हिंदुस्तान। लखनऊ, 17 मार्च 2017 , पृष्ठ---12
Dhruv Gupt
यहां बाएं से रास्ता बंद है !
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का एक और ग़ौरतलब पहलू भी है जो लोगों की नज़रों से ओझल ही रह गया। इस चुनाव में देश की कम्युनिस्ट पार्टियों ने एक सौ पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। सभी एक सौ पांच उम्मीदवारों को मिलाकर उनके पक्ष में कुल एक लाख से कुछ ज्यादा वोट पड़े। देश की मौज़ूदा फिरकापरस्त, पूंजीवादी, भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था में भी वामपंथी पार्टियां अगर राजनीतिक विमर्श के बाहर हैं तो प्रगतिकामी लोगों के लिए यह चिंता का सबब है। न लोग उन्हें गंभीरता से ले रहे हैं और न वे ख़ुद अपने को लेकर गंभीर है। हालत यह है कि उनके पास अब कार्यकर्ता कम और बुद्धिजीवी ज्यादा रह गए हैं ! अपने देश की परिस्थितियों के अनुरूप ख़ुद को ढालने में असमर्थ, ज़मीन से कटे उनके किताबी, आत्ममुग्ध और अहंकारी नेतृत्व ने देश में वामपंथ की लुटिया ही डुबो दी है। वे अरसे से देश की दिशाहीन राजनीति को न तो कोई विकल्प दे सके, न परिवर्तनकामी युवाओं-किसानों-मज़दूरों को कोई दिशा। एक क़ायदे का विपक्ष तक नहीं खड़ा हुआ उनसे। कभी उन्होंने वंशवादी, भ्रष्ट कांग्रेस की पूंछ पकड़ी तो कभी अवसरवादी लालू, मुलायम, करूणानिधि जैसों का पिछलग्गू बनकर चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश की। यह राजनीतिक अवसरवाद उनके लिए आत्मघाती साबित हुआ। अब हालात ऐसे बन गए हैं कि त्रिपुरा, केरल और बंगाल के अलावा कहीं कोई नामलेवा भी नहीं बचा है उनका। वह दिन दूर नहीं जब वामपंथ दिल्ली के उस जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय की चहारदीवारी तक सिमट कर रह जाने वाला है जहां वामपंथ का अबतक का सबसे लुच्चा, ग़ैरज़िम्मेदार और अराजक संस्करण तैयार हो रहा है। जहां छद्म राष्ट्रवादियों के प्रतिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर देश के टुकड़े करने के नारे लगाना फैशन है। जहां आतंकी नक्सलियों द्वारा सुरक्षाबलों के नरसंहार पर जश्न मनाए जाते हैं। जहां प्रगतिशीलता के नाम पर हिन्दू देवियों को वेश्या कहकर संबोधित किया जाता है। जहां धुर दक्षिणपंथी प्रतिगामिता की काट में वामपंथी अराजकता को खुला बढ़ावा दिया जा रहा है।
आप मानें या न मानें, अपनी संस्कृति और जड़ों से कटे वामपंथ के ताबूत में आख़िरी कील जे.एन.यू ही ठोकने वाला है।
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Vvsrd India
दोस्तों, अब से कुछ देर बाद ही देश के 5 राज्यो मे बिधान सभा चुनाव का नतीजा आने लगेगा। अगर इन राज्यो मे (खासकर उत्तर प्रदेश मे) भाजपा की जीत हुई तो आज से ही पूरे देश मे होली का नजारा देखने को मिलेगा; और अगर इसका बिपरित हुई तो देश मे राजनीतिक माहौल का नजारा कुछ दूसरा ही होगा।
मेरा माने तो भाजपा को पूरा देश मे आने ही देना चाहिए क्योकि बहुतों के मन मे आज भाजपा के प्रति जो गलतफहमी है उसे दूर करने के लिए यह जरूरी है। जैसा की कभी बंगाल के लोगो का CPM पार्टी के प्रति रुझान था।
भाजपा का बिरोधी लोगो का यह अंदेशा पर मुझे कतई शक नहीं की भाजपा इस देश मे एक बहुसंख्यक धार्मिक लोगो का sentiment को उभारकर एक निरंकुश पूंजीवादी ब्यबस्था कायेम करना चाहती है। उस आनेवाला खतरनाख निरंकुश शासन ब्यबस्था का असली चेहरा देखे बिना आम अशिक्षित-गरीब-लाचार-अनपढ़-गवार-अंध-बिस्वासी जनता के आंखे खुल नहीं सकता।
मेरा यह भी बिस्वास है की इतनी बड़ी देश मे निरंकुश शासन केवल देश मे गृह-युद्ध छेड़कर राज्यो को टूकडा –टुकड़ा करके ही किया जा सकता जैसा की USSR (अभी का रूस) का हुआ।
जो भी हो चुनाव नतीजा जो आयेगा उससे सहज रूप से स्वीकार करना ही पड़ेगा । उसको देख अचरज मे पड़ने की बात नहीं। वोट-राजनीति का अदृश्य अर्थनैतिक धारा जिस दिशा की और बहा होगा उसी दिशा मे नतीजा भी आयेगा। जाहीर है की नोट-बंदी से लेकर इलैक्शन कमिशन को सजाने की तैयारी मे लिप्त भाजपा का अंदरूनी कौशिश अगर रंग लाएगा तो इसमे अचरज की कोई बात नहीं। और अगर इसे बिपरित बिहार जैसा नतीजा निकलता है तब तो मानना ही पड़ेगा की सामंतवादी सोच-विचार अभी भी हमारे समाज मे हावी है जो गंदी पूंजीवादी सोच-विचार को हमारे समाज-राजनीति व अर्थनीति मे हावी होने से रोकने मे सक्षम है।
इसे हमारा समाज-ब्यबस्था का ताकत कहेंगे या कमजोरी
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17 मार्च 2017 |
(विजय राजबली माथुर )
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