अर्चना उपाध्याय जी कामरेड अतुल अंजान साहब को लाल झंडे का प्रमुख प्रहरी बनाने की बात कहती हैं लेकिन यहाँ तो इस फोटो में उनकी उपस्थिती को ही नकार दिया गया है ।
एक तीर से तीन शिकार और चिराग तले अंधेरा :
===================
भाकपा में वंशवाद व एकाधिकार न होने की बात " चिराग तले अंधेरा " होने की एक ज्वलंत उक्ति है। उत्तर - प्रदेश भाकपा में मास्को रिटर्ण्ड एक ऐसे कामरेड का बोलबाला है जिनकी जन्मगत जाति को अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व मिला हुआ है और उनका दावा है कि , वह जिसकी पीठ पर हाथ रखेंगे वही यू पी में टिक सकेगा दूसरा कोई नहीं। उनका यह भी निर्देश है कि, obc व sc कामरेड्स से सिर्फ काम लिया जाना चाहिए लेकिन उनको कोई पद नहीं देना चाहिए। इसी थीसिस पर दो बार प्रदेश पार्टी का विभाजन भी हो चुका है।
इनके द्वारा 2014 में एक राष्ट्रीय सचिव कामरेड से वायदा किया गया था कि, 2015 की इलाहाबाद कांग्रेस के जरिये डॉ गिरीश को हटा देंगे लेकिन उनके बाद ' मुन्ना ' बन जाएँगे और वह भी ज़्यादा अच्छे नहीं हैं। फिर इन दोनों के पर्यवेक्षण में ही डॉ साहब को रिपीट करवा लिया था और अब मऊ में भी इन दोनों के पर्यवेक्षण में ही उनको चौथी बार निर्वाचित करके अपने मजबूत एकाधिकारी वर्चस्व की छाप दी है। यदि इसका विश्लेषण किया जाये तो सिद्ध होगा कि, इसके द्वारा एक साथ तीन शिकार किए गए हैं।
( 1 ) ' मुन्ना ' साहब जिनको यह अच्छा नहीं मानते हैं दूसरी बार भी वंचित कर दिये गए।
( 2 ) जिन राष्ट्रीय सचिव कामरेड को 2014 में वायदा किया था उनको जतला दिया कि, यह उनको कोई महत्व नहीं देते हैं और यू पी पार्टी पर इनका एकक्षत्र आधिपत्य है।
( 3 ) डॉ साहब के केंद्रीय राजनीति में सक्रिय होने के मंसूबे को एक बार फिर मसल दिया और उनको यू पी में ही उलझाए रखा। इस संदर्भ में यह फिर से याद करने की बात है कि, 2012 की पटना की राष्ट्रीय कांग्रेस में जब डॉ साहब को पहली बार राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल करने की घोषणा हुई थी तो एक पूर्ण सदस्य के रूप में हुई थी लेकिन जब लिस्ट जारी हुई तब यू पी के स्वएकाधिकारी इन कामरेड के इशारे पर डॉ साहब को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में परिणत कर दिया गया था और डॉ साहब को उन राष्ट्रीय सचिव को दोषी मानने की बात समझा दी गई थी क्योंकि, पूर्व - योजनानुसार डॉ साहब को उन राष्ट्रीय सचिव के साथ ही ठहरवा दिया था।
पार्टी की ऐसी गतिविधियों की ही छाप बाहर कैसी पड़ती है उसका नमूना है इतिहासकार रामचन्द्र गुहा का यह लेख :
यदि वस्तुतः भाकपा को अपनी खोई हुई शक्ति पुनः प्राप्त करनी है ( प्रथम आम चुनाव में वह प्रमुख विपक्षी दल के रूप मे आई और केरल मे प्रथम निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार बनाई थी ) तो थोथे पूर्वाग्रहों को छोड़ कर भारत की जनता को अपने साथ जोड़ना होगा क्योंकि,
* 'साम्यवाद'=समष्टिवाद है जिसमे व्यक्ति विशेष का नहीं समाज का सामूहिक कल्याण सोचा और किया जाता है। अतः साम्यवाद ही परम मानव-धर्म है। साम्यवाद के तत्व वेदों मे मौजूद हैं। ऋग्वेद के अंतिम सूक्त मे मंत्रों द्वारा दिशा-निर्देश दिये गए हैं।
** 'धर्म' के सम्बन्ध मे निरन्तर लोग लिखते और अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं परंतु मतैक्य नहीं है। ज़्यादातर लोग धर्म का मतलब किसी मंदिर,मस्जिद/मजार ,चर्च या गुरुद्वारा अथवा ऐसे ही दूसरे स्थानों पर जाकर उपासना करने से लेते हैं। इसी लिए इसके एंटी थीसिस वाले लोग 'धर्म' को अफीम और शोषण का उपक्रम घोषित करके विरोध करते हैं । दोनों दृष्टिकोण अज्ञान पर आधारित हैं। 'धर्म' है क्या? इसे समझने और बताने की ज़रूरत कोई नहीं समझता।
*** मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध बनाने के लिए जो प्रक्रियाएं हैं वे सभी 'धर्म' हैं। लेकिन जिन प्रक्रियाओं से मानव जीवन को आघात पहुंचता है वे सभी 'अधर्म' हैं। देश,काल,परिस्थिति का विभेद किए बगैर सभी मानवों का कल्याण करने की भावना 'धर्म' है।
प्रथम विश्व - युद्ध की परिस्थितियों से लाभ उठा कर 1917 में जब कामरेड लेनिन ने बोलेश्विक क्रांति के माध्यम से रूस में साम्यवाद की स्थापना की थी तब वह भी कृषी - प्रधान देश ही था वहाँ का औद्योगिक विकास साम्यवादी शासन की देंन है। 'धर्म ' की गलत व्याख्या पर उसे ठुकराने का ही परिणाम था कि, 1991 में वह वहाँ से उखड़ गया।
द्वितीय विश्व - युद्ध के परिणामों ने जब चीन में साम्यवादी व्यवस्था कायम की तब वह भी कृषी - प्रधान देश ही था। आज वहाँ भी State Capitalism ही कम्यूनिज़्म के नाम पर चल रहा है - वह साम्यवाद नहीं है।
भारत में 'आर्थिक ' संघर्ष के आधार पर न तो साम्यवाद आ सका है न आ सकेगा जब तक कि, यहाँ आर्थिक शोषण के मजबूत आधार जातिवाद और ब्रहमनवाद पर प्रहार नहीं किया जाता। इसके बगैर कामरेड अतुल अंजान साहब के नेक आह्वान को ब्रहमनवाद द्वारा ध्वस्त ही किया जाता रहेगा।
No comments:
Post a Comment