Thursday, 7 November 2019

uncompromising champion of people’s rights : Comrade Gurudas Dasgupta ------ D. Raja

Gurudas Dasgupta fought for the rights of working people throughout his life
The passing of Gurudas Dasgupta is not merely a loss for the CPI. It is a loss for the communist parties as a whole and all the other socialist and progressive forces. It is a loss for India.



Comrade Gurudas Dasgupta, who passed away on October 31, remained a fighter for the causes of the working class till the end of his days. From the beginning of his active political life as a student, to his leadership of both organised and unorganised labour, his career as a preeminent parliamentarian, and in the leadership of the Communist Party of India (CPI), he remained an uncompromising champion of people’s rights.

Dasgupta made his mark in politics in 1957, when he became the general secretary of the students’ union of the Asutosh College in Calcutta. Thereafter, he continued to be associated with student and youth politics for some time. He served as general secretary of the All India Students’ Federation (AISF), the students wing of the CPI, and was one of the party’s most prominent youth leaders in West Bengal. From the 1970s onwards, he was known on the national stage.

In 1985, Dasgupta was elected to the Rajya Sabha, where he served three terms. He was also elected to the Lok Sabha twice. In his time in Parliament, Dasgupta was a ferocious debator. He was outspoken on critical issues, holding the governments of the day to account. Using his considerable oratorical skill, he championed the rights of labour, farmers and the people of India as a whole. His work on multiple parliamentary committees earned him the respect of his colleagues across the political spectrum. He was a member of the parliamentary committee on finance as well as the Joint Parliamentary Committee on the securities scam. The latter involved investigating the infamous criminal manipulations of Harshad Mehta. Dasgupta’s role in the committee, his vociferous and comprehensive questioning of witnesses was appreciated far and wide. He even received awards for his work in the JPC, but gave away the proceeds to organisations like the Punjab Stree Sabha.

Comrade Dasgupta also served as general secretary of the All India Trade Union Congress (AITUC). The AITUC, a premier Indian trade union, has worked for the welfare of the working classes since 1920, when the communists stood against imperialist rule. Stalwarts such as Indrajit Gupta and A B Bardhan have also served as its past general secretaries. It is a bitter-sweet irony that on the day of Dasgupta’s passing, the centenary commemorations of the AITUC have commenced.

Dasgupta served as the deputy general secretary of the CPI, a position he held till the last party Congress in 2018, in Kollam, Kerala. I have had the pleasure of serving with him both in Parliament and as a colleague in the CPI leadership. His commitment to egalitarian principles remained steadfast in every forum.

When the Congress government in the 1990s introduced the neoliberal economic agenda and implemented it through policy and law, Dasgupta was uncompromising in his opposition. Inside the House, he passionately argued against moves that would go against the peasantry, labour and other sections of society who have suffered as a result. But Dasgupta’s inspiring presence was not limited to Parliament. As a trade union leader, he organised numerous agitations of the working class. Throughout his long life of political and public service, Dasgupta stood against corporate forces and those that further ideas and policies of exclusion and religious bigotry. He had the unique ability to organise and mobilise, as well as motivate the people to fight the status quo, and recognise the fact that such a battle was in their own interest as well as for the benefit of the nation as a whole.

India, today, faces grave challenges. There is a disturbing economic slowdown, which is putting question marks on the fundamentals of the economy. Under the current ruling dispensation, the country is facing an onslaught of communal forces. At a time when we all must stand against these phenomena and those who have unleashed them, we have lost a comrade who has been at the forefront of such battles.

The passing of Gurudas Dasgupta is not merely a loss for the CPI. It is a loss for the communist parties as a whole and all the other socialist and progressive forces. It is a loss for India.

(This article first appeared in the print edition on November 1, 2019 under the title ‘The uncompromising comrade’. The writer is general secretary of the Communist Party of India ) 


https://indianexpress.com/article/opinion/columns/gurudas-dasgupta-cpi-death-the-uncompromising-comrade-6096871/

Thursday, 17 October 2019

वामदलों का विरोध प्रदर्शन, लखनऊ में

फोटो सौजन्य से कामरेड प्रदीप शर्मा 


लखनऊ, में कल दिनांक  16 अकूबर को 5  वामपंथी दलों ( भाकपा, माकपा , भाकपा - माले, फारवर्ड ब्लाक और आर एस पी ) ने पक्का पुल ( लाल पुल ) से घंटाघर तक प्रदर्शन जुलूस निकाल कर एक सभा की जिस के द्वारा  नौजवानों, किसानों, मजदूरों, कर्मचारियों, व्यापारियों और आर्थिक मंदी से पीड़ित अन्य तबकों की समस्याओं के समाधान की मांग के साथ - साथ दलितों व महिलाओं के उत्पीड़न को भी समाप्त करने की मांग को जोरदार ढंग से उठाया गया। 
सभी दलों के वक्ताओं ने अमीरों को सुविधाएं दिये जाने व रोजगार के अवसर समाप्त किए जाने, होमगार्ड्स  की छटनी किए जाने आदि की  कड़ी आलोचना की। 

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने13 अक्तूबर 2019 एक बयान में खुलासा किया  था कि " विद्युत विभाग द्वारा उपभोक्ताओं को नोटिस भेज कर वित्त वर्ष 2019- 20 के लिये अतिरिक्त “सीक्यौरिटी राशि” की मांग की जारही। जनता की निगाहों से ओझल किन्ही मनमाने नियमों के तहत यह राशि उपभोक्ताओं द्वारा गत वर्ष उपभोग की गयी बिजली की औसत 45 दिन की कीमत के बरावर मांगी जारही है।

यदि किसी उपभोता का गत वर्ष 45 दिनों का औसत बिल 10,000 रुपये था तो उसे इस अग्रिम सीक्यौरिटी की मद में 10,000 रुपये जमा करने होंगे। इसी तरह यदि यह राशि 5, 4, 2 अथवा 1 हजार रही होगी तो इतनी ही राशि अब जमा करनी होगी। यदि किसी उपभोक्ता का गत वर्ष 45 दिन का औसत बिल 15, 20 अथवा 25 हजार रहा होगा तो उसे इतनी राशि इस मद में जमा करनी होगी। यह धनराशि नोटिस जारी होने के 30 दिनों के भीतर जमा कर विद्युत विभाग को लिखित रूप में अवगत कराना होगा। ऐसा न करने पर बिजली कनेक्सन काट दिया जायेगा।

अभूतपूर्व आर्थिक मंदी की मार से व्यथित लोगों पर जब विद्युत विभाग के ये नोटिस पहुँचने शुरू हुये तो उनके होश उड़ गए। उन्हें अपनी दीवाली अंधेरी नजर आने लगी। मध्यमवर्ग और गरीब वर्ग इस पेनल्टी की कल्पना मात्र से सिहर उठा है। उसे अपने पुश्तेनी कनेक्सन पर अलग से यह भारी राशि जमा करने का कोई औचित्य नजर नहीं आरहा। वह इसे सरकार द्वारा जनता की खुली लूट मान रहा है।

 अभी अभी लागू हुयी महंगी दरों से ही उपभोक्ता हलकान हैं और अब इस अतिरिक्त भार की मार को वे सहन नहीं कर पाएंगे। जैसे जैसे ये नोटिस उपभोक्ताओं पर पहुँच रहे हैं उनकी बेचैनी बढ़ती जारही है। कभी भी यह बेचैनी आक्रोश का रूप ले सकती है।" 

कल की इस जनसभा में जनहित के इन सभी मुद्दों पर चर्चा किए जाने तथा मोदी / योगी सरकार की जन - विरोधी नीतियों की आलोचना किए जाने से क्षुब्ध पुलिस अधिकारियों द्वारा सभा व प्रदर्शन को बाधित भी किया गया किन्तु कार्यकर्ताओं के जोश के आगे उनको यह स्पष्टीकरण भी देना पड़ा कि ' हम आपके साथ हैं ' लेकिन नौकरी भी करनी है। 

Sunday, 1 September 2019

भाकपा महासचिव डी. राजा द्वारा साम्प्रदायिक एजेंडे के खिलाफ संघर्ष के लिए एकजुटता का आह्वान ------ डॉ गिरीश



Girish CPI

7:09 PM (6 minutes ago)

लखनऊ 1 सितम्बर। भाकपा राज्य मुख्यालय पर आज प्रेस प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए भाकपा के नव निर्वाचित महासचिव डी. राजा, सांसद ने जम्मू एवं कश्मीर के बारे में बोलते हुए कहा कि उन्होंने दो बार राज्य का दौरा करने का प्रयास किया परन्तु दोनों बार भाजपा सरकार और राज्यपाल ने उन्हें हवाई अड्डे से बाहर नहीं जाने दिया और उन्हें हिरासत में लेकर वापस लौटने को मजबूर किया। हवाई जहाज में यात्रा कर रहे चन्द स्थानीय यात्रियों ने उन्हें बताया कि पूरे राज्य में हालात बहुत खराब है जबकि सरकार परिस्थितियों के सामान्य होने का दावा कर रही है। सह यात्रियों के अनुसार जीवन रक्षक दवाईयां, चिकित्सा सुविधायें तक आम नागरिकों को नहीं मिल रही है। तनाव के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि अगर स्थितियां सामान्य हैं तो उस राज्य के राजनैतिक नेताओं को रिहा क्यों नहीं किया जा रहा है और वहां पर आम नागरिकों का जीवन सामान्य क्यों नहीं किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का कृत्य असंवैधानिक और गैर प्रजातांत्रिक है। संसद के बजट सत्र को लम्बा खीच कर सरकार ने 30 बिलों को बिना चर्चा किये और नियमों के खिलाफ जाकर अपने संख्या बल के आधार पर पारित करा लिया। यहां तक कि उस राज्य का केवल एक भाजपाई सांसद ही संदन में उपस्थित था और बाकी को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था। इस तरह संसद जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं का वजूद समाप्त करने और उन्हें बेमतलब कर देने के प्रयास चल रहे हैं। इस तरह प्रजातंत्र पर खतरा मंडरा रहा है।

उन्होंने आगे कहा कि कश्मीर के विशेष प्राविधान केवल जम्मू एवं कश्मीर राज्य की जनता को ही नहीं प्राप्त हैं बल्कि देश के अन्य तमाम राज्यों को भी संविधान के अनुसार प्राप्त हैं। उसके दुष्परिणाम और बेचैनी देश के दूसरे भागों में भी दिखने लगी हैं। भारत राज्यों का एक गणतंत्र है और उस ढ़ाचे को ही समाप्त करने की साजिश चल रही है। सरकार ने कश्मीर की जनता, वहां के राजनैतिक नेताओं को विश्वास में लेने का प्रयास क्यों नहीं कर रही है और मानवीय मूल्यों की बर्बर हत्या कर रही है।

उन्होंने बसपा सुप्रीमों मायावती पर कश्मीर मामले में संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा. अम्बेडकर को गलत तरीके से उद्घृत करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि डा. अम्बेडकर की सहमति से ही अनुच्छेद 370 संविधान में शामिल किया गया था। मूलतः डा. अम्बेडकर ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी और आरएसएस तथा हिन्दू महासभा की भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग को ठुकरा दिया था और उन्होंने भारत को धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र बनाने का समर्थन किया था।

भाकपा महासचिव डी. राजा ने आसाम के एनआरसी का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे तरीकों से भाजपा और आरएसएस पूरे देश के माहौल को साम्प्रदायिक कर अपने पक्ष में ध्रुवीकरण के प्रयास कर रहे हैं। एनआरसी के प्रकाशन से कई तरह के सवाल पैदा हो गये हैं और सरकार उनके हल के कोई प्रयास नहीं करना चाहती। क्या होगा, यह अभी तक अनिश्चित है। सरकार को इस मामले पर भी राजनैतिक दलों के नेताओं को विश्वास में लेना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि आरएसएस प्रमुख आरक्षण पर बहस की मांग कर रहे हैं। पहले उन्होंने इस समाप्त करने की मांग की थी। आरएसएस शुरूआती दौर से दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों तथा महिलाओं को समाजिक न्याय का विरोध करती रही है। बहस का उनका मंतव्य मूलतः आरक्षण को समाप्त करवा देने का है। हालात यह है कि सरकारी नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं, भर्ती नहीं की जा रही है और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण कर उनमें भी आरक्षण समाप्त किया जा रहा है। उन्होंने प्रश्न खड़ा किया कि कितने लोगों को आरक्षण का लाभ इस समय मिल पा रहा है? इस प्रकार मोदी सरकार आरएसएस के दिशानिर्देशन में उसकी हिन्दू राष्ट्र और पूजीपतियों के हितों को पूरा करने की दिशा में ही आगे बढ़ रही है।

भाकपा महासचिव ने कहा कि नोट बंदी और जीएसटी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था गहरे संकट में फंस चुकी है। इन कदमों से अनौपचारिक क्षेत्र और छोटे एवं मध्य उद्योग पहले ही बर्बाद हो चुके थे। मोदी ने सत्ता में आने पर हर साल दो करोड़ रोजगार सृजित करने का वायदा किया था परन्तु वास्तविकता है कि साढ़े पांच साल के शासन में उन्होंने बेरोजगारी की दर को आजादी के बाद पहली बार चरम पर पहुंचा दिया है। कृषि पहले से ही घाटे का सौदा बन चुकी है। अर्थव्यवस्था को संभालने के बजाय सरकारी खर्चे के लिए सरकारी सम्पदाओं तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को निजी पूंजी के हाथों बेच रही है और भारतीय रिजर्व बैंक के रिजर्व को भी खाली कर दिया गया है। सरकारी बैंकों के विलय की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्वीकार किया कि आर्थिक मंदी के हालात हैं और भारतीय रूपया विश्व बाजार में अपनीे कीमत खोते हुए इस स्तर पर आ गया है कि 1 अमरीकी डालर को खरीदने के लिए आपको 72 से ज्यादा भारतीय रूपये खर्च करने पड़ रहे हैं। वे वादा करती हैं कि इससे निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा लेकिन आयात की कीमत हमें कितनी ज्यादा देने होगी, उसका जिक्र नहीं करती है।

बेपरवाह (reckless) विनिवेश की प्रक्रिया चल रही है और सकल उत्पादन जीडीपी भी अपने न्यूनतम स्तर पर है। औद्योगिक उत्पादन तो ऋणात्मक हो चुका है। अगर सरकार के आकड़ों को सही मान लिया जाये तो औद्योगिक उत्पादन की दर आधा प्रतिशत रह गयी है।

उन्होंने कहा कि बैंकों में बड़े पूजीवादी घरानों के ऋण एनपीए होते चले जा रहे हैं, लोगों को देश छोड़ कर भागने दिया गया। उन्होंने 10 सरकारी बैंकों का विलय कर 4 बैंक कर देने की भी निन्दा की कि इससे अंततः बेरोजगारी की गति और बढ़ेगी। उन्होंने सरकारी दावों पर प्रहार करते हुए कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ऋण देने की क्षमता बढ़ाने का क्या उद्देश्य है? यह केवल बड़े पूंजीपतियों को और ऋण देने तथा पुराने एनपीए को बट्टे खाते डालने की साजिश के तौर पर किया गया है। इससे किसानों और छोटे व्यापारियों को तो सुविधायें नहीं बढ़ेंगी बल्कि शाखाओं के बंद होने के कारण और बेरोजगारी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि सरकार इस बात को याद रखने की कोशिश नहीं कर रही है कि 2008 की वैश्विक मंदी से भारत अगर बचा रहा था तो उसका एकमात्र कारण भारत का मतबूत सरकारी वित्तीय क्षेत्र था जिसे गर्त की ओर ढकेला जा रहा है।

भाकपा महासचिव डी. राजा ने सभी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक शक्तियों का आवाहन किया कि वे आरएसएस/भाजपा के साम्प्रदायिक एजेंडे के खिलाफ संघर्ष के लिए एकजुट हों।

उत्तर प्रदेश के राजनैतिक परिदृश्य पर बोलते हुए भाकपा महासचिव डी. राजा ने कहा कि उत्तर प्रदेश में घोर साम्प्रदायिक और अपराधियों को संरक्षण देने वाली नीतियों को लागू किये हुए जिसका परिणाम मॉब लिंचिंग, दलितों और आदिवासियों पर बढ़ते अत्याचार और बलात्कार के बाद हत्या की घटनाएं अपनी ऐतिहासिक ऊंचाईयों को छू चुकी है। पूरे प्रदेश में अराजकता का माहौल है। उन्होंने रविदास मंदिर, सोनभद्र, उन्नाव जैसी तमाम घटनाओं का उल्लेख किया।

एक प्रश्न के जवाब में होने कहा कि भाकपा उत्तर प्रदेश के उप चुनावों में 7-8 जगहों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। एक दूसरे प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि नरेश अग्रवाल का विधायक पुत्र पार्टी बदल कर भाजपा में चला गया परन्तु न तो अखिलेश यादव ने विधान सभा अध्यक्ष को उसकी सदस्यता रद्द करने का पत्र भेजा और न ही विधान सभा अध्यक्ष ने इस बात का संज्ञान लिया। इसी तरह भाजपा के उन्नाव के विधायक की गिरफ्तारी पर उसे भाजपा से निष्कासित कर दिया परन्तु उसकी भी सदस्यता अभी तक समाप्त नहीं की गयी है।

भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि उत्तर प्रदेश में पेट्रोल और डीजल पर वैट बढाने, बिजली दरों में प्रस्तावित बढ़ोतरी तथा गैस सिलेण्डरों की कीमत बढ़ाये जाने के खिलाफ भाकपा उत्तर प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर 11 सितम्बर को धरने और प्रदर्शन आयोजित करेगी।
(डा. गिरीश)

राज्य सचिव

Friday, 23 August 2019

कल्पना दत्त: लड़के के भेष में अग्रेजों से लड़ने वाली क्रांतिकारी महिला! -खुर्शीद आलम

Nisha Siddhu Jaipur

*आओ याद करें कुर्बानी *****
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की नेत्री 
कल्पना दत्त: लड़के के भेष में अग्रेजों से लड़ने वाली क्रांतिकारी महिला!
-खुर्शीद आलम 
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में हर किसी वर्ग और समुदाय ने अपना योगदान दिया. एक तरफ जहां पुरुष क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से लोहा लिया वहीं महिलाओं ने भी आंदोलनों में कूद कर ईट से ईट बजा दी थी.

उन्हीं महिला क्रांतिकारियों में एक नाम कल्पना दत्त का है, जिन्होंने अंग्रेजों से बड़ी निडरता और साहस के साथ जमकर लोहा लिया था.

इनकी निडरता और वीरता को देखने के बाद ही कल्पना को ‘वीर महिला’ के ख़िताब से नवाज़ा गया था. आज़ादी की लड़ाई में इनके योगदान को देखते हुए इन पर उपन्यास सहित फ़िल्में भी बनाई गईं हैं.

ऐसे में इस क्रांतिकारी महिला के बारे में जानना दिलचस्प होगा…

जब हुई सूर्य सेन से मुलाकात!
कल्पना दत्त का जन्म 27 जुलाई 1913 को चटगांव के श्रीपुर गांव में हुआ था, जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है. ये एक मध्यम वर्गीय परिवार से थीं. इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चटगांव से हासिल किया.

1929 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद कलकत्ता चलीं गईं. वहां पर विज्ञान में स्नातक के लिए बेथ्यून कॉलेज में दाखिला ले लिया. इस बीच कल्पना मशहूर क्रांतिकारियों की जीवनियाँ भी पढ़ने लगी थीं.

आगे, जल्द ही छात्र संघ से जुड़ गईं और क्रांतिकारी गतिविधियों में रूचि लेनी लगी. इसी महिला छात्र संघ में बीना दास और प्रीतिलता वड्डेदार जैसी क्रांतिकारी महिलाएं भी सक्रिय भूमिका निभा रही थीं.

तभी इनकी मुलाकात स्वतंत्रता सेनानी सूर्य सेन से हुई, जिन्हें ‘मास्टर दा’ के नाम से भी जाना जाता है.

कल्पना इनके विचारों से बहुत प्रभावित हुईं और सूर्य सेन के संगठन ‘इंडियन रिपब्लिकन आर्मी’ में शामिल हो गईं. इसके बाद कल्पना खुलकर अंग्रेजों के खिलाफ अपनी मुहिम छेड़ चुकी थीं.

भेष बदलकर धमाका करने की बनाई योजना!
1930 में जब इस संगठन ने ‘चटगांव शास्त्रानगर लूट’ को अंजाम दिया, तो कल्पना अंग्रेजों की नज़र में चढ़ गई थीं. ऐसे में इन्हें कलकत्ता से पढ़ाई छोड़कर वापस चटगांव आना पड़ा.

हालांकि इन्होंने संगठन का साथ नहीं छोड़ा और लगातार सूर्य सेन के संपर्क में बनी रहीं. इस हमले के बाद कई क्रांतिकारी नेता गिरफ्तार किये गए थे, जो अपने ट्रायल का इन्तेज़ार कर रहे थे. वहीं कल्पना को कलकत्ता से विस्फोटक सामग्री सुरक्षित ले जाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी. कल्पना चटगांव में गुप्तरूप से संगठन के लोगों को हथियार पहुँचाने लगीं.

फिर, कल्पना ने इन क्रांतिकारियों को आज़ाद कराने का फैसला लिया. इसके लिए इन्होंने जेल की अदालत को बम से उड़ाने की योजना बनाई. इनकी इस योजना में प्रीतिलता जैसी क्रांतिकारी महिला भी शामिल थीं.

इसके लिए इनको हथियार प्रशिक्षण की भी ज़रुरत थी. इसीलिए ये रात के सन्नाटे में सूर्यसेन के गांव जातीं और प्रीतिलता के साथ रिवाल्वर शूटिंग में नियमित अभ्यास करने लगी थीं.

सितम्बर 1931 को कल्पना और प्रीतिलता ने चटगांव के यूरोपीयन क्लब पर हमला करने का फैसला किया. जिसके लिए इन्होंने अपना हुलिया बदल रखा था.

कल्पना एक लड़के के भेष में इस काम को अंजाम देने वाली थीं, मगर पुलिस को इनकी इस योजना के बारे में पता चल चुका था. इसीलिए, अपने मिशन को अंजाम देने से पहले ही कल्पना को गिरफ्तार कर लिया गया.

दोबारा हुईं गिरफ्तार और मिली उम्र कैद की सजा!
बाद में अभियोग सिद्ध न होने पर उनको रिहा कर दिया गया था. जेल से रिहा होने के बाद भी पुलिस उन पर पैनी नज़र रखे हुई थी. यहां तक की उनके घर पर भी पुलिस का पहरा लगा दिया गया था.

परन्तु, कल्पना पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहीं और घर से भागकर सूर्य सेन से जा मिलीं.

इसके बाद ये दो साल तक अंडरग्राउंड हो गईं और गुप्त रूप से क्रांतिकारी आंदोलनों में हिस्सा लेती रहीं. दो साल बीत जाने के बाद पुलिस सूर्य सेन का ठिकाना पता लगाने में सफल रही.

17 फ़रवरी 1933 को पुलिस ने सूर्य सेन को गिरफ्तार कर लिया, जबकि कल्पना अपने साथी मानिन्द्र दत्ता के साथ भागने में कामयाब रहीं. कुछ महीनों तक ये इधर उधर छुपती रहीं, मगर मई 1933 को ही कल्पना को पुलिस ने घेर लिया था.

कुछ देर तक चली इस मुठभेड़ के बाद कल्पना और उनके साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया. जब इन क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया. तब 1934 में सूर्य सेन और उनके साथी तारकेश्वर दस्तीकार को फांसी की सजा सुनाई गई.

जबकि, कल्पना दत्त को उम्र कैद की सजा हुई.

मिली आज़ादी तो, राजनीति में भी अजमाया हाथ!
21 वर्षीय कल्पना को आजीवन करावास की सजा मुकर्र हो चुकी थी. अब वो किसी भी क्रांतिकारी आंदोलनों का हिस्सा नहीं बनने वाली थीं, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. 1937 में पहली बार प्रदेशों में मंत्रिमंडल बनाये गए.

तब महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि नेताओं ने क्रांतिकारियों को छुड़ाने की मुहीम छेड़ दी थी. जिसके बाद अंग्रेजों को बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों को छोड़ना पड़ा था. उन्हीं क्रांतिकारियों में कल्पना दत्त भी शामिल थीं.

खैर, 1939 में कल्पना जेल से रिहा हुईं.

आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए कल्पना ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में दाख़िला ले लिया. स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद कल्पना भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गईं. कल्पना जेल के अंदर ही कई कम्युनिस्ट नेताओं के संपर्क में रहीं और उनके विचारों से प्रभावित भी हुई थीं. उस दौरान इन्होंने ने मार्क्सवादी जैसे विचारों को पढ़ना भी शुरू कर दिया था.

1943 में कल्पना भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पूरन चंद जोशी से विवाह के बंधन में बंध गईं. इस तरह कल्पना दत्त अब कल्पना जोशी बन चुकी थीं. यह वही दौर था, जब बंगाल की स्थिति आकाल और विभाजन के चलते गंभीर थी.

कल्पना ने इस समय बंगाल के लोगों के साथ हमदर्दी बांटी और राहत कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया था. इसके बाद कल्पना देश की आज़ादी के साथ ही भारतीय राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाने लगी.

इन पर आधारित हैं कई उपन्यास और बॉलीवुड फ़िल्में!
इस दौरान इन्होंने चटगांव लूट केस पर आधारित अपनी आत्मकथा भी लिखी थी. कम्युनिस्ट पार्टी का साथ छोड़ने के बाद कल्पना एक सांख्यिकी संस्थान में कार्य करने लगी, जहां पहले भी वो कुछ दिनों तक काम किया था.

बाद में कल्पना बंगाल से दिल्ली आ गईं और इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी का हिस्सा बनीं. 1979 में कलपना जोशी को इनके कामों को देखते हुए ‘वीर महिला’ की उपाधि से नवाज़ा गया था.

8 फ़रवरी 1995 को कल्पना दिल्ली में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. खैर, कल्पना ने दो बच्चों को जन्म दिया था. जिनका नाम चांद जोशी और सूरज जोशी था. चाँद जोशी एक बहुत बड़े पत्रकार रह चुके हैं. जिनकी पत्नी मानिनी ने इनके ऊपर एक उपन्यास ‘डू एंड डाई: चटग्राम विद्रोह’ लिखा था.

इसी कड़ी में दिलचस्प बात यह है कि 2010 में भारतीय सिनेमा जगत ने भी इन पर आधारित एक फिल्म बनाई थी. इस फिल्म का नाम ‘खेलें हम जी जान से’ जो आशुतोष गोवारिकर के निर्देशन में बनी थीं.

इस मूवी की कहानी मानिनी के उपन्यास से ही ली गई थीं. इसमें अभिषेक बच्चन और दीपिका पादुकोण ने मुख्य किरदार की भूमिका निभाई है. इस फिल्म में चटगांव विद्रोह को बखूबी दिखाया गया, जिसमें लगभग सभी रियल पात्रों को भी दर्शाया गया था.

जिस निडरता और साहस के बल पर कल्पना दत्त जोशी ने देश के लिए खुद को समर्पित कर दिया, वह आज भी देश के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है.

साभार : 
https://www.facebook.com/nishasiddhu.jaipur/posts/1372672646222010

Sunday, 21 July 2019

गाँधी जैसी सादगी और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण के धनी कामरेड इन्द्रजीत गुप्ता ------ राष्ट्रीय सहारा



भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के नेता कामरेड इन्द्रजीत गुप्त सिर्फ 1977-80 को छोड़कर 1960 से जीवनपर्यंत सांसद रहे। सबसे वरिष्ठ सांसद रहने के नाते वह तीन बार (1996, 1998, 1999) प्रोटेम स्पीकर बने और उन्होंने नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलायी। वह सीपीआई के राष्ट्रीय महासचिव रहे। वह आॅल इण्डिया ट्रेड यूनियन काॅग्रेस (ए॰आई॰टी॰यू॰सी॰) के महासचिव (1980-90) रहे। वल्र्ड फेडरेषन आॅफ ट्रेड यूनियनस के अध्यक्ष (1998) रहे और एचडी देवगौड़ा के मंत्रिमंडल में वह (1996-1998) गृहमंत्री रहे। उन्हे 1992 में 1 ‘‘आउट स्टैन्डिंग पार्लियामेंटेरियन" का सम्मान दिया गया। राष्ट्रपति के॰ आर॰ नारायणन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि वह गाँधी जी जैसी सादगी, लोकतांत्रिक दृष्टिकोण और मूल्यों के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। वह वेस्टर्न कोर्ट के दो कमरों के क्वार्टर में रहते रहे। टहलते हुए संसद चले जाते थे। गृहमंत्री बनने पर प्रोटोकाल के नाते उन्हें सरकारी गाड़ी से जाना पड़ा। फिर भी उन्होंने वे बहुत सी सुविधाएं नहीं ली थीं जो मंत्री रहते हुए उन्हें मिलनी थीं। वह हमेशा  लोगों को होने वाली असुविधाओं का ख्याल रखते थे। मंत्री रहते हुए भी वह एयरपोर्ट में टर्मिनल तक वायुसेवा की बस से जाते थे न कि अपनी गाड़ी से।

कामरेड इन्द्रजीत गुप्ता का जन्म 18 मार्च, 1919 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता सतीश  गुप्ता देश  के एकांडटेंट जनरल थे। इन्द्रजीत जी के दादा बिहारी लाल गुप्त, आईसीएस थे और बड़ौदा के दीवान थे। इन्द्रजीत गुप्ता की पढ़ाई शिमला, दिल्ली के सेंट स्टीफेंस व किंग्स काॅलेज और कैम्ब्रिज में हुई। इंगलैड में ही वह रजनी पाम दत्त के प्रभाव में आये और उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली।

 1938 में कोलकाता लौटने पर वह किसानों और मजदूरों के आंदोलन से जुड़ गये। आजादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया और इसके तहत अन्य वाम नेताओं के साथ या तो इन्द्रजीत गुप्त को भूमिगत होना पड़ा या गिरफ्तार। इन्द्रजीत गुप्त का देहांत 20 फरवरी, 2001 को 81 साल की उम्र में कैंसर से हुआ।
(साभार ' राष्ट्रीय सहारा ' )

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Saturday, 20 July 2019

चुनाव न लड़ने से पार्टी का नाम ,पार्टी का ऑफिस और पार्टी के नेता बचेंगे, बस पार्टी नहीं बचेगी। ------पीयूष रंजन झा



Piyush Ranjan Jha
16 hrs (20-07-2019 )
सीपीआई के नवनिर्वाचित महासचिव कॉमरेड डी.राजा को अग्रिम बधाई। हालाँकि अभी औपचारिक घोषणा सीपीआई की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक की समाप्ति के बाद आज से २ दिन बाद होगी। यह कम्युनिस्ट पार्टी के लिए भी ऎतिहासिक क्षण होगा जब पार्टी पे आरोप लगती रही है कि कोई दलित अभी तक पार्टी के सर्वोच्य पद पर अभी तक नहीं पहुंच पाया था। पार्टी को बधाई।
कॉमरेड डी.राजा एक ऐसे समय में पार्टी की कमान संभालने जा रहे है जब पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यहाँ तक की सीपीआई पर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म होने का भी खतरा मंडरा रहा है। केरला जैसे राज्य को छोड़ दे तो किसी और राज्य में पार्टी की विधानमंडलों और लोकसभा में भी कोई निर्णायक भूमिका नहीं बची है। सांगठनिक तौर पर भी पार्टी क्षरण की ओर अग्रसर है। कॉमरेड डी.राजा के लिए इस वक़्त यह भूमिका ग्रहण करना काटों भरा ताज पहनने से कम नहीं है और अगर वे पार्टी को इससे उबार पाए तो निश्चित ही वे चैंपियन होंगे। नए नेतृत्व को एक दिशाहीन पार्टी में नयी ऊर्जा ,जूनून और लक्ष्य निर्धारण करके आगे बढ़ने की गंभीर चुनौती है। 
पार्टी के पिछले महाधिवेशन में कन्हैया कुमार ने जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया को कन्फ्यूज्ड पार्टी ऑफ़ इंडिया कहा तब बड़ा बवाल मचा था. लेकिन मैं समझता हूँ की उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा था। आज लगभग हर राज्यों में पार्टी का संगठन होने के बावजूद पार्टी अपने दम पर हर सीट पर कैंडिडेट नहीं उतार पाती है। राष्ट्रीय नेता ऑफिसों में बैठकर, देश भर में घूम घूम कर भाषण देकर और पार्टी की मीटिंग अटेंड करके आत्ममुग्ध रहते है,और इसी का अनुसरण राज्यों के नेता भी करते है। और जब इन नेताओ से पार्टी की चुनावी हार पर बात कीजिये तब ये कहेंगे की " हम चुनावी (संसदीय ) राजनीति के लिए नहीं बने है ".यह जवाब निश्चित ही "संशोधनवादी होने " के आरोप का प्रतिउत्तर लगता है. यही से साबित होता है की पार्टी पूरी तरह कन्फ्यूज्ड है। क्योँकि इस जवाब से फिर यह सवाल भी उठता है कि तब आप चुनाव लड़ते ही क्योँ है? क्या सिर्फ इसलिए की आपकी पार्टी का राष्ट्रीय दर्जा बचा रहे और आप आराम से नेता बने रहे। लेकिन उनका क्या जो जमीन पर हर दुःख दर्द जुल्म सहकर पार्टी का झंडा उठाये हुए है। इस शुद्धतावादी सोच से आगे बढ़ना होगा। सोवियत संघ के विघसीपीआई के नवनिर्वाचित महासचिव कॉमरेड डी.राजा को अग्रिम बधाई। हालाँकि अभी औपचारिक घोषणा सीपीआई की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक की समाप्ति के बाद आज से २ दिन बाद होगी। यह कम्युनिस्ट पार्टी के लिए भी ऎतिहासिक क्षण होगा जब पार्टी पे आरोप लगती रही है कि कोई दलित अभी तक पार्टी के सर्वोच्य पद पर अभी तक नहीं पहुंच पाया था। पार्टी को बधाई।
कॉमरेड डी.राजा एक ऐसे समय में पार्टी की कमान संभालने जा रहे है जब पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यहाँ तक की सीपीआई पर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म होने का भी खतरा मंडरा रहा है। केरला जैसे राज्य को छोड़ दे तो किसी और राज्य में पार्टी की विधानमंडलों और लोकसभा में भी कोई निर्णायक भूमिका नहीं बची है। सांगठनिक तौर पर भी पार्टी क्षरण की ओर अग्रसर है। कॉमरेड डी.राजा के लिए इस वक़्त यह भूमिका ग्रहण करना काटों भरा ताज पहनने से कम नहीं है और अगर वे पार्टी को इससे उबार पाए तो निश्चित ही वे चैंपियन होंगे। नए नेतृत्व को एक दिशाहीन पार्टी में नयी ऊर्जा ,जूनून और लक्ष्य निर्धारण करके आगे बढ़ने की गंभीर चुनौती है। 
पार्टी के पिछले महाधिवेशन में कन्हैया कुमार ने जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया को कन्फ्यूज्ड पार्टी ऑफ़ इंडिया कहा तब बड़ा बवाल मचा था. लेकिन मैं समझता हूँ की उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा था। आज लगभग हर राज्यों में पार्टी का संगठन होने के बावजूद पार्टी अपने दम पर हर सीट पर कैंडिडेट नहीं उतार पाती है। राष्ट्रीय नेता ऑफिसों में बैठकर, देश भर में घूम घूम कर भाषण देकर और पार्टी की मीटिंग अटेंड करके आत्ममुग्ध रहते है,और इसी का अनुसरण राज्यों के नेता भी करते है। और जब इन नेताओ से पार्टी की चुनावी हार पर बात कीजिये तब ये कहेंगे की " हम चुनावी (संसदीय ) राजनीति के लिए नहीं बने है ".यह जवाब निश्चित ही "संशोधनवादी होने " के आरोप का प्रतिउत्तर लगता है. यही से साबित होता है की पार्टी पूरी तरह कन्फ्यूज्ड है। क्योँकि इस जवाब से फिर यह सवाल भी उठता है कि तब आप चुनाव लड़ते ही क्योँ है? क्या सिर्फ इसलिए की आपकी पार्टी का राष्ट्रीय दर्जा बचा रहे और आप आराम से नेता बने रहे। लेकिन उनका क्या जो जमीन पर हर दुःख दर्द जुल्म सहकर पार्टी का झंडा उठाये हुए है। इस शुद्धतावादी सोच से आगे बढ़ना होगा। सोवियत संघ के विघटन के 'शॉक' से बाहर निकलना होगा। कॉमरेड इस 'शॉक' ने न जाने कितने प्रतिभाशाली पार्टी कार्यकर्ताओ की ज़िंदगी ख़राब कर दी है। 
पार्टी को एक सर्जरी की अत्यंत जरुरत है। असक्षम और निक्कम्मे नेताओ से पार्टी को किनारा करना होगा। पार्टी और जन संगठनो में सदस्यता की जाँच होनी चाहिए। आज फर्जी सदस्यता के कारण ही नाकाम और असक्षम नेतृत्व कुर्सी जमा कर बैठे हुए है। यह न सिर्फ पार्टी बल्कि आंदोलन के साथ भी गद्दारी है। क्या कारण है कि महिला संगठन, शिक्षक संगठन, कर्मचारी संगठन ,इप्टा, प्रलेस इत्यादि में पार्टी सदस्य जनरल सेक्रेटरी तो है लेकिन संगठन खंड खंड बिखरा हुआ है? न तो इन संगठनो पर पार्टी के नेता का कोई प्रभाव होता है न ही इसके अधिकतर सदस्यों का पार्टी और विचारधारा से कोई लगाव होता है। मुझे याद आता है की २०११ -१२ में बिहार में असक्षम नेतृत्व के कारण कॉलेज का एडमिनिस्ट्रेशन कॉलेज के शिक्षक और कर्मचारी संगठन पर हावी हो जाता है और पार्टी का शिक्षक और कर्मचारी संघ AISF को असामाजिक तत्व बताते हुए एडमिनिस्ट्रेशन को समर्थन पत्र लिखता है। पार्टी को आज इस बात पर भी मंथन करना चाहिए की क्या अपने जन संगठनो को पार्टी का जन संगठन बताने से परहेज करना और सभी के लिए जन संगठन का दरवाजा खुला रखना, कही पार्टी और आंदोलन को नुकसान तो नहीं पंहुचा रहा है। उदाहरण के लिए मजदूरों के संगठन AITUC में भाजपा का विधायक नेता कैसे बना हुआ है ?

आज पार्टी के कार्यकर्ताओं में घोर निराशा है जिसको ख़त्म करने की चुनौती नए नेतृत्व की है। वरना गोवा की आज़ादी के लिए लड़ने वाली सीपीआई अब गोवा में चुनाव नहीं लड़ती वही हाल देश भर में हो जायेगा, और कुछ समय बाद सीपीआई गोवा की तरह सिर्फ पार्टी का नाम ,पार्टी का ऑफिस और पार्टी के नेता बचेंगे, बस पार्टी नहीं बचेगी।
--पीयूष रंजन झा
https://www.facebook.com/piyushranjan.jha.5/posts/2299620040159042

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Wednesday, 10 July 2019

सुप्रसिद्ध पत्रकार व राजनीतिज्ञ कामरेड शमीम फ़ैज़ी को लखनऊ में श्रद्धांजली अर्पण ------ अरविंद राज स्वरूप



लखनऊ,9 जुलाई 2019
जानें मानें पत्रकार और नेता कॉम शमीम फ़ैज़ी को लखनऊ नें श्रधांजलि दी।

जानें मानें पत्रकार और सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य कॉम शमीम फ़ैज़ी को कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य मुख्यालय पर श्रधांजलि दी गई।उनका निधन लम्बी बीमारी के बाद विगत 5 जुलाई को दिल्ली में हो गया था।सभा की अध्यक्षता राज्य सचिव डॉ गिरीश नें की,संचालन राज्य सह सचिव कॉम अरविन्द राज स्वरूप नें किया तथा दूसरे राज्य सहायक सचिव एवं पूर्व विधायक कॉम इम्तियाज़ अहमद नें शोक प्रस्ताव पेश किया।
कॉम इम्तियाज़ नें उनके बारे में बताते हुए कहा कि उनका जन्म 1946 में हुआ था और उनके पुरखे मऊ से महाराष्ट्र चले गये थे। वो अनेकों अखबारों में पत्रकार रहे।फिर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शरीक हुए।वो पार्टी के अंग्रेज़ी , न्यू ऐज अखबार के और उर्दू अखबार हयात के संपादक थे।उनका व्यक्तित्व सहज था।
अध्यक्ष डॉ गिरीश नें कहा राजनैतिक सम्बन्धों से व्यक्तिगत सम्बन्ध कब हो गए पता ही नहीं चला।वो पार्टी की शीर्षस्थ समिति के सदस्य थे, पार्टी के दस्तावेजों को स्पष्ट रूप से लिखते थे।पार्टी में यदि विचारों में मतभेद हुआ तो वो दोनों पक्षों को समझा सकते थे।बर्धन जी जैसे बड़े नेता भी उनकी प्रतिभा का लोहा मानते थे।उनके जानें से पार्टी की भारी क्षति हुई है लेकिन उनके विचारों का अनुसरण किया जाएगा।
संचालक कॉम अरविन्द राज स्वरूप नें कहा कि उनकी लेखनी विश्लेषणात्मक थी।उनोहने बताया कि उनके सम्बंध विद्यार्थी जीवन से थे।वो मास्टरपीस लेखक थे।उनोहने इस्लाम के धर्मावलंबियों पर जो पुस्तिका लिखी उसका कोई मुकाबला नहीं है।वो संस्कृति और साहित्य से गहराई से जुड़े थे ।बड़ी क्षति हुई है उनके जानें से।

इस अवसर पर इप्टा के राकेश नें उनके सांस्कृतिक योगदान का जिक्र किया। प्रलेस के वीरेंद्र यादव नें कहा कि उनोहने पीपीएच को पुनर्जीवित कर प्रगतिशील साहित्य के विस्तार में भारी योगदान दिया ,एटक के महेंद्र राय,महिला फेडरेशन की नेत्री आशा मिश्रा, नौजवान सभा के विनय पाठक ,प्रदीप घोष,ऋषि श्रीवास्तव,राम सोच यादव,देवेंद्र चौहान,ओ पी अवस्थी,ज्ञान शुक्ला,अनिल श्रीवास्तव,कल्पना पांडे आदि नें भी विचार रखे।
सभा के अंत मे 2 मिनट का मौन रखा गया और उनके परिवार के प्रति गहरी शोक संवेदनायें व्यक्त कीं।
सभा का अंत शमीम फ़ैज़ी..
अमर रहैं!! के नारे से सम्पन्न हुआ।
सभी उपस्थित जनों नें उनके चित्र पर पुष्प अर्पित किये।
https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/2386233041594820

श्रद्धांजली सभा में खिलखिलाती हंसी !

Thursday, 4 July 2019

बोल्शेविक क्रांति की धरती पर आर्थिक अन्याय को संस्थागत रूप दे दिया गया है ------ हेमंत कुमार झा

Hemant Kumar Jha
3 hrs

Wednesday, 26 June 2019

निजी क्षेत्र की 'शिक्षा' की दास्तान ------ Tanveer Ul Hasan Faridi




अध्यापन का पेशा और मेरे तीन अपराध!

हमने एम0एड के उपरांत नई नई एम0फिल0 एजुकेशन कम्पलीट की थी। अपने शहर मेरठ के विभिन्न प्राइवेट बी0एड0, एम0एड0 कॉलेज में टीचर एडुकेटर के रूप में शिक्षण करने के उद्देश्य से एक अच्छा सा रिज्यूम बनाया और मेरठ यूनिवर्सिटी के विभिन्न प्राइवेट बीएड एमएड कॉलेजेस में अप्लाई करने की नीयत से कई प्रिंट आउट निकलवाये। एक स्कूटी उधार मांग कर उसमें पेट्रोल डलवाया और चौधरी चरण सिंह मेरठ यूनिवर्सिटी से अपनी प्रोफेसर से मिलकर निकल पड़े। सोचा तेजगढ़ी से साकेत चौराहे तक और फिर मवाना रोड के कॉलेजेस में रिज्यूम दे कैंट से होते हुए रुड़की रोड के कॉलेज कवर करते हुए मोदीपुरम तक जाएंगे वहां के कॉलेजेस में देकर दिल्ली वाला नेशनल हाईवे पकड़ेंगे और वहां स्थित विभिन्न कॉलेजेस और डीम्ड विश्वविद्यालयों में देते हुए परतापुर से वापिस मेरठ में घुस आएगे। फिर बागपत चौपले से बागपत रोड पकडूँगा और उधर के समस्त बीएड कॉलेज में दे दूंगा। कहीं से तो इंटरवियू कॉल आएगी।

जान लीजिए कि जितने प्रोफेशनल एजुकेशन के निजी कॉलेज सारे उत्तर प्रदेश में कुल मिलाकर होंगे उससे अधिक अकेले मेरठ यूनिवर्सिटी के अंतर्गत अकेले हैं।

अपनी तैयारी बढ़िया थी। ugc नेट भी क्वालीफाई हो गया था। उम्मीद थी किसी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नक्शे से पढ़ाने को जाएंगे।

मेरठ विश्विद्यालय से जैसे ही स्कूटी स्टार्ट की तो साकेत चौराहे की ओर जाते हुए बांए हाथ पर वेंकटेश्वरा ग्रुप का केंद्रीय कार्यालय का बोर्ड दिखा। सो हम सबसे पहले वहीं घुस गए।

ऑफिस रिसेप्शन पर बैठी चमकीली मोहतरमा को परिचय दे रिज्यूम थमाया और कहा कि कोई वेकैंसी हो तो बुलाइयेगा। वे बोली एक मिनट रुकिए और हमारा रिज्यूम लिए एक चैम्बर में घुस गई। मैंने गौर से name plate पढ़ी नाम कोई कर्नल डी पी सिंह, एडवाइजर, HR एंड एडमिनिस्ट्रेटर लिखा था। मुश्किल से तीस सेकंड लगे होंगे कॉल बेल बजी और चपरासी के मार्फत हमें भी अंदर बुला लिया गया।

हमारा रिज्यूम अंदर साहब के सामने टेबल पर रखा था और एक सादी वर्दी में रौबीला शख्स हमसे पूछ रहा था आपने अपने रिज्यूम में NCC 'C' सर्टिफिकेट का उल्लेख किया है। क्या आप पर अभी भी है। मेरी सर्टिफिकेट फ़ाइल मेरे साथ थी। मैने फौरन अपना 'C' सर्टिफिकेट प्रस्तुत कर दिया कर्नल साहब खुश हो गए और आर्मी रैंक, मैप रीडिंग, गन के प्रकार, कॉन्टिजेंट और क्वार्टर गार्ड के कमांड्स, ट्रूप मूवमेंट के विभिन्न फॉर्मेशन्स पर चर्चा करने के बाद बोले क्या कल सब्जेक्ट इंटरव्यू और सैलेरी फाइनल करने के लिए चेयरमैन से मिलने आ सकते हो?

हम तो फूले नहीं समा रहे थे। हमने भी हाँ कर दी। कर्नल साहब ने C प्रमाण पत्र देखते हुए हमारी फ़ाइल में ढेरों रिज्यूम की प्रतिलिपियां ताड ली थी सो बोले तनवीर घर जायो और सब्जेक्ट को कुछ पढ़ लो। ये बाकी के रिज्यूम देने कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। आप हमारे साथ काम कर रहे हैं। कल बस चेयरमैन के साथ फॉर्मेलिटी होनी है और सैलरी DECIDE होनी है।

अगले दिन यही हुया। उनके एजुकेशन विषय के एक्सपर्ट को हमने अपने जवाबों से न केवल संतृष्ट कर दिया बल्कि शिक्षा मनोविज्ञान और शिक्षा दर्शन के क्षेत्र की नई खोजों और तथ्यों पर किये डिस्कशन से आश्चर्यचकित भी कर दिया।

खैर अगले दिन हमें 15000 रुपये महावार की तनख्वाह पर बी एड लेक्चरर वेंकटेश्वरा ग्रुप के VICST कैंपस में नियुक्ति पत्र प्राप्त हो गया।

जॉइनिंग पर साथी स्टाफ, प्रिंसिपल और छात्रों से मुलाकात हुई। हमने अच्छे से पढ़ाया और जल्द ही अच्छा नाम कमा लिया। ग्रुप ने अपने TV विज्ञापन के शूट के लिए बॉम्बे से कोई विज्ञापन फ़िल्म शूटिंग यूनिट बुलायी थी। उन्होंने भी तमाम शिक्षकों में से मेरे लेक्चर को अपनी विज्ञापन फ़िल्म हेतु चुना। शायद उनके विज्ञापन में हम अब भी दिखते हों।

 पहला अपराध था ! :

शायद दो तीन महीने ही बीते थे कि प्रिंसिपल साहब ने आधे स्टाफ को प्रशिक्षु शिक्षकों की उपस्थिति शार्ट करने के काम पर लगा दिया। छात्रों की उपस्थिति को शार्ट दर्शा उनके अभिभावकों को एग्जाम में न बैठने के नोटिस भेजे जाने लगे। प्राचार्य जी, वे भी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का प्रोडक्ट थे, हमारा कुछ ख्याल कर हमारे सामने उपस्थिति पंजिका में फेर बदल कर अधिक से अधिक छात्रों को नोटिस भेजने या क्लास लेने में से एक कार्य चुनने का विकल्प रख दिए। हमने क्लास में पढ़ाना चुन लिया।

अधिकतर शिक्षक ऐयरकंडिशन दफ्तर में बैठ कर रजिस्टर बाज़ी चुन लिए।

खैर हमने भी इस मौके का फायदा उठा दबा कर लंबी लंबी क्लासेज को अनेक पेपर पढ़ाये। बीएड के साथ बीटीसी की क्लास में भी हमारी मांग होने लगी। इससे हमें विषय को गहनता से पढ़ना पढ़ा, हमारे शिक्षण कौशल बेहतर हुए, तीन तीन क्लासेस मिला कर हॉल में लेक्चर देने से बड़ी संख्या वाले क्लासेज को टेक्नोलॉजी के मार्फत से डील करने के हम अभ्यस्त हो गए।

मेहनत और प्रयासों की सच्चाई से ये हुया कि छात्र भी हमारी क्लास अटेंड करने दौड़े चले आने लगे। उनमें से कई अपने आर्थिक हालात, प्रबंधन द्वारा विभिन उत्पीड़क तरीकों से पैसा वसूली और अपने घर के हालात भी सुनाने लगे। मैंने उनका दर्द प्राचार्य से कहा तो वे बोले तनवीर ये प्राइवेट सेक्टर का कॉलेज हैं। यहां अध्यापकों को अपनी सैलरी पढ़ा कर नहीं प्रबंधन को लाभ कमा कर देने के लिए मिलती है। आप नए हैं, आपको पढ़ाने का शौक है, अच्छा पढ़ाते है, इसलिए आपको इसकी छूट दी है। आप पढ़ाइये, बाकी अध्यापकों को सैलरी कमाने दीजिये।

 दूसरा अपराध था! :

कर्नल डी पी सिंह, HR एवं एडमिनिस्ट्रेटर जिन्होंने मेरे C प्रमाणपत्र पर फिदा होकर मुझ पर जुआ खेला था अपने चयन पर खूब गर्वित होते थे। चेयरमैन गिरी भी हमपर मेहरबान थे।

फिर एक दिन एक और कांड हुया। जिन लड़के लड़कियों की उपस्थिति जानबूझकर शार्ट की गई थी उनके घर नोटिस पहुंचे तो कई के गार्डियन आ पहुंचे। तब हमने जाना कि प्राइवेट कॉलेज में न केवल सीट, ड्रेस, बैग, नोटबुक्स, लेसन प्लान बिकते हैं बल्कि उपस्थिति भी बिकती है। अधिकतर के माँ बाप पैसे प्रबंधन को चुका गए लेकिन एक केस बिगड़ गया।

एक शादी शुदा लड़की थी, उसके ससुराल वाले उसे बी एड करा रहे थे। वह पूर्वांचल के किसी शहर की थी। जब नोटिस उसके ससुराल पहुंचा तो गज़ब हो गया। ससुर और पति मेरठ आ गए। प्रिंसिपल आफिस में उन्हीने अपनी रोती हुई बहू से पूंछा कि बहू हमने तो तुम्हें तुम्हारी रिक्वेस्ट पर पढ़ने यहां इतनी दूर भेजा तुम यहाँ कॉलेज आने की जगह कहां घूम रही हो? आप एक भारतीय बहू की स्थिति को समझिये। बहू टिसूये बहा रही थी। मामला शादी टूटने जैसा बन गया था। तभी किसी काम से प्रिंसिपल आफिस में मेरा जाना हुया। प्रिंसिपल साहेब ने मेरी ओर सहायता पाने की दृष्टि से देखा कि क्या किया जाए? मैने भी कहा कि लगता है नोटिस किसी त्रुटिवश गलत चला गया है। ये तो रेगुलर आती हैं।
खैर प्रिंसिपल कुछ बोल न पाए और नोटिस वापिस ले लिया गया। कॉलेज प्रबंधन को कुछ हज़ार रुपये का नुकसान हो गया लेकिन एक लड़की की गृहस्थी और शिक्षा दोनों बच गई।

 तीसरा अपराध था ! : 

प्रिंसिपल साहब मन में हमे ताड़ लिए थे शायद। एक दिन हम अपनी क्लास समाप्त कर छुट्टी के वक़्त अपना थंब इम्प्रैशन देने प्राचार्य के रूम में पहुंचे। तीन चार और शिक्षक भी वहीं थे।
प्राचार्य जी ने हमें भी रोक लिया। थोड़ी देर में सब ऑफिस से निकले और पार्किंग की तरफ बड़े। प्राचार्य जी आगे आगे थे और बाकी शिक्षक उनके पीछे। और हम सबसे पीछे। बेगानी बारात में अब्दुल्ला दीवाने जैसे।

प्राचार्य जी चलते चलते बोले हाँ भाई मनोज सक्सेना जी आज मैनेजमेंट का कितना फायदा किया हमने?
मनोज जी बोले सर आज बीस बाइस स्टूडेंट की अटेंडेंस शार्ट कर नोटिस भेजे हैं... करीब 4-5 लाख की उगाही मैनेजमेंट को ही जाएगी।
प्राचार्य जी बोले शाबाश ये स्ट्रेंथ गिरने नहीं देना है। इसी पैसे से हमारी सैलरी आती है। मैनेजमेंट ने मुझे जो टारगेट दिया है उसे पूरा करना है।

"अब तो हो ही गया है सर अब तो पार्टी बनती है सर!"एक और शिक्षक चहके।

सभी इस सक्सेस पार्टी ऑफर पर खिलखिलाने लगे।

मेरी कोई टिप्पणी और खिलखिलाहट न सुन प्राचार्य जी अपनी कार के दरवाजे में चाबी लगाते हुए बोले... क्या बात है आज तनवीर सर की कोई आवाज़ नहीं आ रही। आपका क्या ख्याल है?

वेंकटेश्वरा के जॉब के दौरान की सबसे बड़ी तीसरी गलती मुझ मूर्ख ने अब आकर की......

"कार्ल मार्क्स अपने कॉफिन में बेचैनी से करवट बदल रहा होगा!" ये मुझ बदज़ुबान का जवाब था । 



प्राचार्य और शिक्षक थोड़ी देर कुछ समझ न सके। शिक्षक तो बाद तक न समझ सके। मैंने तब तक अपनी स्कूटी स्टार्ट कर आगे बढ़ा ली थी। प्राचार्य जी करर में बैठ गए थे। फिर खिड़की खोल मुझे इशारा किया और मुस्कराते हुए बोले आप कम्युनिस्ट कार्ल मार्क्स की बात कर रहे थे?

मैंने कहां जी हां!

"आपका presence ऑफ माइंड बहुत सटीक है।"
बोलकर प्राचार्य जी ने कार आगे बढ़ा दी।

हम भी घर निकल गए।

और अगले दिन क्लास लेते में कर्नल साहब का बुलावा भी आ गया। फौज की डिसेंसी, जेंटलमैन कल्चर, अनुशासन, एफिशिएंसी और चरित्र की तारीफ करते न थकने वाले फौजी ने आज मुझे कुर्सी तक ऑफर न करी। घुसते ही निर्देश दे मारा।

"You are most compitent teacher of this institution. But you have to learn that this is a comercial complex. You should always agree with your employee... You should always agree with management. Otherwise...."

दो मिनट सन्न रहने के बाद हमने भी आगे पीछे के सब हिसाब लगा लिए और बड़ी थेथराई से पूछा.... कि मुझे अपना इस्तीफा चेयरमैन को एड्रेस कर लिखना चाहिए या आपको एड्रेस करूँ सर?

अब कर्नल साहेब के तेवर ढीले पढ़ने का वक़्त था। उन्होंने समझाना चाहा कि स्टूडेंट का फेवर करने से क्या फायदा? यहां बिज़नेस हो रहा है। तुम भी बिज़नेस करो। ऐसे कैसे कहीं भी प्राइवेट सेक्टर में काम कर पाओगे? तुम मार्क्स की बात करते हो?

मैंने भी कहा आप पाठ्यक्रम में तो मुझसे मार्क्स को क्लास में पढ़वाना चाहते हैं और वास्तविक जीवन मे उसके उल्लेख पर आपको आपत्ति है?

आप मुझे मोस्ट competent टीचर कहते हैं। ये competency महंगा आइटम है। attitude और शैक्षिक समझ महंगी शिक्षा से हासिल हुया है, 15000 हज़ार रुपल्ली के लिए नहीं छोड़ूंगा। आपका कमर्शियल संस्थान मेरे पढ़ाने के पैसे देता है। मेरी विचारधारा बदलने के लिए अभी वह बहुत गरीब है।

ये एजुकेशनल attitude है। आप इसे तेवर समझ सकते हैं।

मेरा अगला फायर और घातक था.... सर क्या आप मुझे एक ब्लेंक पेपर दे सकते हैं ? अगर अकॉउंट सेक्शन में एक कॉल कर मेरे due वेतन दिलवाने का कष्ट करें तो मैं दुबारा इस धंधे वाली दुकान में आने से बच जायूँगा।

खैर मैंने रिजाइन लिख दिया। उन्होंने पुनः विचार करने का कह रख लिया। मैं फिर कभी उस कैंपस में बाक़ी की तनख्वाह लेने भी नहीं गया। उन धनपशुओं ने बुला कर दी भी नहीं।

आज रविश के प्राइम टाइम में जब मध्य प्रदेश की स्मृति नामक मेडिकल छात्रा की संस्थान और प्राचार्य द्वारा आर्थिक शोषण और लूट के कारण आत्महत्या पर रिपोर्ट देखी तो अपने साथ बीता सारा वाकया याद आ गया।

इस घटना के बाद एक संस्थान में और चाकरी की उसकी कहानी फिर कभी। बाद में BHU में सेलेक्ट होने पर रिसर्च में एडमिशन ले बनारस चला गया। एक दिन अखबार में पढ़ा कि वेंकटेश्वरा समूह के मालिक गिरी साहब दिल्ली के अपने आफिस की एक महिला कर्मचारी, जो कि किसी सैनिक अधिकारी की पत्नी भी थी के बलात्कार के आरोप में कनॉट प्लेस थाने की पुलिस द्वारा एक होटल से गिरफ्तार हुए।

मैं काफी चिड़ा हुया था... मैंने मेरठ कर्नल साहब को फोन किया। उनके आफिस से पता चला कि वे ग्रुप छोड़ चुके थे। उनसे बात न हो पाई।

फिर मैंने प्राचार्य जी के मोबाइल पर फोन लगाया... और पूँछा.....

"सर जब आपके चैयरमैन उस महिला से बलात्कार कर रहे थे तो आपने उनकी सुविधा के लिए अपनी तनख्वाह को जस्टिफाई करने के लिए उस बेबस महिला के पैर पकड़े थे या हाथ?

शायद ये मेरा बदला था।

काफी देर बाद उधर से बड़ी धीमी आवाज़ आई। तनवीर मैं वहां की नौकरी छोड़ चुका हूँ।

और हाँ Sorry........ for that episode....

मेरा गुबार निकल चुका था।
मैंने भी चुपचाप फोन काट दिया। फिर कभी किसी से संपर्क न किया।

आज शैक्षिक वसूली के बदौलत वेंकटश्वरा ग्रुप की गजरौला उत्तर प्रदेश में एक प्राइवेट विश्विद्यालय भी खड़ी हो गई है।

इंदौर की स्मृति के मेडिकल कॉलेज का प्राचार्य के के खान जिसके पाप और आर्थिक लूट हेतु प्रताड़ना का उल्लेख स्मृति ने अपने सुसाइड नोट में किया है बिल्कुल मेरे इस प्रिंसिपल जैसा ही होगा।

और इंदौर के मेडिकल कॉलेज किसी शिक्षा संस्थान की जगह मुनाफा कमाने का अड्डा!

उच्च शिक्षा के निजीकरण और व्यवसायीकरण के ये अवश्यम्भावी नतीजे हैं।

इन संस्थानों के छात्र और शिक्षक कर्मचारी वहां रोज़ अपने ज़मीर को सूली पर लटका कर नाम मात्र की तनख्वाह पाते हैं।
कई शिक्षक तो मनरेगा के मज़दूर से भी कम तिहाड़ी पर वहां मजदूरी करने को अभिशप्त हैं।।

ये शैक्षिक जगत का काला सच है।
https://www.facebook.com/tanveerulhasan.faridi/posts/1558045830997750

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निजीकरण या प्राइवेटाइजेशन समर्थकों की आँखें खोलने के लिए  यह वीडियो भी सहायक होगा ---

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