संत कबीर आदि दयानंद सरस्वती,विवेकानंद आदि महा पुरुषों ने धर्म की विकृतियों तथा पाखंड का जो पर्दाफ़ाश किया है उनका सहारा लेकर भारतीय कम्यूनिस्टों को जनता के समक्ष जाना चाहिए तभी अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति और जनता का शोषण समाप्त किया जा सकता है.दरअसल भारतीय वांग्मय में ही कम्यूनिज्म सफल हो सकता है ,यूरोपीय वांग्मय में इसकी विफलता का कारण भी लागू करने की गलत पद्धतियाँ ही थीं.सम्पूर्ण वैदिक मत और हमारे अर्वाचीन पूर्वजों के इतिहास में कम्यूनिस्ट अवधारणा सहजता से देखी जा सकती है -हमें उसी का आश्रय लेना होगा तभी हम सफल हो सकते हैं -भविष्य तो उज्जवल है बस उसे सही ढंग से कहने की जरूरत भर है.
Saturday, May 14, 2011
भारत में कम्युनिज्म कैसे कामयाब हो ?--- विजय राजबली माथुर
वैदिक मत के अनुसार मानव कौन ?
त्याग-तपस्या से पवित्र -परिपुष्ट हुआ जिसका 'तन'है,
भद्र भावना-भरा स्नेह-संयुक्त शुद्ध जिसका 'मन'है.
होता व्यय नित-प्रति पर -हित में,जिसका शुची संचित 'धन'है,
वही श्रेष्ठ -सच्चा 'मानव'है,धन्य उसी का 'जीवन' है.
इसी को आधार मान कर महर्षि कार्ल मार्क्स द्वारा साम्यवाद का वह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया जिसमें मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करने का मन्त्र बताया गया है. वस्तुतः मैक्स मूलर सा : हमारे देश से जो संस्कृत की मूल -पांडुलिपियाँ ले गए थे और उनके जर्मन अनुवाद में जिनका जिक्र था महर्षि कार्ल मार्क्स ने उनके गहन अध्ययन से जो निष्कर्ष निकाले थे उन्हें 'दास कैपिटल' में लिपिबद्ध किया था और यही ग्रन्थ सम्पूर्ण विश्व में कम्यूनिज्म का आधिकारिक स्त्रोत है.स्वंय मार्क्स महोदय ने इन सिद्धांतों को देश-काल-परिस्थिति के अनुसार लागू करने की बात कही है ;परन्तु दुर्भाग्य से हमारे देश में इन्हें लागू करते समय इस देश की परिस्थितियों को नजर-अंदाज कर दिया गया जिसका यह दुष्परिणाम है कि हमारे देश में कम्यूनिज्म को विदेशी अवधारणा मान कर उसके सम्बन्ध में दुष्प्रचार किया गया और धर्म-भीरु जनता के बीच इसे धर्म-विरोधी सिद्ध किया जाता है.जबकि धर्म के तथा-कथित ठेकेदार खुद ही अधार्मिक हैं परन्तु हमारे कम्यूनिस्ट साथी इस बात को कहते एवं बताते नहीं हैं.नतीजतन जनता गुमराह होती एवं भटकती रहती है तथा अधार्मिक एवं शोषक-उत्पीडक लोग कामयाब हो जाते हैं.आजादी के ६३ वर्ष एवं कम्यूनिस्ट आंदोलन की स्थापना के ८६ वर्ष बाद भी सही एवं वास्तविक स्थिति जनता के समक्ष न आ सकी है.मैंने अपने इस ब्लॉग 'क्रान्तिस्वर' के माध्यम से ढोंग,पाखण्ड एवं अधार्मिकता का पर्दाफ़ाश करने का अभियान चला रखा है जिस पर आर.एस.एस.से सम्बंधित लोग तीखा प्रहार करते हैं परन्तु एक भी बामपंथी या कम्यूनिस्ट साथी ने उसका समर्थन करना अपना कर्तव्य नहीं समझा है.'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता' परन्तु कवीन्द्र रवीन्द्र के 'एक्ला चलो रे ' के तहत मैं लगातार लोगों के समक्ष सच्चाई लाने का प्रयास कर रहा हूँ -'दंतेवाडा त्रासदी समाधान क्या है?','क्रांतिकारी राम','रावण-वध एक पूर्व निर्धारित योजना','सीता का विद्रोह','सीता की कूटनीति का कमाल','सर्वे भवन्तु सुखिनः','पं.बंगाल के बंधुओं से एक बे पर की उड़ान','समाजवाद और वैदिक मत','पूजा क्या?क्यों?कैसे?','प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है -यह दुनिया अनूठी है' ,समाजवाद और महर्षि कार्लमार्क्स,१८५७ की प्रथम क्रान्ति आदि अनेक लेख मैंने वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित अभिमत के अनुसार प्रस्तुत किये हैं जो संतों एवं अनुभवी विद्वानों के वचनों पर आधारित हैं.
मेरा विचार है कि अब समय आ गया है जब भारतीय कम्यूनिस्टों को भारतीय सन्दर्भों के साथ जनता के समक्ष आना चाहिए और बताना चाहिए कि धर्म वह नहीं है जिसमें जनता को उलझा कर उसका शोषण पुख्ता किया जाता है बल्कि वास्तविक धर्म वह है जो वैदिक मतानुसार जीवन-यापन के वही सिद्धांत बताता है जो कम्यूनिज्म का मूलाधार हैं.कविवर नन्द लाल जी यही कहते हैं :-
जिस नर में आत्मिक शक्ति है ,वह शीश झुकाना क्या जाने?
जिस दिल में ईश्वर भक्ति है वह पाप कमाना क्या जाने?
माँ -बाप की सेवा करते हैं ,उनके दुखों को हरते हैं.
वह मथुरा,काशी,हरिद्वार,वृन्दावन जाना क्या जाने?
दो काल करें संध्या व हवन,नित सत्संग में जो जाते हैं.
भगवान् का है विशवास जिन्हें दुःख में घबराना क्या जानें?
जो खेला है तलवारों से और अग्नि के अंगारों से .
रण- भूमि में पीछे जा के वह कदम हटाना क्या जानें?
हो कर्मवीर और धर्मवीर वेदों का पढने वाला हो .
वह निर्बल दुखिया बच्चों पर तलवार चलाना क्या जाने?
मन मंदिर में भगवान् बसा जो उसकी पूजा करता है.
मंदिर के देवता पर जाकर वह फूल चढ़ाना क्या जानें?
जिसका अच्छा आचार नहीं और धर्म से जिसको प्यार नहीं.
जिसका सच्चा व्यवहार नहीं 'नन्दलाल' का गाना क्या जानें?
संत कबीर आदि दयानंद सरस्वती,विवेकानंद आदि महा पुरुषों ने धर्म की विकृतियों तथा पाखंड का जो पर्दाफ़ाश किया है उनका सहारा लेकर भारतीय कम्यूनिस्टों को जनता के समक्ष जाना चाहिए तभी अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति और जनता का शोषण समाप्त किया जा सकता है.दरअसल भारतीय वांग्मय में ही कम्यूनिज्म सफल हो सकता है ,यूरोपीय वांग्मय में इसकी विफलता का कारण भी लागू करने की गलत पद्धतियाँ ही थीं.सम्पूर्ण वैदिक मत और हमारे अर्वाचीन पूर्वजों के इतिहास में कम्यूनिस्ट अवधारणा सहजता से देखी जा सकती है -हमें उसी का आश्रय लेना होगा तभी हम सफल हो सकते हैं -भविष्य तो उज्जवल है बस उसे सही ढंग से कहने की जरूरत भर है.
http://krantiswar.blogspot.in/2011/05/blog-post_14.html
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