उत्तर प्रदेश विधान सभा के उपचुनावों में प्रदेश के मतदाताओं से भाकपा की अपील
आपसी मेल-मिलाप बढ़ाने! महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी पर लगाम लगाने!
महिलाओं, कमजोर वर्गों पर अत्याचार रोके जाने तथा अपने विधान सभा क्षेत्र
एवं जनपद के समग्र विकास के लिये!
हंसिया-बाली के चुनाव निशान के सामने वाला बटन दबायें! भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशियों को सफल बनायें!
उत्तर प्रदेश के मतदाता भाइयो और बहिनो!
अभी हाल ही में हुये लोकसभा के चुनावों में आप सभी ने बड़ी ही उम्मीद और
आशा के साथ एक पार्टी को भारी बहुमत देकर केन्द्र की गद्दी पर पहुंचाया था.
लेकिन इस सरकार को काम करते हुये अभी सौ दिन भी नहीं हुये हैं और इस सरकार
से सभी को गहरी निराशा हाथ लगी है.
हमारी सीमाओं के पार से तड़-तड़
गोलियां चल रही हैं और सीमाओं के रक्षक हमारे जवान लगातार शहीद होरहे हैं.
सत्ता में आने के बाद इस सरकार ने पिछली केन्द्र सरकार की नीतियों को और भी
जोर-शोर से लागू किया है और डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस, रेल किराया और
मालभाड़े की दरों में भारी बढ़ोत्तरी की है. इससे हर चीज की कीमतें आसमान
छूरही हैं और महंगाई की मार से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है. भ्रष्टाचार
के खिलाफ बड-चड़ कर बातें करने वालों की यह सरकार अपने थोड़े समय के कार्य
काल में ही तमाम आरोपों में घिरती जारही है. केन्द्र सरकार के पहले बजट ने
ही विकास के इसके दाबों की कलई खोल कर रख दी. बेरोजगार नौजवानों, छात्रों,
महिलाओं, किसानों, मजदूरों, दस्तकारों, दलितों, अल्पसंख्यकों और पिछड़ों सभी
को इसने निराश किया है. जनता ने भाजपा को इस आशा से वोट दिये थे कि उनके
अच्छे दिन आयेंगे, लेकिन आगये बेहद बुरे दिन. यह पार्टी और इसकी सरकार पूरी
तरह पूंजीपतियों और कार्पोरेट घरानों के हित में काम कर रही है और आम जनता
को तवाह कर रही है. इससे केन्द्र सरकार के प्रति जनता में गुस्सा पैदा
होरहा है. जिसका प्रमाण है हाल ही में उत्तराखण्ड, बिहार, कर्नाटक, पंजाब,
मध्य प्रदेश के उपचुनाव जहां भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली. अब तो
भाजपा की अंतर्कलह भी खुलकर सामने आगयी है. इस सबसे जनता का ध्यान बंटाने
और उसे आपस में लड़ाने को भाजपा द्वारा तरह तरह के हथकंडे अपनाये जारहे हैं.
सांप्रदायिकता को खास औजार बनाया जारहा है.
उत्तर प्रदेश की सरकार ने
भी आम जनता को हर मोर्चे पर निराश किया है. हर तरह के अपराध बड रहे हैं.
महिलाओं और यहां तक कि अबोध बालिकाओं के साथ दुराचार और उसके बाद उनकी
हत्या आम बात होगयी है. हत्या, लूट, राहजनी आदि हर तरह के अपराध बड रहे
हैं. सांप्रदायिक दंगों को काबू करने में सरकार की हीला हवाली साफ दिखाई
देरही है. एक तिहाई उत्तर प्रदेश को बाढ़ ने तो शेष को भयंकर सूखे ने तवाह
कर दिया है. सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है. पीड़ित किसानों ने आत्म हत्याएं
करना शुरू कर दीं हैं. अभूतपूर्व बिजली संकट से हर कोई परेशान है. किसानों
का चीनी मिलों पर करोड़ों रुपया बकाया है जिसे अदा नहीं कराया जारहा. डीजल
आदि खेती के लिये जरूरी चीजों पर राज्य सरकार ने टैक्स बढ़ा दिया है. राशन
प्रणाली में लूट मची है. बेरोजगारी से निपटने को कारगर कदम नहीं उठाये
जारहे, शिक्षा को व्यापार बना डाला है. शिक्षा बेहद महंगी है अतएव आम बच्चे
शिक्षा नहीं लेपारहे. बेकारी भत्ता और लैपटाप आदि भी देना बंद कर दिया गया
है. इलाज भी आज बहुत ही महंगा होगया है. सडकों का बुरा हाल है. भ्रष्टाचार
ने सभी को तवाह किया हुआ है और गुंडे अपराधी माफिया दलाल सभी खुशहाल हैं.
केंद्र और राज्य सरकार को अपने इन कदमों को पीछे खींचने को मजबूर करना
होगा. इसके लिये संसद और विधान सभा के भीतर और बाहर संघर्ष करना होगा.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आजादी की लड़ाई से लेकर आज तक किसानों,
कामगारों और आम जनता के हित में लगातार आवाज उठाई. है. हमें गर्व है कि हम
पर आजतक भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप नहीं लगा. सांप्रदायिकता और जातिवाद
जैसी बुराइयों से हम कोसों दूर हैं. महंगाई भ्रष्टाचार बेकारी और अशिक्षा
को दूर करने को हम जुझारू आन्दोलन करते रहे हैं. जातिगत लैंगिक समानता और
आपसी भाईचारे के लिये हम हमेशा प्रतिबद्ध रहे हैं. हमारी समझ है कि देश और
समाज की आज की समस्यायों का निदान मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था में संभव नहीं
है. आजादी को आये ६७ वर्ष बीत गये और हमारी समस्यायें जस की तस बनी हुयी
हैं. इन समस्यायों का समाधान केवल समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है और
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी समाजवादी समाज का निर्माण करने को प्रतिबध्द है.
लेकिन ये चुनाव मध्यावधि चुनाव है. केन्द्र अथवा राज्य सरकार बनाने के
लिये नहीं. अतएव इन चुनावों में आप भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के
प्रत्याशियों को अवश्य ही मौका दे सकते हैं. यदि आपके क्षेत्र से भाकपा
प्रत्याशी विजयी होगा तो आपकी समस्याओं के समाधान तथा क्षेत्र के विकास के
लिये निश्चय ही वह औरों से अधिक जोरदारी से आवाज बुलंद करेगा. वह हर वक्त
आपकी सेवा और सहयोग के लिये आपके बीच रहेगा.
अपनी सीमित ताकत और सीमित
साधनों के चलते प्रदेश में भाकपा ने केवल चार स्थानों पर अपने प्रत्याशी
उतारे हैं. वे हैं – नोएडा से प्रोफेसर सदासिव चामर्थी, सिराथू से शिवसिंह
यादव, हमीरपुर से श्यामबाबू तिवारी तथा लखनऊ पूर्व से राजपाल यादव.
अतएव आप सभी से विनम्र अनुरोध है कि आप १३ सितंबर को होने जा रहे विधानसभा
के उपचुनावों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह
हंसिया और बाल के सामने वाला बटन दबा कर भारी बहुमत से सफल बनायें तथा
भाकपा प्रत्याशियों एवं भाकपा उत्तर प्रदेश इकाई की तन मन धन से मदद करें.
निवेदक
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश राज्य काउन्सिल
२२, कैसरबाग, लखनऊ
साभार :
https://www.facebook.com/dr.girishcpi/posts/272519279624114
Saturday, 30 August 2014
Thursday, 21 August 2014
एथीस्टवादी संप्रदाय और विभिन्न पाखंडी संप्रदाय परस्पर अन्योनाश्रित हैं :-विजय राजबली माथुर
एथीस्टवादी संप्रदाय और विभिन्न पाखंडी संप्रदाय परस्पर अन्योनाश्रित हैं :
तो यह है 'मार्क्स वाद ' का असली रूप 'एथीस्टवादियों ' की नज़र में जो 'बड़ी मछली ,छोटी मछली 'के खेल में लगे हुये हैं क्या ऐसे ही साम्यवाद या मार्क्स वाद लागू हो पाएगा?-----:
इस रिश्वतखोर इंजीनियर को कोतवाली से छुड़ाने वालों की टीम में वामपंथी ट्रेड यूनियन नेता भी शामिल हैं। आगरा में एक ट्रेड यूनियन नेता के मुख से सुना था कि भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बन चुका है। एक प्रदेश स्तर के बैंक कर्मचारी नेता अपने पद के आधार पर विभिन्न बैंकों के मेनेजर्स से धन उगाही करते हैं तथा साथी कर्मियों को डरा कर चुप करा देते हैं। क्या इन गतिविधियों से साम्यवाद और वामपंथ मजबूत होगा व देश में अपनी जड़ें जमा सकेगा? एक सी पी एम नेता की पत्रकार पुत्री खुलेआम लिखती हैं कि ट्रेड यूनियन नेता खुद तो मौज-मस्ती करते हैं और उनकी पत्नियाँ कालेज या दफ्तर में रोजगार करके परिवारों का पोषण करती हैं तब क्या इसे महिलाओं के उत्पीड़न की श्रेणी में न रखा जाये? ऐसे मार्क्सवाद के स्वयंभू ठेकेदारों ने मार्क्स को जड़ मूर्ती में परिवर्तित कर दिया है और लकीर के फकीर बन कर बावले की भांति सिर्फ हो-हल्ला मचाते रहते हैं। यह कैसा साम्यवाद/मार्कसवाद है? जनता पर इसका कैसे प्रभाव पड़ेगा?'एथीस्ट' और 'वामपंथी' कहलाने वाले लोगों के श्रीमुख से निकले वचनों का अवलोकन करें:
इस पर मैंने यह प्रतिक्रिया दी थी :
लेकिन इन एथीस्टवादियों को महान उपन्यासकार अमृत लाल नागर जी के 'मानस का हंस' में वर्णित इस तथ्य पर भी गौर करना चाहिए कि तुलसी दास जी को मांग कर खाने व मस्जिद में शरण लेकर जान बचाने के लिए बनारस के पोंगा पंडितों ने मजबूर किया था। अफलातून अफ़लू साहब ने अपने ब्लाग में विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है:
"जन्म
गत ब्राह्मण चाहे खुद को कितना भी एथीस्ट घोषित करें होते हैं घोर
जातिवादी वे नहीं चाहते कि सच्चाई कभी भी जनता के समक्ष स्पष्ट हो क्योंकि
उस सूरत में व्यापार जगत के भले के लिए पोंगा पंथियों द्वारा की गई भ्रामक
व्याख्याओं की पोल खुल जाएगी और परोपजीवी जाति की आजीविका संकट में पड़
जाएगी।
तुलसी दास जी द्वारा लिखित रामचरित मानस की क्रांतिकारिता,राजनीतिक सूझ-बूझ और कूटनीति के सफल प्रयोग पर पर्दा ढके रहने हेतु मानस में ऐसे लोगों के पूर्वजों ने प्रक्षेपक घुसा कर तुलसी दास जी को बदनाम करने का षड्यंत्र किया है तथा राम को अवतारी घोषित करके उनके कृत्यों को अलौकिक कह कर जनता को बहका रखा है। ढ़ोल,गंवार .... वाले प्रक्षेपक द्वारा बहुसंख्यक तथा कथित दलितों को तुलसी और मानस से दूर रखा जाता है क्योंकि यदि वे समझ गए कि 'काग भुशुंडी' से 'गरुण' को उपदेश दिलाने वाले तुलसी दास उनके शत्रु नहीं मित्र थे। पार्वती अर्थात एक महिला की जिज्ञासा पर शिव ने 'काग भुशुंडी-गरुण संवाद' सुनाया जो तुलसी द्वारा मानस के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसी वजह से काशी के ब्राह्मण तुलसी दास की जान के पीछे पड़ गए थे उनकी पांडु-लिपियाँ जला देते थे तभी उनको 'मस्जिद' में शरण लेकर जान बचानी पड़ी थी और अयोध्या आकार ग्रंथ की रचना करनी पड़ी थी । इसके द्वारा तत्कालीन मुगल-सत्ता को उखाड़ फेंकने का जनता से आह्वान किया गया था । साम्राज्यवादी रावण का संहार राम व सीता की सम्मिलित कूटनीति का परिणाम था। ऐसी सच्चाई जनता समझ जाये तो ब्राह्मणों व व्यापारियों का शोषण समाप्त करने को एकजुट जो हो जाएगी। अतः विभिन्न राजनीतिक दलों में घुस कर ब्राह्मणवादी जनता में फूट डालने के उपक्रम करते रहते हैं। क्या जनता को जागरूक करना पागलपन होता है?"
क्योंकि उससे पूर्व यह पोस्ट आई थी जिसे एथीस्टों के दबाव में थोड़ी देर बाद ही डिलीट कर दिया गया था। :
http://krantiswar.blogspot.in/2014/08/blog-post.html |
http://krantiswar.blogspot.in/2014/08/blog-post_9.html |
तो यह है 'मार्क्स वाद ' का असली रूप 'एथीस्टवादियों ' की नज़र में जो 'बड़ी मछली ,छोटी मछली 'के खेल में लगे हुये हैं क्या ऐसे ही साम्यवाद या मार्क्स वाद लागू हो पाएगा?-----:
इस रिश्वतखोर इंजीनियर को कोतवाली से छुड़ाने वालों की टीम में वामपंथी ट्रेड यूनियन नेता भी शामिल हैं। आगरा में एक ट्रेड यूनियन नेता के मुख से सुना था कि भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बन चुका है। एक प्रदेश स्तर के बैंक कर्मचारी नेता अपने पद के आधार पर विभिन्न बैंकों के मेनेजर्स से धन उगाही करते हैं तथा साथी कर्मियों को डरा कर चुप करा देते हैं। क्या इन गतिविधियों से साम्यवाद और वामपंथ मजबूत होगा व देश में अपनी जड़ें जमा सकेगा? एक सी पी एम नेता की पत्रकार पुत्री खुलेआम लिखती हैं कि ट्रेड यूनियन नेता खुद तो मौज-मस्ती करते हैं और उनकी पत्नियाँ कालेज या दफ्तर में रोजगार करके परिवारों का पोषण करती हैं तब क्या इसे महिलाओं के उत्पीड़न की श्रेणी में न रखा जाये? ऐसे मार्क्सवाद के स्वयंभू ठेकेदारों ने मार्क्स को जड़ मूर्ती में परिवर्तित कर दिया है और लकीर के फकीर बन कर बावले की भांति सिर्फ हो-हल्ला मचाते रहते हैं। यह कैसा साम्यवाद/मार्कसवाद है? जनता पर इसका कैसे प्रभाव पड़ेगा?'एथीस्ट' और 'वामपंथी' कहलाने वाले लोगों के श्रीमुख से निकले वचनों का अवलोकन करें:
इस पर मैंने यह प्रतिक्रिया दी थी :
लेकिन इन एथीस्टवादियों को महान उपन्यासकार अमृत लाल नागर जी के 'मानस का हंस' में वर्णित इस तथ्य पर भी गौर करना चाहिए कि तुलसी दास जी को मांग कर खाने व मस्जिद में शरण लेकर जान बचाने के लिए बनारस के पोंगा पंडितों ने मजबूर किया था। अफलातून अफ़लू साहब ने अपने ब्लाग में विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है:
Vijai RajBali Mathur added 3 new photos.
तुलसी दास जी द्वारा लिखित रामचरित मानस की क्रांतिकारिता,राजनीतिक सूझ-बूझ और कूटनीति के सफल प्रयोग पर पर्दा ढके रहने हेतु मानस में ऐसे लोगों के पूर्वजों ने प्रक्षेपक घुसा कर तुलसी दास जी को बदनाम करने का षड्यंत्र किया है तथा राम को अवतारी घोषित करके उनके कृत्यों को अलौकिक कह कर जनता को बहका रखा है। ढ़ोल,गंवार .... वाले प्रक्षेपक द्वारा बहुसंख्यक तथा कथित दलितों को तुलसी और मानस से दूर रखा जाता है क्योंकि यदि वे समझ गए कि 'काग भुशुंडी' से 'गरुण' को उपदेश दिलाने वाले तुलसी दास उनके शत्रु नहीं मित्र थे। पार्वती अर्थात एक महिला की जिज्ञासा पर शिव ने 'काग भुशुंडी-गरुण संवाद' सुनाया जो तुलसी द्वारा मानस के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसी वजह से काशी के ब्राह्मण तुलसी दास की जान के पीछे पड़ गए थे उनकी पांडु-लिपियाँ जला देते थे तभी उनको 'मस्जिद' में शरण लेकर जान बचानी पड़ी थी और अयोध्या आकार ग्रंथ की रचना करनी पड़ी थी । इसके द्वारा तत्कालीन मुगल-सत्ता को उखाड़ फेंकने का जनता से आह्वान किया गया था । साम्राज्यवादी रावण का संहार राम व सीता की सम्मिलित कूटनीति का परिणाम था। ऐसी सच्चाई जनता समझ जाये तो ब्राह्मणों व व्यापारियों का शोषण समाप्त करने को एकजुट जो हो जाएगी। अतः विभिन्न राजनीतिक दलों में घुस कर ब्राह्मणवादी जनता में फूट डालने के उपक्रम करते रहते हैं। क्या जनता को जागरूक करना पागलपन होता है?"
क्योंकि उससे पूर्व यह पोस्ट आई थी जिसे एथीस्टों के दबाव में थोड़ी देर बाद ही डिलीट कर दिया गया था। :
"प्रगतिशील और वामपंथी सोच के पत्रकार
16 अगस्त 2014 ---https://www.facebook.com/lalajee.nirmal/posts/752415568152095
प्रगतिशील
और वामपंथी सोच के पत्रकार विजय राज बली माथुर का रामचरित मानस पर नजरिया
-----------Vijai RajBali Mathur रामचरितमानस तुलसीदास की दिमागी उपज नहीं
है और न ही यह एक-दो दिन मे लिखकर तैयार किया गया है । इस ग्रंथ की रचना
आरम्भ करने के पूर्व गोस्वामी जी ने देश,जाति और धर्म का भली-भांति अध्ययन
कर सर्वसाधारण की मनोवृति को समझने की चेष्टा की और मानसरोवर से रामेश्वरम
तक इस देश का पर्यटन किया ।
तुलसीदास ने अपने विचारों का लक्ष्य केंद्र राम मे स्थापित किया । रामचरित के माध्यम से उन्होने भाई-भाई और राजा-प्रजा का आदर्श स्थापित किया । उनके समय मे देश की राजनीतिक स्थिति सोचनीय थी । राजवंशों मे सत्ता-स्थापन के लिए संघर्ष हो रहे थे । पद-लोलुपता के वशीभूत होकर सलीम ने अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया तो उसे भी शाहज़ादा खुर्रम के विद्रोह का सामना करना पड़ा और जिसका प्रायश्चित उसने भी कैदी की भांति मृत्यु का आलिंगन करके किया । राजयोत्तराधिकारी 'दारा शिकोह'को शाहज़ादा 'मूहीजुद्दीन 'उर्फ 'आलमगीर'के रंगे हाथों परास्त होना पड़ा । इन घटनाओं से देश और समाज मे मुरदनी छा गई ।
तुलसीदास ने अपने विचारों का लक्ष्य केंद्र राम मे स्थापित किया । रामचरित के माध्यम से उन्होने भाई-भाई और राजा-प्रजा का आदर्श स्थापित किया । उनके समय मे देश की राजनीतिक स्थिति सोचनीय थी । राजवंशों मे सत्ता-स्थापन के लिए संघर्ष हो रहे थे । पद-लोलुपता के वशीभूत होकर सलीम ने अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया तो उसे भी शाहज़ादा खुर्रम के विद्रोह का सामना करना पड़ा और जिसका प्रायश्चित उसने भी कैदी की भांति मृत्यु का आलिंगन करके किया । राजयोत्तराधिकारी 'दारा शिकोह'को शाहज़ादा 'मूहीजुद्दीन 'उर्फ 'आलमगीर'के रंगे हाथों परास्त होना पड़ा । इन घटनाओं से देश और समाज मे मुरदनी छा गई ।
ऐसे समय मे 'रामचरितमानस' मे राम को वनों मे भेजकर और भरत को राज्यविरक्त
(कार्यवाहक राज्याध्यक्ष)सन्यासी बना कर तुलसीदास ने देश मे नव-चेतना का
संचार किया,उनका उद्देश्य सर्वसाधारण
मे राजनीतिक -चेतना का प्रसार करना था । 'राम'और 'भरत 'के आर्ष चरित्रों से उन्होने जनता को 'बलात्कार की नींव पर स्थापित राज्यसत्ता'से दूर रहने का स्पष्ट संकेत किया । भरत यदि चाहते तो राम-वनवास के अवसर का लाभ उठा कर स्वंय को सम्राट घोषित कर सकते थे राम भी 'मेजॉरिटी हेज अथॉरिटी'एवं 'कक्की-शक्की मुर्दाबाद'के नारों से अयोध्या नगरी को कम्पायमानकर सकते थे । पर उन्होने ऐसा क्यों नहीं किया?उन्हें तो अपने राष्ट्र,अपने समाज और अपने धर्म की मर्यादा का ध्यान था अपने यश का नहीं,इसीलिए तो आज भी हम उनका गुणगान करते हैं । ऐसा अनुपमेय दृष्टांत स्थापित करने मे तुलसीदास की दूरदर्शिता व योग्यता की उपेक्षा नहीं की जा सकती । क्या तुलसीदास ने राम-वनवास की कथा अपनी चमत्कारिता व बहुज्ञता के प्रदर्शन के लिए नहीं लिखी?उत्तर नकारात्मक है । इस घटना के पीछे ऐतिहासिक दृष्टिकोण छिपा हुआ है । (राष्ट्र-शत्रु 'रावण-वध की पूर्व-निर्धारित योजना' को सफलीभूत करना)।
इतिहासकार सत्य का अन्वेषक होता है । उसकी पैनी निगाहें भूतकाल के अंतराल मे प्रविष्ट होकर तथ्य के मोतियों को सामने रखती हैं । वह ईमानदारी के साथ मानव के ह्रास-विकास की कहानी कहता है । संघर्षों का इतिवृत्त वर्णन करता है । फिर तुलसीदास के प्रति ऐसे विचार जो कुत्सित एवं घृणित हैं (जैसे कुछ लोग गोस्वामी तुलसीदास को समाज का पथ-भ्रष्टक सिद्ध करने पर तुले हैं ) लाना संसार को धोखा देना है ।"
मे राजनीतिक -चेतना का प्रसार करना था । 'राम'और 'भरत 'के आर्ष चरित्रों से उन्होने जनता को 'बलात्कार की नींव पर स्थापित राज्यसत्ता'से दूर रहने का स्पष्ट संकेत किया । भरत यदि चाहते तो राम-वनवास के अवसर का लाभ उठा कर स्वंय को सम्राट घोषित कर सकते थे राम भी 'मेजॉरिटी हेज अथॉरिटी'एवं 'कक्की-शक्की मुर्दाबाद'के नारों से अयोध्या नगरी को कम्पायमानकर सकते थे । पर उन्होने ऐसा क्यों नहीं किया?उन्हें तो अपने राष्ट्र,अपने समाज और अपने धर्म की मर्यादा का ध्यान था अपने यश का नहीं,इसीलिए तो आज भी हम उनका गुणगान करते हैं । ऐसा अनुपमेय दृष्टांत स्थापित करने मे तुलसीदास की दूरदर्शिता व योग्यता की उपेक्षा नहीं की जा सकती । क्या तुलसीदास ने राम-वनवास की कथा अपनी चमत्कारिता व बहुज्ञता के प्रदर्शन के लिए नहीं लिखी?उत्तर नकारात्मक है । इस घटना के पीछे ऐतिहासिक दृष्टिकोण छिपा हुआ है । (राष्ट्र-शत्रु 'रावण-वध की पूर्व-निर्धारित योजना' को सफलीभूत करना)।
इतिहासकार सत्य का अन्वेषक होता है । उसकी पैनी निगाहें भूतकाल के अंतराल मे प्रविष्ट होकर तथ्य के मोतियों को सामने रखती हैं । वह ईमानदारी के साथ मानव के ह्रास-विकास की कहानी कहता है । संघर्षों का इतिवृत्त वर्णन करता है । फिर तुलसीदास के प्रति ऐसे विचार जो कुत्सित एवं घृणित हैं (जैसे कुछ लोग गोस्वामी तुलसीदास को समाज का पथ-भ्रष्टक सिद्ध करने पर तुले हैं ) लाना संसार को धोखा देना है ।"
धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।
अध्यात्म =अध्यन+ आत्मा = अपनी आत्मा का अध्यन।
देवता= जो देता है और लेता नहीं है ,जैसे-नदी,वृक्ष,पर्वत,आकाश,अन्तरिक्ष,अग्नि,जल,वायु आदि न कि जड़ मूर्तियाँ/चित्र आदि।भगवान = भ (भूमि-पृथ्वी)+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I (अनल-अग्नि )+न (नीर-जल )।खुदा = चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इनको किसी भी प्राणी ने नहीं बनाया है इसलिए ये ही 'खुदा' हैं।GOD = G (जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय )। उत्पत्ति,पालन व संहार करने के कारण ही इनको GOD भी कहते हैं।देखिये कैसे?:वायु +अन्तरिक्ष = वातअग्नि =पित्तभूमि + जल = कफइन तीनों का समन्वय ही शरीर को धारण करता हैवात +पित्त + कफ =भगवान=खुदा=GODशरीर को धारण करने व समाज को धारण करने हेतु
धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य परमावश्यक है।क्या महर्षि कार्ल मार्क्स अथवा शहीद भगत सिंह जी ने कहीं कहा है कि साम्यवाद के अनुयाइयों को झूठ बोलना चाहिये,हिंसा ही करनी चाहिए,चोरी करना चाहिए,अपनी ज़रूरत से ज़्यादा चीज़ें जमा करना चाहिए और अनियंत्रित सेक्स करना चाहिए। यदि इन विद्वानों से ऐसा नहीं कहा है तो इनका नाम बदनाम करने के लिए 'एथीस्ट वादी' ही जिम्मेदार हैं। और इसी कारण रूस से भी साम्यवाद उखड़ा है।एथीस्ट वादी भी ढोंगियों-पाखंडियों-आडमबरकारियों की ही तरह 'अधर्म' को धर्म कहते हैं व सत्य को स्वीकारना नहीं चाहते हैं क्योंकि वे भी उल्टे उस्तरे से जनता को मूढ़ रहे हैं। इसी कारण खुद को उग्र क्रांतिकारी कहने वाले एथीस्टों ने चुनाव बहिष्कार करके अथवा 'संसदीय साम्यवाद' के समर्थक दलों का विरोध करके केंद्र में सांप्रदायिकता के रुझान वाली सरकार गठित करवा दी है जिसका खामियाजा पूरे देश की जनता को भुगतना होगा।
ढ़ोंगी-पाखंडी-आडंबरधारी और एथीस्ट दोनों का ही हित तानाशाही में है दोनों की ही आस्था लोकतन्त्र में नहीं है और दोनों ही परस्पर अन्योनाश्रित हैं । एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही संभव नहीं है। दोनों ही 'सत्य ' उद्घाटित नहीं होने देना चाहते हैं क्योंकि अज्ञान ही उनका संबल है जागरूक जनता को वे दोनों ही उल्टे उस्तरे से मूढ़ नहीं सकेंगे।
Tuesday, 19 August 2014
भाजपा माले बनाम भाकपा माले की जंग---अनंत सिन्हा
मनुवादी माले के ढ़ांचे में भाजपा माले बनाम भाकपा माले की जंग:
मनुवाद का माले से गहरा रिश्ता है। माले के कुमार परवेज की भाषा से सत्यापित होता है कि माले के अंदर दो-दो माले है। पहला भाकपा माले और दूसरा है भाजपा माले। कुमार परवेज पिछले कई दिनों से लालू-नीतिश को मंडलवादी, बैकवर्डवादी, जातीवादी, पिछड़ावदी राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं। दरअसल यह भाषा तो भाजपा की है। भाजपा की भाषा में लालू-नीतिश की आलोचना करने वाले को भाजपा माले का सदस्य कहना गलत नहीं होगा। भाकपा माले की माउथपीस पत्रिका और स्वयं दीपंाकर जी भी इस भाषा का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इनका आरोप होता है कि लालू नीतिश अस्मिता की राजनीति करते हैं। माले के अंदर मजबुत हो रही मनुवादी सोचं यानि भाजपा माले की शक्ति पर दीपंकर जी की चुप्पी से उनकी मजबूरी की कहानी सामने आ जाती हैं। जहां तक मैं दीपंकर जी को जानता हूॅ , उन्हें जातिवाद से लेना देना नहीं हैं। लेकिन संगठन में बैठे सवर्णे में खासतौर से भूमिहार लॉबी ने खासे परेशान कर रखा है। शायद यही वजह है कि माले अब वह माले नहीं रहा। गौर करने वाली बात यह भी है कि लालू-राबड़ी राज में माले का संघर्ष जितना अर्श पर था नीतिश राज में उतना ही फर्श पर। या तो नीतिश कुमार आन्दोलन करने का मौका ही नहीं दिया माले को या फिर माले में बैठे सवर्णो को नीतिश कुमार की सुशासन का हवा उन्हें आहलादित कर रहा था। क्योंकि यह सच है कि नीतिश कुमार के शासन काल स्वर्णो को पुनः पनपने का मौका मिला है। माले को बताना चाहिए कि वो लोकसभा चुनाव के वक्त लालू प्रसाद के पक्ष में भी ब्यान क्यों दिया था ? आज लालू-नीतिश एक हो गए तो इतना हाय तौबा क्यों ? इसका भी ज्वाब ढूढ़ना चाहिए भूमिहारों का बी टीम कहे जाने भाकपा से गठबंधन की क्या मजबूरी रही है।
सवर्ण कामरेड पार्टी छोड़गें तो भाजपा में ही जाएगें:
इसके मनुवादी होने का दुसरा प्रमाण इसके ढ़ाचे और सांचे में सामाजिक न्याय का न होना भी है। स्वर्ण जाति के लोग पोलित ब्यूरों में बैठकर नीति-निर्धारण की भूमिका निभाते हैं। दलित-पिछड़ों की जिम्मेवारी जमीन पर लड़ना है। दलित-पिछड़े कामरेड जमीन पर लड़ते-लड़ते जीवन के अंतिम चरण में पहूंच जाते हैं। उनकी भूमिका सिपाही की बनीं रहती है। उदाहरण के तौर पर के डी यादव को ही लें। आज तक पोलित ब्यूरो के सदस्य नहीं बनें। जबकि के डी यादव के द्वारा प्रशिक्षित कामरेड पोलित ब्यूरो में बैठकर बुद्धि बघार रहे है। सिर्फ के डी यादव ही नहीं रामनरेश राम भी कहीं न कहीं माले के मनुवादी सोंच के शिकार रहे हैं। कामरेड राम काफी जद्दोजहद के बाद पोलित ब्यूरो के सदस्य बन पाये थे। कायदे से कर्म और व्यवहारिक ज्ञान के आधार पर उन्हें पार्टी के सर्वोच्य पद विराजमान होकर दुनियां को अलविदा कहना चाहिए था। के डी यादव को दीपांकर की जगह पर आज तक क्यों नहीं बिठाया गया के सवाल पर माले के लोग बैकफुट पर आ जाते हैं। मनुवादी भाषा कहते फिरेगें कि के डी यादव माले सम्मानित कामरेड है। अरे भाई यह कैसा सम्मान है कि कर्म के अनुसार उनको पद देते ही नहीं हो।
1990 के बाद आये राजनैतिक बदलाव के बाद सवर्ण कामरेडों का राजनीति के बाजार में कोई भाव रहा नहीं है। मंदी का दौर आजतक जारी है, लेकिन दलित बैकवर्ड कामरेडों बाजार भाव बना है। चौंकाने वाली बात यह भी है कि सवर्ण कामरेड पार्टी छोड़गें तो भाजपा में ही जाएगें। वहीं दलित बैकवर्ड पार्टी छोड़गे तो समाजवादी धारा से जुड़े मुख्य रूप से लालू और नीतिश के यहां जाते है। इसलिए स्वर्ण कामरेडों के बारे में पटना में एक जुमला प्रचलित है कि जहां ब्राहम्णवाद भटकता है वहीं मार्क्सवाद पैदा होता है। जहां मार्क्सवाद भटकता वहां ब्राहम्णवाद या मनुवाद पैदा होता है। अगर स्वर्ण कामरेडों को भाजपा में थोड़ी भी तरजीह मिलेगा उछल कूद करते हुए भाजपा में चले जायेगे।
साभार :
https://www.facebook.com/anant.sinha1/posts/861216740556554
मनुवाद का माले से गहरा रिश्ता है। माले के कुमार परवेज की भाषा से सत्यापित होता है कि माले के अंदर दो-दो माले है। पहला भाकपा माले और दूसरा है भाजपा माले। कुमार परवेज पिछले कई दिनों से लालू-नीतिश को मंडलवादी, बैकवर्डवादी, जातीवादी, पिछड़ावदी राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं। दरअसल यह भाषा तो भाजपा की है। भाजपा की भाषा में लालू-नीतिश की आलोचना करने वाले को भाजपा माले का सदस्य कहना गलत नहीं होगा। भाकपा माले की माउथपीस पत्रिका और स्वयं दीपंाकर जी भी इस भाषा का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इनका आरोप होता है कि लालू नीतिश अस्मिता की राजनीति करते हैं। माले के अंदर मजबुत हो रही मनुवादी सोचं यानि भाजपा माले की शक्ति पर दीपंकर जी की चुप्पी से उनकी मजबूरी की कहानी सामने आ जाती हैं। जहां तक मैं दीपंकर जी को जानता हूॅ , उन्हें जातिवाद से लेना देना नहीं हैं। लेकिन संगठन में बैठे सवर्णे में खासतौर से भूमिहार लॉबी ने खासे परेशान कर रखा है। शायद यही वजह है कि माले अब वह माले नहीं रहा। गौर करने वाली बात यह भी है कि लालू-राबड़ी राज में माले का संघर्ष जितना अर्श पर था नीतिश राज में उतना ही फर्श पर। या तो नीतिश कुमार आन्दोलन करने का मौका ही नहीं दिया माले को या फिर माले में बैठे सवर्णो को नीतिश कुमार की सुशासन का हवा उन्हें आहलादित कर रहा था। क्योंकि यह सच है कि नीतिश कुमार के शासन काल स्वर्णो को पुनः पनपने का मौका मिला है। माले को बताना चाहिए कि वो लोकसभा चुनाव के वक्त लालू प्रसाद के पक्ष में भी ब्यान क्यों दिया था ? आज लालू-नीतिश एक हो गए तो इतना हाय तौबा क्यों ? इसका भी ज्वाब ढूढ़ना चाहिए भूमिहारों का बी टीम कहे जाने भाकपा से गठबंधन की क्या मजबूरी रही है।
सवर्ण कामरेड पार्टी छोड़गें तो भाजपा में ही जाएगें:
इसके मनुवादी होने का दुसरा प्रमाण इसके ढ़ाचे और सांचे में सामाजिक न्याय का न होना भी है। स्वर्ण जाति के लोग पोलित ब्यूरों में बैठकर नीति-निर्धारण की भूमिका निभाते हैं। दलित-पिछड़ों की जिम्मेवारी जमीन पर लड़ना है। दलित-पिछड़े कामरेड जमीन पर लड़ते-लड़ते जीवन के अंतिम चरण में पहूंच जाते हैं। उनकी भूमिका सिपाही की बनीं रहती है। उदाहरण के तौर पर के डी यादव को ही लें। आज तक पोलित ब्यूरो के सदस्य नहीं बनें। जबकि के डी यादव के द्वारा प्रशिक्षित कामरेड पोलित ब्यूरो में बैठकर बुद्धि बघार रहे है। सिर्फ के डी यादव ही नहीं रामनरेश राम भी कहीं न कहीं माले के मनुवादी सोंच के शिकार रहे हैं। कामरेड राम काफी जद्दोजहद के बाद पोलित ब्यूरो के सदस्य बन पाये थे। कायदे से कर्म और व्यवहारिक ज्ञान के आधार पर उन्हें पार्टी के सर्वोच्य पद विराजमान होकर दुनियां को अलविदा कहना चाहिए था। के डी यादव को दीपांकर की जगह पर आज तक क्यों नहीं बिठाया गया के सवाल पर माले के लोग बैकफुट पर आ जाते हैं। मनुवादी भाषा कहते फिरेगें कि के डी यादव माले सम्मानित कामरेड है। अरे भाई यह कैसा सम्मान है कि कर्म के अनुसार उनको पद देते ही नहीं हो।
1990 के बाद आये राजनैतिक बदलाव के बाद सवर्ण कामरेडों का राजनीति के बाजार में कोई भाव रहा नहीं है। मंदी का दौर आजतक जारी है, लेकिन दलित बैकवर्ड कामरेडों बाजार भाव बना है। चौंकाने वाली बात यह भी है कि सवर्ण कामरेड पार्टी छोड़गें तो भाजपा में ही जाएगें। वहीं दलित बैकवर्ड पार्टी छोड़गे तो समाजवादी धारा से जुड़े मुख्य रूप से लालू और नीतिश के यहां जाते है। इसलिए स्वर्ण कामरेडों के बारे में पटना में एक जुमला प्रचलित है कि जहां ब्राहम्णवाद भटकता है वहीं मार्क्सवाद पैदा होता है। जहां मार्क्सवाद भटकता वहां ब्राहम्णवाद या मनुवाद पैदा होता है। अगर स्वर्ण कामरेडों को भाजपा में थोड़ी भी तरजीह मिलेगा उछल कूद करते हुए भाजपा में चले जायेगे।
साभार :
https://www.facebook.com/anant.sinha1/posts/861216740556554
Thursday, 14 August 2014
"The BJP is inviting corrupt leaders of other parties into its fold to make it a warehouse of corrupt leaders."-----Atul Anjan,CPI leader
CPI wants left parties to contest assembly elections in Jharkhand together
Senior CPI leader A B Bardhan today appealed to all Left parties to jointly contest the upcoming Assembly elections in Jharkhand. "It's time the CPI(M), the Forward Block, the Marxist Coordination Committee and CPI(ML-Liberation), besides the CPI contest the elections in alliance to provide an alternative government that will be clean and corruption-free in Jharkhand," Bardhan said at a press conference here. "The BJP formed governments under Babulal Marandi and Arjun Munda. The JMM, the Congress, the RJD and the JD(U) have been in power. In between, Madhu Koda had also been the Chief Minister. But no one could give a stable, corruption-free and good government," alleged the veteran Left leader.
"It's a challenge for the Left parties to stop the communal forces who have come to power in the country and are trying to come to power in Jharkhand too. So my appeal to all Left parties is to fight the elections in alliance," he said. Stating that the state has enormous mineral wealth but "corrupt and bad governance" had "hindered" Jharkhand's development, Bardhan claimed if the Left alternative came to power after the next Assembly elections it "will bring good days for Jharkhand".
"The CPI is prepared to contest 20 to 25 seats, but we can give details on seat sharing in the beginning of September after talks with the Left parties... tomorrow the Left parties will discuss about poll related matters," he added.
Extending support to the 72-hour hunger strike called by the Kishan Sabha from September 1, Bardhan said, "This will be a kind of election campaign." Assembly elections in Jharkhand are due later this year. Commenting on political leaders joining the BJP, another senior CPI leader Atul Anjan alleged, "The BJP is inviting corrupt leaders of other parties into its fold to make it a warehouse of corrupt leaders."
Senior CPI leader A B Bardhan today appealed to all Left parties to jointly contest the upcoming Assembly elections in Jharkhand. "It's time the CPI(M), the Forward Block, the Marxist Coordination Committee and CPI(ML-Liberation), besides the CPI contest the elections in alliance to provide an alternative government that will be clean and corruption-free in Jharkhand," Bardhan said at a press conference here. "The BJP formed governments under Babulal Marandi and Arjun Munda. The JMM, the Congress, the RJD and the JD(U) have been in power. In between, Madhu Koda had also been the Chief Minister. But no one could give a stable, corruption-free and good government," alleged the veteran Left leader.
"It's a challenge for the Left parties to stop the communal forces who have come to power in the country and are trying to come to power in Jharkhand too. So my appeal to all Left parties is to fight the elections in alliance," he said. Stating that the state has enormous mineral wealth but "corrupt and bad governance" had "hindered" Jharkhand's development, Bardhan claimed if the Left alternative came to power after the next Assembly elections it "will bring good days for Jharkhand".
"The CPI is prepared to contest 20 to 25 seats, but we can give details on seat sharing in the beginning of September after talks with the Left parties... tomorrow the Left parties will discuss about poll related matters," he added.
Extending support to the 72-hour hunger strike called by the Kishan Sabha from September 1, Bardhan said, "This will be a kind of election campaign." Assembly elections in Jharkhand are due later this year. Commenting on political leaders joining the BJP, another senior CPI leader Atul Anjan alleged, "The BJP is inviting corrupt leaders of other parties into its fold to make it a warehouse of corrupt leaders."
W B C F :
Wednesday, 13 August 2014
Left for united front against Modi policies
Left parties have decided to join hands and launch a united struggle against Prime Minister Narendra Modi’s economic policies and communal politics.
The centenary celebrations of CPI legendary leader Chandra Rajeswara
Rao here on Monday saw top leaders of the CPI, CPI (M), RSP and CPI (ML)
giving a call to oppose the policies being pursued by the BJP led NDA
Government at Centre.
The real tribute to him is to oppose the communal agenda of the BJP and its over dependence on corporate investments. CPI national general secretary Suravaram Sudhakar Reddy said that the BJP which rode to power on the backing of the corporate houses was following the same policies implemented by the previous UPA Government. He said the two month rule of Modi only reflected the privatisation and FDI in key sectors.
Mr. Sudhakar Reddy also referred to the creation of Telangana and AP and lamented Centre’s decision to give special powers to Governor. CPI (M) general secretary Prakash Karat ridiculed the Prime Minister’s oft repeated statement during the election campaign that good days were in the offing for the people of country.
“Even after 75 days, people are still waiting for the good days as the NDA Government is going on privatisation spree and inviting FDI in key sectors,” he pointed out.
Mr. Karat said good days have come for the corporate houses where as it was black day for the common man. The RSP general secretary Abani Roy said the Prime Minister was paying back to the corporate houses that had enabled his elevation to the top post.
CPI (ML) general secretary Deepankar Bhattacharya said united fight against the NDA Government was the need of the hour.
CPI secretary K. Narayana and former MP Azeez Pasha gave a call to the Left parties to take on the anti-people’s policies of the governments.
W B C F :
https://www.facebook.com/cpofindia/photos/a.335629103138331.91488.120263388008238/813940171973886/?type=1&theater
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The real tribute to him is to oppose the communal agenda of the BJP and its over dependence on corporate investments. CPI national general secretary Suravaram Sudhakar Reddy said that the BJP which rode to power on the backing of the corporate houses was following the same policies implemented by the previous UPA Government. He said the two month rule of Modi only reflected the privatisation and FDI in key sectors.
Mr. Sudhakar Reddy also referred to the creation of Telangana and AP and lamented Centre’s decision to give special powers to Governor. CPI (M) general secretary Prakash Karat ridiculed the Prime Minister’s oft repeated statement during the election campaign that good days were in the offing for the people of country.
“Even after 75 days, people are still waiting for the good days as the NDA Government is going on privatisation spree and inviting FDI in key sectors,” he pointed out.
Mr. Karat said good days have come for the corporate houses where as it was black day for the common man. The RSP general secretary Abani Roy said the Prime Minister was paying back to the corporate houses that had enabled his elevation to the top post.
CPI (ML) general secretary Deepankar Bhattacharya said united fight against the NDA Government was the need of the hour.
CPI secretary K. Narayana and former MP Azeez Pasha gave a call to the Left parties to take on the anti-people’s policies of the governments.
W B C F :
https://www.facebook.com/cpofindia/photos/a.335629103138331.91488.120263388008238/813940171973886/?type=1&theater
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- Dinesh Reghunath R I m optimistic...
- Satyaprakash Gupta Hope is really there with Left ideology but Left Parties must unite and create some material glamour that may scintillate youths and working class otherwise old path of left party to bring out a huge procession on certain issues will be registered into oblivion.
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