Sunday, 15 June 2014

कुछ नए तरीके से ठोस कदम उठाए जायें--- कामरेड राकेश

लखनऊ :पहली मई  2014 :'मजदूर दिवस'की  साँय 05 बजे 22-क़ैसर बाग स्थित भाकपा,ज़िला काउंसिल कार्यालय पर 'मजदूर दिवस' की स्मृति में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था जिसका  संचालन सहायक जिलामंत्री कामरेड ओ पी अवस्थी ने किया था । प्रारम्भ में कामरेड जिलामंत्री   ने पहली मई 1886 ई में शिकागो में घटित मजदूरों की व्यापक रैली व आठ शहीदों के बलिदान का ऐतिहासिक विवरण दिया और इसमें मजदूर व मजदूर परिवारों की महिलाओं के विशेष योगदान को रेखांकित किया।  कामरेड अखिलेश सक्सेना ने आज के महत्व के साथ-साथ मजदूर की व्यथा पर एक काव्य का सशक्त प्रस्तुतीकरण किया। कामरेड ओ पी अवस्थी ने कुशल संचालन के साथ-साथ अपने अतीत के अनुभवों को बताते हुये सुनहरे भविष्य के संकेत दिये। कामरेड राकेश ने अतीत के साथ आज के मजदूर वर्ग की स्थितियों-परिस्थितियों का मार्मिक वर्णन करते हुये कुछ नए तरीके से ठोस कदम उठाए जाने का सुझाव दिया।

अंत में गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कामरेड विजय माथुर ने डॉ राज बहादुर गौड़ द्वारा दी गई मजदूर की परिभाषा की ओर गोष्ठी के भागीदारों का ध्यान खींचा। डॉ राज बहादुर गौड़ का अभिमत था कि 'मजदूर' ही वास्तविक 'उत्पादक' है। उत्पादन के अन्य चारों उपादान मजदूर के योग व सहयोग के बगैर निरर्थक व निष्क्रिय हैं। अतः विजय माथुर का कहना था कि हमें अपनी प्रचार-शैली में परिवर्तन करके मजदूर को उसके वास्तविक महत्व को समझाते हुये संगठित करना चाहिए जिससे कि वांछित सफलता शीघ्र मिल सके।


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यह तो थी 01-05-2014 को सम्पन्न  गोष्ठी की सूक्ष्म रिपोर्ट जिसे फेसबुक पर तब दिया गया था।  परंतु उत्तर प्रदेश इप्टा के महासचिव कामरेड राकेश ने भविष्य की योजना हेतु जो विचार व्यक्त किए थे  वे न केवल सराहनीय हैं वरन अनुकरणीय भी हैं। उनकी बताई बातों में से खास-खास का वर्णन करने से पहले कुछ और भी बातों का उल्लेख करना अप्रासंगिक न होगा। 



कामरेड राकेश :

कामरेड राकेश जी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि एक रस्म-अदायगी के तौर पर हर साल मजदूर दिवस पर अपने लोगों के बीच गोष्ठियाँ,नाटक,सांस्कृतिक कार्यक्रम इत्यादि कर लेने से न तो मजदूरों की समस्याओं का कोई निदान होगा न ही मजदूर एकजुट हो सकेंगे। उनका ज़ोर इस बात पर था कि हमें मजदूर बस्तियों तथा कारखानों के बीच जा कर मजदूरों को मजदूर दिवस के महत्व व इतिहास को समझाना चाहिए। मजदूर खुद जब तक प्रशिक्षित नहीं होगा तब तक अपने महत्व व कार्यक्षमता को समझ नहीं सकेगा हमें उसकी इस समझदारी को बढ़ाने व ऊपर उठाने के ठोस प्रयास करने चाहिए। 

राकेश जी ने कुछ सुझावों के रूप में उदाहरण दे कर स्पष्ट किया कि जैसे अभी किसान फसलों से निवृत हो चुका है। हल चलाने वाला किसान व खेतिहर मजदूर अभी खाली है हमें अपनी टीम बना कर रोजाना कुछ गावों का दौरा करना चाहिए और अपनी बात न कह कर उन लोगों की समस्याओं को सुनना व समझना चाहिए। उनको एकता का महत्व समझा कर एकजुट होने को प्रेरित करना चाहिए। 

राकेश जी का अभिमत था कि हम लोगों ने अपनी पुरानी परिपाटी का परित्याग कर दिया है इसलिए जनता से हमारी दूरी बन गई है जिसका लाभ शोषक शक्तियाँ उठा ले जाती हैं। उनका कहना था कि सिर्फ जोशीले भाषणों के जरिये हम जनता को अपने साथ नहीं ला सकते इसके लिए हमें उनके बीच जाकर उनकी बात समझना व अपनी बात समझाना होगा। उन्होने ज़िला पार्टी से मांग की थी कि कार्यक्रम बनाएँ तो वह व उनके साथी पूरा-पूरा सहयोग देंगे। 

राकेश जी का अनुमान सही है इसकी पुष्टि 16 मई को आए लोकसभा चुनाव परिणामों से हो गई है। लेकिन डेढ़ माह बाद भी जबकि मानसून सक्रिय होने वाला है और अब किसान व खेतिहर मजदूर भी सक्रिय हो जाएगा कोई कार्यक्रम सामने नहीं आया है। बल्कि अन्य जनहित के मुद्दों पर होने वाले कार्यक्रमों में भी लोगों को शामिल न होने देने के प्रयास किए जाते हैं। 1952 का प्रमुख संसदीय विपक्षी दल 2014 में 543 में से मात्र एक सीट हासिल कर सका है और ज़िले के इंचार्ज प्रदेश पदाधिकारी  अपने निजी हित में सांगठनिक संकुचन  के प्रयासों में तल्लीन रहते हैं। राकेश जी के विचारों पर अमल करके संगठन को सुदृढ़ करने के उनके सुझावों को महत्व मिलने का प्रश्न ही नहीं था। 

काश राकेश जी के सक्रियता संबंधी सुझावों को अमली जामा पहनाया जा सकता तो पार्टी की जनता में पहचान को फिर से कायम किया जा सके परंतु इससे  पार्टी लेवी व योगदान को एक इनवेस्टमेंट के रूप में इस्तेमाल करके उसका निजी लाभ उठाने वाले पदाधिकारी का निजी  धंधा चौपट हो जाने का खतरा है।

 

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