*उत्तर - प्रदेश भाकपा के वरिष्ठ नेता पाँच राज्यों में भाजपा की हार पर खुशी मना रहे हैं तो मानवाधिकार नेत्री आगाह कर रही हैं कि आज कांग्रेस की जीत पर इतनी खुशी मना कर भविष्य में कांग्रेस के उत्पीड़न व शोषण के विरुद्ध आवाज कैसे उठाएंगे ? .................................
**सुश्री सीमा आज़ाद जी द्वारा दी गई चेतावनी समस्त जनवादी व साम्यवादी विचार - धारा के लोगों को ध्यान में रखनी चाहिए और आर एस एस की दो - दलीय प्रणाली को कामयाब नहीं होने देना चाहिए।
उत्तर - प्रदेश भाकपा के वरिष्ठ नेता पाँच राज्यों में भाजपा की हार पर खुशी मना रहे हैं तो मानवाधिकार नेत्री आगाह कर रही हैं कि आज कांग्रेस की जीत पर इतनी खुशी मना कर भविष्य में कांग्रेस के उत्पीड़न व शोषण के विरुद्ध आवाज कैसे उठाएंगे ?
वस्तुतः भाजपा व कांग्रेस की आर्थिक नीतियाँ एक ही हैं । 1991 में नरसिंघा राव की कांग्रेस द्वारा घोषित मनमोहिनी नीतियों की भूरी - भूरी प्रशंसा न्यूयार्क जाकर एल के आडवाणी यह कह कर की थी कि, कांग्रेस ने उनकी नीतियों को चुरा लिया है। 1980 में सत्ता में पुनर्वापिसी हेतु इन्दिरा गांधी द्वारा आर एस एस का अप्रत्यक्ष समर्थन लिया गया था। तब RSS द्वारा इन्दिरा सरकार को पूर्ण हिन्दू - बहुमत की सरकार बताया जाता था। तभी से श्रम - न्यायालयों में श्रमिकों के विरुद्ध निर्णय पारित किए जाने शुरू हुये थे। 1985 के चुनावों में राजीव गांधी भी आर एस एस के समर्थन से ही प्रचंड बहुमत में आए थे। उनके कार्यकाल में ही बाबरी मस्जिद का ताला खोला गया था और 1992 में नरसिंघा राव के कार्यकाल में उसे ढहा दिया गया था। 1998 से 2004 के कार्यकाल में भाजपा ने ए बी बाजपेयी के नेतृत्व में प्रशासन में आर एस एस के लोगों को भर दिया था।2011 में आर एस एस, भाजपा, कारपोरेट के समर्थन से जो हज़ारे अभियान चला था उसका उद्देश्य कारपोरेट - भ्रष्टाचार को संरक्षण देना था जिसे तत्कालीन कांग्रेसी पी एम का अप्रत्यक्ष समर्थन भी प्राप्त था । इसी अभियान के रथ पर सवार होकर मोदी सरकार सत्तारूढ़ हुई थी।
अहंकार के वशीभूत होकर मोदी - शाह ने आर एस एस को ही नियंत्रित करने का प्रयास किया जिसके परिणाम स्वरूप आर एस एस ने उनको सबक सिखाने और कालांतर में उनसे छुटकारा पाने हेतु 1980 व 1985 की तर्ज पर छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा को पूरा - पूरा समर्थन नहीं दिया वरना बिना संगठन के कांग्रेस कैसे जीत पाती ?
कांग्रेस तो अब भी अहंकार में ही थी तभी तो क्षेत्रीय दलों से तालमेल नहीं किया वरना भाजपा राजस्थान व मध्य प्रदेश मेँ बुरी तरह से पराजित हो जाती। कांग्रेस नायक राहुल गांधी द्वारा मंदिर - मंदिर जाकर आर एस एस की हिंदुत्ववादी - कारपोरेट समर्थक नीतियों को मूक समर्थन दिया गया और बदले में आर एस एस का अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त किया गया। आर एस एस को भस्मासुर बने मोदी - शाह से छुटकारा न पाना होता तब तीन राज्यों में कांग्रेस की पुनर्वापिसी भी संभव न होती। 2019 में भाजपा की पुनर्वापिसी की सूरत में मोदी - शाह द्वारा आर एस एस को कब्जाने का खतरा न होता तो आर एस एस को उनका समर्थन करने से भी परहेज न होता। शासन,प्रशासन,पुलिस,सेना,खुफिया संस्थानों सभी जगह आर एस एस के लोग पदस्थापित हो चुके हैं अतः भाजपा विरोधी दलों की सरकार बनने पर भी आर एस एस की पकड़ बनी रहेगी।
इस संदर्भ में अखिलेश यादव व मायावती को कांग्रेस से सहयोग करते हुये सतर्कता बरतने की जरूरत होगी।
सुश्री सीमा आज़ाद जी द्वारा दी गई चेतावनी समस्त जनवादी व साम्यवादी विचार - धारा के लोगों को ध्यान में रखनी चाहिए और आर एस एस की दो - दलीय प्रणाली को कामयाब नहीं होने देना चाहिए।
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14-12-2018 :
शासन,प्रशासान ,पुलिस,सेना,खुफिया एजेंसियां और न्यायपालिका सभी जगह आर एस एस के लोग बैठाये जा चुके हैं तभी तो जज साहब फैसले में लिख देते हैं कि उनका विश्वास मोदी में है।
जजों का विश्वास संविधान व कानून से हट कर एक व्यक्ति - विशेष में हो जाना ' तानाशाही ' की आहट का आभास कराता है।
आर एस एस ने जनसंघ के माध्यम से भारत में दो - दलीय प्रणाली को लागू करवाने की मांग उठाई थी। आज सत्ता व विपक्ष दोनों पर अधिकार जमा कर वह निर्णायक की भूमिका में आने को प्रयासरत है। जज साहब का फैसला उसी की एक बानगी भर है।
( विजय राजबली माथुर )
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**सुश्री सीमा आज़ाद जी द्वारा दी गई चेतावनी समस्त जनवादी व साम्यवादी विचार - धारा के लोगों को ध्यान में रखनी चाहिए और आर एस एस की दो - दलीय प्रणाली को कामयाब नहीं होने देना चाहिए।
उत्तर - प्रदेश भाकपा के वरिष्ठ नेता पाँच राज्यों में भाजपा की हार पर खुशी मना रहे हैं तो मानवाधिकार नेत्री आगाह कर रही हैं कि आज कांग्रेस की जीत पर इतनी खुशी मना कर भविष्य में कांग्रेस के उत्पीड़न व शोषण के विरुद्ध आवाज कैसे उठाएंगे ?
वस्तुतः भाजपा व कांग्रेस की आर्थिक नीतियाँ एक ही हैं । 1991 में नरसिंघा राव की कांग्रेस द्वारा घोषित मनमोहिनी नीतियों की भूरी - भूरी प्रशंसा न्यूयार्क जाकर एल के आडवाणी यह कह कर की थी कि, कांग्रेस ने उनकी नीतियों को चुरा लिया है। 1980 में सत्ता में पुनर्वापिसी हेतु इन्दिरा गांधी द्वारा आर एस एस का अप्रत्यक्ष समर्थन लिया गया था। तब RSS द्वारा इन्दिरा सरकार को पूर्ण हिन्दू - बहुमत की सरकार बताया जाता था। तभी से श्रम - न्यायालयों में श्रमिकों के विरुद्ध निर्णय पारित किए जाने शुरू हुये थे। 1985 के चुनावों में राजीव गांधी भी आर एस एस के समर्थन से ही प्रचंड बहुमत में आए थे। उनके कार्यकाल में ही बाबरी मस्जिद का ताला खोला गया था और 1992 में नरसिंघा राव के कार्यकाल में उसे ढहा दिया गया था। 1998 से 2004 के कार्यकाल में भाजपा ने ए बी बाजपेयी के नेतृत्व में प्रशासन में आर एस एस के लोगों को भर दिया था।2011 में आर एस एस, भाजपा, कारपोरेट के समर्थन से जो हज़ारे अभियान चला था उसका उद्देश्य कारपोरेट - भ्रष्टाचार को संरक्षण देना था जिसे तत्कालीन कांग्रेसी पी एम का अप्रत्यक्ष समर्थन भी प्राप्त था । इसी अभियान के रथ पर सवार होकर मोदी सरकार सत्तारूढ़ हुई थी।
अहंकार के वशीभूत होकर मोदी - शाह ने आर एस एस को ही नियंत्रित करने का प्रयास किया जिसके परिणाम स्वरूप आर एस एस ने उनको सबक सिखाने और कालांतर में उनसे छुटकारा पाने हेतु 1980 व 1985 की तर्ज पर छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा को पूरा - पूरा समर्थन नहीं दिया वरना बिना संगठन के कांग्रेस कैसे जीत पाती ?
कांग्रेस तो अब भी अहंकार में ही थी तभी तो क्षेत्रीय दलों से तालमेल नहीं किया वरना भाजपा राजस्थान व मध्य प्रदेश मेँ बुरी तरह से पराजित हो जाती। कांग्रेस नायक राहुल गांधी द्वारा मंदिर - मंदिर जाकर आर एस एस की हिंदुत्ववादी - कारपोरेट समर्थक नीतियों को मूक समर्थन दिया गया और बदले में आर एस एस का अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त किया गया। आर एस एस को भस्मासुर बने मोदी - शाह से छुटकारा न पाना होता तब तीन राज्यों में कांग्रेस की पुनर्वापिसी भी संभव न होती। 2019 में भाजपा की पुनर्वापिसी की सूरत में मोदी - शाह द्वारा आर एस एस को कब्जाने का खतरा न होता तो आर एस एस को उनका समर्थन करने से भी परहेज न होता। शासन,प्रशासन,पुलिस,सेना,खुफिया संस्थानों सभी जगह आर एस एस के लोग पदस्थापित हो चुके हैं अतः भाजपा विरोधी दलों की सरकार बनने पर भी आर एस एस की पकड़ बनी रहेगी।
इस संदर्भ में अखिलेश यादव व मायावती को कांग्रेस से सहयोग करते हुये सतर्कता बरतने की जरूरत होगी।
सुश्री सीमा आज़ाद जी द्वारा दी गई चेतावनी समस्त जनवादी व साम्यवादी विचार - धारा के लोगों को ध्यान में रखनी चाहिए और आर एस एस की दो - दलीय प्रणाली को कामयाब नहीं होने देना चाहिए।
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14-12-2018 :
शासन,प्रशासान ,पुलिस,सेना,खुफिया एजेंसियां और न्यायपालिका सभी जगह आर एस एस के लोग बैठाये जा चुके हैं तभी तो जज साहब फैसले में लिख देते हैं कि उनका विश्वास मोदी में है।
जजों का विश्वास संविधान व कानून से हट कर एक व्यक्ति - विशेष में हो जाना ' तानाशाही ' की आहट का आभास कराता है।
आर एस एस ने जनसंघ के माध्यम से भारत में दो - दलीय प्रणाली को लागू करवाने की मांग उठाई थी। आज सत्ता व विपक्ष दोनों पर अधिकार जमा कर वह निर्णायक की भूमिका में आने को प्रयासरत है। जज साहब का फैसला उसी की एक बानगी भर है।
( विजय राजबली माथुर )
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13-12-2018 |
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