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पूंजीवाद का गहन होता आर्थिक संकट मजदूर-गरीब किसानों से आगे बढ़ता हुआ अब मध्यम वर्ग को चपेट में लेने लगा है। रोजगार के अभाव के बाद अब पहले से 'सुरक्षित' सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार में लगे भी अब इसकी मारक जद में आने लगे हैं। पहले 11 विज्ञान शोध केंद्र, अब बीएसएनएल, एचएएल, आदि में वेतन-भत्ते मिलना दूभर हो रहा है। विज्ञान के उच्च शिक्षा संस्थानों में मिलने वाली केवीपीवाई/इंस्पायर जैसी छात्रवृत्तियाँ कम की जा रही हैं या 6-6 महीने देर से मिल रही हैं।
गहन होते आर्थिक संकट के बावजूद तेज आर्थिक वृद्धि का भ्रम बनाए रखने के लिए सरकार ने अनुत्पादक खर्चों व अमीरों के उपयोग के इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च को तेजी से बढ़ाया जिसका बड़ा हिस्सा भी हथियारों की डील में अनिल अंबानी जैसों की तिजोरी में गया। दूसरी ओर, सरमायेदारों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष करों में भारी छूट दी गई जो आम मेहनतकश जनता पर बढ़ाए करों, शुल्कों, भाडों से पूरी न हो सकती इसलिए कर वसूली बजट लक्ष्य से तकरीबन 2 लाख करोड़ रु नीचे है। इसके लिए सरकार ने रिजर्व बैंक पर लाभांश का शिकंजा कसा, अपनी कंपनियों को अपनी ही दूसरी कंपनियों को बेचकर उन्हें दिवालिया कर दिया, सबसे बड़ी बात एफ़सीआई जैसी सार्वजनिक कंपनियों के नाम पर बड़ा कर्ज लिया जो सरकारी कर्ज के आंकड़ों से छिपा रहा, संकट को छिपाने के लिए एसबीआई, एलआईसी को पैसा लगाने के लिए बाध्य किया, प्रोविडेंट फंड तक को भी दांव पर लगा दिया। पिछले कुछ महीने से मोदी के चुनाव प्रचार के लिए भी बड़ी मात्रा में सरकार ने खर्च किया है। नतीजा यह है कि सरकार कर हर अंग अब नकदी समस्या से दो-चार है।
सरकार की हरचंद कोशिश रही कि चुनाव तक इस संकट को छिपाये रखा जाए। मैं बार-बार यही कहता रहा हूँ कि चुनाव बाद कोई सरकार हो वो इस संकट का तकलीफदेह बोझ मेहनतकश जनता पर डालेगी ही, इसका कोई और विकल्प नहीं। पर अब तो चुनाव के पहले ही संकट छिप नहीं पा रहा, कहीं न कहीं से फूट कर बाहर निकल आ रहा है। सिर्फ वेतन-भत्ते ही नहीं, इसका असर कुछ वक्त बाद मध्यम वर्ग के पीएफ, बीमा, म्यूचुअल फंड में लगाई गई बचत की रक़मों पर भी दिखाई देगा, जिसके भरोसे वे अपने जीवन को सुरक्षित मान रहे हैं।
हे मध्यम वर्गीय टटपुंजिया भक्तों, भरोसा रखो, पूंजीवाद का आर्थिक संकट मजदूर, गरीब किसान तो झेलते ही आ रहे हैं, उनके खून की तो हर अतिरिक्त बूंद निचोड़ डाली गई है, पर तुम्हारे 'हिंदू हृदय सम्राट ' के चमत्कारी विकास के कारनामों का नतीजा भुगतने के लिए तुम भी अब कमर कस ही लो! उसका वक्त भी अब करीब आ रहा है।
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