Thursday, 29 December 2016

भारत में मार्क्सवाद मार्क्स के भारत संबंधी विचारों के अनुरूप नहीं अपनाया गया ------ कैलाश प्रकाश सिंह




Kailash Prakash Singh
 29-12-2016 

सन् 1853 में कार्ल मार्क्स ने न्यूयॉर्क डेली टाइम्स में भारत संबंधी कुछ लेख लिखे थे। जिसमें उन्होंने भारत की जातियों और उनके कार्य तथा उनकी मजबूत आर्थिक स्थिति पर चर्चा की थी। अंग्रेजों को भारत में विद्रोह का डर इन्हीं कामगार जातियों के एकीकृत संगठन से था। ये दलित और पिछड़ी जातियाँ हिन्दू-मुसलमान दोनों थीं। मार्क्स इस एकीकृत ग्रामीण जातियों की अर्थव्यवस्था की तारीफ़ करते हैं और इसे आदर्श भी मानते हैं 
भारत में मार्क्सवाद मार्क्स के भारत संबंधी विचारों के अनुरूप नहीं अपनाया गया, बल्कि शुद्ध विचारधारा के रूप में वर्गीय आधार लेकर इसे थोपने की कोशिश की गयी। यहीं समाजवादियों से इनका विरोधा रहा है।
भारत में मार्क्सवाद उच्चशिक्षित वैचारिक आधार का मापदण्ड बन गया था। क्योंकि इसमें अभिजात्य वर्ग के लोग शामिल थे। ज्यादातर उच्च जातियों के लोग थे। उनमें विदेशीपन का दिखावा था, आगे मार्क्सवाद मध्य वर्गियों के लिए मानसिक कसरत का फैशन बन गया। व्यक्तित्व विपर्यय के कारण वामपंथी विदेशीपन का वर्गीय आधार लेकर भारत में राजनीति करना चाहते थे। इनका भारतीय समाज व्यवस्था में मूलचूल बदलाव से कोई लेना देना नहीं था। इनको दो मौके मिले - ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने का और सोमनाथ चटर्जी को राष्ट्रपति बनाने का, दोनों में ये पीछे हट गए।
भारत में वामपंथ की बागडोर हमेशा उच्च जातियों के हाथ में रही है। ये लोग मानसिक रूप से भारतीय जाति व्यवस्था के कायल रहे हैं। इनमें शैक्षिक और सामाजिक हर तरह से अभिजात्य की भावना थी।
इस स्थिति मे वामपंथ के माध्यम से भारत में मूलचूल बदलाव की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

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ब्रहमनवद की फितरत : ---
क्या कहते हैं कि, 'निम्न जाति वाले अपने हाथ में वामपंथ की बागडोर क्यों नहीं ले लेते ? ' 

संगठन में निर्णायक क्षमता रखने वाले मास्को रिटर्ण्ड ब्राह्मण नेता निर्देश देते हैं कि, obc व sc कामरेड्स से काम तो लिया जाये लेकिन उनको कोई पद न दिया जाये। इन नेता की वजह से यू पी में भाकपा दो-दो बार विभाजित हो चुकी है और विधानसभा चुनाव लड़ चुके दो कमरेड्स (obc व sc ) पार्टी छोडने पर मजबूर किए जा चुके हैं। कथनी - करनी का यह अंतर ही भारत में साम्यवाद / वामपंथ को जनता से दूर रखे हुये है।
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Monday, 26 December 2016

वामपंथ की विपक्षता क्या है ? ------ सत्यप्रकाश गुप्ता




Satyaprakash Gupta.
अच्युतानंद ,माणिक सरकार या राहुल गाँधी ? कौन हैं वामपंथी नेता ?
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी बहुत चर्चा में हैं ! सूना कि वाक्-पटु और भाषण-कला-विशारद और मनमोहक प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को जवाब अपने भाषणों से दे रहे हैं और लाखो की भीड़ तालियां बजाती ठहर सी गयी थी ! गुजरात के मेहसाणा में ऐसा ही हुआ और उत्तरप्रदेश के कुछ शहरों में भी राहुल गाँधी को गंभीरता से सुना गया !
ये तो अच्छी बात है कि देश में सडकों पर कांग्रेस पार्टी मुख्य विपक्षी- दल के रूप में उभर रहा है और मनमोहक प्रधानमंत्री अपने पद की गरिमा का ख्याल किये बगैर राहुल गाँधी का मज़ाक उड़ा रहे हैं ! ये तो गलत बात है ! प्रधानमंत्री को राहुल के सवालो का जवाब देना चाहिए न कि ऐसा " वो तो अभी-अभी भाषण -कला में निपुण हो रहे हैं " कह राजनीतिक विदूषक बनना चाहिए !
वामपंथ की विपक्षता क्या है ?
खैर , मुझे सबसे ज़्यादा आश्चर्य तब होता है जब वामपंथ नेता अपनी पब्लिक रैली में राहुल की तरह का सवाल किये बगैर राहुल गाँधी के पक्ष में बोलना शुरू कर दिया है ! वामपंथ की विपक्षता क्या है ? जनता की दुर्दशा में राहुल गाँधी के प्रवचन से "विपक्ष में रहने के भाव को ज़िंदा रखना " भी तो उतना ही गलत है !!!!!
राहुल गाँधी सहारा की डायरी से जो हवाला देते हुए प्रधानमंत्री मोदी के भृष्ट होने का आरोप लगाया था , उससे तो भाजपा को निजात मिल गयी क्योंकि उस डायरी में शीला दीक्षित के नाम के आगे १ करोड़ का घूस लेने का आरोप है ! शीला दीक्षित इस लिस्ट की प्रमाणिकता को गलत बताती है ! वामपंथी पार्टी नेता सीताराम येचुरी को समझना चाहिए कि ये दोनों पार्टियां पूँजी की पक्षधर पार्टियां है !विदेशों  से चंदा लेने पर दोनों पार्टियां फस रही थी तो दोनों ने विदेशी दान के लिए नीति बनाकर दोनों उनसे बाहर हो गयीं.!
कांग्रेस पार्टी और भाजपा में ज़्यादा का फ़र्क़ नहीं है ! पता नहीं एक ईमानदार छवि वाली वामपंथी पार्टी होने के बावज़ूद , अपनी ईमानदारी से क्यों डरी रहती है ? ममता बनर्जी ने पश्चिम बेंगाल से ज़रूर बेदखल कर दिया लेकिन ६ साल हो गए वामपंथी नेता, मंत्री को भ्र्ष्टाचार के आरोप में फसा नहीं सकी बल्कि ममता की पार्टी तृणमूल पार्टी के बहुत सारे विधायक और मंत्री "चिट-फण्ड- घोटाला" में जेल जा चुके हैं !
वामपंथ का स्वर्णिम काल इस देश की आज़ादी से लेकर देश के राष्ट्रवाद को मज़बूत करने में इनके नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अपनी अपना योगदान दिया है ! तेलंगाना का किसान आंदोलन हो या खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ अपने विधायक या अपने कार्यकर्ताओं की शहादत हो , कोई दूसरी पार्टी वामपंथ की शहादत और ईमानदारी के सामने टिक नहीं सकती ! नंदीग्राम एक भयानक गलती हो सकती है लेकिन ये एक भयानक कांस्पीरेसी भी है ! इस के बावज़ूद, वामपंथी नेता और मंत्री पर बेदाग़ हैं !
त्रिपुरा का गरीब और ईमानदार मुख्यमंत्री माणिक सरकार की ईमानदारी से वामपंथ आक्रांत क्यों है ? मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री अपने पूरे परिवार समेत व्यापम के नर-संहारी भ्र्ष्टाचार के आरोप में फसे हैं ! वामपंथ का भारतीय संसदीय इतिहास का चरित्र बेरोक-टोक बेदाग़ है , फिर वामपंथ को हुंकार भरने में परेशानी क्यों पड़ती है ? राहुल गाँधी के हुंकार से कांग्रेस पार्टी मज़बूत होगी, वामपंथ नहीं !
केरल का भूतपूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंद और त्रिपुरा का वर्मन मुख्यमंत्री माणिक सरकार के पास अपना घर नहीं है , बैंक में १०-१५ हज़ार रुपये ..ऐसे छवि वाले मुख्यमंत्रियों और कार्यकर्ताओं को वामपंथ देश के सामने उदहारण नहीं बनाकर कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गाँधी का वास्ता देता है , समझ से परे हैं !
 वामपंथ भी उतना ही ज़िम्मेदार है ! 
इन दोनों वामपंथी मुख्यमंत्रियों की पहचान महानगरों के कॉलेजों में कराया जाए तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इन्हें अरबिंद केजरीवाल, रमन सिंह ,शिवराज्य सिन चौहान,आदि मुख्यमंत्रियों की तुलना में कोई नहीं जानता ! मीडिया तो ज़िम्मेदार है लेकिन वामपंथ भी उतना ही ज़िम्मेदार है ! कभी-कभी तो वामपंथ के आलस्य या नासमझी को मैं देश की गरीब जनता के लिए अभिशाप मानता हूँ ! इन छह पार्टियों के नेताओं को भी देश का मीडिया ठीक से नहीं जानता है ! सारा दोष मीडिया को नहीं दे सकते !सोशल मीडिया पर भी वामपंथ नहीं !
६ वामपंथी दलों की एकता में ऐसी ताकत है कि नोटबंदी से उत्पन्न गरीबों के भयानक हालातों से एक ऐसा आंदोलन खड़ा हो सके कि जनता कम -से -कम आपके बारे में, वामपंथ के बारें में सोचना शुरू कर दें ! माणिक सरकार की ईमानदारी और उनकी सरकार की उपलब्धि के बारे में देश की जनता जानना शुरू कर दें !

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Wednesday, 21 December 2016

यह दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे घातक खेल है : *फाल्स कांशसनेस / छदम् चेतना* ------ प्रेम रंजन

Prem Ranjan

*फाल्स कांशसनेस / छदम् चेतना*
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कार्ल मार्क्स ने अपने सिद्धांतो में एक बहुत रोचक कांसेप्ट की ओर इशारा किया है. अक्सर ही इस कांसेप्ट को वर्ग चेतना और राजनीतिक या अधिक से अधिक सामाजिक सन्दर्भों में रखकर देखा जाता है. यह कांसेप्ट है “क्षद्म चेतना” यानी “फाल्स कांशसनेस”.

भारत में दलितों में ब्राह्मणवादी धर्म के प्रति बना हुआ सम्मोहन :
बहुत सरल शब्दों में कहें तो शोषित और गरीब व्यक्ति की चेतना को शोषक सत्ता द्वारा इस तरह से ढाल दिया जाता है कि वह स्वयं ही शोषण के ढाँचे को सहारा देना शुरू कर देता है. फिर इससे भी आगे बढ़कर वही गरीब आदमी उस ढाँचे के बनावटी दर्शन में ही अपने लिए सुरक्षा, सम्मान और आश्वासन ढूँढने लगता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है आज के भारत में दलितों में ब्राह्मणवादी धर्म के प्रति बना हुआ सम्मोहन. वे जानते हैं कि उन्हें मंदिरों में नहीं घुसने दिया जाता है. उनका कहीं कोई सम्मान नही है फिर भी वे बहुत गहरे में उसी धर्म में उलझे रहते हैं जो उनकी छाया तक से नफरत करता है.
इसी तरह सभी धर्मों की स्त्रियाँ है, वे पित्रसत्तात्मक, पुरुषवादी और सामंतवादी संस्कारों को बनाए रखने में सबसे बडी भूमिका निभाती हैं. अकेला पुरुष अपने परिवार में इस ढाँचे को बनाए नहीं रख सकता. बच्चों में और परिवार के पूरे वातावरण में धर्म या देवी देवता या बाबाओं सहित पुरुष की श्रेष्ठता की धारणा को ज़िंदा रखना स्त्रीयों के सक्रिय सहयोग के बिना संभव ही नहीं है. गौर से देखें तो ये बहुत अजीब और डरावनी बात है. ये बहुत बड़ा सवाल है कि भारत के दलित या सब धर्मों की स्त्रीयां अपनी ही बर्बादी में इतना निवेश क्यों करते/करती हैं?:
छद्म चेतना का कारनामा : 
यह बात तब तक नहीं समझी जा सकती जब तक कि मार्क्स की क्षद्म चेतना की धारणा को न समझा जाए. एक खालिस और अनकंडीशंड व्यक्ति में स्वयं के प्रति, स्वयं की समस्याओं के प्रति और उस समस्या के संभावित समाधान के प्रति एक साफ़ सोच और समझ होती है. मोटे अर्थों में इसे व्यक्ति की स्वयं के प्रति जागरूकता या चेतना कहा जा सकता है. जैसे एक खालिस गरीब यह देख पाता है कि मैं गरीब हूँ. लेकिन एक धार्मिक गरीब यह मानता है कि मैं अपने कर्मों के कारण ईश्वरीय विधान के कारण पाप का फल भोग रहा हूँ, यह भुगतान पूरा होते ही मेरे अच्छे दिन आ जायेंगे. इस तरह की सोच छद्म चेतना का कारनामा है. इस तरह वह गरीब आदमी गरीबी से लड़ने में ताकत लगाने की बजाय गरीबी को बनाए रखने वाले ढाँचे को बचाने रखने में अपनी ताकत लगाए रखता है.
एक आदमी या स्त्री की अपनी तटस्थ या अन कंडीशंड चेतना या जागरूकता ही असल में उसके ज़िंदा होने की या इंसान 
होने के नाते उसकी सबसे बड़ी पूँजी होती है. यह चेतना अगर साफ़ और स्पष्ट हो तो उसे अपने शोषण और उस शोषण के कारण व निवारण सहित शोषकों के षड्यंत्रों को समझने में ज़रा देर नहीं लगती. लेकिन शोषक सत्ताएं – चाहे वे धर्म हों या राजनीति- वे सबसे गहरा और सबसे पहला हमला यहीं करते हैं.
हर देश के बच्चों गरीबों और महिलाओं को बहुत शुरुआत से ही धर्म की गुलामी सिखाई जाती है. कुछ जाने पहचाने से चेहरों या सिद्धांतो में दिव्यता का आरोपण कर उनका आदर करना सिखाया जाता है. आप इनका जितना आदर करेंगे उतना आदर और सुरक्षा आपको मिलेगा. ये डील है. लेकिन यह सिक्के का एक पहलू है. इस सम्मान और सुरक्षा के बदले आपसे बहुत बड़ी कीमत माँगी जाती है. आपको शोषण के एक अनंत घनचक्कर में घूमना होता है जिसमे से कहीं कोई मुक्ति नहीं होती. इसलिए मुक्ति नहीं होती कि आपको खुद को ही इस शोषण के ढाँचे को बनाए रखने के लिए काम पर लगा दिया जाता है.

स्त्रियाँ  और दलित  धर्म के जुए को ढो रहे हैं : 
इस देश में स्त्रीयां और दलित हजारों साल से इस धर्म के जुए को ढो रहे हैं. पोंगा पंडितों के पंडालों में गड्ढा खोदने वाले, टेंट लगाने वाले, बर्तन साफ करने वाले और सब तरह के श्रम करने वाले “स्वयं सेवकों” को गौर से देखिये. वे आधे से ज्यादा दलित ही हैं, आगे चलकर यही जुलूसों और दंगों में सबसे आगे धकेले जाते हैं. और इन बाबाओं की बकवास सुनकर ताली बजाने वाली भीड़ में भी अस्सी प्रतिशत से अधिक महिलायें ही मिलेंगी. उनमे भी आधी से अधिक दलित या शूद्र (ओबीसी) महिलायें होंगी.
अब मजा ये कि उनसे इस बारे में प्रश्न करो तो वे नाराज होते/होती हैं. उन्हें ये प्रश्न उनकी अपनी अस्मिता पर उठाये गए “गंदे प्रश्न” लगते हैं. उन्हें ज़रा भी एहसास नहीं होता कि उनके शत्रुओं ने उनको सम्मोहित करके छोड़ दिया है. इस सम्मोहन के कारण ही वे अपना और अपनी अगली पुश्तों का भविष्य पोंगा पंडितों और दंगाइयों के हाथों सौंप देते हैं.
यह दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे घातक खेल है. इसको आँख खोलकर जिस दिन महिलायें और दलित देख लेंगे उसी दिन उनके जीवन में क्रान्ति हो जाती है. बाकी सबकुछ अपने आप हो जाता है.

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(समस्या की जड़ है-ढोंग-पाखंड-आडंबर को 'धर्म' की संज्ञा देना तथा हिन्दू,इसलाम ,ईसाईयत आदि-आदि मजहबों को अलग-अलग धर्म कहना जबकि धर्म अलग-अलग कैसे हो सकता है? वास्तविक 'धर्म' को न समझना और न मानना और ज़िद्द पर अड़ कर पाखंडियों के लिए खुला मैदान छोडना संकटों को न्यौता देना है। धर्म=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। 
भगवान =भ (भूमि-ज़मीन )+ग (गगन-आकाश )+व (वायु-हवा )+I(अनल-अग्नि)+न (जल-पानी)
चूंकि ये तत्व खुद ही बने हैं इसलिए ये ही खुदा हैं। 

इनका कार्य G(जेनरेट )+O(आपरेट )+D(डेसट्राय) है अतः यही GOD हैं। )
भारत  में  साम्यवादियों  / वामपंथियों  ने यूरोप  के मजहबों  के लिए प्रयुक्त रिलीजन शब्द  का अर्थ 'धर्म ' मान कर जो भूल की है और 'नास्तिकता' - एथीज़्म  का लबादा ओढ़ रखा है उसी का दुष्परिणाम है जनता से कटे रहना जिसका सीधा सीधा लाभ सांप्रदायिक / मजहबी तत्वों को मिला है और केंद्र में फासिस्ट सरकार स्थापित हो सकी है। यदि भारत के साम्यवादी / वामपंथी  मानसा- वाचा- कर्मणा संगठित होकर जनता को वास्तविक 'धर्म ' का 'मर्म ' समझाएँ तो अब भी सफलता मिल सकती है और जनता के कष्टों का निवारण हो सकता है। 
------ विजय राजबली माथुर 
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Saturday, 26 November 2016

नोटबंदी : कुप्रबन्ध/असुविधा के सवाल तक सीमित करना --- जनता के गुस्से को पूंजीवाद के खिलाफ जाने से रोकने का प्रयास है ------ मुकेश त्यागी

धन गरीब लोगों से अमीर तबके के पास जायेगा :  इसीलिए यह सब पूंजीपति इसके समर्थन में खड़े हैं ------

नोटबंदी - वर्गीय नजरिये से कुछ गंभीर सवाल :
भारत एक वर्गविभाजित और बेहद असमानता वाला समाज है - 1% शीर्ष तबके के पास 58% सम्पदा है, 10% के पास 81%, जबकि नीचे के 50% के पास सिर्फ 2% संपत्ति है! ऐसे समाज में किसी भी फैसले का असर सब पर समान नहीं हो सकता। इसलिए हर फैसले से किसे फायदा और किसे नुकसान है उसके आधार पर ही उसका समर्थन और विरोध उस वर्ग के सचेत लोग करते हैं। 
शहरी क्षेत्र में :
लगभग 90% भारतीय असंगठित, अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं और इनकी आमदनी नकदी में है। नकदी के अभाव से इनके छोटे धंधे बंद हो रहे हैं या इनका रोजगार छिन जा रहा है। इन मजदूरों और छोटे कारोबारियों दोनों को ही इसकी वजह से या तो और भी खून चुसू मजदूरी पर काम करने को मजबूर होना पड़ रहा है या अपना माल बड़े कारोबारियों को उनकी मनमानी कीमतों पर बेचकर नुकसान उठाना पड़ रहा है। नहीं तो सूदखोरों के पास जाकर अपनी भविष्य की कमाई का एक हिस्सा सूद के रूप में उनके नाम लिख देने के साथ किसी तरह कुछ बचाकर इकठ्ठा की गई एकाध बहुमूल्य वस्तु गिरवी भी रखने की मज़बूरी है जो वापस ना आने की बड़ी संभावना है। :
ग्रामीण क्षेत्र में गरीब किसान अपनी जमीनों से हाथ धो बैठेंगे :
यही स्थिति गांवों में किसानों की है जिन्हें एक और तो अपनी खरीफ की फसल को नकदी की कमी में औने-पौने दाम बेचने की मज़बूरी है, वहीँ अगली फसल की बुआई के लिए साधन जुटाने वास्ते सूदखोरों से 30-50% के सूद पर कर्ज लेना मज़बूरी है जिसके लिए खेत और गहने भी गिरवी रखे जाते हैं। धनी किसानों-कारोबारियों (यही सूद का धंधा भी करते हैं) के अपने वर्ग आधार की मदद करने के लिए सरकर ने सहकारी बैंकों/समितियों पर भारी रुकावटें भी लगा दी हैं क्योंकि इनसे कुछ मध्यम-छोटे किसानों को कुछ कर्ज मिलता था, अब वह रास्ता भी बंद हो गया है। इस प्रक्रिया में बहुत से गरीब किसान अपनी जमीनों से हाथ धो बैठेंगे। एक और बात जो मैं प उप्र के कुछ जिलों के अपने अनुभव के आधार पर कहना चाहता हूँ (दूसरी जगहों के साथी वहां की स्थिति बता सकते हैं) वह यह कि पिछले तीन वर्षों में खेती-किसानी के संकट ने पहले ही जमीनों की कीमतों में कमी कर दी है। मेरठ-मुजफ्फरनगर के कुछ क्षेत्रों में सिर्फ खेती लायक जमीनों की कीमतें 40% तक नीचे आई हैं। ऐसे हालात में कर्ज लेने वाले किसानों के लिए स्थिति और भी खराब होने वाली है, कम कर्ज के लिए ज्यादा खेत गिरवी तथा संकट की स्थिति में जमीन बेचने पर ओर कम कीमत मिलने की मज़बूरी। इस स्थिति में छोटे-मध्यम किसानों की जमीनों को इन धनी किसानों-कारोबारियों द्वारा खरीदकर उन्हें मजदूर बनाने की प्रक्रिया में और भी तेजी आएगी।
मजदूर स्त्रियों का ज़्यादा शोषण :

मेहनतकश लोगों में भी सबसे ज्यादा शोषित मजदूर स्त्रियां होती हैं जिन्हें श्रम के शोषण के साथ पुरुषवादी समाज का भी अत्याचार झेलना होता है। शराबी, अपराधी, गैरजिम्मेदार मर्दों से विवाहित स्त्रियों लिए नकदी के रूप में रखी कुछ छिपाई हुई रकम मुसीबत के वक्त का सहारा होती है। अब यह रकम इनमें से ज्यादातर के हाथ से निकल गई है। 
अपने पुराने नोटों को बदलवा पाने में असमर्थ रहने वाले गरीब लोगों को दलालों के जरिये 20-40% और कमीशन के रूप में होने वाला नुकसान भी एक बड़ी मार है। याद रखें कि अभी भी 5 करोड़ से ज्यादा वयस्क लोगों के पास आधार या और कोई पहचान नहीं है। यह एक और रूप है जिसमें धन गरीब लोगों से अमीर तबके के पास जायेगा। साथ ही जो नकदी जनता के बड़े हिस्से को अपने छोटे कारोबारो की working capital या वक्त जरुरत की बचत को बैंकों में जमा करने के लिए मजबूर किया गया है उस पर बैंकों ने तुरन्त ही ब्याज दरें घटा दी हैं मतलब उधर भी नुकसान! 
रोजगार का अकाल : 
जहाँ तक संगठित क्षेत्र के कुछ बेहतर स्थिति वाले निम्न मध्यवर्गीय कर्मचारियों का सवाल है, उन्हें पहले ही घटते निर्यात और घरेलू माँग में कमी से कम होते निवेश की वजह से नौकरियों से हाथ धोना पड रहा है (L&T की खबर बाहर आई है लेकिन ऐसा ही निर्माण, इंफ्रास्ट्रक्चर और IT आदि की कई कंपनियों में चल रहा है)। अब नकदी के अभाव से माँग और निवेश में मंदी से यह प्रक्रिया और तेज होगी। 
पूंजीपति और अमीर तबके को लाभ :
इसके विपरीत हम पूंजीपति और अमीर तबके की स्थिति पर नजर डालते हैं। सस्ती ब्याज दरों पर जमा की रकम से अब बैंक कर्ज की ब्याज दरों को भी घटा रहे हैं। यह कर्ज कौन लेता है? यह कर्ज का 80% हिस्सा पूंजीपतियों और उच्च मध्यम वर्ग के अमीरों द्वारा निवेश से और कमाई के लिए लिया जाता है। अब सस्ती ब्याज दरों से इन्हें तुरंत इसका फायदा होगा, उनकी पूंजी की लागत कम होने से मुनाफा बढ़ेगा। दस बड़े पूंजीपति घरानों ने ही 7.3 लाख करोड़ रुपये बैंकों से कर्ज लिया है। अगर ब्याज दर 1% भी कम हो तो इन्हें 7300 करोड़ रुपये का लाभ होगा जो इन गरीब जमा करने वालों की जेब से आएगा। इसीलिए यह सब पूंजीपति इसके समर्थन में खड़े हैं। 
निम्न मध्य वर्गीय लोग भू - विहीन होंगे :
अब जमीन-मकान आदि संपत्ति की कीमतें कम होने के सवाल पर आते हैं। हमें समझना चाहिए कि कीमतें बढ़ने और कम होने दोनों चक्रों का फायदा उसी तबके को होता है जिसके पास पूंजी, सूचना और पहुँच होती है। पिछले सालों में जिन बहुत से लोगों ने कर्ज लेकर महँगी कीमतों पर जमीन-मकान ख़रीदे हैं अब नौकरियां-मजदूरी काम होने की स्थिति में इनको ही कम कीमतों पर बेचने को मजबूर होना पड़ेगा ना कि रियल एस्टेट के कारोबारियों को। बल्कि ये कारोबारी ही फिर से सस्ती कीमतों पर संपत्ति खरीद कर अगले कीमत वृद्धि चक्र में मुनाफा कमाने की स्थिति में होंगे, ना कि सपने देखते निम्न मध्य वर्गीय लोग। अमेरिका में वित्तीय संकट के दौरान यही हुआ। निम्न मध्य वर्गीय लोगों ने कर्ज लेकर जो घर महंगे दामों पर ख़रीदे थे, रोजगार छिन जाने से जब उनकी किश्तें जमा ना हुईं तो बैंकों ने उन्हें अपने कब्जे में लेकर नीलाम कर दिया जिसे संपत्ति के कारोबारियों ने औने-पौने दामों ख़रीदा तथा अब फिर से इनकी कीमतें 2008 के स्तर पर आने से भारी मुनाफा कमाया। डूबे कर्ज खरीदने का भी एक बड़ा कारोबार है जिसके लिए कई कम्पनियाँ भारत में भी खड़ी हो चुकी हैं। 
मीडिया और विश्लेषकों का झूठ :
जहाँ तक पूंजीवादी तबके के मीडिया और विश्लेषकों का सवाल है, वे इसे अस्थाई तकलीफ के बाद टैक्स चोरी पर रोक से उचित ठहरा रहे हैं। लेकिन अगर टैक्स चोरी को रोकना है तो वोडाफोन का 20 हजार करोड़ का टैक्स (केर्न, वेदांता, आदि भी हैं) इस सरकार ने माफ़ क्यों किया? अभी साढ़े चार हजार करोड़ के बगैर नियम के टैक्स छूट को CAG ने उजागर किया, वह कैसे? FII और पी नोट्स के पैसे पर टैक्स छूट क्यों? इन सब बड़े टैक्स चोरों को पकड़ने में क्या ऐतराज है?
लूट और डकैती : सरमायेदार तबके की ही सेवा ::
इसलिए जिस तरह विपक्षी पार्टियां, 'वामपंथी' समेत, इस मुद्दे को मात्र कुप्रबन्ध/असुविधा के सवाल तक सीमित कर दे रहे हैं जनता के गुस्से को पूंजीवाद के खिलाफ जाने से रोकने का प्रयास है। क्योंकि यह सिर्फ कुप्रबन्ध से होने वाली तकलीफ का नहीं बल्कि गरीब, कमजोर, वंचित, शोषित, मेहनतकश बहुसंख्यक तबके से ताकतवर और पहुँच वाले पूँजीपति और उच्च मध्यम वर्ग को धन/सम्पदा के बड़े और स्थाई हस्तांतरण, साफ शब्दों में कहें तो लूट और डकैती, का बड़ा सवाल है। इस सवाल को ये पार्टियां नहीं उठाना चाहतीं क्योंकि अंत में ये सब सरमायेदार तबके की ही सेवा करती हैं।
साभार ::
https://www.facebook.com/MukeshK.Tyagi/posts/1565034263523049

Mukesh Tyagi


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26-11-2016 
26-11-2016 
26-11-2016

26-11-2016 

Wednesday, 23 November 2016

सर्वहारा कम्युनिस्ट पार्टियों से निराश क्यों ? ------ हिम्मत सिंह


https://www.facebook.com/hmtsinghdelhi/posts/10209331526797514
Himmat Singh
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आखिरी जंग के लिए आखिरी बेड़ी को तोड़ने का वक्त आ गया है
*बहुजन कम्युनिस्ट पार्टी का ऐलान *
आपको क्या लगता है कि सरकार बहादुर बेवक़ूफ़ है, नया नोट अच्छी तरह से छाप भी नहीं पाई कि विमुद्रीकरण की घोषणा हड़बड़ी में कर दिया. नहीं साहेब नहीं, यह सब बहुत सोच समझ कर और पूरी तैयारी तथा पूरी लाव-लश्कर के साथ उठाया गया कदम है. ब्राह्मणवादी और वह भी आरएसएस के रक्तसंबंध वाली राजनीतिक पार्टी इतनी बेवक़ूफ़ नहीं है. एटीएम में पैसा की कमी, नए नोट के प्रारूप वाले एटीएम मशीन को ढालने में कोताही, कैश की कमी यही तो यह सरकार बहादुर करना चाहती थी. 
सारा बदल देंगे तो फ़ायदा क्या हुआ. अब बाभन (मतलब ब्राह्मणवादी) थोड़े ही चाहेगा कि शूद्रों और मलेच्छों के पास किसी भी प्रकार का संसाधन हो. ये कांग्रेस को जो पानी पी पी कर कोसते हैं, इसलिए नहीं कि भ्रष्टाचार का मसला है बल्कि कांग्रेस्सियों ने थोड़ा बहुत ही सही आजादी के बाद मामूली संख्या में शूद्रों और मलेच्छों को संसाधन रखने का अधिकार क्यों दे दिया था. (मनुस्मृति में साफ़-साफ़ लिखा है कि इन्हें किसी भी प्रकार की संपत्ति रखने का अधिकार नहीं है.) 
अब ये दबे सुर में ही सही आजाद भारत का जैसा भी संविधान है (हमारा मानना है कि और भी जनाधिकार संपन्न संविधान की जरूरत है) को निरर्थक बनाने और इसकी आलोचना शुरू कर चुके हैं. और मनुस्मृति के अनुसार कायदा कानून लाने की कवायद शुरू कर चुके हैं. तो किस्सा ए कोताह ये है कि 70 साल बाद सीधे जब यह मौका मिला है तो महान मनुस्मृति के अनुसार कार्य आरंभ करने से क्यों चूकें?
लइनों में खड़ी भीड़ के प्रति अजीब सी नफ़रत ब्राह्मणवादी सामाज और सरकार बहादुर की ओर से साफ़-साफ़ देखा जा सकता है. जिस प्रकार से कतार में खड़े बहुजन समाज पर लाठियां भांजी जा रही हैं, सेना बनाम कतार में लगना, मालिकों के पैसे लेकर नए नोट बदलवाने वालों की लाइन आदि कह कर लानत-मलामत की जा रही है, यह वही ब्राह्मणवादी मानसिकता है, और अब तो पूरी पूँजी का संकेन्द्रण ब्राह्मणवादी ताकतों के हाथों में है.
यह ब्राह्मणवाद अपने पूरे चरित्र में फासीवादी और नस्ली वैमनष्यता पर टिका हुआ है. कई ऐसे उदाहरण रोज देखने को मिल जायेंगे जब मोदी की तारीफ करने वाला 95 परसेंट सवर्ण हिन्दू ही मिलेगा, इसमें सवर्ण मजदूर भी शामिल है.
अब सवाल ये उठता है कि इसका काट क्या है? इसका सिर्फ और सिर्फ काट बहुजन जनवादी क्रांति में निहित है जो ब्राह्मणवादी पूंजीवाद, ब्राह्मणवादी सामंती उत्पीडन, ब्राह्मणवादी वर्नाश्रमी दर्शन, मान्यता को समूल नष्ट करे. बहुजनों की एक कम्युनिस्ट पार्टी ही इस हमले का कारगर और मुंहतोड़ जवाब देगा, जहाँ बहुजन सामाज को हज़ारों सालों से चली आ रही हर प्रकार की गुलामी से निजात दिलाएगा.
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हिम्मत सिंह जी के बेबाक विचार भारत में वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टियों का नेतृत्व जन्मजात ब्राह्मणों के हाथ में होने से उपजी निराशा व हताशा का स्व्भाविक परिणाम हैं। वस्तुतः लगभग सभी कम्युनिस्ट पार्टियों का नेतृत्व ऐसे ब्राह्मण या ब्राह्मण वादी नेताओं के हाथ में है जिनका अभिमत है कि, sc व obc कामरेड्स से सिर्फ काम लिया जाये लेकिन उनको कोई पद न सौंपा जाये। जबकि भारत में सर्वहारा  दलित व पिछड़ा वर्ग से ही संबन्धित है। यही कारण है कि, 1925 से आज तक कम्युनिस्ट पार्टियां देश के जनमानस के समर्थन से वंचित चली आ रही हैं। 
केवल आर्थिक आधार पर जनता को भारत में लामबंद नहीं किया जा सकता है जब तक कि सामाजिक असमानता को भी दूर करने की बात न उठाई जाये जिस कारण '*बहुजन कम्युनिस्ट पार्टी का ऐलान *' की बात सामने आई है। छात्र नेता कन्हैया कुमार ने 'जय भीम, लाल सलाम ' का नारा असली सर्वहारा को कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ जोड़ने के लिए दिया है लेकिन शीर्ष नेतृत्व इस पर अमल करने का इच्छुक नहीं है। इसीलिए फ़ासिज़्म तेज़ी से अपने पैर मजबूती के साथ फैलाता जा रहा है जो भारत के भविष्य के लिए दुखद है जिसके लिए सभी कम्युनिस्ट पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व उत्तरदाई है। 
(विजय माथुर )
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24-11-2016 

Wednesday, 16 November 2016

काला धन क्या है ? डॉ राज बहादुर गौड़ की नज़रों से ------


वास्तविक काले धन वालों पर ठोस कार्यवाही करो: आम जनता को राहत दो- भाकपा

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय सचिव मंडल के वक्तव्य के परिप्रेक्ष्य में भाकपा के उत्तर प्रदेश राज्य सचिव मंडल ने निम्नलिखित बयान जारी किया है—
लखनऊ, 16 नवंबर 2016 - भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भ्रष्टाचार, काले धन और नकली मुद्रा के खिलाफ संघर्ष के अपने संकल्प को दोहराते हुये महसूस करती है कि श्री मोदी सरकार द्वारा अचानक बड़े नोटों को प्रचलन से बाहर कर देने के आदेश ने आम जनता खास कर खोमचे वालों, रोज कमा कर खाने वालों, वेतनभोगियों, खुदरा कारोबारियों, छोटे किसानों, खेत मजदूरों तथा दस्तकारों के सामने बड़ी कठिनाइयां खड़ी कर दी हैं. सरकार को विमुद्रीकरण की इस कार्यवाही पर तत्काल पुनर्विचार करना चाहिये.
राजनैतिक उद्देश्यों से बिना तैयारी के की गयी इस कार्यवाही के बाद से आम लोगों की जेबें खाली हैं. अधिकतर को एटीम अथवा बैंकों से धन मिल नहीं पा रहा है अथवा बहुत कम मिल पारहा है. अतएव अर्थाभाव में बीमार दम तोड़ रहे हैं, तमाम लोग भूखों मर रहे हैं, लंबे समय तक लाइनों में खड़े लोगों की दिल के दौरे पडने से मौतें होरही हैं, अनेक आत्महत्या कर चुके हैं और असहाय लोग आपस में लड़ रहे हैं, पुलिस से लड़ रहे हैं, बैंकों पर तोड़ फोड़ कर रहे हैं अथवा बैंककर्मियों पर गुस्सा उतार रहे हैं. काम के भारी बोझ के चलते बैंक कर्मी बीमार पड़ रहे हैं और कई की मौत तक हो चुकी है. शादी विवाह वाले परिवारों को भारी कठिनाइयां आरही हैं. पर लोगों की समस्याओं का निदान करने के बजाय प्रधानमंत्री जनता को इमोशनली ब्लैकमैल कर रहे हैं.
मुद्रा के अभाव में तमाम औद्योगिक व्यापारिक और कृषि संबंधी गतिविधियां ठप पड़ी हैं. उद्योगों में उत्पादन ठप है. निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र ओंधे मुहं पड़ा है, ट्रान्सपोर्ट और परिवहन पंगु होचुका है और पर्यटन उद्योग जाम की स्थिति में है. किसान बुआई के लिये खाद बीज नहीं खरीद पारहे और उनके अनाज फल सब्जियां बिक नहीं पारहे. मनरेगा तक ठप पड़ी हैं. शहरी मजदूर पलायन कर रहे हैं और तमाम मजदूर उधार पर काम करने को मजबूर हैं. विकास और अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है.
दो हजार के नोट के कारण भारी कठिनाइयां खड़ी होरही हैं क्योंकि इसको छुट्टा करने को छोटे नोट उपलब्ध नहीं है. अतएव 50, 100, 1000, के नोटों को ज्यादा प्रचलन में लाने की जरूरत है. दो हजार के नोट से तो काले धन को संरक्षित करने में और अधिक सुविधा होगी. जिस तरह का यह नोट छपा है उसका डुप्लीकेट भी आसानी से छापा जा सकता है. अतएव दो हजार के नोट को प्रचलन से वापस लेना चाहिये.
यदि सरकार को कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था को खत्म करने को वाकई संजीदा प्रयास करना था तो उसे सबसे पहले विदेशों में जमा 80 हजार करोड़ के उस धन को वापस लाना था जिसे लाने का ढिंढोरा भाजपा लोकसभा के चुनाव अभियान में पीटती रही. विक्की लीक्स द्वारा विदेशों में जमा धन और पनामा पेपर्स लीक के अनुसार विदेशों में निवेशकर्ताओं के खुलासे के आधार पर सरकार को ठोस कार्यवाही करनी चाहिये थी. नकली नोटों के करोबारी, हवाला वालों तथा काले धन के 7 करोड़ सरगनाओं पर कार्यवाही करने के बजाय सरकार ने 118 करोड़ निरीह जनता के खिलाफ युध्द छेड़ दिया.
इसके अलावा सरकार को उन बड़े धन्ना सेठों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिये जिन्होने बैंकों से लिये कर्ज को हड़प लिया और बैंकों ने उसे बट्टे खाते में डाल दिया. सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दी गयी जानकारी के अनुसार 87 व्यक्तियों जिन पर 500 करोड़ से अधिक बकाया है पर कुल 85 हजार करोड़ बकाया है. यदि इस सूची में 100 करोड़ तक के बकायेदारों को भी शामिल कर लिया जाये तो यह बकाया राशि एक लाख करोड़ से अधिक बैठेगी. इसके अलावा 100 करोड़ से कम वाले भी बहुत सारे हैं. सरकार को इन गैर उत्पादित परिसंपत्तियों ( एनपीए ) की बसूली के लिये शीघ्र ठोस कदम उठाने चाहिये तथा इन कर्जदारों की संपत्तियों को जब्त करना चाहिये.
इस तरह की रिपोर्ट्स भी मिल रही हैं कि बहुत सारे लोगों, राजनैतिक दलों के नेताओं, भाजपा समर्थक उद्योगपतियों और भाजपा ने करोड़ों करोड़ रुपये पिछले महीनों में बैंकों में डाल दिया और काले धन को सुरक्षित व्यवसायों में निवेशित कर दिया क्योंकि उन्हें विमुद्रीकरण की इस कार्यवाही के बारे में पता था. सभी पूंजीवादी दलों की धड़ल्ले से चल रही गतिविधियां इसका जीता जागता प्रमाण हैं. सबसे आगे भाजपा है जिसकी 75 रथयात्रायें उत्तर प्रदेश/ उत्तराखंड में चल रही हैं और मोदी – शाह की बेहद खर्चीली रैलियां आयोजित की जारही हैं. बैंकों को ऐसे जमाकर्ताओं की सूची जारी करनी चाहिये.
भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने पार्टी की समस्त शाखाओं एवं कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे काले धन से संबंधित मांगों, विदेशों में जमा धन और निवेशित धन  तथा एनपीए की बसूली तथा दो हजार के नोट को वापस लेने व 50, 100, 500 और एक हजार के नोट को ज्यादा से ज्यादा प्रचलन में लाने की मांग को लेकर केंद्रीय सरकार के कार्यालयों, खासकर आयकर कार्यालयों और बैंकों के समक्ष मार्च, धरने और प्रदर्शन करें. जनता और बैंक कर्मियों की राहत के लिये ठोस कदम उठाने की मांग भी केंद्र सरकार से की जानी चाहिये.
भाकपा कार्यकर्ताओं को कठिनाइयां झेल रहे लोगों की भी हर संभव मदद आगे बढ कर करनी चाहिये.
डा. गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा उत्तर प्रदेश





07-10-2011 शनिवार को ओसमानिया  मेडिकल कालेज , हैदराबाद को उनकी इच्छानुसार  पूर्व सांसद डॉ राज बहादुर गौड़ का  93 वर्ष की आयु में देहदान किया गया था । जफर  मोहिउद्दीन साहब  द्वारा प्रस्तुत संक्षिप्त विवरण के अनुसार वह एक संघर्षशील और कर्मठ नेता थे। 

लगभग 30 वर्ष पूर्व जब मैं भाकपा का सक्रिय सदस्य नहीं था , होटल एंड रेस्टोरेन्ट वर्कर्स यूनियन के कार्यकर्ता की हैसियत से उस कार्यशाला में शामिल हुआ था जो गली रंग रेज़ान, आगरा की एक धर्मशाला में आयोजित की गई थी। श्रमिक क्लास में बोलते हुये भाकपा केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य  डॉ राज बहादुर गौड़  साहब ने ' काला धन '  पर भी प्रकाश डाला था । डॉ साहब ने स्पष्ट कहा था कि, सरकार सिर्फ उस धन को काला मानती है जिसे टैक्स बचा कर जमा किया जाता है। लेकिन वास्तव में  काला धन वह है जो 'उत्पादक' (किसान और मजदूर ) व 'उपभोक्ता ' ( ग्राहक  - जनता ) का शोषण करके एकत्र किया गया है चाहे उस पर टैक्स दिया गया हो अथवा नहीं। 
किसी कारखाने में मजदूर के श्रम के अनुसार पूरी मजदूरी न देकर मालिक द्वारा जो 'सरप्लस वैल्यू' जमा की जाती है वह भी काला धन है। किसान की उपज का पूरा मूल्य न देकर और ग्राहक जनता को अधिक मूल्य पर बेच कर जो धन जमा किया गया है वह भी काला धन है। 
इस लिहाज से मोदी सरकार द्वारा नई नोट नीति को काला धन पर प्रहार बताना गैर जिम्मेदाराना कथन है। आज के कम्युनिस्ट पार्टी के बयान में भी वास्तविक काला धन के बारे में जनता को जागृत करने का कोई प्रयास नहीं है। चतुर्दिक जनता की त्राहि- त्राहि पर कोई निकट समाधान का आसार नहीं दीखता है। जनता तो 'होइन्हें कोऊ नृप हमहू का हानि ' के विचारों की अनुगामी है लेकिन जिनका कार्य  जनता को जागृत करना है वे भी कर्तव्य विमुख हो जाएँ तब देश का भविष्य निश्चय ही अंधकारमय दीखता है। 

Wednesday, 9 November 2016

ऐतिहासिक रैली में सांप्रदायिकता रूपी अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को रोकने का संकल्प

फोटो सौजन्य से डॉ प्रदीप शर्मा 


लखनऊ ,9 नवंबर 2016 : 
आज लक्ष्मण मेला मैदान छह वामपंथी दलों  - भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्स वादी ), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ( मार्क्स वादी - लेनिनवादी ), आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक, रिवोल्यूशनरी  सोशलिस्ट पार्टी एवं सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर आफ इंडिया ( कम्युनिस्ट ) की एक संयुक्त रैली का गवाह बना । पूरे प्रदेश के कोने कोने से आए कार्यकर्ताओं में अपार जोश देखने को मिला और वरिष्ठ नेताओं ने भी अपने भाषणों के जरिये यह संदेश देने में कोई कोताही नहीं बरती कि, 2017 का चुनाव सभी वामपंथी दल  मिल कर जनता को एक वैकल्पिक व्यवस्था देने के लिए लड़ने के प्रति कटिबद्ध हैं। 

सभा का  सफल संचालन भाकपा उत्तर प्रदेश के सह - सचिव कामरेड अरविंद राज स्वरूप ने किया । मंचासीन लोगों में आशा मिश्रा, ताहिरा हसन, डॉ गिरीश चंद्र शर्मा, शिव नारायण चौहान, डॉ हीरा लाल यादव आदि एवं राष्ट्रीय  नेता गण  सर्व कामरेड डी राजा , सीताराम येचूरी, सुभाषिनि  अली, दीपंकर भट्टाचार्य, अरुण कुमार सिंह, देब ब्रत बिस्वास के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। 


प्रादेशिक नेताओं द्वारा अपने विचार रखने के बाद  राष्ट्रीय नेताओं में भाकपा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड डी राजा ने मोदी सरकार द्वारा अपने ही वायदों को तोड़े जाने के दृष्टांत प्रस्तुत किए । जनता से उन्होने अङ्ग्रेज़ी में संबोधित करने की बात हिन्दी में कही और शेष भाषण अङ्ग्रेज़ी में दिया जिसका हिन्दी अनुवाद इप्टा के राष्ट्रीय सचिव राकेश ने प्रस्तुत किया। 


भाकपा माले के दीपंकर भट्टाचार्य ने भू अधिग्रहण द्वारा किसानों को लूटे जाने को विशेष चुनावी मुद्दा बनाए जाने पर ज़ोर दिया। जन समस्याओं के लिए संयुक्त संघर्ष करने पर अन्य नेताओं ने भी बल दिया। 


माकपा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड सीताराम येचूरी ने 'राम ' के नाम का दुरुपयोग करने वाली मोदी सरकार द्वारा 'सांप्रदायिकता के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े ' को उसी प्रकार रोके जाने की आशा व्यक्त की जिस प्रकार स्वम्य 'राम ' के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को 'लव ' - ' कुश ' नामक जुड़वां भाइयों द्वारा रोक दिया गया था। कामरेड येचूरी ने आज के जुड़वां भाइयों 'लव ' - ' कुश ' का परिचय  'हंसिया ' और 'हथौड़ा ' के रूप में दिया। उनका कहना था कि, जिस दिन ' किसान ' और 'मजदूर ' जुड़वां भाइयों द्वारा सांप्रदायिकता के रथ को रोक दिया जाएगा तभी शोषण कारी सांप्रदायिक शक्तियों का पराभव हो जाएगा और वह दिन अब दूर नहीं है। 






रैली में एक प्रस्ताव पारित करके प्रमुख मांगो को जोरदार तरीके से उठाया गया जो इस प्रकार हैं : 



( सभी नेताओं ने इस रैली को ऐतिहासिक बताया है। लेकिन रैली के बीच कार्यकर्ताओं विशेषकर लखनऊ के कार्यकर्ताओं के बीच यह भी फुसफुसाहट थी कि, अगर इस रैली के मंच से कामरेड अतुल अंजान का सम्बोधन होता और उनके नाम से प्रचार किया गया होता तो इस मैदान पर स्थानीय जनता की भी उपस्थिती ज़रूर रहती। लखनऊ वासी अतुल अंजान को लखनऊ की जनता का प्यार प्राप्त है और उसे आकर्षित करने के लिए 'अंजान ' का नाम ही पर्याप्त है किन्तु विद्वेष की भावना से ओत  -प्रोत उनकी अपनी ही पार्टी के प्रादेशिक नेताओं की नादानी से लखनऊ की जनता को इस ऐतिहासिक रैली से नहीं जोड़ा जा सका यह बात भी उतनी ही ऐतिहासिक है ।) ------ विजय राजबली माथुर 

Friday, 4 November 2016

जयशंकर प्रसाद सिंह ने जो दौलत कमाई वो आदर्श है हमारे लिए ----- राम कृष्ण



की सबसे बड़ी कमाई ।

राम कृष्ण
Begusarai
आज तीन बजे इस दुनिया को अलविदा कर गये कामरेड जयशंकर प्रसाद सिंह ।जब कामरेड बीमार थे तब मैंने उनके व्यक्तित्व पर लिखा था।कामरेड जयशंकर सिंह के बारे मे आप जानिए कि वो उनका व्यक्तित्व कितना शानदार और महान था।हमें उनके व्यक्तित्व और जीवनशैली से सीखने की जरूरत है ।
कन्हैया के पिता जयशंकर प्रसाद सिंह आखिरी सांस ले रहे हैं ।अभी उनको आक्सीजन लगाया गया है ।किसी भी पल उनकी सांसे उनका साथ छोड़ देगी।यो तो जो आया है वो जायेगा यही प्रकृति का नियम है ।जयशंकर सिंह सारी जिंदगी मेहनत मजदूरी करते रहें परिवार चलाने के लिए मगर एक घर तक नही बना पाये।विरासत में जो खपरैल का घर मिला उसकी मरम्मत तक नहीं करवा सके ।तीन बेटा और एक बेटी को उन्होंने उच्च शिक्षा दिलवाया।बच्चों को पढाने और उनके मुँह में निवाला देने के लिए जयशंकर सिंह ने ड्राइवर की नौकरी की और ट्रक से बालू और गिट्टी उतारने वाले मजदूर की नौकरी भी की मगर इस बात का उन्हें कोई मलाल नहीं था ।उनके साथ काम करने वाले लोगों ने अपने जमीर को बेचकर करोड़पति हो गये मगर जयशंकर सिंह ने अपने स्वाभिमान और जमीर को कभी बिकने नहीं दिया ।अपने सारे अरमानो को अपने परिवार पर कुर्बान कर दिया ।खुद भूखे रहे मगर बच्चों को अहसास नहीं होने दिया किसी चीज का,खुद चिथरो में रहे लेकिन बेटो को नया कपड़ा दिलवाया।जयशंकर सिंह अगर जिस दिन बिमार पड़ जाते उस दिन घर में चुल्हा नहीं जलने की स्थिति उतपन्न हो जाती थी।लेकिन जयशंकर सिंह ने कभी कोई गलत रास्ता नहीं अपनाया कभी दुनिया की चमक दमक देखकर इनका कदम नही डगमगाया,कभी महलो के ख्वाब नहीं देखे ।कभी अपने ईमान का सौदा नहीं किया और ना ही किसी के आगे हाथ फैलाया,कन्हैया के जेल जाने के बाद बहुत से लोगों ने आर्थिक मदद देने की पेशकश की लेकिन उसे ठुकरा दिया ।
आज से पाँच साल पहले जयशंकर प्रसाद सिंह लकवाग्रस्त हो गये।लकवा की वजह से ना वो चल सकते थे ना कोई काम कर सकते थे ।मगर जिस प्रकार जयशंकर सिंह ने अपने बच्चों की खातिर अपनी अरमानो को दबा लिया था।ठीक उसी प्रकार उनका बेटा अपने पिता को गोद मे लेकर श्रवण कुमार की तरह पटना से लेकर दिल्ली तक ईलाज करवाया ।जैसे बाप ने बेटे की परवरिश के लिए अपना लहू पानी की तरह बहाया वैसे ही बेटा ने बाप की इलाज के अपना लहू पानी की तरह बहाया ।
मैंने देखा है लोग अनैतिक तरिके से कितने लोगों के हको को लूट कर अरबो कमा लेते हैं ।और उनके बेटे उन्हें एक लोटा पानी भी नहीं देता है ।अरबों कमाकर देने के बावजूद बेटा बेईमान कहता हैं ।पतोहू गाली देती है ।मैंने लोगों की बहुओ को यह कहते सुना है बुढबा इतना बड़ा घर बनाया है यह खयाल नहीं रखा बटवारा कैसे होगा।करोड़ों कमाने वाले या तो नौकरो के मोहताज रहते हैं या खुद बनाकर खाते है ।उनके बच्चों में लड़ाई होती है संपत्ति को लेकर और बाप को उसके बच्चे बेईमान ठहराते है ।करोड़ों कमाने वाले का बेटा कहता हैं उसको ये दे दिया हमको कुछ नही ।करोड़ों कमाने वाले का बेटा बाप की शिकायत मुहल्ले और रिश्तेदारों में घूम घूम कर करता हैं ।
वही जयशंकर सिंह ने अपने बच्चों के परवरिश में अपना लहू पानी की तरह बहाये थे ।और उनका बेटा अपने पिता के ईलाज में अपना लहू पानी की तरह बहाकर ईलाज करवाते रहा।बाप ने जैसे खुद चिथड़े पहनकर बेटे को नया कपड़ा पहनाते थे।बेटा भी बाप के सेवा में कोई कसर नही छोड़ा ।बाप ने कभी बेटा को नहलाया था कपड़ा पहनाया था बेटा भी बाप को नहलाने कपड़ा पहनाने से लेकर पैखाना फेकने तक से पीछा नहीं हटा।
अमीर कौन ? जिसने करोड़ों कमाया और आज उसके बच्चे भी उसे बेईमान कहते हैं या जयशंकर प्रसाद जो सारी जिंदगी मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार को खड़ा किए और गंभीर परिस्थितियों में उनका परिवार उनके साथ खड़ा रहा ।मेरी नजर में सबसे बड़ी दौलत जयशंकर प्रसाद सिंह ने कमाया।भले ही महल उन्होंने तैयार नहीं किया लेकिन जो दौलत उन्होंने कमायी वो आदर्श है हमारे लिए ।
महलो मे साजिशे होती है मगर झोपड़ी में प्यार पलता हैं और यह प्यार जयशंकर सिंह की पूंजी है और दुनिया की सबसे बड़ी कमाई ।
आज जब जयशंकर सिंह को देखने उनके घर गया तो उनका एक बेटा बाप का सर अपने गोद में रखे हुए था और ऐसा लगता था कि उसकी आंखों से आंसू की धारा बह रही हो बड़ा बेटा शरीर को सहला रहा था।बेटी पंखा झल रही थी और उनकी पत्नी बेटो के के सर पर हाथ फेर रही थी।सभी एक दूसरे को संभालने का भरपूर प्रयास कर रहे थे।लेकिन ये आंखे कहां मानती यह छलक ही पड़ती हैं ।खुद को जितना भी सम्भालने की कोशिश करते आंख भर ही आती हैं ।मैं इस परिवार का प्यार और अपनत्व देखकर मेरी आंखे छलक पड़ी और राम लक्ष्मण भरत शत्रुधन की तरह भाईयो का प्यार इनके बच्चों में है।
जयशंकर प्रसाद सिंह के बेटों के चेहरे पर पिता के खोने का डर आँसू की शक्ल में बाहर आ रहा था।कन्हैया पर क्या बीत रही होगी कह नही सकता ।कन्हैया भी शाम तक आ रहे हैं ।
कामरेड जयशंकर प्रसाद सिंह आप सारी जिंदगी जिस शोषण की चक्की में पिसते रहे हैं ।इस देश की अस्सी फीसदी आबादी शोषण की उसी चक्की में पिस रहा है और उस शोषण की चक्की को आपका बेटा ध्वस्त कर देगा।आप कन्हैया के ही पिता नहीं है आप सच्चे मायनों में राष्ट्रपिता है ।कुछ लोग कहते हैं कन्हैया गरीब भूखमरी शोषण पर अच्छा बोलता हैं ।साहब यह बहुत बड़ा झूठ है ।कन्हैया ने बचपन से जो गरीबी भूखमरी देखी हैं जो शोषण देखा है वो दर्द उसके जबान से निकलता है ।कन्हैया गरीबी पर बोलता नहीं है ।गरीबी झेली हैं उसने और वही बोलता है जो उसने महसूस किया किया हैं ।कन्हैया जैसे बेटे को आपने पैदा किया जयशंकर प्रसाद सिंह जी आपने।कन्हैया सबसे बड़ा राष्ट्रवादी है और आप उसके पिता हैं इसलिए मैं आपको कन्हैया का पिता नहीं राष्ट्रपिता कहता हूं क्योंकि कन्हैया इस देश के अस्सी फीसदी आबादी का नायक है और आप उसके पिता हैं ।इस देश को आप पर नाज हैं ।
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Sushil Kumar
बेगूसराय से मर्माहत करने वाली जानकारी मिली है |साथी कन्हैया के पिताजी का. जयशंकर हमारे बीच नहीं रहे |कई बीमारियों से लड़ते हुए अंततः लगभग 1.30 बजे रात में उन्होंने हमारा साथ छोड़ दिया | मैंने भी अपना एक अभिभावक खो दिया |पिछले कई मुलाकातों में काफी कष्टों में होने के बावजूद वे हमेशा ऐसे बोल उठते थे कि लगता है कुछ हुआ हीं नहीं हो |काफी देर तक नई बदलती परिस्थितियों पर बात करना और अपनी चिंता छोड़ दूसरों के लिए पीड़ित आपको मैंने पाया |इतनी परेशानियों में होने के बाद भी वे कामरेड लाल सलाम बोलते हुए पुनः उर्जान्वित कर देते थे | कामरेड आपने हमेशा रास्ता दिखाया है ,आप हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहेंगे |आप हमारे बीच नहीं रहकर भी हमेशा हमारी यादों में जिंदा रहेंगे और पथ-प्रदर्शक बने रहेंगे | AISF बिहार राज्य परिषद की तरफ से कामरेड आपको श्रद्धांजलि |


आज कामरेड कन्हैया के पिताजी का देहांत हो गया। कामरेड जयशंकर सिंह अपने जीवन में लगातार संघर्षों के लिए जाने जाते हैं। उनके संघर्शील जीवन को सलाम।
कन्हैया की जिंदगी का सब से मजबूत स्तंभ और सब से अहम् हिस्सा कन्हैया के पिताजी अब नहीं रहे रात को 1:30 पर उन का निधन हो गया कन्हैया की इस दुखद घडी में हम कन्हैया के साथ मजबूती से खड़े है।


Roshan Suchan feeling sad with Kanhaiya Kumar.
5 hrs
साथी कन्हैया के पिता कामरेड जयशंकर प्रसाद का निधन श्रधांजलि
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कामरेड कन्हैया कुमार के पिता कामरेड जयशंकर प्रसाद सिंह का निधन हो गया है। जो काफी लंबे अरसे से बीमार चल रहे थे। इस भारी दुःख और मुसीबत की घडी में हम साथी कन्हैया के साथ दुःख व्यक्त करते हैं। कन्हैया और उनका परिवार बहुत ही बहादुर है। कन्हैया के पिता जी के जज़्बे को सलाम जो बीमारी की हालात में भी जब कन्हैया और उसकी विचाराधारा पर आरोप लगे तो वो उस विचारधारा के साथ मज़बूती से खड़े रहेI हमारी पूरी संवेदनाए इस शोक संतपत परिवार के साथ है। AISF की और से श्रधांजलि ..



नहीं रहे कॉमरेड जयशंकर सिंह। कामरेड जयशंकर सिंह की पहचान बस इतनी नहीं है कि वो कन्हैया के पिताजी थे उन की पहचान अपने आप में उस दबंग ईमानदार और निर्भीक इंसान की भी थी जो अपने स्वाभिमान के लिए जीते थे।

Vijai RajBali Mathur  बेहद दुखद खबर है। कामरेड जयशंकर सिंह को लाल सलाम । हम उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। कन्हैया व उनके परिवारी जन धैर्य रखें व उनके बताए मार्ग पर चलते रहें।

सूचना मिली कि श्री कन्हिया कुमार के पिता जी का देहांत हो गया है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की उत्तर प्रदेश राज्य कॉउंसिल अपना गहरा शोक व्यक्त करते हुए उनके प्रति अपनी भावभीनी श्रधांजलि अर्पित करती है।
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04-11-2016 

Wednesday, 26 October 2016

देश में लगी आग बुझाने का काम करते हैं ------ कन्हैया कुमार




छात्र नेता कन्हैया कुमार जो अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं 23 अक्तूबर 2016 को लुधियाना में भरी जनसभा में लोगों का आह्वान कर गए हैं कि , अब समय आ गया है जब 80 प्रतिशत गरीब,पिछ्ड़े, उपेक्षित लोगों को अपने शोषण व लूट के विरुद्ध उठ खड़े होना होगा। अगर ऐसा न हो सका तो देश धू - धू कर जल उठेगा। उनका प्रयास इस केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई आग को बुझाने का प्रयास करना है। उनके भाषण की कुछ खास खास बातें इस प्रकार हैं :

*एक किसान अपनी उपज का सरप्लस पुनः उत्पादन में लगाता है जबकि ये पूंजीपति अपने सरप्लस को सट्टे में लगाते हैं जिसका देश और जनता को कोई लाभ नहीं मिलता है। 

* शिक्षा को भी अब पाउच शिक्षा में बदल दिया गया है । जो साधन सम्पन्न हैं उनके लिए पूर्ण शिक्षा और जिनके पास धन व साधन नहीं हैं उनके लिए डिप्लोमा यानि कि, पाउच शिक्षा जो किसी काम की नहीं है। 

*जिस हिन्दू हित  की बात यह सरकार करती है वह भी झूठ है क्योंकि जो 70 प्रतिशत लोग आर्थिक रूप से पिछड़े हुये हैं उनमे भी तो 70 प्रतिशत लोग हिन्दू ही हैं उनके हित के लिए इस सरकार के पास कोई योजना नहीं है फिर किस बात का हिंदूवाद? मतलब कि यह सरकार खुद ही हिन्दू विरोधी भी है। 

*क्रांतिकारी भगत सिंह का नाम मिटा कर मंगलसेन का नाम लाया जा रहा है कौन थे वह क्या जनता उनको जानती है? भगत सिंह को चिंतक - दार्शनिक होने के कारण परिदृश्य से हटाया जा रहा है। 

Sunday, 23 October 2016

किसानों की जमीन छिनने की साजिश चल रही है : अतुल अंजान ------ राम कृष्ण






राम कृष्ण
23-10-2016 
बेगूसराय के (विरपुर )में किसान सभा के सातवें जिला सम्मेलन में आज शामिल होने विरपुर पहुँचा ।कामरेड अतुल अंजान जी को सुनकर लड़ाई लड़ने की प्रेरणा मिलीं ,कामरेड अंजान ने कहा हर दो मिनट के अंदर एक किसान आत्महत्या कर रहे हैं ।पहले सामंतवाद था अब पूँजीवाद अपनी जड़ जमा रहा है ।अंजान जी ने कहा आपने अपने बेटे को b.a,m,a करवाइये ,और अपनी जमीन बचाकर रखिए, क्योंकि जब आपके बेटे को रोजगार नहीं मिले तो खेत बचा रहेगा तो वो खेती करके दाल रोटी का इंतजाम कर सकेगा।जीसने अपना खेत बेच लिया समझो उसने अपना जमीर बेच लिया ।पूंजीवाद अब आपके जमीन पर नजर गड़ाये हुए है ।किसानों की जमीन छिनने की साजिश चल रही है ।एक किसान अठारह एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं रख सकता है ।मगर अडानी और अंबानी को पूरी छूट हैं ।महाराष्ट्र के अंदर फड़नवीस सरकार के शासन मे चार हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके है ।और महाराष्ट्र के रायगढ में किसानों की पचास हजार एकड़ जमीन मुकेश अंबानी को जबरन दे दिया गया।तब किसान सभा किसानों के साथ खड़ा हुआ और भीख माँगकर बड़े बड़े वकील को केस लड़ने के लिए रखा,किसान सभा ने किसानों को संगठित करके और लंबी लड़ाई के दम पर यह केस जीता।और किसानों की जमीन अंबानी से छिनकर किसानों के बीच बाँटा गया।यह किसान सभा की बहुत बड़ी जीत है ।किसानों की जमीन बेचवाकर पूँजीवाद उसे भूमिहिन करने की साजिश कर रहा है ।झारखंड मे किसानों की जमीन जबरन एनटिपीसी लगाने के नाम पर कब्जा किया जा रहा था।जिसका विरोध किसानों ने किया तो चार नौजवान किसानों की गोली मारकर हत्या कर दी जिसमें एक नौजवान स्कूली छात्र था।इस घटना से आक्रोशित होकर हजारों लोग सड़को पर उतर गये है ।
कामरेड अतुल अंजान ने स्वामी सहजानंद सरस्वती के रास्ते संघर्ष करने की बात कही ।स्वामी सहजानंद सरस्वती की सरकारों ने कोई तरजीह नही दिया मगर आज भी किसानों के लिए रोज पूरे देश मे सैकड़ों सभाये होती है ।और बड़े आदर के साथ स्वामी जी का नाम उन सभाओं मे गुंजता हैं ।पूँजीवाद तमाम चीज़ों पर कब्जा करके अब किसानों की जमीन पर कब्जा करना चाहता हैं ।हम साठ साल से ज्यादा की उम्र के किसानों को दस हजार रूपया पेंशन देने की लड़ाई लड़ रहे हैं और ये लड़ाई तभी जिती जा सकती है जब किसान संगठित होंगे ।इस सम्मेलन में पहुँचे किसान अगर दो लाईन पर भी अगर अमल कर लिया तो हम लड़ाई को मुकाम पर पहुंचा सकते हैं ।
किसान सभा मे अतुल अंजान जी को सुनकर सुखद अनुभूति हुई और लड़ाई लड़ने की प्रेरणा मिली।
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23-10-2016 
24-10-2016