ब्रिटिश राज में कम्युनिस्टों पर् जुल्म(28,अगस्त की पोस्ट से आगे)
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साथियों पिछली पोस्ट में हमने कॉमिन्टर्न की 7 वीं कांग्रेस में व्यापक साम्राज्यवाद विरोधी संयुक्त मोर्चे पर ज्योर्जी दिमित्रोंव और वांग मिंग की रिपोर्ट का हवाला दिया था उसी कर्म में कॉंग्रेस में भारतीय मूल के ब्रिटिश कम्युनिस्टनेता और1929 के मेरठ षड्यंत्र केस के अभियुक्त ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बेन ब्रेडले ने भारत सम्वन्धी रिपोर्टप्रस्तुत की जी इतिहास "दत्तब्रेडलेथीसिस",नाम से जानताहै। पाठक सवाल करेंगे कि क्यो इन्होंने भारत की तरफ से यह थीसिस प्रस्तुत की।जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से भाग लेने का,एस वी देश पांडे और एस एस मिराजकर रवाना हुए थे लेकिन उन्हें सिंगापुर में गिरफ्तार कर लिया गया इसलिये भारत का प्रतिनिधित्व बेन ब्रेडले ने किया रजनी पामदत्त पहले से ही कॉमिन्टर्न के सदस्य थे।29 फरवरी1936 में यह थीसिस इम्प्रेकोर में प्रकाशित हुई।
"दत्त ब्रेडले थीसिस"का सम्वन्ध भारत में व्यापक साम्राज्यवाद विरोधी जन मोर्चे के निर्माण से है।यह वह ऐतिहासिक समय था जब भारत के विषय में कॉमिन्टर्न को अपनी 6टी कांग्रेस के फैसले में परिवर्तन करना पड़ा। थीसिस का सार संक्षेप इस प्रकार है,:--1-इस समय जो जरूरी है वह यह कि कांग्रेस, टॉड यूनियन, किसान औरयुवा संगठनों में एक सामान्य मंच के रूप में एकता कायम की जाय। इस एकता/समूह बद्धता के लिए न्यूनतम आधार होगा(1)साम्राज्यवाद के विरुद्ध निरंतर सँघर्ष का गतिपथ(लाइन)और पूर्ण आजादी के लिए एक संविधान(2)जनता की आवश्यक आवश्यकताओं के लिए सक्रिय संघर्ष।
2-साम्राज्यवाद विरोधीजन मोर्चेकि आवश्यकता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।इस बात की भी गुंजाइश है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने संगठन और कार्यक्रम में बदलवाकर एक मंच/मोर्चे की जरूरत बन सकती है।
3-लेकिन यह भी मानना जरूरी है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपनी वर्तमान स्थिति में राष्ट्रीय संघर्ष हेतु भारतीय जनता का एक संयुक्त मोर्चा नही है।इसके संविधान में अभी भी जनता के व्यापक हिस्सों की भागीदारी/भूमिका का उल्लेख नही है।इसका राष्ट्रीय सँघर्ष का कार्यक्रम सभी भी पूर्णतः स्पष्ट नही है।इसके नेतृत्व को अभी राष्ट्रीय संघर्ष के नेता के रूप में मान्य नही किया जा सकता।
4-अभी भी मजदूर ,किसा ,ट्रेड्यूनियनें और किसान यूनियने कांग्रेस के संविधान से बाहर हैं।सिर्फ जब तमाम शक्तियां-मजदूर किसानों के जन संगठन चाहे संयुक्त मोर्चे के रूप में,अथवा सामूहिक संबद्धताके जरिये कांग्रेस जुड़ें तभी हम एक ऐसे राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चे को प्राप्त कर सकते हैं जो एक साम्राज्यवाद विरोध जन मोर्चे को विकसित करने में सक्षम होगा।
5,-यह जरूरी है कि आजादी और साम्राज्यवाद विरोधी लड़ाई के कार्यक्रम के साथ साथ मजदूर और किसानों की तात्कालिक आवश्यक आवश्यकताओं को भी शामिल किया जाय।"आगे कहा गया," ऐसे कार्यक्रम में निम्न बातें शामिल की जा सकतीहैं:--"( अ)-पूर्ण आजादी का लक्ष्यऔर जनतांत्रिक सरकार की स्थापना
(ब)-भाषण देने,संगठन बनाने,प्रेस,एकत्रित होने,हड़ताल, और धरने की आजादी।
( स)-तमाम मजदूर विरोधी अपवाद स्वरूप और दमनकारी कानूनों,अध्यादेशों की समाप्ति।
(द)-तमाम राजवंदियों की रिहाई।
(य)-बेतन कटौती,बरख़्वास्तगी का विरोध।सही न्यूनतम वेतन,8 घण्टे का काम,किराए में 50%कटौती, की मांग और ऋण न चुका पाने की स्थिति में किसानों की जमीनों की जब्ती का विरोध। "
यह भी कहा गया कि संघर्ष का केन्द्रीय नारा होगाकि:-बालिग मताधिकार ,सीधे गुप्त मतदान के आधार पर संविधान सभा गंठित की जाय।"
कुल मिला कर" दत्त ब्रेडले थीसिस"में भारतीय कम्युनिस्टों को" भारतीय राष्ट्रीयकांग्रेस को रूपांतरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके अनुसार इस रूपान्तरण के लिए चार सुधारों की जरूरत होगी:-1-कांग्रेस को जन संगठनों को अपने संगठन में सामूहिक प्रवेश देना चाहिए और उनकी सामूहिक संबद्धता स्वीकार कने चाहिए। 2-कांग्रेस को अपने संविधान का प्रजातांत्रिककी करण करना चाहिए।-इसे अपने संविधान से केंद्रीकृत नियंत्रण समाप्त करना चाहिए 3-इसे एक स्पष्ट साम्राज्यवाद विरोधी कार्यक्रम स्वीकार करना चाहिए और्वपूर्ण आजादी और जनतांत्रिक सरकार की मांग करनी चाहिए।और4-इसे अहिंसा का उपदेश/मत खत्म कर देना चाहिए।,"यह भी कहा गया कि इनमें पहला सुधार बाकी की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैताकि इन जन संगठनों के कांग्रेस में प्रवेश से वाम पन्थी धड़े को मजबूती मिल सके परन्तु इससे पहले वामपंथ को अद्वितीय एकता हासिल करनी होगी,इसलिए भारतीय कम्युनिस्टों को प्रतिद्वंदी क्रन्तिकारी समूहों के साथ शांति कायम करनी चाहिए।" दत्त ब्रेडलेथीसिस" में स्पष्ट रूप से कहा गया कि कांग्रेस के भीतर वाम एकता कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।"
ज्योर्जी दिमित्रोंव के निर्देश का अनुगमन करते हुए" दत्त ब्रेडले थीसिस "ने भरतीय कम्युनिस्टपार्टी का आह्वान किया कि वह दक्षिणपंथी नेतृत्व के खिलाफ कांग्रेस के वाम धड़ेको तैयार करे। अर्थात कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के साथ गंठजोड़ करे। भारतीय कम्युनिस्टों को राष्ट्रीय नेतृत्व को कार्यकर्ताओं से अलग थलग करके कांग्रेस का अधिकाधिक साम्राज्यवाद विरोधी ताकत के रूप में रूपांतरण करना चाहिए।" इस दस्तावेज के बाद भारत के कम्युनिस्टों को खुद को सुधारने का रास्ता मिलगया।( क्रमशःशेष अगले अंक में)
https://www.facebook.com/giridhar.pandit.12/posts/500898474079235
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साथियों पिछली पोस्ट में हमने कॉमिन्टर्न की 7 वीं कांग्रेस में व्यापक साम्राज्यवाद विरोधी संयुक्त मोर्चे पर ज्योर्जी दिमित्रोंव और वांग मिंग की रिपोर्ट का हवाला दिया था उसी कर्म में कॉंग्रेस में भारतीय मूल के ब्रिटिश कम्युनिस्टनेता और1929 के मेरठ षड्यंत्र केस के अभियुक्त ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बेन ब्रेडले ने भारत सम्वन्धी रिपोर्टप्रस्तुत की जी इतिहास "दत्तब्रेडलेथीसिस",नाम से जानताहै। पाठक सवाल करेंगे कि क्यो इन्होंने भारत की तरफ से यह थीसिस प्रस्तुत की।जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से भाग लेने का,एस वी देश पांडे और एस एस मिराजकर रवाना हुए थे लेकिन उन्हें सिंगापुर में गिरफ्तार कर लिया गया इसलिये भारत का प्रतिनिधित्व बेन ब्रेडले ने किया रजनी पामदत्त पहले से ही कॉमिन्टर्न के सदस्य थे।29 फरवरी1936 में यह थीसिस इम्प्रेकोर में प्रकाशित हुई।
"दत्त ब्रेडले थीसिस"का सम्वन्ध भारत में व्यापक साम्राज्यवाद विरोधी जन मोर्चे के निर्माण से है।यह वह ऐतिहासिक समय था जब भारत के विषय में कॉमिन्टर्न को अपनी 6टी कांग्रेस के फैसले में परिवर्तन करना पड़ा। थीसिस का सार संक्षेप इस प्रकार है,:--1-इस समय जो जरूरी है वह यह कि कांग्रेस, टॉड यूनियन, किसान औरयुवा संगठनों में एक सामान्य मंच के रूप में एकता कायम की जाय। इस एकता/समूह बद्धता के लिए न्यूनतम आधार होगा(1)साम्राज्यवाद के विरुद्ध निरंतर सँघर्ष का गतिपथ(लाइन)और पूर्ण आजादी के लिए एक संविधान(2)जनता की आवश्यक आवश्यकताओं के लिए सक्रिय संघर्ष।
2-साम्राज्यवाद विरोधीजन मोर्चेकि आवश्यकता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।इस बात की भी गुंजाइश है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने संगठन और कार्यक्रम में बदलवाकर एक मंच/मोर्चे की जरूरत बन सकती है।
3-लेकिन यह भी मानना जरूरी है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपनी वर्तमान स्थिति में राष्ट्रीय संघर्ष हेतु भारतीय जनता का एक संयुक्त मोर्चा नही है।इसके संविधान में अभी भी जनता के व्यापक हिस्सों की भागीदारी/भूमिका का उल्लेख नही है।इसका राष्ट्रीय सँघर्ष का कार्यक्रम सभी भी पूर्णतः स्पष्ट नही है।इसके नेतृत्व को अभी राष्ट्रीय संघर्ष के नेता के रूप में मान्य नही किया जा सकता।
4-अभी भी मजदूर ,किसा ,ट्रेड्यूनियनें और किसान यूनियने कांग्रेस के संविधान से बाहर हैं।सिर्फ जब तमाम शक्तियां-मजदूर किसानों के जन संगठन चाहे संयुक्त मोर्चे के रूप में,अथवा सामूहिक संबद्धताके जरिये कांग्रेस जुड़ें तभी हम एक ऐसे राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चे को प्राप्त कर सकते हैं जो एक साम्राज्यवाद विरोध जन मोर्चे को विकसित करने में सक्षम होगा।
5,-यह जरूरी है कि आजादी और साम्राज्यवाद विरोधी लड़ाई के कार्यक्रम के साथ साथ मजदूर और किसानों की तात्कालिक आवश्यक आवश्यकताओं को भी शामिल किया जाय।"आगे कहा गया," ऐसे कार्यक्रम में निम्न बातें शामिल की जा सकतीहैं:--"( अ)-पूर्ण आजादी का लक्ष्यऔर जनतांत्रिक सरकार की स्थापना
(ब)-भाषण देने,संगठन बनाने,प्रेस,एकत्रित होने,हड़ताल, और धरने की आजादी।
( स)-तमाम मजदूर विरोधी अपवाद स्वरूप और दमनकारी कानूनों,अध्यादेशों की समाप्ति।
(द)-तमाम राजवंदियों की रिहाई।
(य)-बेतन कटौती,बरख़्वास्तगी का विरोध।सही न्यूनतम वेतन,8 घण्टे का काम,किराए में 50%कटौती, की मांग और ऋण न चुका पाने की स्थिति में किसानों की जमीनों की जब्ती का विरोध। "
यह भी कहा गया कि संघर्ष का केन्द्रीय नारा होगाकि:-बालिग मताधिकार ,सीधे गुप्त मतदान के आधार पर संविधान सभा गंठित की जाय।"
कुल मिला कर" दत्त ब्रेडले थीसिस"में भारतीय कम्युनिस्टों को" भारतीय राष्ट्रीयकांग्रेस को रूपांतरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके अनुसार इस रूपान्तरण के लिए चार सुधारों की जरूरत होगी:-1-कांग्रेस को जन संगठनों को अपने संगठन में सामूहिक प्रवेश देना चाहिए और उनकी सामूहिक संबद्धता स्वीकार कने चाहिए। 2-कांग्रेस को अपने संविधान का प्रजातांत्रिककी करण करना चाहिए।-इसे अपने संविधान से केंद्रीकृत नियंत्रण समाप्त करना चाहिए 3-इसे एक स्पष्ट साम्राज्यवाद विरोधी कार्यक्रम स्वीकार करना चाहिए और्वपूर्ण आजादी और जनतांत्रिक सरकार की मांग करनी चाहिए।और4-इसे अहिंसा का उपदेश/मत खत्म कर देना चाहिए।,"यह भी कहा गया कि इनमें पहला सुधार बाकी की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैताकि इन जन संगठनों के कांग्रेस में प्रवेश से वाम पन्थी धड़े को मजबूती मिल सके परन्तु इससे पहले वामपंथ को अद्वितीय एकता हासिल करनी होगी,इसलिए भारतीय कम्युनिस्टों को प्रतिद्वंदी क्रन्तिकारी समूहों के साथ शांति कायम करनी चाहिए।" दत्त ब्रेडलेथीसिस" में स्पष्ट रूप से कहा गया कि कांग्रेस के भीतर वाम एकता कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।"
ज्योर्जी दिमित्रोंव के निर्देश का अनुगमन करते हुए" दत्त ब्रेडले थीसिस "ने भरतीय कम्युनिस्टपार्टी का आह्वान किया कि वह दक्षिणपंथी नेतृत्व के खिलाफ कांग्रेस के वाम धड़ेको तैयार करे। अर्थात कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के साथ गंठजोड़ करे। भारतीय कम्युनिस्टों को राष्ट्रीय नेतृत्व को कार्यकर्ताओं से अलग थलग करके कांग्रेस का अधिकाधिक साम्राज्यवाद विरोधी ताकत के रूप में रूपांतरण करना चाहिए।" इस दस्तावेज के बाद भारत के कम्युनिस्टों को खुद को सुधारने का रास्ता मिलगया।( क्रमशःशेष अगले अंक में)
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