Monday, 31 December 2018

भुवन शोम के लेखक निर्देशक मृणाल सेन



http://epaper.navbharattimes.com/details/7125-25752821-1.html







भुवन   शोम फिल्म के माध्यम से निर्देशक ने हास्य नाटकीयता के द्वारा यह सिद्ध किया है कि, एक सिद्धांतनिष्ठ कडक प्रशासनिक अधिकारी को भी नारी सुलभ ममता द्वारा व्यावहारिक धरातल पर नर्म मानवीय व्यवहार बरतने हेतु परिवर्तित किया जा सकता है। रेलवे के प्रशासनिक अधिकारी भुवन शोम के रूप में उत्पल दत्त जी व ग्रामीण नारी गौरी के रूप में सुहासिनी मुले जी ने मार्मिक अभिनय किया है। प्रारम्भिक अभिनेत्री होते हुये भी परिपक्व अभिनेता उत्पल दत्त जी के साथ सुहासिनी मुले जी का अभिनय सराहनीय है।  यह गौरी का ही चरित्र था जिसने उसके पति जाधव पटेल का निलंबन रद्द करने को भुवन शोम जी को प्रेरित कर दिया। 
( साभार : 
Er S D Ojha .
March 29 at 8:54pm 
https://www.facebook.com/sd.ojha.3/posts/1808246549501223 )


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विद्युत खपत को सीधे डेढ़ गुना करके बतायंगे प्रीपेड स्मार्ट मीटर ------ गिरीश मालवीय

Girish Malviya
31-12-2018 

आप आज इस घोटाले के बारे मे जानकर 2G घोटाले को भूल जाएंगे कॉमनवेल्थ घोटाला, कोलब्लॉक घोटाला भी इसके सामने बहुत छोटा है, यहां तक कि रॉफेल घोटाला भी आपके आपके जीवन को इतना प्रभावित नही करेगा जितना यह घोटाला आपको प्रभावित करने जा रहा है लेख लम्बा है लेकिन पूरा जरूर पढियेगा

यह घोटाला है स्मार्ट मीटर घोटाला.........

आप सभी ने वर्षों पहले अपने घरों में लगे बिजली के पुराने मीटर देखे होंगे जिसमें एक लोहे की प्लेट लगी रहती थी वह प्लेट घूमती ओर उसी की रीडिंग के अनुसार आपका बिजली बिल निर्धारित किया जाता था जमाना बदला और उसके बाद उन मीटरों का स्थान डिजिटल/ इलेक्ट्रॉनिक मीटर ने लिया जिसे लगाए भी आपको ज्यादा समय नही हुआ होगा लेकिन अब इसे फिर एक बार बदला जा रहा है अब मोदी सरकार आने वाले तीन सालो में देशभर में बिजली के सभी मीटरों को स्मार्ट प्रीपेड में बदलने जा रही है देश भर में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है

अब बिजली के बिल भरने की बात ही नही है क्योंकि अब यह व्यवस्था प्रीपेड कर दी गयी हैं यानी यदि आपकी जेब मे पैसा है तो पहले रिचार्ज करवाइये उसके बाद ही आपके घर मे 'बिजली देवी' का प्रवेश होगा इसे अच्छे शब्दों में बिजली मंत्रालय ने इस तरह बताया है 'स्मार्ट मीटर गरीबों के हित में है। उन्हें पूरे माह का बिल एक बार में चुकाने की जरूरत नहीं होगी। वे जरूरत के मुताबिक बिल चुका सकेंगे'

इस मीटर की सारी गतिविधियां एक मोबाइल एप के जरिए आपके फोन पर अपडेट होंती रहेगी सबसे बड़ी खासियत यह है कि अब आप यह नही बोल सकते कि मेरे घर मे 2 ही पँखे 4 ट्यूबलाइट ओर 1 फ्रिज ही है...... एप पर आपको ओर बिजली विभाग को सब दिख जाएगा कि कितने उपकरण आपके यहाँ काम कर रहे हैं इस व्यवस्था में लोड ज्यादा होने पर सेंट्रल कार्यालय से उसको कंट्रोल किया जा सकेगा । इसमें एक सीमा के बाद मीटर में लोड जा ही नहीं पाएगा

सभी स्मार्ट मीटर को बिजली निगम में बने कंट्रोल रूम से जोड़ा जाएगा. कर्मचारी स्काडा सॉफ्टवेयर के जरिए कंट्रोल रूम से ही मीटर रीडिंग नोट कर सकेंगे. इसके साथ ही अगर कोई मीटर के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसका संकेत कंट्रोल रूम में मिलेगा. अगर कोई उपभोक्ता समय पर बिजली बिल नहीं भरता, तो कंट्रोल रूम से ही उसका मीटर कनेक्शन भी काटा जा सकेगा. इसके लिए उपभोक्ताओं के घर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे

चलिए ये तो अच्छी बाते है, अब यह समझिए कि यह घोटाला कैसे है दरअसल यह दावा किया जा रहा है कि स्मार्ट मीटर को लगाने की एवज में उपभोक्ताओं से कोई पैसा नहीं लिया जा रहा है उपभोक्ता का पुराना मीटर हटाकर स्मार्ट मीटर फ्री में लगाया जा रहा है। साथ ही पांच साल तक मीटर में कोई गड़बड़ी होती है तो भी मीटर बिना किसी शुल्क के बदला जाएगा

वैसे सच तो यह है कि कोई चीज फ्री में नही लगाई जाती, फ्री में लगाने से पहले ही सारा केलकुलेशन बैठा लिया गया है कि पहले 6 महीने में ही आपका जो बिल बढ़ा हुआ आएगा उसी में यह राशि समायोजित कर दी जाएगी, ओर जिन घरों में यह मीटर लगाए गए हैं उन सभी घरों में जो बिल आए हैं उसमें सवा से डेढ़ गुनी अधिक खपत दिखाई दे रही है

खुले बाजार में फिलहाल सबसे सस्ता सिंगल फेज प्रीपेड बिजली मीटर अभी 8 हजार रुपये का मिल रहा है। हालांकि अच्छी गुणवत्ता वाला मीटर खरीदने के लिए लोगों को 25 हजार रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं अब ये कम्पनी जो स्मार्ट मीटर लगा रही हैं उसमें किस तरह से आपसे पैसा वसूला जाएगा आप खुद ही सोच लीजिए

दूसरी ओर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिरकार यह मीटर सप्लाई कौन कर रहा है? कही न कही तो इनका उत्पादन किया जा रहा होगा? क्या विद्युत नियामक आयोग स्वतंत्र रूप से इन स्मार्ट मीटरों की जाँच करवा चुका है? क्योंकि सारा झोलझाल तो यही है देश भर में इन स्मार्ट मीटर की आपूर्ति एनर्जी एफिशियेंसी सर्विसेज लिमिटेड 
ईईएसएल कर रहा है दरअसल विद्युत मंत्रालय ने एनटीपीसी लिमिटेड, पीएफसी, आरईसी और पावरग्रिड के साथ मिलकर एक संयुक्त उद्यम बनाया है जिसे ईईएसएल कहा जाता है

अब यही असली घोटाला है जो आपको समझना जरूरी है दरअसल यह कंपनी भारत सरकार ने 2009 में बनाई थी लेकिन इस कंपनी ने 2014 तक कोई काम नहीं किया। यह कंपनी सिर्फ कागज तक ही सीमित रही। जून 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने अचानक इस कंपनी को देश के 100 शहरों में एलईडी बल्ब लगाने का काम दे दिया जिसे आप उजाला योजना के नाम से जानते हैं

इस कंपनी में कोई क्षमता ही नहीं थी कि उसे इतना बड़ा काम दिया जाए, क्योंकि कंपनी के पास कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर ही नहीं था। यह कंपनी न तो एलईडी का उत्पादन करती थी और न ही उसके पास एलईडी बल्ब लगवाने का कोई साधन था वह सिर्फ दूसरी छोटी कंपनियों को सब-कांट्रेक्ट देकर चीन से एलईडी बल्ब खरीदवा रही थी और लगवा रही थी

ओर किसी ने नही बीजेपी की सहयोगी शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में कार्यकारी संपादक संजय राउत ने 2016 में ‘सच्चाई’ नामक शीर्षक के तहत एलईडी बल्ब में भारी घोटाले का पर्दाफाश किया था

उस वक्त कांग्रेस के प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल ने आरोप लगाते हुए कहा था कि इस योजना में एलईडी की निविदा प्रक्रिया में अनियमितता, चीनी एलईडी बल्बों का आयात कर मेक इन इंडिया नीति और सतर्कता नियमों का उल्लंघन करने के अतिरिक्त 20 हजार करोड़ रू का घोटाला किया गया हैं. कांग्रेस ने इस पुरे मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराने की मांग की थी

जो बल्ब देश भर में तीन सालो के लिए लगवाए गए थे वह कुछ महीनों बाद ही खराब होना शुरू हो गए जब उपभोक्ता इन्हें बदलने के लिए पुहंचे तो इन्हें बेचने वाले नदारद थे सभी जगहों पर ऐसी घटनाएं घटी हैं बहुत विवाद भी हुए लेकिन इस कम्पनी पर कुछ भी कार्यवाही नही हुई इस EESL कंपनी को देश भर में स्ट्रीट लाइट को LED से बदलने का ठेका भी दिया गया जिसके सब कांट्रेक्ट उन्होंने ऐसे लोगो को दिए जो एक साल में ही शहर छोड़ कर भाग गए .......आप स्थानीय अखबारों में इनके किस्से पढ़ सकते हैं, जो सैकड़ों की संख्या में छपे है और यह कम्पनी सिर्फ led बल्ब तक ही सीमित नही है लाखो पंखे इन्होंने खरीदे हैं और यहाँ तक कि डेढ़ टन के AC भी हजारों की संख्या में इन्होंने खरीदे है लेकिन कही भी देखने मे नही आए आफ्टर सेल्स सर्विस की कोई व्यवस्था इस कम्पनी के पास नही है क्योंकि यह कम्पनी किसी तरह का उत्पादन नही करती

अब एक बार फिर ऐसी कम्पनी को आगे करके मनमाने दामो पर स्मार्ट मीटर की खरीदी करवाई जा रही है किससे यह मीटर खरीदे जा रहा है उनकी गुणवत्ता को कैसे निर्धारित किया गया है इसका कुछ अता पता नही है दरअसल यह पूरी योजना गरीब आदमी के हितों के नाम पर बड़ी पावर कंपनियों को लाभ में लाने की योजना है जिसमे बड़े पैमाने पर अडानी टाटा ओर रिलायंस जैसे उद्योगपतियों ने निवेश कर रखा है खुद बिजली मंत्रालय ने माना है कि सभी मीटर को प्री-पेड कर देने से बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की लागत काफी कम हो जाएगी और डिस्कॉम आसानी से घाटे से उबर जाएंगी। अभी देश के कई राज्यों की डिस्कॉम भारी घाटे में चल रही है

सारे स्मार्ट मीटर चाइना से बेभाव में खरीदे जाएंगे जो बिना गुणवत्ता जांचे गए यह मीटर आपके घर की विद्युत खपत को सीधे डेढ़ गुना करके बताएंगे ओर आपसे उसका पैसा प्रीपेड के नाम पर पहले ही वसूल किया जाएगा आपकी शिकायत को अमान्य करके कहा जाएगा कि अब तक आप चोरी कर रहे थे .......... यही है मोदी सरकार की सौभाग्य योजना। 
https://www.facebook.com/girish.malviya.16/posts/2221525954545707

Thursday, 27 December 2018

क्या मोदी - शाह की भाजपा का जहाज डूब रहा है ? ------ आरफा खानम शेरवानी




 Dec 26, 2018
https://www.youtube.com/watch?v=4XlohaPjod4 )
बीजेपी के काम-काज पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के हालिया बयानों पर चर्चा करते हुये ‘द वायर’ की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी कह  रही हैं कि, नितिन गडकरी उस नागपुर से सांसद हैं जहाँ आर एस एस का हेड क्वार्टर है और वह भाजपा के पूर्व अध्यक्ष हैं जो मोदी - शाह विरोधी उन भैया जी जोशी के करीबी हैं जो मोहन भागवत के बाद द्सरे प्रभावशाली नेता हैं।
तमाम उद्धरणों के जरिये आरफा खानम ने याद दिलाया है कि, मराठा आंदोलन के समय से जो मुखरता नितिन गडकरी ने अपनाई है उसी पर चल रहे हैं भले ही फिर यह भी कह देते हैं कि उनके कहने का आशय वह नहीं था जो लिया गया है। एज आफ यूथ के कार्यक्रम में बोलते हुये आरफा खानम यह भी कह चुकी हैं कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस समेत वर्तमान विपक्ष की सरकार बनने के बाद भी आर एस एस प्रशासन में प्रभावशाली बना रहेगा।
संदर्भ ------ https://www.youtube.com/watch?v=V0as-C8Tm6k  
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वस्तुतः आरफा खानम शेरवानी का विश्लेषण यथार्थ की अभिव्यक्ति ही है। 
जनसंघ के माध्यम से आर एस एस भारत में भी यू एस ए व यू के की भांति दो पार्टी पद्धति की वकालत करता रहा है। 1980 के लोकसभा चुनावों में आर एस एस ने नवगठित भाजपा के बजाए इन्दिरा कांग्रेस को समर्थन दिया था। इन्दिरा जी की उस सरकार को पूर्ण हिन्दू बहुमत से बनी सरकार की संज्ञा दी गई थी। 1985 में राजीव गांधी को भी आर एस एस का समर्थन मिला था और इसी लिए 1989 में उनके द्वारा अयोध्या के विववादित ढांचे का ताला खुलवाया गया था। 1998 से 2004 तक के भाजपा शासन में प्रशासन,सेना,पुलिस,खुफिया एजेंसियों में आर एस एस के लोगों की भरपूर घुसपैठ करा दी गई थी। 1977 की मोरारजी सरकार के समय भी विदेश और संचार मंत्रालयों में आर एस एस के लोग दाखिल कराये जा चुके थे। 
2014 से अब तक शिक्षा संस्थाओं, संवैधानिक संस्थाओं समेत लगभग पूरी सरकारी मशीनरी में आर एस एस के लोग बैठाये जा चुके हैं। अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि, पी एम भाजपा का है या कांग्रेस का या किसी अन्य दल का। मोदी - शाह की जोड़ी न सिर्फ भाजपा संगठन पर मनमाने तरीके से काबिज थी बल्कि आर एस एस को भी काबू करने की कोशिशों में लगी थी इसी वजह से आर एस एस को उनका विरोध कराना पड़ रहा है क्योंकि भाजपा को बहुमत मिलने की दशा में इस जोड़ी को हटाना संभव नहीं होगा बल्कि यह आर एस एस को भी कब्जा लेगी। 2013 में कोलकाता में घोषित योजना से ( जिसके अनुसार दस वर्ष मोदी को पी एम रहना था और फिर योगी को बनाया जाना था ) हट कर आर एस एस अब राहुल कांग्रेस को गोपनीय समर्थन दे रहा है जिससे भाजपा विरोधी सरकार 2019 में सत्तारूढ़ होने से मोदी - शाह जोड़ी से संघ को छुटकारा मिल जाये। संघ अब सत्ता और विपक्ष दोनों को अपने अनुसार चलाना चाहता है। 
संघ विरोधियों विशेषकर साम्यवादियों व वामपंथियों को संघ की इस चाल को समझते हुये तीसरा मोर्चा के माध्यम से स्वम्य  को मजबूत करना चाहिए। 


------ विजय राजबली माथुर  
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Wednesday, 26 December 2018

सपनों का सौदागर कहीं धुंध में गुम होता जा रहा है : .नरेंद्र मोदी कैसे बचेंगे? ------ हेमंत कुमार झा




Hemant Kumar Jha
26-12-2018 
नरेंद्र मोदी देश में उतने कमजोर नहीं हुए हैं जितने भाजपा में होते जा रहे हैं...और... यह अप्रत्याशित भी नहीं है। अमित शाह को आगे बढ़ा कर उन्होंने जिस तरह सत्ता के साथ ही संगठन पर अपना एकछत्र नियंत्रण स्थापित कर लिया था यह भाजपा के लिये नया अनुभव था। जाहिर है, शक्ति और लोकप्रियता के शिखर पर आरूढ़ शीर्ष नेता के समक्ष जन्म लेती कुंठाओं और बढ़ते असंतोष को मुखर होने का कोई अवसर नहीं मिल पा रहा था। अब...जब दुर्ग की दीवारों में छिद्र नजर आने लगे हैं तो अप्रत्यक्ष ही सही, असंतोष के स्वर भी उठने लगे हैं।

यह 'ब्रांड मोदी' का करिश्मा था कि भाजपा शानदार जीत हासिल कर पहली बार अपने दम पर बहुमत में आई थी। संगठन आभारी था और दोयम दर्जे के तमाम नेता नतमस्तक। एक आडवाणी को छोड़ भाजपा में कोई पहले दर्जे का नेता था भी नहीं। लोकतंत्र में दर्जा जनता देती है और भाजपा में अटल-आडवाणी के बाद कोई नेता ऐसा नहीं रह गया था जो जनप्रियता के मामले में 'ए लिस्टर' नेता ठहराया जा सके। एक प्रमोद महाजन थे लेकिन...अब उनकी बात क्या करनी।

तो...वयोवृद्ध आडवाणी को साइड करने के बाद मोदी की एकछत्रता निष्कंटक थी। बड़ी आसानी से अमित शाह को पार्टी अध्यक्ष बनवा कर उन्होंने संगठन को अपने पीछे कर लिया और इंदिरा गांधी के बाद दूसरे सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री का रुतबा हासिल कर लिया।
सवालों के घेरे में : 
फिर...ऐसा क्या हुआ कि जिस मोदी के बारे में महज साल-डेढ़ साल पहले तक अजेयता का मिथक गढ़ा जा रहा था वे सवालों के घेरे में आते जा रहे हैं। असंतुष्ट सहयोगियों की कुंठाएं अप्रत्यक्ष प्रहार का रूप लेने लगी हैं और विरोधी उत्साहित हो उठे हैं।
अंतहीन परेशानियों का सबब : 
दरअसल, नरेंद्र मोदी को जिस स्तर का 'विजनरी' राजनेता माना गया था, अपने परिणामों में यह कहीं से नजर नहीं आया। उनके द्वारा लगाए गए प्रायः सभी दांव विपरीत असर डालने वाले ही साबित हुए। कोई कह सकता है कि उनकी नीयत सही थी। लेकिन, समस्याओं से घिरे इस देश को नीयत से बढ़ कर परिणामों की अपेक्षा थी।

नोटबन्दी, जिसके परिणाम पहले दिन से ही संदिग्ध थे, के मामले में आम लोगों ने उनकी नीयत को ही प्रमुखता दी और हजार फ़ज़ीहतें झेलने के बावजूद वेनेजुएला की तरह लोग सड़कों पर नहीं उतरे। लेकिन, नोटबन्दी झंझावाती परिणाम लेकर सामने आया और साथ ही, इसने बैंकिंग सिस्टम की कलई भी उतार दी जब भ्रष्ट बैंकरों ने रातोंरात काले धन रूपी नकदी को जमा कर मुख्य धारा में ला दिया।

नवउदारवादी आर्थिकी एकल बाजार की मांग करती है और भारत जैसे विविधताओं से भरे विशाल देश के संदर्भ में भी यह सत्य बदल नहीं सकता था, इस लिहाज से जीएसटी आज नहीं तो कल सामने आना ही था। मनमोहन सरकार ने भी इसके लिये प्रयास किया था लेकिन अंजाम तक इसे मोदी ने पहुंचाया। परंतु, इसके क्रियान्वयन की जटिलताओं ने मोदी सरकार के आर्थिक मामलों के कर्त्ता-धर्त्ताओं की 'मीडियाकरी' को एक्सपोज कर दिया। एक विजनरी राजनेता को प्रतिभासम्पन्न सलाहकारों और सहयोगियों की दरकार होती है लेकिन देश के साथ ही यह मोदी का भी दुर्भाग्य रहा कि जिन पर उन्होंने भरोसा किया वे पूरे के पूरे 'मीडियाकर' निकले। अंततः जीएसटी, जिसके बारे में उम्मीदें की जा रही हैं कि यह एक दिन बेहतर परिणाम सामने लाएगा, अपने वर्त्तमान दौर में हाहाकारी प्रभावों के साथ लोगों, खास कर छोटे और मंझोले व्यापारियों की अंतहीन परेशानियों का सबब बन गया।

दरअसल, नरेंद्र मोदी की एक दिक्कत यह भी रही कि उनके नेतृत्व में सत्ता प्रतिष्ठान को प्रतिभाशाली और स्वतंत्र चेता 'प्रोफेशनल्स' बर्दाश्त ही नहीं हुए। रघुराम राजन इसके एक उदाहरण हैं। इस मामले में मोदी जी इंदिरा गांधी से सीख ले सकते थे जो प्रतिभाओं का सम्मान करती थीं और उन्हें कार्य करने की स्वतंत्रता भी देती थीं।
 आपराधिक नाकामियां : 
आज के दौर में कोई भी सरकार अपनी आर्थिक उपलब्धियों को लेकर ही आंकी जाती है, लेकिन नरेंद्र मोदी जिस राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं वह अपने जनसापेक्ष आर्थिक चिंतन के लिये नहीं, विशिष्ट सांस्कृतिक चिंतन के लिये जानी जाती है। ऐसा एकायामी चिंतन, जो अपने मौलिक संदर्भों में आज के भारत के लिये अनेक सांस्कृतिक संकटों का जनक बन गया है।

तो...सांस्कृतिक स्तरों पर बढ़ते कोलाहल के बीच आर्थिक उपलब्धियों के मामले में दरिद्रता ने मोदी सरकार को आमलोगों की नजरों में एक्सपोज करना शुरू कर दिया। कहाँ तो दो करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष सृजित करने का वादा था...कहाँ बेरोजगारी की दर उच्चतम स्तरों को छूने लगी। कौशल विकास योजना का भ्रामक नारा दलित, पिछड़ों और ग्रामीण युवाओं के प्राइवेट नौकरियों में प्रवेश में सहायक नहीं बन सका। इधर, सरकारी नियुक्तियों में घोषित-अघोषित रोक ने हालातों को बद से बदतर बना दिया। 
बढ़ती हुई बेरोजगारी और इस फ्रंट पर मोदी सरकार की नाकामियों ने 'ब्रांड मोदी' की चमक पर सबसे गहरा धब्बा लगाया। उम्मीदों से भरे युवाओं के लिये यह ऐसी नाकामियां आपराधिक थीं।
 'सरकार प्रायोजित' अशांतियों का कहर : 
बदतर यह...कि बेरोजगारों के हाथों में ज्ञात-अज्ञात संगठनों ने लट्ठ, तलवारें और किसिम-किसिम के झंडे थमाने शुरू किए। युवाओं को कभी "मां भारती" पुकारने लगी तो कभी 'धर्म' अपने रक्षार्थ उनका आवाहन करने लगा, कभी "गोमाता की चीत्कार" पर लोगों को गोरक्षक बना कर हत्यारा बनाया जाने लगा तो कभी "राम लला हम आएंगे" जैसे निरर्थक और विभाजक नारे लगाते युवा शान्तिकामी समाज के सामने सवाल बन कर खड़े होने लगे। देश के स्तर पर ऐसी अशांतियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति हास्यास्पद बनाई और युवाओं को भटकाव के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ।

ऐसी मान्यताओं के आधार हो सकते हैं कि व्यक्तिगत स्तरों पर नरेंद्र मोदी ने हत्यारे गोरक्षकों और लंपट रामभक्तों को बढ़ावा नहीं दिया, लेकिन यह तथ्य तो सामने है कि उनके राज में इन नकारात्मक शक्तियों ने जम कर उत्पात मचाया और देश को सांस्कृतिक विभाजन के रास्ते पर धकेला। मामला फिर 'नीयत' और 'परिणाम' का ही सामने आता है। मोदी सरकार ऐसे उपद्रवकारी तत्वों पर लगाम कसने में विफल साबित हुई और विरोधियों को यह कहने का मौका मिला कि ऐसी अशांतियाँ स्वयं 'सरकार प्रायोजित' ही हैं।
कारपोरेट परस्ती की गहरी छाप : 
शक्तिशाली प्रधानमंत्री का मिथक तब टूटने लगा जब नरेंद्र मोदी अपने नीतिगत निर्णयों और कार्यकलापों में कारपोरेट शक्तियों द्वारा संचालित होने का आरोप झेलने लगे। ऐसे एक से एक उदाहरण सामने आने लगे जो मोदी को जनता का नेता नहीं, सत्ता में कारपोरेट का प्रतिनिधि साबित करने के लिये पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत करने लगे। आयुष्मान भारत योजना, उच्च शिक्षा संरचना में नीतिगत बदलावों का खाका, गैस नीति, राफेल प्रकरण आदि ने उनकी शक्तिशाली राजनेता की छवि पर कारपोरेट परस्ती की गहरी छाप लगाई।
संस्थाओं की गरिमा पर प्रहार:
संस्थाओं का निर्माण और विघटन गतिशील लोकतंत्र के लिये एक सामान्य प्रक्रिया है। इसलिये, नरेंद्र मोदी ने नेहरू युगीन संस्थाओं को वैकल्पिक रूप देना शुरू किया तो यह कतई अस्वाभाविक नहीं था। लेकिन, इस पूरी प्रक्रिया में स्वप्नद्रष्टा राजनेता की वह छाप नहीं पड़ सकी जो लोगों को आश्वस्त कर सकता। नीति आयोग योजना आयोग का प्रहसन नुमा विकल्प बन कर सामने आया जिसके कर्णधार प्रोफेशनल्स सरकार की निजीकरण की नीतियों का खाका खींचने वाले कारपोरेट एजेंट के अलावा कुछ और नहीं लगते हैं। साहित्य अकादमी से लेकर आईआईटीज तक को बाजार में धकेलने की नीतियां कई सारे सवालों को जन्म देती है जिसका जवाब देने के लिये अहंकारी सत्ता प्रतिष्ठान कतई उत्सुक नहीं लगता।



संस्थाओं के साथ नाकाम प्रयोग, उनकी गरिमा पर प्रहार, उनकी स्वायत्तता में हस्तक्षेप आदि ऐसे अध्याय हैं जो अंतहीन सवालों को जन्म देते हैं। नतीजा...जिन-जिन को लगा कि मोदी सरकार की मनमानियों पर चुप्पी के लिये इतिहास भविष्य में उन्हें कठघरे में खड़ा कर सकता है, उन्होंने पलायन को ही उपयुक्त रास्ता समझा। रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल हों या प्रधानमंत्री के विभिन्न सलाहकारों का इस्तीफा...यह इतिहास के सवालों से बचने का उपक्रम ही तो है। लेकिन...नरेंद्र मोदी कैसे बचेंगे? उन्हें तो जवाब देने ही होंगे। इतिहास अपनी कसौटियों को लेकर अत्यंत निर्मम होता है।
पुनर्वापसी के संशय :

बढ़ती बेरोजगारी, महंगी होती शिक्षा और चिकित्सा, युवाओं का आक्रोश, किसानों की बेचारगी आदि-आदि, आमलोगों का संशय, पार्टी के साथियों की कुंठाओं और उनके असंतोष की अभिव्यक्तियों की शुरुआत, जमीन सूंघते राजनीतिक विरोधियों का बढ़ता उत्साह...नरेंद्र मोदी के साढ़े चार साल की सत्ता का हासिल यही है। उनकी उपलब्धियों से बड़ा ग्राफ उनकी असफलताओं का है। आशाओं और आश्वस्तियों का स्थान निराशाओं ने लेना शुरू कर दिया है।
राजनीतिक अजेयता का मिथक अब पुनर्वापसी के संशय में बदल रहा है। सपनों का सौदागर कहीं धुंध में गुम होता जा रहा है।
https://www.facebook.com/hemant.kumarjha2/posts/1940902646017639

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Thursday, 20 December 2018

विकास की छलांग के बाद दोराहे पर चीन ------ चंद्रभूषण

दो साल पहले तक .... इस प्रतिनिधि से तीखे सवाल पूछना तो दूर, उससे बात भी नहीं कर सकते थे। तात्पर्य यह कि चीनी कम्यूनिस्टों को अपने सामने मौजूद चुनौतियों का अंदाजा है। वे जानते हैं कि कंबल ओढ़कर घी पीते रहने के दिन अब जा चुके हैं। पूर्व सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव की तरह पेरेस्त्रोइका 

और ग्लासनोस्त जैसे रेडिकल सुधारों का खतरनाक रास्ता वे कभी नहीं अपनाएंगे, 

लेकिन अपने सत्ता ढांचे को तकनीकी खोजों 

और जन आकांक्षाओं के अनुरूप ढालने का यथासंभव प्रयास वे जरूर करेंगे।

http://epaper.navbharattimes.com/details/4715-76942-1.html

Wednesday, 12 December 2018

इतने भी खुश न होइये कि आगे कांग्रेस के खिलाफ बोलने में शर्म आये ------ सीमा आज़ाद

*उत्तर - प्रदेश भाकपा के वरिष्ठ नेता पाँच राज्यों में भाजपा की हार पर खुशी मना रहे हैं तो मानवाधिकार नेत्री आगाह कर रही हैं कि आज कांग्रेस की जीत पर इतनी खुशी मना कर भविष्य में कांग्रेस के उत्पीड़न व शोषण के विरुद्ध आवाज कैसे उठाएंगे ? .................................
**सुश्री सीमा आज़ाद जी द्वारा दी गई चेतावनी समस्त जनवादी व साम्यवादी विचार - धारा के लोगों को ध्यान में रखनी चाहिए और आर एस एस की दो - दलीय प्रणाली को कामयाब नहीं होने देना चाहिए। 





उत्तर - प्रदेश भाकपा के वरिष्ठ नेता पाँच राज्यों में भाजपा की हार पर खुशी मना रहे हैं तो मानवाधिकार नेत्री आगाह कर रही हैं कि आज कांग्रेस की जीत पर इतनी खुशी मना कर भविष्य में कांग्रेस के उत्पीड़न व शोषण के विरुद्ध आवाज कैसे उठाएंगे ? 
वस्तुतः भाजपा व कांग्रेस की आर्थिक नीतियाँ एक ही हैं । 1991 में नरसिंघा राव की कांग्रेस द्वारा घोषित मनमोहिनी नीतियों की भूरी - भूरी प्रशंसा न्यूयार्क जाकर एल के आडवाणी यह कह कर की थी कि, कांग्रेस ने उनकी नीतियों को चुरा लिया है। 1980 में सत्ता में पुनर्वापिसी हेतु इन्दिरा गांधी द्वारा आर एस एस का अप्रत्यक्ष समर्थन लिया गया था। तब RSS द्वारा इन्दिरा सरकार को पूर्ण हिन्दू - बहुमत की सरकार बताया जाता था। तभी से श्रम - न्यायालयों में श्रमिकों के विरुद्ध निर्णय पारित किए जाने शुरू हुये थे। 1985 के चुनावों में राजीव गांधी भी आर एस एस के समर्थन से ही प्रचंड बहुमत में आए थे। उनके कार्यकाल में ही बाबरी मस्जिद का ताला खोला गया था और 1992 में नरसिंघा राव के कार्यकाल में उसे ढहा दिया गया था। 1998 से 2004 के कार्यकाल में भाजपा ने ए बी बाजपेयी के नेतृत्व में प्रशासन में आर एस एस के लोगों को भर दिया था।2011 में आर एस एस, भाजपा, कारपोरेट के समर्थन से जो हज़ारे अभियान चला था उसका उद्देश्य कारपोरेट - भ्रष्टाचार को संरक्षण देना था जिसे तत्कालीन कांग्रेसी पी एम का अप्रत्यक्ष समर्थन भी प्राप्त था । इसी अभियान के रथ पर सवार होकर मोदी सरकार सत्तारूढ़ हुई थी। 
अहंकार के वशीभूत होकर मोदी - शाह ने आर एस एस को ही नियंत्रित करने का प्रयास किया जिसके परिणाम स्वरूप आर एस एस ने उनको सबक सिखाने और कालांतर में उनसे छुटकारा पाने हेतु 1980 व 1985 की तर्ज पर  छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा को पूरा - पूरा समर्थन नहीं दिया वरना बिना संगठन के कांग्रेस कैसे जीत पाती ?
कांग्रेस तो अब भी अहंकार में ही थी तभी तो क्षेत्रीय दलों से तालमेल नहीं किया वरना भाजपा राजस्थान व मध्य प्रदेश मेँ बुरी तरह से पराजित हो जाती। कांग्रेस नायक राहुल गांधी द्वारा मंदिर - मंदिर जाकर आर एस एस की हिंदुत्ववादी - कारपोरेट समर्थक नीतियों को मूक समर्थन दिया गया और बदले में आर एस एस का अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त किया गया। आर एस एस को भस्मासुर बने  मोदी - शाह से छुटकारा न पाना होता तब तीन राज्यों में कांग्रेस की पुनर्वापिसी भी संभव न होती। 2019 में भाजपा की पुनर्वापिसी की सूरत में मोदी - शाह द्वारा आर एस एस को कब्जाने का खतरा न होता तो आर एस एस को उनका समर्थन करने से भी परहेज न होता। शासन,प्रशासन,पुलिस,सेना,खुफिया संस्थानों सभी जगह आर एस एस के लोग पदस्थापित हो चुके हैं अतः भाजपा विरोधी दलों की सरकार बनने पर भी आर एस एस की पकड़ बनी रहेगी। 
इस संदर्भ में अखिलेश यादव व मायावती को कांग्रेस से सहयोग करते हुये सतर्कता बरतने की जरूरत होगी। 
सुश्री सीमा आज़ाद जी द्वारा दी गई चेतावनी समस्त जनवादी व साम्यवादी विचार - धारा के लोगों को ध्यान में रखनी चाहिए और आर एस एस की दो - दलीय प्रणाली को कामयाब नहीं होने देना चाहिए। 
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14-12-2018 : 
शासन,प्रशासान ,पुलिस,सेना,खुफिया एजेंसियां और न्यायपालिका सभी जगह आर एस एस के लोग बैठाये जा चुके हैं तभी तो जज साहब फैसले में लिख देते हैं कि उनका विश्वास मोदी में है। 

जजों का विश्वास संविधान व कानून से हट कर एक व्यक्ति - विशेष में हो जाना ' तानाशाही ' की आहट का आभास कराता है। 


आर एस एस ने  जनसंघ के माध्यम से भारत में दो - दलीय प्रणाली को लागू करवाने की मांग उठाई थी। आज सत्ता व विपक्ष दोनों पर अधिकार जमा कर वह निर्णायक की भूमिका में आने को प्रयासरत है। जज साहब का फैसला उसी की एक बानगी भर है। 
( विजय राजबली माथुर )
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13-12-2018 

Monday, 3 December 2018

किसान - मजदूर दुर्दशा एक समान : भारत हो या पाकिस्तान

महाराष्ट्र के नासिक में एक किसान को अपनी प्याज की उपज एक रूपये प्रति किलोग्राम से कुछ अधिक की दर पर बेचनी पड़ी। उसने विरोध स्वरूप अपनी मेहनत की कमाई प्रधानमंत्री राहत कोष में भेज दी है। 
देश भर के किसानों का मोदी सरकार के खिलाफ गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल ही के दिनों में देशभर से आए किसानों ने अपनी फसलों के वाजिब दाम और कर्जमाफी जैसी मांग को लेकर रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक मार्च किया था। इसके बावजूद मोदी सरकार किसानों को लेकर संजीदा दिखाई नहीं दे रही है। अब महाराष्ट्र के नासिक में किसानों ने पीएम मोदी विरोध के रुप में चेक भेजा है।दरअसल महाराष्‍ट्र में किसानों को फसल बेचने के बाद भी उसकी लागत तक नहीं मिल पा रही है। नासिक में प्याज के दाम गिरने से किसान परेशान हैं। हालात यह है कि 1 किलो प्याज 1 रुपये में बेचने की नौबत आ गई है। एक किसान ने तो लागत के बराबर पैसे नहीं मिलने से नाराज होकर मिले पैसे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मनी आर्डर कर दिया। विरोधस्वरूप में किसानों ने 750 किलो प्याज के बदले मिले 1064 रुपये प्रधानमंत्री को भेज दिया और कहा कि इस पैसे को प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर दिए जाएं।





नासिक जिले के निफड़ तहसील के रहने वाले संजय साठे उन चुनिंदा ‘प्रगतिशील किसानों’ में थे, जिन्हें 2010 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत दौरे के दौरान उनसे संवाद करने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा चुना गया था। अब वो दुख बताते हुए कहा, “मैंने इस सीजन में 750 किलो प्याज का उत्पादन किया, लेकिन पिछले हफ्ते निफड़ थोक बाजार में मुझे 1 रुपये प्रति किलो का भाव मिल रहा था। किसी तरह मैंने मोल-भाव करके 1.40 रुपये प्रति किलो में सौदा तय किया और 750 किलो प्याज के बदले मुझे 1064 रुपये मिले।”
उन्होंने आगे कहा, ‘ कई महीनों की कड़ी मेहनत के बाद ऐसी हालात होने पर तकलीफ होती है। इसलिए मैंने विरोधस्वरूप 1064 रुपये प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष में दान कर दिया। मैंने अतिरिक्त 54 रुपये मनी ऑर्डर से भेजे हैं।”बता दें कि देश के कुल प्याज उत्पादन की 50 फीसदी पैदावार उत्तरी महाराष्ट्र के नासिक जिले में ही होती है। 
https://www.navjivanindia.com/news/farmers-got-only-1064-rupees-of-750-kg-of-onion-angry-farmers-send-all-amount-to-pm-relief-fund?utm_source=one-signal&utm_medium=push-notification