Thursday 23 June 2016

उत्तर प्रदेश की राजनीति मकड़जाल में फंस गई है : सांप्रदायिकता को परास्त करने हेतु सबको मिलकर आगे आना होगा ------ अतुल कुमार सिंह'अंजान'

21 जून 2016 का साक्षात्कार 

भाकपा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल कुमार सिंह 'अंजान ' साहब जो एक कवि हृदय जुझारू नेता हैं ने चेनल इंडिया 24 x 7 के साथ 21 जून 2016 को दिये एक साक्षात्कार में उत्तर प्रदेश में घटित कैबिनेट मंत्री की बरखास्तगी का ज़िक्र करते हुये एक कविता की इन दो पंक्तियों के माध्यम प्रदेश की स्थिति-परिस्थिति की समीक्षा यों की है :

तुम्हारी शपथ मैं तुम्हारा नहीं हूँ। 

मैं भटकती लहर मैं किनारा नहीं हूँ । । 

वरिष्ठ पत्रकार वासिंद मिश्र के एक सवाल के जवाब में अंजान साहब ने कहा कि, यदि इस बरखास्तगी के साथ कुछ मंत्री स्तीफ़ा देने की पेशकश करते हैं तो यह कुछ समझदारी हो सकती है लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो यह भी एक बड़ा 'दांव ' ही है। आजमगढ़ के सांप्रदायिक तनाव का ज़िक्र करते हुये उन्होने स्पष्ट अभिमत दिया कि यह सब अपने आप नहीं हो रहा है बल्कि इसका सृजन किया जा रहा है और इसके पीछे हैदराबाद से लेकर नागपुर तक की शक्तियों का हाथ है। उन्होने यह भी बताया कि आजमगढ़ से मिला 'घोसी'  उनका संसदीय क्षेत्र है और इसके मऊ में वह प्रतिमाह सप्ताह भर रहते हैं तथा इस क्षेत्र में पहले आजमगढ़ ज़िले का एक विधानसभा क्षेत्र भी शामिल था और वहाँ के प्रत्येक दल के नेता व कार्यकर्ता को वह बखूबी समझते हैं एवं उसी समझ के निष्कर्ष के आधार पर यह बात कह रहे हैं। केंद्र की खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ लखनऊ की खुफिया एजेंसियों व सांप्रदायिक सौहार्द समर्थक शक्तियों को आजमगढ़ के खेल को भलीभाँति समझना चाहिए उनके साथ साथ मुलायम सिंह यादव तथा अखिलेश यादव को भी इसे समझना चाहिए; यह कोई मामूली खेल नहीं है। 

उन्होने उदाहरण देते हुये कहा कि सहारनपुर में सरकार के दो साल पूरे होने पर 'देवबंद' को लेकर जैसे भाषण मोदी जी ने दिये और उसके तीन दिन बाद रुड़की में सांप्रदायिक तनाव हो गया यह एक गहरी साजिश है। 2017 का चुनाव एक वैचारिक संघर्ष की ओर बढ़ रहा है जिसे मुलायम सिंह जी व अखिलेश को भी समझना चाहिए। उन्होने साफ साफ कहा कि चाहे बहुसंख्यक हिन्दू फिरकापरस्ती हो चाहे मुस्लिम अल्पसंख्यक फिरकापरस्ती दोनों ही उत्तर प्रदेश के लिए घातक हैं और इसका देश पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इसलिए इस वक्त सांप्रदायिक  सौहार्द समर्थक सभी शक्तियों को एक साथ आना होगा और अगर ऐसा नहीं हो सका तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और कोई और दूसरा नहीं होगा। 

उन्होने कहा कि आज सीधे सीधे कानून -व्यवस्था को चुनौती दे रही सांप्रदायिक शक्तियों को यों ही नहीं छोड़ा जा सकता अपनी पूरी सामर्थ्य से उनको रोकने और परास्त करने की भरपूर कोशिश की जाएगी। अखिलेश के विकास की चर्चा करते हुये उन्होने कहा कि विकास के लिए समझ और नीतियाँ भी होनी चाहिए, विकास यों ही नहीं हो जाएगा उसके लिए सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित करना होगा। उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिकता की आग में झोंके जाने से रोकने पर ही विकास हो पाएगा । उत्तर प्रदेश के 22 करोड़ लोगों में हमारे नौजवान और किसान अधिक उत्पादकता वाले लोग हैं उनको विकास में जोड़ने के लिए धार्मिक उन्माद व जातीय विद्वेष को समाप्त करना होगा। अगर सांप्रदायिक शक्तियों के पैर प्रदेश में मजबूत हो गए तो दलितों,अल्पसंख्यकों, हाशिये पर पड़े लोगों का हाल आज से भी बदतर हो जाएगा। पिछले 30 सालों की प्रदेश की राजनीति ने आशाराम,गंडे-ताबीज़ वाले ,लाशों के व्यापारी जनता को दिये हैं और जन-समस्याओं का कोई पूछनहार नहीं है। 

उनका ज़ोर था कि उत्तर प्रदेश में राजनीति संभावनाओं का खेल नहीं है। उत्तर प्रदेश में साफ साफ दृष्टिकोण अपनाना होगा और तय करना होगा कि आप क्या चाहते हैं? हिन्दी के महान लेखक,समालोचक,प्रगतिशील लेखक संघ के नेता गजानन्द माधव 'मुक्तिबोध' की उक्ति कि, 'पार्टनर तुम्हारी पालिटिक्स क्या है?' के अनुसार सबको सी पी आई, सी पी एम,कांग्रेस,सपा,बसपा,मुलायम सिंह,अखिलेश सबको तय करना और बताना होगा कि, उनकी पालिटिक्स क्या है? भाजपा की पालिटिक्स का तो खुलासा योगी आदित्यनाथ ने कर दिया है। अब बाकी हम सबको तय करना है। हम उत्तर प्रदेश को खूनी खेल का आखाडा नहीं बनने दे सकते।


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आदरणीय कामरेड अंजान साहब से विनम्र निवेदन  ::

इस साक्षात्कार में अंजान साहब द्वारा की गई अपेक्षा देश और प्रदेश के हक में बहुत वाजिब है। उनसे कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाना ही होगा। लेकिन 1986 से ही अपनी भाकपा - सपा -भाकपा में सक्रियता के आधार पर कुछ निष्कर्षों पर पहुंचा हूँ और समय -समय पर उनको अभिव्यक्त भी करता रहा हूँ। अपनी तमाम राजनीतिक ईमानदारी के बावजूद हम लोग अपनी प्रचलित प्रचार -शैली के चलते उस जनता को जिसके लिए जी - जान से संघर्ष करते हैं प्रभावित करने में विफल रहते हैं। हम लोगों के प्रति लोगों का नज़रिया संकुचित व कुछ हद तक कुत्सित भी रहता है। उदाहरणार्थ  : 




सांप्रदायिकता वस्तुतः साम्राज्यवाद की सहोदरी है। साम्राज्यवाद ने हमारे देश की जनता को भ्रमित करने हेतु 1857 की क्रांति की विफलता के बाद जो नीतियाँ अपनाईं वे ही सांप्रदायिकता का हेतु हैं। जाने या अनजाने हम लोग साम्राज्यवादियो की व्याख्या को ही ले कर चलते हैं जिसके चलते जनता हम लोगों को अधार्मिक मान कर चलती है और इसमें प्रबुद्ध साम्यवादी/ वाम पंथियों का प्रबल योगदान है जो 'एथीस्ट ' कहलाने में गर्व का अनुभव करते हैं। शहीद भगत सिंह और महर्षि कार्ल मार्क्स को हम लोग गलत संदर्भ के साथ उद्धृत करते है जिसका नतीजा सांप्रदायिक शक्तियों ने भर पूर उठाया है। व्यक्तिगत आधार पर अपने लेखों के माध्यम से स्थिति स्पष्ट करने की कोशिशों को अपने ही वरिष्ठों द्वारा किए तिरस्कार का सामना करना पड़ा है। ब्राह्मण वादी मानसिकता के कामरेड्स जान बूझ कर प्रचलित शैली से प्रचार करना चाहते हैं जिससे आगे भी सांप्रदायिक शक्तियाँ लाभ उठाती रहें। इस संदर्भ में एक कामरेड के इस सुझाव को भी नज़र अंदाज़ करना अपने लिए घातक है। 





जो वरिष्ठ  लोग यह कहते हों कि, ओ बी सी और एस सी कामरेड्स से सिर्फ काम लिया जाये और उनको कोई पद न दिया जाये वस्तुतः फासिस्टों का ही अप्रत्यक्ष सहयोग कर रहे हैं और वे ही लोग उत्तर प्रदेश में हावी हैं। ऐसी परिस्थितियों में अंजान साहब के सारे संघर्ष पर पानी फिर जाता है। पहले अपने मोर्चे पर भी WAY OF PRESENTATION को बदलना होगा । थोड़ी सी  ही तबदीली करके हम जनता के बीच से फासिस्टों का आधार ही समाप्त करने में कामयाब हो जाएँगे। किन्तु इसके लिए पहले ब्राह्मण वादी कामरेड्स को काबू करना होगा। 
( विजय राजबली माथुर )
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