Sunita B Moodee
04-01-2018
देश के विकास का पैमाना वो नहीं की जिसके मेहनत से बिजली या रसई गैस या खाने –पीने की सामाग्री या कल-कारखानो का सामान, आदि का उत्पादन हो रहा है उनके घर तक विकास के ठेकेदारो (सत्ता मे बैठे मालिक पूंजीपति वर्ग और उनके पार्टी के नेता-मंत्री व कार्यकर्ता) के द्वारा इन सब समान भी (धीरे धीरे ही सही) पंहुचाया रहा हो । अर्थात गाँव-कसबा तक सड़क पंहुच गया, बिजली पंहुच गई, 1 रुपैया किलो अनाज पंहुच गया, इन्दिरा आवास से घर बन गया, सरकारी प्रोग्राम से latrine बन गया, पानी का टंकर से पानी पंहुच गया, सभी बेरोजगारो को PMKVJ से हुनर का ट्रेनिंग दिला दिया गया, सभी SHG के महिलाओ को बैंक लोन दे दिया, सभी सरकारी स्कूलो मे बच्चो को मध्यन्न भोजन खिला दिया, स्वस्थ सेवा सुनिश्चित करवाने के लिए गाँव गाँव मे आशा कर्मीओ का बहाली कर दिया तो विकास हो गया। ये तो स्वतः विकास नहीं वलकी विकास के नाम पर eye wash है। जब तक न हर हाथ को काम, हर खेत को पानी, हर मजदूर को उचित दाम, किसानो द्वारा उत्पादित सामानो का उचित मूल्य ना मिले तब टाका स्तः विकास संभव नहीं। श्रम-शोषण पर आधारित पूंजीवादी ब्यबस्था काएम रहते ऐसा कतई संभव नहीं।
दोस्तों, देश मे विकास का जो मोडेल का निव काँग्रेस ने रखी और उसे धीरे धीरे बिस्तार किया और अब सत्ताधारी बीजेपी पार्टी वाले उसी (कोंग्रेसी द्वारा पनपाए गये) विकास मोडेल को तेजी से विस्तार के लिए कई सारे कडी कदम उठाए जैसे, जन-धन-योजना, नोट-बंदी, जीएसटी और हाल मे बैंकिंग सुरक्षा के लिए बैंक के खाताधारको के गले काटने वाली बिल, आदि (जो काँग्रेस पार्टी को करना था पर आम जनता की डर से नहीं कर सक रही थी) को उसे देश-हीत का जिगर उठाकर कर डाला, वो मॉडल पूंजीवादी बाज़ार बिस्तार का मॉडल है। मानब सभ्यता का शृष्टि करनेवाले आम मजदूर-मेहनतकश-किसानो का विकास का मॉडल नहीं। इस मॉडल को हम पूंजीवादी मॉडल कहते है।
जरा सोचिए, आज देश मे बहुसंख्यक लोग गरीब क्यो है? बेरोजगार क्यो है? बेघर क्यो है? अनपढ़ क्यो है? रूढ़िवादी सोच क्यो है ? देश/समाज-हीत छोड़ ब्यक्ति केवल खुद का या केवल अपने परिवार का विकास के बारे मे क्यो सोचता और इसके लिए दूसरों को गला काटने क्यो उतर आते?
ये सारे-के सारे समस्याओ का एक ही कारण कई वो है पूंजीवादी विकास मॉडल। जो विकास इंसान और इंसानियत के विकास के लिए नहीं वलकी बाज़ार के विकास के लिए है। पूंजीपतिओ का मुनाफा का पहाड़ बनवाने के लिए है।
आप सोचते होंगे की सरकार मे बैठे लोग गरीबो के बारे मे कितना सोचते की वे उनके लिए 1 रुपैया किलो अनाज, फ्री मे घर के साथ latrine, पानी के लिए चपाकल, फ्री मे रसई गैस का सिलिंडर, फ्री इलैक्ट्रिक कनैक्शन आदि दे रहे है। आप जरा गहराई से आम महनतकशों के नजरिया से सोचकर देखे तो साफ दिखेगा की वे इस तरह का काम (जिसे सत्ताधारी लोग और उनके दलाल लोग विकास का काम कहते है) दरअसल वो विकास नहीं वलकी उन सब गरीब-लाचार लोगो को पूंजीवादी बाज़ार मे फसाने का एक सुंदर सा टोप या lollypop है। एक बार जब वे इन सब सुबिधा का आदि हो जाएगा तब वे या तो इसे निरंतर पाने के लिए पूंजी का गुलामी करने का रफ्तार को बढ़ाने का प्रयास करेगा या नहीं तो जुआ खेलने, गाँजा-भांग-दारू-चरस पीने, वापस मे लड़ाई झगडा-मार-पीट करने, अनैतिक काम करके पैसा कमाने का आदि बन जाएगा और खुद को ध्वंस कर डालेगा । सत्ताधारिओ के द्वारा पूंजीवादी ब्यबस्था को बचाने के लिए समाज का माहौल को निरंतर गंदा करने का कौशिश जारी है । इंटेनेट- टीवी प्रचार (जो सत्ताधारी मालिक पूंजीपतिओ के हाथ है) के इसारे यह सब काम बखूबी किया जा रहा है।
महान मार्क्सवादी चिंतनकार तथा सर्बहारा वर्ग के नेता शिब्दास घोष को अगर माने तो (मालिक-मजदूर या शोषक-शोषित या अमीरी-गरीबी से बंटा) एक वर्ग बिभाजित समाज मे कोई भी सोच का आधार वर्ग-सोच ही होता है या कोई भी कार्य वर्ग हित मे ही किया जाता है। उनका कहना है की जो लोग यह नहीं सोचते या सोच पाते की जो भी कदम सरकार उठा रही है वो मूलतः किस वर्ग (मालिक पूंजीपति वर्ग या मजदूर वर्ग, अमीर वर्ग या गरीब वर्ग, शासक-शोषक वर्ग या शोषित वर्ग) के हीत के लिए उठा रही है वो आदमी या तो धूर्त है या अनभिज्ञ /अंजान।
मालिक वर्ग के नजरिया से जब आप सोचते है की गरीबो इन्दिरा आवास या latrine फ्री मे दिया जा रहा है तब आपको इस सरकारी कदम मे विकास नजर आ रहा है। पर जब उन गरीब लाभूकों के दृष्टिकोण से सोचेंगे तो पाएंगे की उनके खुद का (पुराना स्टाइल का) घर बनवाने का हुनर था (जिसके चलते वो पूंजीवादी बाज़ार का हिसा नहीं बनकर भी अच्छी तरह से जी-खा ले रहा था) उसको खत्म करके उनको बड़ी चालाकी से ईटा, सीमेंट, बालू, छड़ आदि का मार्केट मे प्रबेश करवाने के लिए यह कदम है ताकि कालांतर मे वो भी पूंजीवादी बाज़ार का हिसा बन सके और जिसे पूंजीपति वर्ग के लोग Washington या मुंबई शहर मे बैठकर इंटरनेट के जरिये नचा सके। ठीक उसी तरह 1 रुपैया किलो अनाज दिया जाना को मालिक पुंजपतिओ का दृष्टिकोण से देखेंगे तो आपको देश की विकास नजर आ रहा है। .... और जब इसे आप देश के शोषित गरीब मजदूर-किसान के नजरिया से देखते है तब आप पाएंगे है की मजदूरो को काम-चोर /निकम्मा बनाने के साथ मजदूर-किसान के बीच का संपर्क को बिशैला बनाने और खेती को अलाभकर बनवाने के लिए ऐसा किया जा रहा है ताकि पूंजीपति वर्ग आसानी से कृषि जमीन को हथिया सके। ऐसा ही घटना मोदी सरकार द्वारा फ्री मे रसाई गैस सिलिंडर बांटकर एकतरफ एक सिलिंडर गैस का दाम करीब 400 रुपैया से बढ़ाकर 800 रुपैया कर दिया साथ मे बड़ी चालाकी से करोड़ो गरीब लोगो को गैस का बाज़ार मे सामील भी कर लीआ गया। सरकार को इसका कोई फिक्र नहीं की एक बार जिन गरीबो को फ्री मे गैस मिला वो दोबारा बार गैस भरवा सक्ने के लिए पैसा कहा से जुगाड़ करेगा इस काम को सरकार बाज़ार पर छोड़ दिया। .
......इन सब घटना ठीक वैसा ही है जैसा की शोषक अंग्रेज़ बनिया लोग देश मे चाय की बाज़ार फैलाने के लिए शुरू मे शहर-कस्बो मे स्टॉल खोलकर फ्री चाय पिलवाने का काम किए थे..... बाद मे जब देश के लोग चाय पीने का आदि बन गये तब वे चाय बाज़ार का हिसा बन गए..........
हमे चंद अमीर लोगो के लिए पूंजीवादी विकास नहीं.......हमे सभी लोगो के स्वतः -विकास के लिए समाजवादी विकास चाहिए.....
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