी से दूसरी गलती यह हो गई है कि उन्होने आदि शंकराचार्य के बाद 'ज्ञान-विज्ञान'की रचना न किए जाने की बात कही।एक हद तक 'बुद्ध' के विचार 'वैज्ञानिक'थे किन्तु शंकराचार्य ने अविज्ञान का भ्रम फैला कर उन्हें धूलि-धूसरित कर दिया है। आज भारत जो गारत हो गया है वह इन्हीं शंकराचार्य की देंन  है। इन लोगों के बारे मे हकीकत यह है देखें -



*मुद्रा जी ने तीसरी गलती यह कर दी है कि उन्होने कहा कि 'ऋग वेद और अथर्व वेद' मे महिलाओं के लिए निंदनीय शब्द हैं। लगता है कि मुद्रा जी ने आचार्य श्री राम शर्मा सरीखे अवैज्ञानिक लोगों की व्याख्याओं को अपने निष्कर्ष का आधार बनाया है।

लगभग सभी बाम-पंथी विद्वान सबसे बड़ी गलती यही करते हैं कि हिन्दू को धर्म मान लेते हैं फिर सीधे-सीधे धर्म की खिलाफत करने लगते हैं। वस्तुतः 'धर्म'=शरीर को धारण करने हेतु जो आवश्यक है जैसे-सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह,और ब्रह्मचर्य।  इंनका का विरोध करने को आप कह रहे हैं जब आप धर्म का विरोध करते हैं तो। अतः 'धर्म' का विरोध न करके  केवल अधार्मिक और मनसा-वाचा- कर्मणा 'हिंसा देने वाले'=हिंदुओं का ही प्रबल विरोध करना चाहिए।

विदेशी शासकों की चापलूसी मे 'कुरान' की तर्ज पर 'पुराणों' की संरचना करने वाले छली विद्वानों ने 'वैदिक मत'को तोड़-मरोड़ कर तहस-नहस कर डाला है। इनही के प्रेरणा स्त्रोत हैं शंकराचार्य। जबकि वेदों मे 'नर' और 'नारी' की स्थिति समान है। वैदिक काल मे पुरुषों और स्त्रियॉं दोनों का ही यज्ञोपवीत संस्कार होता था। कालीदास ने महाश्वेता द्वारा 'जनेऊ'धरण करने का उल्लेख किया है।  नर और नारी समान थे। पौराणिक हिंदुओं ने नारी-स्त्री-महिला को दोयम दर्जे का नागरिक बना डाला है। अपाला,घोशा,मैत्रेयी,गार्गी आदि अनेकों विदुषी महिलाओं का स्थान वैदिक काल मे पुरुष विद्वानों से  कम न था। अतः वेदों मे नारी की निंदा की बात ढूँढना हिंदुओं के दोषों को ढकना है।


वेद जाति,संप्रदाय,देश,काल से परे सम्पूर्ण विश्व के समस्त मानवों के कल्याण की बात करते हैं। उदाहरण के रूप मे 'ऋग्वेद' के कुछ मंत्रों को देखें -

'संगच्छ्ध्व्म .....उपासते'=
प्रेम से मिल कर चलें बोलें सभी ज्ञानी बनें।
पूर्वजों की भांति हम कर्तव्य के मानी बनें। ।


'समानी मंत्र : ....... हविषा जुहोमी ' =


हों विचार समान सबके चित्त मन सब एक हों। 
ज्ञान पाते हैं बराबर भोग्य पा सब नेक हों। । 


'समानी व आकूति....... सुसाहसती'=


हों सभी के दिल तथा संकल्प अविरोधी सदा। 
मन भरे हों प्रेम से जिससे बढ़े सुख सम्पदा। । 


'सर्वे भवनतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामयाः। 
सर्वे भद्राणि पशयन्तु मा कश्चिद दुख भाग भवेत। । '=


सबका भला करो भगवान सब पर दया करो भगवान । 
सब पर कृपा करो भगवान ,सब का सब विधि हो कल्याण। । 
हे ईश सब सुखी हों कोई  न हो दुखारी। 
 सब हों निरोग भगवनधन-धान्यके भण्डारी। । 
सब भद्रभाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों। 
दुखिया न कोई होवे सृष्टि मे प्राण धारी। ।    

ऋग्वेद न केवल अखिल विश्व की मानवता की भलाई चाहता है बल्कि समस्त जीवधारियों/प्रांणधारियों के कल्याण की कामना करता है। वेदों मे निहित यह समानता की भावना ही साम्यवाद का मूलाधार है । जब मैक्स मूलर साहब भारत से मूल पांडुलिपियाँ ले गए तो उनके द्वारा किए गए जर्मन भाषा मे अनुवाद के आधार पर महर्षि कार्ल मार्क्स ने 'दास केपिटल'एवं 'कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो'की रचना की। महात्मा हेनीमेन ने 'होम्योपैथी' की खोज की और डॉ शुसलर ने 'बायोकेमी' की। होम्योपैथी और बायोकेमी हमारे आयुर्वेद पर आधारित हैं और आयुर्वेद आधारित है 'अथर्ववेद'पर। अथर्ववेद मे मानव मात्र के स्वास्थ्य रक्षा के सूत्र दिये गए हैं फिर इसके द्वारा नारियों की निंदा होने की कल्पना कहाँ से आ गई। निश्चय ही साम्राज्यवादियो के पृष्ठ-पोषक RSS/भाजपा/विहिप आदि के कुसंस्कारों को धर्म मान लेने की गलती का ही यह नतीजा है कि,कम्युनिस्ट और बामपंथी 'धर्म' का विरोध करते हैं । मार्क्स महोदय ने भी वैसी ही गलती समझने मे की जैसी कि मुद्रा राक्षस जी ने यथार्थ को समझने मे कर दी। यथार्थ से हट कर कल्पना लोक मे विचरण करने के कारण कम्युनिस्ट जन-समर्थन प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। नतीजा यह होता है कि शोषक -उत्पीड़क वर्ग और-और शक्तिशाली होता जाता है। 

आज समय की आवश्यकता है कि 'धर्म' को व्यापारियों/उद्योगपतियों के दलालों (तथाकथित धर्माचार्यों)के चंगुल से मुक्त कराकर जनता को वास्तविकता का भान कराया जाये।संत कबीर, दयानंद,विवेकानंद,सरीखे पाखंड-विरोधी भारतीय विद्वानों की व्याख्या के आधार पर वेदों को समझ कर जनता को समझाया जाये तो जनता स्वतः ही साम्यवाद के पक्ष मे आ जाएगी। काश साम्यवादी/बामपंथी विद्वान और नेता समय की नजाकत को पहचान कर कदम उठाएँ तो सफलता उनके कदम चूम लेगी।

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नोट -पिछली पोस्ट पर फुट नोट देखना न भूलें।    और यह लिंक भी देखने का कष्ट करें । 

Sunday, 15 June 2014

कुछ नए तरीके से ठोस कदम उठाए जायें--- कामरेड राकेश

लखनऊ :पहली मई  2014 :'मजदूर दिवस'की  साँय 05 बजे 22-क़ैसर बाग स्थित भाकपा,ज़िला काउंसिल कार्यालय पर 'मजदूर दिवस' की स्मृति में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था जिसका  संचालन सहायक जिलामंत्री कामरेड ओ पी अवस्थी ने किया था । प्रारम्भ में कामरेड जिलामंत्री   ने पहली मई 1886 ई में शिकागो में घटित मजदूरों की व्यापक रैली व आठ शहीदों के बलिदान का ऐतिहासिक विवरण दिया और इसमें मजदूर व मजदूर परिवारों की महिलाओं के विशेष योगदान को रेखांकित किया।  कामरेड अखिलेश सक्सेना ने आज के महत्व के साथ-साथ मजदूर की व्यथा पर एक काव्य का सशक्त प्रस्तुतीकरण किया। कामरेड ओ पी अवस्थी ने कुशल संचालन के साथ-साथ अपने अतीत के अनुभवों को बताते हुये सुनहरे भविष्य के संकेत दिये। कामरेड राकेश ने अतीत के साथ आज के मजदूर वर्ग की स्थितियों-परिस्थितियों का मार्मिक वर्णन करते हुये कुछ नए तरीके से ठोस कदम उठाए जाने का सुझाव दिया।

अंत में गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कामरेड विजय माथुर ने डॉ राज बहादुर गौड़ द्वारा दी गई मजदूर की परिभाषा की ओर गोष्ठी के भागीदारों का ध्यान खींचा। डॉ राज बहादुर गौड़ का अभिमत था कि 'मजदूर' ही वास्तविक 'उत्पादक' है। उत्पादन के अन्य चारों उपादान मजदूर के योग व सहयोग के बगैर निरर्थक व निष्क्रिय हैं। अतः विजय माथुर का कहना था कि हमें अपनी प्रचार-शैली में परिवर्तन करके मजदूर को उसके वास्तविक महत्व को समझाते हुये संगठित करना चाहिए जिससे कि वांछित सफलता शीघ्र मिल सके।


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यह तो थी 01-05-2014 को सम्पन्न  गोष्ठी की सूक्ष्म रिपोर्ट जिसे फेसबुक पर तब दिया गया था।  परंतु उत्तर प्रदेश इप्टा के महासचिव कामरेड राकेश ने भविष्य की योजना हेतु जो विचार व्यक्त किए थे  वे न केवल सराहनीय हैं वरन अनुकरणीय भी हैं। उनकी बताई बातों में से खास-खास का वर्णन करने से पहले कुछ और भी बातों का उल्लेख करना अप्रासंगिक न होगा। 



कामरेड राकेश :

कामरेड राकेश जी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि एक रस्म-अदायगी के तौर पर हर साल मजदूर दिवस पर अपने लोगों के बीच गोष्ठियाँ,नाटक,सांस्कृतिक कार्यक्रम इत्यादि कर लेने से न तो मजदूरों की समस्याओं का कोई निदान होगा न ही मजदूर एकजुट हो सकेंगे। उनका ज़ोर इस बात पर था कि हमें मजदूर बस्तियों तथा कारखानों के बीच जा कर मजदूरों को मजदूर दिवस के महत्व व इतिहास को समझाना चाहिए। मजदूर खुद जब तक प्रशिक्षित नहीं होगा तब तक अपने महत्व व कार्यक्षमता को समझ नहीं सकेगा हमें उसकी इस समझदारी को बढ़ाने व ऊपर उठाने के ठोस प्रयास करने चाहिए। 

राकेश जी ने कुछ सुझावों के रूप में उदाहरण दे कर स्पष्ट किया कि जैसे अभी किसान फसलों से निवृत हो चुका है। हल चलाने वाला किसान व खेतिहर मजदूर अभी खाली है हमें अपनी टीम बना कर रोजाना कुछ गावों का दौरा करना चाहिए और अपनी बात न कह कर उन लोगों की समस्याओं को सुनना व समझना चाहिए। उनको एकता का महत्व समझा कर एकजुट होने को प्रेरित करना चाहिए। 

राकेश जी का अभिमत था कि हम लोगों ने अपनी पुरानी परिपाटी का परित्याग कर दिया है इसलिए जनता से हमारी दूरी बन गई है जिसका लाभ शोषक शक्तियाँ उठा ले जाती हैं। उनका कहना था कि सिर्फ जोशीले भाषणों के जरिये हम जनता को अपने साथ नहीं ला सकते इसके लिए हमें उनके बीच जाकर उनकी बात समझना व अपनी बात समझाना होगा। उन्होने ज़िला पार्टी से मांग की थी कि कार्यक्रम बनाएँ तो वह व उनके साथी पूरा-पूरा सहयोग देंगे। 

राकेश जी का अनुमान सही है इसकी पुष्टि 16 मई को आए लोकसभा चुनाव परिणामों से हो गई है। लेकिन डेढ़ माह बाद भी जबकि मानसून सक्रिय होने वाला है और अब किसान व खेतिहर मजदूर भी सक्रिय हो जाएगा कोई कार्यक्रम सामने नहीं आया है। बल्कि अन्य जनहित के मुद्दों पर होने वाले कार्यक्रमों में भी लोगों को शामिल न होने देने के प्रयास किए जाते हैं। 1952 का प्रमुख संसदीय विपक्षी दल 2014 में 543 में से मात्र एक सीट हासिल कर सका है और ज़िले के इंचार्ज प्रदेश पदाधिकारी  अपने निजी हित में सांगठनिक संकुचन  के प्रयासों में तल्लीन रहते हैं। राकेश जी के विचारों पर अमल करके संगठन को सुदृढ़ करने के उनके सुझावों को महत्व मिलने का प्रश्न ही नहीं था। 

काश राकेश जी के सक्रियता संबंधी सुझावों को अमली जामा पहनाया जा सकता तो पार्टी की जनता में पहचान को फिर से कायम किया जा सके परंतु इससे  पार्टी लेवी व योगदान को एक इनवेस्टमेंट के रूप में इस्तेमाल करके उसका निजी लाभ उठाने वाले पदाधिकारी का निजी  धंधा चौपट हो जाने का खतरा है।

 

Wednesday, 4 June 2014

उतर प्रदेश महिलाओं के लिये तो कसाईघर बन कर रह गया है---डॉ. गिरीश, राज्य सचिव,भाकपा

 
पीड़ित परिवार की महिलाओं के साथ प्रो निशा राठौड़

 

CPI Release On Badaun

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Girish CPI

5:08 PM (2 hours ago)





भाकपा प्रतिनिधि मंडल ने किया कटरा सआदतगंज का दौरा- सपा समर्थकों और पुलिस को ठहराया घटना के लिये जिम्मेदार:



लखनऊ- ४ जून २०१४. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं उसके सहयोगी संगठनों के प्रतिनिधियों ने बदायूं जनपद के कटरा सआदतगंज पहुँच कर पीड़ित परिवार से भेंट की, उनके प्रति सहानुभूति प्रकट की तथा उस स्थल को भी देखा जिसमें दो किशोरियों के साथ बलात्कार के बाद उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था.

भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव डॉ. गिरीश के नेत्रत्व में वहां पहुंचे प्रतिनिधिमंडल में भाकपा की राष्ट्रीय परिषद् के सदस्य एवं हरियाणा प्रदेश के सचिव का. दरयाब सिंह कश्यप, पार्टी की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य का. अजय सिंह, राज्य काउन्सिल के सदस्य एवं गाज़ियाबाद के जिला सचिव का. जितेन्द्र शर्मा, बरेली के जिला सचिव राजेश तिवारी, बदायूं के जिला सचिव रघुराज सिंह, उत्तर प्रदेश महिला फेडरेशन की काउन्सिल सदस्य प्रोफेसर निशा राठोड़, जिला संयोजक विमला, भारतीय खेत मजदूर यूनियन के राष्ट्रीय सचिव का. विजेंद्र निर्मल, उत्तर प्रदेश किसान सभा के सचिव का. रामप्रताप त्रिपाठी, उपाध्यक्ष का. छीतरसिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर सदाशिव,बरेली से पार्टी के प्रत्याशी रहे का. मसर्रत वारसी, वरिष्ठ पार्टी नेता डी.डी. बेलवाल,  शाहजहांपुर के वरिष्ठ नेता का. सुरेश कुमार, का. प्रेमपाल सिंह, प्रवीण नेगी, सुरेन्द्र सिंह, सुखलाल भारती, सुरेन्द्र सिंह, हरपाल यादव, राकेश सिंह, रामप्रकाश, मुन्नालाल, राकेश सिंह सहित लगभग ५० कार्यकर्ता शामिल थे जो आठ गाड़ियों के काफिले के साथ वहां पहुंचे थे.

प्रतिनिधि मंडल को पीड़ित परिवार एवं उपस्थित महिलाओं ने बताया कि गाँव के दबंग लोग जो समाजवादी पार्टी के समर्थक हैं, अक्सर गाँव के कमजोर परिवारों की महिलाओं और किशोरियों से अशोभनीय व्यवहार करते हैं. उनके पशु कमजोर तबकों के किसानों के खेतों में चरते हैं और कोई उनसे मना करने की हिम्मत जुटाता है तो उसके साथ मारपीट करते हैं. एक गरीब महिला ने बताया कि उसके बेटे की पिछले वर्ष हत्या करदी गई और आज तक पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की. पुलिस हर मामले में और हमेशा इन दबंगों का ही साथ देती है और यह दमन चक्र सपा की सरकार आते ही और बढ़ जाता है. महिलाओं ने बताया कि गाँव में शौचालयों का बेहद अभाव है. शिक्षा के लिये कोई कालेज भी नहीं है.

उनकी पीड़ा इस बात को लेकर भी झलकी कि अभी तो सभी लोग यहाँ आ- जा रहे हैं, जब कुछ दिनों बाद लोगों का आना- जाना बंद होजायेगा तो गाँव के ये दबंग तत्व फिर दबंगई करेंगे.

प्रतिनिधिमंडल की और से डॉ. गिरीश ने उपस्थित लोगों से कहा कि हम लोग आपका दर्द बाँटने आये हैं सहानुभूति के दो शब्द कहने आये हैं तथा आपकी आवाज को आवाज देने का भरोसा दिलाने आये हैं. हमारे पास अन्य दलों की तरह देने को न धन है न झूठे बायदे. न ही हम औरों की तरह वोट की राजनीति करते हैं. हम पीड़ित परिवार की प्रशंसा करते हैं कि आज के युग में जब लोग एक एक पैसे  के लिए सर्वस्व लुटाने को तैय्यार हैं इस परिवार ने सरकार की मदद को ठुकरा दिया अपराधियों को सजा दिलाने की दृढ़ता दिखाई. सभी लोगों ने भाकपा की इस भावना को सराहनीय बताया.

भाकपा की यह स्पष्ट राय है कि सआदतगंज की इस घटना के लिए स्थानीय पुलिस पूरी तरह जिम्मेदार है. वह वहां अपराधियों को प्रश्रय देने में जुटी थी और पीड़ित परिवार को ही डरा धमका रही थी. राज्य सरकार कई दिनों तक अपराधियों के प्रति सहानुभूति का रवैय्या अख्तियार किये रही. ठीक उसी तरह जैसे सी.ओ. पुलिस जिया उल हक हत्याकांड में अपनाती रही थी. वह तब हरकत में आयी जब मामला काफी तूल पकड़ गया.

भाकपा मांग करती है कि पीड़ित परिवार और गाँव के अन्य कमजोरों की जान माल और आबरू की सुरक्षा हेतु कड़े कदम उठाये जायें, वहां थाने और चौकियों पर कमजोर वर्गों से आने वाला स्टाफ तैनात किया जाये, तत्कालीन थानाध्यक्ष उसैहत सहित तमाम दोषी पुलिसजनों को सस्पेंड किया जाये, मृतक दोनों बहिनों के नाम पर वहां एक सरकारी बालिका विद्यालय खोला जाये, हर घर में शौचालय बनबाये जायें तथा अति पिछड़े इस क्षेत्र के विकास के लिए वहां सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योग लगाए  जायें.

डॉ. गिरीश ने कहा है कि आज उतर प्रदेश महिलाओं के लिये तो कसाईघर बन कर रह गया है. हर दिन प्रदेश भर में लगभग दर्जनभर महिलाओं के साथ दरिंदगी की ख़बरें मिल रहीं हैं. प्रदेश की कानून व्यवस्था समाप्त ही होगयी है. इसकी नैतिक जिम्मेदारी मुख्यमंत्री को अपने ऊपर लेनी चाहिये और सरकार को त्यागपत्र देदेना चाहिये.

भाकपा ने महिलाओं की सुरक्षा के प्रश्न पर व्यापक आन्दोलन छेड़ने का निश्चय किया है. प्रदेश भर में जन जागरण छेड़ दिया है और १२ जून को भाकपा “महिलाओं की रक्षा करो” नारे के साथ सभी जिला मुख्यालयों पर धरने प्रदर्शनों का आयोजन करेगी.


डॉ. गिरीश, राज्य सचिव