Thursday, 15 February 2018

लखनऊ भाकपा का 23 वां ज़िला सम्मेलन सम्पन्न

लखनऊ,15 फरवरी 2018 
आज भाकपा, लखनऊ का 23 वां ज़िला सम्मेलन 22, क़ैसर बाग स्थित पार्टी कार्यालय पर सम्पन्न हुआ। सम्मेलन का संचालन कामरेड ओ पी अवस्थी तथा अध्यक्षता कामरेड फूलचंद यादव,कामरेड आशा मिश्रा, कामरेड अशोक सेठ  आदि के एक अध्यक्ष मण्डल ने की। कामरेड अशोक मिश्रा,कामरेड डॉ गिरीश, कामरेड अरविंद राज स्वरूप की मंच पर विशेष उपस्थिती थी। 
जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ द्वारा तीन वर्षीय रिपोर्ट को सर्व - सम्मति से पारित किया गया। उनके द्वारा प्रस्तुत 21 सदस्यीय ज़िला काउंसिल,दो उम्मीदवार सदस्यों व पाँच विशेष आमंत्रित सदस्यों के पेनल को भी सर्व - सम्मति से स्वीकार किया गया। 
नव - निर्वाचित ज़िला काउंसिल की पहली बैठक कामरेड परमानंद की अध्यक्षता मे सम्पन्न हुई। इस बैठक में निवर्तमान ज़िला मन्त्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ ने नए जिलमंत्री के रूप में कामरेड परमानंद दिवेदी का नाम प्रस्तावित किया जिसे करतल ध्वनि के साथ सर्व - सम्मति से स्वीकार किया गया। कामरेड ख़ालिक़ के प्रस्ताव पर सहायक सचिव के रूप में कामरेड रामपाल गौतम व कामरेड राम इकबाल उपाध्याय, कार्यालय सचिव पद पर कामरेड ओ पी अवस्थी  एवं कोषाध्यक्ष पद पर कामरेड परमानंद को सर्व -  सम्मति से  निर्वाचित किया गया। 
नए जिलामंत्री कामरेड पी एन दिवेदी ने निवर्तमान जिला मंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ के सफल कार्यकाल की चर्चा की और कामरेड ख़ालिक़ ने अपने अनुभवों का उनको सहयोग देते रहने का आश्वासन दिया। दोनों सह - सचिवों ने भी कामरेड दिवेदी को पूर्ण सहयोग करने का आश्वासन दिया।
कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ के प्रस्ताव पर मुझे भी ज़िला काउंसिल में स्थान दिया गया है। मैंने जो अनुभव किया वह यह है कि, 21 सदस्यीय ज़िला काउंसिल में कम से कम 7 सदस्य ब्राह्मण हैं अर्थात 33 प्रतिशत और पदाधिकारियों में पाँच में से चार पदाधिकारी अर्थात 80 प्रतिशत ब्राह्मण हैं। सम्मेलन में पार्टी को जनता तक फैलाने के विचार प्रदेश सचिव डॉ गिरीश ने दिये थे किन्तु संगठन के ब्राह्मण वादी स्वरूप से जनता तक पार्टी की नीतियों के पहुँचने के आसार न के बराबर हैं। यदि प्रदेश व केंद्र में भी पार्टी नेतृत्व पर ब्राह्मण वादी वर्चस्व बना रहता है तब इसके जनता के बीच पकड़ बनाने की संभावनाओं को धक्का लगेगा। 1925 में स्थापित सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी होने के कारण ( राहुल गांधी वाली कांग्रेस का गठन 1969 में उनकी दादी इन्दिरा गांधी ने किया था जबकि, 1885 में स्थापित कांग्रेस 1977 में जनता पार्टी में विलीन हो चुकी है ) भाकपा को जो प्रथम आम चुनावों में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी थी और केरल में लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से सत्तारूढ़ रह चुकी है लोकप्रिय होने के लिए ब्राह्मण वाद के लबादे को उतार फेंकने की नितांत आवश्यकता है। अन्यथा जनता का विश्वास हासिल करना पार्टी के लिए टेढ़ी खीर रहेगा। कामरेड अरविंद राज स्वरूप द्वारा सम्मेलन में व्यक्त यह दृढ़ विश्वास कि, आगामी लोकसभा चुनावों में फासिस्ट भाजपा सरकार का पतन सुनिश्चित है तो ज़रूर सफल होगा परंतु उसका लाभ ब्राह्मण वाद की छाया से ग्रसित पार्टी को भी मिल सकेगा अथवा नहीं यह अनिश्चित है।  

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