Wednesday, 25 June 2014
पहला माह कारपोरेटों को लाभ पहुँचाने और आमजनों की कठिनाइयाँ बढ़ाने वाला ही दिखा---डॉ गिरीश
मोदी सरकार का एक माह- अच्छे दिनों की बदरंग शुरुआत:
किसी भी सरकार के मूल्यांकन के लिये एक माह का कार्यकाल पर्याप्त नहीं कहा जा सकता. लेकिन केंद्र सरकार ने एक माह में जिस तरह ताबड़तोड़ फैसले लिये हैं और आम जनता में इसकी जैसी तीखी प्रतिक्रिया हुई है उसके चलते बरबस ही सरकार के कामकाज पर चर्चा शुरू होगयी है.
शुरुआत चुनाव नतीजे आते ही होगयी थी.
रोम जब जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था :
भारतीय जनता पार्टी को इस बार पर्याप्त बहुमत हासिल हुआ है अतएव उसे सरकार गठन के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं करनी थी. फिर भी उसने परिणामों के ठीक दस दिन बाद- २६ मई को भव्य शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया. लोकतंत्र में राजतंत्र जैसा शपथग्रहण आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला. सभी पड़ोसी क्षत्रपों को शपथग्रहण समारोह का आमंत्रण दिया गया था. अम्बानी, अदानी जैसे धनपति और कई फिल्म सेलिब्रिटी समारोह के खास मेहमान थे. तो फिर व्यवस्था भी भव्य की ही जानी थी. लेकिन पूरे दस दिनों तक इतने बड़े देश में कोई जबाबदेह सरकार नहीं थी. इसकी जिम्मेदारी तो फिर भाजपा की ही बनती है. इसका पहला खामियाजा गोरखधाम एक्सप्रेस के उन निर्दोष रेल यात्रियों को भुगतना पड़ा जो शपथग्रहण के दिन ही दुर्घटनाग्रस्त होगयी और लगभग दो दर्जन लोग काल कवलित होगये. इधर मृतकों और घायलों के परिवारीजनों का करुण क्रंदन जारी था और उधर राजतिलक का लकदक आयोजन चल रहा था. कहाबत है रोम जब जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था. ऐसा यदि किसी अन्य दल ने किया होता तो भाजपा ने जरूर आसमान सिर पर उठा लिया होता. लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद भी श्री मोदी ने समारोह को सादगी से आयोजित करने की सदाशयता नहीं दिखाई.
काले धन वालों के तो अच्छे दिन:
सरकार के आगाज के साथ ही सेंसेक्स ने जो छलांग लगाई, शेयर बाज़ार के बड़े खिलाड़ी मालामाल होगये. सोने का आयात खोल दिया गया और परिणामतः सोने के दाम काफी नीचे आगये. आम लोगों को भ्रम हुआ कि उनके अच्छे दिन आगये और अब वे भी सस्ते सोने के आभूषण पहन सकेंगे. लेकिन उनका यह सपना पलक झपकते ही धूल धूसरित होगया और सोने की कीमतें फिर से चढ़ने लगीं. लेकिन इस बीच काले धन वालों ने जम कर सोना खरीदा और अब उसे वह ऊंची कीमतों पर बेचेंगे. उनके तो अच्छे दिन आही गये.
विपक्ष खासकर वामपंथी विपक्ष लगातार कहता रहा है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही आर्थिक नवउदारवाद की नीतियों की पोषक हैं अतएव महंगाई भ्रष्टाचार एवं बेरोजगारी जैसे सवालों पर जनता को भाजपा से ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिये. यह तब स्पष्ट होगया जब केंद्र सरकार ने अपने जश्नकाल में ही डीजल की कीमतें बड़ा कर महंगाई बढ़ने देने का रास्ता खोल दिया और मई माह में थोक और खुदरा बाज़ार में महंगाई ने बढ़त जारी रखी. अब रेल किराये में १४.२प्रतिशत और मालभाड़े में ६.४प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर महंगाई को छलांग लगाने का रास्ता हमबार कर दिया. रही सही कमी चीनी पर आयात शुल्क में १५ के स्थान पर ४०प्रतिशत की वृध्दि ने कर दी. निर्यात पर प्रति टन रु. ३३०० की दर से दी जाने वाली सब्सिडी को सितंबर तक बढ़ा दिया गया. पेट्रौल में दस प्रतिशत एथनाल मिलाने की छूट दे दी. परिणामस्वरूप बाज़ार में एक ही झटके में चीनी के दामों में एक रु. प्रति किलो की बढोत्तरी होगयी जो चंद दिनों में रु.३.०० प्रति किलो तक जा सकती है. एक तरफ उपभोक्ताओं पर भीषण कहर वरपा किया गया वहीं चीनी उद्योग समूह को रु.४४०० करोड़ का व्याजमुक्त अतिरिक्त ऋण देने का निर्णय भी ले डाला. पूर्ववर्ती केंद्र सरकार पहले ही इस मद में रु.६६०० करोड़ दे चुकी है. यह सब किसानों के मिलों पर बकाये के भुगतान के नाम पर किया जारहा है. नीति वही पुरानी है केवल अमल करने वाले बदल गये हैं. आज भी यह सब कुछ विकास के नाम पर किया जारहा है.
जनविरोधी इन नीतियों की फिराक में विभाजनकारी एजेंडे:
दिन दो दिन में गैस और केरोसिन के दाम बढ़ाये जाने हैं जो चौतरफा महंगाई वृध्दि का रास्ता खोलेंगे. प्याज के दामों में वृध्दि जारी है और वह रुलाने के स्तर तक पहुँच कर ठहरेगी. आम बजट और रेल बजट की तस्वीर भी कुछ कुछ दिखाई देने लगी है.
जनविरोधी इन नीतियों को आसानी से लोगों के गले उतारने की फिराक में विभाजनकारी एजेंडे को पहले ही दिन से चालू कर दिया गया. अनुच्छेद ३७० और कामन सिविलकोड पर अलग अलग प्रवक्ता पैरवी करते दिखे. राम मन्दिर का निर्माण अभी ठन्डे बस्ते में है लेकिन बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं के दोहन के लिये गंगा की शुध्दि को साइन बोर्ड के तौर पर स्तेमाल किया जारहा है. गंगा की शुध्दि के लिये कड़े नैतिक कदम उठाने की जरूरत है पर एनडीए सरकार मुद्दे को सिर्फ गरमाए रखना चाहती है. सोशल मीडिया पर हिंदी के प्रयोग को बलात लादने के गृह मन्त्रालय के फैसले को भी इसी श्रेणी में रखा जारहा है. इराक युध्द को लेकर भी केंद्र सरकार अँधेरे में हाथ पैर मार रही है और वहां फंसे भारतीय कार्मिकों की सुरक्षित वापसी के लिये कुछ भी नहीं कर पायी है.
यहाँ बहुत याद करने पर भी एक माह में सरकार का एक भी काम याद नहीं आपारहा जिसे आम जनता के लिये अच्छे दिनों की शुरूआत माना जासके. जनता का दोहन करने वालों के लिये अच्छे दिनों की शुरुआत अवश्य होगयी. मोदी ने जब कुछ कठोर कदम उठाने की बात की थी तो सभी ने अलग अलग अलग मायने निकाले थे. कुछ ने माना था कि बेतहाशा दौलत वालों को कटघरे में लाया जायेगा. काले धनवालों की एक सूची भी सरकार के पास है. लगा कि उन पर कार्यवाही होगी. बैंकों के बड़े बकायेदारों से बसूली का मामला भी सरकार के सामने है. लोग उम्मीद कर रहे हैं कि छप्पन इंच के सीने वाला प्रधानमन्त्री अवश्य ही कुछ करेगा. लेकिन पहला माह कारपोरेटों को लाभ पहुँचाने और आमजनों की कठिनाइयाँ बढ़ाने वाला ही दिखा. निश्चय ही जनता आने वाले माहों में अच्छे दिनों के आने की उम्मीद लगाये बैठी है
https://www.facebook.com/dr.girishcpi/posts/242585582617484
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Bhuwan Chandr's photo.
ReplyDelete25 minutes ago
अदानी अबानी ग्रुप समूहों का विस्तार ।
विषय : राजनीतिक शास्त्र
नोट : सभी प्रश्नों के उत्तर अनिवार्य है प्रत्येक प्रश्न के 2 अंक है । पास होने के लिए 14 अंक लाने अनिवार्य है ।
निचे दिए गए सवालों के जवाबों के आधार पर आप मेरे अंक निर्धारित कर कमेंट्स में अंकित कर सकते है ।
....................................
1) वर्तमान सरकार की संसदीय कार्य प्रणाली ?
उ. - तानाशाही ।
2) वर्तमान सरकार की इस्थती सपष्ट कीजिये ?
उ. - अप्शिस्ट पदार्थों का मिला जुला मिश्रण ।
3) वर्तमान सरकार के आंकलन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उ.- अच्छे दिन ।
4) वर्तमान सरकार की लोकप्रियता के कोई 2 कारण बातायें ?
उ.- मिडिया 24×7 , अंधभक्ति 24×7 ।
5) वर्तमान सरकार का अलोकप्रिय होने का सबसे बड़ा कारक ?
उ.- झंडू आर एस ब्रांड ।
6) वर्तमान सरकार का एक मात्र लक्ष्य या उदेश्य ?
उ.- अदृश्य गुजरात मॉडल की स्थापना ।
7) वर्तमान सरकार द्वारा किस प्रथा को बल मिलेगा ?
उ.- बनिया प्रथा ।
8) वर्तमान सरकार का मंत्रिमंडल कैसा है ?
उ.- लक्ष्यविहीन ।
9) वर्तमान सरकार की महत्वकांक्षी योजनाएं ?
उ.- अदानी अबानी ग्रुप समूहों का विस्तार ।
10 ) वर्तमान सरकार में किस समुदाय का वर्चस्व दिखाई देता है ?
उ. - उल्लू समुदाय ।