Wednesday, 26 June 2019

निजी क्षेत्र की 'शिक्षा' की दास्तान ------ Tanveer Ul Hasan Faridi




अध्यापन का पेशा और मेरे तीन अपराध!

हमने एम0एड के उपरांत नई नई एम0फिल0 एजुकेशन कम्पलीट की थी। अपने शहर मेरठ के विभिन्न प्राइवेट बी0एड0, एम0एड0 कॉलेज में टीचर एडुकेटर के रूप में शिक्षण करने के उद्देश्य से एक अच्छा सा रिज्यूम बनाया और मेरठ यूनिवर्सिटी के विभिन्न प्राइवेट बीएड एमएड कॉलेजेस में अप्लाई करने की नीयत से कई प्रिंट आउट निकलवाये। एक स्कूटी उधार मांग कर उसमें पेट्रोल डलवाया और चौधरी चरण सिंह मेरठ यूनिवर्सिटी से अपनी प्रोफेसर से मिलकर निकल पड़े। सोचा तेजगढ़ी से साकेत चौराहे तक और फिर मवाना रोड के कॉलेजेस में रिज्यूम दे कैंट से होते हुए रुड़की रोड के कॉलेज कवर करते हुए मोदीपुरम तक जाएंगे वहां के कॉलेजेस में देकर दिल्ली वाला नेशनल हाईवे पकड़ेंगे और वहां स्थित विभिन्न कॉलेजेस और डीम्ड विश्वविद्यालयों में देते हुए परतापुर से वापिस मेरठ में घुस आएगे। फिर बागपत चौपले से बागपत रोड पकडूँगा और उधर के समस्त बीएड कॉलेज में दे दूंगा। कहीं से तो इंटरवियू कॉल आएगी।

जान लीजिए कि जितने प्रोफेशनल एजुकेशन के निजी कॉलेज सारे उत्तर प्रदेश में कुल मिलाकर होंगे उससे अधिक अकेले मेरठ यूनिवर्सिटी के अंतर्गत अकेले हैं।

अपनी तैयारी बढ़िया थी। ugc नेट भी क्वालीफाई हो गया था। उम्मीद थी किसी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नक्शे से पढ़ाने को जाएंगे।

मेरठ विश्विद्यालय से जैसे ही स्कूटी स्टार्ट की तो साकेत चौराहे की ओर जाते हुए बांए हाथ पर वेंकटेश्वरा ग्रुप का केंद्रीय कार्यालय का बोर्ड दिखा। सो हम सबसे पहले वहीं घुस गए।

ऑफिस रिसेप्शन पर बैठी चमकीली मोहतरमा को परिचय दे रिज्यूम थमाया और कहा कि कोई वेकैंसी हो तो बुलाइयेगा। वे बोली एक मिनट रुकिए और हमारा रिज्यूम लिए एक चैम्बर में घुस गई। मैंने गौर से name plate पढ़ी नाम कोई कर्नल डी पी सिंह, एडवाइजर, HR एंड एडमिनिस्ट्रेटर लिखा था। मुश्किल से तीस सेकंड लगे होंगे कॉल बेल बजी और चपरासी के मार्फत हमें भी अंदर बुला लिया गया।

हमारा रिज्यूम अंदर साहब के सामने टेबल पर रखा था और एक सादी वर्दी में रौबीला शख्स हमसे पूछ रहा था आपने अपने रिज्यूम में NCC 'C' सर्टिफिकेट का उल्लेख किया है। क्या आप पर अभी भी है। मेरी सर्टिफिकेट फ़ाइल मेरे साथ थी। मैने फौरन अपना 'C' सर्टिफिकेट प्रस्तुत कर दिया कर्नल साहब खुश हो गए और आर्मी रैंक, मैप रीडिंग, गन के प्रकार, कॉन्टिजेंट और क्वार्टर गार्ड के कमांड्स, ट्रूप मूवमेंट के विभिन्न फॉर्मेशन्स पर चर्चा करने के बाद बोले क्या कल सब्जेक्ट इंटरव्यू और सैलेरी फाइनल करने के लिए चेयरमैन से मिलने आ सकते हो?

हम तो फूले नहीं समा रहे थे। हमने भी हाँ कर दी। कर्नल साहब ने C प्रमाण पत्र देखते हुए हमारी फ़ाइल में ढेरों रिज्यूम की प्रतिलिपियां ताड ली थी सो बोले तनवीर घर जायो और सब्जेक्ट को कुछ पढ़ लो। ये बाकी के रिज्यूम देने कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। आप हमारे साथ काम कर रहे हैं। कल बस चेयरमैन के साथ फॉर्मेलिटी होनी है और सैलरी DECIDE होनी है।

अगले दिन यही हुया। उनके एजुकेशन विषय के एक्सपर्ट को हमने अपने जवाबों से न केवल संतृष्ट कर दिया बल्कि शिक्षा मनोविज्ञान और शिक्षा दर्शन के क्षेत्र की नई खोजों और तथ्यों पर किये डिस्कशन से आश्चर्यचकित भी कर दिया।

खैर अगले दिन हमें 15000 रुपये महावार की तनख्वाह पर बी एड लेक्चरर वेंकटेश्वरा ग्रुप के VICST कैंपस में नियुक्ति पत्र प्राप्त हो गया।

जॉइनिंग पर साथी स्टाफ, प्रिंसिपल और छात्रों से मुलाकात हुई। हमने अच्छे से पढ़ाया और जल्द ही अच्छा नाम कमा लिया। ग्रुप ने अपने TV विज्ञापन के शूट के लिए बॉम्बे से कोई विज्ञापन फ़िल्म शूटिंग यूनिट बुलायी थी। उन्होंने भी तमाम शिक्षकों में से मेरे लेक्चर को अपनी विज्ञापन फ़िल्म हेतु चुना। शायद उनके विज्ञापन में हम अब भी दिखते हों।

 पहला अपराध था ! :

शायद दो तीन महीने ही बीते थे कि प्रिंसिपल साहब ने आधे स्टाफ को प्रशिक्षु शिक्षकों की उपस्थिति शार्ट करने के काम पर लगा दिया। छात्रों की उपस्थिति को शार्ट दर्शा उनके अभिभावकों को एग्जाम में न बैठने के नोटिस भेजे जाने लगे। प्राचार्य जी, वे भी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का प्रोडक्ट थे, हमारा कुछ ख्याल कर हमारे सामने उपस्थिति पंजिका में फेर बदल कर अधिक से अधिक छात्रों को नोटिस भेजने या क्लास लेने में से एक कार्य चुनने का विकल्प रख दिए। हमने क्लास में पढ़ाना चुन लिया।

अधिकतर शिक्षक ऐयरकंडिशन दफ्तर में बैठ कर रजिस्टर बाज़ी चुन लिए।

खैर हमने भी इस मौके का फायदा उठा दबा कर लंबी लंबी क्लासेज को अनेक पेपर पढ़ाये। बीएड के साथ बीटीसी की क्लास में भी हमारी मांग होने लगी। इससे हमें विषय को गहनता से पढ़ना पढ़ा, हमारे शिक्षण कौशल बेहतर हुए, तीन तीन क्लासेस मिला कर हॉल में लेक्चर देने से बड़ी संख्या वाले क्लासेज को टेक्नोलॉजी के मार्फत से डील करने के हम अभ्यस्त हो गए।

मेहनत और प्रयासों की सच्चाई से ये हुया कि छात्र भी हमारी क्लास अटेंड करने दौड़े चले आने लगे। उनमें से कई अपने आर्थिक हालात, प्रबंधन द्वारा विभिन उत्पीड़क तरीकों से पैसा वसूली और अपने घर के हालात भी सुनाने लगे। मैंने उनका दर्द प्राचार्य से कहा तो वे बोले तनवीर ये प्राइवेट सेक्टर का कॉलेज हैं। यहां अध्यापकों को अपनी सैलरी पढ़ा कर नहीं प्रबंधन को लाभ कमा कर देने के लिए मिलती है। आप नए हैं, आपको पढ़ाने का शौक है, अच्छा पढ़ाते है, इसलिए आपको इसकी छूट दी है। आप पढ़ाइये, बाकी अध्यापकों को सैलरी कमाने दीजिये।

 दूसरा अपराध था! :

कर्नल डी पी सिंह, HR एवं एडमिनिस्ट्रेटर जिन्होंने मेरे C प्रमाणपत्र पर फिदा होकर मुझ पर जुआ खेला था अपने चयन पर खूब गर्वित होते थे। चेयरमैन गिरी भी हमपर मेहरबान थे।

फिर एक दिन एक और कांड हुया। जिन लड़के लड़कियों की उपस्थिति जानबूझकर शार्ट की गई थी उनके घर नोटिस पहुंचे तो कई के गार्डियन आ पहुंचे। तब हमने जाना कि प्राइवेट कॉलेज में न केवल सीट, ड्रेस, बैग, नोटबुक्स, लेसन प्लान बिकते हैं बल्कि उपस्थिति भी बिकती है। अधिकतर के माँ बाप पैसे प्रबंधन को चुका गए लेकिन एक केस बिगड़ गया।

एक शादी शुदा लड़की थी, उसके ससुराल वाले उसे बी एड करा रहे थे। वह पूर्वांचल के किसी शहर की थी। जब नोटिस उसके ससुराल पहुंचा तो गज़ब हो गया। ससुर और पति मेरठ आ गए। प्रिंसिपल आफिस में उन्हीने अपनी रोती हुई बहू से पूंछा कि बहू हमने तो तुम्हें तुम्हारी रिक्वेस्ट पर पढ़ने यहां इतनी दूर भेजा तुम यहाँ कॉलेज आने की जगह कहां घूम रही हो? आप एक भारतीय बहू की स्थिति को समझिये। बहू टिसूये बहा रही थी। मामला शादी टूटने जैसा बन गया था। तभी किसी काम से प्रिंसिपल आफिस में मेरा जाना हुया। प्रिंसिपल साहेब ने मेरी ओर सहायता पाने की दृष्टि से देखा कि क्या किया जाए? मैने भी कहा कि लगता है नोटिस किसी त्रुटिवश गलत चला गया है। ये तो रेगुलर आती हैं।
खैर प्रिंसिपल कुछ बोल न पाए और नोटिस वापिस ले लिया गया। कॉलेज प्रबंधन को कुछ हज़ार रुपये का नुकसान हो गया लेकिन एक लड़की की गृहस्थी और शिक्षा दोनों बच गई।

 तीसरा अपराध था ! : 

प्रिंसिपल साहब मन में हमे ताड़ लिए थे शायद। एक दिन हम अपनी क्लास समाप्त कर छुट्टी के वक़्त अपना थंब इम्प्रैशन देने प्राचार्य के रूम में पहुंचे। तीन चार और शिक्षक भी वहीं थे।
प्राचार्य जी ने हमें भी रोक लिया। थोड़ी देर में सब ऑफिस से निकले और पार्किंग की तरफ बड़े। प्राचार्य जी आगे आगे थे और बाकी शिक्षक उनके पीछे। और हम सबसे पीछे। बेगानी बारात में अब्दुल्ला दीवाने जैसे।

प्राचार्य जी चलते चलते बोले हाँ भाई मनोज सक्सेना जी आज मैनेजमेंट का कितना फायदा किया हमने?
मनोज जी बोले सर आज बीस बाइस स्टूडेंट की अटेंडेंस शार्ट कर नोटिस भेजे हैं... करीब 4-5 लाख की उगाही मैनेजमेंट को ही जाएगी।
प्राचार्य जी बोले शाबाश ये स्ट्रेंथ गिरने नहीं देना है। इसी पैसे से हमारी सैलरी आती है। मैनेजमेंट ने मुझे जो टारगेट दिया है उसे पूरा करना है।

"अब तो हो ही गया है सर अब तो पार्टी बनती है सर!"एक और शिक्षक चहके।

सभी इस सक्सेस पार्टी ऑफर पर खिलखिलाने लगे।

मेरी कोई टिप्पणी और खिलखिलाहट न सुन प्राचार्य जी अपनी कार के दरवाजे में चाबी लगाते हुए बोले... क्या बात है आज तनवीर सर की कोई आवाज़ नहीं आ रही। आपका क्या ख्याल है?

वेंकटेश्वरा के जॉब के दौरान की सबसे बड़ी तीसरी गलती मुझ मूर्ख ने अब आकर की......

"कार्ल मार्क्स अपने कॉफिन में बेचैनी से करवट बदल रहा होगा!" ये मुझ बदज़ुबान का जवाब था । 



प्राचार्य और शिक्षक थोड़ी देर कुछ समझ न सके। शिक्षक तो बाद तक न समझ सके। मैंने तब तक अपनी स्कूटी स्टार्ट कर आगे बढ़ा ली थी। प्राचार्य जी करर में बैठ गए थे। फिर खिड़की खोल मुझे इशारा किया और मुस्कराते हुए बोले आप कम्युनिस्ट कार्ल मार्क्स की बात कर रहे थे?

मैंने कहां जी हां!

"आपका presence ऑफ माइंड बहुत सटीक है।"
बोलकर प्राचार्य जी ने कार आगे बढ़ा दी।

हम भी घर निकल गए।

और अगले दिन क्लास लेते में कर्नल साहब का बुलावा भी आ गया। फौज की डिसेंसी, जेंटलमैन कल्चर, अनुशासन, एफिशिएंसी और चरित्र की तारीफ करते न थकने वाले फौजी ने आज मुझे कुर्सी तक ऑफर न करी। घुसते ही निर्देश दे मारा।

"You are most compitent teacher of this institution. But you have to learn that this is a comercial complex. You should always agree with your employee... You should always agree with management. Otherwise...."

दो मिनट सन्न रहने के बाद हमने भी आगे पीछे के सब हिसाब लगा लिए और बड़ी थेथराई से पूछा.... कि मुझे अपना इस्तीफा चेयरमैन को एड्रेस कर लिखना चाहिए या आपको एड्रेस करूँ सर?

अब कर्नल साहेब के तेवर ढीले पढ़ने का वक़्त था। उन्होंने समझाना चाहा कि स्टूडेंट का फेवर करने से क्या फायदा? यहां बिज़नेस हो रहा है। तुम भी बिज़नेस करो। ऐसे कैसे कहीं भी प्राइवेट सेक्टर में काम कर पाओगे? तुम मार्क्स की बात करते हो?

मैंने भी कहा आप पाठ्यक्रम में तो मुझसे मार्क्स को क्लास में पढ़वाना चाहते हैं और वास्तविक जीवन मे उसके उल्लेख पर आपको आपत्ति है?

आप मुझे मोस्ट competent टीचर कहते हैं। ये competency महंगा आइटम है। attitude और शैक्षिक समझ महंगी शिक्षा से हासिल हुया है, 15000 हज़ार रुपल्ली के लिए नहीं छोड़ूंगा। आपका कमर्शियल संस्थान मेरे पढ़ाने के पैसे देता है। मेरी विचारधारा बदलने के लिए अभी वह बहुत गरीब है।

ये एजुकेशनल attitude है। आप इसे तेवर समझ सकते हैं।

मेरा अगला फायर और घातक था.... सर क्या आप मुझे एक ब्लेंक पेपर दे सकते हैं ? अगर अकॉउंट सेक्शन में एक कॉल कर मेरे due वेतन दिलवाने का कष्ट करें तो मैं दुबारा इस धंधे वाली दुकान में आने से बच जायूँगा।

खैर मैंने रिजाइन लिख दिया। उन्होंने पुनः विचार करने का कह रख लिया। मैं फिर कभी उस कैंपस में बाक़ी की तनख्वाह लेने भी नहीं गया। उन धनपशुओं ने बुला कर दी भी नहीं।

आज रविश के प्राइम टाइम में जब मध्य प्रदेश की स्मृति नामक मेडिकल छात्रा की संस्थान और प्राचार्य द्वारा आर्थिक शोषण और लूट के कारण आत्महत्या पर रिपोर्ट देखी तो अपने साथ बीता सारा वाकया याद आ गया।

इस घटना के बाद एक संस्थान में और चाकरी की उसकी कहानी फिर कभी। बाद में BHU में सेलेक्ट होने पर रिसर्च में एडमिशन ले बनारस चला गया। एक दिन अखबार में पढ़ा कि वेंकटेश्वरा समूह के मालिक गिरी साहब दिल्ली के अपने आफिस की एक महिला कर्मचारी, जो कि किसी सैनिक अधिकारी की पत्नी भी थी के बलात्कार के आरोप में कनॉट प्लेस थाने की पुलिस द्वारा एक होटल से गिरफ्तार हुए।

मैं काफी चिड़ा हुया था... मैंने मेरठ कर्नल साहब को फोन किया। उनके आफिस से पता चला कि वे ग्रुप छोड़ चुके थे। उनसे बात न हो पाई।

फिर मैंने प्राचार्य जी के मोबाइल पर फोन लगाया... और पूँछा.....

"सर जब आपके चैयरमैन उस महिला से बलात्कार कर रहे थे तो आपने उनकी सुविधा के लिए अपनी तनख्वाह को जस्टिफाई करने के लिए उस बेबस महिला के पैर पकड़े थे या हाथ?

शायद ये मेरा बदला था।

काफी देर बाद उधर से बड़ी धीमी आवाज़ आई। तनवीर मैं वहां की नौकरी छोड़ चुका हूँ।

और हाँ Sorry........ for that episode....

मेरा गुबार निकल चुका था।
मैंने भी चुपचाप फोन काट दिया। फिर कभी किसी से संपर्क न किया।

आज शैक्षिक वसूली के बदौलत वेंकटश्वरा ग्रुप की गजरौला उत्तर प्रदेश में एक प्राइवेट विश्विद्यालय भी खड़ी हो गई है।

इंदौर की स्मृति के मेडिकल कॉलेज का प्राचार्य के के खान जिसके पाप और आर्थिक लूट हेतु प्रताड़ना का उल्लेख स्मृति ने अपने सुसाइड नोट में किया है बिल्कुल मेरे इस प्रिंसिपल जैसा ही होगा।

और इंदौर के मेडिकल कॉलेज किसी शिक्षा संस्थान की जगह मुनाफा कमाने का अड्डा!

उच्च शिक्षा के निजीकरण और व्यवसायीकरण के ये अवश्यम्भावी नतीजे हैं।

इन संस्थानों के छात्र और शिक्षक कर्मचारी वहां रोज़ अपने ज़मीर को सूली पर लटका कर नाम मात्र की तनख्वाह पाते हैं।
कई शिक्षक तो मनरेगा के मज़दूर से भी कम तिहाड़ी पर वहां मजदूरी करने को अभिशप्त हैं।।

ये शैक्षिक जगत का काला सच है।
https://www.facebook.com/tanveerulhasan.faridi/posts/1558045830997750

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निजीकरण या प्राइवेटाइजेशन समर्थकों की आँखें खोलने के लिए  यह वीडियो भी सहायक होगा ---

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